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________________ आह्वानन करिये मन देकें, श्री जिन-सन्मुख हूजें ।। अथ ईशानदिशा चैत्यभूमिमन्दिर जिनस्थापना (गीता छन्द) अब प्रथम भूमि निहार भविजन, जान मन्दिर सोहनो । श्री जिन सु बिम्ब विराजमान सु, ध्यान धर मनमोहनो। पूजों सु मन-वच-काय, लाय दिशा गिनों ईशान जू। करों आह्वानन सु सुन्दर, जजों जिन शुभथान जू। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाः अत्रावतारावतरत संवौष्ट्। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। अथाष्टक (मदावलिप्तकपोल छन्द) हिमवन पर्वत सार, जहाँ यह पदम निहारो, ताको उज्ज्वल नीर, लाय जिन-सन्मुख चारो। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें ॥ ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा। कुमकुम चन्दन सार, तासु में केशर गारों। श्री जिनसन्मुख जाय, पूज भवताप निवारों।। भूमि मन्दिरन-तनी, जहाँ जिनभवन विराजें, पाँच मन्दिरन-बीच, जजों सुर शिवपद-काजें ।। ऊँ ह्रीं चतुर्दिशासम्बन्धि-चैत्यभूमिमन्दिरस्थजिनप्रतिमाभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 1218
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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