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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [ कलश १३३ ] निर्जरा का स्वरूप---- 'संवरपूर्वक जो निर्जरा सो निर्जरा, क्योंकि जो संवर के बिना होती है सब जीवों को उदय देकर कर्मकी निर्जरा सो निर्जरा नहीं है।' [कलश १३९ ] हेयोपदेय विचार---- शुद्धचिद्रूप उपादेय, अन्य समस्त हेय। [ कलश १४१ ] विकल्प का कारण 'कोई ऐसा मानेगा कि जितनी ज्ञानकी पर्याय है वे समस्त अशुद्धरूप हैं सो ऐसा तो नहीं, कारण कि जिस प्रकार ज्ञान शुद्ध है उसी प्रकार ज्ञानकी पर्याय वस्तुका स्वरूप है, इसलिये शुद्धस्वरूप है। परन्तु एक विशेष----पर्यायमात्र का अवधारण करने पर विकल्प उत्पन्न होता है, अनुभव निर्विकल्प है, इसलिये वस्तुमात्र अनुभवने पर समस्त पर्याय भी ज्ञानमात्र है, इसलिये ज्ञानमात्र अनुभव योग्य है।' [ कलश १४४ ] अनुभव ही चिन्तामणि रत्न है---- ‘जिसप्रकार किसी पुण्यवान् जीव के हाथमें चिंतामणी रत्न होता है, उससे सब मनोरथ पूरा होता है, वह जीव लोहा, ताँबा, रूपा ऐसे धातुका संग्रह करता नहीं उसीप्रकार सम्यग्दृष्टि जीवके पास शुद्ध स्वरूप अनुभव ऐसा विंतामणी रत्न है, उसके द्वारा सकल कर्मक्षय होता है। परमात्मपद की प्राप्ति होती है। अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति होती है। वह सम्यग्दृष्टि जीव शुभ अशुभ रूप अनेक क्रियाविकलप का संग्रह करता नहीं, कारण कि इनसे कायर सिद्धि होती नहीं।' [ कलश १६३ ] कर्मबन्ध के मेटने का उपाय---- जिसप्रकार किसी जीवको मदिरा पिला कर विकल किया जाता है, सर्वस्व छीन लिया जाता द से भ्रष्ट किया जाता है उसी प्रकार अनादि काल से लेकर सर्व जीव राशि राग-द्वेष-मोह रूप अशद्ध परिणाम से मतवाली हई है। इससे ज्ञानावरणादि कर्मका बन्ध होता है। ऐसे बन्धको शद्ध ज्ञानका अनुभव मेटन शील है, इसलिये शुद्धज्ञान उपादेय है।' [ कलश १७५ ] द्रव्यके परिणमाके कारणों का निर्देश---- 'द्रव्य के परिणाम का कारण दो प्रकार है----एक उपादान कारण है, एक निमित्त कारण है। उपादान कारण द्रव्यके अंतर्गभित है अपने परिणाम पर्याय रूप परिणमन शक्ति वह तो जिस द्रव्यकी उसी द्रव्य में होती है, ऐसा निश्चय है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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