Book Title: Uvvatbhashya
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir / / कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः / / / / गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः / / / / अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः / / / / योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / ॥चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक : 1 जन आराधना महावीर * कोबा. / अमृतं तु विद्या तु श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websit: www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - 380007 (079) 26582355 For Private And Personal Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kaashegarsun Gyanmandie www.kobertory She Mahave Jairt Aradhana Kendra For Private And Personal Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir // उबटभाष्यसँवलितोत्तराईमारब्भ्यते // For Private And Personal Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri lavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsures (1) इमम्मे। इमम्मेनानुवाकेमेष्टिकहोत्रम् / प्रथमेवारुण्यौ गायीत्रिष्टुभौ वारुणस्यहविषो याज्यानुवाक्ये / हेवरुण त्वमेमम मंहवमावानं श्रुधिशृणुच अपरम् अद्यमृडयमुखय // श्रीगणेशायनमः // ॐ भूर्भुवस्वःतत्सवितुर्वरंगण्युम्भदेवस्य धीमहि धियोयोन प्रचोदयात् // * हुमम्मेव्वरुणप्रश्रुधौहवमुद्याच मृडय // त्वामत्स्युराचके // 1 // तत्त्वा // यामिब्रहमणाबन्दमा नुस्तदाशस्तुियजमानोहुविभिः // अहेडमानोवरुणहवोड्युरशस कालविलम्बनमाकृथाः यत: अहम् अवम्युः आत्मनोवनपालनमिच्छन् त्वाम् आचके / आचकइतिकान्तिकर्मा। कामये // 1 // तत्त्वायामि // 2 // त्वनः। अग्निवारुण्यात्रिष्टुभौ अग्नि(१) का. इसमे तत्त्वेत्ये ककपालस्य / अवभृथेष्टौ वारुणस्य ककपाल पुरोडाशस्य के पुरोऽनुवाक्यायाज्य इत्यर्थः / ___* इमम्मेसमिहो अग्निरेकादशकौटो वसंतैन ऋतुनाष ताय वत्समिधाग्नि हादशाश्विनौ छागस्यसप्तदेवंब हिवतु शषडे 473 कषष्टिः। For Private And Personal Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir वरुणयोः खिष्टकृतोर्याज्यानुवाक्ये / (1) हेअग्ने त्वनोमान्मतिवरुणस्य देवस्यहड:क्रोधम् अवया सिसौष्ठाः यमुउपक्षये। अस्यावपूर्वस्यण्यन्तस्य लिडिरूपम् अवगमय / यजिष्ठः यष्ट्तमः। पनि वन्हितम: बोढतमोहविषाम् / शोशुचान: देदीप्यमानः। किञ्च अस्मत् अस्मत्तः विश्वावि मानुऽआयुप्प्रमोषी // 2 // त्वन्नः // त्वन्नोऽअग्नेवरुणस्यबिद्दान्देव स्युहेडोऽअवयासिसीष्ठा // यजिष्ठीवहिन्नतमुशोशुचानोविश्वा ट्वेषां सिप्प्रमुग्ध्युस्म्मत् // 3 // सत्वम् // सत्वन्नोऽअग्नेबुमोम वोतीनेदिष्ठोऽअस्याऽउषसोब्यु ष्टौ // अवयवदवनोब्वरण रराणो / प्रवानिसर्वाणिवेषांसिदौर्भाग्यानिप्रमुमुग्धिमुञ्च // 3 // सत्वनः / हेअग्ने सत्त्वम् अतीऊत्या अवनेन नः अस्माकम् अवमः अविटतमःपालयिटतमः भव। अस्याउषस: व्युष्टौ व्युष्टिकालेअस्मिन्नेवाहनौतिभावः / नेदिष्ठः अन्तिकतमश्चभव। रराण: रममाण: रादाने / हविर्ददहा। (1) का अग्नोवरुणयोस्त्वं नः स त्वन इति / अवभृथेष्टावेवाग्निवरुण्यागे पुरोऽनुवाक्यायाज्य / For Private And Personal Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir नोस्माकं वरुणम् अवयवअवगत्ययज / अवपूर्वीयजति शनार्थः इहतु धात्वन्तरयोगात्स्वा र्थमेववक्ति / ततः सुमृडोकं सुखकरंहवि: वीहिभक्षय / नः अस्माकं मुहवः स्वाह्वान: एधि // 4 // 21 3 (1) महीमूषु / आदित्यचरोर्याज्यानुवाका विष्ट भी महीम्महतीम् / जसूनिपातोपसर्गों छन्दः परिपूर्तिफलौ। मातरंनिर्मात्रौं साधुब्रतानाम् / तस्ययनसापत्नीं जायांपालयित्रीवा। अवसेब्बोहिमृडीकसुहोनऽएधि // 4 // मुहीमूषु // मातरवतानाम् / तस्युपत्नोमव॑सेहुवेम // तुविक्षुत्वामुजरन्तीमुरुचौ सुशौणुम दितिसुष्प्रणौतिम् // 5 // सुत्रामाणम्पृथिवीम् // सुत्राणिम्पृथिवी अवनायतर्पणायवा हुवेमाहयाम / तुविक्षत्राम् / वहुक्षरणांवा वहुक्षतवाणावा / अज रन्तौंजरारहिताम् उरूचीबहुव्यञ्चनां सुशर्माशंकल्यासाश्रयां साधुसखयाम् अदितिमदीनाम्।। र सुप्रणीतिंसुप्रणेत्रीम् // 5 // सुत्रामाणम् / साधुपालयित्रीम् पृथिवीम् पृथिवीमिव लुप्तोपमानॐ (1) का आदित्यस्य सुत्रामाणम् महीमूषु मातरमिति / आदित्यं चरूं यक्ष्यमाणो निर्वपत्यादित्यमीजान इत्यादावन्त चादितास्यथरुरुक्तस्तसुत्रामाणमिति पुरोऽनुवाक्या महीमू विति याज्या / शिवम् 474 For Private And Personal Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir मेतत् / द्यामनेहसम् द्यामिववाहयित्वौं जीवनहेतुभूताम् सुशर्माणंसाधुशरणां शोभनाथयांवा। अदितिमदीनाम् / सुप्रणौतिंसुप्रणेचीम। दैवीयज्ञमयांनावं / म्वरित्रांसाधुकेन्दुवालाम् अरित्रशब्दः केन्दुवालवचनः। अनागसमनपराधाम् अस्रवन्तीम्अपूर्यमाणामुदकेन। अनवच्छिन्नसान्यामनुहस सुशाणुमर्दितिसुप्पणौतिम् // दैवीन्नाव 19 खरि / त्वामागसमस्रवन्तोमारुहेमाखुस्तये // 6 // सुनावमारहेयम् // सुनावुमारहेयमस्रवन्तीमागसम् // शुतारित्वा स्वस्तये // 7 // आनः // आनौमित्वावरुणाघुतैर्गय॑तिमुक्षतम् // मद्ध्वारा धुकर्मदायिनीमित्यर्थः / आरुहम। स्वस्तयेअविनाशाय // 1 / सुनावम् / गायत्री / तई सर्वएवयजीनौः स्वर्ण्यतिथुतेरुपकल्पना / कल्याणींनावम् आरुहेयम् अस्रवन्तीम् अच्छिद्राम् निर्दोषामित्यर्थः अनागसमपापाम् अभीष्टितार्थसाधनतत्परामित्यर्थः / शतारित्रांवहुकेन्दुवालाम् ऋग्यजुः सामाभिप्रायम् स्वस्तयेअविनाशाय। संसारसागरोत्तरणायवा // 7 // (1) आनः / मैत्रावरुण्या: (1) का. पा नः प्र बाहवेति परस्थायाः / 18 / 7 / 16 अवभृथादुदेता मैत्रावरुण्या पयस्यया यजतीति या पयस्या तसा श्रा नो मित्रावणेति पुरोऽनुवाक्या प्र बाहवेति याज्या / मित्रावरुणदेवता गायत्री विश्वामित्रदृष्टा / 120. For Private And Personal Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir पयस्यायाज्यानुवाक्ये गायत्रीविष्ठ भौ। आउक्षतम् आसिञ्चतम् नः अस्माकम् हेमित्रावरुणौ। घृतै: अक्षारोदकैः गव्यूतिम् गविपृथिव्यामवनहेतुभूतंक्षेत्रंगोप्रचारंवा। किञ्च मध्वारजांसि / मधुस्वादोदकेनरजांसि। लोकारजांस्युच्यन्ते। ताउक्षतम् / हेसुक्रतू / सुकर्माणौ // 8 // प्रवाहवा। प्रसिसृतम् अन्तर्भावितण्यर्थः / प्रसारयतम्। वाहवा बाहू / किमर्थमितिचेत् / सिसुक्रतू // 8 // प्रवाहा // सिमृतञ्चीवर्सनुऽानोगव्यूंतिमुक्षत डुतेन // आमाजनेश्श्रवयतंय्यवानाश्श्रुतम्मैमित्त्रावरुणाहवेमा॥