Book Title: Vedhvastu Prabhakara
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 119
________________ घरके द्वार स्वय स्खुल जायें, आवाज करें, अकस्मात् कोइ गिर जाय तो इससे स्वामिकी मृत्यु होती है । इस घटनाके देापसे कुलका क्षय होता है । १७४ राजवेश्मानि चैत्येषु प्रासाद तोरणे ध्वजे । अन्यानि यानि द्रश्यन्ते तत्र भयौं भवेत् ॥ १७५ ॥. द्वार प्राकार वेश्मानि निर्मितं तु पतनं यदाभवेत् । द्रढस्थूणा कयाटादि वंशभङ्गः पति क्षये ॥ १७६ ।। રાજભવન, ચૈત્ય કે પ્રાસાદ, દેવાલયના તોરણ કે વજનું અકસ્માત પતન થાય કે એવા દશ્યથી મહા ભય ઉપજે. બારણાં, ગઢ, કિલ્લે કે ઘર અકસમાત અકારણ પડે અગર કમાડે દઢ હોય છતાં તે પડે તે વંશને નાશ થાય અને સ્વામિનું મૃત્યુ થાય. ૧૭૫-૧૭૬ राजभवन, चैत्य या प्रासादके तोरण पा ध्वजका अकारण पतन हो तो महाभय पैदा होता है । द्वार, गढ, किल्ला या मकान अकारण गिरें या किंवाड मजबूत होते हुए भी गिरजाय तो वंश नाश होता है और स्वामिकी मृत्यु होती है । १७५-७६ अकस्मात गृहभूमिश्च स्फुटिते कुख्यक तथा । यस्य गेहे शृगालादि प्रविष्टवाय श्रूयते ॥ १७७ ।। रक्तधारा गृहे द्रष्ट्वा द्वारेण सर्पः प्रवेशीनः । गृह तस्य विनश्येन पत्नि वा म्रियते पतिः ॥१७८॥ इतिगृहाद्यद्भूतम् અકસ્માત ઘરની ભૂમિ ફાટે કે શિયાળ આદિ પશુ પ્રવેશ કરે, ઘર કે ફળીમાં લેહી જેવી ધારા દેખાય કે દ્વારમાં સર્પ પ્રવેશ કરતાં જણાય તે તે ઘરનો વિનાશ થાય અને ઘરધણી કે તેની પત્નીનું મૃત્યુ થાય. १७७-७८ घरकी भूमि अकस्मात् फट जाय या मकानमें शृगालादि पेक्षुका प्रवेश हो जाय, घर या प्रांगणमें रक्तधारा द्रश्यमान होती हो या द्वारमें सांप प्रवेश करता हो तो यह घरका नाश होता है। पति या पत्निकी मृत्यु होती है। १७७-७८

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