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नीचा हो ऐसा चिह्न बाण गेह आदि लिंगमें होता है. जिनके मुख और पृष्ठभाग आदिका ज्ञान न हो उनका शिर ऐसा होना चाहिये जिसके | मुखका स्पर्श कन्या करसके । ११७ ॥ ज्येष्ठ मध्यम कनिष्ठ भेदसे तीन प्रकारकी ब्रह्माकी शिला होती है उससे तीन गुने विस्तारसे वा अन्य | प्रकारसे प्राकार ( परकोटा) बनवावे ॥ ११८ ॥ पूर्वोक्त पीठोंके विस्तारसे अधिक अंगुलोंसे तीन भाग पीठके विस्तारको करके उसके एक भागके प्रमाणसे ॥ ११९ ॥ दीर्घ (लंबाई ) करे और प्रणाल (पन्नाला) को उसके विभागके एक विस्तारसे बनवावे और ब्रह्मसूत्रके चतु ज्येष्ठा मध्या कनिष्ठा च विविधा ब्रह्मणश्शिलाः । त्रिगुणं विस्तृतं कुर्यादन्यथा वा प्रकारकः ॥ ११८॥ उक्तानामपि पीठानां विस्तारादधिकाङ्गुलैः । विभागपीठविस्तारं कृत्वा तत्रैकभागतः ॥ ११९॥ दीर्घ कुर्यात्प्रणालं च तं त्रिभागैकविस्तरम् । ब्रह्म सूत्रचतुष्के तु स्थाप्य कूर्मशिलां ततः । तद्गर्भे विन्यसेत्कूर्म सौवर्ण द्वादशं मुखम् ॥१२०॥ तत्र रत्नादिभिस्साई भूमि च हृदये न्यसेत् । तत्तद्गर्भ हि तस्यैव नीरन्ध्र वज्रलेपकैः। लिप्तोऽथ शान्तितोयेन प्रोक्ष्योल्लिख्योक्तवत्ततः॥ १२१॥ ततस्तेजोभि (वि) धां
शक्ति कलितासनरूपिणीम् । स्थापयेच्च सुलग्ने तु दैवज्ञोक्ते मुहूर्तके ॥ १२२ ॥ अथातः संप्रवक्ष्यामि मण्डपानां च लक्षणम् । | मण्डपान् प्रवरान् वक्ष्ये प्रासादस्यानुरूपतः ॥ १२३ ॥
कमें कूर्मशिलाके स्थापन करनेके अनन्तर कर्मशिलाके गर्भमें द्वादश मुख सोनेके कर्मका स्थापन करे और उस कूर्मके ऊपर ॥ १२ ॥ रत्नआदि सहित भूमिको हृदयके ऊपर स्थापन करे तिसकेही उस उस गर्भको बचलेपसे नीरंध्र करे अर्थात् छिद्र रहित करदे फिर लीपकर शांतिपाठके जलसे छिड़के और फिर उल्लेखन करे अर्थात् ऊँचे नीचेको एकरस करदे ॥ १२१ ॥ फिर तेज नामकी शक्ति जो कालताके आसनरूप हो उसका ज्योतिषियोंके बताये हुए श्रेष्ठ मुहूर्तके श्रेष्ठलग्नमें स्थापन करें । १२२ ॥ इसके अनंतर मंडपोंका लक्षण कहता हूँ,