Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 185
________________ शरीर भी ऐसा मान कर जो बुद्धिमान उनके प्रति आसक्ति नहीं रखता, वह दुःख के विशेष हेतु मोह रूपी कटार से बचा रहता है अन्यथा इसमें आसक्त व्यक्ति इनके क्षीण, क्षय अथवा नाश वियोग से क्षण-क्षण में दुखी होता रहेगा। यदि वह वस्तु उसके देखते नष्ट न भी हो, तब भी उनके नष्ट हो जाने अथवा बिछुड़ जाने की शंका से संतप्त रहता है। संसार की प्रत्येक वस्तु क्षयमान है, ऐसी बुद्धि रखकर जो मनीषी उनमें आत्मिक सम्बन्ध रख व्यावहारिक सम्बन्ध रखता हुआ अनासक्ति का आचरण करता है, संसार की कोई भी हानि उसे दुःखी अथवा, विचलित नहीं कर सकती है। उन्होंने आस्तिकवाद, नास्तिकवाद, ईश्वरवाद, अद्वैतवाद, मुक्तिवाद, अनेकान्तवाद आदि गम्भीर विषयों से सभी को परिचित कराया। साधु वेष का शास्त्रीय विवरण मुख वस्त्रिका का शास्त्रीय स्वरूप और प्रयोजन, मूर्तिवाद का शास्त्रीय निर्णय, ऐसे जिन विषयों को उन्होंने अपने गुरुदेव से प्राप्त किया था, उनका सच्चा विवरण जन साधारण को बता कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया। वे विश्ववन्द्यविभूति, न्यायाम्भोनिधि वर्तमान युग के आद्यआचार्य, नवयुगनिर्माता, महान् ज्योतिर्धर, सत्यावेषी जैन एवं जैनेत्तर शास्त्रों के प्रकाण्ड पंडित, असीम शौर्य एवं साहस के धनी श्री विजयानन्द सूरीश्वर जी महाराज के पट्टधर थे। वे उनके दीक्षा जीवन के नौ वर्ष तक यानि विक्रम संवत् 1944 से विक्रम संवत् 1953 तक उनके स्वर्गवास के समय तक उनकी पावन शीतल छत्र छाया में रहे और अपनी अनन्य सेवा और भक्ति से अधिक से अधिक ग्रहण किया और आचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर जी ने भी उनके अपूर्वज्ञान एवं विलक्षण प्रतिभा को देख कर Jain Education International कहा, “देख वल्लभ! जिनमंदिरों की स्थापना तो बहुत हो गई, अब आवश्यकता है इनके पुजारियों की, जो जैन भाई-बहनों को इनमें पूजा करने की विधि, ज्ञान-दर्शन- चारित्र और जैन संस्कृति को जानने वालों की, अतः सरस्वती मंदिरों की स्थापना करो। गुरु भगवन्त के स्वर्गगमन के बाद उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर सर्वप्रथम गुजरांवाला में श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल की स्थापना की, जिसका मैं स्नातक हूं और श्री रघुवीर कुमार जी जालन्धर वाले भी इसके स्नातक हैं, गुजरांवाला में उन्होंने श्री आत्मानन्द जैन विद्यालय, श्री आत्मानन्द जैन कन्याशाला - श्री आत्मानन्द जैन कॉलेज अम्बाला शहर, यहाँ पर ही श्री आत्मानन्द जैन पाठशाला, श्री आत्मानन्द जैन लायब्रेरी, श्री आत्मानन्द जैन पब्लिक स्कूल, श्री आत्मानन्द जैन हाई स्कूल मालेरकोटला, श्री आत्मानन्द जैन मिडिल स्कूल होशियारपुर एवं कन्या पाठशाला, इसी तरह हाई स्कूल, मिडिल स्कूल, लायब्रेरी, कन्या शालाएं, पाठशालाएं, सभाएं, सेवक मंडल, राष्ट्रीय मंडल आदि पंजाब के विभिन्न नगरों में जंडियालागुरु, लुधियाना, अमृतसर, नारोवाल, लाहौर, जीरा, पट्टी, स्यालकोट, रोपड़ आदि शहरों में स्थापित कराए। जिनमें बहुत से तो पाकिस्तान चले गए हैं और पंजाब के तो प्रायः सभी स्थानों पर अनेक संस्थाएं स्थापित करवाईं। पंजाब से बाहर सादड़ी, लुणावा, खुडाला, पालनपुर, बड़ौदा, बीकानेर, शाजापुर देसूरी, आशपुर, पूना सिटी, वालापुर, भावनगर, बम्बई, बीकानेर, जयपुर, पाली, अहमदाबाद आदि अनेक स्थानों पर अनेक संस्थान स्थापित कराए। इन सब संस्थाओं की स्थापना से शिक्षा जगत में जबरदस्त क्रांति आई और स्वर्गीय विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only गुरुदेव की आत्मा को भी शांति प्राप्त हुई होगी। गुरुदेव पर उनको अपार भक्ति थी, फलस्वरूप उन्होंने अनेक स्थानों पर चरण पादुकाएं भी स्थापित कराईं। श्री सिद्धाचल तीर्थ, श्री गिरनार जी तीर्थ, वल्लभ पट गुजरांवाला, पालनपुर, सूरत, अहमदाबाद, खंभात, ईदरगढ़, पाली, बदनावर, बीकानेर, डभोई, पादस, पावागढ़ तीर्थ, बोड़ेली तीर्थ आदि प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार ज्ञान भंडार, उपाश्रय गुजरांवाला, लाहौर, अमृतसर, जंडियाला, पट्टी, जीरा, होशियारपुर, जालन्धर, रोपड़, लुधियाना, अम्बाला, मालेरकोटला, कसूर, जम्मू, राज नगर आदि अनेक स्थानों पर स्थापित कराए, पंजाब से बाहर भी बड़ौदा, हस्तिनापुर, पालीताणा, दिल्ली, जयपुर आदि अनेक स्थानों पर स्थापित कराईं, जो आज भी विद्यमान हैं। जैसा कि मैं ऊपर वर्णित कर चुका हूं कि मैं श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल का स्नातक हूं। यह गुरुकुल प्राचीन गुरुकुल पद्धति से बहुत कुछ मिला जुला था। इस में वही संस्कार राष्ट्रप्रेम, धर्मप्रेम, समाज प्रेम जनता की सेवा का आदर्श पथ का मार्ग सिखाया जाता था। वैसा ही बहुत कुछ रहन-सहन, 'सादा जीवन उच्च विचार' गहन शिक्षा का ज्ञान प्रायः सभी भाषाओं में अनेक विषयों का कराया जाता था। नियमित, संयमित जीवन पालन करना अनिवार्य था। दिन भर का ऐसा कार्यक्रम बना दिया गया था जो प्रतिदिन पालन करना होता था। पढ़ाने वाले प्रायः सभी अध्यापक अनेक विद्याओं में पारंगत थे। खेलकूद, व्यायाम आदि करना अनिवार्य था, जिन्हें एक रिटाएर्ड आफिसर द्वारा कराया जाता था। व्यायाम करने के लिए कबड्डी, कुश्ती, जिम्नास्टिक, रस्साकशी, हाकी, फुटबाल, 183 www.jainelibrary.org

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