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विवेकसार
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सेठ नीमसी रतनसीयें तथा मुनि जसवंत सागरजी ये करेला ज्ञानोपकारना साहाज्यथकी
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सा० हीरजीहंसराजे नवीन कृती करीने
तथा सूत्रनी कथान विगरे
Readeenshodecredmodee
उपाध्यायौौरामचन्द्रजीना शिष्य मुनि नानकचंदजी पासे थी
सुद्धकरावीने
छपायोके पहिली दफे )
(फीपुस्तक दाम १००० हजार)
२) रुपैया ।। s ईसवी सन् १८७८ जनवरी १८
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॥ सूचनापत्रम् ॥
नम्र सूचन
इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. आपोथीनूंनाम श्रीविवेकसार राखवानूं कारण बे जे श्री चंचलगच्छपती पूज्यन्नहारकश्रीश्रीश्री विवेकसागरसूरीश्वरांजी विराजते बपावी तथा विवेकसंयुक्त ग्रंथो बपाव्यावे तेथी विवेकसार ए हवोनाम राख्योबे ॥
॥
प्रापोथीयो १००० ज्ञानोपकारअर्थे अथवा श्री सातक्षेत्रना हिसाबें छपावीले तेनी कीमत रुप या बे राखवामां आवीबे परंतु श्रीयती साधु मुनी गुणीजनने मुंबईमध्ये साह नरसी खीअसीनी दु कानथी तथा कच्छ देशमध्ये जस्को बंदरमां मा री माताजी लालबाई पासेथी मुफत मलसे ॥
सही हीरजीहंसराज द० खुद ॥
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॥ ग्रंथोनी अनुक्रमणिका ॥
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ग्रंथोनानाम
प्रारंभपत्र स १ प्रथम प्रस्तावना
श्रीवर्धमान सनेसो शाद्यअङ्करी कुंद वैराग्यसिज्जाय
१८ श्रीस्तवन चौवीसी
श्रीवसंत चोवीसी ७ श्रीत्रीसचोवीसी पूजा ४९ ८ बूटकस्तवन बंद लावणी ८१ ९ श्रीउत्तराध्ययननी कथा ८९ १० श्रीकर्मविपाक कथा १३६ ११ श्रीप्रत्येकबुझ्नी कथा १५० १२ श्रीतत्वविवेक
१५३ १३ श्रीसम्यक्तोत्पत्ति
१८७
१५०
१८७ २३२
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॥ इति अनुक्रमणिका संपूर्ण ॥
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॥ श्रीजिनेन्द्राय नमः ॥
प्रथमतो ग्रंथकारोंना लखवाथी बौछ तथा बौटिक दिगंबरी इत्यादि अनेकमत नीकल्याचे ते सर्वैनि लप्रावचनिक अर्थात् प्रमाणभूत ग्रंथींना भेदथी अलगा अलगा कहबायजे तथापि दिगंबरीने सा थेतो केवल ८४।८५ बोलनो फरकबे ते ग्रंथका रलखे पण तीर्थकरोना नाम तथा जन्मकल्याण कादि तिथी वली चिन्ह एकजमलेचे संदेह ए जेदि गंबरी प्राचार्योये उपासकप्रते एहवो उपदेश की धोबे जे श्वेतांबरीनाजिनबिंब वली साधुनेवांदसो पूजसो तो समकित भ्रष्टथासे तेथी नरके जासो ए मज श्वेतांबरी आचार्योयें उपदेश दीधो दिगंब री जिनबिंबने पूजे बांदे समकित भ्रष्टथासे तेथी उपासकलोग श्वेतांबरी दिगंबरीनो दिगंबरी श्वे तांबरीनो जिनमंदिर आवेतो पराङ्मुखथयी चा ल्याजाय। माराधारवा प्रमाणेतोकस्तूरी फरसेथी सुगंधज आवे दुरगंधि कदापि नावे तिमज जि न बिंबने बांदेपजेथी समकित भ्रष्टनथाय वृछिपा मे किमके दिगंबरी वली श्वेतांबरी जिनबिंब ते सवै पाषाणना माणसोना हातना बनावेल को ईमां तीर्थंकर सदैवे आवी बेठानथी तिम आभू
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षण चढावेथी प्रावी बेसता नथी नचढावेथीनागी जाता नथी जिनबिंबतो ध्येय पदार्थनो आलंबन रूपडे बाकी तरवो डूबवोतो पोताना मनना परि णाम थकीले जिम द्रोणाचार्यनी मूर्तिनो स्थापन करीने एक निल्लेबाणविद्या सिझकरी हती तिम जि नबिंबने सम्मुख बेठेथकी नवी जीवनो नावशुद्ध रहेने तेथी आत्मानी सिद्धिथायडे अने जिनबिंब सर्व सरीखाछे तदापि धर्मकरणी पोतपोतानी आ नाय प्रमाणे करो पण एक बीजा ऊपरद्वेष माक रो नगवाननीप्रतिमा बांदवामा समकित भ्रष्टथा यतो तेहोंने संगे जमवाथी वली लडकीलेवा देवा थी समकित किम रहसे जमवो तथा लडकीदेवो लेवो जेमकरिये तेमप्रतिमा यांदवी जोइये मारी धारणामांतो एमआवेडे ॥ ॥ ॥
श्वेतांबरी मततो मारा धारवामां सत्यजे तेमां पण आचार्यो फेटोडा नाखी सक्या तेटला नाखी नाखीने पोतपोतानाबाडा वारीलीधाजे बीजो कोई उपाय नलाग्यो तो क्रिया वली तिथोंमांज फेरफार नाखीने पोताना गच्छ बांधी लीधाबे जिमकोई दस पांच जणनी गाडर एटले मेढर सा थे चरती होय तारे पिछाणवा सारू कोईये गेरू नो ठीको कस्यो भने कोईवीजी चीजनी जुदी जुदी निसाणी पोतपोतानी राखे तिम भाचा यों ये क्रियामां वली पर्बतिथोंमां फेरफारकरीने पो
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ताना श्रावकोनी पिकाण राखीजे पण जिनव चनविराधवानी कांई डर राखीनथी तेऊपर ए क गाथा ॥ गच्छनाभेदबहुनयणनीहालतांतत्वनी बातकरतानलाजे । उदरत्नरणादिनिजकाजकरतां थकां । मोहनडिआकलीकालराजे ॥ इति आनं दघनबचन । एथकी विचारियेतो आचार्यों ये जेगच्छ थाप्याने ते केवल पोतानी वली पोताना परिवारनी आजीविका चलाबा सारू जुदा जुदा गच्छथापी बाडावारीलीधाबे पण आपणानाइयो कांई विचारतानथी तेमांपण केटला आचार्यों ये जेवो नरमाव्यो तेवोकोईये नरमाव्यो नथीते केम जे सज पोतपोताना मनमां समबे जेनीप जोषणपर्व नाद्रपद छ ५ नो परापुरवे तेनूखं डन करी चौथनो स्थापन कस्यो वली परकी परा पुरवे पूनम तथा अमावसनीले तेने तोडीने चौद सनी ठेरावी पण आपणनाइयो विचारकरो जे शाचायोंये ठेव कस्यो तेथी अगाऊ कोई बुझिमा न नहीथया हसे घणा केवली तथा पूर्वधर थईग या तेमां कोईये एतिथीनो खंडन कस्खोनही वली कोई सिद्धांतमा वली प्रकरणोमां पण एतिथिनो खंझन कस्यो नथी आतो आचार्योंयें मतबादथी खोटो नरमाव्योछे मोंढाथी एम बोलेछ जे श्रीका लिकाचार्यजीयें चौथनो संवत्सरीपर्व थाप्यो तेप ण स्यांकारणथी ते जाणताहसे पण हठ मंकता न
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थी कालिकाचार्यजीयें तो कोईएक राजाने पंचमी ये इंद्रमहोत्सव हतो तेमांटे चौथनेदाने संवत्सरी करबानी आज्ञा दीधी हथी पोतेतो पंचमीयेंकरी जेमांटे कालिकाचार्यने पंचमीमां इंद्रमहोत्सवनो कांई प्रतिबंध नहतो ग्रंथोमां पण एम लख्योडे जे अंतरावियसे कप्पइ । एनीटीका । पंचम्या अंतरापिच अर्वागपिच एकदिनपूर्व चतुर्थ्यामित्य र्थः शत्रांतरापिचेत्यनेन पंचम्यां कर्तुमशक्नुवानए वांतरा कुर्यादितिज्ञाप्यते नतुपक्षांतरमेतत् पर्युष णायाः सांवत्सरिकत्वेन पंचाशत्तमे दिने चतुर्थ्यां संवत्सरापूतः । एनो अर्थ। पंचमीथी पूर्व पणि सं वत्सरीपर्व करवो जे सूत्रमा अपिशब्द कह्योछेते थी एम जणावे जे पंचमीये कारण वशथी करी नसके तेज चौथने दामे करे पंचमीमां तथा चौथ मां करवो एहवो पदांतर नथी जमाटे ए पजो सणपर्ब संवत् परोथाय तेदा करवो जोइये चौ थमा संवत्सर पूरो थातो नथी वर्तमानकाले शमा रानाइयोने वली साधुलोगोने तेहवो कोई इंद्रम होत्सव सरीखो प्रतिबंध दीखतो नथी जे चौथ मांजकरिये तमाटे मारी धारणामां एम आवेळेजे कालिकाचार्यजीयें एहवी सदा चौथमांज करवानी आज्ञादीधी नहती राजायें प्रतिघंधथी चौथमाक री राजाना आग्रहथी वली खुशामतथी अनेकलो गचौथमाज करवालाग्या हजीतक तेज आग्रह ध
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रीन शास्त्रनो सिहांत त्याग करीने हठकरेबे तेक रो पण पंचमीना पालनवाला ऊपरे द्वेष करवोउ चित नथी जोवामां आवेनावनगर तथा पाली ताणा विगेरे गणा गामोमां एहवा द्वेष राखेके जेश्रावक ३६० दाडामा १ पैसानी नीलोत्री नई लेतो हसे तंपण नाद्रघासुद ५ नादिने नीलोत्री जरूर लसे एटलूंजनथी द्वेषना आवेशथी पंचमी ना पालनाराना मंदिर पासेथी खुली हाथें लेईव टावसे एहवा द्वेषे धर्मक्रिया करे ते किम तरे ते विचारी जुवो । वली पखी कोने कहिये ते नानो बालक पण जाणेजे जेपद परो थाय तेने पखीक हिये ते बूबता चउदसमां पखी करवी तेपण केव ल मतवाद नासेबे पण विचार करियेतो आचा ोयें वली पीलाकपडावाला साधूयें आपणा ना इयोंने नरमायामां कमती कस्यो नथी गुजरा तमां मोटी पूजानणावे तारे दालसाकन्नात सुद्धा नैवेद्य धरावे पण तेमां लानबे के हाणीने तेज्ञानी जाणे । वली मारी हीणबद्धी प्रमाणे तो जेटलो पी लाकपडावालामांथी केटला साधये आपणा नाइ योने नरमाब्योबे वली हाल पण नरमावे ते टलो सपेदकपडावाला भरमाबता नथी केमके तेतो यथा र्थ कहेजे जे अमारामां साधुपणो बे वा नथी ते ज्ञानी जाणे पणजे अमे करिये जे ते करसोतो बू डसो पण जेम कहिये तेकरसो तो तरसो अनेपी
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लाकपडावालातो कहे जे अमे शुरुचारित्रियावां अमाराजेम करसे ते तरसे एहवो कहे पण पो तानी भूल देखतानथी जेसिद्धांतमा साफकह्योबेजे नरंगेजानधोवेजा। तेबूकता नथी पोताना हाथेर गीनेकपडापेरेबे ने जिनवचनरूपी अमोल माणक दरीनाखेचे एटलोजनथी मासें मासे विनती पत्र वली बमासे विनतीपत्र भेजवानी आखडी वली पोताना चित्रपटनी पूजा करीने नोजन करवानी शाखडी दिरावे तथा धर्मोपकरण एहवं कही ने बहुमोला पूठाठवणी पुस्तक लेवेले वली आप णा उपासकोंने चीठी भेजेजे निमित्त कहेजे चेला करे सवारीमां वेसे मार्ग चालतां आधाकमी आहारलेवे तेसेर्व साधुनी किरिया केसाध्वाना सनी किरियाने ते ज्ञानी जाणे मारेतो सर्वे पूज वायोग्य अने आपण नाइयोंने एहवी खीबे के तेतो पीलाकपडामांज धर्म समफेले बर्ष द स पंद्रयासरे थया तारे बेजणा गंधरप पीलाकप डापेरी संवेगीसाधूनो वेषलेई कछमारवाडमां फ रीने हजारोनं धन ठगी लाब्याहता एहवू सांन फेलबे तथा हालपण बेत्रण पीलाकपडावाला पासे लाखोनोद्र ब्यबे एहवो सांजलवामां आवेडे एवा स्ते नाईसाहेबो कपडामां वा रूपमां धर्मनथी ध मतो गुणोमांजे ते गुणवंत तो विरला जाणवा ते पण नास्तीनथी परिक्षा करि ध्यावो ने तेविषे मा
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री अरज सर्व जैनधर्मपालनाराने एबे जे सुगुरूनी परिक्षा कपडा ऊपरे करिये नई तिमतेनी किरिया वली तपस्या देखी पण गणो रीजिये नई परंतु जे पुरुष निरपक्षी उपदेश दीए सुद्धजिनवचन यथा स्थित नाषे तेने सुगुरुजाणवो जिमकोई अन्नव्य जी व मुनिपणी लेई सुद्धउपदेस देता अनेक जीवनेमो कपोचा ने पोते नजाय तिम हालना वखतमांस गणीतो मुनिपण नथी तिमनावक पण नथी प रंतु देस काल नाव विचारी ध्यायाविये तदापि पो तपोतानी आम्नाय प्रमाणे धर्मकरणी करो एक बी जा ऊपर द्वेष नकरो द्वेषं अनंतो संसार बधसे ब ली केटला एक प्राचार्योयें कईएकनोला श्रावकों ने एहयो नरमाब्योबे के सामायिकमां स्तबननण वो ते पोताना गच्छना आचार्यो वली यतीसाधू नो करेलो होवे तेज नणवो बीजा गच्छना करेला कहेथी सामायिक भ्रष्ट थासे तथा पालीताणाना श्रावकने कोई नरमाव्योबेजे तपगच्छ सिवायको ईआचार्यने गाममांथी मंदिर शागलथई जावादे वो नई तेथी ते मूरख लोको एहवो हठ पकडीबे ठा जेकोई आचार्य बजारमाथी जायतो तेनेबां दवाना बदले मार आपे एहवो द्वेष राखे जिनद रसणी ऊपरे ते किमतरसे ते विचारी जोवो।
श्वेतांबरीमाथी संबत् १६३३ नीसालें साह लों का लोइयायें गुजराती लोंकोगच्छ कान्यो ते मा
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थी वली टुंढिया धर्मवाला नीकला ते मांथी बली तेरा पंथी निकल्याने इत्यादिक गणा ढोंगी पंथ निकल्याने तेनो विस्तार पणो ढुंढकमत खंडन मां छपाई चुकाबे तेथी अत्रे लखता नथी पण मार त च्छमती प्रमाणे एमतवाला निकायना शिरोमणीजे तदापि नवकार महामंत्रना आराधकबे तेथी संसा र तरे पण जो वीजा ऊपर द्वेष नराखे तो परतु शेष कोईने तर नई आपे ॥ ॥ ॥
हालबर्ष १५ आसरे थया तारे १ रामविजयनामे जती उजेणीना जूना उपासरामां आदेसी हतो ते नी आचार्यने साथे वोलाचाली थई तेथी तेणे पो तानो गच्छ जमावानी मेन करी ते पारपडीने श्री खाचरोद तथा वनगर तथा रतलाम एपरगणामां १००० । २००० मेढर तेना वसपण थईगया तारे पोतानं नाम राजेंद्रसागरसूरी ठेराव्यो ने १० २० जती बीजा पण आप जेवा मिलावी लीधा ने गच्छनी स्थापना करी मको जमावी बेठाने तेनो सं घ दिनदिन वधतो जायजे ॥ ॥ ॥
एटला गच्छ तथा पंथ छता पण साह नीमराजना सपूत साह हेमराजनो मन संतुष्ट थयो नई तेथी व र्ष ७।८ थया तारे तेणे कछ देसमां पोतानो रो ढो चलावीने मको जमावीने ते परगणाना १००० २००० मेढर तेनां वसमां थईगया तारे तेणे पण १ श्वधीनामे गच्छ थापना करी तेनो संघ पण
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दिनदिन वृद्धि पामेवे ते अमनेतो पांचमां तेम बठा यारानी निसाणीज मालूम पडेबे । नगवंते बेप्र कारनो धर्म कह्यो एक गृहिधर्म वीजो साधु ध र्म जे गृही धर्म तेमां यथेच्छ हिंसा १ प्रदत्तादा ननो त्याग २ स्वदार संतोष इत्यादि कह्यो । जे सा धुधर्म ते सर्व प्राणातिपातादि त्यागरूपले जेसाधु धर्म पालना समर्थ नहोय तेहने श्रावकधर्म अंगी कार कर कह्योबे जेसाधुधर्म पालीसके तेहने सा धुधर्म अंगीकार करवो कह्यो । जेबेहुं पालवासम र्थ नई ते केवल जिनेंद्रना कह्या जीवाजीवादि प दार्थने सांचा सरदहीने अविरत सम्पक दृष्टी केहवा यवे । पण एना उपासक तेमउपदेष्टा तो सार रहित सिकता जेम बे । साधुधर्म ने श्रावकधर्म बेऊंथी च्युत । एक कहलावत । पांपोतेनूबतो लेहूबे जजमान ॥ तेसत्यवे एलोकोमां अविरत सम्यकूदृष्टी पणो पणनथीजेमांटे विपरीत सरदहणावे | के कोई जती साधुने बांदणो नई १ तेम व्रत पचखाण लेणो नई २ वली यतीनी प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा बांद णी नई ३ तेम श्रावकना हातनी प्रतिष्ठित एक महा वीर स्वामीनी प्रतिमा वांदणी ४ । २३ तीर्थंकरनी प्रतिमा वांदणी नई | जेहनो शासनबे तेहनीज प्र तिमा वांदणी ५ ॥ जदि जावहोयतो पूजा करवी नाव नहोयतो पूजा करबी नई ६ ॥ तेम जती साधु ने वांदवो एहमां अनेक ग्रंथना प्रमाणबे नेवांद
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(१० >
वाथी तेम पूजासत्कारथी पुण्य थायले सूत्रोंमां ते म ग्रंथोमां साधुने बांदवानी तेम पूजासत्कारनो घणो फल लख्यो । जदि कोई एम केसे कि ग्रासम यमां चारित्रियासाधुनथी ए केहबो उचितनथी केम के धनेश्वरसूरिजी यें सत्रुंजयमहातममां लख्युंबे जे यादृशंतादृशं वापि दृष्ट्वावेषधरंमुनिं गृहीगौतमव नक्त्या पूजयेत्पुण्यकाम्यया ॥ १ ॥ एहवचनथी जे टला जगवानना वेषधारी साधुबे तेसर्वे गौतमने तुल्य वांदवा पूजवा योग्यबे भक्तियें पुण्यनी इच्छा करी ॥ एकह्यांथी एमालूम थायले जे चारित्रसहित तेम चारित्र रहित नी परीक्षा मे बनस्थ क रीसकता नथी एचारित्रियो ए चारित्रियो बेए तो ज्ञानी जाणे । एहमां बे दृष्टांत जे प्रसन्नचंद्र राजऋषीने मननो परिणाम कोण जाणतो हतो के एसमयमां मरसे तो नरकमां जासे श्रेणिकादि क सर्वे एहवूं केहवा लाग्या के एमुनिराज घणीं उग्र तपस्या करेके घोमाथी उतरीने वांद्यो । ए मंगारक मुनिराजने सर्वे जाणता हता के एच्छा चार्य बे ने श्रुतकेवली तेहने ५०० शिष्य हता परंतु भद्रबाहु स्वामीने पूग्रांथी मालुम थयूं केए अंगारक नव्यशूकर ने ५०० एना शिष्यहा थी के एमाटे पाचार्य पदथी च्युतकरी दीधो ॥ ए माटे चारित्रादिगुणीबे वा नथी एनी परीक्षा तेम वांदो नवदवो एकहत्रो घणो अनुचित ठहरसे
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(. ११
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मारी धारणा प्रमाणे एशवेडे पजे ज्ञानी कहे ते प्रमाण । एम व्रतपचखाण लेणो नई। तारे प लसरीखा थया ब्रतपचखाण करवू जे तीर्थंकरोये कह्यों ने तेमां हेतु शने फलपण देखायोके जेश नादिकालथी जीवने ज्ञानावरणादि ८ कर्मथी बंध न थयोडे ते कर्मोना बंधन जाणीने विशिष्टक्रि यायें अर्थात् संयमानुष्ठानरूपक्रियायें ते बंधने श त्माथी जुदो करवो जेकाले संयमानुष्ठानथी जुदो थासे तारे मुक्त कहासे तेज व्रतपचखाणनूं फल के संयमानुष्ठानज ब्रतपचखाण व्रतपचखाणनक रिये तो मुक्त किम थायें॥अब्रती अपचखाणीनी नरके गतिकहीजे॥ तेजप्रकारे यतीनी प्रतिष्ठितजि नप्रतिमा वांदणी नई एपण केह→ युक्त नथी केमके यतीनेज प्रतिष्ठा करवानों शधिकारबे तेमंत्रसंस्का रादिक्रियामां श्रावकने अधिकारनथी उमास्वाति वाचक तेम पादलिप्ताचार्य कृतप्रतिष्टा कल्पोमांप्र गट लख्यो जे। सूरिःप्रतिष्ठां कुर्यात् । अर्थात् आ चार्य प्रतिष्ठाकरे प्राचार्यने शन्नावें बहुश्रुत यती ने पण प्रतिष्ठाकरवी कहीले पणि श्रावके पोतेंज प्रतिष्ठा करवी एहवो पाठ कोई ग्रंथोमां दीखतो नथी । तेम महावीरस्वामीनीज प्रतिमा वांदणी ए केहवो पणि अयुक्त जेचैत्यवंदनविधिमां तेम लो गस्स मां २४ तीर्थंकरनी प्रतिमा वांदणी कहीजे भूत नविष्यत् वर्तमान जईलोक अधोलोक तिर्य
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गलोक सर्वतीर्थंकरोने नमस्कार कह्यो प्रतिष्ठा कल्पोमां पणि २४ जिननी प्रतिष्ठा करवी कही तेहोंना अलगा अलगा मुहूर्त लख्या राशिमेलनल ख्याने ते स्यांमाटेलख्याने तेमनरतचक्रवतीये २४ नगवाननी प्रतिमानी थापना प्रष्टापदऊपरे स्यां मांटे करी ऋषनदेवजीनी हीज प्रतिमाथापबो जोइये तेनथी २४ तीर्थकरनी करी एहवं ग्रंथो मां लख्यूं ॥ जेहनूं शासन तेहनीज प्रतिमा पू जणी एहवो मारी धारवामां तो प्रलापजे ॥ २४ जिननी प्रतिमा देख पफेले वर्तमान कालमा जे हवी महावीरनी प्रतिमा पूज्य तेम सर्वे तीर्थकरो नी प्रतिमापूज्यने । वली नावहोयतो पूजा करवीए केहवो तो मूर्खपणो केमके नावउपजवा माटेज पूजन करवो कह्योबे द्रव्यपूजनादि नकरसे तो नाब केमथासे कारणविना कार्यकिमथाय ए एह वो विपरीत धर्मदेशना करणारो जिन वचन विरा धक आचार्य थईने सर्वप्राचार्योथी नवीनरीतक रीले केमके पागल जेटला प्राचार्यथया तेणे सर्व गृहस्थावासछोडी दीक्षा लईने गच्छोनी स्थापना करीब ने सा:हेमाचार्येतो दीदा मूकीने गृहस्थावा सग्रहणकरीने गच्छनी स्थापना करी एटलो एस
थी वध्यो बीजासर्व प्राचार्यो बलीसाधु उप देश करेले जे गृहस्थाबासकांडी दीक्षाल्यो ब्रतप चखाणल्यो सुपात्रे दानआपो साते क्षेत्रे धनबाव
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रो ने एहेमाचार्यतो नानचंदजी प्रमुखने कहेले दीक्षा मंकीने माराजिम गृहस्थावास ग्रहो तथापो ताना शिष्योने पण एहयोज उपदेश करके जेदी क्षालेवी नई व्रतपचखाण लेवानई बली दान देवो लेवो नई तेतो गांडूनं कामबे मरदोंकीतो मोवत नली एवो उपदेश करेजे अमे तुच्छ मती प्रमाणे जाणिये जेथोडा बर्षों प एगच्छ सर्वे गच्छोंथी घणो मोटो थई पसे पण एहोना परिपाक खो टाबे प्रसन्नचंद्रोत्पलालं कारमां कह्योबे ॥ धर्मत्वरितमहापुरुषंबत धर्मात्पातयतस्तमसेर्थः १॥ छिष्टोवंचितलोको निंदितजिनमार्गो बध्नातितम स्सः ॥ २ ॥ एनो अर्थ । धर्मनेविषे त्वरित अर्था त् धर्मना शराधनमां तत्पर एहवा महापुरुषने धर्मथी पातनकरे शर्थात् च्युतकरे ते महामो हनीय कर्म उपार्जनकरेछे॥१॥ जेधर्ममा द्वेष क रे नेलोगोंने कपटथी कले ने जिनमार्गनी निंदा करे ते महामोहनीयकर्म उपार्जनकरे ॥२॥ इत्या दि अनेक बचनोंथी जाणियेजे जे एहवी प्ररूप णा करणारो मोहनीयकर्मना वशथी पोते नरक मां पडे बीजानेपणि लेई पडे ॥ एम घणा म तमतांतर जैन धर्ममां थई पन्या एटला वधा मतमतांतर थयाने ते सर्व आचार्योयें वली पीला कपडावालोंये वली साधुये नाख्याने ते जोतांतो ए हवी रीस आवेने शक्ति होयतो सर्वोने पकडी
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ने श्रीसीमंधरस्वामी पासे लेई जई लोकनेते रेवानूं देवटो अपाबूं पणि शक्तिनई तेनो उपाय 'नई ॥ ने बीजीरीतें विचार करियेतो एटलो जी धर्म रह्यो वली थोडो थको सिद्धांतरह्यांबे तेया चार्यो वली साधुयोंथकी रह्योबे तेथी तेहोनो बो उपकार मानवो जोइये । कारण जे नवकार महा मंत्र एकअखंबे तोसर्वे अखंडबे ॥ वास्ते अहो ना इयो जेने जे देशना बेठीबे तेतो हाल फरवी मु सकिल तोपण समभाव राखो कोई ऊपर द्वेष मा राखो न परिणामे धर्म करणी करो मारा जिम कपटे धर्म करणी करसो नई वली जेकोई व्रतपचखाण लीयें ते शुद्ध पालजो पले तेटला ब्र तलेजो पण मारा जिम व्रत उच्चार करीने खंडन करसो नई कारण में पण सोबतें श्रावकना १२ व्रत मांधी ७ व्रत उच्चार कीधाते संवत् १९२१ ताई सं क्षेपें पाल्या तेथी अनधन आबरूयें वध्यो । ता रपले सुकर्मना उदयथकी एकएक व्रत अनेक अनेकवार खंडन करचोबे तेना फलतो नरकनिगो द तिर्यंचगतिमां जोगव्या बुटकारो थासे पण हाल नमूणा दाखल अनधननी जेटली हाणी थईबे ने पजस वली अपमान जे पाम्यो तेसर्वे व्रत खंडन ना प्रजावळे । ने माराजीवें जेवा यकृत वली अना चारकस्या खुली रीते विस्तारपणे लखतां हिंम त चालतीनथी कारण जे कोई धर्म द्वेषीने बांच
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वामां आवेतो मारी निंदा करे तेथीतो करतो न थी पण धर्मनी हीलंणा थायें तेथी सर्व प्राचार्यो वली साधुशों वली श्रावको पासेथी माफ मांगंबं आप्रशस्तिमां कोई बधारे घटाके लखाणुं होय ते दमा करजो कोईये रोस राखवो नई॥
॥ अथ श्रीवीरप्रभुनोसनेसो॥ पंथीडासनेसोरे । देजोमारानाथने ॥ वर्धमानजे चोवीसमो जिनरायेजो ॥ राजइहांथीसातऊंचोरे जसबासछे । ध्यातांनरनाबठाहृदयमांहेंजो पंथी डा० ॥१॥ जेदिनथीप्रभुआपइहांथीसिधाविया। तेदिनथी प्रभु ज्ञानखजानोलुटाएजो ॥ शापेजेनर रदकारराख्याहता । तेतोसर्वेशापकेसधायेजो पं थीडा० ॥२॥ केवलनेमनपरजवदोयेनासीगया। ल घुभातातसोहिनाणपणजायेजो ॥ आयोअज्ञान अधारानेरेसाथेलेई । पसस्यो नरतमां चारखंणमां येजो पंथीडा० ॥३॥ आजेप्रभुधर्मवृक्षरोप्योहतो तेतोखंगोखंडकरीवेचायेजो ॥ दिगंबर श्वेतांबर आदिअनेकजे। निजरमतियेंगच्छागच्छेहरायेजो पंथीडा० ॥४॥ एतापंथकताहेमंनत्रपतीथयो । तेणे ककमां एक अवधीपंथ जगायेजो ॥ कहेजिनदास मुकायोपंथदेखीगणा । केणेपंथेपोहचुंशापकनेसो केवायेजो पंथीडा० ॥ ५ ॥ इतिसंपूर्णम् ॥ ॥ अथ वीजोबंदलिख्यते प्राधअदारीबंद ॥ करतसंतोष हरतमनरोस धरताणासिरपरे ॥
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रहेध्याने सुनस्थाने परनिंदामुनिपरहरे ॥ १ ॥ मलिनदीसे देखतहीसे नवीमंनाणंदलहे ॥ चंदवततस्य सौम्यताजस्य जीतइंद्रीजगकहें ॥२॥ दाखेधर्म प्रकासेकर्म केआत्ममर्मअनन्नवी ॥ लहीलदके कुंडीपदके ज्ञानेमगनरहेसवी ॥३॥ नरिंदचंद केनमेदविंद अतुलीरिछतणाधणी ॥ देव्यज्ञानी सुनटमांनी तेहीनक्तिकरेघणी ॥ १ ॥ ख्यातखांती विमलकांती सीतलशशीपरेकही ॥ होयेकठोर सोरवकोर करेअष्टजपरसही॥५॥ एसेवेरी सोहेजेरी अनादिकालअनंतसुं ॥ तोडीकर्मतुं पांमीधर्मतुं ध्यानधरेअरिहंतसुं॥६॥ देवाधिदेवा पर्मसेवा पायकेनहिचकिये ॥ खरेचितसे खरेवितसे नवकोलाहोलीजिये ॥ ७॥ लेईपशाये कर्मनाये बुजावियेसमकितजले॥ नैपुष्टी थईबिष्टी आत्मवेलीजलमले॥ याविधभ्रांती पावेशांती आत्मगुणप्रगटीहोये ॥ जिनकीकांती मस्तमांती मोहगयेसुमतीजोये॥९॥ नरसिंहवांणी दयशांणी ध्याइयेमनस्थिरकरी ॥ दावानल मिथ्यात्वसलशमाविएसमचितकरी १०॥ सकलज्ञानी अदभुतध्यानी जैनयोगीमुनिवरा॥ कुमतिवारकसुमतिधारक सोसुगुरुअभतधरा ११॥ केईकामी केइहरामी केईकुगरू जगभ्रमे ॥ जाससंघे रहेंरंघे सोहीनरत्नवोनवनमे ॥ १२ ॥ कोईक्रोधी कोइविरोधी देवदाणवकूनजे ॥
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जखपरेजीवपाज्यरीवअघघरेफोकटघजे ॥१३॥ नरकगामी अज्ञानपामी अधर्मउपदेसकरे ॥ मस्तमाताप्रज्ञानदाताविषवृक्षपोषणकरे ॥ १४ ॥ कोमलबचने मुग्धजनने नयभ्रमणप्रतिबूजवे ॥ नामअपनपंकहरनस्थापीजगजीवरीजवे ॥ १५॥ मतमेमाता ममतेराता हठहठीलाहठग्रहे ॥ हीनमतियादीनपुनियारत्नबोडीकाचग्रहे ॥ १६ ॥ रचीरंगेमोहनीसंगे सुमतीसंदूरेरहें। जीवशनादोशकृतस्वादीकागज्यूंनीबेरहे ॥ १७॥ हंससंगे रहीरंगे परमहंसपदपाइये॥ सठकेसंगे रहीउमंगे ज्ञानगुणगमाइये॥ १८॥ राखचोडी मढमोडी नयेयोगंधरबके ॥ जटाधारी भुजपसारी हंससमीपेरहेखके॥ १९ ॥ हठनको बुदतावो तरेनतारे ओरकुं॥ ऐसेकुगुरू सगनकरू कहेकोणसिधचोरकुं ॥ २०॥ सोकवारण दुरकगारण सेविएत्रीजिनपती॥ चोखेचित्तेसुकृतवित्तेध्याइयेधरिसनमती ॥२१॥ रहेन्यारा लगेप्यारा अलखरूपअगोचरी॥ चोसठइंद्र मुनिजिनंद्रसेवेधरीचित्तेनावरी॥२२॥ टालीदंन नेरहेअदंग श्रीथूलनद्रमुनीपरे॥ कुमतिवारीसुमतिधारीगयेकेइमुनिशिवघरे ॥ २३ ॥ शिवकुमारे श्रीनवकारे कष्टदूरनिवारियो॥ लियोसंजम धरीउंजम अरणकमुनिन्नवतस्यो २४॥ याविधनरवर जिनकमलधरजन्ममरणनिवारियो॥
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कोमलनावेअघकटावे रत्नत्रयकरधरलिये ॥ २५॥ शिवसिधावेअखयथावेपूर्णब्रह्मकोपदलहे ॥ रजखंखेरी वस्त्रपेरीआत्मभ्रमनिर्मलनहे ॥ २६ ॥ दासकुंप्रभुतारतुंप्रभुकरीकृपादासपे ॥ रचतरंगेगुरुप्रसंगेश्रीजिननामजपाजपे॥ २७॥ शात्मरामीमुनिअकामीसदाजिनशरणेरहे। गेमारकेईअग्यानीजेईपरवसेदुखसदासहे ॥ २८॥ एकत्ववादोरहेप्रमादीतरेनतारेऔरकू॥ कर्माकर्मनधर्माधर्मनजाण्यामर्मनअपरकू ॥ २९॥ उगेशंकूरसम्यगसूरजोग्यजिनवाणीमले॥ तत्वआदेफलफलादेजोतिमयतवजलमले ॥ ३०॥ मतिसुंमांताअन्नयदाताज्ञानगुणभंझारजे ॥ प्राणपरकोआपसरखोइसोकरविचारजे॥३१॥ नीतवचनेवोधेजननेअखयसुखदातारजे ॥ जिनयतीसोईऔरनकोईजन्ममरणनिवारजे ३२॥ नमेसुरिंदौरनरिंदध्याननिसदिनमनधरे ॥ दाखेधर्मप्रकासेकर्म बोलतांमुखअमीफरे ॥ ३३ ॥ सर्वज्ञानीरहेअमानीनिक्षुरिधअनंतबते॥ होकमजासत्रिलोक्यवाससिरधरेकायरबते ॥३४॥ गमनकरताकमलधरताशगलेकेडसरचले ॥ असोजिनवरगरवपरहरबीचरेजिनअतुलबले ३५॥ सोकटालणदुखनिवारणउपगारअर्थफिरे ॥ श्रीतमसोजगधर्मकोनगपरदुखेदुखनिजधरे॥३६॥ रहेनिसंगीआत्मरंगीकोॉनरसुरपरवरे ॥
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संवच्छवरदसपेनवधरौरबत्रीसअधिकधरे ३७ मितीमगसरपूर्णिमावरउजेणीनगरीकयो । जोहारी जिनजिनदासमनआनंदशतिनयोनयो३८
॥ इति शाददारी बंदसंपूर्ण ॥
॥अथ बैराग्य सिज्जाय लिख्यते ॥ मुनेसंसारसेरीवीसरीरे एदेसी ॥ तुने संसारीसुख किमसांनरेरे ढखविसयाग वासनाजो नवमास रह्योतुंमाताओदरेरेलालमलमूत्रअसुचिन्नासमांजो तुने०॥ १ ॥तिहां हवापवननहिसंचरेरेलाल नहीं सेजतलाईपलंगियोरेतिहांलटकीरयोउधेशिरेरेला ल दुखसहतअपारअनंतजो तुने०॥२॥ उंठकोडी सुईतातीकरीरेलाल समकालेचोबेकोईरायजोतेथी अनंतगुणीतिहांकणेरेलाल दुखसहतविचारतवथा यजो तुने० ॥ ३ ॥ हिवेप्रसवेमुफमावडीरेलाल तोऊंकरूंतपजपध्यानजो हिवेसे→सदाजिनराजने रेलाल मुकुंकुगुरूनुंसंगनेअज्ञानजो तुने० ॥ ४ ॥ जारेजन्म्योतारतेभूलीगयोरेलाल उहांउहारयोइम कयेजो तिहांलागीलालचरमवातणीरेलालआयुअं जलीजलसमजायजोतुने०॥५॥ इमबालकवयरम तेगईरेलाल थयोजोवनेमकरध्वजसायजो प्रीतला गीतदारमणीसुखेरेलाल पुत्रपौत्रदेखीहरखायजोतु ने० ॥६॥ थईचितावीवावाजमनीरेलाल धनका रणेधावेनिसदीसजो पुण्यहीणथकोपामेनहीरेलाल चिंतेचोरीकरुंकेलूटुंदेसजो तुने० ॥ ७ ॥ गयोजोव
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नावीजराडाकणीरेलाल धूजे करपगसिरनेसरीर जो घरेकह्योकोईमानेनहोरेलाल पन्योकरेपोकारन हीधीरजो तुने०॥८॥ इमकालशनंतोवहीगयोरे लालश्वचेतमरख अबचेतजो जिनदासकहेजोग एहवोरेलाल मलवोबेमहामुसकेलजो तुने० ॥ ९ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ जिनदास कृत चौवीसी लिख्यते ॥ नहींमांगें रेऋषनविणशण मेरेजिनवचनप्रमाण नारेप्रनुनहींमांनु० । केइकहरिहरब्रह्मासेवे कईसेवे महादेवरे रामरैमानकेइकांनकुंसेवे प्रनुमेरेतोऋष नजिनदेव नारे०॥ १ ॥ केईकामीकेईमानीक्रोधी केईकशज्ञानीदेवरे कामनीशाथेवाणलईकेड मोर लीहाथधरेव नारे० ॥ २ ॥ देखणानहीवामेंचाख णाकहांसे वचनएजगशाख्यानरे शांतमूरतविनशां तीनकरे जैसेगुरुव्याख्यान नारे० ॥ ३ ॥ शापन तरेशोरकुंक्यूंतारे ज्यूंजलमेंपाषाणरे काष्ठशालंबन ज्यूजलमांतिम नवजले ऋषनवखाण नारे०॥४॥ अठदसकोमाकोशीसागरुये बरताव्योजेणेधर्म रे द यापहवजान्योजगमें जीत्याशाठोंयेकर्म नारे०॥ ॥५॥ एकदोयतीनचारपांचषट सातशाठनहीजां णेरे तेकगुरुकुधर्मनमाने तससमकितीकदिनवखां णे नारे० ॥ ६ ॥ विवेकतत्वपांमेजेप्राणी तेलहेप दनिर्वाणरे कूकपटजिनदासकहैंमोहे पापीकिंक रीयेजाण नारे०॥७॥ इतिसंपूर्ण ॥ अथबीजोतवन
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लिख्यते॥शबतोउधास्योचहियेशजितजिन एदेशी अवतोउध्याखोचइयेअजितजिन अबतोउध्यायो चइयेरे । कालअनंतदुखसुखमेखोयो तुम्हविनकि मसिवलैये रे श्ब० ॥ १ ॥ सुहुमबादरजलचर थलचर नमतनमतनवमांहिरे विगलतिरियन्नबकि यानंता अबलह्योआपपशायरे अब०॥२॥ आ पअजितआठेकुंजीत्या छतोतेणेजितायोरे। कि महिकदापिउपायेंकरके आपकनेजंआयोरे प्रव० ॥३॥ लारेफौजमोहरायकीआयके उनीहेमंदिर बाररे । खेदजमादारलेनेकुंआयो अनयकरोएनि वाररे । श्व० ॥ ४ ॥ जितसत्रुरायकुलदिनमणी अन्नयकरो मोहआजरे । कहेजिनदासइह्यांसेंग्रहें गो मोहतोघहीतुमलाजरे अब० ॥ ५ ॥ निरंजन निराकारीसाहेबबोलेनवलतंबोलरे जिनरूपेंध्यातां जिनहोवे ज्युईरी/गीरंगरोलरे शब० ६॥ इतिसं पूर्ण ॥ अथत्रीजोतवनकौनरमेचितकौनरमेमल्ली नाथविना एदेशी॥कौनतारेरे मोहेकौनतारे प्रभुतु मबिनन्नवजलकौनतारे । श्रीसंनवसमन्नावसेवंता नवनवनारेदुखदुरवाररे प्रभु०॥ १॥ दहतगयण जिनमिंदरेशाचवी चौरासीतनमनेदुरटालेरे प्रभु० ॥ २ ॥ तीनपांचवीसदमीने दोयेध्यायेनेदोयेदुर वारे प्रभु० ॥३॥ पांचसाततेरेसुनहिरमिये ती नग्रहेनेतीनदुरवाररे प्रभु० ॥ ४ ॥ जेनरनवविध निसदिनपाले दसजणतेहनादुखगाररे प्रभु०॥५॥
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इणविध छापणासिरधारी प्रापविनानुरकौण तारेरे प्रभु० ॥ ६ ॥ विवेकसागरसूरिपशायेकहेजि नदासदुखपार पारे प्रभु० ॥ ७॥ इति संपूर्ण ॥ थ चोथोतवन ॥ शीखरजीकी जात्रा कौनकरेरी एदेशी हांरेजिनंदनविन कौन हरेरी कौन हरेश्घकौनहरे री हां० अन्यदर्शणी न्हाने धोनेसें जावे समजेरी केइकंदा दिन पुन्यमाने केईजी बघातेंनजेरी हां० ॥१॥ पंचाग्नीपरतापतपतकेई जानु किरणेतपेरी प्र वचनवचनविना किमशोई नयदानकुंजपेरी हां० २ ॥ तीनरूपणात्माकेकहिया तामेदोयेचर्मनलहेरी धुररूपेव्यापितत्र्यन्यदर्शणी तिमरतायेनगहेरी हां ० ॥ ३ ॥ ररोगकी दवा अंजनसे नेनुंतेजघटेरी । भीमसेन्यादिप्रवचन अंजनसे तिमररोगमिटेरी हां ० ॥ ४ ॥ जाचककुंसंपतसमसबदीये अधिककहांसें दिये। जेणेच्या पेंशिवराजलह्योसो सेवककुंक हादि येरी हां० ॥५॥ खेदी अबेदी वेदी अभिनंदनगं घेरी कहेजिनदासविवेकेसेवंता लहियेशिवपुरशे री हारे० ॥ ६ ॥ इतिसंपूर्णम् ॥ थपांचमोतवन हे सुखकारी यासंसारथको जो मुजनेनधरो एदेशी ॥ यादग्री बे ॥ श्रीसाहिबजी निरमलसुमति जिणे सरनित २ध्याइये । नविआतमरूप अनुभव ध्यातमथीप्रभुतापाइये दालिकंनगवेषणइमकरता रहिस्थिरचित्तेप्रेमैंधरता करुणाथीच्यपदवरता श्री० ॥ १ ॥ रत्नत्रयलेवाऊंहुंसियो सायरसमदरश
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णनेरसियो पंचमिगतिवाशी मनवसियो श्री० ॥ २ ॥ रमणीधनईच्छानविजाचुं सामान्यें ललह्योंशाचं हियडामांध्याननही काचुं श्री० ॥ ३ ॥ रटनासंसार नीबेजारी जीवधर्मविनासहुदुखकारी मुनिमारगव हतांजवपारी श्री० ॥ ४ ॥ लहिनरनवसमकितपुष्ट करो जिनपूज्यांविणनोजननकरो हिंसायेंधर्ममचि तधरो होश्री० ॥ ५ ॥ सदगुरुसेवामनधरिये राज्य रिद्धिसुरशिवबरिये जयजयशष्टें अनुसरिये श्री० ॥ ६ कायाने मायाकारमीछे एतोआगेअनंतीविरमीछे आजन्में पूरवपामीछे श्री० ॥ ७ ॥ विवेकविना विद्यानावे विद्याविनधर्मनहीपावे कर्मयविणमो कुनही जावे श्री० ॥ ८ ॥ परमात्म परम सुख पददाता साचागुरुसंघथ कीशाता याविधगुणजिनदासेगाता श्री० ॥ ९ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ अथबठोतवन ॥ श्रागम नी आसातनानधिकरीये एदेश । । पद्मज्ञानवनमैंफि रेमृगमेरो हारेमृगमेरीरे मनमेरो हारेमोह्योदेखीप्र भुमुखचेरो हारेलगी प्रेमअथाह प० ॥ १ ॥ ज्ञानप्रनं तोअपारकेप्रभुजीनो हारेगणधरेपिणपारनलीनो हां० कलिकालते सर्बविलीनो हां० सूत्रपणचालीस पद० ॥ २ ॥ चारसुगडठाणांगसमवांगे हांरे जगवतीज्ञातामनरंगे हां० उवासक अंतगड उबरंगे हां० अणुतरउववाई पद० ॥ ३ ॥ प्रश्न व्याकरणवि पाकंगईगीयार हांरे उववाईरायपसेणीसार हां रे जीवा निगमपन्नवगासार हां० सूरचंद पन्नती प
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६० ॥ ४ ॥ जंबूपन्नत्ती निरयावली जे सूत्र हांरे क प्यवडिपुष्पियाकेसूत्र हां० पुप्फचूलियन्हिदसा सूत्र हां० एमबारे उपांग पद० ॥ ५ ॥ दसवैकालिक उत्तराध्ययनधार हांरे आवश्यकपिंडवि सुहिएचार हां० नंदीसूत्रअनुयोगद्वार हां० सूत्रगणत्रीस प ६० ॥ ६ ॥ बेदनिशीथपेलोबी जोब्यवहार हां० दशा श्रुतस्कंधविचार हां० पंचकल्पजीतकल्पधार हां० महानिशीथ बेद पढ़० ॥ ७ ॥ चउसरणपयन्नोपेलो जगभाग हां० वीजोआउरपञ्चरकाण हारेत्री जलैजे महापचरकाण हां० जततंदुलवियाल पद० ॥८॥ गणिविज्ञयचंदा विजय मनोहार हां० देवेंद्र स्तुतिप यज्ञार हां० मरणसमाधिविचार हां० संथारा एदश पद० ॥ ९ ॥ इमजिनवाणीजिनदासवखाणी हां० गाविवेग खांणी हां० तेपावेपद निरबाणी हां० होये अजय बेद प० ॥ १० ॥ इतिसंपूर्ण ॥ थ सातमोतवन । एकवार बबदेस आवज्योजिणंदजी देश | एकबार जनेंवंदावजो सुपासजीयाटक रोमनखत्राधेनहिजिनना निरमलगात्रेसोहता सु० धेनुपयवतमंसनेलोही सासोश्वासवखाणता सुपा० ॥ १ ॥ आहारनीहारनदेखेकोई धर्मचक्रच लेगगने सु० बायावत्रनी होयेयाका से चामरदीयेवाजुढलने सु०॥ २ ॥ फटिकसिंहासननिर्मलसोहे सहस्रध्वजाच लेआगले सु० देवेरचिततरुतलेप्रनुसोभे दीपता तिप्रजामंडले सु० ॥ ३ ॥ हरखपामी महीधर होवे
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कंटकशधोमुखेहोवता सु० रितुअनुकूलथईनेप्रणमे पुंजेनोमीसंचरता सु०॥४॥ देवसुगंधवरषावरझा वे जानुप्रमाणेपुफपाथरे सु० । अमनोज्ञसब्दादिन होवे उनहिथाएतुमसाथरे सु० ॥५॥ संजलायेयो जनलगेवाणी मागधनाषायेनाषता सु० सर्वनेप्रि यलागेजिनवाणी वरत्नावउपशंतता सुपा०॥६॥ अन्यलिंगीजिननेनमेप्रेमे अन्यतीरथीमौनहोवता सु० । ईतमरकिसतकोसनहोवे चक्रनपरचक्रध्रोत वता सु०॥ ७॥ तिवृष्टिशनावृष्टिनहोवे दुरन्नि कानअनावरे सु० पर्वऋतेउपनीजेव्याधी तेपण दूरपडावरे सु०॥८॥ इमचौतीसतिसयवंतस्वा मी वांदवाहरखपाररे सु० कहजिनदासविवेक पशाये शशापरणनवपाररे । सु० ॥ ९ ॥ इतिसं पूर्ण॥अथशाठमोतबनलिख्यते ॥ धनरसंप्रतिसा चोराजा एदेसी ॥ पेंत्रीसवचनशतिसयेशोहे चं द्रप्रनजिनरायरे त्रिगबेशीत्रीनकालनान्नावप्रका सिकहायरे पेंत्री०॥ १ ॥ बोलबोलेवरलक्षणेसहि त शर्थसहितउंचेस्वरेरे । उपचारोपेतग्रामीणवच ने बोलेजिनगंन्नीरस्वरेरे पें० ॥२॥ बोलतापड बंदाउठइबोलेसक्रवचनरे । रागसहितन्नाषायेन्ना षे विस्तरेअल्पबचनरे पेंत्री० ॥३॥ पूर्वापरवचन नविरोधे जुयाजुयाअर्थप्रकाशरे । उपजेनहिसंदेह सन्नामां टालेसंदेहउल्लाशरे पेंत्री०॥४॥परानवेन हिवादिवचनने मनोहरलागेवाख्यानरे स्थिरचित
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रहेसर्वसनानुं प्रभुबोलेयोग्यवाख्यानरे पेंत्री०॥५॥ अणमलतुंबचननबोले बोलेजीवादिविचाररे पद सापेक्षपणे प्रभुउचरे समजेबालकशाररे पेंत्री० ॥ ६ ॥ मधुरधुनीप्रियलागेशतही मर्मकोईनुनबोलेरे धर्मअर्थसहित प्रभुबोले नहिजग कोई प्रभुतुल्येरे पेंत्री० ॥ ७ ॥ अर्थविस्तारपणेप्रकासे परनिंदानें अन्नावरे । शापवखाणकरेनहिकबहुं दाखेमध्यस्थ नावरे पेंत्री० ॥८॥ सुधलिंगसष्टकारकवचनेचम कारिसन्नासरे शतीउताबरूहरुयेनबोले हरेरोगा दिउदासरे पेंत्री० ॥ ९॥ नर्मरहितबचनप्रभुन्ना
अर्थपदार्थविस्ताररे संक्रमेसुसरूपश्पेक्षा पद पदेजजुयाविचाररे पंत्री० ॥ १० ॥ सत्यकहेश सत्यअनाव धर्मबोलतानसर्मरे । कहेजिनदासवि वेकपशायेंजीतीयेआठोंयेकर्मरे। पात्री० इतीसंपू र्ण ॥ अथनवमोतवन ॥ सेवीएनविसुमतिजिणंदा एदेशी ॥ सेविएसुविधिसुखकंदा कापीयेदुखफंदा प्रभुमुखसोहतपूनिमचंदा सेवंताअनुनवआणंदा । एटेक । कालअनंतनिगोदेगमायो एकेंद्रीमांदुखब ऊपायो । विगलेंद्रीमांविवधवेचायो तोयेदुखनुं अंतनशायो सेवि० ॥१॥तिरियनवेदुखमुंनहिपार कहेकेवलीकरिजीनहजार । विरुहीवातनरकनीधा र सुणतांथिररेहअंगशपार सेवि०॥२॥ नटकतर नरनवपायो शल्पायुबतेतुरतसिधायो दीर्घा युक्षीणअंगीजायो तोयेवृथाजन्मगमायो सेवि०
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॥३॥ रुष्टपुष्टआयुपूरणपायो कर्मयोगेकुलनीचबं धायो । उंचकुलेगुरुयोगनपायो अथवाजननानये नसधायो सेवि० ॥ ४ ॥ पुन्ययोगेपदितपदपायो पणयमृतविषथईप्रणमायो जिमवसुमित्र परवतद खपायो उत्सूत्रेशनतोसंसारबधायो सेवि०॥५॥ एमघातीहुंगरआडाशनेक श्रोलंगीनेकुणपोचेक जिहांसुग्रीवसुतसोभेविशेक कहेजिनदासपसायेवि वेक सेवि० ॥६॥ इतिसंपूर्ण ॥ श्थदसमोतवन धर्मजिणेसरगायोरंगसुं। एदेसी ॥ सीतलजिननवि सेवोरंगसुं परमपदनादातारसुस्वामी एटेक । जेन रनारिसेवेरेभावसुं तेहोयेंनवजलपार सु० ॥ १ दो षपठाररहितजिनवरकैए जेपैौचैंशिवधाम सु० अंत रायपांचेजेणेकेदिया जेदुखदालिद्रठाम सु० ॥२॥ हास्परतीउनमूलीमूलथी भरतीयेनैरेउदाशी सु० भयसातेप्रभुमनधारेनही मनघरेशोगनवासी सु० ॥३॥दगंबाएजिनवरनविकंपे कामेनचितडोलाये सु० । जन्नांतरेमिथ्यात्वनिवाखो ज्ञानेशज्ञानन साये सु० ॥४॥ धुरनिद्राशल्पजिननेहोवे चारनि द्रानरेशनाव सु० । शत्रतपणेनरहेजगदीश्वर राग द्वेषनरेअनाव सु० ॥ ५॥ दोषरहितगुणालयसी तल विवेकसागरनारेनाथ सु० कहेजिनदासकेशि वपुरपंथ- पूरणप्रनुनामसाथ सु०॥६॥इतिसंपूर्ण अथशगीयारमोतवन ॥ आशानुरनकी कहाकीजे एदेशी ॥ हेसाहेब खटद्रव्यरूपलहीजे श्रीश्रेयांस
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नमीजे हेसाहेब० एटेक । अंसअंससबजगकेव्याप क पर्मअंसश्रेअंस परमातमपरमपददाता दीपायो इक्षुवंस हेसा० ॥ १ ॥ धम्माधम्मागासाएत्रण च लणठवणश्वकास । द्रब्यथकीएकेककहीजे चउदे राजविकास हेसा० ॥२॥ कालथकीअनादिशनंतने बरणादिकनहिनावे । कालद्रव्यथीएककहीजे दोये शवधिपेहिपावे हेसा० ॥ ३ ॥शनादिशनंतअव र्णादिकले पुजलद्रव्यश्नंत सादिसांतकालथकीते बरणगंधादिसोहंत हेसा० ॥ ४ ॥ जीवद्रव्यशनं ताकहिये चउदेराजेब्यापे । कालनावधुरत्रीनपरेल हो इमजगदीसशलापै हेसा०॥५॥अगमअगोचर एविचार मोहसेकह्योनजाये । कहेजिनदासविवेके पामीजे सयगुरु केरोपशाये हेसा० ॥६॥ इति संपू
॥श्थबारमोतवन ॥ श्रीशरिहंतपदध्याईये एदे शो ॥ श्रीवासपूज्यजीसेवता पामीयेशिवपुरराजरे केइपाम्याकईपामसे चारनिखेपाकेरेशाजरे श्री०१ सूत्रअनुयोगद्वारमा प्ररूप्यानिखेपाचाररे नामद्रव्य नावस्थापना नवजलतारणहाररे श्री० ॥२॥ ऋ पन्नादिकजिननामसुं कइपाम्यानवनिस्ताररे नाम निखेतेसीफिया इमबोल्यानीतरणताररे श्री. ॥३॥नरतेमरीचीनेवादियो जाण्योहोसेश्रीजिन वीररे द्रव्यनिखेपोतेजाणिये इमन्नाखेत्रीजगधीर रेत्री०॥ ४ ॥ जिनगुणज्ञानादिकस्तवी श्रेणिकप्र मुखश्नेकरे । नवतरसेजिनतारसे एनावनिखेपो
