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________________ देवजीर सुखदास, सरस मुक्ताफल अक्षत। अक्षयपद को पाय, सु पूजत हों अघ-गच्छत।। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें।। ॐ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। कमल-केतकी-कुन्द, चमेली-बेला सारं। ले गुलाब जिन जजों, तुरत भवि जात सु मारं।। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें।। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। फेनी-गोझा सरस, पुआ धर पापर तात। जजों जिनेश्वर-चरण, क्षुधादिक-रोग नशाते।। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें।। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणिमय दीप अमोल, कनकथाली में धारें। जगमग-जगमग ज्योति, मोहतम नशत उजारे।। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें।। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः दीपं निर्वपामीति स्वाहा। कृष्णागरु-करपूर, कूट धर धूप-दशंगी। करम-पुंज जर जाँय, खेयकें धूप सुरंगी।। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल अरु बादाम-लोंग सुन्दर जु सुपारी। जजों जिनेश्वर-चरण, वरों शिवसुन्दर नारी।। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें।। ॐ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा। 1219
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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