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________________ धवला पुस्तक 9 179 किस प्रकार चलना चाहिये या आचरण करना चाहिये, किस प्रकार ठहरना चाहिये, कैसे बैठना चाहिये, किस प्रकार सोना चाहिये, कैसे भोजन करना चाहिये और किस प्रकार भाषण करना चाहिये, जिससे कि पाप का बन्ध न हो?।।70।। जदं चरे जदं चिठे जदमासे जदं सए। जदं भुंजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बज्झदि।।71।। यत्नपूर्वक चलना चाहिये, यत्नपूर्वक ठहरना चाहिये, यत्नपूर्वक बैठना चाहिये, यत्नपूर्वक सोना चाहिये, यत्नपूर्वक भोजन करना चाहिये और यत्नपूर्वक भाषण करना चाहिये, इस प्रकार पाप का बन्ध नहीं होता।।71।। एक्को चेव महप्पा सो दुवियपो तिलक्खणो भणिदो । चदुसंकमणाजुत्तो पंचग्गगुणाजुत्तो य।।72।। छक्कापक्कमजुत्तो उवजुत्तो सत्तभगिसम्भावो। अट्ठासवो णवट्ठो जीवो दसठाणिओ भणिदो।।73।। व अधः, इन छह दिशाओं में गमन करने रूप छह अपक्रमों से सहित होने के कारण छह प्रकार है। चूंकि सात भंगों से उसका सद्भाव सिद्ध है, अतः वह सात प्रकार है। ज्ञानावरणादिक आठ कर्मों के आस्रव से युक्त होने, अथवा आठ कर्मों या सम्यक्त्वादि आठ गुणों का आश्रय होने से आठ प्रकार है। नौ पदार्थों रूप परिणमन करने की अपेक्षा नौ प्रकार है। पृथिवी, जल, तेज, प्रत्येक व साधारण वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय रूप दस स्थानों में प्राप्त होने से दस प्रकार कहा गया है।।72-73।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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