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विसेखरे श्रीवा० ॥ ५ ॥ जिनचैत्पबिंबपजवे बां ध्योरावणेजिननामरे । चौथोनिखेपोस्थापना ना खगोयमगणधामरे श्री०॥६॥चेइयाणं वंदणपाठ आवश्यक प्रसिझरे । निसुणीकुमती उथा सेतेनल हेनबसिद्धरे श्री० ॥७॥ चारनिखेपेगुणग्रहे पामें सुखशनंतरे । करेकृपाजिनदास सूरिविवेकवंतरे श्री० ॥८॥ इतिसंपूर्ण ॥ श्थतेरमोतवनमारेशजि तजिणंदसुंप्रीतझी एदेशी ॥ माराविमलविमलगणे वेलको मीठीलागेहोजिमसेलझी लोकोत्तरद्रब्यना धणी पारगुणनुनलहेकेवली विमल० एटेक०। श्री ठाणांगेचउथेठाणे सत्वचारहोकह्याजगदीसे नाम स्थापनाद्रव्यत्नावए दसठाणेहोदसदीसेसत्व वि०१ जिनपदसम्मतथापना नामरूपहोप्रतीत व्यवहार नावयोगउपमा सत्वपाठप्रसिद्धहो कह्योश्रुतधार वि० २ कुमतीमानेनहीप्रतीमाने निन्हवजिनहोव चनविराधे बूडेबापमाकुगुरूसंगे पुन्यवाटहीजता पापबाधे वि०३ केईकहेजिनबिंबनानामोटा कि मकीजियेहोजिनगुणसमधार वचनशमोकयेमानुबं पणकयोहोरायपसेणीशाख वि०॥४॥ सतहथपण सयधनुषनीकहिसास्वतीहोजिनप्रतीमासाररे सुरी शान्नेजिनचैत्यमांकह्योयुक्तहोपरीगरेविचाररेवि० ५॥जिनपक्षिमाजिनसारखी मानोनिवेहोसत्यनि रधाररे कहेजिनदासविवेकसुसेवंतांहोलहियेनवनो पाररे वि० ॥ ६ ॥ इतिसंपूर्ण । श्थचौदमोतवन
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ज्ञानपदनजियेरेजगतसोहंकरू एदेशीशनंतश्न तगुणेसोनितजिनवर महसेनकुलमणिचंदरे धर्मना यकतीर्थंकरसुखकर पुरुषोत्तममुणिंदरे २० ॥१॥ सम्यग्चर्येमार्गदेखावता शनयदानदाताररे सव जगजंतुनानायकहितकरबोधबोधितशाधाररे अ० ॥२॥ परमज्ञानीपरमात्मप्रतापी करतपरमउपगा ररे धरतधरमहितहरतदुनमने हरतदुकर्मविचाररे अ० ॥३॥ वरतसुसरमकेपमतदूमरमजे जरतभ्रंत मुखधाररे सिरतणधर्मकेखीरतदुगर्वजे ठरतश्ना दिशशाररे २० ॥४॥ फिरतशणाजसलोकअंतल गे मरतनकोइशनाथरे सरतदिनात्मतरतधरतना मटरतत्नरतश्पाथरे॥५॥ वरतशज्ञानकेढरतविवे कसुं पफतपुस्करमेघधररे धरतशनुनवलरतश्ना चार चफतचर्मध्यानधाररे १० ॥६॥ कहेजिन दासएनरद्रव्यशिवनी लहेजिनसेवपशायरे । व्याबाधअखंशनोपम शिवशनंतसुखदायरे १० ॥ ७ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ श्थपनरमोतवन । ईकरां बाआंबलीरे एदेशी ॥ धर्मधर्मजिनताहरोरे कर्मम र्मप्रगटाय. चर्मशर्मसुंध्यावतारे नर्मगर्मविगटायरे जिणंदरायधर्मपर्मदियोमोय एटेक ॥१॥ रमतसम तघरमेसदारे नमतखमतदोयवीस गमतसुमतपंच संजेहरे दमतनमतपदईस । जिणंद०॥२॥ सिव शंकरजगदीसनारे सबकिंकरजगजीव तजभिंकरम दशाठनेर लजखेमंकरनिसदीव जिणंद०॥३॥
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जमाशजसुसजथईरे अजरूपेशजध्याय मदनसदन वासितनैतस वदनकमलविकसाय जिणंद०॥४॥ हरिकलसाहरीयेनरीरे हरिरूपेहरिसेवंत करदोये जिनदाशजोडीनेरे विवेकजिननमंत जिण० ॥५॥ इतिसंपूर्ण॥ अथसोलमोतवन ॥ देखोगतिदेवनीर एदेसी ॥ देखोगुणशांतिनारे शांतिकरणसिरदार एटेक । दवलाग्यावनखंझमारे वनचरजूवेजलजोग पाम्यासोजीवेऊगस्यारे नवदवेशंतीसंयोग देखो० ॥ १ ॥ शनिलजोगेशनवमारे प्रवहणन्नाग्युरेएक फलकपायासोनिस्तस्यारेनवसिंधूशांतीसनेक देखो० ॥ २॥ शतिवृष्टिर्यनगमाहिरे एकमेकहोवंत नगच न्यासोवंचियारे नवविपुलानगशंत देखो० ॥३॥ पंथीजनपंथेनुलारेपोचेनचिंतितठाम उपगारीको यपोंचवरे शिवपंथेशंतीनाम देखो०॥४॥पंथी नचोरेबांध्योरे बोझावेसुरवीर कर्मचोरथीकोफवा रे संतीजिणंदसधीर देखो० ॥ ५॥ सांतीकांतीय नंतीकहीरे नावेहोळक्रोकसुर विवेकसूरिनेटतारे क हेजिनदासहजूर देखो० ॥६॥ इतिसंपूर्ण । अथ सतरमोतवन ॥ श्रीतीरथपदपूजोगुणिजन एदेशी। श्रीकंथुजिनध्यातादये पापहोवेचकचूररे घाती एघातीकरमत्रोडीने लइयेशिवसुखन्नरपूररे श्री० ॥१॥ ॥ कालअनंतोशनंतथयोपण आपरूपनपि बान्योरे पंचेज्ञानशावरणेढांक्या अनंतपपडबां ध्यारे त्री० ॥ २॥ पोलीयासरिखोदरसणावरणी
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३२
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संधेलेजिनदीदाररे मदिराबाकपरेमोहनीते रोकेचा रित्रगुणसाररे श्री० ॥३॥शंतरायनंडारीसमजे रोकेसक्तिच्छनंतर कर्मचारएघातीकहीजे जेजीतेतेम हतर श्री० ॥ ४ ॥ शतमसक्तीशपरंपार जेहवा जिनसिरदाररे तेसविसक्तीएहिहणे ओरनकरिये विचाररे त्री० ॥ ५ ॥एचारजीत्यातोरजीताया वेदनीगोत्रनेनामरे आयएचारअघातीनणीजे तेरो फेनहिशिवधामरे श्री० ॥ ६ ॥ श्रीशरिहंतपूजोक रीखत तेसंतकरेलवयंतरे करुणावंतश्रीजिनमहंत वरसंतज्ञानअनंतरे श्रो०॥७॥ज्ञानपायोजविवेक मायोसुखपायोतेसवायोरे केबलपायोतोसर्वहरायो इमजिनदासेगायारे श्री० ॥८॥ इतिसंपूर्ण। अथ अठारमोतवन॥आवोशावोजसोदानाकत एदेशी व्यावोध्याबोरे नीअरनाथ दयेध्यावोरे गावोगा बोरेजिनगुणग्राम जंतुखमाबोरे ध्यावो०॥१॥श ल्यतीननिवारीनव्य मायानियाणरे मिथ्यात्वएती नप्रकार दयेनत्राणुरे । ध्यावो० ॥ २ ॥ दरशण कषायनेहास्यतीनमोहनीरे समकितमिश्रमिथ्यात्व दरतेकरनीरे ध्यावो० ॥३॥ रुधीरसनेसातागर्व गारोयोगरे विराधनातीनटाली ज्ञानसंयोगरे ध्या वो० ॥ ४ ॥ मनवयकायेंतीनगुप्ती धरियेरंगेरे दे वगरूनेधर्मसखाई करियेउमंगेंरे ध्यावो० ॥५॥ सुनकरकरावशनमोद चित्तवित्तपात्ररे जनमजरा मरणनिवार करियेसनावरे ध्यावो० ॥ ६ ॥ ज्ञान
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( ३३ )
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APPYERSars
mom
मासम्मINARODARA
दर्शणनेचारित्र त्रपदीईपायारे धनधनगोयमगण धार वीरपसायारे ध्यावो०॥ ७॥ उपसमशंबरने विवेक सुरीनासाजरे जिनसेवंताजिनदास लहेशि वराजरे । ध्यावो० ॥८॥ इतिसंपूर्ण ॥ अथनगणी समोतवन ॥जीरेसफलदिवसथयोआजनो एदेशी॥ जीरेमल्लिजिणंदनमीकरी सयगुरुपसाये कस्तंपाठो येकर्मतणं बंधउदयउपाये धन२ त्रीजिनज्ञानने नाख्योकर्मविचार धन२ श्रीजिन० ॥ १ ॥ठेक ॥ जीरेनाणदसणवेदनीमोह नामगोत्रनेआये घेतरा यप्रकृतीसर्वसतअठावनथाये धन० ॥ २ ॥ जीरेप णनवदोयेष्ठावीस एकसेत्रणनेदोय चारपांचशनु क्रमेसर्व जीवसतायेंशोय धन० ॥३॥ जीरेउदय उदीरणावत्रीस नहीबांधेएकसोवीस सत्तावनहेतुये करी बोल्याश्रीजगदीस धन० ॥ ४ ॥ जीरेअभि ग्रहीतशनन्निग्रही अनिनिवेसशंसय अनानोगमि थ्यात्वए पंचनंदकहेय धन० ॥ ५ ॥ जीरे इंद्रीपं चमनएकस्युं विराधेबकाये पणवीकषायेरक्तरही योगपनरसहहोय धन० ॥ ६ ॥ जीरेएसत्तावनहे तये जीवबांधेबेकर्म विवेकधिनाजिनदासने कम फलसेरेधर्म धन० ॥ ७॥ इतिश्रीसंपूर्ण ॥ अथवी समोतवन ॥ कुंअरगंनारा नजरेदेखताजी एदेसी। बारगुण ते शोभ जिनवराजी श्रीमुनिसुव्रतनाणरे नंदनसामंतरायनाजी जननीष्मांगुणखाणरे बारे० ॥१॥ चर्मध्यानदोयसुध्यावतांजी पर्मज्ञानप्रगटाय
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रे नर्मनावादलतेदुरेटलेजी धर्मनानुदियायेरे बारे० ॥ २ ॥ वृदाअसोकजिनशरीरथीजी वारगणविशा लरे पसखोपोहोलोचारगाउमाजी देवेरचितरसाल रे बार० ॥३॥ वरशावेफूलपांचवरणनाजी उच रेदिव्यध्वनिसाररे चोवीसजोडीचामरनीढलेजी क रतानक्तीनवपाररे बार० ॥ ४ ॥ रत्नजमितास नेप्रभुजी बिराजेत्रिन्नुवननाथरे पूठेनामंझलशति जगमगेजी बाजेंटुंदुन्नीदेवसाथरे वार०॥५॥शा तपत्रतेप्रनुशिरपरजी अधरनगेत्रणसोयरे पाठप्रा तिहारयएमकयाजी चारमूलातिशयहोयेरे बार० ॥६॥ शपायाफ्गमातिशयधूरेजी ज्ञानातिशयजो यरे पूजाअतिशयत्रीजोकयोजी बचनातिशयमन मोयरे वार० ॥ ७ ॥ एगुणबारीशरिहंतनाजी शावस्यकेप्रसिरे कहेजिनदासविवेकसूरे सेवंताल हेशिवरीधरे वार० ॥८॥ इतिसंपूर्ण॥ अथवीस मोतवन ॥ जीरेआजदिवसनलऊगियो एदेसी। जी रेधीमतिनमिनाथनी जीरेदमीवमीगतिचार पंच मीगतीसिधपदवख्या जीरेबंडीआठेकर्मअसारहोसा हेब आठउपााशनिनवा प्रभुशनंतसुखनाकंद ए टेक०॥१॥जीरेज्ञानावरणीदायकरी जीरेपाम्याज्ञा नएनंतकेवलदरसणपामीने जीरथयाअनंतदरसश कृवंत होसाहेब० ॥ २ ॥ जीरे वेदनीदयशव्यावा हं जीरेलाधोसुखअपार सर्वशमरसुखपूज्यथी जीरे गुणीयेअनंताअनंतीवार होसा० शा०॥३॥जीरेमो
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हगयेशाव्यदायेक जीरेपंचसम्यकशनाव उपसम खयोमिश्रसास्वादजीरेमिथ्यात्वदग्धकरीयसाव हो सा० ॥ ४ ॥ जीरेशायुकर्मनेदायेकरी जीरेअक्षय स्थितीलहंत चव्यानुनयतीहांनही जीरेथैस्थितीशा दिशनंत होसा० ॥ ५ ॥ जीरेनामकर्मवारिथया जीरेअरूपीअनंतप्रकास योतीमययोतीमल्या जी रेनईवर्णगंधरसफास होसा० ॥ ६ ॥ जीरेशगुरुल ऊगुणसातमुं जीरेगोत्रकर्मआरहित कारमीकस ताररहितहोये जीरेस्वानाविकसक्तारेसहि तोह० ॥ ७॥ जीरेअंतरायेपंचदिने जीरेउपायूवीरिय एनंत बलप्राक्रमनईफोरवे जीरेप्रभुअनंतदमागु णेसंत होसा० ॥ ८ ॥ जीरेशठगुणएसिछना जीरे विवेकविन्यानपामीस जिनदासतसविनवे जीरेजे सूरिशाणाधारेसीस होसा० ॥ ९॥ इतिश्रीसंपूर्ण अथबावीसमोतवन ॥ विमलविमलगुणराजता एदे शी । सकलगुणजिनशिरोमणी अनंतज्ञानभंडारने मजिनवंदिये नेमप्र० शाज्ञालउंगुणगायवा सूरिंग च्छसिणगार नेम० ॥१॥ बत्रीसबनीसगुणेसुरी सो नितधर्माचार ने० सर्ववारसेबनगुणे सूरीश्वरनिर धार नम० ॥ २ ॥ वसराखेइंद्रीपांचने शीलनवेप्र कार ने० क्रोधमानमायालोनने जीतेएसत्रचार ने मप्र० ॥ ३ ॥ पंचमहाबतसुधपाले पाले पंचाचार नेम० नाणदंसणचारित्रतव वीरियएपंचसार नेमप्र नु०॥४॥ ईरियानासेषणादाणे उच्चारेसुमतीएपंच
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AROO
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मनवयकायें तीनुगोपेएनत्रीसगुणसंच नेम० ॥५॥ पडिरूवादिकचउदस नावेनावनाबार नेम० दसवि धयतीधर्मयुतो एबत्रीसगुणधार नेम० तेरेकाठि यानिवारके शपेसिदाचार नेमप्र० ॥६॥ आठ प्रमादतजीकरी विकथासातनिवार नेम० ॥ ७॥ चउविधअनुयोगेवहे एकत्रीसमनोहार नेमप्र० एम उरतेत्रीउत्रीसी प्रवचनवचनविचार ने०॥८॥ सू रीगुणेविवेकस्यं गातांहोये नवपार ननितजिन दास जेगुरूशिवदातार नेम० ॥९॥ अथवीसमो तवन ॥ मोनेसंसारसेरोवीसरी एदेसी ॥ प्रभुपार्श्व दर्शपून्येवरिलाल जसवचनजगतजयकारजो जगपा चमणीप्रसिधरेलाल फरसतालोहहेमनीकारजो प्रभु० ॥१॥ मणीपार्श्वहरेदालीद्रनेरेलाल प्रभुपार्श्व हरेदुखसर्वजो बूटेजन्मजरामरणथकोरेलाल सेवेदन रहितटालीगर्वजो प्रभु० ॥ २ ॥ उबकायपचीसगु णेसोहतारेलाल नणेअंगउपांगए।बीसजो नणेन्न णावेएचोवीसमूरेलाल पालेचरणसत्तरीपचवीसजो प्रन्नु० ॥ ३ ॥ पालेपंचमहाब्रताकरारेलाल यती धर्मदसनेदशशातजो संजम व्यावचदसविधसुरेला ल पालेशीलसुगणनवन्नांतजो प्रनु० ॥ ४ ॥ आरा धेज्ञानादिकत्रिणनेरेलाल करेनिरजरातपन्नेदवारजो करे निग्रहक्रोधादिकचारनंरेलाल इमचरणसत्तरि गुणसारजो प्रनु० ॥ ५॥ नगणीससेत्रीसआषाढ नोरेलाल रूडीपूनिमनेबुधवारजो सूरिविवेकसाग
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RADApan
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रनापशायथीरेलाल जिनदासेगायगुणसारजो प्र० ॥६॥ इतिश्रीसंपूर्ण ॥ अथचौवीसमोतवन ॥ मन किमहीनबाजेहोकथुजिनएदेसी मनडोकिमनलो नायेहोमुनिगुणे नविमनकिमनलोनाये बदमस्थेजि
णे तीरथनाथसोहाये होमु०॥ १ ॥ पं चमहाब्रतरयणीनोजन पालेदयाबकायनिग्रहकरेपं चइंद्रीलोननं दमासिंधुमाजीलाय होमु० ॥ २ ॥ दिनरवृद्धिकरेसुननावनीराखेचौदसउपगरणअधि कनराखे पफिलेहेनितप्रति इममनिपापहरण होम० ॥३॥ समये२सावधानरहेमुनि आतमगुणसंजारे
विवेकविकलप्रमादने आत्मालयथीवारो होमु० ॥६॥सूरवीरसहेवाबावीसने सहेउपसर्गशनेक। म रणउवंगेमननहठावे साधगुणविसेक होमु०॥५॥ सतावीसगुणे मुनिसोहंता नंदनऋषिनवीर व ईमानसाढावारसलगे विचस्यामुनिगुणधीर होमु० ॥ ६ ॥ मुनिगुणगातांहोयेसुखसातापापपलपुला य कहेजिनदासविवेकपसायें गायोजिनसुखदायहो ॥ ७॥ इतिसंपूर्ण ॥
॥ श्थजिनदासकृतवसंतचोवीसीलिख्यते ॥ हरख्योमनमेरे मुरारी । एदेसी। शादिनाथजगतज यकारी टेक, अठदसकोडाकोडीसागरुएजगलाधर्म निवारी दविधचउर्विधधर्मप्रकास्यो मोहमारगश धिकारी तिमिरशज्ञाननिवारी शादिनाथजगतज यकारी ॥१॥ज्युंवडवानलशगनिजलसोसे श्घमो
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३८
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सण उपगारी हंसफरसेपयजलज्यंन्यारो जिनफरसे सिवनारी गइदूरकुमतिविचारी आदिनाथ० ॥२॥ अप्रमादिनारंझपरनितजगतप्रमादहस्वारीवाणीज लेधर्मवदाप्ररूप्यो साखापत्रमनोहारी लहोशन्यग्रंथ विचारी आदिनाथ० ॥ ६ ॥ कहेजिनदासधन्यते प्राणी जेणेबांध्यासुखकारी जबजिनराजविराजेत्रि गतिनवेलाहरखविचारी लहिये किमजीनेपारी
आदिनाथजगतजयकारी ॥ १ ॥ इतिसंपूर्ण ॥१॥ शथवीजीस्तवनलिख्यते जिणंदातोरोमुखनिरखन सेनेनहृदये उलसंत एदेसी॥जिणंदाहीशजितजग तखरो जीत्याअष्टमहंत जेकालअनादिसेदीरनीर परे आत्मप्रदेसेरहंत जिणंदा० ॥ १ ॥ सर्वजगतजे णजीतलीयोहें शणाजासफिरंतसोमोहरायशपके आगे दोणवलीहोवंत जिणंदा० ॥२॥ धीरमेमे रुगंन्नीरमेसिंधूप्रमादीगणसंत निरदयआत्मघाती हणवाने परद्रोहकायरकंत जिणंदा० ॥६॥ कहे जिनदासशजितहोवेगे नावेशजितसेवंतधनधनमा ततातजगकुंजणगुणरूपीनामठवंत जिणंदा०॥४॥ इतिसंपूर्ण ॥२॥अथत्रीजीस्तवनलिख्यते॥जिणंदा तुंहीसंनवजिनवरसमनाविकगुणसंत नामइसोपरि णामतुमारोजगजंतुरकरुणावंत जिणंद०॥१॥निंद कवंदकऔरआधक अरिप्रीतधरंत मोहानरकअ रुरयणपाषाणरागनध्वेषधरंत जिणंदा०॥२॥ यो गीननोगीनिरोगीशलोगी जगसुंन्यारारहंत सबसे
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न्यारासवसेप्यारा लोकोत्तरगतिवंत जिणंदा० ॥ ३ ॥ ॥ पूर्वापरगतितुमहमन्यारी किमतुममिलनहोवंत कहेजिनदासजो कोई मिलेसोतुमसमसंतमहंत जिणं दा० ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ ३ ॥ अथचोथोस्तवनलिख्य ते ॥ बातएबिसरगई कईजोज्ञानीपुरषे ॥ एदेसी ॥
हरनेटनई गई मोहेकुमतिकलेसण घ० टेक अनयनयोप्रजिनंदनभेटत किनकीदरनरई वज्रमय पिंजरेहूंपैठो अखयसीकररई गई मोहें ॥ १ ॥ को णआवेञ्छुष्टापदघरमे केसरी पणनजई अग्नीजकर वाकोणचाहे मणमणीधररई गई० ॥ २ ॥ दूरख डोजुरे मोहरा यमन बाजीसवरकरगई धरी हेमथपठा ईपुत्री कूंसोआईबिलखीथई गई ॥ ३ ॥ चेष्टाकरे जिनसरणेबेठो चेतनसुमतिलई कहेजिनदासकुम तीनिरास निजतातकने गई गई मोहेकुमतिकलेसण ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ ४ ॥ अथपांचमुंस्तवन ॥ सर णोंसुमतीलई सई फल्यासफलमनोरथ सरणुं टेक ॥ सुमतिजिनेस्वर सुमतीजा कुमती निवारणवई ज्युसुरतरूतलेबेठाजुगलनरल हेमनवैवंतजई सई० ॥ १ ॥ कामकुंनचिंतामणिसु रकुं पूरे इच्छामनमई ज्योंदुरनिजायंवरपासेत्योंजिनदुरगतीगई सर० ॥ २ ॥ भूखननाजीची अनुकूलेप्यास सरेनगई अ ग्नीजलजोगेनबजाई शीतउने नगई सई ॥ ३ ॥ कहे जिनदास भाज्ञसिरोमणी समजोसोनरसई जिन सरणोलई शिवनवस्योतो विरथावेटतसथई सर०
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॥३॥इतीसंपूर्ण॥अथबठोस्तवन ॥ बनीवनिताव नछाई कतासमजाई एदेसी ॥ जगजिनयोतजगाई संतामनन्नाई जग० टेक ॥ दिनकरयोतलाखए कबी ससहस्रबत्रीसशधकाई जिनवरयोतत्रिनोवनमांहे चउदेराज्यनरपाई जग० ॥१॥ पंचकल्याणेहोवेउ द्योतसातेनरकेलहाई नरकवासीबापडासुखपवेजा गणेजिनवरप्रगटाई जग० ॥ २ ॥ उर्धशधातिरबा केवासीदेवकोडाकोडीगाई जिनयोतेकल्याणकअव सरजाणी आवेतवधाई जग० ॥ ३ ॥ कहेजिनदा सानंदनयोहुंपनप्रभगुणगाई धनप्राणीजेणेनज रेदेख्या तीरथपतीसुखदाई जगजिनयोतजगाई ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्ण ॥६॥ अथसातमो स्तवन॥धन्य जसपन्यबफाई तीरथपदपाई धन्य० ॥ टेक ॥ कह तकेईधनराज्यरिधिवर देवपणेअधिकाई वासुदेवव लदेव चक्रीनरमानधन्यकमाई धन्य० ॥ १ ॥ एस वीसुखदुखमयेनवीजाणो जिससिरदयेनयनाई स मुद्रमर्मकूपददुरनजाणेा पमनेमस्ताई धन्य० ॥२ काहाखरकाहाघऊका चचूडामणीकोणकहेसरखाई तिमचळतेऔरउतरते श्रीसुपासमनन्नाई धन्य० ॥ ३॥ कहेजिनदाससेवो नवीनावतरणतारणसुखदा ई सुरनरमनिवरध्यान धरतजसपोंचतसिवपुरजा ई धन्य०॥४॥इति संपूर्ण॥७॥अथशष्टमस्तवन ॥ हरीआवतबेकरजोरी एदेसी॥ नवीवंदोजिनकरजो री माहात्माए सोतीरथौरनई नवीवंदो० टेक ।
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शशिलंबनेचंद्रप्रन्नसोहंत शशिवंत कांति लहोरी शशिवत् शीतलछायाज्याकी शशिवत् वदनकयो री महात्मा० ॥ १ ॥ मतिश्रुतिनहितीनुसंयुक्त ज ननीयजनम्योरी अपायापगमादिचारसंजुक्ते जग मगतेजेजयोरी महात्मा० ॥ २ ॥ अष्टप्रातिहारज जसुसोहे अष्टसुदररयोरी अष्टंअनोपमशदायेउपा ये पूजोशष्टेकरजोरी महात्मा० ॥३॥ महसेनता तकुलेदिनकरमणि इदागवंसेनयोरी कहेजिनदास देखतजिनरचना कुमतिकोमानगयोरी महात्मा०॥ ४ ॥ इतिसंपूर्ण ॥८॥ अथनवमोंस्तवन ॥ नविवं दोसुविधिकरजोरी महात्मा सुविधिनाथजगसुवि धिजनविवंदो टक।कुविधिदातारवौतजगदेख्या सुविधिदातानमिल्योरी याचकवत्घरघरहृलटक्यो त्रिपतीसुविधिसुंलयोरी महात्मा०॥१॥ मित्रामि त्रकीजानपनीश्व सुबिधीसुभेदलयोरी तारकवार कप्रबपीछान्यो विरथायेकालगयोरी महात्मा० ॥ २ ॥ आजलगणशिवभेदलयोनई नम्योमदबाकेंब क्योरी शिरीषद मैंनेनपेलगायो नरमतिमिरेन टक्योरी महात्मा०।३। विषधरकुंअघहरकरिजान्यो अबजेदाभेदलयारी कहजिनदाससुविधिविणजग मे नवदुखेदुखसयोरी महात्मा०॥४॥ इतिसंपूर्ण अथदसमुस्त०॥ वामारेनंदनसांजलोस्वामी एदेशी धमाल । नंदारेनंदनसांनमोस्वामी पंचमीगतीना गामीललना वरणसुवरणेसोनतारे लंडनत्रीवबपा
WOMPIRONMEAppLEMANORARIANALANDANEAMPIANRANSataresanendaMANMANANDamwaaKaMSAREEneemussootmawatiantaraadiadrinitalamabatmemanandHomsakalunisiaReaermaAJHAMAL
-- liARPURSEatin
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MiaominuMESH
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ये नंदारे० हारे नंदारे नंदन शीतलजिनसांचोरे ॥ १ ॥ छरशीतेउनदूरथाये कर्मलायेनबुजाये ल लना हारेशीतलनामकी शीतथेरे कर्मदाघज्वरजाये नंदारे० ॥ २ ॥ नामेशीतलगुणेशी तलजिनजी बदन शीतलजिमइंदु ललना वाक्यशीतलमुखे मीजररे विशीपग्रहे जिमबिंदु ललना नंदारे० ॥ ३ ॥ द्रढरा कुलेदिनकरप्रभु वंसइयागमहंता ललना कहेजि नदासजदलपुरेरे उपनामुनिनायकसंत नंदारे हारे नंदारे० ॥४॥ इतिसंपूर्ण ॥ अथग्यारमोस्तवन ॥ श्री श्रेयांसगुणकिणविधगाउं पारनलहे मुनिरायेललना अनंतको तावेनईरे लोकनईोलंगायेगुणवं दाहो हारेगुणवृंदारे वालमधनधनगुणताहरारे ॥ १ वक्रगतेशिवफरसी सातमीये कृणवारमाजीवजाये ललना देवसक्ती येणबारमारे केईकेईठाठवनायेगु
वृंदा ॥२॥ केवली समुदघातेकृणवारमा मथनक रेचउदेराज ललना आहारकच उदपूरवधररे विकूर वे संसयकाज गुणवृंदा० ॥ ३ ॥ कहे जिन दास सर्वसक्ती वं त बेसमरथजगमांये ललनानईसमरथतुमगुणकेबा रे जगनईथयोनईथाये गुणवृंदा० ॥४॥ इतिसंपूर्ण अथवार मोस्तवन ॥ रंगमच्यो जिनद्वार ॥ एदेसी ॥ रं गनोपमसार चालाजिन पेलहोरी रंग० एटेक । उ पसमय उपसमत्र्वत्यागी ग्रहियेद्दायिकमनोहा र चाला॰ ॥ १ ॥ रौद्रदोयत्यागीनेध्यावो ध र्मश्रुकलसुखसार चालो० ॥ २ ॥ कुस्ननीलकापोत
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तेजुहर पनसुकलमनधार चालो० ॥ ३॥ कहेजि नदास श्रीवासपूज्यजिन सेवंतारंगीकार चालो जिनपेलहोरी॥ ४ ॥ इति संपूर्ण ॥ अथ तेरमो स्तवन ॥ रंगज्ञानमनोहार शिवमूलक योरी॥ एटेक ॥ पापमूलशनिमानकहीजे धर्ममूल दयाधार शिवमल० ॥ १ ॥ दयामलजिनशाणव हीजे विनयमूलज्ञानसार शिवमूल० ॥ २॥ सुन्ना सुन्नज्ञानविणनलखीजे लईयेनतपजपसार शिवमू ल० ॥३॥ कहेजिनदासज्ञानबिणप्राणी पामेनवि मलविचार शिवमूल०॥४॥ इतिसंपूर्ण ॥ श्थ चौदमोस्तवन ॥ ज्ञानतोअवमेपायो मोकुंएसोभेद वतायो । एदेसी ॥ मोकुंअनंतनाथमननायो जेणे मतीज्ञानयतायो मोकु० ॥ टेक॥ श्रुताशुतनिश्रित दोयविध मूलनेदकहवायो उत्तरत्रणसेचालीसभेद विशेषेनंदीसूत्रगायो जेणे० ॥ मोकुं० ॥ १ ॥ श्रु तनिश्रितशठावीसभेदे व्यंजना वग्रहादि लहायो बऊशबऊवविधअवविध क्षिप्रशक्षिप्रमिला यो जे०॥ मो० ॥ २ ॥ निश्रितानिमितसदिग्धा संदिग्ध ध्रुवाध्रुवबतायो इणबारगुणेअठावीसगुणं ता त्रणसेबनीसपायो जे० ॥मो० ॥३॥ चारबुछि शश्श्रुतनिश्रितकी इमसंहपेगहहायो कहेजिनदा सजातिस्मरणको नेदइणज्ञानेसमायो जे० मती० ॥४॥ इतिसंपूर्ण ॥ अथपनरमोस्तवन लिख्यते ॥ ज्ञानतोश्रुतमननायो चउदवी सन्नेदेजिनगायो शं
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कडी ॥ अक्षरसन्नी सम्यकसादी वली सपर्यवसितक हहायो, गमिकअंगप्रविष्टएसात प्रतिपक्षेच उदपा योज्ञान० ॥ १ ॥ पर्यायकरपदसंघात प्रतिपत्ति अनुयोगगायो प्रानृतप्रानृतओरमानृत वस्तुपूर्वश्रु तरायो ज्ञा० ॥२॥ एदसभेदसमाससंजुक्ते इमवीस भेदलहहायो श्रीजिनधर्मजिनेस्वरेनाष्णुं विविधरंगे रंगबायो ज्ञा० ॥३॥ कहेजिनदासमहाश्रुतज्ञानी पद प्रधानेसोहायो जोवरायपदावधिमनपर्जव केव लधरपदरायो ज्ञा० चउदबी सजेदेजिनगायो ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्णं ॥ थसोलमोस्तवनलिख्यते ॥ काया माजतकोनगुनारे ॥ एदेसी ॥ नहिनाणभेदेकयां रे कयोरे२ कयोरे२ नइयारे नहिनाण० यात्राक डी ॥ जवप्रत्ययिदेवन रकनेरे गुणप्रत्ययिमनुपतिर्य चनेरे इमदोयेविधकयोप्रवचन मेरे गुणप्रत्यविपट विधवरने जईयारे नहिनाण० ॥ १ ॥ छनुगामीने
नानुगामीरे वृद्धमाननेहीयमानीरे प्रतिपाती प्रतिपातीरे इमपटविधअवधिज्ञानी नईयारे २० ॥ २ ॥ द्रव्यथी जाणेदेखेअनंतारे क्षेत्रथी लोकदेख तारे काल संखनानावजाणंतारे नावथी नाव जाणे अनंता जईयारे नं० ॥ ३ ॥ जिनदासकहे सुनकरणी रे नाणबिणनावेनवतरणीरे शांतिनाथनक्तीदु खहरणीरे जातांशिवपुरकी निश्रेणी नईयारे ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्णं ॥ अथसतरमुंस्तवन लिख्यते ॥ मायामोह अज्ञानहरोरे हरोरे ४ नईयारे, जेणेमायामोह
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दूरकीनीरे जसुप्रआत्माज्ञानसुभीनीरे ऋजुमतीवि पुलमतीपीनीरे अंतेहोयेजोकेवलज्ञानी नइयारे १ ज्ञानपांचभेदेमूलकैयेर उत्तरअनेकभेदलैयेरे सयत्र णत्रेसठविधयेरे सयत्रणपेसठपणगैंये नईयारे ॥ २॥ धनसक्तीकेवलज्ञाननीरे जाणेऊज्ञोहृदयेन्नाण रे जसुसुरपतीसिरधरेआणरे तसुशालंबननिरबाण नईयारे ॥३॥ जिनदासकहेनवीप्राणीरे सेवोत्री जिनवरचितआणीरे कुंथुनाथनजोगणखाणीरे ज सुअभंतसरखीवाणीरे नईयारे ॥ ४ ॥ इतिश्रीसंपू ग ॥ अथश्ठारमुंस्तवनलिख्यते ॥ राजुलसुंदरना र सामसंगखेलतहोरी ॥ एदेशी ॥ सम्यग्दर्शनसार भेदसमसठेकयोरी कयोरी ३ होनाइ सम्यगभेद० याांककी॥सुधिलिंगत्रिणत्रिण लक्षणपंचलहोरी दूषणभूषणपणपणकैये शठप्रत्नावकयोरी होनाई सम्यग नेद० ॥ १ ॥आगारषटमनोहार सद्दहणा चारसदोरी षटजयणाषटनावठाणषट दसविधवि नयकयोरी होनाई सम्याभेद० ॥२॥ सम्यगतरु सुखकंद नाणजलेउदयोरी साखापत्रचारित्रतपत सु फलशिवसुखलहोरी होनाई सम्य० ॥३॥ या व्योवृद्धाअरनाथ गणधरेपुष्टकस्योरी कहेजिनदास तसुतलेबैठा आनंदसंगेलयोरी होनाईसम्यगनेद० ॥ ४ ॥ इतिश्रीसंपूर्ण ॥ अथ उगणीसमो स्तवन लिख्यते ॥ चारित्रगुणमनोहार जेहसप्तभेदेकयोरी कयोरी ३ होनाई चारित्र० जह० याशाकीबे
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प्रथमसामायिकनाम बेदोपस्थापनलहोरी त्रीजोप रिहारविसुद्धिकही जे चोथोसूदनसंपरायोरी जाई चारित्र जेह० ॥ १ ॥ यथाख्यातदेशवृत्ती प्रवृती सातमुंकयोरी इमचारित्रपालोशिवकंद उत्प्तमनरे ग्रयोरी होजाई जेह० ॥ २ ॥ चारित्रेल हेबंबित चा रित्रेलहेजवपारी लब्धिसिद्धि निधानचारीत्रे अंतेव रेशिवनारी होजाई चारित्र जेह० ॥ ३ ॥ चारित्र तरुमनोहार प्ररूपितजिनसुखकारी कहेजिनदास पूजोकरजोरी मल्लिजिणंद उपगारी होनाई चारित्र गुणमनोर जेहसप्रनेदेकयोरी ॥ इतिसंपूर्णं ॥ थ वीसमोस्तवन लिख्यते ॥ नेमनिरंजनध्यावोरे वनमे तपकीनुं देशी || सुमित्रसुतप्रतिबिंबरे देखताचि तीनं एककी ॥ स्यामवरणप्ररिष्टरत्नसम दान अजयजिदीनुं ताससरणुलेइजेतपतपियो तेणेन वनुंअंतकीनुंरे देखता सुमित्र ॥ १ ॥ प्रथमणस णदूजोऊणोदरी विधिसंक्षेपकरलीनुं रसत्यागकाये कलेससलीण इमबाह्यषटविधेकीनुं रे देखता० सु मित्र० ॥ २ ॥ पायबित विनय वेयावच्च सज्काय ध्या ननेकाउत्सर्गे रेनुं इमअभ्यंतरषटविधतपकरता हैं येयपदसरनुं रे देखता० ॥ ३ ॥ क्रोधमानमा यामदत्यागी तपनिरमल जेणेकीनुं कहे जिनदासआ णाजिन सिरधारी सोनलहेपदहीणुरे देखता चितनी नुं सुमित्रसुतप्रतिबिंबरे ॥ देखता० ॥ ४ ॥ इति संपूर्ण ॥ अथ एकबी समुंस्तवन लिख्यते ॥ दानधर्म
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आधारोरे दीएजगउपगारी ॥ टेक ॥ अन्नयसुपा त्रत्रीजोअनकंपा उचितकीर्तिविचारी इमपंचबि धदेहीसुखपामे शिवदोयेऔरसंसारीरे दीए०॥१॥ जन्मजरामरणभयवारे सोजगएनयदातारी धर्म धोरीसुपात्रकुंपोष सोलहेशिवमनोहारी दीए० २ देहीशनुकंपाउचितनेकीर्ति सोनगहेनवपारी जेही दानदातासोहीदानपाता आपहीआपविचारी दी ए०॥३॥ कहेजिनदासनमीजिननमतां होवेमात्मा विकारी लखीनिजरूपयनयकरेनिजकुं सोनरजग हितकारी दीए० ॥ ४ ॥ इतिश्रीसंपूर्ण ॥ अथवा वीसमस्त वनलिख्यते ॥ मेरोबालमवनमेंगयोरे स खीरे मेरो० एदेसी॥ मेरेदिलप्रनुनेमबस्योरे ओ रननामठस्योरे मेरे० टक० ॥ करजोडीकहेराजल पेशील शंकृतकृत्यत्नयोरे अंगीकारकस्योजगनाथे ऊंनूषितआजथयोरे मेरो० ॥ १ ॥ केइउत्तममोहे जूषणकीन मोहेभूषणनमल्योरे शाजसिरमुकटनेम माहेबाजे अबतुमशास्यत्नस्योरे मेरे० ॥ २ ॥ सी लबचनेराजुलचितनी- तताणहरखेनयोरे सील रथेबेसीआईहजूरे चारित्रजिनपेग्रयोरे मेरे० ॥ ३ कहेजिनदासजेणसीलपाल्यो सोनवजलतस्योरे मु धाविराधककेईमुझसरिषा दुखतेणेहाथग्रयोरे। मे रे०॥ इतिश्रीसंपूर्ण ॥अथ तेवीसमं स्तवनलिख्यते मेरेदिलआसचर्यथयोरे अमृतविषनयोरे मेरे० ॥ कहेप्रभुपार्श्वतपपदसेवत केईजीवमोक्षलयोरे वी
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रकहेतपतपतांकेईजीव नवदुखे दुखसयोरे मेरे ० ॥ १ बादबिवादन होवेबचनमे इमकिमभेदकयोरे अ मृतबिषन होवेकबऊ गुरुगमेनेदलयारे मेरे ० ॥ यो गीजंगमकाजीमुल्ला केई ज्ञानेतपतप्योरे कष्टकरी कुगतिउपाई सुगुरुताकुंनमिल्योरे मेरे ० ॥ ३ ॥ कहे जिनदासप्रवचनमेप्रभु तपवारभेदेकयोरे अमृतइण समरनजगमे ज्ञानेविषनयोरे ॥ मेरे० ॥४॥ इ तिश्रीसंपूर्ण ॥ थचौवीसमुंस्तवनलिख्यते ॥ हर ख्योमनमेरेमुरारी हारे यादेशी ॥ हारेआश्चर्यथयोम नजारी हारेभेदनावविचारी केईनरनारीनिगमक रिदेखत प्रसुचिनावमनधारी नखसिखरू पसरूप निरखत मलमूत्रठामबिचारी हुएतिहांकेवलधारी आश्चर्य० ॥ १ ॥ जावसुनावध्यातांजरतादिक, केई ऊष्णानवपारी जावकुना वेव्रह्मदत्तखादे पौच्यानर कदुवारी लयादुख से जेबधारी छाश्रर्य० ॥ २ ॥ प्रस्त्र चंद्रकुंजावेनग्रा राजतणाअधिकारी ध्यातांना वसुनदामनलागो श्रापहियापविचारी ऊग्रापद केवलधारी प्राचर्य० ॥ ३ ॥ कहेजिनदास वीरब चनेकेई जविनेदनावविचारी विणदामेविणकष्टवि लंबविण पौच्या मोदुवारी लयासुखच्छनंतपारी आर्य० ॥ ४ ॥ इति श्रीसंपूर्ण ॥ कलना ॥ गुनह गंजोर अचलज्युंधी रकर्मरिपुत्री र पर्मउपगारी । एचा ल ॥ जबसरूपञ्चखंद अनूप शिवपुरीभूपपर्म उप गारी इकाकुलचंद सिधारथनंद जगतसुख कंद सदाज
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DOORDI
यकारी सुरनरराय सेवेजिनपाय पुण्यवृध्थिायेल हेनवपारी लोकसेन्याराअनुत्नवक्यारा नविमनप्या राजिनदासधारी ॥ १ ॥ कांतिनंतअतिशयवंत शिववधूकंत सदा सुखकारी नवकेन्नेरूधीरमेरूक स्याचउखेरूचउगतिवारी अजर अमर अगमप्रदार अकलअपर जिनअधिकारी शजोगीसंजोगीमानो गीशरोगीअढोगीसोगीजगतहितकारी ॥२॥ संवत् उगणीसेवरसतेतीसेकयोदिलहीसेरत्न अणधा री पंजाबकवासी दिलकेउदासी मुनिगुणनासी दा सकेआधारी मनोहर रंगविजयशणंद शिष्यगुण चंदउजेणीशयारी कजिनदासकबदेशखासजदा पूरेछासविधीपदधारी॥३॥ पुफदंतबीरराजेगुण धीर चैत्यचंचकीरनीमसीथाप्यारी वसंतचौवीसी कहीदिलहीसी जायेअघखीसीपुण्यपुंजधारी गुरू जसवंतसागरगुण संतमुनिमांमहंतममउपगारी ता सपसायेंजिनगुणगाये दिलउलसायसदासुखकारी॥ ४ ॥ इतिश्री वसंत चौवीसी संपर्ण ॥ ॥
॥अथ त्रीस चौवीसीनो पूजा लिख्यते ॥ प्रथम मंगलाचरण ॥ दोहा ॥ असिआउसायेनमुं नमुंगोयमगणधार । नमुनद्रबाइन, सरसतिमा तमलार ॥ १ ॥ चकेश्वरीपदमावती नमुंत्रीखेतर पाल। सर्वदेवसमकितीनमुं जिनसासनरखवाल २ निरविघ्नेपूरणहोजो पूजाविधीरसाल । समयसमये नाववृछी करजोदीनदयाल ॥३॥ श्रीसंघनेसुखसंप
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ती करोअधिष्टायकंदव। कहेजिनदासजोडीकर क रवानोजिनसेव ॥४॥ अथ लघुता धरण दोहा ॥ मुंगीमेरुचळवाचहे गुंगोत्रालापेराग । मूरखचाहे नुजाबले लेऊसेनूरणथाग ॥ १ ॥ रंकचाहेराजाब न करुंऊकमपटखंऊ । पांगलोमनचिंतेइसं करूंमे रुकोळंक ॥ २ ॥ शपसक्ति जाण्यांविना चमरेंग माईलाज । जिनसरणगावीपन्यो तोसीधासर्वका ज ॥ ३॥ बुझिहीणमूरखो हस्वदीर्घकीनान । जिनस्तवनकरवाचालं मनधरीशनिमान ॥४॥ पंफितनरमतखीजजो जाणीमुजमतिहीण। कहेजि नदासजोशीकर करोदामाश्यदीण ॥ ५॥ अथ जिनस्तवना दोहा ॥ श्रीश्रीश्रीजिनवरन, बार गुणगुणवंत । जयजयजयजयरवकरे सुरनरमुनिव रसंत ॥ १ ॥ जगमगजगमगजगमगे शीतरितूज्यु दिणंद । नर्ने वदे घनगरजारकरंत ॥२॥ को माकोनिसुरासुर थैथैकारकरंत । खररखररपुफवर पते असोकवधरंत ॥ ३ ॥ सहस्त्रसहस्त्रगमेघजा सहनजोजनउत्तुंग । स्वेतांबरसमचमरसुर बीजेह रखउबंग ॥ ४ ॥ सहससहसरसनाकरी वरणवयां नकहाय । क्यारचनात्रिगमाकरी देखतहरखनमा य ॥ ५॥ नगपत्यरमैसमुद्र ज्यूंवरषेवरशाद । त्युंजिनपुन्यापुन्य वरपेज्ञानप्रशाद ॥६॥ श्रेष्ट श्रेष्टगणजेजगे तेसबजिनमेंसमाय । सिंहणपयम थारविण भरठोरनरहाय ॥ ७॥ अतीतकाल अनं
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तथया णागेश्नतथाय । सोवरणवकेवली मुखे क्रो नवेंनहाय ॥ ८ ॥ पांचेमहाविदेहमा रहेसदा जिनराय । तातेजिनगनतीनई निरंतरेकहवाय ९ एकनवें इंद्र जुकरे जन्मकल्याण संख । ऋपनाजि तत्र्ंतरजये कोठाकोफ़ीसंख ॥ १ ॥ उत्सर्पिणी वसर्पिणी दसे क्षेत्र मुंजार । वरतेतातेचौविसी दैव योगेजयकार ॥ ११ ॥ जिनचौविसद्वादसचक्री वा सुदेवबलदेव | नवनवनवप्रतिविशुऊ इमत्रेसठक हेव ॥ १२ ॥ अधिकन बाहावेनइ दैवठाठश्रीकार कर्ताथयोनथासेनइ एजिनवचनविचार ॥ १३ ॥ त्रिणकालेबेउर्तेरजिन इमदसत्रप्रमाण । सात से वीसतीरथपती तीर्थंकरजगजाण ॥ १४ ॥ स्वस्तीप रेसिंघासण स्थापीजिनचौबीस । चौवीसजिणकल साजरी करेस्तवनजगीस ॥ १५ ॥ पदेपदेष्यनि ककरे वारंवार मत्रीस । इमपूजाकरतांथकां जिन दासलहे पदईस ॥ १६ ॥
ኪ
थ पहिलीपूजा ॥ दोहा ॥ एकत्व पणुंनितध्याइये नैजगकोइसगाइ । अनंतानंतज्ञयेसगा रिपुमितको नाइ ॥ १ ॥ जंबूदी वेजरतक्षेत्र अतीतकालेजिन राय । प्रथमाजिक्षेतासकरू इस्तवता दुखजाय २ ॥ रागभैरव ॥ मुजरासाहेब मुजरासाहेब मुजरासाहेब मेरारे एदेसी ॥ अमृतरसकी प्यास होयतो उठोप्रीत मप्यारेरे एटेक ॥ अमृतजिनिंदवारेलुटाये सुगरा नरसवधावेरे प्रापप्रमादेक्योंपरहोजी फेरनअव
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सरआवेरे अमृत० ॥१॥ अघघररजनीवीतगईअ ब प्रगट्योपुन्यदिणंदरे । सुगणनरजिनमंदिरआवै सेवेत्रीजिनचंदरे अमृत० ॥ २ ॥ अरअमृतमिले दामदीयेसे जिनअमृतनमिलायेरे । जिनवाणीदर सणअमृतको स्वादेविरलाकोईपायेरे अम० ॥३॥ जिनअमृतेमिटेत्रिणरोग स्वसुगंधप्रगटायेरे। निप जेअजरअमरपदनिश्चे अमरफलमानुखायेरे शमृ० ४॥ केवलनाणीश्रीनिरवाणी सागरमहायसखाणी रे। श्रीविमलश्रीसर्वानुनति श्रीधरदत्तश्रीवाणीरे शमत० ॥ ५॥ दामोदरसुतेजास्वामी मुनिसुव्रत जिणिंदारे । श्रीसुमति शिवगतिशस्त्याग श्रीने मीस्वरजिनचंदारे २० ॥६॥ अनलजसोधरत्री कृतार्थ जिनेश्वरसुन्नमतिधाररे शिवंकरस्यंदननीसं प्रती जिनदासकेशाधाररे २०॥७॥इतिसंपूर्णा ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपादतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ शथ बीजी पूजा ॥ दोहा ॥ शंमारुंदोयत्यागिने ध्यावोसुगुरुसुदेव। नरकतिर्यंचनिवारवा करियेत्री जिनसेव ॥ १ ॥ जंबूदीवेनरतैरवते वर्तमानजिन चंद । सुगंधजलेशनिक्षेकरूं कापबाकर्मप्रबंद २ ॥ रागनैरव ॥ वस्तुगतेवस्तुनुलदाण गुरुगमविननैपा वेरे एदेशी ॥ बरबेरकहाकैयेप्रीतम कनकबीजमा नूखायेरे बरबेर० एटेक ॥ दसदृष्टांतेदोयलोनरत्न व विरथाकहागमायेरे कागउकावणरत्न खोयके पी
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बेहोसोपवतारे बेर० ॥ १ ॥ देखदेख जिनसनमु खबेठे नयदाननिगहायेरे । कहानटकेतुंअरठौर ठोर ज्युंमृगतृपतीन पायेरे बेर० ॥ २ ॥ केइकामी केइमानी क्रोधी तारकनामधरायेरे । निरंजननिरा कारीविणसबे लोनेजगनरमायेरे बेर० ॥ ३ ॥ सु मतासुरसुणसमज्यो चेतन बोलमीठामननायेरे । कु कमैकविवरोनो तातेजिनसोहायेरे बेर० ४ ॥ हरखधरीजिनपूजन सजथयो सुकृतबित्तलहा येरे । श्रीफल के सर चंदनलेइ श्री जिनमंदिरे जायेरे बेर० ॥ ५ ॥ रिषनाजितसंनवग्जिनंदन सुमति पद्मपदध्यायेरे | श्रीसुपासचंद्र सुविधिजिन शीत लजिन सुखदायरे बेर० ॥ ६ ॥ श्री श्रेयांसवासुपूज्य जिन विमलनंतगुणरायेरे । धर्मशांतिकुंथुम ल्लिजिन मुनिसुव्रतमनजायेरे बेर० ॥ ७ ॥ नमिने मपार्श्ववर्द्धमानजी तीरथपतिशिवपायेरे । कहे जि नदास निकरतां त्मानिरमलथायेरे बेर० ८ ॥ इति द्वितीय पूजा समाप्ता ॥ जलचंदन पुष्पधूपनै रथदीपाकृतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥
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अथ त्रीजी पूजा ॥ दोहा ॥ तीनतजीतीनग्रहो तीनल हो सुखकार । तीनूंजय सेंट के तीनूमयजय कार ॥ १ ॥ हरिकलसाहरिएनरी हरिवत्सेव उवं ग । पद्मनाभादिकजिनवर सेवताशिवरंग ॥ २ ॥ रागभैरव ॥ जागरेवटा उपवनैजोरबेरा ॥ एदेखी ॥
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आजरेअनोपम नयानावमेरा आजरे० ॥ एटेक ॥ कुमतिनारीगईदूर सुमतिशइमुजहजूर । नयोप्रे मप्यारे करूंजिनवंदनफेरा शजरे० ॥१॥ श्घ सदनप्राणमूख जिनमंदिरसनमूख । जग्योथंकुर समकित प्रगट्यापुन्यमेरा आ० ॥ २ ॥ च्यारतनुं चारत्नजुं चारसाथसंगसगँ। पांचप्रेमेध्याइटालु चा रगतीफेरा आ० ॥३॥ पद्मनानसूरदेव करसुरा सुरसेव । सुपासस्वयंप्रन सर्वानुनूतिमेरा आ० ॥ १॥ देवउदयनेपेढाल पोहिलसतकीर्तिनाल । सु व्रतनेअमम निकषायजिनचेरा आ० ॥ ५॥ नि ष्पलाकनिर्मम चित्रगुप्तिचितसम । समाधिसंवर यसोधरगुनगेहरा आ० ॥६॥ विजयमल्लिदेवअनं त नद्रकीर्तिपूजोखंत । कहेजिनदासए चौबीसजि नसहेरा शाजरे० ॥ ७॥ समाप्ता ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ नपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥
श्थ चौथीपूजा ॥ दोहा॥ चारेघातीनिवारवा तजोकुमित्रएचार । चारनिखेपाचितधरी सेवोज गदाधार ॥ १ ॥ धातकीखंपरवें नरतक्षेत्ररसाल श्तीतकालेजेथया चौविसदीनदयाल ॥ २ ॥ राग वेलाउल ॥विरथाजन्मगमायोमूरख विरथाजन्म० एदेसीविरथागमनकस्योतेचेतन विरथा० टेक ॥ तारकवारकनहीपिबान्यो सयगरुसंगनपायो कुगु रुसंघेशज्ञानेचेतन विरथातनूतेंतपायो विरथा०॥
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१ ॥ गंगादिकसबासठतीरथ वारंवारतंन्हायो कासीप्रागरामेस्वरनेट्यो परमारथनइपायो विर० २ ॥ ठामठामन्नटक्योविणसमजे जलशघरकंदखा यो शांतिमूरतविणशांतिकरवा नईसमर्थश्वजा न्यो विर० ॥ ३ ॥ बलिहारीसुगुरुसंगतकी तरण तारणनेटायो । दरसणनेनुत्रिपतहोवतनइ पूजा कोहरखसवायो विर० ॥ ४ ॥ रत्नप्रनयमितसं नव शकलंकपदपायो। चंद्रस्वामीश्रीश्रीसुनकर सत्वनाथमननायो विर० ॥ ५॥ सुंदरनाथपुरंदर स्वामी देवदत्तजगगायो। वासवदतत्रेयांसबिश्व रूप तपस्तेजसवायो विर० ॥ ६ ॥ श्रीप्रतिबोध सिधार्थनाथ संजमशमलकहायो । देवेंद्रनाथप्रय रविश्वसेन मेघनंदशिवपायो विर० ॥७॥चरमजि नसर्वज्ञवखाणं सुरनरमुनिवरध्यायो कहेजिनदास हरखनमावत जिनगुणेश्दयेनरायो विर० ॥ ८ ॥ इति चौथीपूजा समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥
अथ पांचमीपूजा ॥ दोहा ॥ पंचमिपूजाकारणे पंचपरमेष्टीध्याय । विषयप्रमादपंचेतजी पंचमसुं चितलाय ॥ १ ॥ धातकीपूर्वनरतमें वर्तमानजग दोस । द्रव्यनावसुंपूजतां पूगेमनसुजगीस ॥ २ ॥ रागवेलाउल ॥ जगसुपनेकीमाया यानर जग० एदेसी ॥ श्वबादलको घटामेचेतन कुगुरुसंगेबिटा
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योरे श्व० ॥ एटेक ॥ केसरीसुतज्युरहतबागसंग शापसरूपनजान्योरे । त्युंतूरहतशनादिकुगुरुसंग शजतनायोरे अघ०॥१॥ हीरोशमूलअघ फकुघाटे वेचतमूलनायोरे जबजवेरीघठारीमठा यो तवशमूल्यकहायोरे अघ० ॥ २ ॥ घोरघटान जवादलबाया ज्युंजगचक्षुबिपायोरे त्युंतूशसुनक मैसेचेतन तेजहीणरहायोरे घ० ॥१॥ कोडकप न्यकलोलप्रयोगे सुगुरुसंगतुमपायोरे । जेणेकरुणा करीतोपेचेतन तीर्थपतीढरसायोरे घ० ॥ ४ ॥ श्रीजुगादिसिधांतमहेस परमारथमननायोरे समुध रत्नधरअरउद्योत शार्जवनयकहायोरे घ०॥ ५॥ शप्रकंपपदनपदनानंद प्रियंकरसुकृतपायोरे । नद्रेस्वरमुनिचंदपंचमुष्टि त्रिमुष्टिकगुणगायोरे श घ० ॥ ६ ॥ गांगिकप्रवणवत्रीसबीग ब्रौद्रइंद्रद तरायोरे। श्रोजिनपतीजिनदासनता समकितसु छउपायोरे श्घबादलकी ॥७॥ पंचमीपूजा समा० जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैर्निवद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ शथ बठीपूजा ॥ दोहा ॥ षष्ठमीलस्याधारके षष्ठ मीपज्यकरत । षष्टद्रव्यविचारसे मनिचितस्थिरर हंत ॥ १ ॥ पूर्वन्नरतधातकीमे शनागतेचौवीस । शनिषेककरतांनवी पाम्योपदवरईस ॥ २ ॥ राग वेलाउल ॥ अकलकलाजगजीवनतोरी एदेसी ॥ शगमशगोचरघातीजिनतारी राउनरंकयोगीनो
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गीनइ नइनरनपंसकनइनारी शम० एटेक ॥ रूपी कर्जतोरूपनदेखरे अरूपीक्योंहोवेजगउपगारी त रणतारणकहहाबोजगगुरु अकलंकीबीतरागनयारी अग० ॥१॥ आगमवचनदयेविचारतो ज्ञान जमयजोतीतारी । अबेदीअवेदीअनंगी बलअतुल आकारविनारी अम० ॥२॥ लौकिकापहोलो कोत्तर पूर्वापरगतिन्यारीन्यारी रागीवेरागीमिल नक्योंहोवे लोहअर्जुनन्यायविचारी अग० ॥३॥ सिधसम्यगजिनेंद्रसंप्रति सर्वस्वामी मुनिवाणीप्या री विसिष्टअपरब्रह्मशांतिजि गंदा पर्वतकार्मुकध्या नवस्यारी अग० ॥४॥ कल्पसंवरस्वस्थानाथ श नंदरविचंद्रप्रनवनवपारी सामिसुकर्णसुकर्माप्रमम पार्वतसास्वतजगजयकारी अग० ॥ ५ ॥ कहजि नदासवैतजिनसेवत कल्प वृदज्योंजुगलनरनारी त्यंसुगणजिननक्तिकरनसे लेवै व्रतवंतवरेशिवना री अग० ॥ ६ ॥ इति संपूर्णा ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाक्षतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ सातमी पूजा ॥ दोहा ॥ सातव्यसननिवारीये सातेनयेविचार सातनरकदुखटालवा सातमीपूजा सार ॥ १ ॥धातकीपश्चिमत्नरतमे अतीतकालयेह जगन्नास्करतिर्थकरू नयेज्ञानगुणगेह ॥ २ ॥ राग मालकोसनी नारीतोकी ॥ लघुतामेरेमनमानी ए देशी ॥ प्रनुतागुणइच्छकग्राणी रहेजिनचरणेचित
