SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो करता है कुठाराघात संसार वृक्ष की जड़ पर, हो जाते हैं नष्ट उससे भव-भवान्तर । शुद्धता का शुभारंभ होता है सत्वर, क्रमबद्धपर्याय है नींव का पत्थर । एक ही वस्तु में होता है कर्ता-करम, यही है मुक्ति मार्ग का मरम। पर-कर्तृत्व है राग-द्वेष की जड़, इसलिए पर के कर्ता बनने के झगड़े में मत पड़ ! न कर मोह संयोगों से तू निरन्तर, एक ही वस्तु में कर्ता-करम हैं नींव के पत्थर वस्तु स्वातंत्र्य है वस्तु का स्वभाव - इसे सिद्ध करते हैं चार अभाव । आत्मा पर पड़ता है अनुकूल प्रभाव - और नष्ट होते हैं आत्मा के विभाव । ये चारों अभाव हैं मंत्रों के महामंतर! ये अभाव है नींव के पत्थर। -- एक ही वस्तु में है कारण-कार्य सम्बन्ध, उसका भी त्रिकाली वस्तु से नहीं कोई अनुबंध । पूर्व पर्याय का भी होता है अभाव, मात्र तत्समय की योग्यता दिखाती प्रभाव । निमित्त कारण है अकिंचित्कर - अभिन्न कारण-कार्य संबंध है नींव का पत्थर ।। सबै दिन जात न एक समान जीवराज की कर्मकिशोर से बचपन से ही ऐसी घनिष्ठ मित्रता है, मानो उन दोनों का जनम-जनम का साथ रहा हो । जीवराज चेतन होकर भी अपने कर्तव्य पथ से भटका हुआ है और कर्मकिशोर जड़ होने पर भी अपने कर्तव्यपथ से कभी नहीं भटकता । वह अपने काम के प्रति पूरी तरह ईमानदार है, कर्तव्यनिष्ठ है। ___ यद्यपि जीवराज कर्मकिशोर का जनम-जनम का साथी है, दोनों में अत्यन्त घनिष्ठता है; परन्तु जीवराज यदि कोई अपराध करता है तो कर्मकिशोर उसे दण्ड देने से भी नहीं चूकता और यदि वह भले काम करता है तो उसे पुरस्कृत भी करता है, उसका सम्मान भी करता है। और उसे लौकिक सुखद सामग्री दिलाने में कभी पीछे नहीं रहता। ___कोई कितना भी छुपकर गुप्त पाप करे अथवा भले काम करते हुए उनका बिल्कुल भी प्रदर्शन न करे तो भी कर्मकिशोर को पता चल ही जाता है। कहने को वह जड़ है; पर पता नहीं उसे कैसे पता चल जाता है, उसके पास ऐसी कौनसी सी.आई.डी. की व्यवस्था है, कौनसा गुप्तचर विभाग सक्रिय रहता है, जो उसे जीव के सब अच्छे-बुरे (पुण्य-पाप) कार्यों की जानकारी दे देता है? एकबार जीवराज ने कर्मकिशोर से पूछ ही लिया “मित्र! तुम कैसे विचित्र हो? जो बिना ज्ञान के ही जीवों के गुप्त से गुप्त पुण्य-पापों का भी पता लगा लेते हो? उनके सभी शुभ-अशुभ भावों को न केवल पता लगा लेते हो, उनके पुण्य-पाप के अनुसार उन्हें दण्डित और पुरस्कृत करने की व्यवस्था भी कर देते हो? यह बात मेरी समझ में अभी तक नहीं आई। क्या तुम इसका रहस्य बताओगे?" - पण्डित रतनचन्द भारिल्ल (5)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy