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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [ कलश १९६ ] कर्मका [ भावकर्मका ] कर्तापन–भोक्तापन जीवका स्वभाव नहीं---- 'जिसप्रकार जीव द्रव्यका अनन्तचतुष्टय स्वरूप है उस प्रकार कर्मका कर्तापन भोक्तापन स्वरूप नहीं है। कर्म की उपाधि से विभावरूप अशुद्ध परिणतिरूप विकार है। इसलिये विनाशीक है। उस विभाव परिणति के विनाश होने पर जीव अकर्ता है अभोक्ता है।' [ कलश २०३ ] भोक्ता और कर्ता का अन्योन्य सम्बन्ध है---- 'जो द्रव्य जिस भाव का कर्ता होता है वह उसका भोक्ता भी होता है। ऐसा होने पर रागादि अशुद्ध चेतन परिणाम जो जीव कर्म दोनोंने मिलकर किया होवे तो दोनों भोक्ता होंगे सो दोनों तो भोक्ता नहीं हैं। कारण कि जीव द्रव्य चेतन है तिस कारण सुख दुःखका भोक्ता होवे ऐसा घटित होता है, पुद्गल द्रव्य अचेतन होनेसे सुख दुखका भोक्ता घटित नहीं होता। इसलिये रागादि अशुद्ध चेतन परिणमनका अकेला संसारी जीव कर्ता है, भोक्ता भी है।' [ कलश २०९ ] विकल्प अनुभव करने योग्य नहीं--- ‘जिसप्रकार कोई पुरुष मोती की मालाको पोना जानता है, माला Dथता हुआ अनेक विकलप करता हे सो वे समस्त विकल्प झूठे हैं, विकल्पोंमें शोभा करने की शक्ति नहीं है। शोभा तो मोतीमात्र वस्तु है, उसमें है। इसलिये पहिनने वाला पुरुष मोती की माला जानकर पहिनता है, गूंथनेके बहुत विकल्प जानकर नहीं पहिनता है, देखनेवाला भी मोतीकी माला जानकर शोभा देखता है, गूंथने के विकल्पोंको नहीं देखता उसीप्रकार शुद्ध चेतना मात्र सत्ता अनुभव करने योग्य है। उसमें घटते हैं जो अनेक विकल्प उन सबकी सत्ता अनुभव करने योग्य नहीं है।' [ कलश २१२] जानते समय ज्ञान ज्ञेय रूप नहीं परिणमता 'जीवद्रव्य समस्त ज्ञेय वस्तु को जानता है ऐसा तो स्वभाव है, परन्तु ज्ञान ज्ञेयरूप नहीं होता है, ज्ञेय भी ज्ञानद्रव्यरूप नहीं परिणमता है ऐसी वस्तु की मर्यादा है।' [ कलश २१४ ] एक द्रव्य दूसरे द्रव्यको करता है यह झूठा व्यवहार है---- ‘जीव ज्ञानावरणादि पुद्गल कर्म को करता है, भोगता है। उसका समाधान इस प्रकार है कि झूठे व्यवहार से कहने को है। द्रव्य के इस रूप का विचार करने पर परद्रव्य का कर्ता जीव नहीं है।' [ कलश २२२] ज्ञेय को जानना विकार का कारण नहीं---- Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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