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________________ धवला पुस्तक 9 181 पढमो अरहंताणं बिदिओ पुण चक्कवट्टिवंसो दु । तदिओ वसुदेवाणं चउत्थो विज्जाहरणां तु । 178 ।। चारणवंसो तह पंचमो दु छट्ठो य पण्णसमणाणं । सत्तमगो कुरुवंसो अट्ठमओ चापि हरविंसो ॥79॥ णवमो अइक्खुवाणं वंसो दसमो ह कासियाणं तु । वाई एक्कारसमो वारसमो णाहवंसो दु||80|| बारह प्रकार का पुराण, जिनवंशों और राजवंशों के विषयों में जो सब जिनेन्द्रों ने देखा है या उपदेश किया है, उस सबका वर्णन करता है। इनमें प्रथम पुराण अरहन्तों का, द्वितीय चक्रवर्तियों के वंश का, तृतीय वासुदेवों का, चतुर्थ विद्याधरों का, पाँचवा चारण वंश का, छठा प्रज्ञाश्रमणों का, सातवां कुरुवंश का, आठवां हरिवंश का, नौवां इक्ष्वाकुवंशजनों का, दशवां काश्यपों का या काशिकों का, ग्यारहवां वादियों का और बारहवां नाथवंश का है ।।77-80।। जीवो कत्ता य वत्ता य पाणी भोत्ता य पोग्गलो । वेदो विण्हू सयंभू य सरीरी तह माणओ ।। 81 ।। सत्ता जंतू य माई य माणी जोगी य संकटो । असंकटो य खेत्तण्हू अंतरप्पा तहेव य।।82।। जीव कर्त्ता, वक्ता, प्राणी, भोक्ता, पुद्गल, वेद, विष्णु, स्वयंभू, शरीरी, मानव, सशक्त, जन्तु, मायी, मानी, योगी, संकट, असंकट, क्षेत्रज्ञ और अन्तरात्मा है ।। 81-82॥ उस्सासाउअपाण इंदियपाणा परक्कमो पाणो । एदेसि पायाणं वड्ढी - हाणीओ वण्णेदि । । 83 ।। प्राणवाय पूर्व उच्छ्वास, आयुप्राण, इन्द्रिय, प्राण और पराक्रम अर्थात् बल प्राण, इन प्राणों की वृद्धि एवं हानि का वर्णन करता है। 1831
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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