६॥ शन्नः // शन्नोभवन्तुब्बाजिनोहर्वेषुदेवातामित'वस्खुर्का: // जुम्भ जीवसेनः। जौवनायास्माकम। वाहुप्रसारणंजीवनहेतुप्रतिपक्षनिराकरणायेत्यर्थः / तताउक्षतम् आभिमुख्येनसिञ्चतम न: अम्माकम् गातिम् / गविपृथिव्यासूतिमवनम् जीवनहेतुभूतानिनेवाण्यवाभिप्रेतानि / तदर्थंहि वृष्टिः प्रार्थ्यमाना दृष्टार्थाभवति / गोजातिविषयभूतांवा ऊतिम् अवनमार्गम् भक्षणमागी भिप्रायती गोप्रवाटमितियावत् / घृतेनाक्षारोदकेन / आमाजने शिवम् For Private And Personal Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir श्रवयतं युवाना / एवमक्षारीदकेन सिक्तधान्यनिष्पत्तिहेतुना यज्ञकुर्वाणम् मामाम् जनेजनपदे आश्रवयतं प्रकथयतम् इत्थमदादित्यमदाक्षीदिति। हेयुवानौउच्छिन्नजरसौ। श्रुतमा* शृणुतं मम हेमित्रावरुणौ। हवेमा हवान्ाह्वानानिमानि / श्रुत्वाचातिष्ठतमित्यभि युन्तोहिँखुकुरक्षा सुसनेम्म्युस्म्मडंयन्नमौवा // 10 // वाजेवाजे वत॥ वाजिनोनोधनेषुचिप्पाऽअमृताऽऋतज्ज्ञा॥ अस्यमय:पि बतमादयध्वन्तुप्तातिपुथिभियान॥ 11 // सम॑िद्धोऽअग्नि // सुमिधासुसमिडोब्बरण्य // गायत्रीच्छन्दै इन्द्रियन्त्राविौत्रयोद प्रायः // 6 // शन्नः // 10 // वाजवाजवत // 11 // वाजिनस्ययाज्यानुवाकाव्याख्याते // 10 // 11 // समिद्धीअग्निः / एकादशआप्रियः। अनराशंसा ऐन्द्रायावयोधसैनुष्टुभः / समिधः सन्दीप्तः (1) का. वायोधस आप्रियः समिझो अग्निः समिधेति / 18 / 7 / 18 वायोधसे पशौ समिही अग्निरिताद्या एकादश ___ऋच आप्रियः प्रयाजानां याज्या इति सूत्रार्थः / For Private And Personal Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अग्नि: समिधाप्रयाजदेवतया। सुसमिद्धः प्रयाजतेन / वरेण्यः वरणीय. संभजनीयः। B गायत्रीछन्दः त्यविश्वगौः वयः अवय: अनुचरत्वेनयस्य सतथोक्तः / इन्द्रियंवौर्यच / वयः सत्त्वमन्नवा आयुर्वाइन्द्रेदधुः निदध्युः // 12 // तनूनपात्। तनूनामपानपान्नप्ताअग्निः / गौर्वातनूः तसानप्तानृतम् / शुचित्रत: उज्वलकर्मा। तनूपाः सरस्वतीच। उणिहाविभक्तिव्यत्ययः उणिकधु // 12 // तनुनपाच्छुचिब्बत // तनूनपाच्छचिवतस्तनपाश्चु / सरस्वती // उष्णिहाच्छन्द इन्द्रुियन्दित्त्ववागौर्बयोदधु // 13 // इडाभिरग्निः // इडाभिरग्ग्निरोड्युसोमोटुवोऽअमर्त्य // अनु ष्ट्राच्छन्दै इन्द्रियम्पञ्जाविग्गोर्खयोदधुः // 14 // मुबहिग्नि // छन्दः दित्यवाट् गौ:एतेचत्वारः इन्द्रियंवयश्च इन्द्र दधुः // 13 // इडाभिरग्निः। दृडाभिः प्रयाजदेवतया सहअग्नि: ईडयःस्तोतव्यः / सोमश्चदेवः अमर्त्यः अमरणधर्मा अनुष्टुपच्छन्दः पञ्चाविश्च गौःइन्द्रियं वयश्चइन्द्र दधुः // 14 // सुवर्हिरग्निः। शोभनवर्हिः प्रयाजदेवतयाग्निः / / For Private And Personal Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir पूषखान्पष्णासंयुक्तः। स्तोर्णबर्हिस्तीर्णवहिर्यसासतथोक्तः / अमर्त्यः अमरणधर्मा / बृहतीछन्द त्रिवत्मश्च गौःएतेइन्द्रियंवयश्चन्द्र दधुः // 15 // दुरोदेवीः / दुरः द्वारः प्रयाजदेवताः छान्दसंसंप्रसाणम् / देवीः देव्यः दिशश्च / महीः महत्यः / ब्रह्माचदेव: बृहस्पतिश्च / पंक्ति छन्दः / इहल्यभिनयनिर्देश: / इहयज्ञावयवे दूहइन्द्रशरीरावयवे / तुर्यवाट्गौश्चइन्द्रियवयपूंषुगवान्त्स्तीर्णबर्हिरमर्त्य॥हुतीच्छन्दै इन्द्रियन्वित्मोगोर्बयो / दधुः // 15 // दुरौदेवी // दरौटुवौद्दि शोमहोब्रुमादेवीबहस्पतिः पतिश्छन्दऽहुहेन्द्रियन्तुर्भुवाङ्गौवयोदधु // 16 // उषयच्वीसुपेश / साविश्वेदेवाऽअम॑ण्ड // त्विष्टुप्च्छन्देऽहुहेन्द्रियम्बष्ठुवाझौर्बयो / चदधुः // 16 // उषेयह्वी / उषेति द्विवचनसामर्थ्यात्मह चरितत्वाच्च हितीयाराविह्यते। 5 उषाश्चरात्रिश्च / किदृश्यौ यह्वीमहत्यौ / सुपेशसासाधुरूपे। विश्वचदेवाः अमाः अमरणधर्माणः / विष्ट पच्छन्दः। दूहन्द्रयत्नयोः / पष्ठवाट्च गौःपष्ठभारंवहतीतिपष्ठवाट / इन्द्रि For Private And Personal Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir यंवयश्चदधुः // 17 // दैव्याहोतारा अयंचाग्निः असौचमध्यमः / भिषजौ इन्द्रेणसयुजीसंयुक्तो समानकार्यो। युजापरस्परेणयुक्तौ / जगतीच्छन्दः अनडाश्चगौ:एते इंट्रेइंद्रियवयश्चदधुः // 18 // तिसडा। तिस्रोदेव्यः दूडासरखती। भारती। मरुतश्चविश: इंदुसरप्रजाः। विराटछन्दः / दधुः // 17 // दैब्याहोतारा // भिषजेन्द्रेणसुयुजाधुजा // जगती / च्छन्दऽइन्द्रियमनुडान्गौवयोदधु // 18 // तिस्रऽइडौ // तिस्राइ / डासरखतीभारतीमुस्तीविशः // विराट्च्छन्दऽदुहेन्द्रियन्धेनुग्रें। नव्वयोदधु // 16 // त्वष्टातुरोपः॥ त्वष्टातुरीपोऽअद्भुत इन्द्रा गगनीपुष्टुिवईना // पिंदाच्छन्दऽइन्द्र्यिमुक्षाग्गौनव्वयौदधुः॥२०॥ धनुर्दोग्ध्रौगौश्च / नकारश्चार्थे / एतेइंद्रियंवयश्च इदै दधुः // 18 // त्वष्टातुरीपः तूर्णमापन्नः अद्भुत: अड्डतद्रव महानित्त्यर्थः। इंदाग्नीचपुष्टिवईनौ। बिपदाचछन्दः / उक्षागौन / नकारचार्थे / उक्षासक्ताचगौः। एतेइंद्र इंद्रियंवयश्चदधुः // 20 // शमितान: शमयितातिप्राप्ते For Private And Personal Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir शमितामन्त्रतिच्छान्दसः प्रयोगः शमितान:अस्माकंवनस्पतिः सविताचप्रसुवन् भगंधनम् / / ककुपचछन्दः इहेत्यभिनयः दूहइन्द्र वशावध्यागौः वेहच्चविहंतित्त्यजतिगर्भयागौः सातथोक्ता / इन्द्रियवयश्चदधुः // 21 // स्वाहायज्ञम् / स्वाहाकृतिभिः यज्ञभेषजंकरत्करोतु / क:करोतु / शुमितानः // शुमितानोब्बनुरूप्पतिःसविताप्रसुवन्न्भर्गम् // कुकु छन्दऽडहेन्द्रियंब्वशाब्बेहद्दयोदधुः // 21 // स्वाहायुज्जम् // वरुण सुक्षुत्रोभेषुजङ्करत् // अतिच्छन्दा ऽइन्द्रियम्बुहर्ट'षभोगौर्बयोद धुई / / 22 // [11] व्वसुन्तेनऽतुना // दुवावसवस्विबास्तुता // रथन्तरेणुतेजसाहुविरिन्द्रुब्बयोदधु // 23 // ग्रीष्म्मेऽऋतुना // वरुणः सुक्षत्रः। अतिच्छन्दाश्चच्छन्दः वृहदृषभश्चगौः इन्द्रेइन्द्रियवयश्चदधुः // 22 // * वसन्तेनऋतुना। वपापुरीडाशपशूनां याज्यानुवाक्याअनुष्टुभः / वयोधससापशोः / इन्द्रश्चवयोधादेवता। वसन्तेनऋतुना सहायेनदेवाः वसवः त्रितास्तोमेनस्तुताः सन्तः रथन्तरणच For Private And Personal Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु० 21 पृष्ठेनच सहायेनइन्देतेजसासह हविर्वपाखं वयश्चदधुः / यद्दावसन्तेनक्तुनास्तुताः त्रिवृतास्तोमेनच स्तुता: रथन्तरेणच पृष्ठे नस्तुता: सन्तोक्सवोदेवाः स्वकीयेन तेजसाइन्द्र हविर्वयश्च- से दधुः / एवमुत्तरेष्वपियोज्यम् // 23 // ग्रीष्मेणऋतुना। सहदेवाः रुद्राः पञ्चदशे पञ्चदशेनेति विभक्तिव्यत्यय: पञ्चदशेनस्तोमेनस्तुताः सन्त: वृहतापृष्ठे नचसह। यशसासहवलं हवि: इन्द्र व। देवामुद्रापञ्चदशेस्तुता // बृहुतावशमावर्लन्हुविरिन्द्रेव्बयोदधुः // 24 // वर्षाभितुादित्यास्तोमैसप्तदशेस्तुता // ब्वैस्पेलिशौ / साहुविरिन्द्रुब्बयोदधुई // 25 // शारदेनऽतुर्ना // देवाऽएकवि शऽभवस्तुता॥ बैगजेनरिश्रयाश्रियहुविरिन्द्रुब्बयोदधुई // 26 // यश्चदधुः // 24 // वर्षाभिळ तुना / सहआदित्त्याः। स्तोमेसप्तदशेस्तोमेनसप्तदशेनेतिविभक्तिन व्यत्ययो / स्सुताः सन्त: वैरूपेणपृष्ठे नसह विशाच / ओजसाच हविरिन्द्र वयश्चदधुः // 25 // शारदेनऋतुना। सहभवोदेवाः एकविठशे / एकविंशेनेति विभक्तिव्यत्ययः / एकविंशेन OC For Private And Personal Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir स्तोमेनस्तुताः सन्तः विराजेनच पृष्ठे नसह श्रियाचश्रियं च हविरिन्द्रेवयश्चदधुः // 26 हेमन्तेनऋतुना। सहदेवाः मरुतः विणवे / त्रिणवेनेतिविभक्तिव्यत्ययः / विणवनस्तोमेनर स्तुताः सन्तः। वलनशक्करीः सह। शक्करीरितियोनिनिर्देशः शाकरस्य / शाकरणतिविभक्तिव्यत्ययः / शाक्वरेणच पृष्ठे नसह। वलेनचसह। सहः हवि: इन्द्र वयश्चदधुः // 27 // हेमन्त ऽऋतुर्ना // देवास्त्रिंणुवेमुरुतस्तुता / बलेनुशकरोडसहो हविरिन्द्रुब्बयोदधुई // 27 // शशिरेणऽ तुना // टुवायनिःशम तस्तुता // सत्येन रेवतोऽक्षुत्रहुविरिन्ट्रेब्वयोदधुः // 28 // [6] . होतावक्षत् // होतावक्षत्ममिधारिग्नमिडस्प्पट श्विनेन्द्र सरस्व शैशिरेणक्तुना। सहदेवा: अमृताः / त्वयस्बिठ शे। त्वयस्त्रिंशेनेतिविभक्तिव्यत्ययः / वयस्त्रिंशेनस्तोमेनस्तुताः सन्तः / सत्य नरेवतीः रेवतीरितिरैवतत्ययोनिनिर्देशः। रैवतेनच पृष्ठे नसह - सत्त्ये नच / क्षत्रंहविश्च इन्द्र वयश्चदधुः / 28 // (1) होतायक्षत्। हादशाप्रियस्तननपानराशंस(१) का होता यक्षसमिधाग्निमिति प्रयाजप्रषास्त्रिपशो होता यक्षसमिधाग्निमिडस्पद इतपादयो बादश कण्डिकास्त्रि पशीः प्रयाजप्रषाः स्युः। ___121. For Private And Personal Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir युक्ताः / प्रैषिकमश्विसरखतीन्द्र देव त्यम् / दैव्योहोतायक्षत्यजतु। समिधाप्रयाज देवतयाग्नि। मवस्थितम् / इडस्पदे। इडागौरुच्यते तस्याः पदआहवनीयस्थाप्यते तदभिप्रायमेतत् / गोः पदे। अवस्थितमाहवनीयमग्निम् / एताश्चदेवताविशेषा: यजतु। अश्विनौइन्द्रसरखतीम् / अजोधूयोन नकारः समुच्चयार्थाः प्रायः / अजोधूम्रोमेषश्च / गोधूमैः कुवलैश्च सहित:तोमुजोधूम्म्रोनगोधूमे कुबलैर्भेषजम्मधुशष्प्पन्नतेज इन्द्रियम्पयु सोम परिस्रावृतम्मधुळ्यन्त्वाज्यस्यहोतुर्वज // 26 // होत्यक्षु / त्तनुनपात्सरस्वतीम् // होतावक्षुत्तनूनपात्सरखतीमविर्मु षोनभैष / भेषजमत्रसंपद्यते। मधुशष्पैःन / मधुचसंपद्यतेसशष्त्रैरंकुरित ब्रीहिभिः सहितः। तेजः इन्ट्रियञ्चइन्द्रस्य यजमानस्यवासंपद्यते। अश्विसरस्वतीन्ट्राश्चदैव्यै नहोबा इज्य मानाः सन्तः पय: शिवम् सोमश्च सोममितिविभक्तिव्यत्ययः / परिसुतासहतंमधुच। व्यन्तुपिबन्तु। त्वमपिहेमनुष्य- 476 न हात: आजास्य यजाजंादेहि // 26 // होतायक्षत्तनूनपात्सरस्वतीम् / तनूनपातमितिविभ For Private And Personal Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir क्तिव्यत्ययः। सरखतींच। अश्विनेन्द्रायेत्युपरिष्टा अवहितंयत्पठाते तदिहकृतबिभक्तिव्यत्ययंयोज्यतेथसबन्धात् / अश्विनौ इन्द्रश्च / अविर्मेषोनभेषजम् / नकारः समुच्चयार्थीयोभिन्नक्रमः अविश्चमेषश्चभेषजम् इन्द्राययजमानायवाकरोति / पथामधुमताभरन् / पथायज्ञमार्गेण मधुमतारसवता आत्मानम्भरन् हरन् हवींषिचदेवान्प्रति ग्रहोर्भश्छन्दसिहसप्रति हकारम्यभकारः / जम्मुथामधुमताभर्रन्नुप्रिखनेन्द्रायब्बीर्यम्बदरैरुपुवाकाभिर्भेषुजन्तो मभिपयुड्सोमःपरिस्राघृतम्मधुव्यन्त्वाज्यस्थ होतुर्वज // 30 // होतावक्षुन्नगशसुन्न // नुग्ग्नहुम्पति सुरयाभेषजम्मेष सरस्वती वीर्यवदरैरूपवाकाभि भैषजन्ताक्मभिः / उपवाकाभिः इन्द्रयवैः तोक्मभिरंकुरियवैः / वौर्यम्भेष५ जंकरोतिमेषएव / इन्द्राययजमानायवा। अश्विसरस्वतीन्द्राश्च दैव्येनहोत्रा इज्यमानाः पयः , प्रभृतीनिपिवन्तु। त्वमपिहेमनुष्यहोत: आज्यस्ययज // 30 // होतायक्षनराशठ सन्न। दैव्योहोतायजतु / नराशंसननग्नहुम्पतिम् / अवहितपदकल्पना / नराशंसञ्च / पतिमधिपतिंजगतः / For Private And Personal Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir ही यज्ञोहि नराशंसः साहुतिपरिणामहारण जगदिभर्ति / नग्नहुम् सुरयासहितंनग्नहुं किवं च होतायजत्त्वित्यनुवर्तते। भेषजमेषः। वपाइन्द्रसप्रत्युपरिष्टा त्प्रेषस्यश्रूयते / सहानुषज्यते / भेषजम्मेष: वृन्द्रस्यकरोत्वितिवाक्यशेषः / सरस्वतीभिषक् इन्द्रस्यभवतु / रथोनचन्द्र्यश्विनोः / रथश्चभिषगिन्द्रस्यभवतु / कथं भूतोरथः। चन्द्री। चन्द्रमितिहिरण्यनाम। तदभिषग्ग्रथोनचुन्यश्विनोळपा ऽ इन्द्रस्यवीर्यम्बदरैरुपुवाकाभिर्भ पुजन्तोक्मभिपयु सोम परिस्राघृतम्मधुब्यन्त्वाज्यस्यहोतर्व ज॥३१॥ होवक्षटुिडेडित // होतावक्षदिडेडितऽआजुवा सास्तीतिचन्द्रौ। सुवर्णखचितः / अश्विनी: सम्बन्धी। नन्वश्विनोः संबन्धिनोरथसा कथम्भिषिक्वम् शृणु / श्रायुधम्वाहनम्बापि स्तुतौयसाहदृश्यते। तमेवतुस्तुतंविन्द्यात्तसात्मावहुधाहिसः / / वपाइन्द्रसा वीर्यकुर्वन्त्वितिशेषः। वपाइतिबहुवचनोपदेशः / विपशुविषयः। वदरैः उप-10 वाकाभिः तोक्मभिः भेषजमिन्दसाभवत्वितिशेषः। अविसरस्वतीन्दाश्च देय नहीवेजामाना: For Private And Personal Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir पयः प्रभृतीनिपिवतु त्वमपि हेमनुष्य होतराजास्ययज / / 31 // होतायक्षदिडेडितः / होता यजतु / दूडाप्रयाजदेवतया ईडित: स्तुत: सन् / किंकुर्वन् / आजुबानः सरम्वतीम् / * सरखतीमाह्वयन् / अश्विनेन्दायेत्पुपरिष्टा त्प्रेषसापठेवते तदेतत्पदइयमिहकृत विभक्तिव्यत्ययं संबध्यते / उक्तच्च। यस्ययेनार्थसंबन्धो टूरस्थस्थापितसात अर्थतोयसमानाना मानन्तनु सरखतीमिन्द्रुम्बलेनबर्द्धयन्नृषभेणुगन्ट्रियमुश्विनेन्द्रायभेष जंय 'कुर्कन्धुभिर्मधुलाजैन्नमारम्पयुटु सोम परिस्राघृतम्मधु , व्व्यन्त्वाज्यस्युहोतुर्यज // 32 // होतायक्षहुर्हिरूणम्सदा // होता यकारणमिति ( 1 ) अश्विनौइन्द्रच्च / किञ्च। इन्द्रम्वलेनवईयन् / ऋषभेण गवाच इन्द्रियं मिन्द्रसावईयन् / मधुमा सरंचउपादायेतिशेषः / यवैः कर्कन्धुभिर्लाजैश्चभेषजमिन्द्रसावईयन् / अश्विसरखतौन्द्राश्च दैव्येनहोबेजामाना: पयः प्रभृतीनिवान्तु त्त्वमपिहेमनुष्यहोतराजासायज // 32 // होतायक्षदहिहर्णम्मदाः होतायजतुप्रकृतादेवता: / वर्हिश्चप्रयाजदेवता / For Private And Personal Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir जींनदाः ऊर्णमइतिप्राप्त जण मृदाइतिछान्दसीलिङ्गविपर्ययः / ऊणे वमृदुर्भिषग्भवतुइन्द्राय / भिषग्वैद्यउक्तः। नासत्याभिषजाश्विना / नासत्यानाशिका प्रभवावश्विनौ भिषजौभवतामिन्द्रम्य / अश्वावडवा शिशुमती धेनुश्च भिषगिन्द्र स्थभवतु / इत्यंभूताहि सादक्षिणापद्यते। यक्षहुहिम्मदाभिषशासत्त्याभिषजाश्विनाश्वाशिशुमतीभि / पग्ग्धुनु सरखतौभिषग्दुहऽइन्द्रायभेषजम्पयुई सोम परिस्राघुत म्मधुव्यन्त्वाज्यम्युहोतुर्वज // 33 // होतावक्षुद्गेदिशकवष्ष्यो / नव्यचखतौरप्रिश्वभ्यान्नदगेदिनु ऽइन्डोनरोट्सौदघेदुहेधेनु सर / कस्मात्पुनरेवमाशास्यत इत्यताह / यतःसरस्वतीभिषक् स्वयमेवटुहे दोग्धिइन्द्रायमेषजम् / / अतोयूयमपि भिषजौभवथेति / अश्विसरस्वतीन्द्राश्च दैवानही जामानाः पयःप्रभृतीनिव्यन्तु त्वमपि हेमनुष्यहोतराजासा यज // 33 // होतायक्षडुरोदिश: / होतायजतु / दुर:हार इतिप्राप्ते छान्दसंसंप्रसारणम् / वाराणीति लिङ्गव्यत्ययेनपर्वायः / कथंभूता यनगृहद्वारः / दिश: शिवम् For Private And Personal Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir कवष्योन व्यचस्वतीः / लुप्तोपमानमेतत् / दिशवया:कवष्यः समुषिराः / व्यवस्वती:व्यञ्चनवत्यः गमनवत्यश्चया: / अश्विभ्यानटुरोदिश: / अखिभ्याञ्च वाअधिष्ठिता: यजगृहद्वारोदिश ववभूवुः / इंट्रोनरोदसौदुघे / इंद्रश्चयाअधिष्ठाय रोदसौद्यावापृथिव्यौदुहे / हकारसाघकार: / दुग्धवान् / याश्चाधिष्ठायदुहे धेनुर्भूत्वा सरस्वतीअश्विनौच / कस्मैदुहेकिञ्च टुह-है स्वत्त्युश्विनेन्द्रीयभेषज शुक्रन्नज्योतिरिन्द्रियम्पयुऽसोम परिनु तांघुतम्मधुव्यन्वाज्यस्युहोतुर्वज // 34 // होतावक्षत्सुपेशसोरेन ततन्दिवाशिवनासमंजातुसरखत्तात्त्विषिमिन्ट्रेनभैषजयनोनर / इत्यताह / इंद्रायभेषजं शुक्रशुक्लंजोतिश्च इंद्रियञ्चदुहे / अश्विसरस्वतीद्राश्च पयःप्रभृतीनिव्यन्तु त्वमपि हेमनुष्य होतराजासायज // 34 // होतायक्षत्सुपेशसोषे / होतायजतु सुपेशसासुरूपे / उपद्रतिद्दिवचनोपदेशा द्राविंश्च उषाश्चगृह्यते। नक्तन्दिवाराबीच अहनिच / यौचाखिनौ समजात: संश्लेषयत: सरस्वत्यासहितौ / विषिन्दीप्तिम् इंद्र। इंद्रभेषजच्च For Private And Personal Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir संश्लेषयत: तौचहोतायजतु / यश्चश्येन: रजसा / रजःशब्दोजयोतिर्वचनः / जोतिषा हृदाहृदयेन / श्रियान नकारा:सर्वेसमुच्चयार्थीयाः / इहानुवाकप्रायसः / श्रियाचसह मासरमुपादाय इंट्रे समनक्ति / तच्च होतायजतु // अविसरस्वतींद्राश्च दैव्येनहोत्रा ईजामाना: पयःप्रभृतौनियन्तु त्वमपि हेमनुष्यहोतराजासायज // 35 // होतायक्ष व्याहोतारा / होतारौ जसाहुदाश्शुियानमारम्पयः सोम परिसुतांघुतम्मधुव्व्यन्त्वाज्य स्युहीतुर्यज // 35 // होतावक्षुदैव्याहोतारा॥भिषजाश्विनेन्ट्ठन्न जाविदिवानत तन्नभैषजैशृषः सरखतौभिषक्सौसेनदुहाइन्दुि / यम्पयु ई सोमः परिस्साघृतम्मधुळ्यन्त्वाज्यस्य होतुर्यजं // 36 // अयञ्चाग्निरसौचमध्यमः / भिषजौअश्विनौ इंद्रन्न इंद्रञ्चहोतुयजतु | जागविदिवानक्तम् नभेषजैः शूषठ सरस्वती भिषक्सौसेनदुहइंट्रियम् / याचैषासरस्वती भिषक्जावि / स्वकार्य- 482 सिद्धावप्रमत्ता जागरणशीलाविभक्तिलोपः / दिवानक्तञ्च भेषजैरोषधैः शुषम्बलम् सौसेनच For Private And Personal Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir टुहेदोग्धि / इंट्रियञ्चइंद्रार्थम् / ताञ्चदैव्याहोतायजतु | अश्विसरस्वतीद्राश्च दैयेनहोवे जामानाः पयःप्रभृतीनि व्यन्तु त्वमपि हेमनुष्य होतराजासत्र यज // 36 // होतायक्षत्तिस्रोदेवीः / होतायजतु तिस्रोदेवीः वक्ष्यमाण: / नभेषजम् त्रयस्त्रिधातवीपसः / नकारस्ममुच्चयार्थीयोभिनक्रमः / भेषजञ्चयाइन्द्रकुर्वन्तिताश्चहोतायजतु। त्वयः / पशव:त्रिधातवः / आश्विनोधूम्मः / होतावक्षत्तुिस्रोदेवी // होत्यक्षत्तुिस्रीदेवीनभैषजन्त्रयस्त्रिधात वोपोंरूपमिन्ट्रैहिरण्यय॑मुश्विनेडानभारतीवाचासरखतीमहुst इन्द्रायटुहाइन्द्रियम्पयुई सोम परिस्राघुतम्मधुब्यन्त्वाज्ज्य॑स्यहो सारस्वतोमेष: ऐन्द्रऋषभः / इतित्रय: पशवः / प्रधानांगोपायशिस्विधातुपशुः / अपसः अपस्विनइतिप्राप्ते छान्दसोमतुपलोपः। कर्मवन्त: / अग्नयोवात्रयस्त्रिधातवः / रूपमिन्द्र हिरण्ययमश्विनेडानभारती / येच / इन्द्ररूपंहिरण्मयं / कुर्वन्तिताच होतायजतु / केतेइत्यताह / अश्विनौडाचभारतौच / वाचासरस्वतीमह इन्द्रायदुहन्द्रियम् / याच वाचावयौलक्षणया 122. For Private And Personal Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir 3 सरखतीमह: महत्वम्पूजामिन्द्राय दुहेदोग्धि इन्द्रियञ्च / ताञ्चहोतायजतु / अश्विसरस्वतीन्द्राश्च दैव्येनहोत्रेज्यमाना: पयःप्रभृतीनिव्यन्तु त्वमपि हेमनुष्य होतराज्य स्ययज // 30 // होताको यक्ष रेतसम् / होतायजतु / सुरतसं शोभनंरेतः उदकलक्षणंयस्य शोभनंद्येतसारत: यदुदकम् / यद्दा मुष्ठुरेतोयस्मात्तम पुंसोरत:कारणभूतम् / क्षभम्बर्षितारम् / नर्यापसम् नरेभ्योहितन्नर्यम् / तुर्यजं // 37 // होतावक्षत्सुरतसमृषभम् // होतावक्षत्सुरतसमृष / भन्नापसन्त्वष्टारमिन्द्रमुश्विनाभिषजन्नसरस्वतीमोजोनजूतिर / न्द्रुियन्वृकोनरंभुसोभिषग्ग्यशु सुरैयाभेषज थुियानमास रम्पयर तद्यसाअपःकर्मसनर्यापस: तन्नर्यापसन्वष्टारम् दैव्योहोतायजतु / किञ्च / इन्द्रमश्विना भिषजन्नसरस्वतीम् / इन्द्रम् अश्विनौभिषजञ्च सरस्वती दैव्योहोतायजतु / केनयजतु / ओजो शिवम् नजूतिरिन्द्रियंकोनरभसोभिषक् / नकार:समुच्चयार्थीय: / ओजश्चजूतिर्जव: इन्द्रियञ्च योवृक: / सरभस.सोद्यमोदक्ष: भिषक् तेनयजतु / सुरायांवृकलोमानि क्षिप्यन्ति इत्यतएवमुच्यते / यसः 483 For Private And Personal Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir M र सुरयाभेषजं श्रियानमासरम् / तथा मासरमुपादाय सुरयाचयजतु / यशोभेषज श्रियासह इन्द्रेयजमानेवा / अश्विसरखतीन्ट्राश्च दैव्य नहोत्रा ईज्यमानाः पयःप्रभृतीनि व्यस्तु त्वमपि हेमनुष्यहोत: आज्यस्ययज // 38 // होतायक्षद्दनस्पतिम् / होतायजतु / वनस्पतिंशमितारं सोम परिसाघुतम्मधुव्यन्वाज्य॑स्यहोत_ज // 38 // होताव क्षुद्दनुस्प्पर्तिशमितारम् // होतावक्षुहनुस्प्पर्ति शमिता शुतक तुम्भीमन्नमुन्यु राजानव्याग्घ्रन्नम॑साभिश्वनाभाम सरस्वतीभुिष / गिन्द्रायदहऽइन्द्रियम्पयुङसोम परिसूतांघुतम्मधुव्यन्त्वाज्यस्यहो / 1 शतक्रतुम् वहुकर्माणम् / भीमनमन्यं राजानव्याघ्रम् / भीमभयानकम् मन्युंक्रोधात्मानम् / S राजानमरण्यानाम पशूनांव्याघ्रञ्च होतायजतु / नमसाश्विना नमसाहविषा / अश्विनौचहो तायजतु / भामसरस्वतीभिषगिंद्रायटुहइंट्रियम् / याच भामंक्रोधम् / सरस्वतीभिषक् इंद्राय दुहेदोग्धि इंट्रियञ्चताञ्च दैव्योहोतायजतु / अश्विसरस्वतीन्द्राश्च दैयेनहोवेज्यमाना: पयःप्रभृतीनि For Private And Personal Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir वान्तु त्वमपि हेमनु यहोतराज्यस्थयज // 38 // होतायक्षदग्निंस्वाहा / दैवी होतायजतु / अग्निप्रयाज देवतां वा आहवनीयम्वा / स्वाहाज्यस्यस्तोकानाम् सुष्टुआह शोभनमाह यजमान: आजास्यस्तोकानाम् स्तोकाविपुषः / स्वाहामेदसाम्पृथक् / शोभनमाह यजमान: मेदसांवतुर्यज // 36 // होत्यक्षदग्ग्निवाहा // होत्यक्षदग्निखा हाज्ज्यस्यस्तोकानाखाहामेदंसाम्म्पृथक्स्वाहाच्छागमुश्विभ्याए खामुिषसरखत्यैखाहऽऋषभमिन्द्रायसि हायसहसऽइन्द्रिय खाहाग्निन्नभेषजवाहासोममिन्ट्रियध्खाहेन्द्रसुत्वाणिस पासम्बद्धानाम् पृथक्पृथक् / वपा:श्रप्यमाण आजोनाभिघाय॑न्तेतदभिप्रायमेतत् / स्वाहाछागमखिभ्याम् / छागमेषर्षभशब्दा: पशुवचनाः / शोभनमाह यजमान: छागपशुमशिभ्याम् / ॐ शिवम् शोभनमाह मेषंसरस्वत्यैच / स्वाहाऋषभमिंट्राय / शोभनमाह यजमान: ऋषभम इंद्राय। कयंभूतायइंद्राय / सिंहायअभिभवित्र / पुनःकथंभूताय / सहसेवलात्मकायच / किंभूतम A For Private And Personal Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir षभम् इन्द्रियम् इंद्रियात्मकमितिसामानाधिकरण्यात्सम्बन्धः / स्वाहाग्निन्नभेषजम् आजप्रभागौ सुआहयजमान: अग्निभेषजम् / ग्वाहासोममिंट्रियम / शोभनमाह यजमान: सोममिंद्रियात्मकम् / ग्वाहेन्द्रंमुत्रामाणम् सवितारम्बरुणम् भिषजाम्पतिम् / पशुपुरोडाशदेवताः / सुआइयजमान: / इंद्रसुवामाणम् सवितारञ्च / वरुणम्वैद्यानाम्पतिञ्च / स्वाहावनस्पतिम् विताएंवरूंणम्भुिजाम्पतुि एखाहाब्वनुस्प्पतिम्प्रियम्पाथोनभैषज स्वाहाँदेवाऽज्ज्युिपार्जुषाणोऽग्ग्निर्भेषजम्पयुङसोम परिसुाघु तम्मधुव्यन्वाज्यस्यहोतुर्वज // 40 // [12] होत्यक्षटुश्विनौ / प्रियम्पायोनभेषजम् / सुआह यजमान.वनस्पतिम् प्रियम्पाथश्चान्नम् भषजञ्च / पशुदेवतानांवनस्पतिम् / साहादेवाआजापा: / प्रयाजानुयाजा वैदेवाआपा:शोभनमाह यजमान: देवाआजापा: ईजामानावैदेवा उत्तमेप्रयाजस्मर्यन्त इत्यतीविभक्तिवात्ययोवनकृतः / श्रुतिस्तु / देवा हवा ऊचुहन्तविजितमेवानुसर्वयन्नठ• सर्छ० स्थापयेत्युपक्रम्य तउत्तमे प्रयामाहाकारेणैव For Private And Personal Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir , सर्वयन: सर्ट स्थापयन्नित्याह / अत.साहाकारा: समाप्तिवचनाः समाप्तिवचनत्वाञ्च माहाकाराणान्देवतापदस्य चतुर्थ्याभवितवाम् / माहादेवेभ्य आजापेभ्यत्ययमप्रकार: / जुषाणोत्रनिर्भेषजम / जुषाण:सेवमान: अग्निःभेषजमोषधम् इंद्र ययजमानसा वाकरोतु / अशिसरमुतौंट्राश्च दैवानहोवे जामाना: पयःप्रभृतीनि वान्तु त्वमपि हेमनुष्य होतराजासायज // 40 // च्छागस्य // ब्बुपायामेदंसोजुषेता हुविहॊतुर्वज॥ होतावक्षुत्सरंस तौम्मेषस्य॑ळपायामेदंसीजुषाविौंतर्यजं // होतावादिन्द्र मृषभस्य॑ब्बुपायामेदंसोजुषता विहॊतुर्वज // 41 // होतावक्षटु (1) होतायक्षदश्विनौछागस्य त्रयोवपानां प्रैषायथालिङ्गम् / दैव्योहोतायजतु। अग्विनौछागस्य वपायामेदसः / स्नेहप्रकृतिर्मेदः। तीचेज्यमानौ जुषेतांहविः त्वंच हेमनुषा होतर्यज। होताय- शिवम् (1) का होता यचदखिनाविति यो वपानां प्रषा यथालिङ्गम् / होता यक्षदश्विनौ छागस्य होता यक्षरसररूतीम _होता यक्षदिन्द्रमृषभाति त्रयो वपात्रयस्य क्रमात् प्रषा एककण्डिकायामिति सूत्रार्थः। 485 For Private And Personal Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir क्षत्सरस्वतीमेषस्य / जुषतामित्येकवचनविशेष: / होतायक्षदिन्द्रमृषभस्य / सममन्यत् // 4 // (1) होतायक्षदश्विनौ सरस्वतीम् / ग्रहाणांप्रेषः / दैव्योहोतायजतु अश्विनौचसरस्वतौञ्च इन्द्रच्चसुत्रामाणम् एवं होतारमुत्का अथेदानीमध्वर्युनाह / हेअध्वर्यवः इमेसोमाः सुरामाणः मुरशिवनौसरस्वतीमिन्द्र सुत्त्राणिमिमेसोमा॑सुरामाणुश्छागैन्नमुषे / ऋषभैसुताशप्पन्नतोकमभिर्खामहस्वन्तोमदामा रेणुपरिष्कृत ताशुका पय॑स्वन्तोमृता प्ररित्यतावोमधुप्रच्चुतस्तानुपिशवनासर मणीयाः सुरावन्नीवासुरामयावा / छागैर्नमेषैः ऋषभः सुताः / नकारा: सर्वेसमुच्चयार्थीयाः / छांगैश्च मेषैश्च ऋषभैश्च सुताअभिषुता: समर्थीकृताः / शष्यैश्च तोक्मभिश्च लाजैश्च महस्वन्तः महाभाग्ययुक्ताः महातर्पणीयाः। मासरणपरिष्कृताः। संपर्युपेभ्य: करोतोभूषणेसुट् / मास(१) का० ग्रहाणां चतुर्थः / होता यज्ञश्विनौ सरस्वतीमिन्द्रमिति चतुर्थों ग्रहाणां प्रपः / होता यक्षदश्विनी सरस्वती सुष्ठ रक्षितारमिन्द्रच्च यक्षत् यजतु। होतारमुकाध्व! नाह हे अध्वर्यवः / For Private And Personal Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir रेणअलङ्कृताः / शुक्रा: शोचिष्मन्तः पयस्वन्तः पयसासंयुक्ताः अमृताः अमृतकल्या: प्रस्थिताः होमाभिमुखीभूता: वः युष्मत्संवन्ध न / इत्यध्वर्युविषयम् / मधुश्चुत: मधुस्रवाः मधुक्षरणाः तानेतान्मोमान् अश्विनौचसरस्वतीच इन्द्रश्चसुत्रामा। साधुत्राणः ब्रबहाजुषताम् जुषित्वाच / / सोम्पंसोममयम्मधु पिवन्तुच मदन्तुच व्यन्तुच / त्वमपि हेमनुषाहीतर्यज // 42 // (1) होतायक्षदखि खुतीन्द्रसुत्वामाबृत्वहाजुषन्तामोम्म्यम्मधुपिबन्तुमर्दन्तुव्यन्तु / होतुर्वज // 42 // होतावक्षशिलवनौच्छागस्य // हुविषुऽामि यमंड्युतोमेदाउदृतम्पुराहेषोभ्य पुरापौरुषेय्यागुमोघस्तान्नुनवासे / नौछागस्य / प्रेषः। होतायजतु। अश्विनौशागस्य छागाङ्गस्यतावश्विनौछागसम्वन्धिनः हविषः आत्ताम् / अदभक्षणे / अभक्षयताम् भक्षितवन्तौ। अद्यअस्मिन्द्यवि / मध्यतोमेदउगतम उदरमधातोवपालक्षणम्मेद: उद्धृतम् हृग्रहोर्भः छन्दसिहसप्रतिभकारः / पुराई षोभ्य: पूर्वमसुररक्षोभ्यः (1) का हविषामत्तरे यथालिङ्गम् चतुर्था प्रषादग्रे पठयमाना होता यक्षदखि नौ छागस्य हविष इत्याद्यास्त्रयो यथालिङ्गमाश्विनादिहविर्यागानाषा इत्यर्थः For Private And Personal Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यज्ञद्देष्ट्भयोवा / पुराचपौरुषेय्याराभः पुरुषार्थम् गृह्यतेति पौरुषेयौगृप तस्याः पौरुषेय्यागृभः दूडायाइत्यर्थः / नहिवपायागे इडाविद्यते / यावेवम् वपाहविष आत्तान्ताविदानीम् घस्ताम्मक्षय* ताम् अङ्गानांस्वमंशभूतमितिशेषः विशेषणैर्विशेषासाधाहारः / नूनन्निश्चयेन / किम्भूतानामङ्गानाम् घासग्रासे अजाणाम् अवदात्तानाम् घासयैरजित्तं खेच्छयाघासवायान्यजराणिस्युः / यवसप्रऽअज्ञाणांव्यवसप्पथमाना सुमत्क्षराणा शतरुड़ियाणामग्ग्नि षष्वात्तानाम्पोवोपवसनानाम्पाश्र्वत श्रोणित शितामुत ऽउत्सादु / थमानां यवसानामन्नानां यानिप्रथमानिमन्वैः संस्कृतत्त्वात् / एतदैपरममन्नाद्यं यन्मांसमितिश्रुति:।। सुमत्क्षराणाम सुमत्स्वयमित्यर्थः / स्वयमेवयानिक्षरन्तिअदितानि। शत्तरुद्रियाणाम् वहुस्तुतीनाम् रुद्रदृतिहि स्तोटनामसुपठितम् रुद्रसास्तोतुरिमारुद्रियास्तुतयः / वहुशोवारुद्राणाम् अग्निष्वात्तानाम् अग्निनासाधुपाकार्थमासादितानाम् अग्निनामुसृतानामित्यर्थः / पौवोपवसना नाम् पौवशब्दः स्थूलवचन: / पौवभिः स्थूलैरुपोषितं यरवदानैः स्थूलानामुपवसनम् समीप 123. For Private And Personal Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir 21 स्थितिर्येषामितिया। किछ / पार्वतःोशित: शितामतउत्सादतः / अङ्गादङ्गादवत्तानाम् पावतोवत्तानाम पार्वपरशुमयमङ्गभवति। श्रोणितोवत्तानाम् शितामतोवत्तानाम् / शितामशब्देन यवहाशिताम् / योनिर्वाशिताम् मेदोवाशिताम्इतिव्याख्याभेदाः / उत्सादनप्रदेशात् छेदनप्रदेतोङ्गादङ्गादत्तानारतऽएवाप्रिश्वांजुषेताहुवि)तुर्यज॥४३॥ होत्यक्षुत्सरखतौम्मेषस्य॑हुविषुऽायद्यमय तोमेटुऽउ तम्पु राद्देषोभ्यपुरापौरुषेय्यागुभोघसन्नूनवासेऽअज्ञाणांय्यवसप्प्रथमा नासुमत्क्षराणाशतरुड़ियाणामग्निष्ष्वात्तानाम्पोवोपवसना * शात् / अवत्तानाम् / एवमङ्गादङ्गादवत्तानाम् / करतएवाश्विनौटप्तिमितिशेषः / जुषताञ्च पुनर्वचनमादरार्थम् त्वमपि हेमनुष्यहोतयंज // 43 // होतायक्षत्सरस्वतीम्मेषस्य / होतायजतु सरस्वतीम्। याहविषावयत् / आङ्पूर्वस्यवनेः खादनार्थस्य लिटिभूतार्थाभिधायिन्येतद्रूपम् / घसत्लो. शिवम् 3487 For Private And Personal Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir डघुलेट् / जुषतामेकवचनम् अन्यदुक्तम् // 44 // होतायक्षादन्द्रमृषभस्य / तुल्यव्याख्यानम् // 45 // नाम्पार्वत श्रोणित शितामुतऽउत्सादुतोङ्गादङ्गादत्तानाङ्करदे वसरखतीजुषा हुवि)तुर्वज // 44 // होतावादिन्द्रमृषभ स्वहुविषुऽआयटुयमंड्ातोमेदाउ तम्पुराद्देषोभ्यापुरापौरुषेय्या , गृभोघसन्नुनडासेऽबज्जाणांव्यवसप्प्रथमाना७ सुमत्राणाशत दियाणामग्निष्ष्वात्तानाम्पौवोपवसनानाम्पाशपर्वत श्रोणित भि तामुतऽउत्साढतोङ्गादङ्गादत्तानाशरदेवमिन्द्रौजुषा र हुवि:तु र्यजं // 45 // होतावक्षुहुनस्पतिमुभि // हिपिष्टतमयारभिष्टया होतायक्षदनस्पतिम् / (1) वनस्पतिप्रैषः / होतायजतु वनस्पतिंयूपम / अभिहिपिष्टतमयारभिष्ठ (1) का. उत्तमौ वनस्पतिस्विष्टकतोः / अन्त पठामानौ होता यक्षहनस्पतिमभि होता यक्षदग्नि खिष्टक्वतमिति क्रमेण वनस्पतियाग विष्टक्वद्यागे च प्रेषी। 18 / 16 / 25 / For Private And Personal Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir यारशनयाधित / कस्माइनस्पतिम् यजतु / हिशब्दोयस्मात्प्रर्थेयस्मात्अभ्यधित स्थाघोरिच्चेतिदधातेलु तिअभिधारितवान्। केनाभिधारितवान् / पिष्टशब्दोरूपवाची। पिष्टतमया / रभिष्टयाच / आलब्धतमया। अतिशयेननियमकारिण्या / रशनयाजालभूतया / प्रार्थयामि रशुनयाधित // यत्राश्विनोश्छागस्यहविर्षप्रियाधामानियत्सर। खत्त्यामुषस्य॑हविर्षःप्पियाधामानिवत्वेन्ट्रस्य षुभस्यहुविर्षःणि याधामानियत्वाग्ने प्रियाधामामिवत्सोम॑स्यप्रियाधामानियत्वे न्ट्रेस्यसुत्वाम्म्णःप्पियाधामानिवसवितु प्पियाधाानिवत्र वरुण स्यप्पियाधाानिवत्व वनस्पतैःप्पियापार्था 7 सियत्वदेवानामा , वनस्पतिम् / यवदेशेअश्विनौछागस्यच हविषश्चप्रियाप्रियाणिधामानि स्थानानि / यबसरखत्या: * यवेन्द्रस्य / एता:पशुदेवताः। अथाज्यभागौ। यत्राग्नेः यत्रसोमस्य / अथपशुपुरोडागर्दवताः भावम 488 For Private And Personal Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यवेन्द्रम्यसु लाम्गा: यत्रसवितुः यत्रवरुणस्य यत्रवनस्पतेः / प्रियापाथांसि / पाथःशब्दोनवचनः / वनस्पतिःपशोरिवाङ्गम् / अथप्रयाजानुयाजः / यत्रदेवानामाज्यपानाम अथविष्टकृत् / / यत्राग्न_तुः प्रियाणिस्थानानि / तत्रतेषुस्थानेषु एतान् पशून् / प्रस्तुत्येवप्रस्तुत्यच उपस्तुत्येव / / अतिशयार्थपुनर्वचनम् / उपावनक्षत्पावसृजतु / रमीयसइवकृत्वी रभराभम्ये रभसाश्चपशृन्कृत्वा / / ज्युपानाम्पियाधाानियत्वाग्नेहोर्तुःप्पियाधामानितत्व॑तान्प्रस्त / त्यैपस्तत्त्येवोपावस्रक्षुद्दभौयस ऽइवकृत्त्वीकर?वन्देवोवनस्पतिर्नु / षताएहुवि:तुर्वज॥४६॥ होतायक्षटुग्ग्नि विष्टकतम्॥ होता है यक्षदग्नि स्विष्टकतुमांडुग्ग्निरश्विनोश्छागस्यहुविष प्रिया करत्करोतु / एवंदेवोवनस्पतिर्जषताम हविःत्वमपि हेमनुष्यहोतर्यज // 46 // होतायक्षदग्निं खिष्टकृतम् / खिष्टकृत्यैषः। दैव्योहोतायजतु। अग्निस्विष्टकृतम् / कस्माइतोरित्यतआह / अयाट् अघासौत्दृष्टवान्एवमग्रे पि। योग्निः अश्विनी:छागस्यच हविषश्च प्रियाणिधामानि / / For Private And Personal Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gya अयाट्सरखत्या:अयाट् इन्द्रस्य / प्रधानदेवताः। अयाट्अग्नेः अयाट्सोमस्य / आज्यभागी अयाट इन्द्रस्यसुवाम्णः अयाट सवितुः अयाटवरुणस्य / पशुपुरोडाशदेवताः / अयाट्वनस्पतेः प्रियाणिपाथांस्यन्नानि / वनस्पति: प्रधानाङ्गदेवता / अयाद्देवानाम् आज्य पानाम् धामान्ययाटसरंखत्त्यामुषस्यहुविष प्रियाधामान्ययाडिन्द्रस्य / ऋषभस्य॑हुविषः प्नि याधामान्न्याडुग्ग्नेप्पियाधामान्न्ययाटसो मस्यप्पियाधामान्न्ययाडिन्द्रस्यस्खुत्वाम्म्णःप्पियाधामान्न्यास्ट्स वितुप्पियाधामान्न्ययाडुणस्यप्पियाधामान्ययाङ्कनस्पते प्नि या पाथा स्याङ्देवानामाज्यपानाम्पियाधामानियाटुग्ग्ने)तुः प्पियाधामानियक्षुत्वम्महिमानमायजतामेज्ज्या ऽइषःकृणोतुसोऽ प्रयाजानुयाजाआज्यपाः / यक्षदग्नहॊतुः यक्षत्दृष्टवान् अग्नौंतुःस्विष्टकृत: स्वयमेवप्रियाणिधामानि। यदत्यादीत्। स्वम्महिमानम स्वकीयांविभूतिम्। किञ्च / आयजतामेजया 488 For Private And Personal Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir इषः / यजतामितिवचनव्यत्ययः / आइजना अभियष्टव्यायागार्हा इषःप्रजाः / इषानेनतासांस्थि-त्ति रुत्पत्तिश्चेति इषःप्रजाउताः यागशीलायागार्हाः प्रजाभवन्तीत्यर्थः। कृणोतुकरोतुस: अध्वराअध्वरान्यज्ञान् जातवेदाःजुषताञ्चहवि: / हेमनुष्यहोतः त्वमपियज // 47 // (1) देवम्बहि: / एकाद शानुयाजप्रैषाः अश्विसरस्वतीन्द्रदेवत्याः व्यवहितपदप्रायाः यत् देवम्बर्हिः सुदेवम् शोभनादेवा - अंडराजातवेदाजुषा विौंतुीज // 47 // [7] देवम्बर्हि र सरखतीसुदेवमिन्ट्रैअश्विना // तेजोनचक्षुरक्ष्योर्बुर्हिोदधुरि / न्द्रियब्वसुवनेव्वसुधेयस्यब्यन्तुवज // 48 // देवीहारः // देवीहीरो अम्येतिसुदेवम् / तेनवर्हिषासरस्वती अश्विनौचइन्द्र / तेजोन. नकारःसमुच्चये / तेजश्चचक्षुश्च , इन्द्रियश्च अक्ष्यो:अक्षणो:दधुः। वसुवननायधनलाभाय / वसुधेयसा धननिधानायच / व्यन्तु पिबन्तु अश्विसरस्वतीन्द्राः त्वमपियज। अथसमस्तार्थः / यद्दे वंवर्हिः सुदेवंतेनवर्हिषासरस्वती (1) का अनुयाजषा देवं बर्हिरिति याज्याश्च / देवं बर्हिः सरस्वतीत्याद्या एकादश कण्डिकास्त्रिपशोरनुयाजानां प्रषा याज्याश्च भवन्तोत्यर्थः। 