Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 446
________________ का विस्तार होता है। कालान्तरमें यह शब्द पत्रके लिए प्रयुक्त होने लगा।१९ इसे अर्थादेश कहा जायगा। यास्कके उपर्युक्त निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार तनु विस्तारे धातु से कयन् प्रत्यय कर तनयम् शब्द बनाया जा सकता है।२० ऋग्वेदमें तनय सन्तान या वंशजका वाचक है।२१ पुत्रके अर्थमें भी तनय सम्बन्धी यास्कीय निर्वचन उपयुक्त होंगे। लौकिक संस्कृतमें तनयः शब्द पत्रका वाचक है।२२ (११) जरा :- इसका अर्थ स्तुति होता है। निरुक्तके अनुसार · जरा स्तुतिर्जरतेः स्तुतिकर्मणः१ यह शब्द स्तुत्यर्थक जृ धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि इससे स्तुतिकी जाती है या यह स्तुतिके लिए प्रयुक्त है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें जरा शब्द बुढ़ापेका वाचक है जो जृष् वयोहानौ धातु + अ२३ प्रत्ययसे निष्पन्न होता है। यास्कके समयमें जृष्स्तुतौ धातु रहा होगा। जरा शब्दमें अर्थ परिवर्तन माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें प्रयुक्त वृद्धके लिए जरा शब्दमें तो अर्थादेश ही हो गया है। निरुक्तमें जरा शब्द बुढ़ापेके अर्थमें भी प्रयुक्त हआ है। ऋग्वेदमें भी जरा शब्द बुढ़ापेके अर्थको द्योतित करता है।२४ (१२) इन्द्रः :- यह एक देवता विशेषका नाम है। निरुक्तमें इसके कई निर्वचन उपलब्ध होते हैं। (१) इन्द्र इरां दृणातीतिवा' यह मेघको विदारण करता है। इसके अनुसार इस शब्दमें इरा + दृ विदारणे धातुका योग है। (२) इरां ददातीति वा यह अन्न प्रदान करने वाला है। इसके अनुसार इन्द्र शब्द में इरा + दा धातका योग है। इरा अन्नका वाचक है। (३) इरां दधातीति वा यह अन्नको धारण करता है। इसके अनुसार इस शब्दमें इरा + धा धारणे धातुका योग है। यहां भी इरा अन्नका ही वाचक है। इरा + धा - घ:= इन्द्रः। (४) इरां दारयते इति वा यह मेघका विदारण करता है। इसके अनुसार इस शब्दमें इरा +चौरादिक दृ विदारणे धातुका योग है। इरा मेघका वाचक है- इरा+ दारयिता (द) इन्द्रः। (५) इरां धारयते इतिवा यह अन्न धारण करने वाला है। इसके अनुसार इस शब्दमें इरा + धृ धारणे धातुका योग है। इरा अन्नका वाचक है तथा चौरादिक धृ धातु है। ६. इन्दवे द्रवतीति वा जो सोमपान के निमित्त यज्ञादि में जाता रहता है। इसके अनुसार इन्दु + द्रु गतौ धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होता है। इन्दु सोम का वाचक है। इन्दु + दु-द्रव इन्द्रः। ७- इन्दौ रमते इतिवा जो सोम में रमण करता है। इस शब्दं में इन्दु + रम् क्रीड़ायां धातु का योग है। इन्दु + रम् + इन्द्रः। (८) इन्धे भूतानीतिवा जो प्राणियों को अन्न देकर ४४९:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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