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________________ ओं ह्रीं प्रभासकूटतः श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्रादि कोडा कोडि चौरासी कोडि बहत्तर लाख सात हजार सात सौ वियालीस मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 7. श्री चन्द्रप्रभ, ललितकूट (दोहा छन्द) पावन परम उतंग है, ललितकूट है नाम। चन्द्रप्रभु शिवपुर गये, बन्दों आठों याम।। नौसे अर बसु जानिये, चौरासी ऋषि मान। कोडि बहत्तर यों कहे, अस्सी लाख प्रमान।। सहस चौरासी पंचशत, पचवन कहे मुनिन्द। वसु करमन को नास कर, पायो सुख को कन्द।। ललितकूटतें शिव गये, बन्दों शीश नवाय। तिन पद पूजों भावसों, निजहित अध्य चढ़ाय।। ओं ह्रीं ललितकूटतः श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रादि नौसौचौरासी अरब बहत्तर कोडि अस्सी लाख चौरासी हजार पांचसौपचपन मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। ___8. श्री पुष्पदन्त, सुप्रभकूट (पद्धरि छन्द) श्रीसुप्रभकूट सुनाम जान, जंह पुष्पदन्त को मुक्तिथान। मुनिकोड़ाकोडि कहे जुभाख, नव ऊपर नव धर कहे लाख।। शतचार कहे अरु सहस सात, ऋषि अस्सी और कहे विख्यात। मुनिमोक्ष गये हरि कर्मजाल, वन्दों करजोरिनवाय भाल।। ओं ह्रीं सुप्रभकूटतः श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्रादि एककोड़ाकोडि निन्यानवे लाख सात हजार चार सौ अस्सी मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 9. श्री शीतलनाथ, विद्युतकूट (सुन्दरी छन्द) सुभग विद्युत कूट सु जानिये, परम अद्भुतता परमानिये। गये शिवपुर शीतलनाथ जी, नमहुतिनपदकरधर माथ जी।। मुनिजु कोड़ाकोडि अठारहू, मुनिजु कोडिवियालिस जानहू। 140
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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