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आणी एटेक ॥ ज्योंथेणिककेमनवीर ज्योंगौतमग णगंन्नीर । ज्योंविघ्नुनेबलदेव ज्योसोलसाचितजि नसेव प्रनुता० ॥१॥ ज्योसीताकेमनराम ज्योंका मीकेमनकाम । ज्योंराधाकेमनसाम ज्योलोनीकेम नदाम प्रनुता० ॥ २ ॥ खेलेनटविविधप्रकारे रहे सुरतीजीवतलारे । गऊबबरुयेप्रीतधरंत त्यंजिन चरणेगुणीसंत प्रनुता० ॥३॥ श्रीरिषजनाथप्रिय मित्र सातनुसुमृदुजगमित्र । श्रीअतीतजीब्यक्त कलासतरिजिननक्त प्रनता० ॥ ४ ॥ सर्वजिनप्रय धस्वामी प्रवृसोधर्मशिवपामी श्रीतमोदीपवजसे न बुधिनाथप्रबंधजगनेन प्रनुता० ॥५॥ शजित प्रमुखजिननाण पल्योपमश्केपमजाण । श्रीनिष्ट तश्रीमृगनान देवेंद्रसेवितशिवलान प्रन्नुता०६॥ श्रीप्रियतशिवनाथ एचौवीसेशिवसाथ जिनदा सपूजोनविन्नावे धरीसुमतिगुणगावे प्रन्नुता० ७॥ इति संपूर्णा ॥ ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाक्षतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ आठमी पूजा ॥ दोहा ॥ अष्टकर्मदलजीतवा तजियेअष्टशसार । अष्टगुणउपार्जवा अष्टमिपूजा सार ॥ १ ॥ पश्चिमन्नरतधातकी वर्तमानमनोहा र । अनिदोककरतांथका पामोनवजलपार ॥२॥ रागतोकी ॥ कथणीकथेसबकोइ एदेसी ॥ कथणी जिननामकीसारी कथतालइनवपारी ॥ एटेक ॥
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ज्युंफलदिये आवपाषाण ज्युंगंधचंदनकपाण ज्युंजि नकथणीगुणखाण इस्तवता होयेनिरवाण कथ० ॥ १ ॥ अर्णवेप्रवहणनागो जीवेज्युंफलककरलागो त्युं जवसमुद्रेपुन्यवान जिननामफलकगुणखान कथ० ॥ २ ॥ दवलागोवनमकार तिहांउदकसरणुंसुखका र । अघदवनववनमकार जिननामसरणुंचितधार कथ० ॥ ३ ॥ पंथीनरचोरेफसायो बोळावेकोइसुर छायो । त्योंकर्मचोरसुमोये श्रीजिनविनभरनको ये कध० ॥ ४ ॥ विश्वंदुकपिलजिननाम वृषनप्रि यतेस्वाम । वर्षमप्रसमचारित्र प्रनामंजुकेसी मित्र कथ० ॥ ५ ॥ पीतवाससुरारिपुस्वामी दयानाथस हसनुजगामी । जिन सिंहश्रीरेषकबाऊ पलियो गयोग्यगुणगाऊं कथ० ॥ ६ ॥ कामरिपुरण्यबाऊ नेमिक नाम जगनाउ श्रीगर्भज्ञानी अजित जिनदास नयामनशीत कथ० ॥ ७ ॥ इति संपूर्णा ॥ ॥ जलचंदन पुष्पधूपनै रथदीपाकृतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ नवमी पूजा ॥ दोहा ॥ चिंतामणिनवध्याइये पहिरोनवसिणगार | नवसेतनमनलाइये परहरनवे असार ॥ १ ॥ धातकी पश्चिमत्नरतमें अनागते चौवी स । रत्नकेसादेप्रनु प्रणमंतापदा ॥ २ ॥ रा गतोळी ॥ देसी उपरली वै ॥ कथणीविकथा दुखका री कथितागयेन रकमकारी कथणी एटेक ॥ जिन वचनउथापकप्राणी दुरगततेतेगये नाणी देखोप
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रवतवसुराये संसारअनंतोउपाये कथणी०॥ १ ॥ तिर्थंकरगोत्रउन्नमउपायो रावण जिननक्तकहायो श्रेणिकचरणेचितलायो संसारतणुंशंतपायो क०॥ २॥ असीमस्तककरेरहाये खरफितरुधिरेकाये उ पशमसंबरविवेक पदपाइलह्योपदबेक कथ०३॥ निजन्नगनीनोगीराये चंद्रशिखरशिवपाये कामी क्रोधीपदध्य ये केइनवदुखसेबुटाये कथ० ॥ ४ ॥ श्रीरत्नकेसजगस्वामी श्रीचक्रहस्तशिवगामी साकृ तपरमेस्वरसुमति मुशर्तिकनीकेसप्रसस्ति कथ०॥ ५॥ निराहारशमूर्तिध्वजनाथ स्वेतांगश्रीचारुना थ देवनावयाधिकस्वामी पुष्फ नर नादशिवरामी कथ० ॥ ६ ॥ प्रतिकृतमेपेंद्रनाथ तपोनिघकाच लनाथ भरण्यदशाननसंतिक जिनदासकहेप्रणमि क कथ० ॥ ७॥ इति संपूर्णा ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाक्षतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ नपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ दसमी पूजा ॥ दोहा ॥ दसआसातनटालिये मुख्यचौरासीमांहि । दसपालोदसशदरी धनधन दसजगमांहि ॥ १ ॥ पुस्करार्धपूर्वनरत अतीतका लेविचार।मदगंतादिकजिनवरू चौवीसेमनुहार ॥ रागमालकोसगौली ॥ आजमेंप्रनुदरिसणपायो ए देसी ॥ अजमोयेरंगचढ्योहेसवायो सुरनरमुनिज नमंदरशाये देखतहरखनमायो शजमोये० टेक ॥ केइनाचेकेइस्वरमालापे केइजिनध्यानलगायो ध
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पमपधपमपकेइबजावे तुणंणंघणणंसुरपायो आज मोये०॥ १ ॥ ठमठमठमठमवाजेघुघुरिया विवि धधूपेनन्नबायो सोदेखीमेरोचित्तजुउलस्यो शनि दोकरवामनधायो शा० ॥ २ ॥ ज्योंदेखीबसुदेवइ स्त्रीसब निरमलजपेंचितलायो ज्योंमदमस्तनयेइन्न नाचे त्योंजिनगुणेलंउमायो आज० ॥३॥ मदग तमूर्तिनिरागस्वामी प्रलंबितमननायो प्रथवीपति चारित्रनिधिजिन अपराजितगुणगायो शाज० ॥ ४॥ सुबोधकबधेशवेतालिक त्रिमुष्टिकन्नलेजायो मनिबोधतिर्थस्वामीधर्मधिक श्रीवमेशशिवपायो शा० ॥ ५॥ ममादिकप्रनुनाथशनादि सर्वतिर्थ पदरायो निरुपमकुमरिकवीहाराग्र श्रीधणेशरमु जनायो शा० ॥६॥ श्रीविकाशजिणेस्वरसाहेब तरणतारणकहायो कहेजिनदास जोशी कर सेवत मिथ्यातिमिरहरायो शा०॥७॥ इति संपूर्णा ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपादतकैर्निवेद्यवस्वैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ शथ इग्यारमी पूजा ॥दोहा ॥ शंगइग्यारेगोयम बारमूंदृष्टिवाद । जिनमुखेत्रिपदेवस्या चाख्योश मृतस्वाद ॥ १ ॥ पुकरवरदीपेनलो पूर्वनरतकहा ये। वर्तमानचौवीजिन पूजतापापपाये ॥२॥ रागगौमी ॥ देसी उपरलीपूजानी बे तेज॥आज नलपुण्यत्नानुप्रगटायो शीतल चिन्तनयोप्रनुपूजत कर्मसरूपपिबान्यो आज० एटेक ॥ नाणदंसणवेद
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नीमोहनाम गोत्रआयुअंतरायो सयअडवनउत्तर नेदकैयेतातेशात्मगेरायो आ०॥१॥पणनवदोये अठाविसऔर एकसेमणगहायो दोयेचारपांचअनु क्रमे जीवसतायेसोहायो प्रा०॥ २ ॥ बंधेसयबी सउदयवावीस उदीरणासंमकहायी स्थितियांकीको काकोडीसागरकी वीससूसंतेरपायो आ० ॥ ३ ॥ क्याविकरालसरूपकयोप्रन्नु सुणीथरथरकंपायो या सेबुटावणजिनविनऔर नैइसमर्थदेखायो आ० ॥ ४ ॥ श्रीजगन्नाथप्रनाशसरस्वामीनरतेशमोयेन्ना यो घर्माननविख्यातजिणंदा अवशानकशिवपायो प्रा० ॥५॥ प्रबोधकतपोनाथनीपाठक त्रिगरशो गनवाशा स्वामीसुकर्मात्रीकांतिक अमलेदजग खासा शा० ॥ ६ ॥ ध्वजाशिकप्रसादविपरीत मृ गांकजनसोहायो कफाटिकगजेंद्रनीध्यानज जिन दासकेमननायो आ० ॥७॥ इति संपूर्णा ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपादातकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरधमुदायजामहे॥ अथ बारमीपूजा ॥ दोहा ॥ नायनद्वादज्ञानाविये व्रतऊचरीयेबार । बारविधेतपआदरे सोपामेनव पार॥१॥ पुतरार्द्धपूर्वनरत अनागतेचौवीस वतं सध्वजादिकजिनवर नावेनमावंशीस ॥२॥ ज्ञानप दनजीयेरे जगतसोहकरू एदेसी ॥ जिनपदनजीयेरे जिनसमसुखकरू बारगुणेगुणवंतरे चौत्रिसशतिस येपेत्रिसवांणीये सोनेत्रीजिनसंतरे जिन०॥१॥
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जेणेशटवीयेरे नइकोइकेसरी करेसबसोरबकोर ति मइणक्षेत्रे रेजिनवरनइबता वाध्योमिथ्यात्वनुजोर रे जि०॥२॥ नृपविणनघररे समुद्रसुनुवाणस्वेच्छा ये जिमचालंतरेविणअंकुसेरे गजजिमगाजतो कुसं गेनशीलरहंतरे जि० ॥३॥ धेयविणध्यानरे ध्यान विनाध्यातावस्त्रविरुणाजिमनारीरे धनमनिरायेरे ध्यानसुकलध्याये धेयजिनसरणुधारीरे जि०॥४॥ वतंशध्वजत्रिमातुल शघटितत्रिखंन श्चेलप्रवादि कनाथरे नूमानंदत्रिनयनसिधातजी प्रथगनीन्नद्रेग नाथरे जिन०॥ ५ ॥ गोस्वामीप्रवाशिकमंझलौक नाथ महाबसुउदयंतुसंतरे दर्दरीकनाथरे प्रबोध श्रीशनयांक प्रमोददफारिशिवकंतरे जि० ॥६॥ व्रतस्वामीनिधानरे त्रिकर्मक स्वामी इमचौवीस मदहंतरे कहेजिनदासरे जिनदरसणविण नमियो इंनवअनंतर जि०॥ ७ ॥ इति समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैर्निवद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ तेरमीपूजा ॥ दोहा ॥ हालसमोहक्रोधमान अवज्ञापणप्रमाद । नयांतरायअज्ञानए आपकविष यअगाध ॥ १ ॥ तजीतेरेकाठिा तेरमीपूजकरंत पुष्करपश्चिमन्नरतमे अतीतजिनपूजंत ॥२॥ देसी लावणीकी ॥ तुमतजीअज्ञाननेज्ञानग्रहोनवी ज्ञाने सवीसुखपायाहै ॥ एदेसी ॥ सुणसुणचेतनअरजह मारी श्वसरपायक्यूंचूकतहै कागउडावणरत्नखोय
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के ज्यूंबिप्रमनेपबतावतहै ज्यूंउनमंतग्रहीगोसाले अंतसमयेपछतायाहै अतिलोभेज्यूसभूमचक्री नर कतणादुखदेख्याहै सु० ॥२॥ पूर्वपुण्यकल्लोलप्रयो गे श्रीजिनदर्शगपायाहै कामकुंनतुजकरचढायन वि सुरनरमुनिवरध्यायाहै सु०॥३॥ पनचंद्ररक्तां गअयोगिक सर्वार्थरिषिनायाहै येहरिनद्रनीगणा धिपजिन पारत्रिकब्रह्मपायाहै सु० ॥ ४ ॥ मुनिंद्र दीपकराजरिषीस्वर विशाषअचितितगायाहै रवि स्वामीसोमदजयमोक्ष अग्निन्नानुसेसवायाहै सु० ५॥ धनुकांगत्रीरोमाचितजिन मुक्तिनाथकहाया है प्रसिश्रीजिनेसजणंके जिनदासेगुणगायाहै सु णसुणचेतन०॥ ६ ॥ इति समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाकृतकैर्निवेद्यवस्त्रैः॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ चौदमीपूजा ॥ दोहा ॥ चौदनियमनितचित धरो चौदेभेदविचार । चौटमेचढवाकारणे चौदमि पूजासार ॥ १ ॥ धनधनचौदेपर्वधर नद्रवाहुगुण धाम । अनोपमज्ञानप्रकासियो उपगारीअनिराम २॥रागदीपक कानको जिनकीरे पूजा अमृतवेली एदेशी ॥ ध्याताकूरेप्रभुबंबितदेवे सीचेनावन्नवी प्राणी श्रीजिननामकल्पवृहप्राणी ॥१॥ जाहाजा हीपरतहेंयाकी होवतनिरविषनोमी फरसकीयेहो येशीतलता सुगंधेवरेशिवनोमीत्री० ॥२॥ भक्ति कियेअमरपदपामे ज्ञानअनंतोउपावरे श्रीपदापद
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श्रीप्रज्ञावक योगेश्वरबलगावेरे श्री० ॥ ३ ॥ सुष मांगवलातीनमृगांक कलंबकब्रह्मनाथरे निषेधक पापहरसुस्वामी मुक्तिचंद्र शिवसाथरे श्री० ॥४॥ अप्राशिकनदीतटमलधररी सुसंजममलयसिंहरे अ कोजदेवधरश्रीप्रयछ आगामिकगुन गेहरे श्री० ॥ ५ ॥ श्रीविनीतरतानंदस्वामी श्रीजगनाथकहायेरे कहे जिनदास पूजोनविनावे अजयदानी कहायेरे श्री० ॥ ६ ॥ इति समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाकृतकैर्निवेद्यत्रस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ पनरमी पूजा ॥ दोहा ॥ जिणाजिणतिर्थाति र्थ गृहिन्यस्वलिंग स्त्रीनपुंसकानेक स्वयंबुअ भंग ॥ १ ॥ बुद्धबोधियएक सिध अनेक सिनगवान पंदरभेदसिद्धसंपजे पंदरमिपूजाजाण ॥ २ ॥ देसी ॥ सेवियेनवि सुमतिजिणंदा ॥ एदेशी ॥ सेवियेज विश्रीजिनराये पूजीयेचितलाये टेक ॥ ज्ञानप्रखूट जंहारजराये के नरमुनिवर नितलेइजाये ज्यूंसरसुं बेडाजलनरीला ये त्युंसुगुराजनज्ञानले प्राये सं० ॥३॥ जिमतरस्याढोरसरोवरेजाये तिमशिवइच्छक जिन पेंधाये जिमनोजनकी येभूखजाये तिमशिवतृपती जिनथीथाये से० ॥ २ ॥ सुरबंछित कामकुंभेलहाये सुरवृक्षंजुगलासुखपाये चक्रीवांबत चौदरत्नेथाये तिमप्रयसुख जिनपसाये से० ॥ ३ ॥ प्रभावक विनयेंद्रराये सुनावस्वामी श्री दिनकरगाये अग
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स्तंयधनदपौरवराये जिनदत्तपार्श्व शिवसुखदाये से० ॥ ४ ॥ मुनिसिंहच्या स्तिकश्रीनावनंद श्रीनृप नाथनरायणचंद प्रथमांकभूपतीजिनराये दृष्टीसुन वजीरूकहाये से० ॥ ५ ॥ नंदननाथश्रीजार्गवनाथ परानस्युश्रीकल्विपाद नवनाशिक श्रीनरतेस कहे जिनदासलियोमुनिवेस से० ॥ ६ ॥ इति समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाकृतकैर्निवेद्यवस्त्रैः उपचारवरैर्वय जिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ इतिश्री पंदरमी पूजा संपूर्णथई ॥ पांचजरतक्षेत्रनी॥ जोटली पूजा जणावीने मंगलीक करबुंहोये तो सुखकरवो पण विधि सर्वेऊपर लिख्या परमाणे करवी २४ जण २४ कलसा लेइ ऊजीने वारंवार अभिषेक करे, ते शांतिस्मरण पाठ करवो पण बनेताहासुधि त्रीसपूजा जणाववी ॥ अथ पांच ऐरवतनी पंदरचौवीसीनी पूजा लिख्यते ॥ दोहा ॥ सोलसतीनितप्रणमिये तजियेसोलकषाय सोलसि णगारसजीकरी सोलमियेचितलाय ॥ १ ॥ जंत्र द्वीपेऐरवते अतीतचौवीसजिणंद प्रनिक्षेककरतां नवी पामेशिवसुखकंद ॥ २ ॥ रागधन्यासरी ॥ भूलोभ्रमतकहावेअजान एदेसी ॥ अजहुंनभूलदेखीरे अजान द्वार२ कूकरवतनटक्यो जगतारकन पिकान अ० टेक० ॥ येचौदराज्यकेचीकमकारे जमतभयोरे अज्ञान सुरनरपतीनयांवारनंती पणनलयांसुध ज्ञान अ० १ भूकारण कई चक्रीविघ्नु फूंकतधरी
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निमान षटत्रीखंडनोक्ताअंतेगये नघमपणे रेमसान अ०॥२॥ देवकदेवगुरुकगुरुकी मित्रामित्रनजान तीर्थपतीसरणं अवपाक करूपजाधरिमान अ० ॥ ॥३॥पंच रूवजिनहरसंपटिक उजयंतिकअधिष्टाये अन्निनंदनरत्नेसरामेश्वर अंगुष्टमजिनराये अ०॥४॥ विनाशक आरोपजिणंद सुविधाप्रदत्तकुमार सर्वशै लप्रभंजनसौन्नाग्य दिनकरत्रताधिकार अ० ॥५॥ सिधिकरसारीरिककल्पद्रम नीतीर्थादिफलेस कहे जिनदासनीजिनसेवत मिटजायेजगतकलेस अ० ॥६॥ इति समाप्ता ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाक्षतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रानू रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ सतरमीपूजा ॥ दोहा ॥ सतरभेदेचारित्रमुनि पालेभातमकाज आपदयाजिणादरी अपरदया समाय ॥ १॥ ऐरवतजंबूतणूं वर्तमानजिनच द इंद्रपरेशनिक्षेकरो पामवाशिवसुखकंद ॥ २ ॥ रागधन्यासरी ॥ संतोअचरिजरूपतमासाए देसी ॥ संतोअवनीयोप्रभुप्यारा रहतलोकसेन्यारा संतो० एटेक ॥ अनंतानंतज्ञानकेधारक चारित्रगुणभंडारा दर्शणबेगलोकालोकमेंजस निरखेज्यंनिजकरधारा सं०॥१॥जगकोमल जायसबजलमैं तोइनिर्मलजल सारा त्यंअघमेलहस्योसबजगको आपनिर्मलशवि कारा स० ॥ २ ॥ नयनिहपाकरणीश्रेणी प्ररूपि तउपगारा यात्रालंबग्रहीकेईपौचे शिवपुरनगरम
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कारा स०॥३॥चंद्राननसुचंद्रअग्निषेण नंदिषेणगु नक्यारा रिषिदतव्रतधरसोमचंद्र वार्घसेनजगप्यारा सं०॥४॥ सतायुषशिवसुतश्रेयांस स्वयंजलसुखका रा सिंहसेनउपशांतगुप्तसेन महावीर्यजयकारा सं० ॥५॥पार्श्वस्वामीअन्निधानमरुदेव श्रीधरशामकंबु प्यारा शग्निप्रभअग्निदतबीरसेन लागेजिनदास कुंप्यारा सं० ॥६॥ इतिश्री समाप्ता ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाक्षतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ अठारमीपूजा लिख्यते ॥दोहा ॥ पापअढारे दूरेकरो नरकतणाधिकार दोषपढाररहितप्रभु पूजताभवपार ॥१॥ जंबऐरवतेप्रभ अनागतेचौ वीस तीर्थपतीतीर्थकरू होसेजिनजगदीस ॥ २ ॥ रागआस्याउरी ॥ प्रास्याऔरनकीकहाकीजे एदे शी॥ प्रास्याजिनबिनौरनकीजे जातेमनबंछित सीजे आ० ॥ एटेक ॥ काकुंमन्नकुबेरचूडामणी या कीनशासधरीजे बारानंतसुरासुरभयेअब भवको अंतकरीजे शा०॥१॥ राजाधिराजवारशनंतीवा रअनंतनिखारी नवनवविधसुंनाचनच्योतूं भेट्यो नैइउपगारी आ० ॥ २ ॥ दोषअढाररहितजि नकेरी पूजाचितधरीजे भवदवअघज्वरयासेमि टेगो अदायअमरवहीजे प्रा० ॥ ३ ॥ सिधार्थवि मलविजयघोष नंदिषेण जिनराये सुमंगलवजधर निर्वाण कर्मध्वजकहहाये श्रा०॥ ४ ॥ सिझसे
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नमहसेनवीरमित्र सत्यसेनचंद्रविभू महेंद्रस्वयंदेव सेनसुव्रत जिनेंद्रसुपार्श्वशंभू आ० ॥ ५ ॥ सुकोस लअनंतबिमल अजितसेनशिवराय अग्निदतअद यपददेता गुणजिनदासगहाय आ० ॥६॥ इति० ॥ अथ उगणीसमी पूजालिख्यते ॥दोहा॥ औगणी सअतिसयप्रनु देवकृतमनोहार इगीआरेकर्मदये मलश्तीसयचार ॥ १ ॥ धातकीपूर्वएरवत शति तेत्रीजिननाण बंटुमैं पयकमलतस इच्छाशिवसुख खाण ॥२॥ राग शास्याउरी ॥ श्वधूअनुपमप्रभु पदसेवा औरनइणसममेवा १० टेक० ॥ कामक्रो धादिकरहितमुद्राजस सुरनरसबकरेसेवा चौत्रीस अतिसयवंतकहीजे पांत्रीसवाणीवदेवा अ० ॥१॥ नविमनसरोवरेजिनपदकमल विकसतज्यंबालसुर जगमगरजीतप्रकासत अज्ञानतिमरगयेदर अ०२॥ जिनपांचेकल्पाणेहोवे नरकेपणउद्योत सणवारसब लहे संतोष प्रगटीजाणेजिनजोत अ० ॥३॥ बज स्वामीइंद्रयत्नसूर्यस्वामी परूरवस्वामीनाम अवबो धविक्रमसेनजिन निर्घटिकगुणधोम १० ॥ ४ ॥ हरिद्रप्रतेरितनिरवाण धर्महेतुजिनराय चतुर्मुख जिनकृतेटुस्वयंक विमलादित्यशिवपाये अ०॥५॥ देवप्रनधरणेद्रतीर्थनाथ उदयानंदशिवार्थ धार्मि कक्षत्रस्वामी हरिचंद्र करोजिनदासेपर्मार्थ अ०॥६॥ इतिश्री समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपादतकैर्निवेद्यवस्थैः ॥
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उपचारवरैर्वयंजिनेंद्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे १॥ अथ वीसमी पूजा ॥ दोहा ॥ वीसपदअरिहादिक महिमाअगमअपार । तीर्थकरत्रीजेनवे शराफँसु खकार ॥ १ ॥ धातकीपूर्वऐरवत वर्तमाननगवान उलटधरीशनिदोकरूं लेवाज्ञाननिधान ॥ २ ॥ राग आशाउरी काफी ॥ लालतेरेनेनंकी गतन्यारी.। एदेशी ॥ लालतेरेप्रवचनकोबलिहारी शायोशिव सुखइच्छाधारी ला० टेक॥तत्वद्रव्यअरुनयनिक्षपा ध्याताधेयविचारी हेयज्ञेयउपादेयबतावण प्रवचन जगउपगारी ला०॥ १॥श्रीजिनवाणीशिवश्रेणी जाणी केइचढ्यानरनारीज्यूजचढीनिरखीनदेवी तोपोच्योनिजघरद्वारी ला०॥ २ ॥ कामीक्रोधी हिंसकप्राणी केईतस्यान्नवपारी वचनविराधकहार गयभव जमालीशदेविचारी ला०॥३॥ अपश्चि मपुषदंतण्र्हत श्रीसुचरित्रगुणधारी सिछानंदनंद कप्रकृप उदयनाथमनोहारी ला० ॥ ४ ॥ कमेइकृ पालपेढाल सिद्धेश्वर सुखकारी शमृततेजजेंद्रस्वा मीनोगली सर्वार्थउपगारी ला० ॥ ५॥ मेघानंद नंदिकेसहरनाथ अधिष्टायकजयकारी शांतिकनद ककुंपार्श्वजिन जिनदासविरोचनप्यारी ला०॥६॥ इतित्री समाप्ता ॥ ॥ ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाश्तकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेंद्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे १॥ अथ एकवीसमी पूजा ॥ दोहा ॥ गुणएकविसेसंजु
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( ७१ ).
क्त श्रावकसंघसिणगार | आणंद काम देवादिक धनधनतसञ्श्वतार ॥ १ ॥ धातकी पूर्वऐरवत नाग तेजगनाथ | पूरणप्रेमेंजावसुं करूंपूजाजोळी हाथ॥ २॥ राग आस्याउरी काफी ॥ जानुप्रभुविन
पनूंन कोई कायाचलतप्राणसेरोई एदेसी ॥ मा नोप्रभुविनतारन कोई तारकहोयेतारेसोई एटेक ॥ प्रापनतरे और कोंक्युतारे ज्यूंपत्यरजलजोई काष्टप्र वहणतारकजगमे जानतसबजगजोइ ता० ॥ १ ॥ केsप्रिया संग केईकरवाण लंगअजोग्यजगोई नइमु द्राएतारककेरी कहारैयेमनमोई ता० ॥ २ ॥ शांत मुद्राप्र बैठे पद्माणै निश्चेशिवपुंज होई जिन नि
करततरे कई जाणोप्रवचनेसोइ ता० ॥ ३ ॥ वि जयप्रज्ज्ञनारायणसत्यप्रज्ञ महामृगेंद्रमनमोई चिंता मणी सोगिनधिमृगेंद्र उपवासितमनमोई ता०४ ॥ पद्मचंद्रबोधकेंद्र चिंतादिक उतराहिकमलधोई पाशितदेवजलनारिक अमोघनागेंद्र दुखखोई ता० ५ ॥ नीलोत्पलञ्छ्प्रकंपपुरोहित उन्नयेंद्र पार्श्वना थ निवचसवियोषितसेवितनावे जिनदासकशिव साथ ता० ॥ ६ ॥ इति समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाकृतकैर्निवेद्य वस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वय जिनेंद्रान् रुगिरैरद्यमुदायजामहे १ ॥
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थ बावीसमीपूजा ॥ दोहा ॥ बाविसेपरीसहदु ख खमैं महामुनिराये । समितिगुप्तिमनधारके वं दीजेतखपाय ॥ १ ॥ धातकीपश्चिमऐरवत अतीते
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जिनराय । सुरनरवंदितजिननये जगउपगारकरा य ॥ २ ॥ राग ॥ कीनेदेख्याहमेरास्वामी स्वामी जीशंतरजामीरे कीने०॥ एदेशी ॥कीनेदेख्याप्रन्नु शिवगामी शिवगामीअनिरामीरे की० टेक ॥ ढंढ तन्नय हेरानी तोनमिल्याविसरामीरे की० ॥१॥ मंतोसुन्याप्रभुभयेशरूपी अद्य शिव पदपामीरे। की० ॥ २ ॥ तंजीवनावस्वन्नावलयोप्रभु शतमगु णशनिरामीरे की० ॥३॥ तंजीलोकिकलोकोत्तर नयेप्रभु अरूपीअवेदीअकामीरे की० ॥४॥ अष्ट बेदीऔरअष्टउपाजे जोतिमईजगस्वामीरेकी०॥५॥ सुमेरुकजिनकृतरुषिकेलि श्रीअशस्तदस्वामीरेकी० ॥६॥ नियमकुटिलवर्द्धमानजिन अमृतेंदुशिवपा मीरे की० ॥७॥ सखानंदकल्याणवतहरि बाहुन्ना र्गवस्वामीरे की० ॥८॥ सन्नद्रपतिप्राप्तवियोषित श्रीब्रह्मचारीअकामीरे की० ॥ ९ ॥ असंख्यागति चारित्रेसजिन परिणामितमनोहारीरे की०॥१०॥ कंबोजविधिनाथकौसिक धर्मशउपगारीरे कीने० ॥ ११ ॥ इतित्री समाप्ता ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेंद्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे १॥ अथ ओबीसमी पूजा लिख्यते ॥दोहा॥ विसवि षयेपंचना तजीभजोनगवान एक एक विषयेथकी लइयेदुःखअजान ॥ १॥धातकीपश्चिमऐरवत वंदूं जिनवर्तमान क्रोधलोनमायातजी औरतजीअभि
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मान ॥ २ ॥ राग सोरठ ॥ मनेप्यारोलागैडेजीगढ गिरनार ॥ एदेशी ॥ मनेप्यारोलागे जीप्रन्नुदीदार टेक ॥ शांतिकांतिजसरूपअनोपम करतजगत उप गार मने०॥१॥ जन्मजरानेमरणनिवारी पाम्या शिवसुखसार म०॥२॥ तंतोप्रभुप्रभुप्रनुकरतफिरू प्रभुपोचलोकपार म०॥३॥ सातराजउंचाजइबेठा किमपामंदीदार म० ॥ ४ ॥ रूपनरंगौरविणश रीरे जोतमेंजोतन्त्रीकार म०॥५॥ केवलशापस्वा थीथयाप्रत्न सेवककीनलेइसार म० ॥६॥ उपा दितजिनस्वामीस्वमित इंद्रजितसुखकार म०॥७॥ पुष्पकमंझिकप्रहतमदनसिंह हस्तनिधिमनोहारम० ८॥ चंदपार्श्वअश्वबोधजनकादि विनतिकन्नवपार म० ॥९॥कुमरी पिंडसुवपहरिवास प्रियमित्राधार म० ॥ १०॥ धर्मदेवधर्मचंदप्रवाहित नंदिनाथ गुणधार म०॥ ११ ॥ अस्वामिकपूर्वनाथनीचित्रक कहेजिनदाससुखकार म० ॥१२॥ इति समाप्ता॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैनिवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैवंयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ शथ चौवीसमी पूजा लिख्यते ॥ दोहा ॥ चौबीस नामउत्तमजगे इणसमप्रवरनकोइ तीर्थंकरतीरथ पती तरणतारणमनमोइ ॥१॥ संखकल्याणएक नवे करेसुरधनअवतार धातकीपश्चिमऐरवते अना गतेमनोहार ॥ २॥ रागठुमरी ॥ कर्मकोरूपवताये सयगुरुये कर्म० टेक ॥ बज्रपडहसमज्ञानावरणी
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दरसणज्यूंपडिहाररे मोहनीमदिरागकपरेकइ नं डारीवतअंतरायरे कर्म० ॥ १ ॥ चारकर्मएघाती कहीजे चारशघातीकेवायरे वेदनीनामगोत्रआयूए इणसेनशिवरोकायरे क० ॥ २ ॥ कालअनंतकीसौ बतयासे आजलगणचलीआयरे अवसोवतनिवार्ण अर्थ करूंअग्निहोचितलायरे क० ॥३॥ वजायुध जिनन्नक्तिकरधरी पाखरत्नावपेरायेरे चितवितत पजपध्यानषडगसे कर्मरिपुहटायेरे क० ॥ ४ ॥ रविंद्रसुकमालपृथिवीवंत कुलपरोधाजिनरायेरे ध मननाथप्रियसोमवारुण अभिनंदनगुणगायेरे क० ॥५॥ सर्वनानुसदृष्टमौष्टिक सुवर्णकेतुसोहायेरे सो मचंद्रक्षेत्राधिसौढातिक कुमेसुकमननायेरेक०॥६॥ नमोरिपुदेवनामित्रजिन कृतपार्श्वविनंदरेअघोरि कनिकंबुदृष्टिस्वामी वोशंजिनदासवंदरे क०॥७॥ इतिश्री समाप्ता ॥ २४ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेंद्रान् सचिरैरद्यमुदायजामहे १॥ अथ पचीसमीपूजा लिख्यते ॥ दोहा ॥ पचीसक पायेपरिहरो किरियात्यागपचीस इणकमित्रनरक गये परवसपाडेचीस ॥ १ ॥ पुतरपूर्वऐरवत अति तेजिनमुजस्वाम प्रापतस्याकेडतारिया पाम्याशिव पुरठाम ॥ २ ॥ रागठुमरी ॥ कर्ममैलक्यूंजायेजग गुरू कर्म० टेक ॥ शपसमक्युनिरमलहोवू देजोसो इबतायरे क० ॥ १ ॥ कहतकृपानिधिसुणतुंप्यारे
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कर्ममैलयूंजायेरे शंमारूंएदोयत्यागके जिनचरणेचि तलायेरे क० ॥२॥ मनपंकजकेमौलमाये दमा कंबैठायेरे दयासमतासरोवरमाये जेनरनितम्रतेना येरे क० ॥ ३ ॥ तपजपकलसानावजलेभरी आ त्मअभिक्षेकरायेरे जिनवरत्नक्तिआरती उतारी द याघंटबजायेरे क०॥४॥कृतांतउवरिकदेवादित्य अष्टानिधिप्रचंफरे वेणुकत्रिनाणुत्रीब्रह्मादि व्रनंग विरोहितचंदरे क०॥५॥ पापकलोकोत्तरजलधि विद्योतमसुमेरूरे सुनाषितवत्सलत्रीजिनाल तुषा रिकन्नवभेरूरे क० ॥६॥नुवनस्वामीत्रीसुकालिक श्रीश्रीदेवाधिदेवरे शाकाशिकन्त्रीअंविकजिनवर करेजिनदासतसुसेवरे क० ॥ ७॥ इति समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाश्तकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ बावीसमी पूजा लिख्यते ॥ दोहा॥ पुष्करव रदीपेनलो सोललप्रमाण एर्द्धभागेमानुषोतर वलयाकारेजाण ॥ १ ॥ वर्तमानपूरबदिसे श्रीऐर वतमकार चौवीसेशन्नदोकरूं पासुनवजलपार २॥ रागठुमरी ॥ धर्मवृद्धदरसायेजगगुरु धर्म० टेक० ॥ कुगुरुकुदेवकुधर्मकीसंगतज्योल्योनहिनिपटायेरेतो ल्योंआत्मधर्मअंकरो समकितनहिप्रगटायेरे ध०१॥ सारंगवारंगसुरवेलिनूं शात्मनूंयेचितलायेरे नेदा नेदमित्रकुमित्रकू ज्योल्यांनहीपिबानेरे ध०॥२॥ यासेवामेंरीतीजदमासे आपीशंकुरउगायेरे तार
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कवारकजदओरखासे धर्मवृक्षप्रगटायेरे ध०॥३॥ निशामितअङ्कपासजिन अचितकर्मननायेरे नर्गा दर्पणपंडुस्वरनाथ तपोनाथजिनरायेरे ध० ॥ ४ ॥ पुष्पकेतकर्मिकचंद्रकेतु प्रदारितवीतरागरे उद्योतत पोधिकशतीतमरुदेव दामिकसेबोवनागरे ध० ॥ ५॥ शिलादित्यश्वातिकविस्वजिन श्रीशतकमो येसायेरे सहस्तादितमोकितब्रह्माक गुणजिनदास गहायेरे ध० ॥ ६ ॥ इति समाप्ता ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपादतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेंद्रान रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ शथ सतावीसमीपूजा लिख्यते ॥ दोहा ॥ सता वीसगुणें सोनता साधजिनसिणगार लस्करविण ज्यूराजबी तिमजिनमनिविनधार॥ १ ॥ अनागते पुकरवरे होसेजिनसुखकार नविन्नावपूजोतमे सु खलेवानीकार ॥ २ ॥ रागकाफीवसंत ॥ आत्मत त्वविचारोज्ञानसे कर्मकटेजूंसुकलध्यानसे ॥एदेसी॥ आत्मआपविचारोज्ञानसें पापघटेंगे प्रभुके ध्यानसे टेक ॥ दुखदुरनिमिटेबरषासें तिमरमिटेज्यूउगे नानसे श० ॥१॥ रोगमिटेज्युऔषदकीयेसे देवू मिटे ज्यूं दीये दामसे आ० ॥ २॥ शागबुझज्यु जलकैयोगसें कलहमिटेज्यूमूकमानसें प्रा०॥३॥ सुखलें वंबितकामकंन्नसे नरवरबंबितचर्मध्यानसे श० ॥४॥ जसोधरसुव्रतअन्नयघोषसे निर्वाणी कब्रतवसुध्यामसे आ० ॥५॥अतिराजप्रशवनाथ
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श्रीशर्जन तपचंद्रज्युसितज्ञानसे आ० ॥ ६ ॥शा रीरिकमहसेनसुश्रावदृढप्रहारजीत्पाज्युंज्ञानसेप्रा० ॥७॥ अंबिरिकवृषातीतत्रीतुंवर सर्वशीलसोने ज्यंज्ञानसे आ० ॥८॥ प्रतिराजजिनेंद्रतपशादि रत्नकरदेवेसन्नानसे आ० ॥ ९ ॥ नीलांबनप्रवेश प्रन्नुकं नमेजिनदासअतहीमानसें आ० इतिस० ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाक्षतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ शथ अठावीसमीपूजा लिख्यते॥दोहा॥ मोहनी महाविकारलजे जासण्ठावीसभेद सिन्नरकोडाको डिनी स्थितियहोवतखेद ॥ १ ॥ पुष्करपश्चिमऐरवत अतीतकालमकार थयातेजिनवांदीये लैयेनव जलपार ॥ २ ॥ राग ॥ नक्तिहृदयमांधरजा अंतर वेरीनेवारजोरे तारजोदीनदयाल ॥ एदेसी ॥ सेव कपेंकरुणाकरोरे तिमरअज्ञानदूरेहरोरे दीजीयेसु जमतिज्ञान ॥ टेक ॥ अनंतज्ञानकतेप्रभुरे कहान दीयोमोयेज्ञान अंतलोनीदीसोप्रनुरे काहहोवोकृ पणश्जान होसाहेब० ॥ १ ॥ कुंभेसमुद्रखुटेनईरे मुंगीखायें मोंगु न थाये चाचखंत्रखुटेनइरे तिम
आपन शोबुं न थाये हो० ॥ २ ॥ कहाबकरीस करोतुमेरे रीसेननिपजेसार अमद्रव्यशमबिनौर कुंरे नईपाचे ज्युचक्रीपार हो० ॥३॥ तुमयोग्य ज्ञानप्रदेसबरे लोकमाअनंतश्पार नक्तिमत्नावेतपा मसोरे तरशोन्नवसंसार हो०॥४॥ सुसंन्नवपच्छा
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नप्रभुरे पूर्वाशजिनराये सौंदर्यगैरिकत्रिविक्रमरे ना रसिंहमुऊसाये हो० ॥ ५ ॥ श्रीमृगवसुसोमेस्वररे नीन्नानुजगराये अपापमल्लविबोधजिनरे संऊमि कजिनराये हो० ॥६॥ साधीनाअश्वतेजाप्रभुरे विद्याधरसुलोचन मोननिधिहरीकप्रभुरे चित्रगणे स्थिरमन हो० ॥७॥ माणहीस कलरे भूरिसर्बा जिनराये पुण्यांगजिनदासप्रभुरे सेवीयेचितलाये हो० ॥ ८ ॥ इति २८ समाप्ता ॥ ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपादतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेंद्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे १॥ अथ उगणत्रीसमीपूजा लिख्यते ॥ दोहा ॥ उगण त्रीसेउणुंनयो बुझिहीणमुकजीव अकारजकीयाघ णा तानियोमंददीव ॥ १ ॥ पुष्करपश्चिमऐरवत वरतमानमनोहार अभिषेककरतानवी तरायेनव संसार ॥ २ ॥ पूजा २९ मी ॥ पार्श्वप्रभुकारे चारकल्याणीक बनारसमलैयेरे ॥ एदेशी ॥ मे रेप्रभुकारेचरणकमलवर सेवेसुरनरइंदार मेरेप्रभुका रे टेक०, मेरू प्रतेपष्टअनिषेक सिलाविमलअनूपरे जन्मानिषेककरेसुरवरतिहांधरीसुरपतीपंचरूपरेमे रे० ॥ १ ॥ अनंतानंतभयेशनिदे आगेशनताअ नपरे कहाकैयेनमीकोउतमपणु तीर्थत्रिलोक्यम णीरूपरे मे०॥२॥ एकक्रोडसाठलाखरेकलसा नीर निरमललावेरे होमाहो.हरखेसुरासुर श्रीजिननेन वरावरे मे० ॥३॥पठाइमहोत्सवकरेनंदीश्वरे अं
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जनगिरिपेंद्यानंदरे सुरपतिभक्तिकी काकहुंऊनता मांनुपुन्यानुपुन्यचंदरे मे० ॥ ४ ॥ श्रीगांगेयनलव शाजिन ध्वजादिकसुभद्ररे स्वामीनाथदितकनंदि घोष रूपवीर्यवज्रनाभरे मे० ॥ ५ ॥ श्रीसंतोषसु धर्माफणादि वीरचंद्र जिनरायरे मेघानिकस्वेछको पय काम संतोषीथायेरे मे० ॥ ६ ॥ शत्रुसेन क्षेमवादयानाथ कीर्त्तिश्री सुननामरे कहेजिनदा ससेवोनविभावे ज्यूंपामोंशिवधामरे मेरे० ॥ ७ ॥ इति समाप्ता ॥ २९ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाकृतकैर्निवेद्यवस्त्रैः उपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ त्रीसमी पूजा लिख्यते ॥ दोहा ॥ त्रीसचौवि सीपूजिये सातसेवी सजिणंद विकटसंकटदूरेमिटे होवेंसुखआनंद ॥ १ ॥ ऐरवतपश्चिमभलो पुक्करव रमकार अनागत जिनवांदीयें नवदुखभंजणहार२ ॥ रागदेसी ॥ मुनेसंसारसेरीबी सरीरे लाल ॥ एदेसी ॥ मुनेसंसरताकालगयोरे अतीतञ्श्र्नंतअपारजो सोह मबादरनिगोदमारेलोल विगलेंद्रीपंचेद्री प्रसारजो मुने०॥१॥ कोइअकामनिरजरायोगथी रेलो० अल्प आयुनरअवतारजो आयु पूर्णइंद्री क्षीणथयोरेलोल लेइरिखीनार्जे अपारजो मु० ॥ २ ॥ आरजेनीच कुलेऊपनुंरेलोल उंचकुलेंद लिद्रीअज्ञानजो कोई कर्मविपाकतोलथी रेलोल । पायोज्ञानरूपकी नजान जो मु० ॥ ३ ॥ जिमअमृतविषपणेथयोरेलोल जिम
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समाज
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पर्वतपंकितपत्र जो संसारअनंतोवधारियोरेलोल जे
उथापीयाजिनसूत्रजो मु० ॥ ४॥ इमविभ्रमपणे भमतेथकरेलोल गयोकालगुरूविणपायेजो समकि तवर्षविणवावीयेरेलोल नइऊगेशकूरबीजजायेजो मु० ॥ ५॥ तोधनकरुदिनाजउं रेलोल मुने नेट्यातीर्थपतिनाथजो सुगंधजलेशभिक्षेकरूं रेलोल होसेंइच्छापर्णशिवसाथजो मु० ॥६॥ श्रीअदो पितवृषनस्वामीरेलोल विनयानंदमुनिनाथजो श्री इंद्रकचंद्रकेतुनलारेलोल । ध्वजादित्यवसुबोधनाथ जो म० ॥ ७ ॥ वसुकीर्तिधर्मबोधधाइयेरे लोल श्रीदेवांगमरीचिकसारजो श्रीसुजीवयसोधरगौत मरे मुनिसुधप्रबोधनवपारजो मु० ॥ ८॥ श्रीसं तानिकचारित्रजीरे लाल शतानंददार्थनाथजो सु धानाथज्योतिमुखबांदीयेरेलोल श्रीसूर्यकशिवपुर साथजो मु०॥ ९॥ संवतउगणीसएकत्रीसनारेलाल रूडोमाससंवत्सरीधारजोतेमांउत्तमदिनअठाइनारे लोल रहीनरसिंगपुरमकारजो मु० ॥ १० ॥ रची पूजानक्तिशर्थेनलारेलोल । सूरीरत्नसागरसुपसाये जो गच्छश्चलपती आणाधरूरे लो० ककदेसजद पुरमायेजो मु० ॥ ११ ॥ कुलश्रावकशेसवंसतणं रेलोल तमाखौना गोतरमुकधारजो जिनदासकहे मुफमावडीरेलोल गुरुसाखंउचस्यानतबारजो मु० ॥ १२ ॥ इति समाप्ता ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपादतकैनिवेद्यवस्त्रैः ॥
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उपचारवरैर्वयजिनेंद्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ झीपरमपरमात्मभ्यो जिनेंद्रभ्यां जलं चंदन पुष्पं धूप दीप नैवेद्य कृतं यजामहे स्वाहा ॥ इति तीस चोवीसी पूजा समाप्ता ॥
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कलस ॥ हरीगीतबंद ॥ तजीविनावश्राणी स्वनाव सुक्लध्यानेधाइये निर्मलचिते सुकृतविते तीसचौबी सीगुणगाइये ॥ १ ॥ श्री जिनसेवाञ्य्मृतमेवायनोप मजगजाणीये दुरितजा येशिव सुखधाये कल्पवृक्ष नुमानीये ॥ २ ॥ तजीकुसंगजजीसुसंग तारकवार कपरखीये जिमजवेरीही राकेरी परिक्कायेधनग्रा पीयें ॥ ३ ॥ दुखवारणमा कारण परिक्षा विकि मधाइये कुवकुगुरुसुदेवसुगुरु सोलनापरिक्षाजा णीये ॥ ४ ॥ कुदवन जताजत्र में जमता नतदुख उपाइये श्रीजिननजतापापहरता अयशिवपद पाइये ॥ ५ ॥ नम्यो प्रदेसीगणधर केसी बारीनरक सुरगेगयो करीनाटक जिनके ग्रागल सूरी पानसुरग हरायो ॥ ६ ॥ आनत्रपरनबवलीजवोजय सरणं जिनचितधरीये कहेजिनदासरे उदास दुष्टकर्मनि बारोये ॥ ७ ॥ धर्मगुरुमुक सेठजीमसी तासगुणन विसारीये याकीसंगेधर्मपायो संगतफलइमजा णीये ॥ ८ ॥ श्रीजङ्ग पूरे कर्मचूरे वीरसुविधिवदीये जिनालयदीये अनोपम सेठजीमहीकृतमानीये ॥ ९ ॥ नगणी ससे एकत्रीसवरषे संवत्सरीदिनेकयो करीप जोसगनरसिंगपुरे जिनदासचितगहगयी ॥ १०॥
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इति संपूर्णम् ॥
॥ मंगलीकर्थे जिनस्तवना ॥ त्रोटकबंद ॥ प्रभुरूप करीजगध्वांतशरी पदचारतपादिकजुक्तचरी रिदे धरी प्रभुध्यानप्रमाणसही तिमकीर्तिसुसूढविसाल कही ॥१॥ जगतारणनांबवडोजगमें सिढस्वेत दिसेंशिवमंदिरमें धरलंकरदोरसम्यगभलो चढजा यसुखेंनिरखोविरलो ॥२॥ धनसोनरजोमनध्यान धरें जिननामनहीनिसदिनहरे अरहंतभगवंतभजैदि लमे वडभागभयेनरसोजगमे ॥ ३ ॥ लघुताहरता प्रभुताकरता दुरितावरतानजतातरता जिनदासक हेभजलेनविशा गुरुगौतमजीउपदेसदिया ? इति॥ नेमनाथमोरीअरजसुणीजे एदेशी ॥ पार्श्वनाथनी प्रागपुरेजिन दिनरतेजसवाये वंदनपूजनकरतउ मायो अष्टकर्मजिणेजीत्याहै ॥ पा० ॥ १ ॥ वज़ पडहसमज्ञानावरणी दायेकरनंतउपायाहै पालि
आवतदर्शणावरणी मोहकाकजणेजीत्याहै पा०२॥ भंडारीसमअंतरायजीतके अनतविर्यबलपायाहै अ गमअगोचररीतीयाकी सुरनरमुनिवरध्यायाहैपा० ॥ ३ ॥ दोयत्यागऔरदोयध्याइये चारमंदोयेचि तलायाहै दोयमेंस्वसरूपिकहाये अविचलपदनिप जायाह पा०॥४॥ तीनतीनौतीनरत्यागके तीन ने चितलायाहै तीनध्यायकतीनउपार्ज तवतीनंकय पायाहै पा० ॥ ५ ॥ चारोसंगेचारजीतक चारास निपटायाहै पांचत्यागऔरपांचहराये पंचसेपंचमी
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पायाहै ॥ पा० ॥ ६ ॥ षटमेचर्मध्यायकेमुनिवर पठविचारमनध्यावतहै सातसंदूररहेमुनिनिसदिन सातनयेचितलावतहै पा० ॥ ७॥ अष्टदायेकरअ ष्ट उपार्जे ताकोध्यानमुजन्नायाहै धेयविणध्यानध्या नविणव्याता अलगाधानवतकहायाहै पा० ॥८॥ राजविणवस्तिवस्तिविणराजा गुरु विणज्ञानकहा याहै कहेजिनदासपूजोन्नविन्नावे तरणतारजिनपा याहै पा०॥९॥ उगणीससैबत्रीसासुवदि त्रीज दिनेगुणगायाहै जात्रासफलन्नईप्रनुदखत मनबंबि तफलपायाहै पा० ॥ १७ ॥ इतित्री समाप्तं ॥ ॥ अथ श्रीशवंतीपार्श्वनाथस्तवन लिख्यते ॥
॥ आदअरेनामबै ॥
॥ रागमनात एथवा ठुमरी ॥ श्रीअवंतीपासमोयेन्नेटे ॥ गुणगावूउछाएरे रागतजीवीतरागनयेप्रभु जीलेशिवसरमाएरे श्री० ॥ १ ॥ वृथाअजलंकालगमायो धिगसतसंगनपाएर चंपकछोडथुअरतलवैठो दहतिगपणनध्याएरे श्री० ॥ २ ॥ पांचछोडकेपांचसुमोयो रेवतरत्नलहाएरे खरघूघूपरेसमजविना
Messagarmathat
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( ८४ )
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रवज्योजगमाएर श्रो० ॥ ३ ॥ तत्वार्थजिनवाणीविनाजग नईऔरठोरलहाएरे चंदसमज्युनईशीतलता दानअन्नयसुखदाएरे श्री० ॥ ४ ॥ दियोसारंगजुगलकुंसुरपद कमठबौधबीजपाएरे नावकमुनिकेईनामसमरता वसियासुरशिवमाएर श्री० ॥ ५ ॥ करणीश्रेणीनामनावेचडी श्रीशिवपुरपीचाएरे उगताहंसपरेजिनआनन जेदेखीमननाएरे श्री० ॥ ६ ॥ नीचउंचवस्तुसमधारे एकत्वपणंचितध्याएर विवेकतत्वपामेतेप्राणी राखेजोमनठाएरे श्री० ॥ ७ ॥ जिनदासकहेजेजिनध्यावे तसतपतेजसवाएर प्रोगणीसेबत्रीसमाघसिर पनिमदिनपदगाएर श्री. ॥ ८ ॥ इतित्री अवंतीपार्श्वनाथ स्तवनं ॥ राग भैरव ॥ आजआनंदनयोबनारसमे भेट्यात्री जिनपासरे टेक०॥ नवरकीमेरीभ्रांतिमिटगइ तूटी
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MALAMANACEANSanevaaTRONID
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MADHANANIHDosridhEASEAMERARLANDSAMEERADIHa
कर्मकीफासरे आज० ॥ ॥ पंचपंचऔरपंचत्याग के पच सुंप्रेमलगायेरे चारमेचर्मसुधाताजिनवर म नवंछितफलपायेरे आ० ॥ २ ॥ ठदसदोसरहि तप्रभुपारस बारगुणगुणवंतारे अष्टदायेकरिशष्टउ पार्ज नयेशिवनारीकंतारे आ०॥३॥ चारकल्याण नयेणनगर वंदतांहरखनमायेरे कहेजिनदासआ सुवदिअष्टमी ओगणीसवत्रीससुखदायेरेआ०॥४॥ इतित्री समाप्तं ॥
॥ ॥देखोगतीकालकीरे कालवडीविकराल एदेशी ॥ अहोपंथीकहोकृपाकरीरे कहासिंहपुरीशनूप कहे इणनंमहोतीखरीरे नडदायेकालसरूप दे० ॥ १ ॥ सुनतसष्दवजमयेरे तातेपन्योदुखकूप धिगरदुख माकालकर इणखायोजगतअनूप दे० ॥२॥ राज्य रमणीरिधकागयरे पलट्योभूमिसरूप नरवरनामेर योनहीरे नयंकरदीसेअरूप दे० ॥३॥ दुखसमुद्र ज्यंबटडोरे त्यंजिनमंदिरअंक चारकल्याणश्रेयांस नारे वदताहरखविशेक दे० ॥ ४ ॥ पांचकोसपेचंद्र पुरीरं जिनकल्याणकचार चंद्रप्रभुजिहांदीपतारे क रताजगउपगार दे० ॥५॥ भुगादसबीसदीसेके रे मध्यमलोकरहंत दखतदिलगीरीउपजरे नयणेनीर करत दे० ॥६॥ जिणभमेसुरासुरवरूरे आवाग मनकरत सोनमीकालयांगसेरे अहोन्नयंकारदीसंत दे० ॥ ७ ॥आनंदएमुजऊपनुरे जिनपदकमलअनू प फरसीकल्याणकभूमिकारे जेशिवरूपसरूप दे०
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॥ ८॥ संवतउगणीसएकत्रीसनारे वदिनवमीश्रा सुमास कहेजिनदासजात्राकरीरे आनंदचितउल्लास दे० ॥ ९ ॥ इतिश्री समाप्त ॥ ॥ ॥
॥ जीरे सफलदिवसथयो आजन एदेशी ॥ जीरे आजचपापुरत्नेटतां थयोहरखणानंद जीहोवासप ज्यकल्याणक पंचेशिवसुखकंद नितनमियेजिनरा जने होयेभवदुखएत नित० ॥ १ ॥ जीरसागर तालीसकबुदसेऊणाकहवाय कालअसंखवितीतनये श्रीजिनमोहसिधाय नि० ॥२॥जीरेधनज्ञानीवच नेकरी छाजलगनोलखाय नामचंपाकायमरह्यो जिनकल्याणपसाय नि० ॥ ३ ॥ जीरेचवणजन्म दीदावली केवलनेनिरवाण इमपांचेइणनमिये न येत्रीजिनकल्याण नि० ॥ ४ ॥ जीरेसुगणनरभूमी फरसते लहेशानंदअपार कुमतिकदाग्रहन्नयेनीत करतांजिनदीदार नि० ॥ ५ ॥ जीरनाम्युरयण नागलपुरे नामइसोपरिणाम अर्थज्ञानीगमएहनं जाणेजिनअभिराम नि० ॥ ६ ॥ जीरसंवतउगणी सबत्रीसना आसूमासउतंग कहेजिनदासजात्राकरी बाध्योहरख उबंग नि० ॥ ७ ॥ इतिश्री समाप्त ॥
॥ चेतनकबुमनचेतले क्यंकरेालपंपाल परम धामीनयधारी चेतचेतरोसाल॥नेसीकामातुरनये ढंढतभैंसासंग त्युतंकहानिरलजन्नयो एसुखरगपत ग॥३॥ सारंगसंगतूधयो सारंगरंगप्रचंड ज्युराहुक संगसे होतमलीनज्युचंद ॥ २ ॥ सारंगसारगीसुरे
SubmOTRAMERamdenuman
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८७ ).
