________________
विन्यास (लगाना) और उतनेही प्रमाणसे उसके जो पीठ वह भी करवाना ॥ ३० ॥ आधार नामकी जो शिला है वह भली प्रकार दृढ 12 और अच्छी मनोहर हों शैलके मंदिरमें शैलका और ईटोंकेमें ईटका पीठ कहा है ॥ ३१ ॥ शिलाओंका न्यास आदि जो है उसको भद्र
नामके मंदिरमें मूलपाद कहते हैं चार वेदियोसे युक्त गताको चारों कोणमें बनवाकर ॥ ३२ ॥ उनके ऊपर शक तण्डुलोंका पूरण करे और आग्नेयआदि क्रमसे उनके स्थानोंकी कल्पना करै ।। ३३ ॥ वहां आधारशिलाको रखकर और स्थिरो भव० इस मन्त्रसे उसकी प्रतिष्ठा करके
आधारनामा तु शिला सुदृढा सुमनोहरा । शैलजे शैलजः पीठश्चष्टके चेष्टकः स्मृतः ॥ ३१ ॥ शिलान्यासादिको भद्रे मूलपादो विधीयते । गान् विधाय कोणेषु चतुर्वेदिसमन्वितान्॥३२॥ तत्रोपरि च शुक्लानां तण्डुलानां च पूरणम् । आग्नेयादिक्रमेणैव तासां स्थानानि कल्पयेत् ॥ ३३॥ तत्राधारशिलां न्यस्य स्थिरो भवेति मन्त्रतः । प्रतिष्ठाप्य चतुर्वेव कोणेषु च निधाय च ॥३४॥ तेषां क्रमेण तन्मध्ये कलशं स्थापयेत् कमात् । पद्मश्चैव महापद्मः शंखो मकरकस्तथा ॥ ३५ ॥ चत्वारः कलशा ह्येते दिव्या मंत्रेण मंत्रिताः। पल्लवैस्सर्वगन्धैश्च सर्वोपधिभिरन्विताः ॥३६॥ रत्नैः समुद्रजैर्युक्ताश्चाष्टधातुभिरन्विताः । पुण्यतीर्थोदके र्युक्ताः कृत्वोदुम्बरसम्भवाः ॥३७॥ तत्रोपरि न्यसेनन्दां सुलग्ने च शुभे दिने । संम्राप्य पूर्णतोयेनास्त्रायफडिति मन्त्रतः॥३८॥
और चारों कोणोंमें शिलाओंको रखकर ॥ ३४ ॥ उनके मध्यम और रखनेके क्रमसे कलशका स्थापन करे उनके और पद्म महापद्म शंख धू और मकर ॥ ३५ ॥ ये सुंदर चार कलश मन्त्रांसे अभिमंत्रित और पंचपल्लव पंचगंध और सौषधियुक्त हों॥ ३६॥ समुद्रसे पैदाहुए रत्न और
श्रेष्ठ धातुओंसे और पवित्र तिथिोंके जलासे युक्त हों और गूलरके पत्ते भी उनमें हों ।। ३७ ॥ उन कलशोंके ऊपर शुभदिन और शुभ लपमें