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162 : विवेकविलास
उल्लासोपसंहरति
इति स्फुटं वर्षविधेयमेतल्लोकोपकाराय मयाभ्यधायि । जायेत लोकद्वितयेऽप्यवश्यं यत्कुर्वतां निर्मलता जनानाम् ॥ 10 ॥ इस प्रकार मैनें यहाँ प्रतिवर्ष करने योग्य कृत्य को लोकोपकार के लिए कहा है। ये कृत्य करने वाले मनुष्य इहलोक और परलोक में अवश्य निर्मल होते हैं। इति श्रीजिनदत्तसूरि विरचिते विवेकविलासे वर्षचर्यायां सप्तमोल्लासः ॥ 7 ॥ इस प्रकार श्रीजिनदत्त सूरि कृत विवेकविलास में वर्षचर्या संज्ञक सातवाँ उल्लास सम्पूर्ण हुआ।