ज्युलहे दुःखकरंद त्युंतूपरनवेपरवसे पामिसदुख खंड ॥ ३ ॥ ज्यंसारंगसिरेरही उज्वलम गीअनूप त्युंजणात्मकरंद मे ज्ञानमणी सुखरूप ॥ ४ ॥ ज्युं सारगलखेनही जरी सुगंधनिजदेह त्यंतू निजगुणन इलखे सुकलध्यानविनयहेत ॥ ५ ॥ ज्यंसवरयणा दिकघर महीविन औरनकोइ त्युं शवसुखरयणंभरी तुजप्रातममनमाड ॥६॥ ज्यु कुरे मैइनरी जलबिन नैप्रगटाय त्यंतुमजगुणांकुर सबै प्रवचनविघववि छाय ॥ ७ ॥ ज्यु अग्नीवसमूलमे जानतसबजगलोक त्यंतुजप्रबनगुणस्था कायाकर्ममेलथोक ॥ ८ ॥ पा पाणञ्एग्नीत्जरी प्रगटेलाहप्रसंग त्यूंजयगुरुकेसंग सै प्रगटरंगउतंग ॥ ९ ॥ घोरघटायेनननस्यो नानृते जहणाय कर्मघटासेआतमा तेजहीणकवाय ॥१०॥ जगतमैलहरिमेंसमे हरिनिर्मलरहाय कर्ममैंलत्युंज गतको हरनधरणजिनराय ॥ ११ ॥ जंबूदीवलख जोयण सहश्रोनदी प्रवाह लवणसमुद्रेसबम में त्युंक मंजलजिनगह ॥ १२ ॥ तारानखतचारिक जग मगनिसमे होत हीणभये जगचक्षु से त्युंसबजगजिन जोत ॥ १३ ॥ सवत्रीस सहस्रक नरबरराजअनेक जयेची प्राणाधरे त्युकरेजिन बिवेक ॥ १४ ॥ माख घृतवतजानिये विमलप्रग्निसंयोग त्युंद्वादस वि धतापता प्रगटेनिजगुणयोग ॥ १५ ॥ माख गदै सेननीपजे क्लोव्याणिनूप छष्टकर्मविलोव्या त्रिण प्रगटेनस्वस्वरूप ॥ १६ ॥ कहेजिनदासवित्रे
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कसुं निरखोयात्मस्वरूप तरणतारणएहीच्छातमा जागो सिस्वरूप ॥ १७ इति संपूर्णम्
अथ श्रीशांतिनाथस्तवन ॥ रागठुमरी ॥ तथा भैरवी प्रज्ञाती ॥ सागर सहर सुसोजित श्री जिन शांति जिणंद सुखदायरे ॥ याटेक ॥ अष्टप्रातिहारजसुसोहे नवजसुपायेच पायरे करिअष्टउपाये ष्ट से बेसुररायेंरे सागर० ॥ १ ॥ जमत र भवभ्रमण करती आजपायो शदीदाररे हरीकलसा हरीयेभरीहरिवत् ज्जेलेहुंअजसारंरे सा० ॥ २ ॥ सारंगरंगनई मुज आतम कगरूसंगपसायरे जिनचैत्यं घृतसारंगकरता हाबुंजैसा फुलजार सा० ॥ ३ ॥ निजकने सुगंधव तेभमसारंग तिमहुभम्याजवमांयेरे कोईककर्मकृपा सुमिल्यामोहे सुगुरुयेजिनदरसायेरे सा० ॥ ४ ॥ हावे प्रफुल्लित तृणकूरजिम वरसंतमेघरसारे ति मजिनचैत्यकीरचं चुक्तू बांदीदीनदयाल सा० ५ ॥ सेठजेठमल चुनीलालपर खरचीयेद्रव्य उक्कायेरे मानी येसुकृतकमाईउनकी जेणजिन चैत्यकरायेरे सा०६ ॥ कह जिनदाससुनाग्यसिरामगी जाजिनतनमनध्या येरे उगणीसंपतीसजेष्टवदिष्टमी श्रीजिनपूजार चायेंरे ॥ सा० ॥ ७ ॥ इति सपूर्ण अथमघसीपार्श्वनीलावणी ॥ सुनदरेदादामघसीपा रस पार्श्वचितामणिजगढेवा कलिकुंळापारसनाम भला जसुसुरनरमुनिवरकर सेवा ॥ १ ॥ प्रभुरुपक रीजगध्वांतअरी पदचारतपादिकयुक्तचरी रिदये
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प्रनुध्यानप्रमाणसही तिमकीरतिसुसूढविसालकही सु० ॥ २ ॥ जगतारणनांव बडो जगमे सिद्धस्वेतदी सेशिवमंदर मे धरलेकरदोरसम्यगन्नलो चडजायेसु खेनिरखोविरलो सु० ॥ ३ ॥ सारंगरंगे सोनेजिन प्रतिमा तीर्थपुरातनमालवमे आगेवितीतकी खबर नहीमुळ प्रगटकीयोसोनी सिघरामे सु० ॥ ४ ॥ संवतक्सेने एकसठवरषे श्रीश्रीमालसोनी गोते पुन्य प्रतापीसेठसिघराम तेसंगलेई आयापोते सु० ॥ ५ ॥ श्री जिनमंदरबावन जिनालय करीथाप्याप्रनुपार सनेसेवकपददीयोअ उचनेतववरताच्योतीरथजगमे सु० ॥ ६ ॥ संवतयोगणी सेषडदससाले प्रगट्या गो डोणवनमे पाटणवासीवंसश्रीमाली सुजसलियो सिरदारमले सु० ॥ ७ ॥ जीरणोधारकरीवरबाधी सिखरसोहामणीजिनवरपे हेमकलसतिहांपंचचढा वी परतापवधास्योपरतापें ॥ ८ ॥ तारतारजिन दासकूंबप्रन्तु जगतारणजोकावतहो जगसेंबार होवेजिनदासतो मततारोमनमगनरहो सु० ॥ ९ ॥ वचनविराधकुंनरकपमाडी आराधककुंसंघलीया निरपक्षीप्रजुनामधराई ॥ याकारजक्यूं जब किया सु० ॥ १० ॥ संवतयोगणी सेवरषचौत्रीसे आस मासमुजसफल यो । वंसओसलघुसाखणलजावण जिनदासेजाणेजन्मलयो सु० ॥ ११ ॥ इति ॥
अथ उत्तराध्ययनजीनी कथा ॥ साधु सदाई आपणां गुरूना वचन प्रमाणकरी माने जे नईमाने
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ते कूलवालुआ साधुनीपरे चारित्रभ्रष्टथई दुखपा मसे तेहनी कथा इम ॥ एक आचार्यने चेलो प्रवि नीत गुरु तेहने हितनीसीख दीये पिण चेलो नमाने एकदा ते चेलासहित आचार्यविहारकरता मार्ग पहाफशाव्यो तिवारे अवसरदेखी शागलि थयो तिहांथी अतरता गुरुने विणासवाने अर्थ चेले शिलामंकी गुरे जांणी पगपसाख्या शिलाहेठे थई वहगई तिवारे गुरुचिंतव्यो एचेलाथी एका लमरण ऊपजिस्ये एहवो बिचारी हेठे ऊतस्या शाचार्य सर्वशिष्यतेडी तेकशिष्यनी बात कही शिष्य समकाविवा लागा पण तेमूर्ख साहमूंबो ले, यत, लजमवाईमाननही नगिणसवणसनेह, आपणहंदेचालतां घणाविगचेतेह ॥ १ ॥ तिवा रे गुरेसरापदीधो रेदुरात्मा स्त्रीथकी विणासपा मिजे तिवारे तेचेलो गुरुना वचन उथापवान्नणी नदीने तटे जई आतापनाल्ये तेणे मार्ग साथसंघाति आवता जोवे तिहां आहारल्ये नगरमांहि शावे नही इमरहता बर्षाकाले नदीनोतट तपस्याना प्रतापथी अनेथिपन्यो तेन्नणी लोके कलवालूननाम दीधो॥ एहवे अवसरि राजगृहनगरे श्रेणिकराजा राज्यकरे चेलणारांणी प्रमुख ३२अंतेउर अन्नयकुमा रमंत्री सर एकदा रांणी सिंहनो स्वप्न दीठो श्रेणि कराजा स्वप्नपाठकाने पूनो स्वप्नपाठककहे तुमार पुत्रहोसी एहवो वचन सांजली स्वप्नपाठकाने दा
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नदेई सीखदीधी इम अनुक्रमे मासत्रीजे मोहलो ऊपनो जे राजाणिकना कालिजानो मांस खांउ तेमनोरथ शणपहुंचते राणी दूबलीथई एकदा रा जाणिक राणीदूबलीदेखी पूब्यो हेमृगादि किम दूबली? राणीकहै हेमदाराज मुझने विषम डोहलो ऊपनोछे तेकहिवो नही तिबारे राजाकहे तेसर्ब चिंतानिवारुं तिवारे राणीबोली तुमाना कालजा ना मांसनी इबाथई राजा इंहानणी डोहलो पूरो करस्युं हिवे चिंतासहित राजा सन्नामांहि आवी बैठो एतले अनयकुमार शाव्या राजाने चिंतातु रदेखी श्नयकुमारपत्रो ॥ तिवारे राजाकहें ता हरीलघुमाता चेलणाने माहराकालजानो मांसखा वानो मनोरथ ऊपनोबे तपूरातो नथी तेचिंताडे अन्नयकुमारकहे हुंपूरीस इमराजाने गुप्तघरकरावी शयन मृगमांस अणावी हृदयऊपरि मूंकी तेबेदी मांसना शालकरी राणीने खवाया राजामुखे बंब पाडे तिम २ गर्भहर्खपामें पूर्ववैरथी इम मा ताना मनोरथ पूस्या माता चिंतब्यो एगर्न आ गलि पिताने स्यं सुखदेसी इमविचारी राणी धणा हीखारखाधा पिण गर्नने अमृतथई परिणम्या न वमास प्रतिपूर्णथयां जन्मथयो अशोकवाझीये तेमा टे अशोकचंद्र नामदे जातमात्र ऊकरडीये नखा व्यो राजायें मंगावी लीधो तिहां कूकडे जंगली करफी तणे कोणिकनामदीधो अनुक्रमे मोटो थ
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यो, एहवे समय सकेंद्रेदेवता आगली प्रशंसा की धी जे नरतक्षेत्र मांहि सम्यक्तधारी राजाणिक बे तेहने देवता पिण चालवी नसके, एहवो वचन सांभली प्रणसरदहता देवताये शावी साधु नो रूपकरी खांधे जालधरी राजा श्रेणिक आगली थई निकल्यो राजायें साधु जाणी वांद्या राजा कहे किहां पधारो छो, हंराजा! माक्लीनो मांस लेवा जावांछां, राजा कहे आपणे घरे सर्व मिल सी, रे महाराजा! ताहरे दीधे केतलो एक परो पडस्य, दात्री यती थया के तेहने मांस विना न सरे आज अवेलानीकल्या ताहरी निजर चढ्या वलतो राजा कहे एहवो बचन मा बोलो, तमे तुम्हारी बात करो, निःकलंकी सकलंकी नही, ए तुम्हारा कर्मनो दोष राजानोमन लिगार चूको न जाणी वली साधवी नो रूप पूरे मासे हाट हाट सुवावडी नो साज मांगती देखी, सुभट कहे हेराजन् ! पूर्व साधु वांदी पवित्र थया, हिवे सा धवी वांदो राजा ये साधवी बांदी कह्यो पापणे घरे पधारो गर्भनो निर्वाह करीस, तिवारे साधवी बोली केतलीनो निर्वाह करस्यो चंदन वालादिके स्यं कंदर्पजीत्योके तेमाटे माहरो स्यूं राजा कहे एक खल सर्वने सरीखाकरे पणि सुवर्ण श्यामतानथी राजा लिगार धर्म थकी न चूको निंदा पणि न कीधी देवता खुशी थई प्रत्यद रूप करी प्रशंसा
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करवा लागा हेमहाराज! तम्हे धन्य को जेहवो इंद्रे यखाण्यो तेहवो देख्यो, देवता राजाने बेमा टीना गोला देईने स्वर्ग पहुंतो, एक गोलो सुनंदाने दीधो ते मांहि कुंडलयुगल नीकल्या , बीजो गोलो चेलणाने दीधो ते मांहि शामला प्रमाण मोतीनो अठारसरो हार नीकल्यो, एकदा श्रेणिक अंतेउरसहित नगवंतने वंदना करी पालो बलता चेलणायें शीतकाले एक साधुध्यान करतो देखी शा पणे घरे भावी रात्रिय आवासे सूतां एहवो वचन कह्यो किम करतो होसी तेह एवचन सुनि श्रेणिक ना मनमां संदेह ऊपनो, ए अंतेउर खोटो एहवो विचारी अन्नयकुमार ने जालवानो शादेश देई नगवंत पासे गयो, नगवंत बोल्या, चेफानी साते बेटी सतीजे, एवचन सुनी उतावलसो पाबा बलतां नगर मे धूम्रना फकोल देखी शनय कु मारने कह्यो, जाहिरे नूंडा, एवचन सुनी अन्नये पिताने कह्यो तुम्हारो एवचनहुँतो जेहुं मुखथी कहं तं जाहि तिवारे तंदीदा लेजे एवचन तुम्हारा मुख थी निकल्यो के तिवारे पितानी आग्याये अन्नय कुमारे दीदा लीधी, हिवे कोणिक दुर्दीत हुवो लघु नाई हल्लविहल्ल अनेवीजी माताना काली प्रमुख दश नायां ने कही कोणि के पिता श्रेणिक ने काष्ट पंजरे घाली राज्य ग्यारे नागें बहिच्यो बत्र चामर पोते राख्या सेचानक हाथी
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अने हार हल्लविहल्लने पूर्व राजाये शाप्या हुताज नंणिकने नित्य पांच से नाझी मरावे नातपाणी नो निरोध तो पणि चेलणा राणी प्रच्छल पणे नातपाणी पोचाडे ने कहें आपुत्र जिवाडी दुःख दीधुं राजा कहे नावी पदार्थ थी कोण बूटे, श न्यदा कोणिक जीमतां पुत्रे लघुनीत करी पणि कोणिके शंका न शाणी, माता ने कहे मुकने पुत्र वाल्हो बे, तिवारे समय जाणी चेलणा बोली, पुत्र माता पिताने वल्लन होय पिण पुत्र न जाणे पूर्वली बात सर्व कही, ताहरी चीटी आंगलीनो रुधिर जेतलो पिताना उदरमा गयोबे एतलो मात्रो नही जाय, पिणते कुण जाणे, एवचन सुणी वैरगत थयो स्नेह प्रगट्यो, तुरत उठी लोहार तेडी आव्यो , बीजीवार आव्यो जाणी राजा नयभ्रांत थयी तालपुट नामा विष मुख मां नाख्यो ते तुरंत मरण पाम्यो, कोणिक प्रावी बोलावे पणि बोले नही, अत्यंत दुःख ऊपनो राजाने वियोगे चंपा मंकी पष्ट चंपा रही सर्व देश सा धवा लाग्यो, एकदा पद्मावती कोणिकने कहे तुम्हे राज्यना धणी पणि हार हाथी राज्यनो सार ते तो भाई नोगवे के, तिवारे कोणिकें नाई पासें हार हाथी मांग्या, तेणे न दीधा तिवारे कोणिकनं नय करिश्तेउर लेई नाना पासि विशाला नगरी ये गया प्रनातें कोणिकने खबर थई जे चेडाराजा
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कने गया, तेणें वैरें कोणिक काली कुमार आदि देई १० नाई ३३ सहस घोडा ३३ सहसहाथी ३३ सहस रथ ३३ कोडी पायक सहित प्रावी विशाला नगरी बीटी, तिबारे चेडो महाराजा १८ राजा ५७ सहस्त्र घोडा ५७ सहस्त्र हाथी ५७ सहस्त्र रथ ५७ कोफी पायक सहित साम्हो थयो, पिण चेका राजाने एहवी प्रतिज्ञा दिहा एक वाण मंके तेणे बाणे करी अग्रेसरी सेनानी होय तेहने जीपे दस दिहाडे कोणिकना काली आदि देई दसे बांधव विणास्था, तेहवं कोणिके चमरेंद्र आराध्यो इंद्रे देहरदा दीधी, चमरेंद्र महा शिला कंटक रथ मुशल रणने विर्ष दीधा, महा युछहुवा, एक कोफी शसीलाख मनुष्य पन्या , यतः , कोणिय चेडारमा रणमिबसवइलरकमणुयाणं । चमरि देणनिया वीयदिणेलरकचुलसीया ॥ १ ॥ एगो सोहम्मसुरो बीओदिठीमणुमहाविदेहमि । दसस हस्समच्छलीए सेसाशोनरयतिरिएसु॥२॥ एहवो युछ थयो तोही पुण विशालानगरी कोणिक लेई नसक्यो, तहवे कोणिक चिंतातुर थयो घणेकाले नवितव्यताना वशथी देववाणी हुई, यतः, समणे जह कूलवालूए मागहियगणियंगमिस्सए ॥ राया असोगचंदे विसाला नयरिंगहिस्सए ॥ १ ॥ जो कूल बालुा साधु मागधिका गणिका तेडावीने कह्यो, अहो गणिका ! कल बालूओ साधु इहां
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त्र्याणो, वेश्याएं कह्यो हां महाराज! आणुं इम कही बीको काली कपट श्राविका थर्ड रथवेसीने गई तेहने वांदी गणिका बोली जिहां देवगुरु होय तिहां वांदी बहिरावी जीमूं तेमाटे तुम्हे मया करो सू ऊती जातपाणी बहिरो एहवो कही घणें प्रग्रहें नेपाल मिश्रित मोदक दीधा, तेणं साधुने प्रतीसार थयो वेश्यायें वैयावचकरी लाज लो पात्री साजो की धी, तिवारें साधु बोल्यो, अहो वेश्या मांग वेश्यायें कोल शपथ लेई कूलवा लूओ कोणिक पास प्रायो, कोणिक बोल्यो हो कुल वालूबा ! तिमकार जिम विशालानगरी जिले, तिवारें कूलवालुग्यो निमिलियानो वेशकरी नग री मांहि गयी, ज्ञान बले जाण्यो ए मुनिसुव्रत स्वामिना स्तंभनी महिमाथी नगरी नथी जाजती, तेहिवे नगरना लोकें निमिती पूछो, अहो नि मितिया ! ग्रानगरीनो विरोध किवारें मिटे, तेणे कह्यो, ए स्तंन उपाडी नाखस्यो तिवारें कटक पाक्छो जास्ये, एहबो लोकाने कह्यो, कोणिकना कटकने संकेत कीधो अमुकडीवेला एक मुकाम पाबो दीज्यो एम कही मुनिसुव्रत स्वामीनां स्तंन खणावी नाख्यो तिवारे कोणिक पाक्को आवी न गरी जांजी हार देवताएं संहरी लीधो हाथी खाई मे बली मूओ कूलवालुओं मरी दुर्गतिगयो, ए विनीत ऊपर कूलवालुछानो दृष्टांत ॥
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R
end
permanenocence
गुरुनी मारखातां क्रोध न कीधो विनय कस्यो तो केवल लह्यो ते ऊपर चंझरुद्राचार्य तथा नवपरिणीत शिष्यनी कथा कही बे, उजेणी नगरीयें चंडरुद्राचार्य चोमासें रह्या अतिरीसालु थो बोले घणी रीसचढे वहा महात्माने ढूको उपाश्रय राख्या जोसहुंई समेला रहो तो रखें गुरुने रीस चढी तहवे अवसरे किणहीक व्यव हारियानो पुत्र नवपरिणीत शालामित्रने परि वारें परिवस्यो थको रामति क्रीडा करतां जिहां जती घणा वैठा दीठा तिहां हावी वैठा तेहवे शालामित्रे हसी कह्यो महात्मन् ए तुमपासी दीदा लैजे एहने दीकाद्यो तेहवे साधुयें कह्यो शम्हे न जाणुं गुरू जाणे तो तुम्हे अम्हने गुरु देखाडो शिष्ये पुरुष देखाच्या तिहां आवी बांद्या जिहां शालो हंस्यो नगवन् एदीदालेसे हास्य मिसें वारवार कह्यो एतले गुरुने रोष ऊपनी तत्काल पकडकर लोच कीधो एहवे शालामित्र प्रमुख विषाद पाम्या अम्हेतो हंसतां कह्यो तो गुरुएं रीसवसे सांचो कीधो शाला मित्र प्रमुख नांसी गया तारे नव दीक्षित सुशिष्ये कह्यो नग वन् ! इहां रहतां तुमने सुख नही हमारा सगा स्वामी तुमने दूहबसे तेनणी अनेथी जइये तेहवें गुरु रीसवशथकी कह्यो रेपापिष्ट दुरात्मन् किणे कह्यो तूं दीदा लेजे एहवे शिष्ये दमा करी चरण
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नमी कहे तहन्ति स्वामी पर रहवो युक्त नथी, गुरु कहे रेदुष्ट ! रात्रिने विषे चलाये नही तिवारे शिष्य कहे माहरे स्कंधे वैसो गुरु स्कंध ऊपर वैसी रात्रें बिहार कीधी मार्ग चालतां पगऊंचानी चापले तिबारे गुरु शिष्यने मस्तके प्रहार करे तारे शिष्य प्रापणो दोष देखे हुं पापीयें गुरुने दुःखमां पान्या इममा करतां शुभचिंतवतां गुरु ऊपर धर्म मोह करतां केवल ज्ञान ऊपनो सुरू मार्ग देखवाथी गजगति चालवा लाग्यो तिवारे गुरु बोल्या सही मार सार केहबो सूधी गति चाले के शिष्य कहे हां जगवन् तुम्हारे प्रसाढ़े सर्व देखेंबुं त्रस सूक्ष्म नी खवर पडेबे तिवारे गुरू कहे ही शिष्य ! स्युं कोई ज्ञानातिशय ? हां स्वामी ज्ञान गुरु कहे प्रतिपातीकी प्रतिपाती शिष्य कहे अ प्रतिपाती एह सुणी गुरुयें चिंतव्यो एकेवली थयो हा ! मैर्भूको काम कीधा केवलीनी आशातना की धीतिबारे खंधा थी ऊतरी पगे लाग्या खमाव तां जली जावना जावतां गुरुने केबल ज्ञान ऊपनो एहत्रा शिष्य जोइये आपणो ने गुरुनो कार्य साधे ॥ इति चारुद्राचार्य कथा ॥ १ ॥
साधुये विषयादिक अनाचार मूंकी सुरू आ चार ग्रहण करबा, तेऊपर दृष्टांत त्रणभूतनी कथा कहीबे, वीतभय पाटणे अशिव मारी उपने हुते उदयनराजा कन्है त्रण मंत्रवादी याव्या, राजाये
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बोलाव्या तेहवे तेणे कह्यो शम्हे मंत्रवादी मंत्र वले १ भूतशावे ते नंगर मांहि नमे अशिव मृगी शमावे , तिणे राजा पूयो तुमाराभूत के हवाडे, तारे पहिलो मंत्रवादी बोल्यो राजन् ! माहरोनूत शतिरूपवंत सिद्धबे पणि ते भूतने उंची दृष्टकरी साहमुंजोवे ते मरे, भूतने देखी नीचा होवे तेहना रोग जाय निरामय थाय, एबचनसुणी रा जायें ते विसा एहनी खप नथी। बीजो मंत्रवा दी बोलाव्यो तेकहे माहरोन्नत अतिही कुरूप के पिण तेहने देखी हसेनही अनेस्ततिकरें ते नीरो गहुवे जे निंदाकरे ते मरे, राजाये ते पणि विस ज्या ॥२॥त्रीजो मंत्रवादी बोलाव्यो तेकहै महारो भूत कुरूप पणि रूडीदृष्टे तथा पाडूई दृष्टे साहमो जोवे तथास्तुतिकरे निंदाकरे तोपिण तत्काल रो गथी मूंकाय एवचन सांजली राजा संतुष्ट थयो अने राजाय ते पंडित मान्यो तेणे नगरमांहिथी रोग दूर कीg, ते जे साधुहोय ते त्रीजा नूतनी परे स्तुति अनें निंदा आपणी सांभली रोगद्वेष नक रवो, जैरागद्वेष न करस्ये ते त्रीजानूतनी परे पूज्य थासे, इति त्रणभूतकथाः ॥ २ ॥
इंद्री दमेथी सुख अपजे अथवा व्रत सुहपाले थी सुख ऊपजे तेजपरे चोरोंनी तथा चोरना ना यकनी रात्रिभोजननी कथा कही नायके रात्रि नोजन न कया तो सुख पाम्यो वाकीरा सर्व मरण
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पोयो ॥ ३ ॥
संयममां जे मदमस्तथई इंद्री नही गोपै ते दुख पामें तेऊपर सेचानकहाथीनी कथा कहीजे, जेमसे चानके तापसनो पाश्रम पाडेथी परवसपणुं पो तेज पाम्यो ॥ ४ ॥ क्षुधापरीसह ऊपर हस्तमित्र तथाहस्तभूतमुनि बेऊ बापतीकरानी कथा कहीजे, विहारकरतां अटवीमां बापनेकांटोलाग्यो चालबाशसमर्थ थयेथीतिहांज अणसणकीधोतारेकीकरो चाकरी करवामोह लीधो पासनो पासे रह्यो पिता शुभ परिणामे चवी देव ता थयो पणकीकरो नजाणतो घणा दाफा बेठो रह्यो भूख्यो तरस्यो पण फलादिकनो आहार न कीधो पडे पितानो जीव देवतायें आवी सजतो
आहार करायोडे ॥ ५॥ ॥ ॥ ___ तृषापरीसह ऊपर उजेण नगरीना धनमित्र से ठनी कथा कहीजे, वैरागपामी धनमित्र पोताना बेटा सहित दीक्षा लीधी एकदा विहार करतां बेटा ने तृषा लागी तारे पितायें आनदी मांथी पाणी पीवो पबे शालोयणा लीजो पण बेटे काचो पा णी न पीधी तृषा वेदनाएं शन परिणामे चवी देवथयो पजे आवी पिताने प्रतिबोध दीधो जे साधुये काचो पाणी पीवानो आदेश देसो नही६
शीत परीसह ऊपर नीजद्रबाहुस्वामी ना चार शिष्यनी कथा कहीबे, राजगृह नगरना वसना
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रा चार वाणिया मित्रहता तेणें साथे दीक्षा ली धी चारित्रपालतां एकदिने चारजण वैनारगिरीथी मोडाथका नीकल्या गाममां आवानणी तेने मार गमां शावते सूर्य अस्त पाम्यो तिहां कायोत्सर्ग ऊभा रह्या रातें ठाढ अतिशयपडी ते वेदनाथकी चारे कालने प्राप्तहमा शुन्न परिणामे चवी देव लोके पोता तिम सर्व साधुएं शीतपरीसह सहवो ७ उन परीसह ऊपर अरणक मुनीनी कथा कहीछे, तगर नगरना दत्तसेठे पोतानी भद्रास्त्री तथा पर णक सहित ही दीक्षा लीधी चारित्र पालतां दत मुनि देव थयो पढे शरणकमुनि चारित्रथी चूकी बार वरस सुधी एकसेठने घरे रह्या संसारी सुख नोगव्या पकेमाताने वचने प्रतिवोधपामी अगन धगती शिला ऊपर शणसण करी उन परीसह सही शुन्नन्नावे चवी देवलोके पौता ॥ ८॥ ॥
डांस मसा परीसह ऊपर चंपा नगरना श्रमण नद्र राज ऋषीनी कथा कहीजे, जे तमुनि एकदा प्रस्तावे एटवीमायें कायोत्सर्ग रह्या तिहां डांसा नो उपद्रव शती थयो तेणे शरीर माहें केद कीधा पण साधु निश्चल नावें रह्या तिहां नरकनिगोद ना दुखनी विचारणाकरी थिरचित्ते काल करी देव थया ॥ ९ ॥
अचेलपरीसहऊपर सोमदेवमुनिनी कथाकहीछे, एकमुनियें कालकीधो तेने दागदेवाअर्थे लेई जा
समानाAIRAMA
RAHAmari
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तां रस्तामा सोमदेवमुनिनो धोतियो नीकलीपन्यो नग्नथई रह्यो तोपण मुनिना कलेवरने मूक्यो न थी अथवाकोई साधुना कपडाचोर लूटीले तोतेने ऊपर रीसनकरिये श्वस्त्रपणे स्थिरचिते रहे॥१०॥
शरति परीसहऊपर वोधिदुर्लन्न साधुनी कथा कहीजे, उजैणनगरीना राजानोपुत्र तथा पुरोहित नो पुत्र एबेजणा लठहुता जेसाधुआवे तेने उपसर्ग करेतहवे तेराजानो नाई सारचंद्रमुनि श्राध्या तेने पणउपसर्ग कस्यो तारे मुनिएं प्रतिबोधवा अर्थ बेहू कुमारने पककी सांधां उखेलीनाख्या तेथी महावे दना ऊपनी पजे दीदालेवानो कबूलकरावी साजा कस्या बेऊनेदिदादीधी चारित्रपाली देवथा पछे बेऊ देवत्रीसीमधरस्वामीन वांदवागया तिहां पुरो हितना पुत्रना जीवदेवने पूबैथी भगवंतेंकह्यो जे तू बोधिदुर्लन अनेआवतानवे कोसंबी नगरीयें मंकसेठना भाईपणे होईस तिमजाणी ते देवताएं घणाद्रव्य मूकसेठने आपीनेकह्यो जेरुतम्हारोभाई थाइस भनेमुने श्रीजिनेंद्र बोधिदुर्लभकह्योबे वास्ते तुमे मेनतलई मूने धर्मपमाडजो इमवचन लीधो पढेकालकरी अपनो तेनूं नाम बोधिदुर्लनदीधो मूंकष्टी चारित्रपालने देवथयो ज्ञानकरी भाई नोसंबध जाणी बोधवाशावे पणतेबऊनही घणा रोगउपजावे दीहादेवरावी शांतिकरे पणपाकोचा रित्रमूंकी आपे एम वारंवार चारित्रमूक्योडे बडदेव
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ताएं पूरवलोसंबधकही स्थिरकस्यो चारित्रपालीदे यथयो ॥ ११ ॥
॥
॥ स्त्रीपरीसहऊपर नीस्थूलनद्रस्वामीनी कथाकही बे, एवातप्रसिद्धब तेथी विस्तारपणे लखीनथी १२
चर्या परीसहजपर दीणजंघाचार्य तथा दत्तमुनि शिष्यनी कथा कहीजे, कुल्लाकपुरनगरनेविषेदीण जंघाचार्य वसे दुर्निदजाणी सर्वशिष्यने जुदाजदा स्थानके राख्या ते चेलाएं पोतानामनमां विचास्यं जेगुरुतो एकस्थानेवासी प्रमादीहयोडे एकदाप्रस्ता वे गोचरीय शिष्यगयो शाहारमल्यो नही एहवा मा एक ब्यवहारीयाना पुत्रने भूतप्रेतलाग्यो तेणे मंत्र जत्रेकरी तेने पासेथी आहारलई खाधो एहवो अनाचार देखी नगरदेवताएं कह्यो जे रेनिर्गुण ! पोतानी नूलतो तूंदेखतोनथी गुरुमहागुणी तेने
रेबे एमकही समकाच्यो जिम स्थिरे चर्या परिसह होय तेम सहवो ॥ १३ ॥ ॥
सह्य परीसहऊपर कुरुदत्तमुनिनी कथा, हस्ति नापुरवासी कुरुसेठनोपुत्र कुरुदत्त गुरुपासेथी ध र्मपामी दीवालीधी एकदिनेअटवी काउसग्गेरह्यो तेहवामां एकचोर कोईनी एकगाय चोरीनेनीकल्यो ने तेनापाकले तेगायना धणीआव्या तेणे साधने पूछयो जेकोईपुरुष गायलेई जातोदेख्यो? साधुए कांई जबाबदीधो नही मौनपणे रहना तेथी तेने रीसचढी तेथी माथाऊपर माटीनी पालबांधी तेमा
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हे धगधगी अग्नीभरी मुनियें दमाकरी चारआहार पचख्या केवलपामी मोक्षपोचे एहयो सहन परीसह कुरुदत्तमुनियें सह्यो तेम सहयो॥ १४ ॥ ॥
स्थानक परीसह, कौशांबीनगरीयें जिनदतबा रणवसे तेणे सोमभूति आचार्यपासे पुत्रसहित दी कालीधी तेबेऊ साधुबापडीकरा विहरतां उजेणी नगरीयेंाव्या पारणादिने वीरवागया गोचरीकर तां एकगृहस्थना घरथी ओसावणमल्यो तेनो आ हारकीधो तेथी व्यथाजागी तेथीवैराग पामी नदी मां जई एक लाकफापर शणसणकीधो कर्म योगे नदीनो पूराव्यो तेबेऊसाधु लाकडासहित तणा णा तेपरीसह खमतां गन्नध्याने कालकरी देवथया मरणांत कष्ट शावीपडे तोपण स्थानकमंकी जीव वचावो नही ॥ १५ ॥
॥ आक्रोश परीसह ऊपर अर्जुन मालीनी कथा, राजगृहनगरमां ते रहतो हतो एकदा ते पोतानी नार्यास्कंदनी साथेंयनी पूजाकरेके तिहांछजणा दृष्टवेठाहता तेणे अर्जुनने बांधीनेतेनी स्त्रीसुंनोग करवामांन्यो अर्जुनेयदनो ध्यानकीधो तेसहायथ यो बंधनतट्या तेणे स्त्रीसहित बोजण मारी ना ख्या परोज बपुरुष एकस्त्री मारतो फरे पजे घ णाकाले सुदर्शन सेठनावचनेकरी लगवान् श्रीम हावीरस्वामी पासे दीदवालीधी पप्रन्नुना कह्या प्रमाणे तेजनगरीमा एकएकद्वारे त्रणत्रण मास र
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हीने लोकोंनी मारकूट गालीगलोचा कमाकरतां कर्मपात्री केवल पामी मोक्षपौंता ॥ १६ ॥
बध परीसह ऊपर स्कंदका चार्यना शिष्यांनी कथा, सावत्थी नगरीनो जितशत्रुराजा तेनोपुत्र स्कंदककुमरे वैराग्यपामी पांचसे शिष्यसहित श्री मुनिसुव्रत स्वामीपासें दीक्षा लीधी बेहार करतां पोतानी बेन पुरंदरयशा दंडकराजानी राणी तेनेप्र तिबोधवाने अर्थे दशकदेशे गयो तिहां तेनो पालक नामाप्रधान राजाने उलटोसमळावी पांच सेसाधुन घाणीमा पीडी नाख्या पण साधुसर्वेक्षमायें अंतगड केवल थर्ड मोक्षगया एकस्कंदकाचायें क्रोधकररी मरणपामी अग्निकुमार देवताथई राजाना सर्वदे शवाली नस्मकस्या तेम नही करवो शिष्योंनी परे दमाकरवी ॥ १७ ॥
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याचना परीसहऊपर वलजद्रमुनिनी कथा, श्री नेमनाथना वचने जाण्योके द्वारकानगरीने द्वैपायन ऋषीनो जीव अग्निकुमार थईने बालसे ने कृष्ण जीनूं मरण जराकुमरने हाथथाशे इमजाणी घणी धर्मदलाली करी घणाने दीक्षादेवरावी अंते द्वार कानो दाहथयो तारे कृष्णबलदेवने जीवता मूक्या ते एकाएक पोतना कुटुंबपरिवारने बलतो देखी घणाज दलगीरथयी वनमांगया तिहां कृष्णजी ने तृषालागी तारे बलदेव पाणीलेवा गया क्रुघ्न वृक्ष नेनीचे सूताचे तेहवामां जराकुमारे सिंहजाणीबाण
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मास्यो तेथी मरणपामी त्रीजे नरके गया बलदेव आवी पाणीपावे तारे नपीताथका रीसाणोजाणी माहनालीधे खांधलेई फरे मुयोनजाणे पळे सार थीना जीव देवताएं घणां दृष्टांत प्रापी प्रतियो ध्यो दीकालीधी बोरवा गाममां बलदेवमुनि जाय तारे तेनं रूपदेखी थणी स्त्री वेहा मोहपामे तेथी गाममां जावो बंद कस्यो जंगलमा एक मृगलाना साहाय्यथी पारण दिने आहार पाम्यो एकदा सु थार वोरावता शुननावे ऊपरथी वृकनी डार अ धकापीत्रुटी पी मरण पाम्यो पांचमे देवलोके गयो ॥१८॥ ॥ ॥
अलान परीसहऊपर ढंढणमनिनी कथा कहीजे, पूरव नवें पांच से सातीणा ऊपर मुखतियारहतो तेनुं जमणावे ने छोडवायूँ ठामआव तार फरी पो ताना खेत्रमा थोडीवार खेडकरावी जमवानी खा वानो अंतराय नाखे तेथी कर्मबांध्यो ते इणलवे उद यशाव्यो तेथी पोतानी लबधीयें आहार मले नही घणादिन बीतीगया कायात्मा जाजरी थईगई एक दाप्रस्तावे कृनमहाराज श्रीनेमनाथस्वामीने पत्रो १८००० साधुमां कोणसऊथी तपमांमोटोले?प्रन्नु ये कह्यो तुम्हारोपुत्र ढंढणमुनि पाबा गाममांपा वता ढंढणमुनि सामेमल्या तारे हस्तीपरथी उतरी त्रणप्रदक्षिणा कृघ्नंदीधी तेथी एकत्रावके मोटामनि जाणी सूजलो आहार वोराच्यो तेल्यावीने श्रीनम
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जिनने पूग्रो तेणें कहगो कृतनी लब्धं शाहार म ल्योबेतेाहार नहीकस्यो परठवता मोदकचूरता क र्म चूरी केवलपाम्या एमबीजा मुनिये परीसहसह वो ॥ १९ ॥
॥ रोगपरीसह ऊपर कालमुनिनी कथा कहीबे, म थुरानो राजकमार काल इसेनामे दीक्षालीधी पडे शरीरमांरोग ऊपनोते मटाडवा शर्थ तेनी बने शा हारमा ओखदनाखी वोराव्यो मुनिये ओखदमिनि त शाहार जाण्यो काया असारजाणी न वावस्यो शणसण कीधो तेहवामां एकवेरी देवतायें सियाल न रूपकरी मुनिने खावालाग्यो तेवेदना तथा रो गनी वेदना कमा सहित खमी कालकरी देवता थयो ॥ २० ॥ - वस्त्रपरीसह ऊपर मद्रमुनिनी कथा, मथुरानो राजकुमार नद्रमुनि अनार्यदेशमा गया तिहां एक दुष्टे कपमा जाझीलीधा मुनिये कमाकरी शीत उच्न खमता केवल पाम्यो ॥ २१ ॥ ___ मलपरीसह ऊपरकथा, चंपानगरीनो सुनंदाना मे सेठ दानेसरी पण साधना मेला कपडा देखी टु गंबा करे तेथी कर्मबांध्यो तिहांथी मरी कोसंबीये एकसेठनो पुत्रथयो पणशरीरे महादुर्गंध थई धर्म पामी दीक्षालीधी तपस्याकरी दुगंछाकर्म खपाच्यो पण देवताएं शरीरसुगंधी करवा कहयो ते कबूल कस्यो नही ॥
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सत्कारपरीसह, मथुरानगरीमा राजानो पुरोहि त जैनधर्मनो द्वेषी पोताना गोख नीचेथी जेसाधु वटाये तेने माथा ऊपर लातमारे महापुरुष कांई बोले नही एकएक साधुने लातमारीते एक श्रावके दीठो तेने रीसचढी तेणे कोई मुनिनेपूबी वाकब थयो जेदाने राजाएना घरे जमवा आव तेदाडे रा जानो हाथपकडी दरवाजा बाहर ऊन्नो राखबी ने कहवो जे राजन् ! दगोबे अंदर जासोनही तेटला मां पुरोहितनं घरपझसे तम योग बनेथी तेमनी पy राजासेठ ऊपर राजीथयो पुरोहितनं पकडी बहीनाखी सेठने प्रधानथाप्यो राजा धर्म पाम्यो पबे पुरोहित सनासमक्ष मुनिना पगधोई पीधा तारे जीवतो मंक्यो सेठेपातानी प्रतिज्ञा परीकीधी पणमनीने कमाकरी तेम करवी ॥ __ प्रज्ञापरीसह, उजेणीनगरीएं कालकाचायें पांच से चेला प्रमादीजाणी मूकीने सौवरणन्नौमे पोता ना मोटाचेला सागरचंद पासेगया तेणे नोलखी आदरदीधो नही गुरु तिहारह्या सागरचंद रोज पबे जेमारी प्रशंसा घणीने के नही तम्हे सांमली के नही? गुरुकहे हां तम्हारी घणीप्रशंसा लोकमां डे पण गुरु घणा गंन्नीर छता पोतानी ओलखाण तथा ज्ञानगुण बतावी छहंकार नकस्यो ।
शज्ञानपरीसह, एकशाचार्य शिष्योने पाठदेतां कलेशपाम्यो तेथी एहवो विचास्यो जेमूरख पणा
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मासुखबे ज्ञानतो दुखदायक तेथी ज्ञानावरणी कर्मबांध्यो बीजेभवें वैराग्यपामी दीवालीधी पण ज्ञानावे नही गुरुपासेथी पूर्वनवनो वृत्तांत सां नली बारवरस आंविल तपकरी कर्मखपाव्यो ज्ञान नही छता पण चारित्र {क्यो नही केवलपामी सर्व दुःखथी ब्रूट्यो ॥
॥ दर्शनपरीसह, नमीपुरनगरमां आषाढाचार्य व से तेणे घणासाधने नणाव्या गुणाव्याने जेधणसण करे तेनेकहे जेतम्हे देवताथाबो तोमुनेशावी देवप णाना सुखकेहजो पणकोई आव्योनही तेथी एहवो जाण्यो जेदेवलोकबेजनहीचारित्रपालीफोगटकष्ट करवामां काई फायदोनथी तेथी घरभणी चालता थया तारे एकचेलाना जीव देवतानं आसणकांप्यं ज्ञानथी गुरुनो वृत्तांतजाणी तुरताव्यो बकाये छ छोकरा विकुची गुरुनेकष्टमा पाडी पळे पोता स रूप कही चरित्रमा स्थिरकस्यो इमचूकबोनही पडे निश्चलमने चारित्र पाल्या तेम पालवो ॥ अथ त्रीजा अध्ययने दस दृष्टांत कथा,
गाथा। चुल्लगपासगधरले जूयेरयणेयसुमिणचक्कय । चम्मजुगेपरमाणू दसदिछतामणुयजमे ॥ १ ॥ चुल्लक दृष्टांते ब्रह्मदतनी कथा, ब्रह्मदत्त चक्री एकब्राह्मणने ऊपर तुष्टमानथयो तारेतेणे माग्यो जेतम्हारा घरथकी मांझी ३२००० देससर्व मुझने
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जमाडीने एकमोहर आपे चक्रीयेते हुकुमकस्या हवे ब्राह्मणपबताए जेपाछे चक्रीनाघरे जमवानो वा रोकधी आवसे तेम मानवनवपाको शाववो कठि णके, ब्रह्मदतना पाबला नवनी कथा कहीले बे नाई गोबालियाहता तेणेदीकालीधी पण नाहवा धोवायन्यानी दगंबाकरी तिहां नीचगोत्र बांध्यो बेत्रणनवकरी एकचंडालने घरे ऊपना चित्रसंभू तनामे बेनाईथया नण्यागण्या पण कुलनीचथी सऊ तिरस्कार करे तेथी ग्लानी पांमी जंपापात खावा एकपर्वत ऊपर गया तिहां मुनिमल्या तेणे समकावी दीदादीधी वारप्रकार तपकरता प्रतापी थया एकदा सनत्कुमारचक्रीनासहरमांसाहारलेवा आव्या तिहां नमुचीप्रधान दीठा तिरस्कार कस्यो तेथी संनतीने क्रोधचढ्यो तेजोलेच्या मूंकी गाम बलवालाग्यो तारे चक्री ऋद्धिसहित खमावा आ व्यो तेऋद्धि जोई निमाणोकरी ब्रह्मदतथयो मरी ने सातमी नरकेगयो अंतेमोद जासे ॥ १ ॥ __ वीजोदृष्टांत पाटलीपुरनाराजा चंद्रगुप्तनो प्रधा न चाणक्यनी कह्याके, तेकमजे चाणक्य पुरोहितनो पुत्र तेवतीसदांतसहित जन्म्यो तारे बापें तथा मायें असुनजाणीते दांतघंसावी नाख्या पजे एकमु निने पकतो तो मुनियेकह्यो जेदांत न घंसाच्या होतातो राजाथातो पण प्रधान तो थाशे तारे मा बाप पबतावा लागा पण जेदांत घंसावी नाख्या
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RITamaniammOREIGNREVERNMOHAMPARAN
DIREGNNEmmernamaAMRITERARETIRITTA
तेनाते दांतपाका किहांथीपावे तम मनुष्य जन्म पाबो पामवो कठिण तथा चाणक्य प्रधानने एक देवताये पासोआप्यो तेकोणधी जिताएनही तेम मनुष्यजन्म पाबो मलको कठिणजे ॥ २ ॥
त्रीजो दृष्टांत, जिमकोई देवता जंबद्धीप मांहि जतला धान्यनी जातिले तेनो पंजकर मरुपर्वत थ की ऊंचा पिहुलाढिगलाथाय सर्व एकठाकरी एक ढिगकरी तमांहि एकपायली प्रमाण खासखसना दाणाघाली घणावलद एकठाकरी गाहावे तिमकरे जिम एकधान्य जातीना बीजोकण नदीस पडे एक असीबरसनी गरढीने हाथें जना नांगा सूप थी तेखासखसना दाणा प्रलगा नहोय तेम मन ध्यभव पाबो मलवो कठिण जे ॥ ३ ॥ _चौथो दृष्टांत, वसंत परनो जितशत्रु राजाले तेनेपत्र घणाबे तेराज्यअर्थ आपसमा लडे तारे। राजाये वृद्धि केलबीने कह्यो जे एक हजार आठ थंना तेमा तेतलाज हसबे तेजवांयेकरी एकरम ते एकहंस जीतवो इमसर्व हस निरतरेकरी जेजीत से तने राज्यमलसे तेघणी मेहनतकर पण एकहजार आठवार कोईनीजीत नथाय पणते तो कधीदेव योगेथाय पण मनुष्यजन्म पाडोपामवो कठिणजे
पांचमो दृष्टांत, कोईलोनीय घणीमेनतथी घणा रत्नकमायाहता तेपोते बीजाएक गाममांगयो पाबे छोकराये देसावरना शावेला बेपारीन हाते तरत्न
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वेचाताआप्या तेबेपारी जुदेजुदे देसे जाता रह्या पबे घणादाने तंबूढोआव्यो तण बोकराने कह्यो म्हारा कह्या बगर केमयेच्या पाबालावी आप ते कमशावे देवसाहाय्यथी कधीपावे पणमानवनव शववो कठिणके ॥ ५ ॥ - बठी दृष्टांत, उजेगी नगरीनो राजा जितशत्रु तेनोपत्र मूलदेव तेव्यसनी तेथीकाठी मंक्यो भ्रम तांभ्रमतां एक धर्मशालामां सूतो तिहायोगी गुरु चलापण सूताहुता प्रन्नाते सुपनलाधो जेचंद्रमापूर णकलाये मुखपैठो तेहवोज सुपन तेचलाये लाधो तेणेपोताना गुरुने पूग्रो तोकह्यो आज लाया मलसे नमूलदेव फलफूललेई सुपनपाठकने पूको तेण कह्यो म्हारीपुत्री परणेतो फलकहुं तेणे कबूल कया तारे कह्यो सातमेदिन राज्य मलसे तेमज राजमल्योने योगीना चेलाने मारपसी तार पकता व करवालागो जेमुने पण एहवो सुपन मल्यो मै फोगट गमाव्यो हवेफरी सुपन आवेतो न गमावं पगते आववो कठिण तेम मानवभव प्राववो क ठणबे ॥६॥
॥ सातमो दृष्टांत, राधावेध साधवो कठण के कधी कर्मयोगे एकवार साधे पण वारंवार नसधाए तेम मानव नव वारंवार नहीं आवे ॥ ७॥ ॥
पाठमो दृष्टांत, कोई मोटो द्रहजे तेना ऊपर सायरगुण छायोडे एकदा वायरा योगे एकठेकाणे
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विखराई गयो सारे काजवें नदात्रमंझल अपूर्वदी ठो तेने देखावा कुटुंबने तेडवागयो तेटलामां पा छो पुराईगयो हवे एहवो बीजीबार योग कठिण तेम मानवनव मलवो कठिणके ॥८॥ ॥ __ नवमो दृष्टांत, कोईदेवतायें जूसरी समुद्रनापूर्व कांठेनांखीने समेल पश्चिम कांठेनाखीए पोते केम भेलीथाय तेम मानवनव गयो पाडो पामवो क ठणछे ॥ ९ ॥
दसमो दृष्टांत, कोई थांनाने भांजी अतिकीणो शाटो करी मेरू ऊपरचढी वायराजोगे तथा देव शक्ते उदारी नाखिये तेपाबो आटो भरोकरी थांभो हतो तेहवो बनावा चाहोतो बनवो कठिण तम मानवनव मलवो कठण ॥ १० ॥
अथ सातो निन्हवनी कथा संक्षेपे लखियेबे ॥ - पहिलो निन्हव, श्रीमहावीरस्वामीनी पुत्री प्रिय दर्शना तेनोपति जमालीनामे तेणे वैरागपामी दी कालीधी पडे (कयमाणक) एहवो वचनउथापी घणांजीवोने भरमाव्यो तेथीमरी किल्बिषियो दे यताथयो देवतामां चंकालनी जातिमां ऊपनो आ गे घणो भमसे ॥ १ ॥
॥ ॥ बीजोनिन्हव, तिष्यगुप्ताचार्य शंत्य प्रवाद पर्व नणतां (एगेभंतेजीवे) एआलायो नणतां शंकाऊप नी जेसगला प्रदेशाजीबना एकठा मलेथी जीव क हिये एक प्रदेशऊणे होय तहासुधी जीव नकहि
