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युगवीर-निवन्धावली लिखो है-त्रैलोक्यप्रकाशको जैन-ज्योतिप-विषयका और तेजीमंदो जाननेका अपूर्व ग्रन्थ बतलाया है, भद्रबाहुनिमित्तशास्त्रके जोडकी एक भी दूसरी कृति कही देखने में नही आती, ऐसा प्रतिपादन किया है और लोकविजययत्रके विपयमे यह सूचित किया है कि वह सरलतासे घर बैठे देश-विदेशमे होने वाले सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, युद्ध, शान्ति, रोग, वर्षा, महंगाई और महामारी आदिको प्रतिवर्ष पहलेसे ही जान लेनेका एक निराला ही ग्रन्थ है। इसके साथमे एक वहत बडा यत्र है जिसमे दिशा-विदिशाओमे स्थित देश-नगरादिके नाम हैं और उनमे होनेवाले शुभ अशुभको ध्रुवाबोकी सहायतासे जाना जाता है। शाहाजीकी इच्छा है कि इस नथकी टीकाको एक साथ और निमित्तशास्त्रके अनुवादको क्रमश अनेकान्तमे प्रकाशित किया जाय अथवा वीरसेवामन्दिरसे इनका स्वतंत्ररूपमै प्रकाशन किया जाय । मैं आपको इस सव शुभ भावना एव सदिच्छाका अभिनन्दन करता हूँ।'
१. अनेकान्त वर्ष ५, कि० १२, जनवरी १९४३