Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 224
________________ ( २२० ) - रखवायदिया, और शहरमे मुगडुगी पिटवायदि या कि राजाका रत्नानरण गयाहै जिसके इहां नि कलेगा उसको नारी दंडहोगा, इतना कहवायके घरघर तलासी लेते विजयके घरमें मिला विजय कुछ जानता नथा, राजाके पुरुषोने विजयको बां धके राजाके आगे खका किया, राजाने पुरुषोंको गुप्ततासे कहा इस्को मारीमत और उजागरसे हुकुम दिया कि यह चोरहै इस्का वध करो, तब राज पुरुष विजयको शूलीपर चढावनेको लेचले, तब विजयंने अपने मित्रके द्वारा जीवबचनेकी प्रार्थ ना राजाके शागे करवाया , तब राजाने कहा अबा परंतु तेलका भराकटोरा माथेपरलेके विजय शहरमें घूमआवे और तेल नगिरे तो विजयका जीव वचेगा, यह वात विजयने स्वीकार किया, राजाने शहरमे जगेजगे गाना, बजावना, नाच, रंग, और सुंदर सुंदर खीखडी करायदी, विजय माथेपर तेलका भरा कटोरा लेके तैसाही घमके राजाके आगे रखदिया, तव राजा कुब हंसकेबो ले, विजय ! यह चारोतरफ गानाबजाना इत्या दिरहतेनी यहचंचल इंद्रिय कैसेरोके? विजय बो ला, महाराज! मरणके भयले, राजाबोला, विषया सक्तचित्तहो तैने एकभवके मरण नयसे ऐसे इंद्रिय रोके लोशनेकभवमरणसे भीत और तत्वको जान नेवाले गुरू क्योनही रोकसकेंगे, ऐसा राजोका व

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