SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 732
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मग्रन्थस्य बार्थः ७०७ आहारक दुगनी स्थिति उत्कृष्टी जाणवी. तथा अबाधा प्रदेशोदयनी भिन्नमुहु-अंतर्मुहूर्त्तनी जाणवी. जघन्य स्थिति संख्यात गुण ऊंणी ते जे अतः कोडाकोडी स्थिति छे. तेहने संख्यातगुणी ऊणी करीये, जेटली थाय तेटली ऊणी जघन्य स्थिति जाणवी. एटले असंख्याता अध्यवसायनो फेर पडे छे. नर-मनुष्यनुं आयु तथा तिर्यंचायुनी उत्कृष्टी स्थिति तीन ३ पल्योपमनी जाणवी. ॥ ३३ ॥ इगविगलपुवकोडिं, पलियाऽसंखस आउचउ अमणा। निरुवकमाण छ मासा, अबाह सेसाण भवतंसो ३४ ____अर्थ-हवे जे जीवो आवता भवनो आयु जेटलो बांधे ते कहे छे. एकेन्द्रि तथा विकलेन्द्रिय आवता भवतुं, आयुः उत्कृष्ट बांधे तो पूर्वकोडि १ एकनो बांधे एथी अधिक न बांधे. तथा अमणा असंज्ञि पंचेन्द्रितियेच पर्याप्ता च्यार ४ गतिनो आउखो बांधे तो उत्कृष्टो पल्योपमने असंख्यातमें भाग प्रमाण बांधे, निरुपक्रम आउखावाळा देवता तथा नारकी तथा युगलिया एटला छ मास शेष थकी नवा भवनो आउखो बांधे. शेष जे सोपक्रमी तथा निरुपक्रमी मनुष्य तियेचनुं आयुष्य ते भवने त्रीजे भागे शेषे बांधे पिण पेहेला बे भाग मध्ये न बांधे, जो बीजे भागे न बंधाय तो नवमा भागे, अथवा २७ मे भागे इम विभाग करतां शेष अंतर्मुहूर्ते पिण बांधे. वर्णादिक वीसनी जुदी स्थिति कही. तिणे एकसोछवीस प्रकृतिनी उत्कृष्टी स्थितिकही. हवे जघन्य स्थितिकहे छे. ॥३४॥ लहु ठिइबंधो संजलण, लोहपणविग्घनाण दंसेसु। भिन्नमुहुत्तं ते अट्ठ, जसुच्चे बारस य साए ॥३५॥ १२७ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy