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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. ५६५ - दोष अढारे आ वस्यो, जनम मरण भय व्याप्त; ए आतम निज ज्ञानसु, ध्यावो निज सम आप्त. ६ परशासन सहु छोडीने, धारो सम्यक्त्व ज्ञान; गुण धर गुण धर ज्ञानयुत, ते पण आतम ध्यान. ७ जसु ज्ञान आदर्शमें, छए दर्व भासंत; लोकालोक प्रकाशकर, ध्रुवस्वभाव गुणवंत. जसु ज्ञानरविज्योतिथी, भासे कुनय षद्योत; सदा अगोचर सर्वनत, धरे अपंडित ज्योत. __ढाल-वाह वाह वणायो विंझणो. एहनी ॥ ध्यान धरो निज धर्मनो, निज अक्षय सुखनो कार रे लाल; जसु फरसे शुचिथाये धरा, शिवमारग दाखणहार रे लाल. ध्या०१ जितो रवि भामंडले, ए देव अनाथां नाथ रे लाल, पडतां दुःख समुद्रमे, एहिज साहिब दे हाथ रे लाल. ध्यान०२ थिति सिंहासन उपरे, धरि छत्रत्रयनी शोभ रे लाल, सुरपति चामर विझवे, क्षय कीधो रागने लोभ रे लाल; ध्यान०३ पुष्पवृष्टि सुरदुंदुभि, वली वृक्षअशोके युक्त रे लाल अड प्रातिहारज करी, शोभे वीतराग विमुक्त रे लाल. ध्यान०४ शुक्लध्यानी शांत छे, भवदुःख हरे गतराग रे लाल, एक सनातन व्यक्त छे, गतकामी एशिव मान रे लाल. ध्यान०५ जगचक्षु जगनायक धणी,.ए ज्योतिरूप आनंद रे लाल; ईश चतुर्मुख कृष्ण ए, एहिज जिन आतम संतरे लाल. व्यान०६ सिद्ध सुमति जगज्येष्ट , मुनिवर अक्षर गुणधार रे लाल; निरागी जिन सर्वज्ञ ए, व अयप जीर्ण उदार रे लाल. ध्यान०७ इन एकत्व प्रतीतसु, ध्यानी थावे शिवरूप रे लाला जिण जाण्यां मुनिवर शिव लहे, आराध्यो ते गुणसूप रे, ध्यान For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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