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________________ धवला उद्धरण 180 देशचारित्र के प्रकार दंसण-वद-सामाइय-पोसह-सच्चि-रादिभत्ते य। बम्हारंभ-परिग्गह-अणुमणमुद्दिट्ठ-देसविरदी य।।74।। दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तविरति, रात्रिभक्तविरति, ब्रह्मचर्य, आरम्भविरति, परिग्रहविरति, अनुमतिविरति और उद्दिष्टविरति, यह ग्यारह प्रकार का देशचारित्र है।।74।। पढमो अबंधयाणं बिदियो तेरासियाण बोद्धव्वो। तदियो य णियदिपक्खे हवदि चउत्थो ससमयम्मि।।75।। इनमें प्रथम अधिकार अबन्धकों का और द्वितीय त्रैराशिक अर्थात् आजीविकों का जानना चाहिये। तृतीय अधिकार नियतिपक्ष में और चतुर्थ अधिकार स्वसमय में है।।75।। एक्केक्कं तिण्णि जणा दो हो यण इच्छदे तिवग्गम्मि। एक्को तिण्णि ण इच्छइ सत्त वि पार्वेति मिच्छत्त।7611 तीन जन त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और काम में एक की इच्छा करते हैं. अर्थात कोई धर्म को कोई अर्थ को और कोई काम को ही स्वीकार करते हैं। दूसरे तीन जन उनमें दो-दो की इच्छा करते हैं, अर्थात् कोई धर्म और अर्थ को, कोई धर्म और काम को तथा कोई अर्थ और काम को ही स्वीकार करते हैं। कोई एक तीनों की इच्छा नहीं करता अर्थात् तीन में से एक को भी नहीं चाहता है। इस प्रकार ये सातों जन मिथ्यात्व को प्राप्त होते हैं।।76।। पुराण के प्रकार बारसविहं पुराणं जं दिट्ठ जिणवरेहि सव्वेहि। तं सव्वं वण्णेदि हु जिणवंसे रायवंसे य।।77।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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