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ये एबे निन्हव श्रीमहावीर छते थया ॥ २ ॥ । त्रीजोनिनाव, श्रीवीरस्वामी पाजे २१४ वर्षे स्वे तांवरीनगरीये आपाढाचार्य शिष्यने पाठदेतां आ चबुच मरणपाम्यो देवताथयो मोहथकी तत्काल पाका तेजकायमा प्रवेशकरी पूर्वनीपरें चेलाशने नणाव्यो पजे एक मोठाशिष्यने पोताना पाटे था प्यो ने पोतानो वृत्तांत कही देवलाकेंगयो पछेस र्वसाधने चिन्तभम थयो जेप्राचार्य जिम पोताना शरीरमा प्रवेश करयोहतो तेम बीजाकोई साधए कस्यो हस्ये तोकोणजाणे तेथी कोईकोईने वांदे नही अण वांदता विचरे पडे राजगृह नगरीना बलन्नद्र राजायें कष्टमां पाडीने धर्म पमान्यो ॥३॥
चौथोनिनाव, श्रीमहावीर पजे २२० वर्षे अश्व मित्रनामे शाचार्य थया तेने दणक्ष्यवाद ऊपनो पूर्वन्नणतां प्राचार्य घणा प्रतिबोध दीधा पण बो ध्यो नही ॥ ४ ॥
॥ पांचमो निनाव, श्रीमहावीर पजे २२८ वर्ष उ लकानदी तटं खटकनगरीमा धनगुप्त आचार्य चौ मासे रह्याने चेलो गंगाचार्य नदीनेपेले काठे रह्योते संवत्सरी खामणा करवा गुरुपास शावते कल्पना ऊपनी (युगवंदो नत्थिउवयोगा) एकेवारे बेउ पयोग नहोय झंतो एकसमये बेउपयोग जाण एम मतिनी धारणाकरी गुरुपासे आवी वांदीने तुरत प्रश्नपूछो गुल्ये मीठे वचनेघणुं समझायो पण
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नमान्यो मत चलाव्यो ॥ ५ ॥
बठो निन्हब, श्रीमहावीर स्वामी पछे ५४४ वर्ष अंतरंजिका नगरीमा श्रीगुप्ताचार्य तथा तेनो चेलो रोहगुप्तहता एकदा एकजोगी शव्यो ते अ भिमानें पेठऊपर लोहानो पाटोबांधे जे विद्याथी पेटफटेनही राजाने पासेावी केहवा लाग्यो जे कोई विद्यावंतहो तेने वादकवाने तेडो तारे राजा ये गप्प्राचार्यने बोलायो तेपोते गयानही पण रोह गुप्त चेलाने मोकल्यो ते योगीने जीतीने आव्यो तारे गुरुये पयो केमजीत्यो तेणेकह्यो जीव थ जीव तथा त्रीजी नोजीवनी प्ररूपणाकरी जीतो तारे गुरुये कह्यो नोजीवनी थापनाकरी तेउत्सत्र बोल्यो वास्त आलोयणाले तारे गुरुसामे वादकर वामांन्यो घणोमीठेवचने समकाव्यो नसमऊयो म तचलाव्यो॥६॥
सातमो निन्हव, श्रीमहावीरपडे ५८० वर्षे आ र्यरदित सूरीथया तेना त्रणचेला गोष्ठामाहिल त था फल्गुरदित तथा दुर्बलिकापुष्प एत्रण एकदा प्र स्तावे मथुराना संघना आग्रहथी आचार्य गोष्ठा माहिलने मथुरायें चोमासो रेहवा मोकल्यो पाबे शाचार्य काल अवस्थाजाणी संघसमक्षेपोतानापाठे दुर्वलिकापुष्पने स्थापी पोतेदेव थयो, चोमासो बी त्याप गोष्ठामाहिल शब्यो तेने आचार्य पद न मल्याथी द्वेषऊपनो मतस्थाप्यो जेकर्म जीवने फर
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शीरह्याबे पण जीवना प्रदेशाथी फरशी रह्यानथी जेम शरीरऊपर वस्त्र शानूषणपेरीयेने शरीरने फर शीरहे पण शरीरना माहेला प्रदेशथी फरशे नही तिम ने जोकर्म जीवना प्रदेशथी फरशीरह्या होय तो यथायेजनही एहवो मतथाप्यो ॥ ७ ॥
एमवली एकाठमो निन्हब, श्रीमहावीर पडे ६०९ वर्ष कालिकासरिना चेला सहस्रारमल्ले जि नकल्पविहार मतथाप्यो दिगंबरनामे रथवीरनग रमां नयसारराजा तेने सहस्त्रारमल्ल उमराव हतो तेएकदा व्यसनी पणाथी घरे घणीरात्रगये आव्यो तारेस्त्रीये व्यषननी ठेव मुकावामाटे कमाऊ खोल्यो नही तारे रीसमां आवी पाबो फरी उपाश्रयना कमाड खुलादेखी श्रीकालकाचार्यपासे तुरत दी दालीधी घणासिद्धांत भण्यो एकदिने गुरुमुखे जि नकल्पविहारनी बातसांनली गुरुने कह्यो वं एम करूं गुरूंये कह्यो जेदस वस्तु पंचमकालमां थाय नही ने बने पणनही मनपर्यवज्ञान १ परमअवधि ज्ञान २ पुलाकलब्धी ३ आहारकशारीर ४ दपक श्रेणी ५ उपशमश्रेणी ६ जिनकलपबिहार ७ परि हारविशुद्वि ८ सूनसंपराय ९ यथाख्यात १० एद श पदार्थनबने तोपण गुरुनो वचननमानतो थको कपडासर्वे फैंकीने नग्नपणे विचरबा लागो ने नवू शास्त्ररचीने दिगंबर मत थाप्यो ॥ १ ॥ अथ चोथा अध्ययनमांथी सारीसीकथा,
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पापकस्यांथी सर्वनाशथाय ते ऊपर दृष्टांत, एकचोरें लोकोना घणद्रव्य चोरीने घणो पैसो भेलोकस्यो तेपैसाना बलें नवनवी स्त्रीपरणे ने गर्भ वतीथाय तारे मारीनाखे कारण जे कोई बालक थासेतो म्हारो गुह्यप्रकाश करस्ये ने धननो मालिक थई वेशसे एमकरतां घणीस्त्री मारीनाखी एकस्त्री घणीसारी बती नहीमारी तेणे एक बोकरो जायो ते आठबरसनो थयो एकदाडे चोर तेस्त्रीने मार वामांन्यो तारे बोकरायें पुकार कीधी राजमां खबर पडी चोरने पकफीलेगया आागलोवृत्तांत सर्वजाण्यो चोरने फांसीदीधी धनसर्व लूटीलीधुं कुकर्मना ध नथी एफलथाय एटलो धनछता नरके पडतो कोणें राख्योनही धर्मकस्यो होतो तो राखतो ॥ १ ॥
वीजोदृष्टांत, एकवणिकपुत्रे एकदिने घृतलीधो तेमां २४ सेर ठगीने तोलमां अधिक लीधो तारे घरेकही मेल्यो जेयाज घेवरकरजो बहूयें करचा पण पोते दुकानथी मोडो आब्यो तहांसुधी छोकराये खाई पूराकीधा तारे विचास्यो कर्ममैंबांध्यो ने घेव रकुटुंबेखाधा विरागपामी दीकालोधी अल्पसंसा रीनी एनिसाणी थोडा कारणपरथी वैरागपाम्यो २
धर्ममां जागतो रेहवो तेऊपर अगडदत्त राजकुमा रनी कथा, संखपुरना राजानो अगडदत्तनामे पुत्र महापराक्रमी पण साते व्यसननो सेवणार तेथी रा जाये देशवटोदीधो देशांतर फरतोफरतो बनार
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सीये आव्यो तिहां एक कलाचार्यपासे कलासीख्यो एकदा प्रस्तावे वनक्रीमा करवानीकल्यो एहवामां राजानो हाथीमस्तथई बूटो तेकिम पकाय एह वामां शगमदतें पकझीने बांध्यो राजा पराक्रम जोई खुशीथयो प्रधानपद शाप्यो तेनगरीमा एक चोरवसेजे तेगामने नित्यलटे पण कोईरीते पकडा येनही राजाये बीकोफेरव्यो जेएचोरने फकडशे तेने राज ने पुत्रीआपीश अगादतें धनमालसुधां चो रनेपकन्यो धनमाल सर्ववेची शप्यो राजा प्रजा खुशीथया राजाय पुत्रीपरणावी नेराजाप्यो ए वात पितायें सामली राजी थयो मोडा शाकंबरे तेडाब्यो सुसरानी रजालई पितापासें आब्यो पि ताये राज्याभिषेक कस्यो पोतेदीक्षालीधी ने अशा दत्ते व्यसन सर्वमंकी धर्मपझिवज्यो शाठेपहर ध ममां सावधान रहे शंतेदीदा लेई तपसंयम पा ली मोक्षे पौंच्या ॥ १ ॥ शिदानमाने तेदुखीथाय तेऊपर दृष्टांत, एक नगरने बेहडे एकपंडितरहे तेधनवान बते पोतानी स्त्रीने नित्यकहे शपणेघणी वस्तीमा जई रहिये पण स्त्रीमानेनही एकदा चोर आव्या धन लूट्यो स्त्रीना हाथपगकापी गरेणालीधा मरणपामी तेम जेगुरुनो कह्योनमाने तेने कर्म चोर लटसे ॥१॥
गुरुनी शोना वधारसे नेसुखीथासे तेऊपर कथा, एकबेपारी घरबारस्त्रीन सोपी पोते परदेश कमा
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वागयो पाबेस्त्रीयें धननो नााकीधो साहुकार आ व्यो तारे जोएतो धनमाल इज्जत सर्वेगई पछताव कस्यो पढे साराकुलनी बीजी स्त्री परणी केतला एकदिन रह्यो पछे नान्हीबहूने घरवार सौंपी वेपा र करवागयो तारे तेस्त्री चतुरशीलवती तेणे पाछ लानोज सर्वत्रधारयो साऊकार ग्राव्यो जोई खुशी थयो नान्हीबहूने घरनी अधिकारणीकीधी मोटीने दासी करोराखी तेम जेगुरुनी व्रतरूपलक्ष्मी रा खशे ते दिन दिन सुखीखाशे ॥ १ ॥
॥ अथ पांचमां अध्ययननी कथा ॥ अनर्थदंडे नसर्ज्या दुखउपजे तेऊपर दृष्टांत, एक प्रजापालक वाणविद्या सीख्यो तेरोज बकरी मोंने पाणीपियावतो तलावें बेठी वळवृना पान ने बाणमारे ते वृनासर्व पानमा बींधीनाख्या ते राजकुमरे जोई विचारयो जे आवाणना मारनार साथेमली मोटाभाईना नेत्रे बाणमरावं तोराज मु ऊने मलशे एहवोविचारी अजापालने कह्यो जे माराजाईनी आंखकाढी आप तूनेखुशी करीश ते मूर्खे कबूल कीधी एकदा ते बडाकुमर रेवानी नि कल्यो योगजाणी तेणे बाण मारयो बेऊं आंखे फुटीगई तेनेपकडी वंदीखाने नाख्यो पले नान्हा कुमरने राजमल्यो तारे तेणेविचारयो जेम म्हरा कह्याथी एणे नाईने बाणमास्यो तेमकोईना का थी एमुजने मारसे मूरखमित्र कामनो नही तेथी
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मारीनाख्यो नरकेगयो एम अनर्थदंझकरवो नही १
रीसनाफलनो द्रष्टांत, एकनिखारी राजगृही न गरीमा घणोन्नम्यो पण पूर्वनी अंतरायें नीखमली नही नख घणीलागी तारेक्रोध चढयो नगरी ऊपर घात करवाने इच्छे पोतानो बल नजाणतो वैना रगिरी ऊपरचढ्यो तिहांथी जोयो तो गाम नीचे ठैयो तारे मनमां विचायो जेकदी इहांथी शिला रेडकाऊं तो पापीनगरीना घणाजणा मरणपामशे एमविचारी एकमोटी शिला रडकावी तेने नारेपो ते नीचे आवीगयो कचरी मरणपामी सातमी न रकेगयो महादुख उपायो एमक्रोधकरी कोईनो घात इच्छवो नही ॥१॥
पुण्य विना बुछि पराक्रम तथा सुख ननीपजे तेऊपर दृष्टांत, एक देवदत्तनामे दरिद्री महादुखी तेपरदेशं निदा मांगवानीकल्यो एकयक्षना देव लेजई उतस्यो तेहवामां एकसिद्धपुरुष पण तिहां आवीउतयो तेनापासे एक कामघटले तेणे काम घटने कह्यो अहोकामघट ! एकघरबनाओ तथार सोई पकवानबनावो तथा स्त्री तथा नोकरचाकर बनायो तेसर्वे तत्कालवन्यो देवदत्तबेठो जोये दे खीने अचरजथई सिहपुरुषने पासेजाई पगेपछी पोतानूं सर्वदुखकह्यो तारे सिहपुरुषने दयाउपजी ने कह्यो कहेतो विद्या सीखाऊ साधनकरी काम घट मंत्रीलीजे नेकहेतो आतैयार घट आपूं तारे
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तेणेकह्यो जेविद्यापर मेहनत कोणकरे शाकामघट आपो जेमतुरत सुखउपजे तेसिह घटापी चा लीगयो देवदत्त मनमा अति खुशीथयो एकदिने मदिरा पीईने छाकटोथयो घटने मांथाऊपर लेई नाच्यो तेघठपकी फूटीगयो छाकउतारी जोयो जे घटना कटकाथई गया तारे रोईरोई पबताबा ला गो जेमैं विद्यासीखीहती तो बीजोघट मंत्री लेतो हवे ते सिछपुरुष किहां मलसे एमजेपुरुष धर्मपा मी छोडसे तेदेवदत्तनी परे पबतावसे ॥ १ ॥ __ शतिमीठा आहार दुखदायक तेजपर दृष्टांत, एकदात्री रोज गायदुही बकराने दूधपावे ने बा बराने सूखोघास आपे एकदिने बाबडायें पोतानी माने कह्यो जेतारूं दूध मुऊन आपेनही एनं का रण सूंछे तारे मायें कह्यो शापणे सूखोघास सा रो दूध दुखदायकले एहवामां एकदिने पाहुणो आव्यो तारे तेबकराने तेने खबराव्यो तारेगाये बा कडाने कह्यो जेदेख्या पुत्र ! जेप्राणी रसना ला लच रहसे तेपरमादी परवशपडी बकरानी परे ढखपामसे ॥ १ ॥
॥ रत्न जेहवो नरन्नव केमहारोबो तेऊपर दृष्टांत, एकलोनी वाणियो परदेशथी १००० सोना मोहर कमाई साथनान्नेलो पोताना गामे शाघता रस्ता मां कोई गामडे रात्रेरह्यो सीधो सामानलीधो ते पासे हिसाबमां ११५ कोडीलेणी रहीहसे तेलेवाने
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खूटी रहयो साथना जातारहता एकलो रहयो तेथी लुटाईगयो घणोदुखीथयो धनगयाथी घेलोथयो नवखोयो तेमवृथा नवखोवो नही ॥१॥
जिन राजनी शिदानमाने तेदुखीथाय तेऊपर दृष्टांत, कोई एकराजाने या खावानी प्रेमघणो तथी रोगऊपनो केप्रोप्रकारे मिटेनही एकमोटा बैद्यमिटाव्यो पणएकहनो जेसाज पडे आंबो खा सो मा नेखासो तो मरशो केटलाक दिनगया पबे राजायें बाखादा रोगथयो मरण पाम्यो ॥१॥
लाभे लोनघणो वधे तेऊपर कपिलमुनीनीकथा, कौशांबी नगरीना जितशत्रु राजानो पुरोहित क क्यपनामे मरणपाम्यो तारे बोकरो कपिल पांच वर्षनो हंतो ते मोटोथयो तारे मातानी रजालेई परगामे कोई पंफितपासे नणयागयो घणाशास्त्र भण्यो पण तिहां एकनीचस्त्रीसाथे लंपठथयो तथी खरचबध्यो तारे विचास्यो इहांनो राजा मासोमा सो सोनूंरोज शापे तेप्रभाते लावीस एमचिंता मां सूतो ऊंघशायीने मध्यरात्रे ऊठो प्रजातजाणी तलावन्हावा चाल्यो रस्तामां सिपाहीयें चोरजा णी पकी बंदीखाने नाख्यो प्रनाते राजा पासे ऊनोराख्यो राजाये पबेथी सांचीबात मल थकी मांझी कही राजा तुष्टमानथयो जेमांगमांग मांगे तेापं तारे बिचारवालाग्यो जे केटलामागं एक लाखमांगु तेथीस्थुथाय एमघ्नाबधी राज आखो
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मांगवाधास्यो तारे फरीविचारथयो जेहाथे आपे तेने शाखोखावो ए कुपात्रना लदणके एमविचार ता जातिस्मरण ऊपनं पूर्वनवे चारित्रपाल्यो हतो तेदीठो संसार शसारजाणी तिहां उन्नी लोच कस्यो शासन देवताये वेश प्राप्यो राजाने धर्म देशना दीधी चारित्रपाली केवललईकपिलमुनी मोक्षपौंता
॥ अथ नवमां अध्ययननी कथा , ॥ चार प्रत्येकबछ समकाले देवलोकथी चवीसम काले जन्म्या समकाले दीवालीधी समकालयदाना देहरे वीबेठा समकाले केवललयो समकाले मो क्षपाम्या तेथीचार प्रत्येक बुछ कहबाया तेमां इहां प्रथम नमीराजानी कथा लखूळ ने त्रणनी कथा शागले कहवासे ॥
अवंतीदेशमां अखेपर नगर मणीरथ राजा ते नोन्हानोलाई युगबाहुनामे युवराजपद तेनीस्त्री मयणरेहा सतीजे रूपवंतीजे तेनाऊपर मणिरथ राजायें खोटीनजर राखी प्रीति करवा सारू वस्त्र घरेणादिक नवनवी वस्तु दासीसाथे मयणरेहाने मोकले तेजेष्टने पितासमान जाणीराखे इमकरतां घणादिन गया तारे एकदिने मणिरथ राजाये दा सीसाथे कुशील सेववा कहीमेल्या तेवचन दासीना मुखथी सांजलतां मयणरेहान क्रोधब्याप्यो जेक यो शररएबछी ज्येष्टनी रोज वस्तु मोकलतो हतो तेएजमांटे शजपम्हारामहलभांआवीशतो
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मारीनाखीश एमदासीने भ्रष्टी काढीदीधी तेसमा चार दासीये राजानेको तारे राजाये विचास्यो जेनाईजीवतो बते मुऊनेनही इच्छे एम विचारी युगबाहुने मारवानाबिद्र जोए एकदिन युगबाहु मयणरेहासहित वगीचेगया रात्रेतिहांजरमा ते जाणीमणीरथ मध्यरात्रेपोते एकलोखडलेई वगीचे गयो जिहां युगबाहु सूतोहतो तिहां प्रावीने तेना ऊपर प्रहार कीधो मयणरेहाये दीठो भोलख्यो प तिमरणजोई विलाप करवालागी पण मनने दृढ करी पतिनो मरणकाल सुधारवालागी अनेकप्रका रें धर्म उपदेशकरी पतीनं मनस्थिरकरयं शुनपरि णामे चार प्रहार पचखाव्या कोईऊपर रागद्वेष मकरतो मरणपामी पांचमेदेलोके देवथयो मणी रथ नाईनेमारी गढना धीरनारामांथी पैसी घरे शावालाग्यो तिहां सर्पदंशथी मरी नरके गयो प्रनातेसाने अनरथनीबात मालमपकी तारे मय णरेहाना पुत्र चंद्रयशाने राजगद्दीनो अभिषेक कीधो बनाईनामृतकार्यकीधा मयणरेहायें पति मरणपाम्यो तेजकाले विचाख्यंजे हवेदुष्टम्हारोशील भंगकरशे तेथीनागीने घणादुखसहती कुमागे १ टवीमांचाली रात्रेसागारी अणसणकरी सुई एक लीवनमांपणि शीलनाप्रनावे कोई उपद्रवकरेनही त्रीजेदिने पुत्र प्रसव्यो तेने एक वृदने तलेराखी तलावपर शरीरशुचि करवागई तिहां एकहाथीये
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फालीने शाकाो उबाली तेहवामा मणिप्रत्न वि द्याधर नंदीश्वरद्वीपे जातोहतो तेणे पडतीकाली विमानमांवेसाझी तेविद्याधरें कह्यो तंमने नार करीमान पण तेसतीये युक्तिथी समकाच्यो नंदी श्वरद्वीपेगया जिनचैत्यवांद्या तेज विद्याधरनो पि ता मणिचूफनामे मुनि चारज्ञानना जाण तेपण तिहां चैत्यवांदवा आव्या तेने पासे बेऊगया म निने बांद्या देशनासांभली मणिप्रभे मयणरेहाने बेनकरीमानी अपराधखमाध्यो पछमयणरेहाये पो ताना बेओपुत्रनी हालपूबी मुनियेकह्यो तारोमोटो पुत्रचंद्रयशा मणिरथनी गद्दीये बेठो मणिरथ सर्प दंशथकी मरीगयो नेबीजोपुत्र जेवनमां मक्यो तेने मथुरानो राजा पदारथ लेईगयो ते अपुत्रबतें पुत्रकरी मान्यो नमीराजा एहवोनामदीधो जन्म महोत्सवथइ रह्योछे तारा बेजपुत्र चरमशरीरीने चिंता माकर तेसांनली प्रसन्नथई एहवामां युग बाहुनो जीव देवताथयी पांचमे देवलोकथी या यी प्रथम मयणरेहाने वांदी पमुनिने वांद्यो मु निये वृत्तांतकह्यो मयणरेहाराजीथई जेपति देव ताथयो पते देवताने कह्यो मुनेमथुरा पोहचा को देवें तरंतपोहचाही तिहांसुवृत्तासाध्वी पासे दीवालीधी संयमपालतीरही केतला एकवर्ष पा ने पदारथ राजायें नमीकुमरने राज्यपापी दीक्षा लीधी नमीराजाथयो पजे एकहस्तीना कारणे न
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मीराजा तथा चंद्रयशाराजानी लगाईलागी साध्वी ने खबरपकी जेन्नाईनो सगपण नजाणता पोता मां बेशोनाई लफेडे बेलाखप्राणीनो घात थाशे निवारूंतो सारूं तारे मयणरेहासाध्वीये बेहनाईने संबंध जणावी समकाव्या तारे बेो माहोमाहे मल्या हरखपाम्या पजे चंद्रयशाये पोतानं राज्य नमीने आपी दीक्षालेई मोक्षपाम्या नमीराजा बे हराज्यपालतो हतो तेहवामां शरीरे दाहज्वर ऊ पनो तेदाहमिठवाने अर्थ राणीन नित्यचंदन घसे ते ना कंकणनाशब्दथी राजाने वलीसंताप उपजे तेमा टे एकएक कंकण मांगलीकमाटे राखी वाकीसर्व उतारीनाख्या राजाएं जोईविचास्यो एकाकीपणा मांज सुख वैराग्यपाम्यो धारणकरी रोगमिट्यो दीवालेई केवलपामी मोपैांता ॥ ९ ॥ ॥
॥ अथ दशमां अध्ययननी कथा, ॥ पुष्टिचंपानगरे साल तथा महासाल बनाई राज्य करे तिहां श्रीमहावीरस्वामी समोसस्या वैरागपामी दीवालीधी गांगेयनामे भाणेजने राज्यशाप्यो क तेककालपडे गांगेयराजा तथातेनोपिता पीठराजा तथा सोमती मातासहित श्रीगौतमस्वामीपासे दी कालीधी पडे गौतमसाथे श्रीवीरपासे आवतां र स्तामां अनशन नावनात्नावतां केवलपाम्या समो सरणमांधावी प्रभुनेवांदी केवलीनी परिषदा मां बेठा गौतमेकह्यो रेमूर्ख अठेवेसो तारे प्रनुबोल्या
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एपण केवलीथया तारेगौतम विलखोथयोने पकयो मारेपासे दीदाले ते केवल पामे ने मनकेम नही? पडे प्रन्नुयें कह्यो तुने पण उपजस्ये पके अष्टापद तीर्थनी महिमा प्रभुना मुखेसांभलीने अष्टापदतीर्थ वांदवा गौतमगया तिहां १५०३ तापस प्रतिबो ध्या तथा धनदेवयदाने कुंडरीकपुंडरीकनूं अध्यय न कही समकाव्यूं ॥ १ ॥ ॥ __ मुनिऊपर दुगंछा नकरवी तेऊपर हरिकेशीनी कथा, पुरोहितना छोकरायें मुनिपासेथी धर्मसांन लीने दीवालीधी शुद्धचारित्रपाले पण दगंबाकरे जेसाधनाबेधोवे नहीं मेला कपमा पेरे ते देखीने दुगंकाकरे तेथी नीचगोत्र बांध्यो तिहांथी चवी पहलेदेवलोके गयो तिहांथी चवी मसाणनो रख वाल बलगोठीनामे चंडाल तेनी गोरीनामे स्त्रीन कखेावी ऊपनो कालोवर्ण कुघाट कुरूप थयो यौवन वयपाम्यो तार कोईकारण लोकघणा मल्या तिहां बेसर्पनीकल्या तमां एकविषधर ने एकबमुंह वालो, विषधरने मारीनाख्यो ने बेमंहाने निर्विष जाणी कोईये मास्योनही तेदेखी हरिकेशीये विचा यो विषजे तंजदुखदायकडे एमविचारते जाति स्मरणज्ञान अपनी देवता-नव तथा पूर्व चारित्र पाल्यो हतो तेदेख्यो स्वयंबुछे चारित्रलीधो तपसं यमपाली देवगते पाँच्यो पूर्वनवे जिम दुगंछाकरी तेम करवी नही ॥ १ ॥
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चित्रसंभूतनी कथा, साकेतपुरनो राजा चंद्राव तंसक तेनो कुमर मुनिचंद्र तणे वैरागपामी दीक्षा लीधी विहारकरतां रस्तो अटवीमांभूलो तिहांचार ग्वालीयें मुनीनी चाकरीकरी पमुनिये धर्मप माम्यो दीकालीची तेमाबेजणें हरिकेशीनी परें दुगंछाकरी नीच गोत्र बांध्यो तिहांथी चवी देवताथया तिहांथीचवी एकविप्रना घरे जोडला अवस्था तिहांकर्मयोगे बेहुने सर्पडस्यो तेथीमरी बेजणा मृगधया तिहांकर्मयोगे पारधीमाया ति हांथी चवी बेजणा वगारसीनगरीये मातंगना घरे अत्रतस्था चित्र तथा संभूतनामे बेभाईथया तिहां धर्मपामी दीक्षालीधी घणा तपतप्या तेमां संभूते चक्रीनो निशाणो बांध्यो ते ब्रह्मदत्तनामे बारमो चक्रीथयो चित्रनो जीव देवपणो भोगीने उत्तम कुल ऊपनो चित्रतिनामथयो वैरागपामी दीक्षा लोधी ज्ञानपामी पूर्वभवनो भाईजाण ब्रह्मदत्तने समऊवा आव्यो पण नथी समको तेमरी नरके गयो चित्रभूति मोगया ॥ १ ॥
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॥ अथ चउदमां अध्ययननी कथा ॥ चित्रसंभूतना पूर्वजवना बेमित्र गोवालियाना जवना तिहांथीचवी देवथया तिहांथीचवी क्षिति प्रतिष्ठितनगरमां उत्तमकुले बेजाईथया तिहां बी जाचार विवहारिया साथै प्रीतथई बजणे दीक्षा लीधी चारित्रपाली बयेजणा पहिले देवलोके देव
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ताथया मित्रपणे पवे तेचार जगमांथी एकइषुकार राजाथयों वीजोमित्र तेनी कमलावती राणीथई त्री जोमित्र तेराजानो भृगुनामे पुरोहितथयो चोथो मित्र पुरोहितनी यज्ञानामे जार्याथई नेबेभित्र जे ग्वालिया तेनो जीव ते नृगुनापुत्र पणे जोडला थया अनुक्रमें क्रूजणाये दीक्षालेई मोकृपाम्या ॥ १ ॥
॥ थठारमां अध्ययननीकथा ॥ श्रीभरतचक्री एकदा प्रस्तावे आरीसा जवनमां सणगारसजी बेठा तारे एक आंगली मांथी अंगूठी उतारी जोईतो छांगली खराबनजरणावी तेथी सर्व आभूषण उतारी जोवतां शरीरखराब देख्यो तेथी वैरागपामी अनित्यभावना जावतां केवललह्यो शा सन देवताये मुनीनो वेश छाप्यो दशलाख पूर्व केवल पर्यायपाली घणाजीवने प्रतिबोधदेई ते अष्टापद ऊपर एकमासनी संलेखणा करी मोक्ष पाम्या ए प्रथम चक्रवर्तीथया ॥ १ ॥
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वीजो चक्रवर्ती सगरनामां तेनीकथा, योध्या नगरीमा जितशत्रुनामाराजा राजकरे तेनी विज याराणीनी कूखे श्री अजितनाथ तीर्थं करजन्म्या तेनो लघुनाई सुमित्रविजय तेनीराणी जसोमती तेनीकूखे बीजाची सगरनामे जन्म्या चौसठहजा र राजकन्या परण्यो चउदरत्न नवनिधान पाम्यो छखंड पृथिवी जीत्यो सुखेचक्रवर्तीपद जोगे पण कोई स्त्रीने संताननही तारे हरिणेगमेषी देवताने
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अठम तपकरीने आराध्यो तेप्राव्या साठहजार गोली प्रापीनेकह्यो साठहजार स्त्रीने खवरावजो साठहजार पुत्रधाशे राजाये तेगोलीलेई एकत्रीने राखवासोपीने पोते पारणकरवाबेठा तेस्त्रीये वि चारो गोली देवताये पुत्रथावा आपीछे ज एकलीखाऊं तोमुनेज पुत्राशे तोसर्वेसोकोमां दीपती र एमविचारी सर्वगोली खाईगई तेने एहवी समजनही पडीजे साठहजार जीव समकाले आवीउपजशे चक्रीने खबरपडी मोटी फिकरपज्यो तेजरात्रे स्त्री भर्तारनो संयोगपन्यो साठहजार जीव समकाले गर्भमां व्या थोडादिन वीत्या राणीनूं पेट फाटफाटा थाबामाम्यूं तारे चक्रीयेंफेर हरिणे गमेषीने छ।राध्यो तेप्राव्यो सर्ववृत्तांत कह्यो तेणें कह्यो जेचिंता नहीं तं म्हारी क्रियायें प्रसवाईस आबाधा नहीथाय तेनवमासे एकनाडे जन्म्या तेने करंडमां राख्या देवतायें अंगूठें मृत ठव्यो तेथी सबैमोटाया यौवन वयपाम्या सर्वेने परणाव्या प एकदा तेबोकरा सर्वपृथिवी जोवानीकल्या ते फरताफरता अष्टापदपा से आाव्या तारे ऊपर अष्टा पद तीर्थदेखीने तेनी संभाल करवासारू दसयोजन पोली मोटी खांईखोदी तेथी व्यंतरदेवताना जवनमा पाणी तथाधूली पडबामांशी तारे देवतायें क्रोधें करी बाली भस्म करया तेबात इंट्रेंजाणी बिप्रनो रूपधरी सगरचक्रीपासेआव्यो जुक्तीथी समजाव्यो
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पचक्रीयें नागीरथनामा पोत्रानेराज्य शापी पोते श्रीअजितनाथ पासे दीदवालीधी तपसंयम पाली केवललई मोोपौंच्या ॥ २॥ ॥ ॥
त्रीजी मघबाचक्रीनी कथा, साबत्थीनामे नग रीमा समुद्रविजय राजकर तेनीभद्रानामे पटराणी तेनीकखें त्रीजोचक्री वीअवतस्यो तेनंनाम म घवा एहबूंदीबूं योवनवयपाम्या पचउदरत्न नव निधीशादि सर्वचक्रवतीनी ऋछिपाम्यो अंते वैरा गपामी दीदालेई तपसंयमपाली पांचलाख वर्षो पायुदायकरी समाधीये मरणपामी त्रीजेदेवलोके गया ॥३॥
॥ चौथा सनत्कुमारचक्रीनी कथा, कांचनपुरनग रमां विक्रमजसाराजा एकदाप्रस्तावे रेवाडीये नि कल्यो तिहां एकनागदत व्यवहारीनी स्त्रीदेखी मो हितथई बलात्कारे पोताने जनानखाने मोकली तेसाथे विषयसुखमां घणोलिप्तथई सर्वराणी त्यागी दीधी तेथी सर्वराणीये तेस्त्रीनाऊपर मंत्रजंत्रकरी मारीनाखी तारे राजा पागलथई तेने गोदमालेई रीसाणीके एमआणी बेठो मंत्रीये घणोसमकाव्यो पण नमाने तारेत्रण दाफाथया दुर्गधआवा लाग्यो वर्ण फरीगयो तारे राजाठेकाणे शाव्यो विचार करवालाग्यो जेमेखोटो कामकीधो परस्त्रीथीलंपट थयो एमविचारतोवैरागपामी दीक्षालेई तपसंजम पाली सातसागरने आऊखे देवता थयो तिहाथी
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( १३२ )
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चवीरत्नपुरनेविषे वेपारियानो बटोथयो धर्मपाली कालकरी अनुक्रमे रत्नपुरनाराजानो जिनधर्मानामे प्रधानथयो बारव्रतधारी ग्यारपडिमाकारी राजा नोवल्लनथयो पूर्वभवे जेनीस्त्री बलात्कारेलीधी हुती तेनागदतनो जीव अनेकभवभ्रमतां एकतापस थई रत्नपुरेआब्यो अनेकप्रकारे अज्ञान तपस्याकरे तेथी मूर्खलोकसबै राजासीखे वांदवाजाय पण प्रधान न जाय तेतापसे जाणी पर्वभवना वैरनायोगे क्रोधे प्रधानऊपर रीसराखी एकदातापसने मासक्षपणने पारणे राजायेनोतस्यो राजाने घर जमवा आव्यो तिहां आबीहठकीधो जेप्रधानने पूठपर थालीरा खी जमावा तोपारणकरूं तेसांमली चिंतातुरथई प्रधाननाकह्यांथी स्वीकार करी प्रधाननी पूठपर थालीराखी कडकडती दीरजखाधी प्रधानने महा वेदनाथई पणक्षमायें परीसहसह्यो थारी उखेली तोमांसलई उठी तेथी वेदनाथई वैरागपामी दीक्षा लीधीने शुभध्याने कालकरी पेलेदेयलोके इंद्रमह द्धिकथयो बेसागरोपम आऊखे वत्तीसलाख विमा ननोस्वामीथयो तापसमरीने इंद्रनो ऐरावतहाथी थयो तिहांथी चवी घणा भवभमी कैलासपर्वते य सिताद यथयो तिहांथी चवी हस्तिनागपुरना राजा शश्वसेननी राणीनी कुंखेऊपनो राणीये चौद सुपनादीठा शुननदात्रे जन्म्यो सनत्कुमार नामदी धो योवनपाम्या चौदरत्न नवनिधान बखंफनो
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( १३३ ).
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राजपाम्यो चोसठहजार राजपुत्री तथा एकलाख श्ठावीसहजार कन्या मंत्री प्रधान प्रमुख मल्या १९२००० स्त्री परणी सुखेराजपाले एकदा इंद्रे रूपवखाण्यो तेजोवा वेदेवता विप्रनरूपधरी कचे रीमा हावी राजानूं रूपजोई माथो धुणवालाग्या तारे राजाये पूग्रो हेविन! माथो केमधुण्यो तारे देवताये पोतानं रूप प्रकटी कह्यों जरूपतम्हारो सवारेहतं तेहमणानथीकारणजेअहंकारतम्हेकीधी तेथीरूप पालटीग; तेवेदना करस्ये चक्रीयेविचा यो सर्वबते रोगादिवेदना वाकाल रोकाशे नही एमाटे संसार असारजे इम वैरागपामी राजनार पुत्रने सोंपी पोते विजयधर्म सूरीपासे दीवालई विहारकस्यो स्त्रीओ परिवार कटकप्रमुख मास सुधी पाबेफस्योपण पाबोनवस्यो बहछठेनो पारण करता विचरेरोगनी दवानो पचखाणलीधो तेथी रोगघणा वधीगया एहवामां इंद्रने प्रशंसा कयां थी बेदेवता वैद्यनारूपे वोल्या तम्हेकहो शम्हे रोग मिटायीदेई राजाये कह्यो जमुने जरामरण रोग बेते तम्हेदूरकरोतारे तेणेकह्यो एरोगशम्हे मिटावी सकतानथी तम्हाराशरीरना रोगमिटावीये तारे मुनिये पोतानी अांगलीमा पोषदलगान्यो आंग लीसोनाजेवी थई तारे कह्यो ए सामरथ मुफनेबे पण हमणा मिठावीये तोफरीनोगयो पळशे तेह मणाज नोगीलेबो देवताये निश्चलजाणी देवलोके
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फरीगया, सनत्कुमारमुनि चारित्रपाली त्रीजेदेव लोके देवथया ॥ ४ ॥
॥ पांचमांचक्री श्रीशांतिनाथनी कथा, हस्तिनाग पुरे विश्वसेन राजा तेनी अचलाराणीने कंखे पांच मांचक्रीने सोलमातीर्थंकर ऊपना माममां मिरगी नो उपद्रव घणोहतो तेगनना प्रत्नावथी शांतथयो तेथी मातापिताने सर्वलोके शांतिकुमरनामदीधो यौवनपामी चक्रवतीनी सर्वऋछिमली अंतेवरसी दानदेई दीवालीधी केवलपाम्या तीर्थंकरपद नो गवी सर्वशायु एकलाख वर्षपाली समेत शिखरे अणसणकरी मोक्षेपौता ॥ ५॥
॥ बठाचक्रीने सतरमा तीर्थंकरनी कथा, हस्तिना पुरे इक्ष्वाकुवंशी सूरराजानी श्रीदेवीराणीनेकखें श्रीकंथुनाथ जन्म्या तेशांतिनाथनी परें चक्रीपद तथा तीर्थंकरपद एबहं एकभवमा भोगवी९२७५० वर्ष शायुपाली मोगया ॥६॥
सातमां चक्रीने अठारमा तीर्थंकरनी कथा, हस्ति. नापुरे सुदर्शन राजानीदेवी राणीनेकुंखें शरनाथ जन्म्या तेशांतिनाथनीपरे चक्रीपद तथातीर्थ कर पद नोगवी८४०००वर्ष शयुपाली मोोपींच्या७ नवमांचकी महापद्मनी कथा, हस्तिनापुरे पन्नोत्त र राजानी ताराराणीने कूखे नवमांचक्री ऊपनातेनं नाम महापन योवनपाम्या सर्वचक्रवर्तिनी ऋछि पामी सुखेराजपाले तेनापासे नचिनामे प्रधान
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के तेजाते ब्राह्मण माठी बहिनो धरणहार बे पण प्रथम कोईकाम चक्रवतीने मजीप्रमाणे कस्यूं हुस्ये तेवखते चक्रीयेकह्यो मांग २ तेणेएमाग्यो मुनेयज्ञ करवो वास्तेसातदिन मुनेराज आपो हुकुमम्हारो रे तमे अंतेउरमा वेसो चक्रीये तेमजकस्यो नमुचिये यज्ञममाव्यो सुवृत्ताचार्य प्रमुख साधूने तेडीहुकुम कस्यो जेतम्हारो दर्शनमुकने शनिष्टबे वास्ते सर्व जैनधर्म वेषधारी म्हारा छखंफराजमांथी नीकली जाओ नहीतो मारीनाखीश एहुकुम सांजली साधु साध्वी चिंतातुरथया तारेशाचार्येकह्यो जेमेसऊप र विघ्नुकुमारमुनि कायोत्सर्गे रह्याके तेमहाशक्ति वंतने तनेमालूम करवोजोइये तेजिनसासन राखवा समर्थडे तारे एकसाधु बोल्यो जेतिहा पोंचवानी म्हारी शक्तिले पणपाबो आबानीशक्तिनथी तेहने खबरपामी जोइये तेतमने लेताशावतारे तेसाधु गया विध्नुकुमारे हकीकत सांजली तुरतसाधुनेलेई आव्या चक्रीने ओलंवोदीधो चक्रीयेकह्यो वचन मां फसीगयो शंकरूं तारे विघ्नुकुमार नमुचीपासे आवीने बोल्या जेमारानाईनो आपेलराज तपाम्यो बे मुने रेहवाने ठामआप नमुचिबोल्यो साढा त्रण पगजागा आपीस सातदिनतांई सातमेदिन पहिले तमनेमारिश पाने बलीकोईने तारे विघ्नुकुमारने रीसचढी एकलाख योजननो शरीर विकुयो मेरु पर एकपग राख्योवीजो पगराखवा जागा नही
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तारे कह्यो रेदुष्ट बीजो पगराखवा जागाआप तारे थरथर कांपवालाग्यो मुनिये माथापरमूंकी पाता लगत कस्यो मरीने नरकेगयो मुनीनोक्रोध चकीये शांतकीधो मुनीपाबा गया चक्रीवैरागपामी दी दालेई मोदे गया ॥ ८॥ ॥
दशमां हरिषेण चक्रोनीकथा, कांपिलपुरे हरप्रि यराजानी मैलारानीनकखें हरिषेण चक्रीजन्म्यो षट्खंफनोगी दीदालेई संजमपाली मोगया ॥ ९॥ग्यारमां जयचक्रीनी कथा, राज गृहनो समुद्र विजयराजानी मैनारानीने कंखे जयचक्रीजन्मी षट् खफनोगी अंतंदीदालेई मोदेगया ॥ १०॥
यारमांचक्री ब्रह्मदत्ततेहनीकथा कहीगई ने प्रा ठमी सुभूमचक्रीनी कथा आवीनही ॥ ॥
दशार्ण नद्रराजा घणोलस्कर लेई श्रीमहावीर स्वामीने वांदवााच्यो पणमनमा अहंकारलाध्यो जेएमऋठिथी कोईवांदवा आव्योनहीशे तेशहंका र उतारवाने इंद्रे रचना कीधी ६४००० हाथी एकएक हाथीना ५१२मुखकस्या एकएकमुखे आठ२ वावकरी एक २ वावबिच आठ २ कमल एक २ कमलनी १००००० पाखसीकरी एक २ पाखकीये आठ अग्रमहिषी नाटक करे ने कमलबीचे सिंहा सने इंद्रबेठो कलइंद्रना रूप १६७७७२१६००० थयाइंद्राणीनारूप१३३७०५७२८०००००००० थया एहवी ऋछिइंद्रनी देखी दशार्ण नद्रबिचायो
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( १३७ ).
मारोमान खंणकरबा हरीये आरचनाकीधी पण शंतोखरो जेहरीने पगेलगाई एमविचारी जिनरा जने त्रणप्रदक्षिणाकरी बांदी ऋहिने राज्यत्यागी ने तिहांजदीकालीधी तारे इंद्रेआवी बांधोने कह्यो एम्हारामां शक्तिनथी तमेधन्यको तमेमानकस्यो ते प्रमाण के ॥१॥
चार प्रत्येकबुछ तेमां नमीराजानीकथा आगल कही वाकीत्रणनी कथा तेमां करकंडुराजानी कथा, चंपानगरीये दधिवाहन राजानी पदमावती राणी गर्भवती थई दोहलो ऊपनो जेराजानो वेशकरी
हाथी परवेझं ने राजापूठे छत्रधरे तेरीतवेशीने वनक्रीडाकरवा निकल्या तिहांवांथई मेघगरज्या हाथ चमकीन राजा तथाराणीने लेईजाग्यो अट वीमागया तारे राजाये राणीनेकह्यो जेशावृदने रुपकळू तपण पकड हाथीने जावादे एमकही राजाये झारपकी राणी पकडीनही सकी राजा तिहां रहीगयो हाथी लेईनाग्या वीजेदिने हाथी प्यासोथई तलावपर उन्नोरहयो राणी हाथीपरथी उतरीपझी एकवदनातले बेठी ८१००००० जीवा जोनीखमावी अठार पापस्थानकादिक सर्व खमत खम गाकख्या चार सरण लेईबेठी अवलानो जीव अनेक जनावरोनो सोर परंतु शीलनाप्रनावें उप द्रवथयो नही एहवामां एकतापसनो शानमदीठो तिहांगई तापसेपूबी इणोकहो ांचेका राजानी
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( १३८ )
पुत्रीने दधिवाहन राजानीस्त्रीबूं इसरीतेआवी ताप सेकह्यो चिंतामाकर घुम्हारीपुत्री समान घणादि न तिहारही पडे श्रीदत्तपुरे पोचतीकरी तिहां सु वृत्तासाधवीथी धर्मसांमली दीकालीधी केटलादिन बीते गर्भवध्यो तारे गुरणीये पूबों आशुं तारे सर्व वृत्तांतको तारे एकनावकनेघरे प्रकन्नन्नावेंराखी पुत्रप्रसव्यो तेने समसाणमांराख्यो समसाणरखवा लाये लेइपोतानी स्त्रीये सोंप्यो करकंझनाम राख्यूं एहवामां कांचनपुरनो राजा शपुत्रीयो मरणपाम्यो तेणे पंचदिव्य प्रकटकस्या हाथणीये कलश करकंडू परढोस्यो राजाथयो पकेटलेकाले कोईदधिवाहन राजासुंविरोधपन्यो तेथी लशकरलेई चंपापुरेचढी गयो माहोमांही लझाईलागी तेखबर पद्मावती साधवीयेसांनकी आवी विलंने समकाव्या पाछलो वृत्तांतको पितापुत्र पोतामांमिल्या पदधिवाह न राजाये करकंने राजआपी दीवालीधी पडेकर कंडूराज सुखपालेबे एकबबडाऊपर अत्यंतप्रीति बे तेनीघणी सुरत राखवा गोपालने हकमकयो पोतेपण हमेसा तेनीखवरराखे पतेने जराआवी तारे रूपरंग घटीगयो तेदेखी जरानसरूप विचार तां वैरागपामी स्वयंबुद्धे दीवालीधी तपसंजमपा ली यक्षना मंदिरेप्रावतां केवलपामी मोगया १
॥ उत्तराध्ययनकथा ॥ ॥ अथ विपाकसूत्रनी कथा ॥
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प्रथम मृगापुत्रनी कथा, मृगानामेगामे श्रीमहा वीरस्वामी समोसस्या तिहांनो राजा विजयकृत्री प्रमुख अनेक वांदवाव्या परिषदा ऊठीगई पके गौतमे जात्यंध किसेकमेथाय एपूछो नगवंते क ह्यो इणही गामना विजयदत्रीनी राणीमृगावती ने एकपुत्र प्रसव्योछे तेने हाथपग मुखनासाआदि कोईनथी फकत लोधोजे तेने नोयरामा राख्योडे नरक जेवा दुखभोगवेछ एबात सोनली शाज्ञालेई तेने जोवा गौतमस्वामी गया पाका शावीपग्रो हेनगवंत! ऐणे पूर्वनवे किसा पापकर्मकस्या तथा हवे केहवा २ भवकरसे ने कधीमोद जाशे? प्रन्नु कहे त्नरतदोत्रे सतद्वारावती मोटो नगरहतो तेने पासे विजयवर्द्धननामे गांमहतो तेमां एकरजपूत हतो तेमहाअधमी निर्दयी मांसाहारी मार जोर लूटकाट करतो मरणपामी पेले नरकेगयो तिहां थीचवी इहां मृगावती राणीने कुंखे ऊपनोबे तेथी माताने घणा कष्टथया इहां २६ वर्ष शायुनोगी मरीने सिंहथाज्ञो तिहां घणा जीवनो बधकरशे मरीने पेलेनरकेजई सर्पथाशे मरीनेवीजे नरकेजई हंसकपदी थासे इम संसार भ्रमते २ एकेंद्रीवेंद्री जलचर थलचरना भवकरी यंतेमहाबिदेहे नरनव लेई मोद जाशे ॥ १ ॥ ॥
॥ शथ बीजो अध्ययन ॥ बाणिज्यनामे ग्रामनो मित्रनामे राजाने श्रीना
nam
ONOMInamo
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( १४० )
मे राणी अनेतिहां एककामध्वजानामे वेश्यावसे महाचतुर १००० दीनारनी ध्वजाराखे तगाममां विजयमित्रनामे सार्थबाहवसे तेनी सुभद्रानामे ना र्या उइषतनामे पुत्रथयो तेसर्वअंगे संपूर्ण पण व णेकालो तेगामे श्रीमहावीरस्वामी समोसख्या राजा आडंबरसुधे वांदवा शव्यो नगरनालोक सर्व वां दवाआव्या पडे तेजनगरमां गौतमस्वामी गोच रीयेगया तिहां राजपुरुषे उइषतनामे सार्थवाह पु त्रने मुसकेबांध्यो दीठो नाककांन बेधाबे तथा तेनं मांसकापी तेने खवरावे ताडनाकरी रह्या देखी गोचरीथी फरीशावी प्रभुनेपछयो इणजीवे पूर्वके हवा कर्मबांध्याचे जेहथी एहबू दुखपामेबे नेता गल केहवा दुखपामशे नगवंते कह्यो हथणापुरे सुनंदनामे राजाहतो तेनगरना मध्ये एकगौशाल हतो तिहां पुण्यवान्लोग घांसचारा नाखताहता तेथी तिहां घणाढोर सुखेरेहताहता तेजनगरमां नीमनामे एककडंबी रेहतोहतो तेमहापापी निर्दय हतो तेनी उप्पलानामे नार्या गर्भवंतीथई तेने डो लोऊपनो जेगायनाथन तथा बलदना इंद्री तथा काननो मांसपकावीखाउं तेफोलो पूरोकरवा सारू भीमनित्यप्रते रात्रे घणागायबलदे थनइंद्री कापी स्त्रीनेशापे नवमासपूरे पुत्रथयो तारे शरराटकस्यो तेथी गामना चौपद त्रासपाम्या तेथी गौत्रासतेनं नामदीबूं तमोटोथयो ते मांसनीघणो लालची
Lam
R
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१४१ ).
