Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 480
________________ में स्वरगत एवं व्यंजनगत औदासिन्य है।३१ व्याकरणके अनुसार पसि नाशने धातुसे कु प्रत्यय कर पांसुः शब्द बनाया जा सकता है। (१९) मुरण्यु :- इसके अर्थ होते है - शीघ, पक्षी विशेष, सूर्यरश्मि। निरुक्तके अनुसार मुरण्युरिति क्षिप्रनामा मुरण्युः शकुनिर्मुरिमध्वानं नयति मुरण्युः शीघका नाम है। पथीको भी मुरण्यु कहते हैं क्योंकि यह दूर तक मार्ग तय करता है। इसके अनुसार इस शब्दमें भूरि +नी प्रापणे धातुका योम है। स्वर्गस्य लोकस्यापि वोदय यह धु लोकमें भी पहुंचने वाला है। उस सुपर्ण पक्षी की तरह धुलोक तक पहुंचने वाला सूर्यरश्मि मुरण्यु कहलाती है।३३ यह निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अपूर्ण है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। सभी निर्वचनोंके अर्थात्मक महत्व हैं। व्याकरणके अनुसार मृ धातुसे कन्यु प्रत्यय कर मुरण्युः शब्द बनाया जा सकता है। (२०) केशी :- यह आदित्यका वाचक है। निरुक्तके अनुसार केशी केशा रश्मयस्तद्वान् भवति केश रश्मिका द्योतक है तथा उससे युक्त केशी कहलायगा। इस शब्दमें केश + तद्वान् अर्थमें ई प्रत्यय है - केशी। (२) काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा यह शब्द काश्दीप्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह प्रकाशित होता है। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक आधार है। काश धातसे केशीम दृश्यात्मक आधार स्पष्ट है। डा. वर्माके अनुसार केशका काश धातुसे संबंध ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे अनुपयुक्त है।३५ लौकिक संस्कृतमें इसका अर्थ वाल है। व्याकरणके अनुसार के शा+अच् = केशी (के मस्तके शेते) अलुक्समास (वालके अर्थम) केश+ड़ी = केशी शब्द बनाया जा सकता है।३६ निरुक्तमें अग्नि एवं वाय मी केशीकहे गये है। धुमसे अग्नि केश वाला होकर केशी कहलाये तथा स्जःकणसे वायु केश वाला होकर केशी कहलाये। (२१) केशिन :- यही केशी शब्द द्वास ही व्याख्येय है। यह अग्नि एवं विषका मी वाचक है। (२२) विषम् :- यह जलका वाचक है। निरुक्तके अनुसार (१) विषमित्युदक नामा विष्णातेः विपूर्वस्य स्नातेः शुद्धयर्थस्य यह शब्द वि + ष्णा शुद्धौ धातु के योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह शुद्ध होता है। (२)वि पूर्वस्य वा सचते:३४ विषम् शब्दमें वि + पच् समवाये धातुका योग है, क्योंकि यह स्नान पानादि के लिए संग्रह किया जाता है। द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त है। माषा विज्ञानके अनुसार इसे संपत माना जायना। शेष निर्वचन अर्थात्मक महत्व रखता है। लौकिक संस्कृत में विषम् का अर्थ जल के अतिरिक्त ४८३.व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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