Book Title: Vartaman Chovisi Pooja Vidhan
Author(s): Vrundavandas
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 172
________________ जलफल वसु सजि हिमथार, तनमनमोद धरों। गुण गाऊं भवदधितार, पूजत पाप हरों ॥श्री०॥६॥ ॐ हीं श्रीगईमानजिनेन्द्राय अनर्यपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ पंचकल्याणक । मोहि राखा हो, सरना, श्रीवर्द्ध मान जिनरायजी, मोहि राखो०॥ गरभ साढसित छट लियो थिति, त्रिशला उर अघहरना। सुर सुरपति तित सेव करयो नित, मैं पूजों भवतरना ।मोहिरा०॥ ____ॐ ही आपाढशुरुषष्ठयां गर्भमद्गलमण्डिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अभ्यं नि० ॥ जनम चतसित तेरसके दिन, कुंडलपुर कनवरना। सुर्रागर सुरगुरु पूज रचायो, में पूजों भवहरला ॥ मोहिरा० ॥२॥ ॐ ही नेत्रशुलप्रयोदश्यां जन्ममगलप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ नि० मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना। नृप कुमारघर पारन कीनों, मैं पूजों तुम चरना ॥ मोहिरा०॥ ॐ ही मार्गशीर्षरुष्णदशम्यां तपोगालमण्डिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ नि०

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