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________________ तित भाषे तत्त्व अनेक धार, जाको सुनि भव्य हिये विचार।6। निजरूप लह्यो आनन्दकार, भ्रम दूर करनको अति उदार। पुनि नय-प्रमान-निक्षेप सार, दरसायो करि संशय-प्रहार।7। तामें प्रमान जुगभेद एव, पत्यक्ष-परोक्ष रजै स्वमेव। तामें प्रतच्छ के भेद दोय, पहिलो है संविहार सोय।8। ताके जुग-भेद विराजमान, मति-श्रुति सोहें सुन्दर महान। है परमारथ दतियो प्रतच्छ, हैं भेद-जुगम ता माँहिं दच्छ।9। इक एकदेश इक सर्वदेश, इकदेश उभैविधिसहित वेश। वर अवधि सु मनपरजय विचार, है सकलदेश केवल अपार।10। चर-अचर लखत जुगपत प्रतच्छ, निरद्वन्द रहित-परपंच पच्छ। पुनि है परोक्ष महँ पंच भेद, समिरति अरु प्रतिभिज्ञान वेद।11। पुनि तरक और अनुमान मान, आगमजुत पन अब नय बखान। नैगम संग्रह व्यौहार गूढ, ऋजुसूत्र शब्द अरु समभिरूढ़।12। पुनि एवंभूत सु सप्त एम, नय कह जिनेसुर गुन जु तेम। पुनि दरव क्षेत्र अर काल भव, निच्छेप चार विधि इमि जनाव।13। इनको समस्त भाष्यौ विशेष, जा समुझत भ्रम नहिं रहत लेश। निज ज्ञानहेत ये मूलमन्त्र, तुम भाषे श्री जिनवर सु तन्त्र।14। इत्यादि तत्त्व उपदेश देय, हनि शेष-करम निरवान लेय। गिरवान जजत वसु दरब ईस, 'वृन्दावन' नितप्रति नमत शीश।15। धत्ता छन्द श्रेयांस महेशा सुगुन जिनेशा, वज्रधरेशा ध्यावतु है। हम निशदिन वन्दै पापनिकंदै, ज्यौं सहजानंद पावतु हैं।16। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। 1113
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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