Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश-वन्दन
कोटि कोटि वन्दनारे......ीकिजीति
वे सबका कल्याण चाहते थे....
अपने लिए तो सभी जीते हैं, पर जो दूसरों के लिए जीता है, वहीं महान है। जो विश्व के प्रत्येक प्राणी के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझते हैं। ऐसे लोगों के हृदय में भगवान महावीर की पुनीत शिक्षा के अनुसार सदैव यही कामना बनी रहती है कि
नाकात सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। तमाम
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भागभवेत्॥ तात्पर्य यह है कि सभी प्राणी सुखी हो, सभी निरोगी रहें, सभी का कल्याण हो, कोई भी कष्ट का भागी न बने।जी ममी परम श्रद्धेय प्रातः स्मरणीय गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. जीवन पर्यन्त प्राणिमात्र के कल्याण की भावना से कार्य करते रहे। वे अपने हृदय की गहराई से सबका कल्याण चाहते थे। वे आज हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनके कार्य और उनका साहित्य इस बात का साक्षी है।
पू. आचार्य भगवंत के दीक्षा शताब्दी वर्ष के अवसर पर एक स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है, यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। यह स्मारक ग्रंथ उनके जीवन के अनछुए पक्षों का उद्घाटन करने में सफल हों , यही हार्दिक शुभकामना करते हुए पू. आचार्यश्री के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूं।
जेठमल, सागरमल, सरदारमल समीरकुमार, वर्द्धमान, सुधीरकुमार प्रदीप, प्रमोद, भूपेन्द्र, महेन्द्र, जितेन्द्र, प्रवीण, अमीत, हेमन्त (सौरभ) रुणवाल
जावरा
प्रति.
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ MERENENENENENENINENENENENINENUMERENENEZ (42) UNBRUNBHABINMAMMONUMERENENERENONENENBE
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