SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ मंडपाधिकार २३१ बलाक के कुम्भी स्तंभ सरापाट आदि मूल प्रासाद के स्तंभ के छोड़के अनुसार समसूत्रमें रखना । ७२. बलाणकस्त तदग्रेतोरणभद्रमस्तके तद् बाह्ये मत्तावरणं सन्मुख वामदक्षिणे ॥ ७३ ॥ इति पंचविध बाणक અલાણુકના આગળ ભદ્રભાગના તભાને તેારણુ કરવું. તેની બહાર સન્મુખ અને માજીમાં જમણી ડાબી તરફ મત્તવારણ કક્ષાસન કરવાં. ૭૩. बाणके आगे भद्र भागके स्तम्भों को झूल करना । उसके बाहर सन्मुख और बाजुमें दाहिनी बायीं तरफ मत्तवारण - कक्षासन करना । ७३. अथ संवरणा --संवरणाश्च प्रवक्ष्यामि प्रथमं पंचर्यटन् । चतुर्घटाभिर्वृध्ध्या च यावदेकोत्तरं शतम् ॥ ७४ ॥ पंचविंशतिरित्युक्ता विभक्तिर्भाग संख्यया । विभक्ति रष्टभागाद्या यावद् वेदोत्तरं शतम् ॥ ७५ ॥ હવે હું: સંવરણા વિશે કહુ છું. શરૂમાં પાંચ ઘંટાથી ચચ્ચાર ઘંટાની વૃદ્ધિએ એકસે એક ઘંટા સુધીની તેમ ભાગ સંખ્યાથી પચીસ સંવરણા કહી છે. વિભકિત ભાગ સંખ્યાએ પહેલી આઠ ભાગની સામરણથી એક સેા ચાર ભાગ સુધીની એમ પચીશ સવરણા ચચ્ચાર ભાગની વ્રુદ્ધિથી કરતા જવું. ૭૪–૭૫. अब मैं संवरणाके बारेमें कहता हूँ । शुरू में पाँच घण्टेसे चार चार घंटे की वृद्धि पर एकसौ एक घण्टे तककी उस भाग संख्या से पच्चीश संवरणा कही गयी है । विभक्ति भाग संख्या से पहली आठ भागकी शामरणसे एक सौ निर्माण कीया हो तो ज देव प्रासादके सामने बलाणक हो सकता है । जगतीका उदय सम आगे जो मंडप बनाते हैं उनको "वामन” नामक बलाणक कहते हैं । जैन में देव स्थापनका प्रलोभनसे बलाणक प्रासादकी बराबर सामने गर्भगृह करके उसकी पर संवरणा या त्रिषट बनाते हैं । शिखर नहि करता ! मूल मंदिरसे नीचा रखनेका हेतुसे औसा करता है । मूल प्रासाद या मूल भवन या मूल घरसे डहली बलापक हमेशा नीचा होना चाहीये। कम उदय वाली जगतीमें श्लोक ७०-७१ का प्रमाणसे नीचेका मुखमंडप = चोकीका पाट= बीम और ते परकी भूमिदल ( छालिया-रणथल = लादी - फलोर ) का समास मूल प्रासादके उदम्बकी अंदर होना चाहीये। उससे ऊँचा नहिं मगर नीचा रखना उत्तम है। जगती बराबर मुख मंडप = चोकीका पाट=बीम मुख प्रवेश द्वारका उत्तरङ्ग उपर होना चाहिये ! यह विषय स्थान मान और भूमितला जगतीका उदय पर आधार रखता है । उत्तुंग नामका बलाणक द्रविडका गोपुरम् जैसे अगर राजप्रासाद आगे टावर जैसे समजना । कीर्ति स्तम्भ ये उत्तु का सहोदय जैसा समझना ।
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy