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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अनेक जिज्ञासु उनके सम्पर्कमें आकर विद्वान् बने। उनसे प्रेरणा पाकर कई विद्वानोंने साहित्य-सेवामें अपना जीवन लगाया एवं परवर्ती विद्वानोंने उनका अनुकरण किया। प्रमेयरत्नमाला, आप्तमीमांसा, समयसार, अष्टपाहुड़, स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा, सर्वार्थसिद्धि आदि अनेकों गंभीर न्याय और सिद्धान्तग्रंथों के सफल टीकाकार पंडितप्रवर जयचंदजी छाबड़ा' ; आदिपुराण, पद्यपुराण, हरिवंशपुराण आदि अनेक पुराणोंके लोकप्रिय वचनिकाकार पंडित दौलतरामजी कासलीवाल; शान्तिनाथपुराण वचनिकाकार पंडित सेवारामजी; तथा महान उत्साही भ्रमणशील विद्वान् पंडित देवीदासजी गोधा ने पंडित टोडरमलजीकी संगति से लाभ उठाया एवं उनसे प्रेरणा पाकर अपना जीवन माँ सरस्वतीकी सेवामें समर्पित कर दिया। दीवान रतनचंद और बालचंद छाबड़ा के अतिरिक्त उदासीन श्रावक महाराम ओसवाल, अजबराय, त्रिलोकचंद पाटनी, त्रिलोकचंद सौगानी, नयनचंद पाटनी आदि पंडित टोडरमलजीके सक्रिय सहयोगी एवं उनकी दैनिक सभाके श्रोता थे । उनकी आत्मसाधना और तत्त्वप्रचारका कार्य सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित था। मुद्रणकी सुविधा न होनेसे तत्सम्बन्धी अभाव की पूर्ति हेतु दश-बारह कुशल लिपिकार शास्त्रोंकी प्रतिलिपियाँ करते रहते थे। पंडित टोडरमलजी का व्याख्यान सुनने उनकी शास्त्र सभा में हजार-बारहसो स्त्री-पुरुष प्रतिदिन आते थे। बालक-बालिकाओं एवं प्रौढ़ पुरुषों एवं महिला वर्गके धार्मिक अध्ययन-अध्यापनकी पूरी-पूरी व्यवस्था थी। उक्त सभी व्यवस्थाकी चर्चा ब्र० रायमलने विस्तारसे की है । उनका कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण भारतवर्ष था। उनका प्रचार कार्य ठोस था। यद्यपि उस समय यातायात की कोई सुविधायें नहीं थी, तथापि उन्होंने दक्षिण भारतमें समुद्र के किनारे तक धवलादि सिद्धान्तशास्त्रोंकी प्राप्तिकेलिये प्रयत्न किया था। उक्त संदर्भ में ब्र० रायमल इन्द्रध्वज महोत्सव पत्रिकामें लिखते हैं : “और दोय-च्यारि भाई धवल महाधवल, जयधवल लेने] दक्षिण देश विर्षे जैनबद्री नगर वा समुद्र तांई गए थे।" 'सर्वार्थसिद्धि वचनिका प्रशस्ति २ सिद्धान्तसार संग्रह वचनिका प्रशस्ति ३ वही *जीवन पत्रिका | पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व, परिशिष्ट १] Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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