Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ आपश्री एक कुशल प्रवचनकार भी थे। आपके प्रवचन पीयूष का पान करने के लिए गुरु भक्त एवं श्रद्धालु लालायित रहते थे। आप सामाजिक विषयों पर अपने प्रवचन फरमाते थे । प्रवचन सुनते समय श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाया करते थे। अपने प्रवचनो में आपकी विषय अनुकुल शास्त्रीय उद्रण देते हुए उसको बोधगम्य बनाने के लिए यथा प्रसंगो का भी उल्लेख करते थे। आपके प्रवचनो के वैशिष्टय को देखते हुए ही आपको सं. 1972 में बागरा नगर मे आचार्य श्रीमद्विजय धनचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने हजारो गुरुभक्तो की उपस्थिति चतुर्विध श्री संघ के समक्ष व्याख्यान वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया था । आपश्री इतिहास के अनन्य प्रेमी थे । यही कारण है कि आपने शिलालेखों, प्रतिमा लेखों का संग्रह तो किया ही साथ ही आपने अनेक ग्राम-नगरों के इतिहास का लेखन भी किया है। इतना ही नहीं आपने अपनी विहार यात्राओं के पडावो का भी उल्लेख करते हुए एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक की दूरी, वहाँ उपलब्ध सुविधाओं आदि का उल्लेख कर भावी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया है। आपने अपने संयम जीवन में अनेक स्थानो पर अंजनशलाकायें, प्रतिष्ठाएं आदि सम्पन्न करवाई । अनेक तीर्थ स्थानों के लिए संघ यात्राऐं आपके सानिध्य में निकली । आपके पावन सानिध्य में अनेक स्थानों पर उपधान तपो का भी आयोजन हुआ और अनेक मुमुक्षुओं ने आपके कर कमलो से संयम व्रत अंगीकार किया जो आज अपने गुरुदेव का नाम उज्जवल कर रहें है । आप एकता के महत्व को भलीभांती जानते थे और सदैव संघ-समाज को एक जुट रहने का उपदेश दिया करते थे । यही कारण रहा की आपने समाज में जहाँ भी विग्रह देखा आपने दोनो पक्षो को सामने बुलाकर उनकी बाते ध्यान से सुनते हुए उनके विवाद को समाप्त कर समाज में एकता स्थापित की । आपश्री व्यसनमुक्त समाज के पक्षधर थे, आपश्री इस तथ्य से भली भांती परिचित थे कि व्यसन से समाज खोखला होता है, पतन के गर्त में गिरता है और अंत मे इसका कारण विनिष्ट हो जाता है। यही कारण था कि आप जहाँ भी पधारते व्यसन मुक्ति के लिए लोगो को प्ररित करते । परिणाम स्वरुप अनेक व्यक्तियों ने आपश्री से प्रेरणा लेकर मद्य और मांस का त्याग किया अनेक लोगो ने आखेट न करने का नियम भी लिया । इसी प्रकार आपने समाज में व्याप्त अन्य बुराईयों को दूर करने के लिए भी लोगो को प्रेरित किया । इस प्रकार आपने समाज सेवा का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया । पूज्य गुरुदेव की हजारों हजार विशेषाताऐं है । उन सबका गुणगान कहां तक किया जावे। जितना भी किया जाए उतना ही कम लगता है। ऐसे ज्ञानी-ध्यानी- परोपकारी, मेरे जीवन निर्माता पूज्य गुरुदेव श्री श्री श्री 1008 आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. की दीक्षा शताब्दी का प्रसंग जब मेरे मानस पटल पर उभरा तो इस शुभ अवसर पर कुछ कुछ करने के लिए में चिंतन में डुब गया। काफी सोच विचार के पश्चात में इस निष्कर्ष पर पहुचां की इस शुभ अवसर पर शताब्दी स्मारक ग्रन्थ के द्वारा श्रद्धाजंली अर्पित करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा । साथ ही यह निर्णय भी कर लिया की इसके प्रधान सम्पादक कार्य जैन धर्म दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान, आगम वाचस्पति डॉ. सागरमलजी जैन (निदेशक- पार्श्वनाथ शोध संस्थान, वाराणसी) को सौंपा जावे । इतना निर्णयहो जाने के उपरान्त अब इस विचार को मूर्त रुप देना था । इसलिए सबसे पहले सम्पूर्ण विवरण सहित डॉ. सागरमलजी जैन को प्रधान सम्पादक का उत्तरदायित्व सम्हालने की स्वीकृति प्रदान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 1228