तेथी नित्यरात्रे गौसाला मांथी गायनेंस बलदोना अवयव कापीलावे ने खाय इमपापकरतोमरी वी जा नरकमांगयो तिहांथी चवी इहां विजयमित्र नीनार्या सुभद्रानेकुंखें ऊपनो मोटोथयो तारे साते व्यसननो सेवनहारथयोतेनीप्रीतकामध्वजा वेश्या साथेथई तेहवामां मित्रराजानी स्त्रीने रागऊपनो तेथीकाम नोगनोगावी सकेनही तारे मित्रराजाये कामध्वजा वेश्याने पगारकरी राखीने उईषतने क ह्यो शाजपने इण वेश्याने घरे प्रावीशतो मारी नाखीश पण तेनोजीव तेवेश्यामां ललचायो रेह बायनही तारे एकदिन टाणुंजोई तेना घरमांगयो ऊपरथी राजाश्राव्यो तेणे पकन्योबांध्यो हेगौतम! तूंजोई आव्यो तेपूर्वकृत कर्मनायोगे दुखभोगवेडे आजसूली चढी मरीने पेहलीनरके जाश्ये तिहांथी वैताढ्य पर्वते बानरथाशे तिहांथी वेश्यानी कुंखें नपुंसकथाशे घणा पापकरी वली पहलेनरके जाशे तिहांथी सादिक योनिनोगवी घणो भ्रमतेभूमते पजे चंपापुरे नैसोथाशे तिहां उलंठपुरुष विदारशे तिहांथीमरीने चंपापुरे सेठनो पुत्रथाशे थविर पासे धर्मपामी मोदजाशे ॥ २ ॥ ॥
॥अथ त्रीजा अध्ययननी कथा ॥ पुरिमतालनामे एकनगरहतो तिहां महाबलनामे राजा राज्यकरतोहतो तिहां एकदा प्रस्तावें श्रीमहा वीरस्वामी समोसस्या राजा प्रजा वांदवा प्राब्या
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देसना सनिली सर्वगया पबे गौतम प्रभनी आज्ञा पामी गाममां गोचरीयेंगया तिहां दीठो एकएभग चोर सेनापतीने गाढोबांधीने मारआपै राजपुरू षोंतेनंमांस तेने खबरावे तथा तेनोलोई तेने पावे तथा चोरना पुत्रपरिवार स्त्रीप्रमुखने मारी २ तेनो मांसलोहीपावे एमदखदेतां चोकेचोक गामेगाम फरावे तेदेखीने गौतमस्वामी शवीने भगवंतने पूनी नगवंते कह्यो पूर्व इणहीजनगरे उदाई नामे राजा हतो तेसमे एचोरसेनापतिनो जीव निभावना मे वाणियोहतो तेनेकडाप्रमखना ईंडानो आहार घणो प्रियहतो तेरोज करतोहतो ने विक्रय करतोह तो तथा खबरावतोहतो एमपापकरी मरीने त्रीजेन रके गयो तिहांथीचवी विजयचोर सेनापतिने खंड सरी भार्याने कंखे ऊपनी मोटोथयो तारे ५०० चोर संघाते लेई महावलनाराजमां लूटफाटकरतो राजा ये बल करी पकन्यो दुखपामे जेतमेजोई आव्या आज त्रीजेपोरे राजा सलीयेंचढावशे मरीने रत्नप्र भानरके जाश तिहांथी घणा संसारभ्रमीनरनवलई मोदा जाशे ॥ ३ ॥
॥ ॥श्थ चोथा अध्ययननी कथा ॥ भरतक्षेत्रे साहजणीनामे नगरीहती तेनो महाचं दनामे राजाहतो तनो सुसेननामे प्रधानहतो तिहां सुदर्शनावेश्या वसतीहुती एकदा श्रीमहावीरस्वा मी समोसख्या राजाप्रजा वांदवाशवी धर्मसांभली
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पाबीगई पबेगौतम शाज्ञालेई गाममांगोचरीगया तिहां सुनद्रनामे सार्थवाहवसेजे तेनी सुन्नद्रानामे नार्या तेनो सगमनामे पुत्र तेनेतथा सुदर्शनाग णिकाने हाथपगबाधीने राजपुरुष मारेबे जोईगौत में प्रनुनेपूबनो प्रभयेकह्यो गलपुरगामे निक नामे खाटकीहतो ते हजारों जीव वधकरे एहवोपाप करी चोथे नरकेऊपनो तिहांथीचवीने सुन्नद्रनामे सार्थवाहनो सगानामे पुत्रथयो तेसातव्यसने पूरो थयो सुसेन प्रधाननीराखेल सुदर्शनागणिका साथे लाग्यो तेप्रधाने दीठोतेथी गणिकाने तथा सगडने मारेबे लोहनी पुतलीताती करीने तेसार्थबेहूने बा थभरावशे तेथीमरीने पेलीनरके जासे तिहांथीचवी राजगृहमां चंडालनाकुले जुगलपणे वेनभाई थाशे तमोटोथासे तेवेननेसाथे सुखन्नोगवसे घणा पाप करीने पेलीनरकेजाशे तिहांथी अनेकसंसारतमीने अंते महाविदेहे मोदजासे ॥ ४ ॥
॥ पांचमां अध्ययननी कथा ॥ __ कोशांवीनगरीना शतानीक राजानी मृगावती राणीने कूखें उदाईकुमर पुत्रऊपनो तेनीस्त्रीपदना वती तेराजानो सोमदत पुरोहितनोपुत्र गृहस्पति दत्त तिहां प्रभुपधास्या पूर्ववत् गोतमे गोचरीये जाई वृहस्पतिने राजपुरुषमारतं जोईने आवी पू
ग्रो प्रभुयेकह्यो सर्वनद्रनगरीना राजानो पुरोहित चारवेदनोजाण पण मिथ्यात्वीहतो तेराजाये बलें
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( १४४ )
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चारवर्णना चारबालक पकडीने नित्यहोमकरे एम पापउपाजी पांचमे नरकेगयो तिहांथीचवी ए वृह स्पति राजपुरोहितथयो तेनी उदाईराजा साथें प्रीतथई शंतेउरमांजावागावालाग्यो तेथी पदना वतीराणी साथेलाग्यो एकदा भोगकरते राजायें दीठो तेथी तेने मारताहता शाजसूलीचढी पेहले नरकजाई तिहांथी अनेकसंसार भूमीने महाविदहे मोदजासे ॥ ५॥
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॥ ॥ अथ बठा अध्ययननी कथा ॥ __ मथुरानगरीनो राजाश्रीदाम तेनीराणी बंधुश्री तेनोपुत्र नंदिसेण तिहां एकदा वीरस्वामी पधास्या पूर्वनीपरे गौतमगोचरी आवीने नगरमां नंदिसेण कमरने तातालोहने सिंहासनपर वेसाडीने तातालो हानोहार तातालोहना शाभूषणपेरावीने तातासप्त धातूनाअभिषेककरतेजोईनप्रभुने पूछनो प्रभुयेकह्या सिंहपुरनगरनो सिंहरथराजाहतो तेनेदुर्योधननामे कोटवाल महानिर्दयहतो तेचोर तथा हरेकगुनेगा रने महाशाकरा दंडदेतोहतो कोईने कानमा तातो सीसोनाखे कोईन तातोत्रांवोपावे कोईने गधेडानूं मत्रपावे कोईनेलोहाना तातावगतरपेरावे इत्यादि घणा कुकर्मकरी छठीनरकेजाई इहां नंदिसेणथयो तेराज्यलोभे पोतानापिताने मारवाना अनेकउपाय करतोहतो एकदा राजाना चित्रनामे हजामनेकह्यो तूंह जामतकरतां राजानो मस्तककापी नाख तुनेलं
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(
१४५ ).
राज झापीश तेचित्रनावीये राजाने कह्यो राजा कुरुथई एणेप्रकारे पोतानापुत्रने मारेछे नंदिसेणनो पूर्वकृतपापनो उदयच्छा व्योवे आज मरणपामीने पेलीनरकमांजाई धणासंसारभूमी अंतेसमकित पा मी चारित्रपाली मोजाशे ॥ ६ ॥
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॥ अथ सातमां अध्ययननी कथा ॥ पाटलीपुरनगरे सिद्धार्थराजा राजकरतोहतो ति हां सागरदत्तनामे सार्थवाह रेहतोहतो तेनो उंबर दशनामे पुत्रहतो एकदा श्री वीरस्वामी पधारथा पूर्व नीपरे गौतम बोरवा गया तिहां एकपुरुष रोगी खांसीदमताव अंगसवेजीगया हाथपग गलीगयाछे लोही पिरूजरी रह्यों करुणावचनें पुकारतो घरघ र नीखमांगतोफरे पणकोई नही एहबो देखीने पूरवनी परें श्रीनाथनेो भगवंते कह्यो विजय पुरनगरे एकधन्वंतरिनामे वैद्यहतो कलामांकुशल हतो पण मांसनो लोभी लालची हतो तथा जेदवाई बाणावे तेने पण मच्छनूं बकरानूं इत्यादिकनूं मांसखाबानी जलामणकरे एमघणापाप उपारजी मरीने छठीनरकेजाई चवीने सागरदत्तनोपुत्र उंबर दत्तनामेथयो तारे १६ महारोगऊपना तेपूर्वकृतपा पनायोगे दुखनोगवीरह्यो एम ७२ वर्ष जोगवी पेली नरके जाई अनेक नवभ्रमतो महाविदेहे मोद जाये ॥ ७ ॥
॥ आठमां अध्ययननी कथा ॥
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( १४६ )
सोरीपुरनगरमा समुद्रदत्तनामे माबीगरवसे तेनो पुत्र शौर्यदत्त एकदाश्री वीरमनु पधारथा पूर्वनी परें गौतम बोरवाजाई पाछायावता माछीगरना पा नामां एकपुरुषदीठो तेना शरीरनो मांसलोही सर्व बरीगयोबे सूखालका जेहवो खडखनीतथई र ह्योछे चामडे हाळकावीट्याबे लोही वमतो दीन वचन बोलतो दुखे फरे तेजोईने जगवंतने पूबो प्रभुको नंदीपुरनगरे मित्रनामे राजाहतो तेने पासे श्री नामे ब्राह्मणहतो तेराजासारू कईकई प्रका रे जलचर खेचर थलचर जीवोमरावी तथा मारीने मांसराधीने खवरावे ने पोतेखाय एमघणा पाप करी मरी बठेनरकेजाई तिहांथीचवी शौर्यदत्तमाबी गरथयो तेतम्हेदीठो तेने सुखामच्छतलीने खादा तेने गलेकांटोलाग्योबे तेकाढवाना घणाउपाय कीधा पण न नीकल्यो तेथकी तेनेमहावेदनाथई रहीबे तेथ एदशा तेनी पूर्वकृतपापना फल भोगवे यंते ७० वर्षायुपाली पेलेनरकंजाई अनेकसंसार नुमतो मोजाशे ॥ ८ ॥
॥
॥ अथ नवमां अध्ययननी कथा ॥ रोहिनानामेनगरनो वैश्रवणराजा तेनी श्रीनामे राणी तेनो पुत्र पुष्पनंदीकुमार युवराजपदेहतो ति हां दत्तनामे गाथापती होतो तेनी देवदत्तानामे पुत्री हती तिहां एकदा श्रीमहावीरस्वामी पधारथा पूर्व नीपरे गौतम वोरवा गया तिहां देवदत्ताराणीने
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( १४७ ).
सूलीचढी आक्रंदकरती देखीने शावी प्रनुनेपनों प्रन्नुयकह्यों पूर्वसुप्रतिष्ठ नगरनो सिंहसेनराजाहतो तेनी५०० राणीहती पणराजा एकजपटराणी सामा राणीसाथे लुब्धरहे बीजी ४९९ राणीपासे जाय नही तारे तेसर्वराणीये मलीने सामाराणीने मार वानो उपायकीधो तेसामाराणीये जाण्यो राजाने कह्यो राजायक्रोधे एकदिनशहरबाहेर बागीचामां सर्वराणीने तेडावीने रात्रे चारोदरवाजा बंदकरी ते घरमा आगलगामी तेसर्वराणीबाली नस्मकरीना खी एउग्रपापथकी मरीने बठेनरकेजाई तिहांथी चबी देवदत्तगाथापतीनी पुत्री पणे ऊपनो तेनो देवदत्तानामदीधो तेपुष्पनंदीनेसाथे परणावी पुष्प नंदी देवदताराणीसाथे प्रीतियेसुखन्नोगवे पुष्पनंदी राजा रोज आधीरात्रताई पोतानीमातानी सेवा मांरहे तेराणी विषयसुखनी लालचीची तेणे एम विचास्यो जेसासूने मारीनाखूतारे सुखनोगमां अंत रायनथासे ने राजा म्हारेपासेजरेहसे एकदिनेमध्या न्हकाले श्रीराणीसती पासेदासी पण कोईनथी एअवसरमा एकलोहडानोसस्यो तपावीअग्निमयक री तेना योनीमांघालीदीधो तेथी तेविचारी बंबे बूंबपाडती मरणपामी तेथीदासदासे सर्वदोडी पुष्प नंदीराजा पणआच्यो चौकसीकरता मालमथy जे देवदत्ताराणीये आकर्मकी— राजायेक्रोधे सूलीच ढावीदीधी मरीने पेलीनरकेजाई घणानवभ्रमी मो
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( १४८ )
दाजाशे ॥ ९ ॥
॥ अथ दशमां अध्ययननी कथा ॥ वर्द्धमाननगरे विजयमित्र राजाहतो तिहां धनद त सार्थवाहवसे तेनी अजुकुमारीनामे पुत्रीहती एक दा श्रीवीरप्रनुपधास्था गौतम वोरवागया तिहां एकस्त्रीदीठी तेने शरीरमांमांसने लोहीतो बेजनही फकत हाडका चामवीट्याछ तपेकरीधगीरह्योडे पाबाआबी प्रभुनेपूनों नगवंतेकह्यों इंद्रदत्तराजा हतो तिहां पृथ्वीनीगणिकाहती तेमहामदनमस्त हती अनेकप्रकारे सुरापानकरीने सेठसाहुकाराना छोकराने ललचावी तेनासाथे कामभोगकरे आठो पेरतेमालीनरहे तेथी महापापउपाजी दुखे मरण पामी बठीनरकेगई तिहांथीचवी धनदतनीपुत्री अंजुकुमारीथई तेरूपलावण्य संयुक्तथई तेनेदेखी बिजयमित्रराजा मोहितथई परणीलीधी तेनेसाथे घणादिन कामनोग भोगच्या पबे तेनेयोनिमारोग ऊपनो पूर्वकृतपापना योगथी अनेक रोगऊपना राजाये घणाउपायकीधा तेथीतेनूं शरीरदीणथयूं बे इहांथी पेलेनरकेजाशे तिहांथी अनेकन्नवभूमीने मोक्षपामशे ॥ १० ॥
॥ अथ सुखविपाकनी दशकथा तेमांपहिली कथा,
हस्तिशीर्षनामेनगरनो अदीनशत्रु राजाहतोतेनी धारणीराणी प्रमुख १००० हती तमां धारणीये सिं हस्वप्नजोई पुत्रप्रसव्यो तेनूंनाम सुबाहुकुमारदी
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- ( १४९ )
धो तेजोबनपाम्यो तारे ५०० राजकन्या परणावी ते ५०० नेसाथे सुखभोगवतोरहे तिणसमे श्रमण भगवंत श्रीमहावीरस्वामी समोसख्या तिहां अदी नशत्रु सुबाहुकुमारने प्रजासाथे वांदवागयो सुबा हुकुमार हातजोफी ऊन्नोथई श्रावकना वारेव्रतउ चारकरी पालोबल्यो तारे सुबाहुकुमारनो रूपला वण्यबल तेज घचनमाधुरी ऋद्धिदेखीने गौतमे पूग्रो एसुवाहुकुमार पूर्वकोणहतो ने किस्योपुण्य कोधोडे जगवंतबोल्या हस्तिनापुरे सुमुखनामे गा थापतिवसतो हतो तेसमये श्रीधर्म घोष स्थविर ५०० मुनिसाथे पधास्था तेम एक सुदत्तनामे साधु हता तेमास २ खमणकरता विचरताहता तेपारणा निमिते सुमुखगाथापतीने घरेगया मुनिनेशाबता देखी सुमुख हर्षितथई सातपग सामोजई मुनिने त्रण प्रदक्षिणादेई वांदीसूजतो सरसाहार हरखे करी वोराव्यो मुनिसंतोषपाम्यापंचदिव्यप्रकटथया सुमुखगाथापति श्रावकधर्मपाली कालकरीने ए सु बाहुकुमारथयोबे अंते म्हारेहाथेदीदालेशेलचा रित्रपाली एकमासनो अनशनलेई समाधीये काल करी पेलेदेवलोकेजाई तिहांथीचवी मनुष्यनवपामी दीक्षालेई कालकरी त्रीजेदेवलोकेजाशे तिहांथीच वी मनुष्यथई दीक्षापाली पांचमे देवलोके जाशे तिहांथीचवी मनुष्यथई दीदापाली सातमेदेवलो केजाशे तिहांथाचवी मनुष्यथई नवमेदेवलोकेजाशे
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( १५० ) ·
तिहांथी मनुष्यथई दीक्षापाली इग्यारमे देवलोके जाशे पढे सर्वार्थसिद्धे ऊपनी महाविदेहे मनुष्य नवे महाऋद्धिपामी मोजा ॥ १ ॥
वीजा अध्ययननी कथा, ऋषभपुरेनगर धनपती राजा सरस्वतीराणी भद्रनंदीकुमार तेनीश्रीराणी प्रमुख ५०० राणी भद्रनंदीनो वृत्तांत गौतमे भगवं लनपूछो भगवंतेकह्यो महाबिदेहे पुंछरी किणीनग रीये विजयकुमारहतो तिहां श्रीयुगवाहु तीर्थंकरने प्रतिलाभ्यो तेथी अनंत पुण्य उपाय। शेषसर्व सुबा हुकुमारनीपरे अंते महाविदेहे मोक्षजाये ॥ २ ॥
श्री जोअध्ययन, वीरपुरनगर मित्रनामेराजा श्री नामेराणी सुजातकुमर तेनी वलश्रीप्रमुख ५०० राणी सुबाहुनी परे पूर्वनवे पुष्पदत्त अणगार पनी लाभ्यो शेष पूर्वनीपरे ॥ ३ ॥ चोथो अध्ययन, विजयनगर बासवदत्तराजा कन्हा राणी सुवासकुमर नद्राप्रमुख५०० राणी सुबाहुनी परे सर्व कथा जाणवी एणे पूर्वभवे श्रमणभद्र अण गार परिलाभ्या ४ बाकी ६ कथान सूत्रधी जाणवी
त्रीजो प्रत्येकबुद्ध द्विमुखराजा तेनीकथा, पंचाल देशे कांपिलपुरनगरे जयनामेराजाहतो गुणमाला तेनी राणीहती तेराजाने एकअमूल्यमुकुट जमीना मीथीमल्यूं तेपेरे तारेराजाने बेमुखदीठामांयावे ते थी लोगोंये तेनूं नाम द्विमुखराख्यं तेनानगरबीच ए कमोटोथंनोहतो तेने लोक इंद्रदंप्रकरी पूजताहताने
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सिंदूरप्रमुखचढावताहता तेथीघणो शोनावंतला गतोहतो कांइककाले लोगोयें तेनीपूजा छोझीदी धी एकदिन मलमूत्रचीकलाग्यो शोनारहित जोई विचारयो शोना सर्व परपुजलनी इमविचारतां वैरागपामी स्वयंबद्धदीदालीधी तपसंजमपालता यदानादरे आव्या तिहां केवलपामी मोदोगया३
चोथो प्रत्येकबुद्ध शीघ्ररथराजा तेनूंवीजू नाम निगाई तेनीकथा, गंधारदेशे पुटबर्द्धन नगरनो शी घ्ररथराजा एकदिन घोडाऊपर सवारथयो घोझो वगडीने लेईनाग्यो एकवनमां नीकलीगयो तिहां एककन्या महेलमांबेठीदीठी तेनेपासेजाई बातची तकरी गांधर्वविवाहे परणीलीधी तेस्त्रीनेजातिस्म रणहतो तेथीतेपूर्वनवनी बातकेहबा लागी जेलं पूर्वभवे चितारानी बेटी दितिप्रतिष्ट नगरनाजित शत्रुराजानी राणीहतीने राजानी घणी वल्लनहती वीजासोको म्हाराछिद्रजवेनेलं मध्यान्हेरोज नाव नानावती जीवने समकावतीहती तेजोईनेसोकोयें राजानेसमकाच्यो जेचितारानी बेटी मध्यान्हेरोज जापकरे तमनेकार्मणकरेबे राजासांभली एकदिन प्रबन्नऊभोरही सांभलतोहतो जेराणी केहतीहती हेजीव! राजानी ऋष्ठिजोईने गर्वमाकर तारोमूल बेसबीटनो घाघरो नेलुहझीले तारो पिता चितारो हतो वास्ते मदमांकरजे एमबोलती सांभलीराजा खुशीथयो पटराणीकरी पबेसुखेबरततीनावकधर्म
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( १५२ )
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पालती मरीने देवलोकेगई तिहांथीचवी वैताढ्य पर्वते तोरणपुरनगरे सैविद्याधरनीपुत्री कनकमा लाथई तेतम्हारेपासे बेठीबूं पूर्वनवनो पिता चिता रानोजीब विद्याधरथयो तेणे इहां तमथी योगथा वानराखी एकसाधयेकह्यों जेतारोपती शीघ्ररथ राजा घोडानोहयो प्रावशे तेथाशे तेथीलं तमने परणी एबातसांजली खुशीथयो तिहांज नगरवसाई सुखेवास करवालाग्यो तिहां लोगे निगाई राजा नामदीधो एकदा वनमा फरतां रस्तामा एकआंबा नादानो राजायें पानडोतोन्यो तेदेखी पालना सिपाहीयें एकएकपानतोन्यो तेथी तेवृदट्ठोथयो तेजोईराजा वैरागपामी यौवनअस्थिरजाणी स्वयं बुद्धेदीदालीधी संयमपालता यदनादेरे शध्या तिहां केवलपाली मोगया, एचार प्रत्येकबुछ फर ताफरता एकयदानादेरे आवीबेठा तेमाएकनेखरज थईहती तेणे चरकरवासारूं एकपाटली राखीहती तेजोईने बीजायेकह्यों जेपनरमं उपगरण किमरा ख्योबे तारेतेणे पछतावकस्यो खरीबात उपगर ण एक जास्तीराखता जिनआणालोपाणी तेदोष किमटलसे एमअइयापो करतां केबलपाम्योने के नारायेकैने पडे पछताणो जेराखे तेनोजीव कचवा यो होशे मेखोटोकामकस्यो इममांहोमांहे भइया पोकरतां चारजण केवलपाम्याने समकालेनेला मोक्षे पौंता तेथी भेलीकेहवाई इति ॥
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( १५३ ) .
॥ तत्वविवेक ॥
साधु और गृहस्थ लोगों की वर्त्तमान काल में धर्म विषयकी व्यवस्था देखके मनमे हम अतिशय दुःखित थे उस्मेजी संवत् १९३० के सालमे किसी एक नाव विजय नामक द्रव्य संवेगी साधुने सम्यक्त निर्णय नाम ग्रंथ बनायके छपवाया उसमे उसने वर्तमान कालिक साधुओंकी निंदा लिखके भयिक लोगों का मन कलुषित अर्थात् शास्था भ्रष्ट कर दिया जिससे कितने एक जबिक लोग साधुयोंपर आस्था भ्रष्ट होके वंदना भी नही करते हैं देना तो कहां प्रत्युत निंदा करने को प्रवृत्त होते हैं इत्यादि अनेक दुःखके कारण हम यह तत्वविवेक लिखने में प्रवृत्त हुए ।
1
अर भी इसके लिखनेका प्रयोजन है कि सम्यक्त किसको कहना, और मिथ्या दृष्टित्व किसको क हना, यह यथार्थ शास्त्र के प्रमाणसे प्रदर्शित होने से भविकों का भाव यथास्थित होगा उससे धर्म प्रवृत्ति भी बढेगी और साधुओंकी निंदा करनेवाले ने जिस जिस हेतुसे साधुओं को मिथ्या दृष्टित्व ठहराया है सो शास्त्र के अनुसार ठीक नही है यह सब लोगोंको अच्छी तरह से बिदित होनेके लिये उस सम्यक्तनिर्णयके मुख्य बातोंपर उत्तर लिखते हैं और उसके आगे सम्यक्त निर्णय भी लिखते हैं ॥ पहिले उसने संबोध सप्तरीका वचन लिख
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के कहा कि, एहथकी जे विपरीतवेष रजोहरण मुखपत्ती धारणकर जे बकायना आरंन करे परि ग्रहादिक राखे तेहने मिथ्याद्रष्टि जाणवो इत्यादि, सो रजोहरणादिवेष धारण करके बकायका प्रा रंभ परिग्रहादिक रखना, मिथ्या दृष्टीका लक्षण नही होसकता, कारणकी मिथ्यादृष्टीका लक्षणतो औरही है सो प्रीहेमचंद्र सूरीजीने लिखा है “अ देवागुर्वधर्मषु यादेवगुरु धर्मधीः,, इत्यादि वचन से अदेव १ अगुरु २ अधर्म ३, इनमे देव गुरु धर्मबुद्धि, सो मिथा दृष्टीपना होता है, परिग्रहा दिक से मिथ्या दृष्टिपन नही हाता है, परिग्रह रखने से मिथ्यादृष्टी होगा तो प्रावक कामदेव
आदिकों नी मिथ्यादृष्टी मानना पड़ेगा, तथा अ संयती अविरती होजाना नी मिथ्या दृष्टित्वका कारण नहीं है क्योंकि चोथे गण ठाणेवाला शसंय ती अविरती मिथ्यादृष्टी होगा तो कृघ्नश्रेणिका दिककों सम्यग्दृष्टि कदापि नही कहसकेंगे, ग्रंथोमे तो उनको सम्यग्दृष्टी कहा है, चौथे गुण ठाणेवाले असंयती अविरती रजोहरणादि साधुवेष रहित जीवोंकों सम्यग्दृष्टि कहते हैं तो रजोहरणादिन गवानका वेष तथा शुछ धर्म मार्गापदेशकों को मिथ्याद्रष्टी कहना अति शनचित और मिथ्याद्रष्टी होजाने का कारण है ॥
॥
॥ भर उनकों मिथ्याद्रष्टी कहना निश्चयनयसे वा
mome
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( १५५ ).
E
DITORAL
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व्यवहारनयसे? यदि निश्चयनयसे कहेंतो बनस्थो कों दुरधिगम्य है कारण की निश्चय तो केवल ज्ञा नही से होता है ॥
यदि हठसे निश्चय करके मिथ्यादृष्टी ही मानेंगे तो होय, हम तुमको क्या, अंगारक मुनिराज नव पूर्वके पाठी थे परंतु आप करके समान एभव्य थे उनके भी उपदेशसे पांचसे गजेंद्र सरीखे अ णगार सम्यक चारित्र पालन करनेवाले होके समति मे गए, इस्से वर्तमान कालिक साधुवोंके शुइधर्ना पदेश से श्रावकादि शवश्य सम्यक्तको प्राप्त होंगे इस्म कुब संदेह नही, तो किसी प्रकार निश्चय नयसे भी मिथ्यादृष्टी नही होसकते, उपदेशकोंको दीपक सम्यक्त होता है ॥ ॥ ___ व्यवहार नयसे तो मिथ्याष्टित्व उनमें अप्रसिछ ही है और प्रवचन वाक्य नी है ॥ ॥ निच्छयनयस्सचरण स्सुवघाए नाणदंसबहोवि । बवहारस्सउचरणे हयंमि भयणाउसेसाणं ॥ १ ॥ निश्चयनयसे चारित्रका भग होयतो ज्ञान दर्शन का नी भंग होय यदि व्यवहार नयसे चारित्रका भंग होय तो ज्ञानदर्शन का भंग नही होता है प्रत्युत नजना होती है इस प्रवचन वाक्य से स म्यग्दृष्टित्व ही सिठहोताहै तो व्यवहार नयसेनी मिथ्यादृष्टीत्व नही हो सकता ॥
और असंयती पाखंडी लिंगधारी इनकों ब
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नायके महिमा करने द्रव्यादि देने गुरु बुद्धि से मा ननेका निषेध किया और माननेवालोंकों पापफल कहा सो इनमे नही क्योंकि सिद्धांतोक्त संयती अविरती पाखंडी के लक्षण इनमें नही, संयमकों पालते हैं व्रतभी करते हैं ॥
॥
और लिंगधारी कहके जो माननेका निषेध लिखा तो कुलिंगीको मानना वा लिंगहीनको मानना ? लिंगधारीही को मानना यह तो प्रसिद्ध है जैसा सम्यग्दृष्टि राजाश्रेणिकने साधुलिंगधारी देवताको मच्छी मारते देखकेभी साधुलिंगमात्र से वंदना किया, और सगर्नासाध्वी के रूपसे ठप्रादि मां गते देखकेनी साध्वी लिंगमात्र से वंदना किया, कारण की उस समय उनमे कोई विशिष्ट क्रिया नही थी, लिंगमात्र देखनेही से वंदन सत्कारादि करने मे प्रमाण वचनजी हैं, सिद्धाचलमाहात्म्यके प्रथम सर्गमे श्रीधनेश्वर सूरीजीने कहा है ॥ "चारित्रिणोमहासत्वाव्रतिनः संतुदूरतः । नि ष्क्रियी प्यगुणज्ञोपिनविराध्योमुनिःक्वचित् १ ॥ यादृशंतादृशंवापि दृष्ट्वा वेषधरंमुनिम् । गृही गौतमवक्त्या पूजयेत्पुण्यकाम्यया ॥ २ ॥ वंदनीयो मुनेर्वेषो नशरीरादिकस्यचित् । प्र तिवेषं ततोदृष्ट्वा पूजयेत्सुकृतीजनः ॥ ३ ॥ चारित्र को पालनेवाले महासत्वव्रती दूर रहें परंतु क्रिया रहित गुणज्ञ अर्थात् ज्ञान दर्शनको
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न जाननेवाले मुनिकीनी विराधना कदापि नही करना, जैसे तैसेन्नी वेषधारी मुनिको देखके श्रा वकने पुण्य की इच्छा से नक्ति पूर्वक गौतम के समान जान के पूजन करना अर्थात् आहारादि दान से सत्कार करना, मुनिका वेष वंदना करने योग्य है, कुब किसीका शरीर नही, इसलिये वेशधारी मात्रको पर्थात् साधुमात्र को देखके सुकृतीजन सत्कार करे, इनविधि वचनोंसे केवल लिंगधारी की पूजा करने में पुण्य बंधन कहा तो
छ धर्मोपदेशक देत्र देश काल नावा नुसारें चारित्रधर्म पालनेवाले संयती प्रतिबोधक गुरु ओंकी नक्ति करने में पापफल कहना मिथ्या प्रला
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। और जो भगवतीका आठमां शतकके कुठे उद्देशे का पाठ लिखके उस्को शन्यदर्शनी आश्रयी की कल्पना करके उत्तर लिखा सो उसतीनों मागों से लिखनेवाला चौथाही दृष्ट होता है, कारणकी प्राणातिपातादि बकायका सर्वथा शारंन न करे बह साधु प्रथम मार्ग, ऐसा आपही लिखता है परंतु सर्वथा छकायके प्रारजसे वचना दृष्ट नहीं होता है, क्योंकि अंग बंगादि देशोमे विचरते हैं सो क्या युगमात्र भूमीकी प्रमार्जना करके चलते हैं ? वा बयोलीस दूषण रहित आहार लेते हैं ? वा गांव दरगांव मे श्रधालु लोगोंसे असत्प्रला
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पादि करके शादमी का खर्च वा पुस्तक लेनी है कहके द्रव्य नही लेते हैं ? अथवा बहुमूल्य पूठा, ठवणी, वस्त्र, ऊबिया आदि नही लेते है? अथवा कितने एक महात्मा संवेगी साधु आदि द्रव्य संग्रह करके गुप्त वृत्तिसे श्रीमंतोके पास जमा नहीं करते हैं? तथा प्रसिछ है रूप विजय वीरविजय साधु कोठीवाल थे जिनकी हुंकी चलती थी, औरत्नी अनेक जस विजय पंथ प्रवर्तक महात्मा लोग न जाने कौनसे गण ठाणमे थे वाकी रजोहरण मुंह पत्ती दंझादिकका धारण करना तो सब में समा नही है, हां एक बातकी अवश्य तारीफ करना चाहिये कि जैसे आपसंवेगी लोग अपने सिहां तोक्त दंनक्रियामे चतुर और पंडित हैं, जती लोग केवल मूर्ख हैं, यदि यती लोगनी दनक्रिया मे निपुण होते तो मुग्धलोगोके नजदीक पंचमहा व्रतधारी वन जानेमे कुछ शक नही था ॥
और इस पंचमकालके साधुणोंको बंदना करने तथा आहारादि देने या गुरु बुछिकर माननेमे कि सी प्रकार पापफल नही होसकता है,प्रत्युत नवंदन करने १. न शाहारादि देने २ न गुरु बुद्धि करके मानने ३ से नरकादिनीच गतिके अधिकारी होते हैं, इस्मे प्रमाण धर्म रत्नाकर है।
"साधवो जंगम तीर्थं जल्पज्ञानंचसाधवः । साधवोदेवतामूर्ताः साधुभ्यःसाधुनापरम् ॥१॥
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तीर्थंज्ञानं स्वर्गिणोनोपकुर्युः सत्वानित्यं साधुसा र्थो यथोच्चैः । धर्माधर्म प्रेरणावारणाभ्या म र्थानर्थी साधयन्बाधयं ॥ २ ॥ साधूपदेश तः सर्वोधर्ममार्गः प्रवर्तते । विनातुसा धुभिः सर्वातद्वार्ता विनिवर्तते ॥ ३ ॥ दर्शनं बोधश्र रणं मुनिभ्योनापरंमतं । त्रयाञ्चनापरं पूज्यं कथं पूज्यानसाधवः ॥ ४ ॥ क्वचित्त्यं द्वयंवा पिदर्शनार्थोद्यमः क्वचित् । प्रायोन निर्गुणो लिङ्गीस्तुत्यः सर्वस्ततस्तां ॥ ५ ॥ चित्रेपिलि खितोलिंगी वंदनीयो विपश्चिता । निश्चेतः किम्पुनचितं दधानो जिनशासने ॥ ६ ॥ ना नारूपाणि कर्माणि विचित्राश्चित्तवृत्तयः । मं दापिबहिर्वृत्या विमलाश्चेतसापुनः ॥ ७ मनसावचसादृष्टं कायेनापि समर्ज्यत । प्रात्म नीनंजनः सर्वं कथंचनकरोत्यतः ॥ ८ ॥ तस्मा न्महांतो गुणमाददंतु दोषानशेषानपिसंत्यजं सु । गृह्णति दुग्धजलमुत्सृजति हंसाः स्वभावः सनिजः श्रुचीनाम् ॥ ९ ॥ गृन्नामापिनामेह कुर्वन्नामादिकंपुनः । जिनस्य मन्येमान्यः स्या तक्तानां स्वनावतः ॥ १० ॥ लेखवाहोपि भूपस्य स्वामितैर्नियुक्तकैः । मान्यते निर्गु णोप्येवं लिंगी जिनमतप्रियैः ॥ ११ ॥ सर्वज्ञो हृदयेयस्य वाचिसामयिकंकरे । धर्मध्वजो जग ज्ज्येष्ठोग्रामणीर्गुणिनामसौ ॥ १२ ॥ नसंति
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येषुदेशेषु साधवो धर्मदीपकाः । नामापितेषु धर्मस्यज्ञायतेनकुतःक्रिया ॥ १३॥ धर्मकुर्वतिर दंतिवर्द्धयंतिसुमेधसः । कथंनवंद्याविश्वस्य सा धवो धर्मवेधसः ॥ १४ ॥ करणकारण संम तिनिस्त्रिधा वचनकायमनोभिरूपार्जयन् । क थमपीह छन्नं छनचेतसां मुनिजनोजनिपूज नन्नाजनम् ॥ १५ ॥ अपगतोपि मुनिश्चरणा इशिस्थिरतरःसुतरांपरिपूज्यते । छन्नमतर्मह तां बहुमानतः परिणतिश्चरणेपि भवदिति ॥ १६ ॥ साधुश्चारित्रहीनोपि समानोनान्यस धुनिः । भग्नोपि शातकुम्भस्य कुम्भोमृत्स्ना घटैरिव ॥ १७ ॥ यद्यद्यदुःखमास्वाम्यादनुष्ठा नंन द्रश्यते। केषां चिनावचारित्रं तथापिन विहन्यते ॥ १८॥ सातिचारचरित्राश्च कालेत्र किल साधवः। कथितास्तीर्थनाथेन तत्तथ्यंक थमन्यया ॥ १९ ॥ कालादिदोषात्केषां चिद्य लीकानिविलोक्यये सर्वत्रकुरुतेनास्थामात्मानं वंचयंतिते ॥ २० ॥ वहंति चेतसाद्वषं वाचा गृतिदूषणं । अनम्रकायाः साधूनामधमाद निद्विषः ॥ २१ ॥ इहैवानिष्टाः शिष्टानां मृ तायास्यंतिदुर्गतिं । द्राधयिष्यंति संसारमनन्तं क्लिष्टमानसाः ॥ २२ ॥ इदं विचित्यातिविवि क्तचेतसा यमेव किचिजुणमल्पमंजसा। विलो क्यसाधुंबहुमानतः सुधीः प्रपूजयेत्पूर्ण मिवा
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खिलैर्गुणैः ॥ २३ ॥ तथालनेता विकलंफलं जनो निजाद्विशुद्धात्परिणामतः स्फुटं । अन्नी ष्ट मेतत्प्रतिमादिपूजने फलंसमारोपसमर्पित सताम् ॥२४॥ काष्टोपलादीन्कृतदेवबुध्याये पूजयंत्यत्रविशिष्टभावाः। तेप्राप्नवन्त्येवशुन्ना निनून प्रत्यक्साधोः किमुपूजनेन ॥ २५ ॥ कालोचितं साधुजनंत्यजतो मार्गतियेन्यं कु धियःसुसाधुं । तेदाटपात्रद्वितया द्विहीना या स्यंति दुर्योनिषु दुर्दुरूढाः ॥ २६ ॥ ग्रासादि मात्रदानपि पात्रापात्रपरीक्षणं । क्षुद्राः कुर्व तियेकेचि न्नतत्स्याच्छिष्ट लक्षणम् ॥ २७ ॥ गेहेसमागतेसाधौ भेषजादि समीहया । अव ज्ञाक्रियते यत्त त्पातकंकिमतःपरम् ॥ २८ ॥ अन्यत्रापि सधर्म चारिणिजने मान्यविशेषा न्मनौ द्रष्टे साधुनिधाविवाथनिधने बंधावि वातिप्रिये। यस्योल्लासिविकासहाससुन्नगेस्या तां ननेत्रानने रेतस्य जिनोवचोपि हृदये जैनंनसन्तिष्ठते ॥ २९ ॥ विलोक्यसाधुलो कं यो विकासितविलोचनः । अमंदानंदसंदो हः स्यात्सदेही सुदर्शनः ॥ ३० ॥ इदं दर्शन सर्वस्वमिदं दर्शनजीवितं । प्रधानं दर्शनस्येदं यद्वात्सल्यं सधर्मिणि ॥ ३१ ॥ धर्मकार्येपिये व्याजं कुर्वते विततत्पराः । शत्मानंवंचयं त्युच्चैस्तेनरामूर्ख शेखराः ॥ ३२ ॥ भोजनानो
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जनंयाव लन्यस्तं साधुन्नाजने । समग्रमग्रम स्तावप्नुज्यते स्वेच्छयाकथम् ॥ ३३ ॥ तीर्थ स्य मूलंमुनयो भबन्ति मूलं मुनीनामानाश नादि । यच्छन्निदं धारयतीह तीर्थतद्धारणं पुण्यतमंवरेण्यम् ॥ ३४ ॥ एवं कृत्वाकारयि त्वा यतीना माहाराचंयच्छतां नास्तिदोषः। पुण्यस्कंधः केवलदेहनाजां संजायेतस्वर्ग नि र्वाणहेतुः ॥ ३५ ॥ प्रोक्तःस्वल्पः कापियः कर्मबंधः सारंभत्वात्सर्वदास्त्येष तेषाम् । इत्यं चेदं प्रोक्तयुक्त्यावसेयं सिद्धांतार्थः शुद्धबुध्या वबोध्यः ॥ ३६॥ इष्यतेदोषलेषोपि प्रनत गुणसिझये। यथा दष्टांगुलिच्छेद कैजीवि तहेतवे ॥ ३७ ॥ कृष्यादिकर्म बहुजंगमजंतु घाति कुर्वतिये गृहपरिग्रहनोगसक्ताः । ध यिरं धनकृतांकिल पापमेषा मेवं वदन्नपि न लजितएवदुष्टः॥३८॥ एवं विधस्याप्यबुधस्य वाक्यं सिहांतबाह्यं बहुबाधकंच । मूढा दृढं श्रद्दधतेकदर्याः पापेरमन्तेामतयः सुखेन ३९॥ दानंनिदानं यदिपातकानां संपद्यतेनैवतदाम् नींद्राः । दद्युस्त्व निंद्यानिरवद्यविद्या चतुष्टया ध्यासितसच्चरित्राः ॥४०॥ स्वयंचसर्वं गृहंति . गृधागृधाइवामिषं । कयापि नंग्यानिर्भाग्या भंगमन्यस्य कुर्वते ॥११॥परोच्यामोहातेयेन दुर्गतौ गम्यतेस्वयं। क्रियते शासनोच्छेदो धि
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गीद्वकल्क कौशलम् ॥४२॥ दुराग्रहग्रहग्रस्ते विद्वान्पुंसि करोतिकिं । कृघ्नपाषाण खण्डेषु माईवायनतोयदः ॥ १३ ॥ प्रायः सम्प्रतिको पाय सन्मार्गस्योपदेशनं । निर्खन नासिकस्येव विष्ठछादर्शदर्शनम् ॥ १४ ॥ चैत्यस्य कृत्या निविलोकयंतो येपापभाजोयदिवायतीनां कु वंत्यपेक्षामपिशक्तियुक्ता मिथ्याद्रशस्तेजिनन्न क्तियुक्ताः ॥ ४५ ॥ किंचोपदेशेन विनापिन्न क्तः शक्तःसदत्तेहि यथा कथंचित् । मिथ्यावि चारंचकरोत्यभक्त स्तुच्छःस्वभावः समदातुका मः॥४६॥ अपात्रबुद्धियेसाधौ लिंगिमात्रेपि कुर्वते । ननं नपात्रतातेषां यथात्मनितथापरे ॥४७॥ आहारवस्त्रमात्रादि दानेपात्रपरीक्षा णं । कुर्वतः किललजते दरिद्राक्षुद्रचेतसः ॥ ४८॥ सर्वज्ञो हृदिवाचितस्य वचनं काये प्रमाणादिकं शारंनोपिच चैत्यकृत्यविषयः पा पाजुगुप्सापरा। हीनानामपि संत्यमीचन्नट्ट शां येषां गुणालिंगिनां तेमन्येजगतोपि पात्र मसमंशेषं किमन्विष्यते ॥ १९ ॥ चतुर्दशा णस्थाना सर्वसर्वप्यपेक्या। निर्गुणास्सगुणा स्तुस्यु स्तृतीयादुत्तरेक्रमात् ॥ ५० ॥ साधवो दुःखमाकाले कुशीलयकुशादयः । प्रायःशबल चारित्राः सातिचाराः प्रमादिनः ॥ ५१ ॥ स गुणो निर्गुणोपिस्या निर्गुणो गुणवानपि ।
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( १६४ )
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शक्यतेनचनिश्चेतुं मान्यःसर्वोप्यतोमुनिः ५२॥ गुणानुरागितैवस्या दर्शनाभ्युन्नतिःपरा । लो केत्रपात्रतापुंसां परत्रकुशलपरम् ॥ ५३॥अ क्रूरतागुणापेक्षा दोषोपेकादयालुता । उदार तोपकारेच्छा विधेया सुधियासदा ॥ ५४ ॥ एकंपापंदेयत्नावेप्यदानं साधोरन्यन्निंदयानि निमितं । गृमत्युच्चैः क्रूरचित्तावराकाः पापैः पापान्लैवतृप्यंतिलोकाः ॥ ५५ ॥ ख्यातंमुख्यं जैनधर्मप्रधानं नाछ स्योक्तं द्वादशंतताद्यं । दत्तंपूज्यैः कीर्तितंचागमझै र्युक्त्यायुक्तंदीयतां निर्विबादं ॥ ५६ ॥ किंचिद्दायकमुद्दिश्य किं चिदुद्दिश्ययाचकं । देयंचकिंचिदुद्दिश्य निषि द्ववैतथागमे ॥ ५७॥ उत्सर्गणापवादन निश्च याद्यवहारतः । क्षेत्रपात्राद्यपेदंच सूत्रंयोज्यं जिनागमे ॥ ५८ ॥ नकिंचित्कृत्यमेकांता द कृत्यंवाजिनागमे । गुणदोषौतुसंचिंत्य कृत्या कृत्यव्यवस्थितिः ॥ ५९ ॥ आलोच्यागम मा गमज्ञपुरुषानापृच्छाधर्मार्थिनो दृष्ठाशिष्टजन प्रवृत्तिमधुनाथुत्वा गमेप्राक्तनीम् । मोहापो हविधित्सयाठभधियां किंचिन्ममावर्णितं क णकार्यमिदं विचार्य निपुणैः पुण्यार्थिभिः स जनैः ॥ ६० ॥ दानान्नावे भवति गृहिणांमु ख्यधर्मग्रहाणं साधूनां च स्थितिविरहतोमार्ग नाशःक्रमेण । लोकेनिंदा जिनपतिमतस्याव
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दातस्यगुवी युक्त्यायुक्तंजयमुनिरुपासाधयत्सा धुसिद्धैः ॥ ६१ ॥
॥ शब इनकी नाषा लिखते हैं । साधु जंगम तीर्थ हैं अर्थात् शत्रंजयादि तीर्थ तो स्थिर हैं जमरूप हैं और साधु चलते हिलते तीर्थ है, और साधु श्रुतज्ञान हैं श्रुतज्ञानके देने वाले हैं, और साधु मूर्तिमान् देवता हैं निग्रहा नुग्रह समर्थ हैं इस्से , साधु से श्रेष्ट वस्तु जगतमे और कोई नही है, (१) पूर्वश्लोकमे साधुकों जं गम तीर्थ श्रुतज्ञान और मूर्तिमान् देवता कहा अब उनसे नी विशेष उपकारित्व साधुका दिख लाते हैं जैसे साधु लोग लोगों का बडा उपकार करते हैं, तैसें तीर्थ ज्ञान और देवताभी उपकार नही करसकते, कारण कि धर्मकार्य करनेमे प्रेरणा और अधर्म कार्यसे निवारण अर्थात् मना करने से तथा अर्थका साधन और अनर्थका बाधन करने से जैसा बझा उपकार साधु करते हैं वैसा कोई नही करता है (२) साधुसे ही सब धर्ममार्ग चलताहै साधु बिना सर्व धर्मकार्य लुप्त होजायगा (३) दर्शन ज्ञान और चारित्र यह तीनो साधु से जुदेनही अर्थात् तद्रूपही साधु हैं, और ज्ञान दर्शन चारित्र के सिवाय चौथा कोई पूज्य नही है तब कैसे साधुलोग पूजने योग्य न होंगे? (४) यदि कहे कि साधुतो पूज्य हैं परंतु केवल लिंग
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धारी तो पूज्य नही है इसलिये कहते हैं - किसी साधुमे ज्ञान दर्शन चारित्र तीनो विराजमान हैं, किसी मे दो अर्थात् ज्ञान दर्शन १ ज्ञान चारित्र २ चारित्र दर्शन ३ किसी साधुमे केबल एक दर्शन ही का उद्यम है, इसलिये लिंगी अर्थात् रजोहरण मुखपत्ती यादि वेश धारण करनेवालेजी प्रायः गुण रहित नही होते हैं इसी हेतुसे सर्व सज्जनों को वेषधारी मात्रभी पूजनीय है ॥ ५ ॥ चित्रमे लिखे हुए नी चित्तरहित अर्थात् धर्मोपदेश देने मे समर्थ साधु बंदनीय है, तो फिर क्या जिन शासनमे चित्तरखनेबाला साधु बंदनीय न होगा ? (६) पुरुषोंके नाना रूप अर्थात् अनेक प्रकारके कर्म आचरण हैं और चित्रवृत्ति जी विचित्र है अर्थात् अनेक प्रकार हैं इससे बहिर्वृत्ति करके अर्थात् बाहर के आचरण करके मंद हैं हीन हैं तथापि चित्त करके दृढ होते हैं (७) मनसे वचन से जाना हुवा जो धर्माधर्म उस्को अर्जन अर्थात् संपादन करने वाले शरीरसेभी जन सब अपना हितकरलेता है (८) इसलिये बडेलोग गुणका ग्रहण करें, और सर्व दोषोंका त्याग करें, जैसा हंस पड़ी दूध और जल मिला हुवा है उसमें से दुग्धका ग्रहण करते है जलका त्याग करते हैं क्योंकि शुद्ध चित्तवालों का स्वभावही ऐसा होता है (९) इस संसारमे श्रीजिनभगवान् का नाम लेनेवाला
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और श्रीजिननगवान् को बंदन करनेवाला श्री जिननगवान्को मान्य हैं ऐसा हम मानते हैं अर्थात् हमको यह निश्चय है, कारणकी श्रीजिनभगवान के नक्तोंका तो वह स्वन्नाव हीसे अर्थात् गुणग्राही चिन्तयती से वह पुरुष मान्य है (१०) जैसा राजा का लेखवाह अर्थात् चिठी पहुंचानेवाला हलका रानी राजाके नक्त नियुक्तकोको अर्थात् राजात्रि तोको मान्य होता है, वैसाही जिनमत प्रियोंको निर्गुण नी लिंगी मान्य होता है, (११) जिस के हृदयमे सर्वज्ञ भगवान् दै और वचनमे सामा यिक है और हातमे धर्मध्वज अर्थात् रजीहरण है वह जगत् में ज्येष्ठ शर्थात् श्रेष्ठ भर गुणियोंमे अग्रगण्य है (१२) जिन देशों में धर्मके प्रकाशक साधु नही है उन देशों में धर्मका नाम भी नहीं जानाजाता है फिर क्रिया की तो क्या बार्ता क हना (१३) धर्मकों करते हैं धर्मकी रक्षा करते हैं धर्म को बढावते है इसलिये धर्मके व्यवस्थापक सुबछि साधु जगत् के क्यों नही बंदनीय होंगे? (१४) मन वचन और काया करके करने और करनेवालेकों सम्मति देने से तीन प्रकारका छन्न कर्म उपार्जन करनेवाले साधुजन धर्म बुहिवाले सजनो के पूजा योग्य अवश्य होगें (१५) चा रित्र से हीनन्नी मुनि दर्शन मे अत्यंत द्रढ होय तो अत्यंत पूजन लायक होता है क्योंकि बके
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लोगों के बहुमान करने से उस शुनमति मुनिका चारित्र मेभी परिणाम होजायगा (१६) चारित्र से हीनन्नी साधु अन्य दर्शनी साधुके समान नही होता है, जैसा कि सोने का फूटा घमा मही के घडेके समान नही होता है (१७) यदि वर्तमान कालमे दुखमां कालके स्वभाव से साधुओंमे चा रित्र नही दृष्ट होता है तोनी कितने साधुओ मे भावचारित्र नही नष्ट होता है (१८) इस काल में शतीचार सहित चारित्रबाले साध तीर्थं करोने कहे हैं सो सत्य बात है कैसे फूट होय (१९) का लादिके दोषसे कईएक साधुशेमे अनास्था करते है अर्थात् एककोई साधु को शिथिलाचारी देख के सब साधुप्रोको शिथिलही समझ लेते हैं वह अपने आत्माको ठगते हैं (२०) जो चित्त से सा धुओंके ऊपर द्वेष रखते हैं वचन से दोष ग्रहण करते हैं काया से बंदनादि व्यवहार रहित हैं वह अधम धर्मके द्वेषी हैं (२१) वह दर्शन के द्वेषी इहां भी अच्छे शिष्टोंके शत्रु हैं अर्थात् शच्छे लो गोंके प्रशंसा योग्य नही हैं और मरकरके दुर्गती मे जायंगे वह दुष्ट परिणामी लोग शनंतसंसार बढावेंगे (२२) इस बात को अति शुछ चित्त से विचार करके जिसकिसी अल्प गुणी साधुको दे खके बुछिमान पुरुष बडे मानसे सर्व गुण संपूर्ण पूजें (२३) और मनुष्य जो फल पायता है सो
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अपने उछ परिणाम से, यही बात प्रतिमादिक के पूजनेमे अन्नीष्ट है अर्थात् मानीजाती है, का रण की सत्पुरुषोंको फललान समारोप समर्पित है अर्थात् देवता बुछिकर मानने से प्राप्य है, मही तो पत्थर लकडी क्या फल देसकती है (२४) जो पुरुष इहां अच्छे परिणामों से लककी पत्थर देव बुछी करके पूजते हैं वह शुनफल को प्राप्त होते ही हैं यह निश्चय है तो प्रत्यदा साधुके पूजनेमे क्या शुन्नफलका लान न होगा? (२५) कालोचित
र्थात् जिस जिस कालमें जैसे जैसे साधु हैं उनको छोड़ जो कुबुछी सुसाधुकों खोजता है, वह दुष्ट दाता और पात्र इन दोनोंसे हीन होके नरकादि गति मे जायगा अर्थात् कालोचित साधकों तो देनेका पचखाण किया भर सुसाधुको खोजने लगा तो सुसाधु मिलही नही सकता सुसाधुके सिवाय दान देगा नही तो इतोभ्रष्ट ततोभ्रष्ट होके नीच गतीका अधिकारी होगा (२६) जो कोई ग्रासादि मात्र देनेमे शर्थात् खानेकी अन्ल रोटी देनेमेनी यह पात्र है की नही ऐसी परीक्षा करते हैं वह तुच्छ अधम है, खाने पीने के देनेमे भी परीक्षा करना शिष्ट अच्छे पुरुषोंका लक्षण नही है (२७) नेषजा दिक अर्थात् औषध बगैरे खानेपीने की वस्त लेनेकी इच्छा से साधुको घरमे आवने पर उसकी श्वज्ञा करना न देना निंदा करना इसके
