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________________ क्षीरार्णव अ.-९९ 'मांक अ.-१. मिट्टींके, इंटके, पाषाणके, धातुके, रत्नादिके-इन वास्तु द्रव्यादिके. वेषसंदिर 'अपनी शक्तिके अनुसार बनवानेसे चार वर्ग (धर्म अर्थ काम और अंतमें मोक्ष) के फलकी प्राप्ति होती है। मिट्टी आदिके देवमंदिरोंमें लक्ष्मी क्रीडा करती है । । १२-१३ श्री नारदोवाच 'येनेदं सप्त' लोकां तं व्यैलोक्यं सचराचरम् तस्मै ईशाय नित्याय नमः श्री विश्वकर्मयो॥१॥ अव्यक्त व्यक्तता नित्यं येन विश्वंचराचरम् तस्मै ईशाय नित्याय नमः श्री विश्वकर्मणे ॥२॥ वास्तु कर्म लक्षणेन प्रासाद विधि युक्तितः गणित ज्योतिषाचारं कथय मम प्रभो ॥३॥ શ્રી નારદજી કહે છે. જે સપ્તકના અંતે ચેલેકમાં સચરાચર છે એની રચના કરવા વાળા એવા શ્રી વિશ્વકર્માને નિત્ય મારા નમસ્કાર છે. અવ્યક્ત. જાણી ન શકાય અને વ્યક્ત જાણી શકાય એવા જે વિશ્વને વિષે સચરાચર છે તેની રચના કરવાવાળા નિત્ય ઈશ્વર શ્રી વિશ્વકર્માને મારા નમસ્કાર હે હે પ્રભુ! લક્ષણયુક્ત વાતુકર્મ કે જે પ્રસાદની વિધિ ગણિત અને જ્યોતિષના આચાર हे प्रभु ! भने डा. १-२-3 श्री नारदजी कहते हैं जो सप्तलोकके अंतमें थैलोकमें सचराचर है उसकी रचना करनेवाले श्री विश्वकर्माको नित्य मेरा नमस्कार हो । अव्यक्त और તે વાંચકવૃંદ દરગુજર કરે. આનંદની વાત એ છે કે પૂરા એકવીશ અંગે આ ગ્રંથમાં આપેલા છે. મહર્ષિ નારદમુનિ અને વિશ્વકર્માના સંવાદ રૂપ આ ગ્રંથ છે. . (१) गुजरात, सौराष्ट्रमें क्षीरार्णव ग्रंथकी हस्त प्रतें बहुत अशुद्ध, अस्त व्यस्त, विषय के अनुक्रमके अमाववाली, विषयके पुनरावर्तनवाली, एक विषयको छोडकर दूसरे विषय की चर्चावाली, देखने में आयी है। उनमेंसे जितना होसके उतना क्रम मिलाकर पुरानी प्रतोंके क्रमको लक्ष्यमें लेकर यह ग्रंथ क्रमबद्ध लिखनेका प्रयास किया है। सौराष्ट्र गुजरानकी प्रतोंमें प्रासाद के देव मनुष्य स्वरूपकी कल्पना और गणित विषय बहुत करके देखनेको मिलता नहीं है। कुर्मशिला के १.१ अध्यायसे प्रारंभ होता है। गणित विषय हमें रोयल एशियाटीक सोसायटीकी लाईब्रेरी की पुस्तकोंमें से जो यत्किचित् प्राप्त हुआ, उसमें खुछ अध्याहार और संक्षिप्तमें होनेसे हमने उसकी पूर्ति अनुवादमें करके जितनी हो सके उतनी अपूर्णता दूर करनेका प्रयत्न किया है, सो वाचकवृंद हमें क्षमा करें। यह आनंदकी बात है। कि पूरे इकिस अंग इस ग्रंथमें समाविष्ट हैं। महर्षि नारद मुनि और विश्वकर्माके : संवादके रूपमें यह ग्रंथ प्रस्तुत है। . .... .... . . - - .
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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