Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ मननीय-सद्विचारउत्तमोत्तम ग्रन्थों का पढ़ना और उन पर मनन करने का सौभाग्य जिसे प्राप्त है उसके सामने चंचल लक्ष्मी का विनोद किस गिनती में है ?, उत्तम पुस्तकें ही सच्चे मित्र हैं / वे अपनी चिंताओं को दूर करते हैं। क्रोध आदि बुरी वृत्तियों को वश में रखने और निराशाओं को नाश कर उत्साह पूर्वक आनन्दमय जीवन व्यतीत करने में वे मदद देते हैं / विश्व का ज्ञान पुस्तकों में हैं। जिस घर में सग्रंथों का पठन मनन नहीं होता, वहाँ हमेशा ही अशान्ति, आलस्य, विलासिता अनीति आदि दुर्गुणों का राज्य है। विचारों को उत्तम बनाने का यदि कोई साधन है तो सत्संग या साहित्य ही है, परन्तु सत्संग को प्राप्त करना जितना दुःसाध्य है उतना पुस्तकों का संग्रह कर पठन और मनन करना नहीं है और पुस्तकें खुद भी तो एक प्रकार का सत्संग है / क्यों कि उनमें भूत और वर्तमानकाल के अनेक महा पुरुषों के सारे जीवन के अनुभवों और उपदेशों का सार है। योरप, अमेरिका, जापान आदि देशों में राजा से लेकर गरीब मजदूर तक पढने लिखने और अपने ज्ञान बढाने की कोशीष करते हैं। वहाँ घर घर में उत्तम पुस्तकों का संग्रह मिलता है / कारण यही है कि वे देश इस गुण में समुन्नत हैं हम सब को उन गोरे ( युरोपीय ) भाईयों के इस गुण का अनुकरण करना चाहिये। हमारी उन्नतिकी खरी निशानी यही है। दिव्य-जीवन