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सिवाय अर्थात् इस्से अधिक भर क्या पाप होगा (२८) अन्य किसी साधमीकों और विशेष करके निर्धनको धननिधीके समान अर मुनिको अति प्रिय बंधुके समान देखके जिस्के नेत्र और मुख उल्लसित अर विकसितहास्य करके मनोहर नही होते हैं उस मनुष्य से श्रीजिनभगवान दूर रहते हैं अर उनका वचन भी हृदय मे नही रहता है (२९) जो मनुष्य साधुलोगों को देखके विकासित विलोचन हो अर्थात् प्रफुल्लित नेत्र होय अर अ त्यंत आनंदित होंय वह देहधारी जीव सम्यग्द्रष्टि होंय (३०) जो साधीमे नक्ति करना वही जैन दर्शन का सम्यग्दर्शनका सार है, जीवित है भर प्रधान है ॥ ३१ ॥ जो पुरुष लोनी होके धर्मके काममे कपट करते हैं वह अपने को खूब ठगते हैं भर मूर्ख शिरोमणि हैं॥३२॥ हे लोगों! जब तक साधुके पात्रमे नही ररका अर्थात् नदिया जाय तब तक पहिलेही शाप अपनी इच्छापूर्वक कैसे सब बस्तु नोजन किया जाय ॥३३॥ तीर्थ, ज्ञान, दर्शन भर चारित्रके मूल साधु हैं अर सा धुओंका मूल आहारादिक है, उस शहारादिक का देनेवाला पुरुष तीर्थको धारण करता है अर तीर्थकी रक्षा करता है, तीर्थकी रक्षा करना सर्व पुण्योंमे श्रेष्ठ है॥ ३४॥ इस हेतु से शाहारादि वस्तु करके वा करायके यतीलोगों के देनेवालों
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को दोष कुबन्नी नहीं है, केवल पुण्यही उपार्जन होता है, बह पुण्य निर्वाणका कारण है ॥ ३५॥ कहीं जो थोडासा सारंन पणेसे कर्म बंधन कहा है सोतो गृहस्थोंको सदाही बना है, अर्थात् सा धुओंको आहारादि बनायके देनेही मे होता तो विचारणीय होता इसलिये पूर्वोक्त युक्तिपूर्वक शुछ बुहीसे सिद्धांत का अर्थ विचारना चाहिये बँचाताणी करना अयुक्त है॥३६॥ बहुतसे गुणों की सिछिके लिये थोडासा दोषभी होय तो स्वी कार है, जैसे चतुर पुरुषों को जीनेके लिये सांप की डसी हुई अंगुली काट डालना अंगीकार हो ता है, इस्से आरंभ का शल्पदोष अधिक पुण्य संपादन से नष्ट होजाता है ॥३७॥ जो गृह अर परिग्रहके नोगमे आसक्त होके बहतसे त्रसजीवों की हिंसा जिसमे होय ऐसे खेतीबागबगीचा प्रमुख संसार संबधी खोटे कर्म अनेक करते हैं अर धर्म के अर्थ अर्थात् साधुलोगों के अर्थ रसोई करा वनेमे उन करानेवालों को पाप लगता है ऐसा वचन मुखसे बोलते दुष्ट लज्जित नहीं होते हैं ॥६८॥ इस प्रकारके सिद्धांत विरुछ बहुत दोषों से युक्त मूर्खाके वचनों को मूढ अर कृपण लोग सरदहते हैं अर सुखसे पापमे क्रीडा करते हैं १९ यदि दानदेना पापका कारण होता तो अनिंद नीय पाप रहित विद्याथों से युक्त सम्यक चारि
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वाले मुनींद्र अर्थात् तीर्थंकरादिक संवत्सरी यादिक दान कदापि नही देते ॥ ४० ॥ जैसे गीध यापही मांस ग्रहण करलेता है अर दूसरे के ग्रहण करनेमे किसी प्रकारसे भंग करता है, तैसे लोलुपी लोग छापही सब ग्रहणकर लेता है दूसरेके देने लेनेमे अंतराय करता है उसको गीध पीके समान दुष्ट जानना ॥ ४१ ॥ जिससे दूसरेको संदेह उत्पन्न होय कि इसकों देनेसे पाप होगा वा पुण्य होगा अर प्राप दुर्गतिमे जाय भर जिन शासनकी हानि होय ऐसी पापकी चतुराईकों धिक्कार है ॥ ४२ ॥ खोटा आग्रहरूपी ग्रहसे ग्रसित पुरुषके समजावने मे पंडित विचारा क्या करे जैसे काले पत्थर के टुक मे कोमलता के लिये मेघ समर्थ नहीं होता हैं, मेघके बरसनेसे वह मगसैल पत्थरका टुकडा गीला भी नही होता वैसे हठी मनुष्यमे पंडिताई कुछ काम नही देती है (४३) प्राय अच्छे मार्ग का उपदेश संप्रति कोपके वास्ते होता है, जैसे नकटेको साफ आइनेका देखावना (४४) जो पापी शक्त होके अर्थात् देनेलायक होंके देखके चैत्य के कृत्योंकी अथवा यतीके कृत्योंकी उपेक्षा करते हैं अर्थात् उनके कार्य मे सहायता नही करते हैं वह मिथ्यादृष्टी और जिन भक्ति से रहित होते हैं (४५) अरनी जो जिनेंद्र भर साधुका जक्त है, देनेलायक है वह जैसेंतैसें उपदेश दिये बिनाभी
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देता है और जो नक्त नहीं है तुच्छ स्वभाव है देनेका मन नही है बह फूठों ही अनेक तरहका विचार करता है (४६) जो दुष्ट केवल लिंगी अ र्थात् वेषधारीमे नी अपात्र है ऐसी बुछि करते हैं निश्चय है ऐसा करनेवालेही पात्र नही हैं वह
आप पात्र होते तो दूसरेको पात्र कहते प्रापही पात्र नही है तो दूसरेको क्या पात्र कहेंगे (१७) दरिद्री दुष्टचित्तवाले पुरुष केवल शाहार और वस्त्र देनेमे यह पात्र है या नही ऐसी परीक्षा करते क्यों नही लजित होते हैं (४८) सर्वज्ञ भग वान् जिनके हृदयमे हैं, वीतरागका वचन मुख मे है, कायामे नमस्कारादि क्रिया है, प्रारंजनी चैत्यकृत्य विषयी है अर पापसे करते हैं ऐसे हीन नी सम्यक् दृष्टी लिंगियोंमे यह सब गुण है तो मैजानताहुं कि वह लिंगी सब जगतसे अधिक पात्र हैं जगत्मे उनके बराबर कोई पात्र नही है शेष भर क्या ढूंढना है (४९) तीसरे गुण ठाणे से ऊपर क्रमसे चौदहवें गुण ठाणे तक सब ही सबके अपेक्षा से निर्गुण भर सगुण है (५०) इस दुखमा कालमे प्रायः साधु कुशील, वकुशादिक, शबलचारित्र, सातिचार अर प्रमादीही हैं (५१) कहीं सगुण निर्गुण होजाता है अर निर्गुण सगुण होजाता है इससे सगुण निर्गुणके निश्चय करनेमे कोई समर्थ नही होता है इसलिये सबही मुनि
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मानने योग्य है (५२) माननेका फल कहते हैंसर्व मुनियोंको मानने से गुणानुरागिता अर्थात् माननेवाले गुणग्राही होंगे भर जैन दर्शन की परम उन्नती, इसलोक मे पात्रता होती है अर परलोकमे कुशल होता है (५३) बुद्धिमान पुरुष को सर्वदा विनयी होना, गुणग्राही होना, दो षका त्यागी होना, दयालु होना, उदार होना अर परोपकारी होना चाहिये (५४) वर्तमान का लिक साधुशोंको अपात्र समझनेवाले प्रत्यंत क्रूर चित्त नीच देने लायक रहते भी नदेना यह एक पाप भर निष्कारण साधकी निंदा करनेसे दूसरा पाप ऐसे दो पाप ग्रहण करते हैं सो पापी पापों से दृप्त नही होते हैं ॥ ५५ ॥ जगत् मे प्रसिछ, मुख्य, जैन धर्ममे प्रधान, श्रावकके व्रतोमे बार हवां शाद्य व्रत रूप, अनेक पूज्यों ने दिया हुआ अर आगमके जाननेवाले गणधरादिकोंने ग्रंथो मे वर्णित, ऐसा युक्ति करके युक्त अर निर्विवाद जो दान उसको नविक लोग दिया करें॥५६॥ कब दाता के उद्देशसे, कब याचक अर्थात् पात्र के उद्देशसे, कुब देनेलायक वस्तुके उद्देशसे जिना गम मे निषिद्ध किया है, सर्वथा निषिछ अर्थात् मना नही किया ॥ ५७ ॥ कहीं उत्सर्ग नय से, कहीं अपवादनयसे, निश्चयसे भर कहीं व्यवहार क्षेत्र पात्रादिककी अपेक्षा करके जिनागम मे सूत्रों
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की योजना होती है ॥५८॥ जिनागममे निश्चय करके करने लायक है अथवा करने लायक नही है एसी व्यवस्था नही है क्यातो गुण भर दोष विचार करके करने लायक भर न करने कायक की व्यवस्था है॥५९॥शागमों को देखके, धर्माथी भर आगमके जाननेवाले पुरुषों को पूबके अर शिष्ट जनोकी प्रवृत्ति अर्थात् चलन देखके आगमो मेकी प्राचीन चलन सुनके छन्न बुध्विालोका मोह दूर होनेके लिये यह थोझासा हमने कहा सो पुण्य के इच्छावान् निपुण सजनोने विचार करके सुनना चहिये॥६०॥दानका अभाव होजाने से गृहस्थों का मुख्यधर्म नष्ट होजायगा अर दानके नदेने से साधुओं की स्थितिनी नहोगी उससे जैनमार्गका नाश होजायगा अर छ जो जिन भगवान् का मत है उस्की बड़ी निंदा होगी इसलिये जयमुनि ने यह युक्तियुक्त लिख दिया है ॥६१ ॥
इस जयमुनिकृत धर्मरत्नाकर ग्रंथके वचनों से स्पष्ट सिह होता है कि आधुनिक साधुओकों न वंदन करने से १ न शाहारादि देनेसे २ न गुरु बुद्धि करके माननेसे नरक गति होती है, अर नही देनेवाले मिथ्यादृष्टीनी होते हैं इसलिये विपरीत बुद्धि कदापि नहीं करना चाहिये ॥
और उत्तराध्ययन के ाठमे अध्ययनके मदन रेखाके दृष्टांतसे धर्मोपदेष्टा को चारित्री साधुओं
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सेजी पहिले बंदना करना चाहिये सो दृष्टांत यह
है ॥
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"अत्रांतरे तत्र नंदीश्वरप्रासादेंतरिक्षादे कं विमान मवततार तन्मध्यादेको दिव्य भूषा धरः सुरोनिर्गत्य मदनरेखां प्रथमं त्रिःप्रदक्षि णीकृत्य प्रणनाम पश्चान्मुनिं प्रणम्य अग्रे नि विष्टः सुरो मणिरथविद्याधरेंद्रेण विनयविष यसकारणं पृष्टः ससुरः प्राह ग्रहंपूर्वभवे मणि रथनाम्ना बृहजात्रा निहतो ऽनयाराधना न शनादि कृत्यानि कारितानि तत्प्रजावा दह मीदृशो ब्रह्मदेवलोके देवो जात स्ततो धर्मा चार्यत्वा दह मिमां प्रथमं प्रणत इत्यादि ॥ इस्का अर्थ, इस अवसरमे वहां नंदीश्वर के मं दिरमे आकाशसे एक विमान उतरा, उस विमान से एक दिव्य उत्तम छाभूषणधारी देव उतर करके मदन रेखाको पहिले तीन प्रदक्षिणापूर्वक प्रणाम करके पीछे मुनिको प्रणामकर यागे बैठगया, तब मणिरथ विद्याधरेंद्रने विनयविपर्यास अर्थात् प हिले मुनिकों प्रणामकर्ना पीछे मदनरेखाकों सो न किया इसका कारण पूछा, तब वह देवबोला, हम पहिले भवमे मणिरथ नामक बडे भाई से मारेगए अर इस मदनरेखाने हम को प्राराधना अर अनशनादि कराया था उसके प्रभाव से हम ऐसे ब्रह्म देवलोकमे देव हुए, इससे यह हमारी
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मदनरेखा पूर्वजवकी धर्माचार्य हुई इस्से हमने इसको पहिले नमस्कार किया इत्यादि इससे सा मान्यस्त्री धर्मकार्य करावनेसे मुनियोंसेजी प्रथम बंदनीय हुई तो आधुनिक साधु आगमोक्त व्या ख्यान सहित यथार्थ धर्मोपदेश करनेवाले परमो पकारी क्यों नही बंदनीय होंगे ॥
॥
और“गुरुर्द्धर्मेौपदेशकः । तथा । गुरुर्द्धर्मोपदेष्टै वश्रुतिर्धर्मात्मिकैबच । द्वयमप्यन्यथा कुर्वन्मि त्रमापापमर्जय ॥ १ ॥
""
इस योगशास्त्रके बचनसे आधुनिक धर्मोपदेष्टा यती लोगही गुरुहैं, इनका विनय करनेकी आज्ञा ओर उसका फल प्रश्नव्याकरण के संवरद्वारके छठवे अध्ययनमे लिखा है ॥
"विण ओबि तवो तवोविधम्मो तम्हा विण पउंजियो गुरुसुसाहूसु तवस्सीसुय एवं विणएण भावितो भवड़ अंतरप्पा णिचं,, टीका, अन्येष्वेवमादिकेषु बहुषु कारणा तेषु विनयः प्रयोक्तव्यः कस्मादेव मित्याह बि नयोपि नकेबल मनशनादि तपोऽपितु विन यो पिवर्तते याभ्यंतरतपोभेदेषु पठितत्वात्तस्य यद्यप्येवं ततः किमतग्राह तपोपिधर्मः नके वलं संयमोधर्मः तपोपिधर्मो वर्तते चारित्रां शत्वात्तस्य यत एवं तस्माद्विनयः प्रयोक्तव्यः केष्वित्याह गुरुषु साधुषु तपस्विषुच अष्टमा
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दिकारिषु विनयप्रयोगेहि तीर्थकराद्यनज्ञा
स्वरूपा दत्तादानविरमणं पालितं नवतीति, - इसका अर्थ, इस प्रकार शन्य सेंकडों कारणसे वि नय करना चाहिये, क्योंकि केवल शनशनादि तप है ऐसानही विनयनी तपहै, कारणकी आभ्यंतर तपोंमे पठित है, विनयके तप होनेसे क्या? इ सलिये कहते हैं कि तपत्नी धर्म है, केवल संयम रूपी धर्महै ऐसा नही विनयरूप तपभी धर्महै कारण की वह चारित्रका अंश है, इसलिये विन य करना चहिये, किनका विनय करना चहिये? गुरुओंका धर्मोपदेशकोंका, साधुओंका आत्मक ल्याण कारियोंका, तपस्वियोंका अष्टमादितपकने वालोंका, विनय करने से तीर्थंकरका आज्ञा स्वरूप प्रदत्तादानके विरमणका शर्थात् त्यागका पालन होता है अर्थात् शदनादान त्याग करनेसे जो फल होताहै सो विनय करने से होता है, इस सेनी आधुनिक धर्मोपदेष्टा परमोपकारी यतीलो गोंकी पजा प्रत्नावना सत्कार विनयादि करने से किसी प्रकार दोष नहीं है अवश्य करना चहिये।
३ अर वस्तुको कुवस्तु और कुगुरुको सुगुरु समऊने से मिथ्यात्व होता है इसमे क्या कहना ऐसी सरदहणा जिसकी होगी वह मिथ्यात्वी होगा, धर्मोपदेष्टा यतीलोग कुगुरु नही होते हैं उनको जो कुगुरु समझेगा वह वस्तुको कुवस्तु समझने
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वाला मिथ्यात्वी होगा ॥
४ यह जो लिखा 'कोई कहेछ हम तो धर्म जाणा नही इनको तो पाखंझी जाणां छां बड़ों की परंपरा चली आई इसवास्ते देवांछां, सोना वकको ऐसा कहना कदापि उचित नही है कार णकी शागममे ऐसा कहा है। 'पासत्याईणफुडं अहम्मकम्मंनिरिकएतहवि। सिढिलोहोइनधम्मएसोच्चियबंदिश्रोतिमई, १॥ पार्श्वस्थों के अधर्म कर्म देखे तथापि श्रावकको बिनयादि धर्ममे शिथिल नही होना चहिये क्योंकि वह वंदनीयही है ऐसा सिधांत है, औरनी कहा है उसी ागममे ॥ 'साहुस्सकहविखलियं दणनहोइ तत्यनि न्हेहो। पुणएगतेअम्मा पिउन्सेबोहणंदयइ,१ साधुका कुछ धर्मसेस्खलित अर्थात् भ्रष्टता दे खके श्रावकको विनयादि कार्यमे निःस्नेह नही होना चहिये, परं उस साधुको मातापिताके ऐसा एकांतमे बोधन देना चहिये, जिस्मे वह पुनः अपने धर्ममे प्रवृत्त होय ॥
॥
॥ औरत्नी ठाणांग सूत्रमे कहा है 'चतारिसम णोवासया पणता तंजहा अम्मापिउसमाणे नाउसमाणे मित्तसमाणे सवक्किसमाणे, ॥ ॥ इसकी व्याख्या शनयदेव सूरि कृत ॥ शम्मापिउसमाणेमाटपिटसमान उपचारं वि
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नापि साधुषु एकांतेनैव वत्सलत्वात् , नात समानः अनुजसमानः अत्यवरः प्रेमत्वात् न त्वविचारादौ, निष्ठरवचनादप्रीतेः तथाविध प्रयोजनेष्वत्यंतवत्सलत्वाच्चेति, मित्रसमानः सोपचारवचनादि विना प्रीतिदतेः तत्दिता वापद्यपेदिकत्वादिति, समानः साधारणः प तिरस्याः सपत्नी, यथासा सपत्न्या ईर्ष्यावशा दपराधान्वीक्ष्यते एवं यःसाधुषु दूषणदर्शनत त्परोनुपकारीच स सपत्नीसमानो निधीयते इसका अर्थ, विना कारण साधनोंमे अत्यंत प्रेम रखनेवाले श्रमणो पासक मातृपितृसमान १ साधुके विचार कर्ममे निष्ठर बोलनेवाले भर सविचार कर्ममे प्रेम करनेवाले भ्रातृसमान २ सा धुके मधुर भाषणसे प्रीति रखनेवाले अर विपति मे सहाय करनेवाले मित्रसमान ३ सौतिन जैसे ईर्षासे सौतके अपराधोंको देखती है ऐसेही सा धुओंके निवारण ईर्ष्यासे दूषण देखने मे तत्पर
और अनुपकारी वह सपत्नीसमान होतेहैं ४ ऐ से एकसे एक निकृष्ट क्रमसे चार श्रमणोपासक है उनमे सपत्नीसमान तो अति निकृष्ट है, इस पाठके न्यायसे पूर्वोक्त केवल पाखंझी जाननेवाला श्रावक सपत्नी समान निंदनीय होता है, उसका देनानी निष्फलहै और वह निरयगामी होताहै। ५ यह जो पार्श्वस्थोंकों वंदनका निषेध लिखा
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सो धर्मोपदेष्टा साधुओंका निषेधक नहीं होसक ता कारणकी धर्मोपदेष्टा पार्श्वस्थ नही हो सकते, पार्श्वस्थ पदका अर्थ तो ज्ञानादिरहित का बो धक है, केवल लिंगी पार्श्वस्थ हैं तथापि पूर्वोक्त विशेष वचनों से निषेध बचनोका अत्यंत निषि ठाचारी पार्श्वस्थो को वंदन करनेमे तात्पर्य है, ग्राहारादिदान तो प्राप्तही है क्योंकि उस्का निषेध नही है पाप फलका उत्तर तो होचुका है ॥
औरजी "नमोलोएस साहूणं,, इस परमेष्ठी मंत्र मे लोक और सर्व शब्द पढा है इससे मनुष्यलोक में यावत्साधुमात्र वंदनीय हैं यहप्रज्ञापित होता है, इसी तात्पर्यसे श्रीप्रभयदेव सूरीने जगवती टीकामे लोके इस्का अर्थ ' मनुष्यलोके नतुगच्छा दो येसाधव ऐसा कहा, और सर्व शब्द से प्रमत्ता दि, पुलाकादि, जिनकल्पिकादि, प्रत्येम्बुझादि, भारतादि, और सुखम दुःखमादि विशेषित सक ल साधुच्छोंका ग्रहण किया, और सर्वशब्दसे गुण वान् सकल साधुओं का ग्रहण है ऐसा कहा, अर सर्व शब्द से प्रत्यय कर्के सार्वशब्दसिद्ध कर्के सकल जीवके हित, अरिहंतके भक्त, जिनाज्ञा पालक, प्राराधक, प्रतिष्ठापक और दुर्नयके दूरकरनेवा ले इत्यादि अर्थ किये हैं, ऐसा अर्थ न करते तो नमो साहूणं इतना कहने से मंत्र सिद्ध होजाता लोके, सर्व शब्द कहना जगवान् का निष्फल होजा
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ता, इससे कोई कैसानी साधु अवंदनीय नही हो सकता है, जैनागम मे जोजो निषेध हैं वह सब अत्यंत भ्रष्ट निन्दक कुकर्म के वंदना करने के निषेधक हैं, यह स्पष्टही प्रकाशित होता है ॥
और यह जो लिखा कि बीत रागके वचनको उलटा कहे लोके वास्ते उलटी प्ररूपणा करे सो मिथ्यादृष्टि जाणवो, इसपर महानिशीथका पाठ लिखा सो ठीक परंतु उलटी प्ररूपणा लिख नेवालेही की मालूम होती है, कारण की टीका कार और ग्रंथ कारोंके स्पष्ट वर्णित और सर्वसं मत सूत्रो के अर्थ द्वेषसे वंदनीय को वंदनीय कहनेके लिये अनर्थ किये, सूत्रों का यथार्थ तात्पर्य ग्रंथ कारोके अनुसार ऊपर लिखा है सो सूज्ञलो ग माध्यस्थ बुद्धि से जानेंगे ॥
यद्यपि लोकमे यह साधु है ऐसा व्यवहार तो रजोहरणादि लिंग देखनेही से होता है वह कैसा जी होय, नमो सन्साहूणं इस्से वहनी वंदनीय हु, जैसा नाटकादिमे देवताके वेषही को देख के सबलोक वंदना करते हैं, और गमों का जी तात्पर्य लिंगमात्र देखके वंदना करना ऐसा है तथापि आगममे निषेध किये है उनका तात्प र्य यह है कि जो लिंग धारण करके कुकर्म करे वह अवंदनीय होनेसे लज्जित होके उस कुकर्म से निवृत्त होय पुनः कुकर्म न करे, उस पर भी
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वह कुकर्म त्याग न करेतो उस्का लिंग छीन लेना यहांतक च्छागमोमे कहा है, इससे इससे आधुनिक साधु धर्मोपदेश करते है जिन जक्त हैं विशिष्ट चारित्र पाल नही सक्ते तोजी वंदनीय नही हो सकते हैं, बंदना के निषेध वचन इनमे लगावना यह केवल द्वेषसे उलटी प्ररूपणा है, इससे वह छापही मिथ्यादृष्टी हुआ ॥
परिग्रहको पापकर्म कहा उस्मे परिग्रह किस्को कहना चहिये ? क्या रत्नजटित हेमांगुलीयकादिक द्रव्यका स्पर्शमात्र परिग्रह है ? अथवा अपने अं गमे धारण करना सो परिग्रह है ? अथवा यह मेराधन है मैं इसका मालिक इस रूप से स्व स्वामिनावसंबंध है सो परिग्रह है ? अथवा पिटारा संदूक यादिमे चोरी से धनको गुप्त रखना सो परिग्रह है ? अथवा मोहसे दूसरे के धनमे अदत्तादान बुद्धि है सो परिग्रह है ? नही पहिला पक्ष कह सकते कारणकी श्रावक कदाचित् साधु के पांवादिकी विश्रामणादि विधि करे उसमे श्रावक के हात अंगूठी कडा आदि है उसका स्पर्श होने से यती के चारित्र जंगका प्रसंग होजा यगा और प्रौदीच्य मथुराके बनियेकी संपत्ति कर्म विपाक से उड़के जानेलगी उससमय उडताहुया सोनेका थाल पकडनेसे उसका एक टुकडा रहगया थाल उडगया, तब उसने विचारा कि जिस जगह
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थाल गया है बहां जाय उसी थालमे टुक को जोक दें, इस अभिप्रायसे टुकडे को लियेही गुरु के उपदेश से दीक्षा लिया उसथाल के देखने के इच्छासे ग्राम नगरादिकमे भटकता फिरा उस नै गमकीभी चारित्रान्नावकी आपत्ति ओय पडेगी २ न दूसरा पद, अंगपर धारण करना परिग्रह हो गा तो गंधहस्ती के खंधेपर बैठी मरुदेवी माता के स्वर्ण मणिरत्न जटित आन्नरणादि धारण कर नेसे परिग्रहीपना होजायगा, उससे चारित्रका अ नाव, केवल ज्ञानकी प्राप्ति और मुक्तिका अलाभ का प्रसंग होजायगा, मरुदेवी माताको अलंका रादि धारण करके चारित्र, केवल ज्ञान और मुक्ति लान हुआ है , और बल्कलचीरी महासत्व को मुकट कुंकलादि आनरणों से अलंकृत हो कभी वनमे तपस्वी लोगों के कुटी में उनके उपकरण देखतेमात्र संस्कारसे जातिस्मरण हो गया , उस से पूर्व भवमेशाचरण किये हुए चारित्रका स्मरण होजाने से उसी समय एनाहार्यवीर्य अर्थात् अ नंत शक्ति प्राप्त भई उससे दपकरेणी चढके के वल ज्ञान पाया सो असंगत होजायगा, तीसरा प हनी नहीं कह सकते, कारणकी न यह मेरा धन है, नमैं इसका स्वामी इस प्रकार यतीके अ हंकार ममकारका अभाव है, इससे स्वस्वामिभाव संबधनी सिछ नही होता है तो परिग्रह कहांसे
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सिछ होगा ॥
॥ न चौथा पद, अंगठी आदि धारण करने ही से सब लोगोको प्रगट हो जाता है तो गुप्ततासे रखना सिछ नही होता है, जो गुप्ततासे द्रव्य र खते हैं वह परिग्रही होय, न पांचवां पद, गृह स्थसे कोई वस्तु किसी प्रयोजनके लिये साधु ले पाए फिर वह उसको देदेते हैं उस्से अदत्तादान बुछिनी दृष्ट नही होती , औरत्नी योगशास्त्र मे हेमचंद्रसूरिजी ने कहा है। सर्वानावेषु माया स्त्यागः स्यादपरिग्रहः। यदसत्स्वपिजायेत मछयाचितविप्लवः॥१॥ इसकाअर्थ, द्रव्य क्षेत्र काल भावोमे मूर्छा अर्थात् मोहका त्यागकरना यही परिग्रहत्यागहै, द्रध्यादि त्यागमात्रसे अपरिग्रहव्रत नही होताहै, क्योंकि द्रव्य क्षेत्र काल नाव नरहनेसेभी मूर्ध्वासे चिन्तवि प्लव होताहै, अर्थात् संतोषसुखका नाश होता है, धन नरहतेनी धनमे मावान् राजगृह नग रमे रहनेवाले रंकके ऐसा चित्रका लेश दुर्गति पाप कारक होताहै, द्रव्य क्षेत्र काल भाव रूप सामग्री बिशेष रहतेभी दृघ्नारहित निरुपद्रवचित्त साधु
ओकों संतोषसुखके लानसे चित्तविप्लव नही हो ताहै, इसलिये धर्मोपकरण रखनेवाले यतीलोगों का शरीरमे उपकरणमे ममत्व नहीहै इससे परि ग्रह नही होसकताहै इसमे आगमका प्रमाण वचन
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उसी योगशास्त्रमे लिखा है || यद्वत्तुरगःसत्स्व प्यानरणविभूषणेष्वनभिसक्तः तद्वदुपग्रहवानपि नसंगमुपयातिनिर्ग्रन्थः १ ॥ अर्थ, जैसा घोडा आभूषणोंसे लदा रहता है परं तु उसकी उननूषणोमे शासक्ति नही रहती क्यों कि वह कुछ उनका सुख जानतानही, वैसेही प रिग्रहकी वस्तु पासरहते भी निर्ग्रथ साधउनमे या सक्त नही होते हैं, उससे परिग्रही नही होते हैं ॥
॥
सम्यक्त निर्णयमे भावविजयने यद्यपि बहुतसा लिखा है परंतु निस्सार बाग्वादका करना हमको अनुचित है, इसलिये केवल मुख्यकोटी जो आधु निक धर्मोपदेशक गुरूलोगोकों मिथ्यादृष्टी 9 असं यती २ प्रविरती ३ पासत्या ४ पाखंडी ५ भवसाग रमे मुवानेवाले ६ बनायके आहार और वस्त्रादि देनेमे पापफल होता है अर देनेवालोंको मिथ्यादृष्टी लिखा सो यह लिखना उसका केवल द्वेषके आवे शसे असंगत है अर्थात् विश्वास कर्नेलायक नही है औरजो प्रमाण लिखेहैं वहभी स्याद्वादनययुक्त व चनोकरके भिन्नतात्पर्य भिन्नतात्पर्यमे लगायके भो लेलोगोंको ठगनेकेलिये लिखा है, यह यथार्थ जा ननेकेलिये और जिनलोगोंकी इस सम्यक्त निर्णय के देखनेसे स्थाभ्रष्ट हो गई है वह श्रद्धायुक्तहोय इस हेतु संक्षेपतया यह तत्वविवेक लिखा है अर उचित है जसविजयपंथियोंको कि इसकालके धर्मो
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पदेशकोंकी निंदानकरें नहीतो अब दुबारा जैसा कुछ हमलिखेंगे उनको मालूम होजायगा ॥ ___ और आधुनिक साधुओंकी निंदालिखके ग्रंथ ग्राह्यहोय इसलिये सम्यक्तनिर्णय नामरखा सो असंगतहै यहनी लोगोंको अच्छीतरहसे ज्ञात हो नेकेलिये सम्यक्तनिर्णयन्नी लिखतेहैं ॥ ॥
॥ अथ सम्यक्तोत्पत्तिः ॥ इस एनादि अनंत संसारमेशनादिकालसे कोई एक मिथ्याद्रष्टिजीव मिथ्यात्वप्रत्ययो अनंते पुजल परावर्ततक वारंवार जन्ममरण करतेकरते भ्रमण करताहै,कोईएक अचभकर्मके लघुतासे जैसे पहाडी नदीमे पूत्थर गुरुतेगुडते आपसेआप चिकना अर गोल होजाताहै, तैसे जीवन्नी परिणाम विशेषरूप यथाप्रवृत्ति नामकरणसे बहुतसे कर्मोको दीणक रताहुआ थोकर्मोको बांधताहुणा संज्ञिपनेको पायके शायुकर्मवर्जित सातकर्माको पल्योपमका असंख्यातभागन्यून एकसागरोपम कोटाकोटीकी स्थिति करताहै, इसश्वसरमे जीवके अलनकर्म से उत्पन्न अत्यंत रागद्वेषका परिणामरूप कठिन खुलनेनसके, टूटनेनसके, पहिलेकभी जीवने तोडी नही ऐसीग्रंथी होतीहै, इसग्रंथितक यथाप्रति नामकरणसे कर्मोकाक्यकरके अनंते अभव्यजीव नी पहुंचतेहैं, और इसग्रंथिदेशमे पहुंचा नव्यजीव वाअभव्यजीव संख्यातकाल वा असंख्यातकाल रह
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ताहै, वहां अनव्य कोई चक्रत्रर्ता आदिलेके छानेक राजाओंकी किईहुई समीचीन पूजासत्कार सन्मा नादिको देखके वाजिनकी ऋद्धिदेखके देवलोक के सुख मिलजाने की इच्छासे दीक्षाग्रहण करते हैं, द्रव्यसाधु होके अपनी प्रतिष्ठा के अभिलाषसे नाव साधुके ऐसा प्रत्युपेणादि क्रियायोंका चरण करते हैं, क्रियाके करनेसे नवमांग्रैवेयक विमानतक उनकी गति होती है, कितने सूत्रपाठमात्र नवपूर्व पढते हैं, कोई कुलकम दशपूर्वतक पढते हैं, कुलकम दश पूर्वतक मिथ्यातनी कहाजाताहै, जोजीवपूरे दशपूर्व पढते हैं उनजीवोंकों अवश्य सम्यक्त प्राप्त होता है, कुलकमदशपूर्व पढनेवालो में सम्यक्त हो ता है नहोनी होताहै, कल्पभाष्यमेभी कहा है ॥ चउदसदस्य अजिन्नेनियमासम्मंतुसेस एजयणा ॥
इसका अर्थ पूरे चउदहपूर्व अथवा पूरेदसपूर्व पढ नेवालेको निश्चय सम्यक्तलाज होता है, उसके अनं तर अनंतवीर्य के प्रसारसे अपूर्वकरणकरके पूर्वोक्त ग्रंथिभेदपूर्वक अनिवृत्तिकरणमे प्रवेशकरतेहैं, वहां यथावत् कर्मोंका दयादिकरके मिथ्यात्वका तीन पुंजकरता है, शुद्ध, मिश्र, और अशुद्ध, पीबेनिवृत्ति करणके सामर्थ्य से कई पहिलेही क्षायोपशमिक सम्य दृष्टि होतेहैं, कितनेही औपशमिक सम्यग्दृष्टि हो तेहैं, इसका विशेषकथन ग्रंथांतरमे देखलेना ॥ ॥ उस सम्यक्तके प्रकार लिखते हैं |
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एगविह दुविहतिविहं चउहापंचविहदसविहं सम्मं । होईजिणणायगेहिं इइभणियमणंतना णीहिं ॥१॥ श्रीजिनेंद्रके कहेहए जीवाजीवादि नवपदा में सच्चीत्रछा यह एकविध १ द्रव्यसम्यक्त १ अरना वसम्यक्त यहद्विविध २ विशोधि विशेषकरके मि थ्यात्वषुझलोंको ठकरना यह द्रव्यसम्यक्त और उसके सहायतासे उत्पन्लन्नया जिनोक्ततत्वोंपर रु चिरूप परिणाम सोभावसम्यक्त, अथवा निश्चयनय अर व्यवहारनयसेभी द्विविध होताहै ज्ञानदर्शन चारित्ररूप आत्माका परिणाम अथवा ज्ञानादि परिणतिसेजुदामात्माहै यह निश्चयसम्यक्त यहीमो दका मुख्यकारणहै, देवप्रहंतहीहैं, गुरु वधधर्मो पदेशसे मोदमार्गका देखावनेवालाहीहै, केवली काकहा दयामूलही धर्म है, इनतीनोका नय७ प्रा माण २ निक्षेपा ४ इनसे जोत्रछा सोनिश्चयसम्य क्तका कारण व्यवहार सम्यक्त है, कारकी रोचकर दीपक ३ यहत्रिविध, जीवोंकी अच्छीतरहसे अनु ष्ठानमे प्रतिकरावे सो कारकसम्यक्त, यहविशिष्ट पंचमहाव्रत धारियोकोही होताहै, केबल अनुष्ठा नमे रुचिकरावे वहरोचक, यहअविरत सम्यग्दृष्टि योंको होताहै, कोई आपमिथ्यावृष्टि शभव्य अथ वा दूरन्तव्य अंगारमईककी तरह रहे, धर्मकथासे जिनोक्तजीवाजीवादि पदार्थ दूसरोंकों देखावे वह
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दीपकसम्यक्त है ॥ जोशाप मिथ्यादृष्टीहै सोकैसे सम्यक्तीकहावेगा ? ऐसा संदेहनहीकरना, कारण उसमिथ्यादृष्टीके जो धर्माधर्म प्रकाशकरनेका परिणाम विशेषहै सोउस के उपदेश सुननेवालों के सम्यक्तका कारणहै इस हेतु कारणमे कार्यका उपचारकरके मिथ्यात्वी ध पिदेशकनी सम्यक्ती कहाजाताहै, जैसा आयुका कारणघृत आयुकहावताहै, यहसम्यक्त शाधुनिक धर्मोपदेशकोकों कैसानहोगा? होताहै तो "शप डब तेबीजाने किमतारसे,, यह नावविजयका लि खना उत्सूत्रहै, अथवा औपशमिक १ हायिक २ दायोपशमिक ३ यह त्रिविधहै, उदीर्णमिथ्यात्व को अनुलवकरके वीणकरनेसे और अनुदीर्णमिथ्या त्वको परिणामविशेषकी विशुद्धिकरके उपशमक रनेसे जोगुण उत्पन्न होताहै वह ौपशामिक स म्यक्तहै, यहसम्यक्त ग्रंथिन्नेदनकर्ता और उपशम श्रेणी करनेवालोंको होताहै, अनंतानुबंधी क्रोध मानमायालोनका क्षयके शनंतर मिथ्यात्व मित्र सम्यक्त पुंजरूप तीनप्रकारके दर्शनमोहनीय कर्म का सर्वथा दयहोजानेसे जो गुणपैदाहोताहै वह दायिकसम्यक्तहै, यह क्षपकश्रेणी करनेवाले जी वको होताहै, उदयआएहए मिथ्यात्वको मिथ्यात्व विपाकके उदयकरके नोगनेसे क्षीणहोनेपर और जो शेषसतामेहै उदयनही आया वह उपशांत
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हा अर्थात् मिथ्यात्व और मिश्रपुंजको आश्रयण करके उदयरोका पुंजका आश्रयण करके मि थ्यास्वन्नावको दूर किया इसप्रकार उदीर्णमिथ्यात्व के दायकरनेसे और अनुदीर्णके उपशमकरने से जोगुण उत्पन्न हुशा सो दायोपसमिक सम्यक्तहै, औपशमिक दायिक २ क्षायोपशमिक यहतीन और चौथा सास्वादन ऐसेचतुर्विध, पूर्वोक्त उप शम सम्यक्तके त्यागकेसमय उसकेअंशका जो शनु नव होताहै वह सास्वादन सम्यक्तहै, इनचारोम एक वेदकसम्यक्त मिलावनेसे पंचविध होताहै, दप श्रेणीको प्राप्तनये जीवके शनतानुबंधि क्रोधमान मायालोन और मिथ्यात्व और मित्र इनदोनों पुंजोके क्षयकरनेपर दायोपशमिक रूप तुझपुंज क्षीणहोते रहते उसके अंतिमपुजलका क्षबकरनेमे उद्यतके अंतिमपुजलका जानना वेदकसम्यक्त कहा वताहै, यही पंचविध सम्यक्त निसर्गसे भर अधि गमसे होतेहैं इससे दशाविधनए, अथवा पन्लव णासूत्रमे लिखेहुए दशविध, सोऐसे, स्वनावहीसै जिनोक्तवचनमे रुचिहोना सो निसर्गरुचि १ गुरु केउपदेशसे जिनोक्तवचनमे रुचिहोना उपदेशरुचि २ सर्वज्ञवचनरूप शज्ञामे रुचिहोना आज्ञारुचि३ सूत्रोंकरके रुचिहोना सूत्ररुचि ४ जिनोक्त एकवस्तु जाननेसे अनेकवस्तुओंमे रुचिहोना वीजरुचि ५ विशेषजाननेसे रुचिहोना अभिगमरुचि ६ सकल
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द्वादशांगी के नयजाननेसे रुचिहोना विस्ताररुचि ७ संयमादि अनुष्ठान मे रुचिहोना क्रियारुचि ८ बहुत नजानसकनेसे थोफ्रेमे रुचिहोना संक्षेपरुचि९ अ स्तिकायधर्ममे अथवा श्रुतधर्ममे रुचि होना धर्म रुचि १० • इनकी विस्तारसे प्ररूपणा पन्नवणासूत्र मे देखलेना ॥
"
"
औरजी सम्यक्तके समसठभेद लिखते हैं, परमा र्थसंस्तव १ परमार्थज्ञातृसेवन २ व्यापन्नदर्शनब र्जन३ कुदर्शनवर्जन ४ यह चारश्रद्वानहैं, शुश्रूषा५ धर्मराग ६ वैयावृत्य ७ तीनलिंग हैं अर्हत८ सिठ ९ चैत्य१० श्रुत ११ धर्म १२ साधुवर्ग १३ आचार्य १४ उपाध्याय १५ प्रवचन १६ दर्शनभक्ति १७ यह दश विनयहै, जिन १८ जिनमत १९ जिनमतस्थ२० यह तीन हैं, शंका२१ कांदा२२ विचिकित्सा २३ कुदृष्टिप्रशंसा २४ तत्परिचय२५ यह पांचदूषण हैं, प्रवचनी २६ धर्मकधी २७ वादी२८ नैमित्तिक२९ तपस्वी ३० प्रज्ञप्त्यादिविद्यावान् ३१ चूर्णजनादिसि ठ ३२ कबी ३३ यह आठ प्रभावकहैं, जिनशा सनमे कुशलता३४ प्रभावना३५ तीर्थसेवा३६ स्थि रता३७ जक्ति३८ यह पांच भूषण हैं, उपनाम ३९ संवेग४० निर्वेद४१ अनुकंपा ४२ आस्तिक्य ४३ यह पांचल हैं, परतीर्थिकादिस्तुति ४४ नमस्का र४५ आलपन४६ संलपन४७ अशनादिदान ४८ गंधपुष्पादिप्रेषण४९ यह व यतनाहैं, राजाजियो
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( १९३ .)
ग५० गणाभियोग५१ बलानियोग ५२ देवाभि योग५३ कांतारवृत्ति५४ गुरुनिग्रह.५५ यहबबंडी शागारहैं, मूल५६ द्वार५७ प्रतिष्ठान५८ आधार ५९ नाजन६० निधी६१ यह कन्नावनाहैं, शस्ति जीव६२ वह नित्यहै६३ वह कर्मकर्ताह६४ किये कर्मको नोगताहै६५ उस्कानिर्वाणहै६६ उस्कैनि र्वाणका उपायहै ६७ हय स्थान हैं, इस प्रकार लक्षणभेदोंसे विठठ निर्मलसम्यक्त होताहै ॥
इनसनोंका अर्थ दृष्टांत सहित लिखतेहैं, पर मार्थरूप सात्विक जीवाजीवादि पदार्थामे आद रपूर्वक जानने के लिये अभ्यास १ परमार्थके जानने वाले प्राचार्यादिकोंका सेवन२ निजावोंका त्याग३ सौगतादि निंदितमतका त्याग यहचारहानहैं, अर्थात् यहसच्चहै ऐसा निश्चय करावनेवालेहैं इस लिये पहिले दूसरेका शाचरणकरना और तीसरे चौथेका त्यागकरना, नहीतो जैसा अमृत समान गंगाजलन्नी लवणसमुद्रके संसर्गसे तत्काल खारा होजाताहै, वैसेही सम्यग्दृष्टीनी कुसंगसे मिथ्या दृष्टी होजायगा, बोधका कारण धर्मशास्त्रके सुन नेकी इच्छा १ जैसा कोईसुखी चतुररागी तरुण पुरुष श्पनीस्त्रीसहित होके देवताओंका गानासु ननेकी इच्छाकरताहै, वैसेही सम्यक्तहोनेसे नव्यों को सिछांत सुननेकी इच्छा होती है। चारित्रादिधर्म मे प्रेम २ जैसा कोई जंगलसे निकल दरिद्रीभूखा
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( १९४ )
प्यासाब्राह्मण गुलगुलाखाने की इच्छा करता हैं, वैसे ही सम्यक्ती जीव कर्मके दोष से अच्छे अनुष्ठानादिधर्म करनेमे असमर्थ होकेनी अच्छे कर्ममे इच्छा होती है । अर्हत और धर्मोपदेशकगुरु इनकी पूजा वि श्रामणादिकरनेका नियम ३ जैसा श्रेणिकराजाने अविरती होकेनी प्रतिदिन सोनेके एकसोयाठ जवोंसे भगवानके आगे साथियाकरनेका नियम कियाथा, उसपुण्य से तीर्थंकरगोत्र उपार्जन किया, इनतीनोंसे सम्यक्तका निश्चय होता है इसलियेलिंग कहावतें हैं ॥ अर्हत, तीर्थंकर १ सिद्ध, क्षीणाष्टक र्म २ चैत्य, जिनेंद्र प्रतिमा ३ श्रुत, आचारादिया गम ४ धर्म, कांत्यादिरूप ५ साधुवर्ग, श्रमणस मुदाय ६ च्छाचार्य, छत्तीसगुणके धारणकरनेवाले गणस्वामी ७ उपाध्याय, सूत्रपाठक८ प्रवचन, जी बाजीवादितत्वकथन ९ दर्शननक्ति, सम्यक्तवान् मेनक्ति १० इनदसोंमे विनय अर्थात् पूजा छागे यावते देखके उठके सामने जाना, शासनादिदेना, इत्यादि बाह्यविनय, और इनमेप्रीति, इनकागुण कीर्तन, निंदात्याग और आज्ञातनापरिहार इत्या दि. आभ्यंतरविनय ॥
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जिन, वीतराग १ जिनमत, तीर्थंकरप्रणीतस्या द्वादरूप जीवाजीवादितत्व २ जिनमतस्थित, जि नेंद्रकेवचनोंका अंगीकार करनेवाले साधुआदि ३ यही तीनसार है इनसे जिन्नसंसार मे सबनिस्सार
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है, ऐसे विचारसे सम्यक्तशोधित होताहै इसलिये ठछि कहावतेहैं ॥
॥ रागद्वेषरहित यथार्थ उपदेश करनेवाले सर्वज्ञके वचनोमे संदेह १ अन्यअन्यमतके देखनेका शनि लाष २ जिनाज्ञानुसारी चारित्रके धारणकरनेवाले साधुओंकी निंदा ३ कुतीर्थियोंकी स्तुति ४ कुती र्थियोंसे आलापादि संबंध ५ यह पांचसम्यक्तको दूषितकरतेहैं इससे दूषणकहावतेहैं।
जैसा किसी एकनगरीमे दोबनियेथे वह दोनों प्राक्तन कर्मसे दरिद्रीथे एकसमय वहदोनो किसी एकसिहपुरुषको देखके अपनी दरिद्रता दूरकरने केलिये सेवाकरनेलगे, उससिझने सेवासे प्रसन्न होके दोनोंको दो कंथादी और कहाकि तुमदोनो यह कंथा छमहीनेगलेमे बांधेरहो रोजपांचसे असफी यहदेगी, तबवहदोनो कंथालेकर घरआए, उनमे से एकने यहविचारा कि यहकथा क्याजाने असफी देगीयानही ऐसीमनमे शंकाकरके औरजनके लजा से वहकंथा फेंकदिया, दूसरेने निशंक और लजा छोफके छमहीने गलेमेबांधररका उससे वह वडा धनी होगया, तब वहकंथा फेंकनेवाला उसकीधन समृद्धीदेखजन्मन्नर सोचकरनेलगा और दूसरा सु खभोगकरनेलगा, इसलिये नव्यजीवको अच्छेवस्तु मे थोडीभी शंकानही करना ॥ १ ॥ ॥ जैसा किसी एकनगरमे ब्राह्मणथा, वह रोज धारा
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नामक अपनेकुलकी देवताका शाराधन करताथा अनंतर चामुंडाका प्रत्नावसुनके उसकीनी आराध ना करनेलगा, इसप्रकार कुछदिन बीतनेपर एक दिन दूसरेगांवमे जातारहा मार्गमे नदीउतरते उस नदीका अकस्मात् पूरआवनेसे डूबताहुआ घबरा यके हेधारादेवी हमारी रक्षाकरो, हेचामुंडादेवी हमको बचाओ ऐसा दोनोका स्मरणकरने लगा, तब वहदोनो देवीशांई पर आपुसके ईर्षासे दोनो मेसे एकनेनी उसको नहीबचाया वह डूबगया, इसलिये अपनेहितकी इच्छावानको कदापिअन्या न्यमत देखनेका भिलाषनही करना ॥ २ ॥ __ जैसा महामंगलभूत गुरुप्रादिकोंको सन्मुख आ वतेदेखके अमंगल यहहुमा अब हमाराकार्य नही होगा इत्यादि मनमे चिंतनकरनेसे सम्यक्तदूषित होताहै अर उस्से दुधर्मबंध होताहै ॥ ३ ॥
जैसा किसी एकसमय राजगृहनगरमे श्रीवर्द्धमा नस्वामी आए, तबश्रेणिकादि श्रधालुलोग उनके वंदनाकेलिये वहां उपस्थितहुए, उससमय सौधर्म कल्पवासी दर्दुरांकनामादेव अपने चारहजार सा मानिकदेवोंके सहित भगवान्के दर्शनकेलिये आय के श्रीभगवान्के आगे बत्तीसप्रकारका नृत्यकरके स्वस्थानको चलागया, तबगौतमने पूछा हेनगवन् ! इसदेवने इतनीसमृद्धि किसपुण्यसे पाई? नगवा न् बोले इसनगरीमे एकमहाधनी नंदमणिकारसेठ
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( १९७ )
बसताथा, वह एकदा हमारेमुखसे धर्मसुनके सम्य क्तपूर्वक श्राद्धधर्मपालने लगा, कुबदिनबाद कुती र्थियोके संसर्गसे सम्यक्तघटने अर मिथ्यावृष्ठित्व बढनेलगा, ऐसे मिश्रितपरिणामोंसे कालबितायते एकदा गमौकेदिनमे पोसासहित बेलेका ब्रतकिया, उसमे तीसरेदिन आधीरातकेसमय तृषासपीडित होके शर्तध्यान करताहुशं यह विचारनेलगाकी धन्यहैं वहलोग जो कंत्रा बापी तलाव बनावतेहैं, और धर्मोपदेशकोंनेभी यह धर्मउत्तम कहा, जोकोई इसधर्मकार्यको बुराकहतेहैं व्यर्थहै, क्योंकि गमीमे तृघ्नाकुल दुर्बलप्राणी उनबाउली आदियोंमे आ यके जल पीते हैं इसलिये हमनी कल एकबडी बा पी बनवावेगें जिससे सदापुण्य बनारहे इसप्रकार चिंतनकरता रातबितायके सबेरेउठ पारणकरके श्रेणिकराजासे आज्ञाले वैनार गिरिकपास एकबडी बापीबनवाया उसके चारोतरफ बगीचे और दा नशाला देवमंदिर बनवाये इसअवसरमे कुद्रष्टि योंके परिचयसे सर्वथा धर्मभ्रष्टहोगया उससे श रीरमे सोलह महारोग होगए उनकी पीठासे मरके उसीवापीमे मेकाहा वहां अपनी वापी देखनसे जातिस्मरण हुआ और धर्मकी विराध नाका फलजान विरक्तहोके नियमकिया कि प्रा जसेनित्य बेलाव्रतकरना पारणकेदिन वापीकेतट पर प्रासुक जल और मही मिलेगी नदणकरना
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उससमय उसीवापीमे स्नान वास्ते आए लोगोंके मुखसे मेराआवना सुना मुझको पूर्वभवके धर्माचा र्य जान वंदनाकेलिये शावनेलगा मार्गमे श्रेणिक के घोडके टापसे मरके छनध्यानके योगसे दर्दरां कनामा महर्द्धिकदेवता हुशा अवधिज्ञानसे मुक को इहां शयाजान आयके वंदनापूर्वक रिद्विदे खायके गया ऐसा कुतीर्थिपरिचयकाफल सुनके सम्यक्तियोंको सर्वथा उनका परिचयनही करना ॥ - प्रवचन द्वादशांगी रूप उसका कालोचित सूत्रा र्थधारण करनेवाला आचार्य, जैसे देवर्द्धिगणिद मात्रमण, किसीसमय भगवान् महावीरस्वामीका राजगृहमे समवसरणहुशा, तब नगवान् के धर्म देशनाके अनंतर इंद्रनेपूछाकि इसअवसर्पिणीमे आपकातीर्थ कबतक प्रवृत्तरहेगा? भगवानबोले एकीसहजार वर्षके दुखमा आरेतक, इसआरेके अंतमे पूर्वाह्नमे श्रुत, सरि, धर्म और संघका, म ध्यान्हमे विमलवाहननप सुधर्ममंत्रि और उनके धर्मका, सायान्हमे बादरअग्निका विच्छेदहोगा, ऐसातीर्थ बिच्छेदहोगा, पुनः इन्द्रनेपूबाकि शाप का पूर्वगतश्रुत कितनेकाल रहेगा? नगवान्बो ले, एकहजार वर्षतक् शनंतर विच्छेद होजायगा, इंद्रनेफिरपूडा किसआचार्यसे फिरसबपूर्वगत श्रुत
शवेगा? नगवान्बोले,देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणसे, फिरइंद्रने पूछा, आजकाल उस्काजीव कहांहै ? न
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( १९९ .
