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________________ सोरठा जो पूजें मनलाय श्रेयनाथ पदपद्म को। पावें इष्ट अघाय, अनुक्रमसौं शिवतिय वरै। इत्याशीर्वादः, पुष्पांजलिं क्षिपेत् । श्री वासुपूज्यजिन-पूजा (छन्द रूपकवित्त) श्रीमत वासुपूज्य जिनवर-पद, पूजत-हेत हिये उमगाय। थापों मनवचतन शुचि करके, जिनकी पाटलदेव्या माय।। महिष-चिह्न पद लसे मनोहर, लाल वरन तन समतादाय। सो करुनानिधि कृपादृष्टिकरि, तिष्ठहु सुपरितिष्ठ इह आय। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) अष्टक (छन्द जोगीरासा आंचलीवंध) गंगाजल भरि कनककुंभ में, प्रासुक गंध मिलाई। करम-कलंक विनाशन कारन, धर देत हरषाई।। वासुपूज्य वसुपूज-तनुज-पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।। 1114
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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