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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ ध्यानदीमिकाचतुष्पदी. आतम अमृतस्वादथी, अक्षयपद लहे कर्म रे लाल भव्यकमल रविसारिषो, निश्चल भजिज्यो तजी भर्मरे लाल. ध्यान०९ आतम आतमज्ञानसु, निश्चयथी परमानंद रे लाल; परमज्योति गुणरंजीयो, मुनि ध्यावे ध्रुगुणचंद रे लाल. ध्यान०१० आतमज्ञान अमृतथकी, थिर मुनि नवि चूके ब्यान रे लाल; ज्ञान राज त्रयभुवननो, ते सुख आममनो थान रे लाल. ध्यान०११ निरमल चित्त थया मुनि, निज आतमज्ञानथी पीन रे लाल; निज व्यय गुणने अनुभवे, थाये लन्मय गुणलीन रे. व्यान०१२ तन्मय आतमध्यानथी, मुनि पामे केवलज्ञान रे लाल; परमातम शिवरूपी हवे, तिण धरी परमातमध्यान रे. ध्यान०१३ ए आतम निजशक्तियी, पामे निस्मल निज नाण रे लाल. एह अज्ञानताभावमे, सहु लोक भमे विण ठाण रे लाल. ध्यान०१४ थान पात्र भवजलधिमे, लोकालोकनो जाण रे लाला ए अष्टानंतक गुण धरी, मतराग अमल गुणराण रे लाल. ध्यान०१५ ए ध्यावो कंद आनंद अमंदनो, अक्षरत्रय नाथ अनंतरे लाल, इण परि निज रूप विचारतां, हुवे देवचंद गुणवंतरे लाल.कान०१६ वीतरागता ध्यावतां, मुनि थाये गतराग; क्रूरकर्मने आदरे, सग तणे मल लाग. मंत्रादिक कुध्यान बहु, चेतनतणो विभाव; भवदुःखकारण परिहरो, ग्रह निज थिरता भाव. निज समाधिगुण आदरयां, एहिज त्रिभुवननाथ; सौख्यहानि न कर कदे, आत्मध्यान गुण साथ. शुझमार्ग छुटां पछे, लहिवो दुकर एह, अध्यातम सुख नासवे, असद्ध्यान भवरेह. For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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