गवान बोले, यह तुम्हारेपास है हरिणेगमेषीदेव तुम्हारासेनापति, इंद्र यहसुन के हरिणेगमेषीकी प्र शंसा करके स्वस्थानको गए, अनंतर हरिणेगमेषी अपना स्वर्गसे च्युतिकाचिन्ह देखके 'जो नवीन हरिणेगमेषी होगा सोहमको मानुषदेहमे प्रतिबो धदे, ऐसी इंद्रसे प्रार्थनाकरके जंबूद्वीपके जरत त्रमे सौराष्ट्रदेशके अपनेविमानके जीतमे जो हरि गमेषी इसविमानमे होगा वह हमको प्रतिजवमे प्रतिबोधदे ऐसा लिखके वेलाकूलनगर मे रिदमन राजा केबीजसे कलावतीराणी के गर्भमे उत्पन्न हुआ, उसका देवर्द्धिनामरखा वह जब वारहवर्षका हु आ तब दोरानियो के साथ कामसुख अर मित्रों के साथ शिकारखेलनेमे तत्परहोय धर्मकी बार्तानी नही जानता था । अनंतर हरिणेगमेषीके स्थानपर दूसरा हरिणेगमेषी देव हुआ । उसने इन्द्रकेच्छाज्ञा से देवर्द्धिको प्रतिबोध देनेके लिये एकपत्रमे यह लिखाकि अपना भीतमेलिखा हुआ सफलकरो अर संसारको विषके ऐसा त्यागकरो यह हरिणेगमेषी कहता है । ऐसा लिखके वहपत्र अपने सेवककेहात से आकाश से देवर्द्धिकेऊपर फेंक दिया । देवर्द्धि वह पत्रदेखकेजी अर्थनसमका । फिर स्वप्नमेभी कहा तोभी नसमा । फिर शिकारखेलते जंग लमे चारोतरफसे बडाभयदेखायव्रत ग्रहणका करार करवायके प्रतिबोधदिया । तब देवर्द्धिने लोहिता
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चार्यकेपास दीक्षालेके सब पूर्वगतश्रुतपढके श्री केशीगणधरके संतान देवगुप्तगणीकेपास प्रथमपूर्व का अर्थपढा.। द्वितीय सूत्रके शर्थपढनेमे विद्याग रुशांतहए तब इसको योग्यजानकेपदपर स्थापित किया। तब पहिले गुरुने गणी ऐसा और द्वितीय गुसने दमात्रमण ऐसा नामरखा उसदिनसे देव र्द्धिगणिदमाश्रमण इसनामसे प्रसिछहा तिस कालमे ५०० आचायमे मुख्य कलिकाल केय ली सब सिधांतकीबाचना देनेवाला यह देवर्द्धि गणीमात्रमण शत्रुजयगया जाके कपहीनाम यक्षका शराधनकरके प्रगट होनेपर कहा कि जिनशासनकी रदाकेलिए तुमाराशराधन मैंनेकि याहै, सोयहहै कि शाजकल बारहबरसका काल पठनके बाद श्रीस्कंदिलाचार्यने माधुरी सिहांतकी वाचनाकिया, तोनी कालस्वन्नावसे लोगोंकी बुद्धि हीन होनेसे सिछांत भूलजातेहै और भूल जायंगे, इसहेतु तुम्हारीसहायतासे पत्रोंपर लिखने का मे रामनहै, इससे जिनशासनकी बडीरताहोगी, मंद बुछीनी पुस्तकोंको देखके पढसकेंगे, देवतानेकहा बहुत सुंदरहै होय, तब देवताकी सहायतासे पत्र द्वारा सब शाचार्यसाधु एकछेहोवल्लभीपुरमे सिद्धांत सव पत्रोंपर लिखेगए, जो अंगोमेउपांगके आलावे प्रमाणभूत, जगेजगे विसंवाद, संख्याका वीपरीत पन अर जगेजगेपर माथुरीवाचना यहसब देख
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पडते हैं, इसमेसंयोजना कारणहै, पहिले आर्यर तिने सिद्धांतका जुदा अनुयोग किया, दोयम् स्कंदिलाचार्यने वाचनाकिया, तीसरे देवर्द्धिगणीने पुस्तकारूढकिया, इससे सुधर्मास्वामीकी वाचना विशृंखल होगई कालका स्वभाव प्रतिकठिन है, इस प्रकार सिद्धांतके उद्धारादिकरने से देवर्द्धिगणिमा श्रमण जिनशासन के प्रजावकभए ॥ धर्मकथी धर्म की कथा कहनेवाला सोकथा चारप्रकारकी आ पणी, विक्षेपणी, संवेदनी औरनिर्वेदनी, जिसमे हेतु और दृष्टांत से स्वमतस्थापन कियाजाताहै वह आक्षेपणी १ जिसमे मिथ्यादृष्टियों कामत पूर्वापर विरोधदेखायके खंजन किया जाता है वह विपणी २ जिससे मोका अभिलाष उत्पन्नहोय बह सं वेदनी ३ जिससे वैराग्य उत्पन्न होता है वह नि वैदनी ४ जैसे नंदिषेण, एकदा श्रीमहावीरस्वामी राजगृहयाए तब श्रेणिकराजाके पुत्रनंदिषेण भग वानके वंदनाके लिये आयके भगवानकी देशना सुनके प्रतिबुद्ध होय प्रव्रज्याकी श्राज्ञा भगवानसे मांगा, भगवानने जैसी तेरीइच्छा इतनाही कहा प्रतिबंध मतकरो यह नहीकहा, अनंतर मातापि ताके आज्ञासे दीक्षामहोत्सव होनेलगा तब शास नदेवीने आकाशमेसे कहाकी अनीतेरा भोगकर्म है तथापि भगवान से दीक्षालिया, दशपूर्व तक प ढा, भोगकर्मके उदयसे पहिला कियाहुआ जोग
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विलास यादहोनेलगा, मनस्थिर होनेकेअर्थ बहुत उपायकिये परंतु स्थिरनहुआ, एकदिन आहारके वास्ते धोखेसे वैश्याके घरमेगए, जोतुके श्रद्धाहै तोमुके निदादे तुझे धर्मलान होय, वेश्याबोली इहां धर्मलाभसे सिछि नही अर्थलानसे सिठिहै, लब्धियुक्त साधुने तथास्तु कहके साढेबारह करोड असफी बरसायदिया, ऐसा महानिशीथमे कहा, ऋषिमंडल टीकामेतो तृणकेबचनेसे वृष्टिहुई लि खा, परंतु दोनोंमे लब्धिहीकारणहै इससे सामान्य विशेषनावसे दोनोंकी एकवाक्यताहै विसंवाद न हीहै , अनंतरवेश्या चकितहो शीघ्रउठके साधु को हावभाव देखाती हुई मनको चंचल करायके बोली, हे स्वामी आपने इन अशर्फियोसे मुके खरीदलिया, अब आप प्रसन्नहोके अपना धनभो गिये, इत्यादिअनेक वचनोंसे मुनिका मनचलग या, उसके वशहोके नोगकर्मोदयसे उसके साथ नोग करनेलगा, परंतु एक उसनेप्रतिज्ञा कियाकी प्रतिदिन दसपुरुषोंको धर्मोपदेशदेके भोजन क रूंगा, कदाचित् उनमे एककम होगातो हम ही दसवें होंगे, बारह वर्षतक दसकामी पुरुषोंकों प्र तिबोधदेके नोजनकरताथा, एकदिन नवकों प्रति बोधदिया दसवां एकसोनारको चारप्रकारके कथा ओंसे प्रतिबोधदिया परंतु प्रतिबोधनलगा, प्रत्युत वह इनको कहनेलगाकितुम शाप विषयकीचळमें
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फसेहो सोनही देखते दूसरेको प्रतिबोध देते हौ ? इतनेमे उसवेश्याने भोजनके वास्ते पुकारा मुनि दसकी प्रतिज्ञापूरी नहुई इस्से नउठे तब वेश्याने कहा दसवें तुम्हीहोके जोजनकरो, इतना सुनते ही मुनि जोगकर्मदयसे तथास्तु कहके फिर मुनिका ब्रेषलेके जगबानू के पास आायके महाव्रत लिया, निर्मल चारित्रपालन करके अंतमे समाधी से मरके स्वर्गमेगया, वहांसे च्युतहोके महाविदेह से सिद्ध होगा ऐसा वीरचरित्रमे लिखा है, महानिशीथमेतो केवल ज्ञान हुछ ऐसा कहा है, यह विसंवाद है, इसनंदिषेणने धर्मकथी होके बारह वर्षतक वेष बोड वेश्या के घरमेरहके जी प्रतिदिन दसकामी पुरुषोंको प्रतिबोधदिया उन्होने प्रतिबोध पाया तो आधुनिक धर्मोपदेष्टा वेषधारी साधुओंके उ पदेशसे सम्यक्त नहीहोगा पापहोगा दुधाणहुवो इयाणं यह भावविजयका कहना संसारको बढा वने वाला है ॥
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वादी ३ वादि, प्रतिवादि, सभ्य अर सभापति इसचतुरंग सनामे प्रतिवादीका पक्ष खंडन और अपना पक्ष स्थापनकेलिये अवश्य बोलनेवाला, जैसे मल्लवादीने प्रत्यक्षादि प्रमाणकुशल प्रतिबा दीके जयसे राजाके इहांसे बडी प्रतिष्ठा पाईथी ॥ नैमित्तिक ४ निमित्त अर्थात् तीनो कालमेका ला भालानादि कहनेवाले शास्त्रका जाननेवाला जैसे
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भद्रबाहुस्वामी उनका वृत्तांत प्रसिठहै। तपस्वी ५ अष्टम दसम पद पण मासढ़पणादि तपश्चर्याका री, जैसे धान्यकसाधु ॥ प्रज्ञप्त्यादि विद्या शासन देवी सहायहै जिसको ६ जैसे वज्रस्वामी प्रसिछ हीहैं ॥ चूर्ण, अंजन, पादलेप, तिलक, गुटिका, सकल भताकर्षण और वैक्रियादि सि७ि संघ कार्य और मिथ्यात्वके नाशके लिये यथावसर इनकाप्रयोक्ता, जैसे शार्यसमित सूरी, भाभीर देशमे अचलपुर नगरथा, उसमे बहुतसे श्रावक रहतेथे, उसनगरके पास कन्ला और वेन्ला नदि योके बीचमे ब्रह्मद्वीपहै, उसमे बहुतसे तपस्वी रहतेहैं, उनमे एकतापस पादलेप क्रिया जानने से पांवमे शौषधिकालेप लगाय स्थलके ऐसा जल मे चलके नदीकेपार अचलपुरमे पारणाकरने जा ताथा, उसकोदेख बऊतसे मिथ्यादृष्टी जिनमत की निंदाकरते ऊये नावकोंसे कहा 'देखो हमारे मतके गुरूकी यह प्रत्यक्ष सिद्धीहै इससे हमारे धर्मके तुल्य दूसराधर्म नहीहै, यह सुनके उनको उत्तरदेते भर उसतपस्वीपर भक्ति न करते जिन मतही पर आरूढरहे, शनंतर अनेकसिछिसंपन्न आर्यसमितसूरी वहां आयगये, तब सब श्रावक बके आवरसे सामेला करकेलेआए, और उसता पसका वृतांत कहा, तब आर्यसमितसूरीने कहा कि यह कपटतापसहै पांवमेलेप लगायके सिछी
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देखावताहै, यहसुनके श्रावकने उसकी परीक्षाके लिये बलसे उस्केपांव गरमजलसे धोवाय दिये, नोजनके बाद वह तापस पांवमेंलेपका अंशहै ऐसे धोखेसे जलपर चलनेलगा सोमबा, तब मि थ्यावृष्टिलोग उसका कपटदेखके जिनमतमे श्रछा वान् ऊवे। अनंतर जिनमतकी प्रभावना कनेकी इच्छासे आर्यसमितसूरि वेन्लानदीमे चूर्णडाल के सबलोगोंके साम्हने कहनेलगे, हेवेन्ले! हमलो ग तुम्हारे उसपार जायगे, इतना कहतेही वेन्ना मे मार्ग होगया उसपार जायके धर्मोपदेशनादेके ब्रह्मद्वीपके सब तापस जैनी करदिये ॥ कवि८ नईनई वचनोंकी गद्यपद्य रूप चमत्कारी रचनाकर्के वर्णन करनेवाला । जैसे सिझसेन, उजनीनगरीके विक्रमादित्य राजाका पुरोहितमुकुंदनामा ब्राह्मण वाद करनेकेलिये नगुकच्छनगरको चला मार्गमे वृक्षवादी सूरी मिले तब जोहारे सो शिष्यहोय ऐ सा नियम करके गवालियों को सादीरखके दोनो वाद करने लगे, गवालियोने कहा हम संस्कृतवा णी नही समझते इससे यह ब्राह्मणकुछ नही जान ता कहके मूर्खबनायदिया, वृक्षवादीने सोचाकि पंमिताई कुबकामनदेगी इसलिये कमरमे रजोह रणबांध तालीबजाय नाचनेलगे भर मुहसेगाने लगे " नविचोरियई नविमारियइ परदारागमण निवारियइ । थोडइ थोफउ दाइयइ सग्गिमटा
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मट जाइयइ । कालउकंबल अरुनी बह बासई नरियउ दीव थट्ट । एवडपभियउ नीलइफाड । अवर किसुंबइ सग्गनिलाड,, ॥ प्रसन्नहोके ग्वा लियोने कहा इस ब्राह्मणको जीतलिया, पीबेरा जसन्नामेभी मुकंदको जीतके अपना शिष्य वना या, कुमुदचंद्र ऐसा नामदिया, सूरिपद देनेके स मय सिठसेन नाम दिया, एकदिन वादके लिये कोइ भह आया, उस्को सुनावनेके लिये नमोप रिहंताणं इनकी जगह नमोहत्सिछाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः ऐसाकहा शोर गुरुसे कहने लगाकि सब सिहांत मैं संस्कृतमे बनाऊं गुरुबोले चारित्र की इच्छा करनेवाले बाल, स्त्री, मंद, मूखोंके लि ये सिछांत सब प्राकृत बनायेहैं, संस्कृतमे बनाऊं ऐसा कहनेसे तुझको बडा प्रायश्रित लगा कहके गच्छसे बाहर करदिया, संघने वृद्धवादीको बिन तोकिया कि ऐसे उत्कृष्ट कवीगुणीको गच्छसे बा हर न करिये, वृद्धवादीने कहा साधुका वेषबगेक नावसे साधुरहके अठारह राजाओको जैनी करे भर एक नवीन तीर्थ प्रगट करे तबगच्छमे लिया जायगा ऐसा वचन गुरुका अंगीकारकरके उजय नीमे गए, एकदिन राजाने रस्तेमे पूछा तुम कौन हो? कहा सर्वज्ञका पुत्र लं, तव राजाने मनमेही नमस्कार किया, सिद्धसेनने ऊंचाहातकर ऊंचेश ब्दसे धर्मलान दिया, राजाने पूछा किसको धर्म
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लान देते हौ ? कहा जिसने हमको नमस्कार कि या, चमत्कार पाय राजा मेराघर पवित्र करनां कहके घर गया, एकसमय सिद्धसेन विक्रमके न वीन चार इलोक वनाय लेके राजाकी ऊडी पर गया, छमीदार के मुख से कहलाया ॥
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दिदृक्षुर्भिक्षुरायातो द्वारेतिष्ठति वारितः । हस्तन्यस्तचतुः नूलोको यद्वागच्छतुगच्छतु ॥ १ ॥ आपके देखनेकी इच्छा से एकनिक्ष आया है हम ने मना किया सो दरवाजेपर हातमे चार श्लोक लिए खडा है इहां यावे वा जाय ? राजानेकहा ॥ दीयतांदशलचाणि शासनानिचर्द्दश । हस्त न्यस्तचतुःश्लोको यद्वागच्छतु गच्छतु ॥ २ ॥ दशलाख दो चउदह शासनदो हातमें चारश्लो कलिए इहां वे चाहेजाय ॥ तब राजाके पास गया, राजा पूर्व सन्मुखही सिंहासन पर बैठेथे, सूरिने एकश्लोक कहा ॥
पाहतेत निस्साने स्फुटिते रिपुघटे । गलिते तत्प्रियानेत्रे राजचित्रमिदं महत् ॥ १ ॥ हेराजन् ! यह बडा आश्चर्य है कि तुमारे नगा रेपर चोप पडनेसे फूटातो शत्रुओंका हृदयरूपी घना भर पानी उनकी स्त्रियोंके यांख से चूनेल गा ॥ यह सुनके राजा दक्षिणदिशा सन्मुख हो बैठे, और मनमे कहा पूर्वदिशाका राज इसकों दिया, सूरीने सन्मुख होय दूसरा श्लोक कहा ॥
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अपूर्वयं धनुर्विद्या नवता शिक्षिता कुलः । मार्गणौघः समभ्येति गुणोयातिदिगंतरम् २॥ हेराजन् ! यह अपूर्व धनुषकी विद्या तुमने क हांसे सीखी जो मार्गणतो समीपाते हैं और ग ण दूर जाताहै, धनुर्विद्यामे जब गुणडोरी कानके पास आवतीहै तब मार्गण बाण दर जाताहै, इ हां प्रापके धनुर्विद्यामेतो मार्गण याचकपास श बतेहैं, तब गुण दानकीर्ति दूर दिशायरोमे जाती है यही पूर्वताहै । दक्षिण दिशाकाराज इसको दिया ऐसा मनमेकरके राजा पश्चिमदिशा सन्मुख होबैठे, सूरीने सन्मुखहो तीसरा श्लोक पढा ॥
सरस्वतीस्थितावन लदनीःकरतलेस्थिता। कीर्तिःकिंकुपिताराजन्येन देशांतरंगता ॥ ३॥ हेराजन् सरस्वती तुमारे मुखमे रहती है, और लक्ष्मी तुमारे हस्तकमलमेहै, परंतु कीर्ति क्यों कु पितहुई जो देशांतरमे चलीगई ॥ पूर्वोक्त विचार से राजा उत्तरमुख होबैठे, सूरीने उसमुखहो चौथा श्लोक पढा ॥ सर्वदा सर्वदोसीति मिथ्यासंस्तूयसे बुधैः । नारयोलेभिरे पृष्टं नवदः परयोषितः ॥४॥ हेराजन्! पंडितलोग तुमारी स्तुति करतेहैं कि राजाविक्रम सदा सर्व वस्तु देताहै यह मिथ्याहै, कारण तुमने शत्रुशोको पीठनहीं दिया और पर स्त्रियोंकों अपने हृदयका आलिंगन ॥ प्रसन्न हो
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राजा तत्कालउठ खडेहुए और कहा चारोदिशाका राजदिया, सूरीने कहा राज्यको हम क्या करेंगे, राजाने कहा क्या मांगतेहौ ? सूरीने कहा जब मैं छाऊं मेरा उपदेश सुनना, राजाने कहा बहुत अच्छा सूरी अपने स्थान गए, एकदिन सूरी महाकाल महादेवकी पिंडीपर पांवदेके मंदिरमे सूतरहे, पू जाकरनेवाले लोगोने देखके बहुततरे से उठाने चा हा परंतु यह किसी तरहसे न उठे तब राजासे पुकार किया, राजाने कहा ताडना देके उठादो, राजाके प्राज्ञासे इनको चाबुकसे मारने लगे तो कशाघात राणीको लगने लगे, राजाने यह सुना तब श्रर्य और खेदसे पूछातो किसी ने कहा महाकालके मंदिरमे कशाघात निक्षूको देते है राणी को लगता है राजा आप महाकालके मंदिर मे छाए सूरीको देख पहचान के पूछा, कैसेमहादेव के पिंकीपर पांवदेके सूतेहौ ? यहतो पूज्य है स्तुति करने लायक है, सूरीने कहा महादेवतो औरही है, जो महादेव हैं, उसकी स्तुति मैं करताहुं तुम सा वधान होके सुनो, सूरीने कल्याण मंदिर के ११ श्लोक पढे, तब भूकंप और धुवांहो महाकालका लिंगफटके भीतरसे धरणेंद्र सहित पार्श्वनाथ २३ वें तीर्थंकरकी प्रतिमा निकली, आचार्यने स्तोत्र पूरा करके कहा, यह प्रतिमा पहले इहां अवंती सुकुमालके पुत्र महाकालने जिसठेकानेसे उसका
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पिता नलिनीगुल्म विमानकों गयाथा वहां मंदि र बनायके विराजमानकीथी, पीछे अन्यमती लो गोने उसको छिपाय उसकेऊपर महादेवका लिंग स्थापन किया, अबमेरी स्तुतिसे प्रकट हुवा, यह सुन विक्रमको बडा चमत्कार ऊवा, और आनंद ऊवा, उसी समय जिनोक्त तत्वरुचिरूप सम्यक्त की प्राप्ति ऊई, राजाने मंदिरकी पूजादिके लिये १०० ग्राम अर्पण किये, और सिद्धसेनसे सम्यक्त ले जैन श्रावक होगया, पीछे सूरीने छौरनी १७ राजाओंको प्रतिबोध जैनी किया और १८ की प्रतिज्ञा पूरीकिई, पीछे वृद्धवादी गुरूनें उस सिद्ध सेनाचार्यको आलोचनादि देके गच्छमे ले लिया, यह आठ सम्यक्तको प्रकाशित करते हैं, इससे प्र भावक कहावतेहैं ॥ द्रव्य क्षेत्र काल भावादिके अ नुसार नानाप्रकारसे मूर्खको भी प्रतिबोधदेना यह जिनशासन कुशलता १ जैसे गुणाकर सूरीने कम लको प्रतिबोधदिया, किसी नगरमे परमश्रावक धननामा रहताथा: उसका बेटा कमलनाम व्यव हारमे कुशलथा परंतु धर्ममेकुबजी नही समऊताथा पिताने उसको बहुत धर्ममार्ग समकाया परंतु कृत कार्य नहुवा, तब एक प्राचार्य गांव के बाहर आए, उनके वंदनार्थ सब लोगगए धनश्रेष्ठोजी गया पनेपुत्रको प्रतिबोध देनेकेलिये प्रार्थनाकिया, तब साधुनेकदा उस्को हमारेपास भेजदेखो, दूसरे दिन
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कमल वहां आयके नीचा मुंहकरके वैठा, साधुने प्रतिवोधदिया और पीसे पूबाकि तैने कुछ जा ना? वहबोला मैंने इसपेडके नीचेसे एकसेशठ मकोळे निकलके बिलमे घुसगये यह जाना, तब साधुने पूछा हमने कहासो कुछजाना, उसनेकहा, कुछनही , तब वह साधु उसको अयोग्य जान वहांसे चलदिया, फिर दूसरे साधुशाए, उनकोनी धनश्रेष्टीने कहा, उन्होंनेन्नी उस्कों प्रतिबोधदेके पूबा कि तुमने कुबजाना? तब उसने कहा कि आपके बोलनेमे एकसे आठवार घांटीऊपर नीचे होने लगी सोजाना और कुबनही जाना वहनी खिन्न हो चलेगए, पीले तीसरे साधु आए, उनको उनदोनो साधुओंका हाल कहा, साधुने कहा अच्छा हमारेपास भेजो, जब वह कमलाया तब साधुनेकहा हेकमल ! तेरेहातमे मबलीके ऐसीरेखा है इससे तुझको धनबजत मिलेगा, इत्यादि ऐसी ऐसी बहुतसी बाते कहते२ बीचबीचमे धर्मकीबातें सुनायसुनाय कुछदिनमे सम्यक्तमे दृढ करदिया। प्रत्नावना २ जिनमतको प्रकाश करनेवाली, सो शाठप्रकारके प्रनावक कहनेसे गतार्थ होगई तथा पि जिनमतके मुख्यतत्व प्रकाश करनेसे और ती थंकर नामकर्म उपार्जन करावनेसे सम्यक्तीकोनी विशिष्ट ज्ञानप्रकाशताकी करनेवालीहै इस्से जुदी गिनीगई। तीर्थसेवा ३ तीर्थ दोप्रकारकाहै, द्रव्य
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से और नावसे, द्रव्यतीर्थ, शत्रुजयादि, नावतीर्थ, ज्ञान दर्शनचारित्रके धारक अनेकन्नव्यजनतारक धर्मोपदेश कारक साधुलोक, इनकीसेवा यथावि धि करनेसे सम्यक्त भूषित होताहै और परंपरासे सिछिलान होताहै, ऐसा नगवती सूत्रमें कहाहै, द्वितीय शतकके पांचवे उद्देशमे ॥
तहा रूवेणंभंते! समणं वा माहणं वा पहुवा समाणस्स किंफला पजुवासणा? गोयमा! सवणफला, सेणंभंते! सवणेकिंफले? णाण फले, सेणंभंते! णाणेकिंफले? विमाणफले, एवं घिरमाणणंपच्चरकाणफले, पच्चरकाणेणं सं जमफले, संजमेणं अणराहयफले, शणराहएणं तवफले, तवेणंवोदाणफले ! वोदाणेणं अकि रियाफले, सेणंभंते! अकिरियाकिंफला? गो यमा! सिछिपजवसाण फला पणत्तेत्ति ॥ स्थैर्य ४ जिन धर्ममे स्थिरता, अन्यमतके चम त्कार देखकेभी विचलित न होना, जैसे सुलसा, सुलसाका वृत्तांत प्रसिझहै ॥ नक्ति ५ प्रवचनका विनय और वेयावच करना, यह देवसंपत् अर
आनंदकी देनेवाली होतीहै जैसे बाऊसुबाऊसा धु, बाऊसाधुने गुरूआदि पांचसौ साधुशोके आ हारादि लेप्रायदेनेकी नक्तिकरनेसे बजानोगक म उपार्जन किया, सुबाऊ साधुने उनसाधुओंकी विश्रामणादि भक्ति करनेसे अतिशय बाऊबल
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उपार्जन किया, दोनो इस प्रकार नक्तिसे सम्यक्त भूषितकरके शंतमे समाधिपरिणामसे देवलोकके अनेक सुखपायके ऋषनदेवस्वामीके पुत्रपणे उ त्पन्लजए, बाऊ भरतनामक होके चक्रवती ऊए सुबाऊ बाऊबलीनामक चक्रवतीसे नी अधिक बलवान् ऊए, तब वह विविधसुख नोगपूर्वक चा रित्रशाराधके मुक्त होगए इनपांचोसे सम्यक्त न षित होताहै ॥ उपशम १ महापराधीके ऊपरनी क्रोधकासर्वथानहोना, यह किसीकोक्रोधकेबुरेफल देखके होताहै, किसीको स्वन्नावहीसे होताहै यह सम्यक्तको लक्षित करताहै। जैसे दमसारमुनि, नरत क्षेत्रमे कृतांगलानाम नगरीथी, उस्मे सिंहरथ रा जाथा उसका पुत्र दमसार बहुतचतुरथा, एकदा श्रीमहावीरस्वामी शाए तब राजासिंहरथ दमसा रको साथलेके नगवान् के वंदनार्थशाए, नगवान् का कहा धर्म सुनके दमसारको रुचि उत्पन्नहुई तब घह उठके भगवान्को वंदनाकरके बोला हेस्वामि न्! आपका कथित सर्वविरतिरूप धर्म हमको बहुत रुचताहै इससे हम आपकेपास प्रव्रज्या लें गे तब भगवान् बोले यथासुख प्रतिबंधमतकरो तब कुमार दमसार घरपर आयके मातापिताकी इच्छानरहतेभी शाग्रहसे आज्ञालेके नगवानसे दी दालेके मासक्षपणका शनिग्रह लिया, और मास दपणादि तपस्यासे शरीर कृश करडाला, उसस
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मय नगवान् चंपानगरीमे आए दमसारनी वहां आया, एकदिन पहिलेप्रहरमे स्वाध्यायकरके दूस रेप्रहरमे ध्यानकरते उसके मनमेआया कि आज हम नगवानकों पूबेंगे कि हम नव्यहै कि अभ व्यहैं चरमशरीरीहैं कि अचरम शरीरीहैं, हमको केवल ज्ञानहोगा कि नही, ऐसा विचारकरके नग वान्के पासजाय तीनप्रदक्षिणा करके वंदना कि याः तब नगवान् शपही बोले हेदमसार! तैने ध्यानकरते जो सोचा सो हम कहते हैं तू नव्यहै, और चरमशरीरी है। केवल ज्ञानतो प्रहर भरमे हो | ता परंतु कषायके उदयसे कुब विलंबहोगा दम सार बोला' हेनगवन् ! हम कषायोदयका परिहा रकरेंगे, पीजे तीसरेपहर पारणकी भिक्षाके लिये चंपानगरीको चले दरवाजेपर कोई मिथ्यादृष्टी मि ला वह किसीकामको जाताथा. उसने साधुकोदे खके अपशकुन हुशा ऐसाविचारा इतनेमे साधुने उस्को नगरीका निकटमार्ग पूछा उसने विचारा जो इसको दुःखमेमालूं तो अपशकुनका फलमिटे, ऐसा विचारके खोटामार्ग बताया कि जिसमे च लनसके, साधुको बडा दुःखभया' तब साधुक्रोधा धीन होय ऐसाविचारने लगाकि इसनगरके लो ग बडे दुष्टहैं, क्योंकि इसने ऐसा मार्ग बतायके दुःखमेंडाला, इसलिये इनको दंझदेना चहिये ऐ साविचार एकजगह बैठ क्रोधसे उत्थानश्रुतको गु
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णने लगा उसश्रुतमे उद्वेगजनक सूत्रहैं उनके प्र नावसे उसनगरको शागलगने लगी, चोरडांकू ल टनेलगे लोग दुःखित होय घर बोझ नागनेलगे, नगर सब शन्य होनेलगा, तब लोगोंको गिरते प फते रोते पीटते दुःखित होते देखके साधुविचार ने लगा कि हा!!! हमने यह क्या किया, निष्कारण इनको दुःखमे डाला. सर्वज्ञका वचन कदापि ऊठा नहीं होता' जो नगवानने कहा वही हुआ. ऐसा सोंचकरते करुणाधीन होय फिर समुत्थान श्रुतका गुणन करने लगा, उस श्रुतमे आल्हादक सूत्रहै, उनके प्रभावसे नगरका शग्निशांत होगया नग रवासी प्रसन्नहोय पहिले ऐसे आयके वसने लगे राजानी स्वस्थ हुआ भयदूर होगया, तब मुनि उपशमपाय नगवान्के पास प्रायके अभिग्रह लि याकि जबतक केवलज्ञान नहोगा तबतक शाहार नकरेंगे, अनंतर अपने प्रमादकी निंदाकर्ता हुवा शुभ अध्यवसायसे सातवेदिन केवलज्ञान हुआ, देवोंने महिमाकिया, फिर दमसारमुनि अनेक ज नोंको प्रतिबोध देतेहुए वारहवर्ष केवलपर्याय पालके अंतमे संलेखना करके सिछ होगए ॥ सं वेग ३ उत्कृष्टदेव सुख और नरसुखका त्यागकर के केवल मुक्ति सुखानिलाष ॥ निर्वद ३ नारक तिर्यगादि संसारिक दुःखोंसे मनकाहटना अर्थात् नवसे विराण होना। यहदोनो संवेग और निवेद
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मुक्तिपदके देनेवाले हैं जैसे दृढप्रहारीको ऊए, मा कंदीनगरीमे सुभद्रश्रेष्ठी बसताथा, दत्तनामक एक पुत्र उस्कोथा वह लडकईमे लडकोंके साथ खेल नेमे लडकोंको दृढप्रहारसे मारे इसलिये उसका नाम लोगोंनें दृढप्रहारी रस्काथा, लोगोने उसे ब ऊत मनाकिया तोजी वहनमाने लडकों को मारा ही करे तब राजाके प्राज्ञासे पिताने उस्को नगर से निकाल दिया, उसके दुष्टता से कहीं रहने को जगह नमिलनेसे चोरोंमे जायरहा, चोरी करनेलगा एक दिन किसी ब्राह्मणके इहां चोरी करने गया वहाँ उस ब्राह्मणंकी गौ जीतर जानेनदे फूंकर्के मारने लगी, इसने उसकों खङ्गसे मारकाला तब ब्राह्मण लाठी लेखाया उस्कोभी मारनाला तब उस्की स्त्री गर्भवती आगेझाई उस्कोभी मारनाला, पीछे उ स्का गर्भ भूमिमे गिराया देखके अकस्मात् उस कौ वैराग्य उत्पन्न होगया, तब वहचोर निर्वेद युक्तहोके मनमे विचारनेलगा हा !!! मैंने यह क्या पापकिया, धिक्कार है हमको ऐसे घोरपापी हम है हमारी क्यागति होगी !! ऐसा विचारके पांच मूंठीलोच करके चारित्र ग्रहण किया, और जब तक हमारा पाप लोगोंके स्मरणमे रहेगा तबतक अन्नपान नलेंगे ऐसा शुभिग्रह करके उसनगरके पूर्वदिशा के रस्तेमे कायोत्सर्ग करके बैठा, लोगोने ढेला मुक्कियोसे बऊतमारा तोजी कुमाही करता
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गया तब पंद्रह दिममे उस्कापाष कोई याद नकरे ऐसा ऊआ, तब दूसरे रस्तेमे बैठा वहांनी ऐसा ही जाआ, एसे चौथे रस्तेमे निष्पाप और संवेग रसमे निमग्न होके छमहीनेमे केवलज्ञान पाय सिछिको पाय गया॥ अनुकंपा ४ दुखियोंका नि कारण दुख दूरकरनेकी इच्छा, वह दोप्रकारकी है द्रव्यसे और भावसे, दूसरेको दुखीदेखके सामर्थ्य रहते जो दुखदूरकरनेकी इच्छा होतीहै सोद्रव्या नुकंपा, हृदयके मृदतासे जो होतीहै वह नावान कंपा, जैसे सुधर्म राजाकों पंचालदेशके वरशक्ति नगरमे सुधर्मराजा राज्यकरताथा, उसका जयदेव मंत्रीथा, एकदिन किसी गांवसे इतने आयके कहा महाराज! महाबल नामा राजा गावोंका नाशा, डांका और लूट इत्यादि उपद्रवोंसे जनोको अति पीफा देताहै, आपही उसको दंड देसकतेहौ, रा जाने सुनके विचारा कि दृष्टोंका नाशकरना यही राजाका धर्महै इसलिये उस्को शासनदेना अवश्य है यह सोचके फौज तैयार करके उस्के ग्रामपर जाय युछकरके उस्को जीतके खुशीसे अपने नगर मे आवनेलगे तैसेही शहरका फाटक टूटा, राजा अपशकुनमान फिरके बाहर रहगये, दूसरे दिन फाटक तयार होनेपरं चले तब फिर फाटक टूटा ऐसा तीनवार टूटा, तब राजाने मंत्रीसे कहाकि किसी जोतिषीको पूछो यह क्यों बारबार फाटक
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टूटताहै ? तब जोतिषीके पूछने से मालूम हुशा कि इसफाटकके देवताको नरबलि देनाचहिये तब नटूटेगा, राजा सुनके बोला यदि मनुष्यके वधसे फा ठक स्थिररहे तो हमको फाटकसे वा नगरसे क्या कामहै जहां हमरहेंगे वहीं नगर होजायगा, तब मंत्रीने नगरके लोगोंसे कहा फाटक मनुष्यका वध किये विना नही बनता, राजातो मनुष्य वधमे अनुमत नहीहै, अब तुमलोग सबमिलके यहकार्य करो, तब नगरवासी लोगोने राजासे कहा शाप कुबमतकरिये हमलोग मनुष्यवधकरके फाटक बना यलेंगे, राजा कुबनी नबोला, तब नगरवासी लो गोंने हापुस्मे धन एकठा करके एक सोनेका पुरुष बनाया उसके आगे करोफरुपैया छक पर रखके नगरमे मुगगी पिटवाय दिया कि जोकोई ए कमनुष्य बलिदेनेके वास्ते देगा उस्कों उस्के बद लमे यह करोफरुपैया सहित सोनेका पुरुषदिया जायगा, तब एकदरिद्री ब्राह्मण अपना बेटा देने को तयार हुआ उस्कों बहुत बेटेथे, तब नगर वा सियोंने वहदेके उस ब्राह्मणके लझकेकोलेके वस्त्र अलंकारसे भूषित करके राजाके सामने लेनाए राजाने उसलाकेकों प्रसन्न मुख देखके पूछा हेबा लक! यह खेदका समयहै तूं प्रसन्न क्यों है, बह बोला महाराज ! कोई पितासे दुःखित होताहै तो माताके शरण जाताहै, मातासे दुःखित होताहै
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तो पिताके शरण जाताहै, दोनोसे संतापित हो ताहै तो महाजनोके शरण जाताहै, उनसेभी पी डित होयतो राजाके शरण जाताहै, इससमयतो मातापिताने धनलोनसे देदिया, महाजनोने धन देके लेलिया, राजानी उस्मे अनुमतहै तो किस्के श रणजाना? केवलपरमेश्वरसेवाय कोई रक्षा करसके गा नही यहसमऊके दुःखित नही होता, यहसुन राजा अनुकंपा रपवश होय महाजनोसे बोला हेम हाजनलोगो! तुमलोग क्या यह बालक वधका च्या पार करतेहौ? विचारकरो, नगर अर फाटक बहु तसे हो जायंगे परंतु यह बालक मरनेपर नहीं आयसकेगा, इतना कहतेही वह फाटक गिरावने वाली देवताने प्रसन्न होय राजा और बालकके ऊपर पुष्पवृष्टि किया, उसीसमय फाटक बनगया
प्रसन्न होय अपने अपने स्थान गये। आस्तिक्य५जिन वचन सत्यहै ऐसी प्रतीति, जैसे राजा पकाशशेखरने सभामे बैठके गुरूपदिष्ट जीवा जीवादितत्व सुनाय के गुरुके इन्द्रिय निग्रहादि गुण वर्णन किये तब एकसभासद विजयनामा यो ला महाराज! यह चंचल इंद्रिय सब, किसी प्र कारसे स्थिरनही होसकतेहैं, तो क्या गुरूजी स्थि र करसकेंगे, राजाने सुनके विचारा यह दुष्ट बुछि है औरोंकोनी विगाडेगा, ऐसाविचारके किसी बल से उसविजयके घरमे संदूकमे पाना रत्नानरण
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रखवायदिया, और शहरमे मुगडुगी पिटवायदि या कि राजाका रत्नानरण गयाहै जिसके इहां नि कलेगा उसको नारी दंडहोगा, इतना कहवायके घरघर तलासी लेते विजयके घरमें मिला विजय कुछ जानता नथा, राजाके पुरुषोने विजयको बां धके राजाके आगे खका किया, राजाने पुरुषोंको गुप्ततासे कहा इस्को मारीमत और उजागरसे हुकुम दिया कि यह चोरहै इस्का वध करो, तब राज पुरुष विजयको शूलीपर चढावनेको लेचले, तब विजयंने अपने मित्रके द्वारा जीवबचनेकी प्रार्थ ना राजाके शागे करवाया , तब राजाने कहा अबा परंतु तेलका भराकटोरा माथेपरलेके विजय शहरमें घूमआवे और तेल नगिरे तो विजयका जीव वचेगा, यह वात विजयने स्वीकार किया, राजाने शहरमे जगेजगे गाना, बजावना, नाच, रंग, और सुंदर सुंदर खीखडी करायदी, विजय माथेपर तेलका भरा कटोरा लेके तैसाही घमके राजाके आगे रखदिया, तव राजा कुब हंसकेबो ले, विजय ! यह चारोतरफ गानाबजाना इत्या दिरहतेनी यहचंचल इंद्रिय कैसेरोके? विजय बो ला, महाराज! मरणके भयले, राजाबोला, विषया सक्तचित्तहो तैने एकभवके मरण नयसे ऐसे इंद्रिय रोके लोशनेकभवमरणसे भीत और तत्वको जान नेवाले गुरू क्योनही रोकसकेंगे, ऐसा राजोका व
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चन सुनके विजयका मोह दूर होगया जिनमतका परमार्थ जानके सम्यक्तको पाय गया ॥ ॥ परमतीकीस्तुति १ उनकागुणकीर्तन, नमस्कार २ उनको वंदना, आलपन३ उनसे थोडा बोलना, सं लपन ४ वारवार बोलना, शशमादिदान५ उनको खानेपीनेकी चीजदेना, गंधपुष्पादिदान ६ परम तीके प्रतिमाकेलिये चंदन फूल इत्यादि देना, यह ब यतना अर्थात् यह नहीं करना चहिये, जैसे धनपाल, उडायनीके राजाका पुरोहित सर्वधरनाम ब्राह्मणथा, उसके धनपाल और शोनन नामकदो पुत्रथे, बडे विद्यावान और गुणीथे एकदा सिह सेनाचार्यके संतान सुस्थिताचार्य वहांआये सर्वध रसे याचार्य से स्नेह होगया, तब सर्वधरने कहास्वामिन् ! हमारे घरमे नमीमे गाडा कोटि धनहै वह कैसे मिलेगा? तब आचार्य बोले जो धन मिले तो? सर्वधरने कहा आधाधन देंगे, तब सूरी ने मंत्रबलसे धननिकालदिया. तब सर्वधरने धन की दोढेरीकिया तब आचार्यने कहा यहधन हमसे को क्या करनाहै, हमजो धनमांगे सो देशो, तब सर्वधरनेकहा कहिये, यह तुम्हारेपुत्र धनमेसे एक पुत्र हमको देओ• सर्वधर सुनके चुप होय नीची मंझीकर बैठरहा. फिर आचार्य वहांसे विहारकर गये अनंतर प्राचार्यका उपकार याद करता हुशा सर्वधर प्रत्युपकार करने नसके इस्से अतिशय
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दुःखित हो मरणासन्न होगया, तब पुत्रोने पूजा हेतात! शापको क्या दुखहै, शाज्ञाकीजिये सर्व घरबोला हेपुत्रों! तुम दोनोमेसे एक जैनधर्म चा रित्रपालके हमको अनृण करदेओ. धनपाल सुन
के जीत होय नीचा मुखकर बैठा. शोभन बोला | हम दीदालेके आपको अनृणी करेंगे इतनासुन के पिता थानन्दित होय देवलोकमे मया, उसके मृत क्रियाके पीने शोननने वर्द्धमान सूरि शिष्य जिनेश्वर सूरीके पास दीवालिया, धनपाल कुछ होय उसदिन से जैन धर्मका द्वेषी जमा, उजाय नीमे साधुओंको आवनेनदे, तब बहांके श्रीसंघ ने यह उपद्रव जिनेश्वर सरिको लिखभेजा, सोसु नके चाचार्यने शोजनको वाचनाचार्य करके सा धुशेकी साथ देके शोभनाचार्यके उपद्रव शांति के लिये उजायनीमे भेजा. शोननाचार्य उजाय नीमे आये रात्रिके समय फाटक बंदथा बाहर टिकरहे, सवेरे प्रतिक्रमण करके नीतरजानेलगे तैसेही सामने धनपालमिला उसने शोजनाचार्य को देखके नचोन्हके द्वेषसे उपहासकर्कयोला “ग ईभदंतनदंतनमस्ते,, ऐसे गदहेके दांतके नदंत! तुमको नमस्कार, ऐसा वाक्य सुनके नाई जानके नी उसके वचनऐसा वचन यहभी बोले "कपि वृषणास्यवयस्यसुखंते,, बांदरकेवृषण समान मुख वाले नाई सुखहोय तुझको, फिर धनपाल बोला,
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"कुत्रनवेनवदीयनिवासः,, कहां तुमारा बासहोगा शोलनवोले “यत्रनवेनवदीयनिवासः,, जहांतुम्हा रा वासहोगा, इतना सुन भ्राताको चीन्हके धन पाल लजितहो चलागया,फिर शोनन नगरीमे पैठ चैत्यमे जिन वंदनकरके बाहर निकले इतनेमे सं पत्नी शायमिला. उनको धर्मदेशना सुनाय साथ मे लेके माताके इहां गए , भ्राताने विनयपूर्वक अपने चित्रशालामे टिकाया, मातास्त्री शादिकोंने प्राहारकी सामग्रीकिया सो शोननने निवारण कर दिया, कारण आधाकर्मिक आहार साधुओंकोमना कियाहै पीबेसे साधुलोग आहारलेआबनेकों प्रक्षा || लु श्रावकोंके घरगए धनपालभी उनके साथचला एक दरिद्र श्राविकाके घरमेगए तब उसने साधु के आगे दहीका वर्तन रखा, साधुने पूड़ा दही ठहै ? तव उसनेकहा, तीन दिनकाहै, तब वह दही साधुने नही लिया, धनपालने पूकायह दही लेने लायक क्यों नहीं ? साधु बोले अपने माता ही से पूछना, धनपाल दहीका भांडलेके शोननके पास आय पूबा इस दहीको बुराकहा तो इसमे कीडा हमको देखाय देखो तो हमभी जैनधर्मा हो जायगे, शोजनबोले हमकीडा देखावतेहैं,पर तुम शपने बचनपर रहो, तब शोजनने अलता दधि नांडमे लगायके घाममेरखदिया कणमात्रमे सपेद सपेद कीमा उसलत्ते में देखाई देनेलगे, धनपाल
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देखके जगतमे धन्यहै जैनधर्म ऐसा कहता ऊया सम्यक्तपाय गुरुके पाससे द्वादश व्रतलेके पालन कर्ता हुआ उसो यतनाओंको कर्ताऊश विहार करनेलगा, एकदा किसी दुष्टने राजानोजसे कहा हेमहाराज! शापका पुरोहित धनपाल जिनके विना किसी देवताको नही मानताहै, तब राजाने परीहाके लिये पुष्पादि पूजा सामग्रीदेके कहाकि इहां देवताओंकी पूजा करशाओ, धनपाल राजा की आज्ञालेके पहिले नवानीके मंदिरमेगया वहां इधरउधर देखके बाहर निकल शिवमंदिरमे गया वहांसे वैसेही बाहर निकल विघ्नुके मंदिरमे जा य कपसे विस्तुको श्राफकरके बाहर निकल ऋ षनदेवके मंदिरमे आय प्रशांत चित्तसे पूजाकर के राजाके पास आया, राजाके चार पुरुषोंने इ सका वृत्तांत राजासे कहा , राजाने पूछा देवता ओंकी पूजाकिया? उसने कहा महाराज!शच्छी तरहसे किया, तब राजाने पूबा नवानीकी पूजा किये विन क्यों बाहर निकलआए, उसनेकहा ले ऊसे नरा खग हातमेलेके भुकटी चढायके नवानी महिषासुरका मर्दन करती हैं देखके फरसे बाहर आए और विचारा यह पूजा समय नहीहै युछ का समयहै, शिवके पूजामेकहा जिस्को कंठनहो उस्कों माला क्याचढावें नाकनही धपक्यादें, कान नही क्या स्तुतिकरें, पांवनही क्या प्रणामकरें, वि
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धनुके पूजामे कहा' विष्णु अपने स्त्रीकों गोदोमेले के बैठेथे हमने विचारा यह अंतःपुरमे स्त्रीसेक्रीडा करते है पूजाका अवसर यह नहीं है, कपडा जो लगाया कि स्त्री के साथ विहार कोई देखनेन पावे झाड करदिया, बिना कहे ऋषनदेवकी पूजाकिया उस्मेकहा छापने देवताकी पूजा करने की आज्ञा दियाथा देवतातो ऋषभदेवही देखपढे, इस्से उन कीपूजा किया देवका स्वरूपतो यहहै, शांतरससे नरेऊए नेत्र और प्रसन्न मुख, देह स्त्रीसंग रहित हात शस्त्ररहित है इस्से वीतरागही देवहै, हेराज नू ! जो रागद्वेष युक्त है वह देव है उसमे देवत्व भी नही और संसार तारकताजी नही है, देवता संसार तारकही होता है, वैसेतो एकजिनेंद्र भगवान् हीहैं, इसलिये मुक्ति के अर्थ उन्हीकी सेवाकरना चाहिये, यह सुनके राजा प्रशंसा करनेलगे, एक समय ब्राह्मणोने राजासे यज्ञ करवाया, उसयज्ञमे arरेको वधकर्ते देखके राजाने कहा यह वकरा क्या बेंबें करता है, धनपाल बोला यह बकरा क हता है हम स्वर्ग फलके इच्छावान् नहीं हैं केवल तृण लक्षणसे संतुष्ट है तुमारे मारने से यदि हम लोग स्वर्ग जायंगे ऐसा है, तो अपने माता पिता को मारके क्योंनही यज्ञ करते वहभी स्वर्गगामी होंगे, राजा यहसुनके मनमे कुपितहो चुपहौरहे, एकदा राजाने एकतलाव बनवाया, जब वह जल
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से भरगया तब राजा पंडितोको साथलेके देखने को गया, पंडितोंने तलावका खब वर्णन किया धनपाल कुछनी नबोला, तब राजाने कहा तुम नी कुछ वर्णन करो, तब धनपाल बोला महारा ज! यह तलाबके रूपसे तुम्हारी दानशालाहै म त्स्य इसमे खाद्य वस्तुहैं, बक चक्रवाक सारस आलि दानपात्रहैं इस्से क्या पुण्यहोगा इस्मे हम नहीं जानते, राजा यह सुनके बऊतही कुपितहो गये, और मनमे यहविचारा यहदुष्टहै इसकी शंख निकलवायलेना, अनंतर वहांसे चलके शहरमेश वते चौमोहानीपर शाये तब एकलझकीका हात पकडे बुढी चली आवतीथी, राजा उस्को देखके पंडितोसेबोले हेपंडितलोग! सुनो "करकंपावे सिर धुने बुढी कहा करेह,, यह सुनके कोई पंमितबोला "हक्कारांतांकभमां नन्लंकार करेह,,तव अवसरपाके चतुर धनपाल बोला राजन् ! यह बुढी जो कहती है मैं कहताहुं सुनिये क्या यह नंदिहै, क्या यह मुरारिहै, क्या कामदेवहै, क्या नलराजाहै। क्याकु बेरहै। किंवा यह विद्याधरहै, क्या इंद्रहै क्या चंद्रहै क्या ब्रह्माहै ? ऐसे लडकीके पूबनेपर मूंडी हिला यके नहीनही यह नोजराजाहै ऐसा कहतीहै यह कहते राजा प्रसन्न होयबोले धनपाल ! मांगोबर हमदेंगे धनपालने बुछिबलसे राजाका अभिप्राय जान कहा महाराज ! जो हमको वरदान देतेंहै तो
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दोनो नेत्रहमारे ननिकालेजांय, यही वरमांगते हैं सुनके राजा शाश्चर्यहो बोला, तुमने हमारे मनका अन्निप्राय कैसा जाना? धनपालबोला जिनधर्मके सेवनसे. यहसुन राजाने प्रसन्न होय जिनधर्मकी प्रशंसा करते धनपालको धनमानसे पूजितकिया धनपालन्नी बोजयणाको वचावते जिनधर्म पालनकरने लगा ॥राजानियोग १ राजाका जकुम अर्थात् राजाके शाज्ञासे किसीकाममे लगनेसे ध र्मकार्य नहोना इससे धर्मकार्य नहोसकेतोभी पा पनही लगता क्योंकि राजाज्ञा जबरदस्तहै। जैसे कोशा पाटलिपुत्र नगरमे स्थूलभद्र मुनिके पास दीक्षापाय सम्यक्त मूलक द्वादशव्रत पालनेवाली कोशानाम वेश्याथी' उस्कों राजाने किसी धनुर्वि द्याजाननेवालेको देदिया' उस कोशाने इछानरहते भी अंगीकार किया परंतु उसरथीके शागे सर्वदा स्थूलनद्रमुनिकी स्तुति कियाकरे, वहरथी उस्को रिफावनेके लिये वगैचामे जाय बंगलेके खिडकी मे उस्के साथबैठके एकबाण आमके कुपकामे वे धा दूसरा उसबाणमे बेधा तीसराबाण उसबाण मे ऐसाबाणमे बाण बेधते खिडकीतक बाणको लडलगाय हातहीसे आम घींचके तोफके उसको देदिया,कोशानेभी कहाहमारीकलादेखो कहके एक थालीमे सरसोंकी ढेरीलगाय उस्केऊपर फूलोंसे ढकीजाई सूई खडीकरदिया, उसकेऊपर खूबतरह
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से नाचकिया परंतु सूई पैरमे गडने नपाई और सरसोंकी ढेरीनी नही विखरी, यह देखके वहध नुर्धारी प्रसन्नहोय बोला हम तेरे चतुराईपर तुष्ट हैं मांग क्यादें तुऊकों, कोशाबोली यहक्या हमने दुकर कर्मकिया? जिस्से तुम इतने खुशहुए, यह नाचना दुष्कर नहीहै नबाणसे आमतोम्ना दुष्कर है, दुतरतो यहहै जोकि स्थूलभद्रमुनिने किया, यह स्थूलनद्रने पहिले बारहवर्ष हमारेसाथ अनेकभोग नोगे पीछेदीदापाय चारित्रपालते ऊए हमारे इ हां चातुर्मास वासकिया हमने अनेक काम चेष्टा किया तोभी उनकेमनको कुबन्नी विकार बय नही गया, इतना सुनतेही रथीको प्रतिबोध होगया शीघ्र गुरुके पासजाय दीक्षाले चारित्रपालन लगा कोशाभी श्रावकधर्मपालती हुई सुमतिकोपाई ॥ गणानियोग २ स्वजनादि समुदायकी आज्ञा, जै सेविघ्नु कुमारने गच्छके आज्ञासे वैक्रिय रूपरचना करके जिनमतद्वेषी नमुचिनामक पुरोहितको अपने चरणसे मारके सातवें नरकमे भेजा, और आप आलोयणा करके छ होगया ॥ ॥ ॥ । बलानियोग ३ बलवान् पुरुषकीआज्ञा, देवानि योग ४ देवकीआज्ञा, कांतारवृति ५ कांतार घोर वन उसमें वृत्ति कष्टसे जीविका निर्वाह, गुरुनि ग्रह ६ माता पिता कलाचार्यः ज्ञातीयलोग अर धर्मोपदेष्टा इनका निग्रह अर्थात् निबंध' यह ब
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आकार अर्थात् इनसे धर्मकाममे न्यूनता होयतो नी धर्महानी नही होती है ॥ मूल १ यह सम्य क्त पंचाणुव्रतः त्रिगुणव्रत चतुःशिदाव्रत, पंच महाव्रत और चारित्र धर्मका कारणहै
से मल कहावताहै जैसा वृदा मूलहीन वायुसे गिरपडता है, वैसेही सम्यक्त विना जैनधर्मवृक्ष परमतवायु से गिरपडेगा इसलिये यह धर्मका मूलहै ॥द्वार २ यह सम्यक्त धर्मकाद्वारहै, जैसा द्वार रहित नगर चारोतरफ कोठसे घेराहोयतो कोई भीतर बाहर प्रायजाय सकतेनही वैसेही सम्यक्तरूप द्वारबिना जैनधर्ममे प्रवेशनही होता इसलिये यहद्वार कहा वताहै ॥ प्रतिष्ठान ३ जैसा ने विना मकानद्रढ अर स्थिरनही होता वैसाही यहधर्मरूप गृहका न है इस से प्रतिष्ठान कहा ॥ आधार १ जैसा भूतलबिना निरालंब यहजगत्रहसकतानहीवैसाधर्मरूपजगत् सम्यक्तरूप शाधार बिना स्थिरनही होसकता इ स्से शधार कहा नाजन ५ जैसा पात्रबिना दूध नष्ट होजाताहै वैसे धर्मरूपवस्तु सम्यक्तरूप पात्र बिना नष्ट होजायगा इस्से नाजन कहा। निधी६ जैसेखान मिलनेसे अनेक उत्तमरत्न मिलते हैं, वैसे सम्यक्तरूप खान मिलनेसे चारित्ररूपरत्न मिलते हैं। इससे निधिकहा ॥ शस्तिजीव १ जीवहै सब प्राणियोंमे अपने अपने ज्ञानसें, चैतन्य सिझहै इ स्से, नास्तिक कहताहै, जीव नहीहै, चैतन्यतो पंच
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महाभूतोंका धर्महै, जैसे पृथिवीमेकठिनपना इस्का खंडन, यदि चैतन्य पंचमहानूतोंका धर्महोतातो ढेलेमे और मरेमनुष्यादिमेभी चैतन्य होता पंच महाभूतोंसे चैतन्य पैदा होताहै यहनी नहीकह सकते, दोनो विलक्षणहैं इस्से कार्यकारणभाव न ही होसकता. प्रत्यदही पृथिवी कठिन स्वनावहै जल द्रवस्वभावहै इत्यादि' चैतन्यतो इनसे विल कणहै, तो कैसा इनका कार्य कारण नाव होगा इसवास्ते चैतन्य पंचभूतोंका धर्म और कार्यनही है। केवल सब प्राणियोमे स्वसंवेदन प्रमाणसिद्ध है, इसलिये जिस्कों चैतन्यहै वह जीव है, जहां चैतन्यनही वह अजीवहै, इसवास्ते जीव और जीव दोद्रव्य कहे जातेहैं। जीव नित्यहै २ अर्थात् पैदा नहीं होता और नष्टनी नही होताहै उसके पैदा और नाश होनेमे कोईकारण नहीहै। यदि एनित्य कहेंगेतो बंध और मोदादोनो इसएकमे आश्रय नहीं होगा कोई नास्तिक कहताहै जीव दिणकहै ऐसा कहेंगेतो एकको नूकलगेगी दूसरा बनावेगा तीसरा खायगा चौथा तृप्तहोगा क्योंकि उस्कमतमे जीवका दणदणमे उत्पत्ति और नाश है ॥ जीव कर्मकर्ताहै।३ वहजीव मिथ्यात्व अवि रति और कषायादि बंध हेतुयुक्त होकरके उन उन कर्माको करताहै, ऐसा नकहेंगे तो प्राणिप्रा णीमे विचित्र विचित्र सुख दुःखादिका अनुभव
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( २३३ )
कैसे होगा, विचित्र विचित्र सुखदुख होनेमे का रण जीवकृत कर्महीहै। जीव कर्मका फलनोगता है ४ सुखदुखका अनुन्नव जीवको होताहै' इस्से अपने किये नलेबुरे कर्मकेफलका नोगनेवालाहै॥ जीवका निर्वाणहै ५ निर्वाण अर्थात् राग द्वेष मद, मोह, जन्मः जरामरण और रोगादिदुःखों का क्षयरूप अवस्था विशेष मोक्षऔरनिर्वाणकहा वताहै सो जीवको होताहै ॥ जीवके निर्वाणका उपायहै ६ सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तीनो मिलके निर्वाणके उपायहैं, यह कसम्यक्तके स्थान अर्थात् इनके रहतेही सम्यक्त होताहै, यहसम्यक्तके सडसठ भेद हुए, जोनव्यपुरुषवस्तुमाप्रकीसिछिमेपरस्पर थपेद्दासहित काल, स्वन्नाव, नियति, पूर्वकृत अर पुरुषकार इनपांचोको कारणरूपसे प्रमाण करताहै वहीपुरुष सम्यक्तरूप रत्न पावताहै ॥ प्रवचनसारोछाराद्यनुसारेणैववर्णितोमयका । सम्यक्तस्यविचारोनिजपरिचेतःप्रसत्तिकृत॥१॥ यह प्रवचनसारोछारादि ग्रंथोकेअनुसार सम्य क्तनिर्णय हमनेलिखा सजनोके चित्त प्रसन्नताके लिये ॥
काश्यां श्रीगणिरामचन्द्रचरणाम्भोजन्मभङ्गा यितो भिक्षुर्नानकचन्द्र आर्य उदयत्सूराणग च्छाश्रितः । शाके वैक्रमबाणवन्हिनवभू प्र • ख्ये सितेकार्तिके षष्ठयांतत्वविवेक माविलम
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( २३२ )
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तिनाछ प्रबोध्यै व्यधात् ॥ १ ॥ श्रीमद्रामचंद्रगणीके चरणकमलमे भंगके समान आर्यावर्तमे उदित सूराणगच्छके शम्नायी ऋषि नानकचंद्रने विक्रमके उन्नीससेपैतीस १९३५ के संवत्मे कार्तिक शुक्ल षष्ठीकदिन मलिनमति या वकोंको सम्यक्तप्राप्ति होनेके लिये काशीमे तत्व विवेक निर्माणकर्क पुराकिया ॥ ॥ ॥
सम्यक्तनिर्णय इसको कहना साधुओंकी निंदा करना सम्यक्तनिर्णय नही कहावताहै इसलिये ना वविजयका लिखना शयुक्तहै इतिश्री मुनि नान कचंद विरचित स्तत्वविवेकः संपूर्णः ॥
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सूरेरमृतचन्द्रस्यो दंचद्विजयराज्यके । जैनप्रनाकरे यंत्रमुद्रितो मंजुलादारैः ॥ १॥
BRUDED
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