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________________ सत्रहवाँ प्रवचन २७५ रात के समय उन दोनों देवों में से एक देव ने देवांगना के वेश में ही अर्जुन के कक्ष में प्रवेश किया। उन्हें देखकर अर्जुन ने कहा - "तुम यहाँ पर कैसे आईं ? जाओ-जाओ, यहाँ से जाओ।" तब देवांगना बोली - “मैं यहाँ पर ऐसे ही नहीं आई हूँ, आपका इशारा पाकर आई हैं।" अर्जुन ने कहा - "क्या। मैंने तुम्हें इशारा किया; मैंने तुम्हें बुलाया?" देवांगना ने कहा - "हाँ, आपने मुझे इशारा किया। जब मैं सभा में नृत्य कर रही थी; तब पहले तो आप गम्भीर रहे; किन्तु बाद में मुस्कुराए तो मैंने समझा कि आप मुझे चाहते हैं, इसलिए मैं यहाँ आई २७४ प्रवचनसार का सार होता। आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि यदि हम अपेक्षा नहीं लगा पाएं तो भी सभी को यह समझना चाहिए कि हमारे कथन में अपेक्षा लगी हुई है; क्योंकि हम स्याद्वादी जैन हैं। जीव शरीरादि द्रव्यों का न तो कर्ता है, न कारयिता है और न ही अनुमंता है। कर्मरूप परिणमित कार्माण वर्गणाओं में जीवों का परिणाम निमित्तमात्र है। ___परद्रव्यों की तरफ देखना पाप नहीं है, उन्हें जानना भी पाप नहीं है; किन्तु उन्हें अपनेपन से जानना; उन्हें रागात्मक या द्वेषात्मक तरीके से जानना पाप है। ये पर में अपनेपन के भाव और रागात्मक या द्वेषात्मक भाव ही कार्माण वर्गणा को कर्मरूप परिणमित होने में निमित्त हैं। जिसप्रकार हँसे सो फँसे अर्थात् थोड़े से हँसने पर भी व्यक्ति परेशानी में आ जाता है। उसीप्रकार थोडा-सा रागात्मक या द्वेषात्मक भाव भी कार्माण वर्गणाओं का कर्मरूप परिणमित होकर जीव के साथ एकक्षेत्रावगाह होने में कारण बन जाता है। एक बार अर्जुन के शील की प्रशंसा इन्द्र की सभा में हो रही थी। सभी देव कह रहे थे कि आज तो अर्जुन जैसा शीलवान कोई दिखाई नहीं देता। उस समय दो देवों के मन में विचार आया कि हम उनके शील की परीक्षा क्यों न करें? क्योंकि शीलवतियाँ तो बहुत होती हैं, शीलवानों का नाम तो हम आज सुन रहे हैं। ऐसा सोचकर वे देव पाण्डवों की सभा में आए। उस समय सभा में नृत्य चल रहा था; वे देव भी देवांगनाओं का बहुत सुन्दर रूप बनाकर नाचने लगे। उन देवों की निगाह तो अर्जुन पर ही थी। वे यह देख रहे थे कि अर्जुन का परिणाम नृत्य देखकर कैसा होता है? किन्तु अर्जुन एकदम गम्भीर रहे। किन्तु जब अर्जुन थोड़ा मुस्कुराए तो उन देवों ने नाच बन्द कर दिया और चले गए। अर्जुन बोले - “नहीं, नहीं; उसका यह मतलब नहीं था।" "फिर आप मुझे बताओ कि पहले आपके गम्भीर रहने का और बाद में मुस्कराने का क्या मतलब था ?" उसके बाद अर्जुन ने जो जवाब दिया, वह अत्यंत ही मार्मिक है। अर्जुन ने कहा - ___“पूर्व भव में मेरे मन में यह इच्छा थी कि मैं दुनिया की सबसे सुंदर महिला के गर्भ से जन्म लूँ; इसलिए मैंने एक अवधिज्ञानी मुनिराज से पूछा था कि दुनिया में सबसे सुंदर महिला कौन है ? तब मुनिराज ने मुझे बताया था कि कुंती सबसे सुंदर महिला है। उस समय मैंने यह निदान बंध किया था कि मैं कुंती के गर्भ से ही जन्म लूँ। मेरा वह निदान बंध सफल हो गया और कुन्ती के गर्भ से मेरा जन्म हुआ राजसभा में नृत्य के समय मैं इसलिए उदास था कि तुम्हें देखकर मुझे ऐसा लगा कि मैं धोखे में हूँ; क्योंकि तुमतो कुंती से भी ज्यादा सुन्दर हो। मेरे हँसने का कारण यह था कि उस समय मुझे विकल्प आया कि यदि मुझे एकाध भव और धारण करना पड़े तो मैं तुमको ही अपनी माँ बनाऊँगा। 134
SR No.008370
Book TitlePravachansara ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size604 KB
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