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________________ भूर अगर कपूर चूर, सुगंध अगिनि जराय है। सब करमकाष्ठ सु सुकाष्ठ में मिस, धूम धूम उड़ाय है ।। कलुषताप-निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद है। पद-कंद 'वृंद' जजे प्रभू, भव-दंद-फंद निकंद है। ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7। आम निंबु सदा फलादिक, पक्व पावन आन जी। मोक्षफल के हेत पूजों, जोरिक जगपान जी ॥ कलुषताप-निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद है। पद-कंद वृंद' जजे प्रभू, भव-दंद-फंद निकंद है। ॐ ह्रीं श्री अभिनंदननाथ जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8। अष्ट-द्रव्य संवारि सुन्दर, सुजस गाय रसाल ही। नचत रचत जजों चरनजुग, नाय नाय सुभाल ही ।। कलुषताप-निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद है। पद-कंद 'वृंद' जजे प्रभू, भव-दंद-फंद निकंद है। ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदनजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9। 1070
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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