Book Title: Yogshastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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योगशास्त्र. इत्यमुं ध्यायतो मंत्रं, पुण्यमेकायमानसं॥ वाङ्मनोमलमुक्तस्य, श्रुतझानं प्रकाशते ॥ ३ ॥ मासैः षनिः कृतान्यासः, स्थिरीनूतमनास्ततः॥ निःसरंती मुखानोजा, बिखां धूमस्य पश्यति ॥ ५४॥ संवत्सरं कृतान्यास, स्ततो ज्वालां विलोकते॥ ततः संजातसंवेगः, सर्वज्ञमुखपंकजं ॥५॥ स्फुरत्कल्याणमादात्म्यं, संपन्नातिशयं ततः॥ नामंडलगतं सादा, दिव सर्वज्ञमीदते ॥५६॥ ततः स्थिरीकृतस्वांत, स्तत्रसंजातनिश्चयः॥ मुक्त्वासंसारकांतार, मध्यास्ते सिझिमंदिरं ॥५॥
॥ दशजिः कुलकं ॥ अर्थः- मुखनी अंदर आठ पांखडीउनु कमल ध्यावतुं तथा ते पांखउमां अदरोना आठ वर्गों ध्याववा, तथा “ॐ नमो अरहंताणं” एवी रीतनां अदरोने पण अनुक्रमें ध्याववां; वली खरमय केसरानी पंक्ति तेमां ध्याववी, तथा सुधाबिंऽश्री विनूषित एवी कर्णिका तेमां ध्याववी, अने ते कर्णिकामां चंडना बिंबधी पडतुं, तथा मुखें करीने संचार करतुं अने प्रजाना मंडलनी वच्चे रहेj, तथा चंसरखं मायाबीज चिंतव_ पनी पत्रोमां ब्रमण करतुं आकाशतलमा संचरतुं मनना अंधकारने नाश करतुं, गोल, सुधारसवायूँ, तालुछारथी जतुं भ्रूकुटीमां उलसायमान थतुं, त्रणे लोकोमा अचिंत्य माहात्म्यवाहुँ, तथा ज्योतिर्मयनी पेठे अनुत, एवी रीतना पवित्र मंत्रने एकाग्र चित्तथी स्मरतां थकां, मन वचनना म. लथी सुकायेलाने श्रुतज्ञान उत्पन्न थाय बे; एवी रीतें स्थिर मनें करीने ब माससुधि अभ्यास करवाथी, मुखकमलमांथी निकलती एवी धुंवाडानी शिखाने जुवे . तथा एवी रीते एक वर्षसुधि अन्यास करवाथी ते मु. खमांथी निकलती ज्वालाने जोर शके बे, पनी वैराग्ययुक्त थवाथी सर्वझना मुखकमलने जोर शके बे, तथा पनी स्फुरायमान बे, कल्याणकोतुं माहात्म्य जेमनुं तथा प्राप्त श्रयेल , अतिशयो जेमने, एवा सर्वज्ञने सा.

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