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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates निमित्त कारण---जिस द्रव्यका संयोग प्राप्त होनेसे अन्य द्रव्य अपनी पर्यायरूप परिणमता है, वह तो जिस द्रव्य की उस द्रव्य में होती है, अन्य द्रव्य गोचर नहीं होती ऐसा निश्चय है। जैसे मिट्टी घट पर्याय रूप परिणमती है। उसका उपादान कारण है। मिट्टी में घट रूप परिणमन शक्ति है। निमित्त कारण है बाह्यरूप कुम्हार, चक्र, दण्ड इत्यादि। वैसे ह िजीव द्रव्य अशुद्ध परिणाम मोह, राग, द्वेष रूप परिणमता है। उसका उपादान कारण है जीवद्रव्य में अन्तर्गर्भित विभाव रूप अशुद्ध परिणमन शक्ति।' [ कलश १७६-१७७ ] अकर्ता-कर्ता विचार----- 'सम्यग्दृष्टि जीव के रागादि अशुद्ध परिणामोंका स्वामित्वपना नहीं है, इसलिये सम्यग्दृष्टि जीव कर्ता नहीं है _ 'मिथ्यादृष्टि जीव के रागादि अशुद्ध परिणामोंका स्वामित्वपना है, इसलिये मिथ्यादृष्टि जीव कर्ता है।' [ कलश १८०] मात्र भेदज्ञान उपादेय है----- 'जिसप्रकार करोंत के बार बार चालू करने से पुद्गलवस्तु काष्ठ आदि दो खण्ड हो जाती है उसीप्रकार भेदज्ञानके द्वारा जीव पुद्गल को बारबार भिन्न भिन्न अनुभव करने पर भिन्न भिन्न हो जाते हैं, इसलिये भेदज्ञान उपादेय है।' [ कलश १८१] जीव कर्मको भिन्न करनेका उपाय--- ‘जिसप्रकार यद्यपि लोहसार की छैनी अति पैनी होती है तो भी सन्धिका विचार देनेपर छेद कर देती है उसीप्रकार यद्यपि सम्यग्दृष्टि जविका ज्ञान अत्यन्त तीक्ष्ण है तथापि जीव-कर्मकी है जो भीतर में सन्धि उसमेह प्रवेश करने पर प्रथम तो बुद्धिगोचर छेदकर दो के देता है। पश्चात् सकल कर्मका क्षय होने से साक्षात् छेदकर भिन्न भिन्न करता है।' [ कलश १९१ ] मोक्षमार्ग का स्वरूप निरूपण----- ‘सर्व अशुद्धपना के मिटने से शुद्धपना होता है। उसके सहाराका है शुद्ध चिद्रूपका अनुभव , ऐसा मोक्षमार्ग है।' [कलश १९३ ] स्वरूप विचार की अपेक्षा जीव न बद्ध है न मुक्त है---- ___ 'एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जीव द्रव्य जहाँ तहाँ द्रव्य स्वरूप विचारकी अपेक्षा बन्ध ऐसे मुक्त ऐसे बिकल्प से रहित है। द्रव्यका स्वरूप जैसे है वैसा ही है।' Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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