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________________ जयमाला - बेसरी छन्द जिन अतिशय छयालीस सुपावे, ताकी कथा सकल मन भावे । सो भवि चित दे सुनो बखानों, तातें होय पापमल हानों।। जन्मत दश ये स्वेद न होई, संस्थानक समचतुर सुजोई। संहनन वज्रवृषभ नाराचै, मलन हिंतन सुगन्ध शुभ माचै। महापुरुष शुभ लक्षण हो हैं, स्वेत रुधिर वच मधुर सुसोहैं। बल अनन्त जिन तन में पावे, जन्मत तो ये दशगुण थावे ॥ केवलज्ञान भये दश जानो, शतयोजन दुर्भिक्ष न मानो। नभ में गमन दया सब ल्यावे, ना उपसर्ग देव के थावे ।। कबलाहार नहीं जिन केरो, चौमुख दीखे छांह न हेरो। सब विद्या के ईश्वर होई, नख अरु केश बढ़े नहीं कोई | आखिन की भों टिमकें नांही, ये दश केवल उपजे थाहीं । अब सुनि देव चतुर्दश ठाने, अर्द्धमागधी भाषा माने।। सकल जीव के मैत्री भावो, सब रितु के फल फूल फलावो। दर्पणतुल्य भूमि तहां होई, मन्द सुगन्ध पवन शुभ जोई।। सब जीवन को आनंद होवे, भूमि कंटिकारहित सु होवे । गन्धोदक की वरषा जानो, पदतल कमल रचत हितथानो।। निर्मल गगन देव जयवानी, दशों दिशा निर्मल अधिकानी । धर्मचक्र वसु मंगल ठानो, ये चौदह देवों कृत मानो ।। अब सुनि प्रातिहार्य वसुभाई, तरु अशोक सुमवर्षा थाई । दिव्यधुनी सिंहासन जानो, भामण्डल दुन्दुभि सुखदानो।। छत्र चमर वसु जानो भाई, फिर ये चार चतुष्टय थाई। दर्शन ज्ञान वीर्य सुख वेवा, ये छयालीस सुनगुणयुत देवा || 1327
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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