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________________ हीर-हिम-शशि-फेन-मुक्ता, सरिस तंदुल सेत हैं। तास को ढिंग पुञ्ज धारों, अक्षय पद के हेत हैं। कलुषताप-निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद है। पद-कंद 'वृंद' जजे प्रभू, भव-दंद-फंद निकंद है। ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान्निर्वपामीति स्वाहा।। समर-सुभट निघटन कारन, सुमन सुमन-समान हैं। सुरभितें जा करें झंकार, मधुकर आन हैं ।। कलुषताप-निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद है। पद-कंद 'बंद' जजे प्रभू, भव-दंद-फंद निकंद है। ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।40 सरस ताजे नव्य गव्य, मनोज्ञ चितहर लेय जी। छुधा छेदन छिमा-छितिपति, के चरन चरचेय जी ।। कलुषताप-निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद है। पद-कंद 'वृंद' जजे प्रभू, भव-दंद-फंद निकंद है। ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। अतितमसु-मर्दन किरनवर, बोध-भानु-विकाश हैं। तुम चरन-दिग दीपक धरों, मोहि होह स्व-पर-प्रकाश हैं। __ कलुषताप-निकंद श्रीअभिनंद, अनुपम चंद है। पद-कंद वृंद' जजे प्रभू, भव-दंद-फंद निकंद है। ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविध्वंसनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6। 1069
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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