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________________ कृष्णागरु मलयागिर चंदन, केशरसंग घिसाई। भवआताप विनाशन-कारन, पूजों पद चितलाई।। वासुपूज्य वसुपूज-तनुज-पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2। देवजीर सुखदास शुद्धवर सुवरन थार भराई। पुंज धरत तुम चरनन आगे, तुरित अखर-पद पाई।। - वासुपूज्य वसुपूज-तनुज-पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।31 पारिजात संतान कल्पतरु-जनित सुमन बहु लाई। मीनकेतु-मद भंजनकारन, तुम पदपद्म चढ़ाई।। वासुपूज्य वसुपूज-तनुज-पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4। नव्यगव्य आदिक रसपूरित, नेवज तुरत उपाई। क्षुधारोग निरवारन-कारन, तुम्हें जजों शिरनाई।। वासुपूज्य वसुपूज-तनुज-पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। 1115
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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