Book Title: Uvvatbhashya
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Page 398
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir सर्वत: गाम्नेषत / नयतेलुडि सिचएतद्रूपम् परिणीतवन्त: गाम अनडुत्पुच्छालम्ब नाभिप्रायमेतत् / पर्वग्निमहषत / पर्यहृष्यत हरतेरेतद्रूपम् / परिहृतवन्तः अग्निम् / यस्मिनग्नावेतत्कर्मक्रियते तमग्निंपरिहतबन्तः / अहारेणोपासनं निरस्थतीत्ये तदभिप्रायमेतत् / देवेषुऋत्विक्षु / अक्रत / अकृषतेतिप्राप्तेसिचोलोपश्छान्दसः // श्रव.धनं दक्षिणालक्षणम् / अथेदानीम् कृतकृत्यान् इमान कः कोनाम / आदधर्षति / आधर्षयितुम आक्रमिदेवेष्ष्वक्रतुश्वु कऽइमाँ // 2 ॥ऽआदधर्षति // 18 // व्याटम ग्निम् // अव्याटमुग्निम्प्रहिणोमिदूरवमुराज्ज्यङ्गछतुरिष्प्रवाह // तुम् शक्नुयात् अशक्यप्रतिक्रियाह्येतेवर्तन्त इत्यभिप्रायः // 18 // अहारेणोपासनं निरस्यति / क्रव्यादमग्निम् / त्रिष्टुम् / अथ येनपुरुषंदहति सक्रव्यात् / क्रयादमग्निम् / परिहिणोमि प्रेषयामि दूरमपुनरागमनाय / यमराज्य गच्छतु रिप्रवाह: / रिप्रमितिपापनाम / रिप्रमृतं वहतिप्रापयति भस्मीभावमितिरिप्रवाहः / जपति / दूहग्रहएव अयम् इतरःक्रव्यादादन्यः शिवम For Private And Personal

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