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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पं . बखतराम शाहके अनुसार कुछ मतांध लोगों द्वारा लगाए गए शिवपिण्डीको उखाड़नेके आरोपके संदर्भमें राजा द्वारा सभी श्रावकोंको कैद कर लिया गया था और तेरापंथियोंके गुरु, महानधर्मात्मा, महापुरुष, पंडित टोडरमलजी को मृत्युदण्ड दिया गया था। दुष्टोंके भड़कानेमें आकर राजाने उन्हें मात्र प्राण दण्ड़ ही नहीं दिया, बल्कि गंदगीमें गड़वा दिया था । यह भी कहा जाता है कि उन्हें हाथीके पैर के नीचे कुचला कर मारा गया था। पंडित टोडरमलजीके जन्म-मृत्यु और आयुके सम्बन्धमें 'पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्त्तत्व' में विस्तारसे विचार किया गया है। विशेष जानकारी के लिये उक्त ग्रंथका दूसरा अध्याय देखें। पंडितजी का जीवन कार्यक्षेत्र आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान का प्रचार व प्रसार करना था, जिसे वे लेखन-प्रवचन आदिके माध्यमसे करते थे। उनका सम्पर्क तत्कालीन आध्यात्मिक समाजसे प्रत्यक्ष व परोक्षरूपसे दूर-दूर तक था। साधर्मी भाई ब्र० रायमल शाहपुरासे उनसे मिलने सिंघाणा गए थे तथा उनकी प्रतिभासे प्रभावित होकर तीन वर्ष तक वहीं तत्त्वाभ्यास करते रहे। जो व्यक्ति उनके पास नहीं आ सकते थे वे पत्र व्यवहार द्वारा अपनी शंकाओंका समाधान किया करते थे। इस संदर्भमें मुलतान वालोंकी शंकाओंके समाधानमें लिखा गया पत्र अपने आपमें एक ग्रंथ बन गया है। 'तब ब्राह्मणनु मतो यह कियौ, सिव उठांनको टौना दियौ । तामैं सबै श्रावगी कैद, करिके दंड किए नृप फैद ।। १३०३ ।। यक तेरह पंथिनुमैं ध्रमी, हो तौ महा जोग्य साहिमी । कहै खलनिकै नृप रिसि ताहि ,हतिकै धर्यो अशुचि थल वाहि।। ३०४१ ।। पाठान्तर - तब ब्राह्मणनु मतो यह कियौ , सिव उठांनको टौना दियौ । तामैं सबै श्रावगी कैद, डंड कियौ नृप करिकै फैद ।। १३०३ ।। गुरु तेरह पंथिनुकौं भ्रमी , टोडरमल्ल नाम साहिमी । ताहि भूप मार्यो पल मांहि , गाड़यौ मद्धि गंदगी तांहि ।। १३०४।। - बुद्धि विलास २ (क) वीरवाणी : टोडरमलांक २८५-२८६ (ख) हिन्दी साहित्य, द्वितीय खण्ड, ५०० Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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