SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 733
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७०८ कर्म्मग्रन्थस्य बार्थः अर्थ - जे संज्वलन लोभ १, तथा पांच अंतराय ५, तथा पांच ज्ञानावरणी तथा दंसेसु च्यार ४, दर्शनावरणी १५ पंनर, प्रकृतिनी जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त्तनी जाणवी. तथा जसनामकर्म, उच्चगोत्र १ नी आठ मुहूर्त्तनी जवन्य स्थिति जाणवी. सातावेदनीयनी जघन्य स्थिति बार मुहूर्त्तनी ते दस गुणठाणे बांधे, इग्यारमे, बारमे, तेरमे गुणठाणे साता बंधाय ते बे समयनी बंधाय. ॥ ३५ ॥ दो इग मासो पक्खो, संजलणतिगेपुमट्ठवरिसाणि सेसाणुकोसाओ, मिच्छत्तठिईए जं लद्धं ॥ ३६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-संज्वलनना क्रोवनी जघन्य स्थिति मास बेनी छे. संज्वलननामाननी १, एक मासनी छे, संज्वलन मायानी पक्ष १, ते पंदर दिवसनी छे, तिहां जे प्रकृति नवमे गुणठाणे वेहेली खपे तेहनी स्थिति जवन्यपणे कही हवे जे मोडी खपे तेही जघन्य स्थिति थोडी जाणवी. पुरुषवेद खपे तिहां सर्व प्रकृतिनी स्थिति एटलीज बंधाय छे, पुरुषवेदनी स्थिति जबन्य छे, हवे शेष जे एकसोएक प्रकृति वर्णादिक वीसनी उत्कृष्टी स्थितिने मिथ्यात्वनी उत्कृष्टी स्थितिथी भाग आपतां ज्यां जे आवे ते त्यां प्रकृतिनी जवन्य स्थिति जाणवी. तिहां निद्रा पांचनी जघन्य स्थिति सागर १ एकना जे सात भाग एहवा तीन भागनी जाणवी असातावेदनीय पिण सात इया तीन भागनी जाणवी, बार कषायना जघन्ये सातइया ४ च्यार भागनी जाणवी हास्य १, रतिनी सातइया बे भाग भय, दुगंछा, अरति, शोक ए च्यार ४ प्रकृतिनी जघन्य स्थिति बे भाग, नपुंसकवेदनी स्थिति सातइया बे भाग, १२८ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy