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________________ मोहनी चरित्र से कमजोर होते हुए भी स्वाभिमानी है, वायदा खिलाफी नहीं करती। वह जीवराज को स्वयं के प्रति अत्यन्त आकर्षित देखकर नारी-सुलभ कमजोरी के कारण मात्र जीवराज की ही उपपत्नी बनकर रह जाती है। जीवराज मोहनी के प्रति अति आसक्ति रूप पाप-परिणाम के फलस्वरूप कुछ ही दिनों में दरिद्र तो हो ही जाता है, मूर्छितावस्था और स्वप्न में अपनी प्रथम पत्नी समता रानी को भी याद करने लगता है, इसकारण मोहनी उसकी उपेक्षा करने लगती है। यह नारी मनोविज्ञान है कि जिसतरह एक म्यान में दो तलवारें नहीं समातीं, उसीप्रकार जीवराज के हृदय में दो नारियों का रहना संभव नहीं था। इस कारण मोहनी की जीवराज के प्रति उपेक्षा होना स्वाभाविक ही था, मोहनी ने भी अपने हृदय सिंहासन पर कभी एक साथ दो पुरुषों को स्थान नहीं दिया। जब समतारानी को पता चलता है कि उसके पति जीवराज कहीं के नहीं रहे। जिस मोहनी से जीवराज ने नाता जोड़ा था, अब उस मोहनी ने उनसे मुँह मोड़ लिया है तो समतारानी जीवराज की खोज-खबर लेती है। इस तरह जीवराज के जीवन में कैसे-कैसे उतार-चढ़ाव आते हैं, वह अन्ततः किस तरह मोक्षमहल के नीव के पत्थर का शिलान्यास करता है, मोक्षमार्ग की प्रथम सीढ़ी तक वह कैसे पहुँचता है। वह नींव का पत्थर है क्या? वह आधारशिला कैसी है? जिसके आधार पर पूरा मोक्षमहल खड़ा होता है, मोक्षमहल की शोभा बढ़ाने वाले अहिंसा-अपरिग्रह के कंगूरों का निर्माण कैसे होता है? आदि को विस्तृत जानने के लिए पाठकों को यह पुस्तक आद्योपान्त पठनीय है। यह 'नींव का पत्थर' किसी राजमन्दिर, लक्ष्मीमन्दिर, मराठा मन्दिर की नींव का पत्थर नहीं, बल्कि उस मोक्षमहल के नींव का पत्थर है, जिसमें वास होने पर अनन्तकाल तक अनन्तसुख प्राप्त होता है। इस अमूल्य कृति के लेखन हेतु लेखक को कोटिशः बधाई। इस कृति से आपको ऐसा तत्त्वज्ञान मिलेगा, जिसके रहस्यों से अबतक आप पूरी तरह परिचित नहीं हैं। जो इसे पढ़ना प्रारंभ करेगा, वह इसे पूरा पढ़े बिना नहीं रह सकेगा, क्योंकि कृति का कथा प्रवाह सहज, सरल एवं आकर्षक है। आत्मकथ्य नींव का पत्थर जिसका संदेश देते आये हैं तीर्थंकर, लिखते आये जिसे समयसारादि ग्रन्थों में - आचार्य कुन्दकुन्द से मुनीश्वर । कहान गुरु ने फैलाया जिसे देश-देशान्तर, वह वस्तुस्वातंत्र्य' का सिद्धान्त है - मुक्तिमहल के नींव का पत्थर ।। -- जो झेलता है पूरा बोझ - मुक्तिमहल का अपने सर पर। शरण लेना है उसकी; क्योंकि - मुक्तिमहल बनता है उसकी दम पर। इससे बढ़कर नहीं है कोई अन्य जंतर-मंतर । वस्तुस्वातंत्र्य ही है नींव का पत्थर। वस्तु स्वातंत्र्य के साथी हैं षट्कारक, जो हैं संसार के दुःख निवारक । तुम समझो उन्हें हर कीमत पर, यदि ठोंकरे नहीं खाना है दर-दर पर । वस्तु स्वातंत्र्य में इनका योगदान है महत्तर , षट्कारक हैं नींव के पत्थर ।। -- क्रमबद्ध पर्याय करती है वस्तु स्वातंत्र्य का पोषण, इससे होता है संसार समुद्र का शोषण । (4)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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