18 / 7 / 8 / For Private And Personal Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु. अश्विनौचतेजश्चअक्षणोः दूट्रियञ्चदधुः / एवमग्रेपि // 48 // देवीारः / यादेव्यःयनगृहहार: ताभिःअश्विनौभिषजौच / सरखतीच प्राणञ्चनसिनासिकायाम् वीर्यञ्चन्द्रियञ्च / हारः द्वाभिरितिविभक्तिव्यत्ययः। इन्ट् दधुः। वसुवनेइतिव्याख्यातम् // 4 // देवीउषासौ / नक्तो अश्विाभिषजेन्ट्रेसरखती॥ प्राणन्नब्बोन्नसिहारौदधुरिन्द्रि बँवसुवनेंव्वसुधेयस्यव्व्यन्तवज // 46 // देवोऽजुषासौं // देवोऽजुषा सांवश्विासुत्वामेन्ट्रेसरखती॥ बलुन्नब्वाचमास्य॒ऽउषाभ्यान्दधु रिन्द्रियबसुवनैव्वसुधेयस्यव्यन्तुयज // 50 // दे॒वौजोष्टीं // देवीजो ष्ट्री षासावितिप्राप्त छान्दसः प्रातिपदिकलोप: / यौदेव्यानक्लोषासौ ताभ्याम अश्विनौसुत्रामाशोभन-शिवम वाणी सरस्वतीच। वलञ्चवाचञ्च आस्येमुखे / इन्द्रियञ्चइन्ट्रे / उषाभ्यांनतोषाभ्यान्दधुः व्याख्यातमन्यत् // 50 // देवीजोष्ट्री। येदेव्यौजोषयिल्यौ द्यावापृथिव्यौइतिवा। अहोरात्र 46. For Private And Personal Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir इतिवा। शसञ्चसमाचेतिकात्थक्यः / ताभ्याचोष्ट्रीभग्राम् सरस्वतीचाश्विनीच इन्ट्रम्अवईयन् / कथमवईयन् / श्रोत्रञ्चकर्णयोः यशश्च इन्द्रियञ्च इन्दै दधुः / वसुवनइति समञ्जसम् // 51 // देवीऊर्जाहुती / जोष्ट्यास्तुल्यदेवताविकल्पः / येदेव्यो ऊर्जाहुती रसवती आहुतिराह्वानम् / दुधेके सरखत्त्युपिशवनेन्द्रमईयन्॥ श्रोत्वन्नकमयोट्यशोजोष्ठीभ्यान्दधुरि *न्द्रुिय_सुवनेवसुधेयस्यव्यन्तुवर्ज // 51 // दे॒वो ऽ जुर्जाहुती // देवोऽजुर्जाहुतीदर्धेसुदधेन्दुसरखत्युशिश्वाभिषावत // शुक्क न्नज्योतुिम्तनयोराहुतीधत्त ऽइन्द्रुिचवसुवनेव्वसुधेयस्यन्यन्तुय दुग्धे सुदुघेसुदोहने। उपरितनेईचें आहुतौशब्दः श्रूयते सहकृतविभक्तिव्यत्ययः समर्थीक्रियते / ताभाामाहुतीभाम् सरस्वतीच अश्विनौच भिवजौअवतःअवन्तीतिवचनव्यत्ययः / इन्द्रमितिशेषः / कथंकृत्वा। शुक्रञ्चजयोतिश्च पयोलक्षणम् स्तनयोःइन्द्रियञ्च इन्द्र धत्तइतिविभक्तिव्यत्ययः दधुः / 124. For Private And Personal Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir वसुवनेति व्याख्यातम् // 52 // देवादेवानाम्। यौदेवौहोतारौ देवानामभिषजी ताभयांहोटभरांवषट्कारैश्च / अश्विनौचसरस्वतीच इंद्रम्इंट्रेतिविभक्तिव्य त्ययः / इंद्रियञ्च विषिदीप्तिञ्च हृदयेमतिञ्चदधुः। वसुवनेति समञ्जसम् // 53 // देवीस्तिस्रः। यादेव्य स्तिस्र: ज॥५२॥ देवादेवानाम् // दुवाडेवानम्भुिषजाहोगविन्द्रमप्रिश्व नां // वषट्कारै सरखतीत्त्विषिन्नहृदयमुति होर्तृभ्यान्दधुरिन्टि यवसुवनेव्वसुधेयस्यव्धन्तुबजे // 53 // देवीस्तुिस्र // देवीस्तुि सस्तुिस्रोदेवीरश्विनेड्डासरस्वती // शूषन्नमहीनाभ्यामिन्द्रायद धुरिन्ट्रियंवसुवनेव्वसुधेयस्यव्यन्तुयजं // 54 // दुवऽइन्द्रः॥ देव र सरस्वतीडाभारत्यः तिस्रोदेवीः अबविभक्तिव्यत्ययोध्याहारश्च वाक्यवशात् / तिमृभिर्देवीभिः- शिवम् सरस्वतीडाभारतीभिः / अश्विनौचडाचसरखतीच / शूषवलञ्च मध्येनाभ्याम् इन्द्रियञ्च / इन्द्रायइन्द्रे इतिविभक्तिव्यत्ययः / दधुः। वसुवनेति समानम् // 54 // देवन्द्रः / योदेवःइन्द्रः / 461 For Private And Personal Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir इदिपरमैश्वर्ये / परमैश्वर्ययुक्तः। नराशंसः नराअस्मिन्नासीनाःशंसन्तीतिनराशंसः विवरूथ.त्रि गृहः सदोहविर्हानाग्नौधैः / विलोक्यावात्रिएहः। यस्यच सरस्वत्याअस्विभ्याञ्चईयतेउद्यतेनीयतेरथः। सयज्ञः। रेतन रेतश्चअमृतञ्चरूपञ्च जनित्रजन्मच / इन्द्रायइन्द्रे इन्द्रस्यवेतिविभक्तिव्यत्ययः। कथंभूतोयत्नः। त्वष्टात्वक्षति: करोत्यर्थः / जगतःकर्ता / दधत्दधातु इन्द्रिऽइन्टोनराशसस्त्रिवरूथ सरस्वत्याश्श्विभ्यामीयतुरर्थः // रेतोनरू पमुमृतञ्जनियुमिन्द्रायत्त्वादधदिन्द्रियाणिब्वसुवनेवसुधेयस्यव्य न्तुबजे // 55 // देवोदुवै // देवोदवैर्बनस्पतिर्हिर्रगण्यपर्णोऽ शिश्वब्भ्यासरखत्यासुपिप्पलऽइन्द्रायपच्च्यतुमधु // ओजोनजूति याणिच। वसुवनइति व्याख्यातम् // 55 // देवीदेवैः। योदेवोवनस्पति:पः / देवैर्हिरण्यपर्णः यस्यदेवाहिरण्मयानिपर्णानि। रूपकोबालङ्कारः। यश्च अश्विभ्यांसरस्वत्याच सुपिप्पल: / अश्विनौसरखतीच यस्य वनस्पतेः फलानीत्यर्थ: / इन्द्रायइन्द्रार्थञ्च यः पच्चतेफलतिमधुमधुराणिफलानि / सवनस्पतिः ऋषभ:ऋषभशब्दः पूजावचन: / पूज्यः / जूतिः। जूतिर्जवते: / वेगवान् / ओज For Private And Personal Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir श्वभामञ्च भामशब्दःक्रोधवचन: इन्द्रियाणिच न:अस्माकम् अस्मदोहयोश्चेतिवहुवचनम् दधत्दधातु। वसुवनेतिव्याख्यातम् // 56 // देवम्बहिः। यस्माद्देवम्वहि: वारितीनामउदकवतीनांवा वारिप्रभवानांवा वरतराणाम्वाओषधीनांसम्वन्धि / अध्वरेस्तोर्णम् अश्विभ्यामध्वयंभ्याम् ऊर्णमदाः अनुवमृदु / सरस्वत्याच / स्तीर्णमित्यनुवर्तते / तस्मात् स्थोनंसुखरूपम् हेइन्द्र ऋषुभोनभामुंबनस्पतिौदर्धदिन्द्रियाणिवसुवनेवसुधेयस्यव्य न्तुवज // 56 // टुवम्बर्हि // टुवम्बहिबारितीनामद्ध्वरेस्तौसम रिश्वब्भ्यामसम्मदासरस्वत्यास्योनमिन्द्रतुसदः // ईशायैमुन्न्युष्य जानम्बुर्हिोदधुरिन्द्रियव्वसुवने वसुधेयस्यव्यन्तुवज // 57 // टुवो तवसदःस्थानम् / किञ्च तस्मिन्सदसि। ईशायैईशिताय रैश्वर्यायमन्युक्रोधम् त्वाराजानम् इन्द्रियञ्च अश्विनौचसरस्वतीचवहिषादधुः / यहा ईशानायतवमन्युराजानमिन्द्रियञ्च / अश्विनौसरस्वतीच हविषादधुः। वसुवन इति व्याख्यानम् // 57 // देवोअग्निः / योदेवोअग्निः शिवम For Private And Personal Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir STS स्विष्टकृत् शोभनमिटकर्तव्यमित्यय मधिकारीयस्य सतथोक्तः / देवान् यक्षत् इष्टवान् / यथायथम् / यथा स्वंयथायथम् योयथायष्टव्यः सतथेत्यर्थः / एवंसामान्यत उक्त्वाअथेदानौं विशेषताह। होतारो अयञ्चाग्निरसौच मध्यमोवायुः / होटमित्रावरुणौवा / इन्द्रच्च अश्विनी च वाचकृत्वा वाचञ्चसरस्वतीज अग्निञ्च सोमञ्च यक्षदितिसम्वन्धः / स्विष्टकृञ्चस्विष्टः शोभनमिष्टः ऽअग्नि स्विष्टुक्कडेवान्न्यक्षद्यथायथ होतागविन्द्रमश्विनावाचा ब्वाचुसरखतीमुग्निसोमखिष्ट्रकत्स्वि ऽइन्द्रः मुत्रामासविता वरुणोभिषगिष्टोदेवोल्वनुस्प्पतुि स्विष्टादेवा ऽअज्ज्यिपाविष्टी, ऽग्निरग्निनाहोताहोत्लेस्विष्टुक्त यशीनर्धदिन्ट्रियमूर्जुमपंचिति / इन्द्रः सुत्रामाच इष्ट:सविता इष्टःवरुणोभिषक् इष्टश्चदेवोवस्पतिः। स्विष्ठादेवा आज्यपाः प्रयाजानुयाजाः दृष्टश्चाग्निरग्निना। अथेदानीं होता स्वष्टकृत् हो।मानुषाय / यशोनदधत् / ददात्यर्थेदधातिः। ददातु। इन्द्रियञ्च अर्जच्च अपचितिम्पूजाश्च स्वधामन्नच्च / वसुवनेति For Private And Personal Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir र व्याख्यातम् // 58 // अग्निमद्य। सूक्तवाकप्रैष: / (1) अग्निम् अद्यअस्मिन्यवि होतारम् अ गीत वृतवानयं यजमान: / किंकुर्वन् पचन् पत्तीः पक्तव्यानि वसूनितिसामान्यवचनम् / अथविशेषः पचन् पुरोडाशान् पशुपुरोडाशान्। वनन् पशुंयूपेइतिशेषः / अखि स्वधावसुवनैवसुधेयस्यब्यन्तुबजे // 58 // अग्निमुद्यहोरम णोतायंटवजमानु पचुन्यक तोडपचन्द्रपुरोडान्न्बुिध्नन्नुरिश्वभ्या छाग६ सरखत्यमुषमिन्यऽऋषभ सुन्न्वन्नुरिश्वभ्याएसरस्व / त्वाऽइन्यसुत्नाम्म्णेसुरासोमान्त्सूपस्त्थाऽअद्य // 56 // सुपुस्त्था / र भ्यांछागम् अग्विनीरर्थेछागम् सरस्वत्यैमेषम् / इन्द्रायचऋषभम् / अन्यच्चसुन्वन् अश्विभ्यांसरस्वत्यैचइन्द्रायचमुबारणेसुरासोमान्। तानिचवस्तूनिकुतीन्ययजमानः / अग्निहोतारमणौतेति-शिवम् (1) का० अग्निमद्येति सूक्तवाकप्रेषः। अग्निमध होतारमित्यादिः पता होत्यन्तः कण्डिकात्रयात्मकः सूक्तवाके 463 प्रषो भवति / For Private And Personal Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir सम्बन्धः // 56 // सूपस्थाअद्य / साधुयज्ञमुपतिष्ठति इतिसूपस्थाः अद्यअस्मिन्धविदेव:वनस्पति: अभवत् / अस्विभ्या छागेन सरखत्यैचमेषेण इन्द्रायचऋषभेण / कथमेवमवगम्यत इत्यताह / अक्षन्तान्भक्षितवन्त: अश्विप्रभृतयः तान्छागादीन / कुतआरभात्याह / मेदस्त: वपायाऽअद्यदेवोब्बनस्पतिरभवटुश्विभ्याञ्छागेनुसरखत्त्यैमुषेणेन्द्रीय षुभेणार्जुस्तान्न्मेंटुस्त प्रतिपचताएंभीषतावोधन्तपुरोडाशेरपुर शिश्वनासरखतीन्द्र सुत्वाासुरासोमाँस्लामुद्य // 60 // त्वामुद्य * ऽषऽआर्षेयऽऋषीणानपादवणीतायंत्यज॑मानोबहुब्भ्युऽासङ्ग प्रारभा। प्रतिपचतायभीषत। प्रत्यग्रभीषत प्रतिगृहीतवन्तः / पचतापक्कानि अग्निपक्कानि र अवदानानि / अवीवृधन्तच पुरोडाशैः। किञ्च। अपुःपीतवन्तः अश्विनौचसरस्वतीच इन्द्रश्वसुवामा। सुरासोमान् सुराचसोमाश्च / यद्दा सुरामयान्मोमान् // 6 // त्वामद्य / देव्यो * ऋषआर्षेयऋ षीणावपाद वृणीतेति समुदायस्थ प्रचयन्तु अनेकमपीतिकात्यायनसूचे भवति अस्यार्थः स्वरितादक्ष For Private And Personal Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org 4 से होताग्निरुच्यते। त्वाम् अद्य हेपे मन्त्राणांद्रष्ट: हेआर्षेय यजमानायैवियते इत्येवंसं, वोध्यते। हेऋषीणामृत्त्विजान्नपात्पुत्र अबणीतवृतवान अयंयजमान: / वहुभयोदेवेभाः आसगतेभाः त्वामेव अत्रणीतेत्यभिप्राय: / किमर्थम् एषःमेमह्यम् देवेषुवसुधनम् वारिवरणीयम् है तेभ्य ऽएषमैदे॒वेषुब्बसुब्बाल्य॑च्यतु ऽ इतितावादवादेवुदानान्यदु / स्तान्न्यस्म्माऽआच * शास्खाचंगुरखेषितञ्चहोतुरसिभट्ठवाच्च्यायु आयक्ष्यतेआदास्थति अयन्दातुंसमर्थ इति / एवञ्च / तायादेवदानान्यदुः / ता तानि / या यानि / हेदेवयानि देवादानानि अदुःदत्तवन्तः। इमानि अम्मैयजमानाय दातव्यानौति। तानिअम्मैयजमानाय / आचशास्वाच गुरग्व। आकारौभिन्नक्रमौ / पाशास्वच इच्छा / आगुरम्वच शिवम् रात्परव्यञ्जनव्यवहितंपदमनुदातमक्षरमेकमनेकंवातत्सर्वमुदात्तमयम्भवति उदातमयः प्रचयापरपर्यायः कुतः इयंशङ्कास्वरितात्परमनुदात्तमुदात्तमयम् इत्यवस्खरिता दितिपञ्चग्म्यन्तस्य श्रवरणात् / ___ * शास्वराम्खेत्यत्र वहिसकारो भवतिनान्यत्र कुतः हिसकाठ शास्स्वरारखेति अस्पार्थः हौसकारौ अस्मिन्पदहयइति हिसकारम्पदद्दयम् इतिकात्यानेनोक्तत्त्वात् प्रा. प. 4 / सू० 185 / 464 For Private And Personal Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir गुरीउद्यमने। उद्यच्छच। दानाय / प्रेषितश्चासि हेहोतः। झट्रवाच्याय / भन्दनीयवचनाय भट्रञ्चवचनम् त्वं ब्रूयाइति / अथेदानी प्रेषितोमानुषो होतासूक्तवाकाय / कथंकृत्वासूक्ताब्रूहि / सूक्तानिसाधुवचनानि वदति // 61 // समाप्ता सोचामणी।। - इति उब्वटकृतौ मन्त्रभाष्ये एकविंशतितमोध्यायः 21 // प्प्रेषितोमानुषसूक्तवाकार्यसुक्ताब्रूहि // 61 // इतिवाजसनेय र संहितायांएकविंशोऽध्यायः 21 // * तेजोसिशुकमुमृतमायुष्प्याऽआयुर्मपाहि // दे॒वस्य॑त्त्वासवितु (1) अथाश्वमेधश्चतुर्भिरध्यायैः तंप्रजापतिरपश्यत् / तेजोसि / सौवर्णम् निष्कम् प्रतिमुच्च (1) सर्वकामसा राज्ञोऽश्वमेधः तसा फाल्गुनशुक्लाष्टम्यामारम्भः / का. निष्क पतिमुञ्चन् वाचयति तेजोऽसीति / 20 / 1 / / चतुःसुवर्ण निर्मित पाभरणविशेषो निष्कः तंयजमानकण्ठ प्रतिबनवध्वर्युस्तेजोऽसीति मन्त्र पाहीतान्त वाचयति च निष्क प्रातोमान्त पूर्णाहुति कृत्वाध्वयंवदद्यादिति सूत्रार्थः / * तेजोसिपञ्चाग्नयएकाहिङ्काराय देतत्सवितु विभूविकाकायई पाब्रह्म स्त्रयोदशशेषादेकको बविठं शतिश्चतुस्विठशत्। 125. For Private And Personal Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir य० to वाचयति। यस्मात्तेजम्त्वमसि शुक्रञ्चाग्नेः / अग्निहवा अपोभिदव्यावित्युपक्रम्यतासुरेत:प्रा सिञ्चत्तहिरण्यमभवदितिश्रुतिः / अमृतञ्च अग्निप्रभवत्वात्दानेनामृतत्व प्रदानाच्च / हिरण्यदा अमृतत्वं भजन्तेइतिश्रुतिः। आयुषश्चपातागोपायिता। अतः त्वां प्रार्थये। आयुः मेममपाहि। यज्ञसमात्यर्थमायुः प्रार्थ्यते / रश नामादत्ते / (1) देवस्यत्वेतिव्याख्यातम् // 1 // इमामप्प्रेसर्व ऽपिखोर्बाहुभ्याम्यूष्मोहस्ताभ्यामादंदे // 1 // इमामगृभ्ण न्॥ इमामगृभ्णन्त्रशुनामृतस्यपूर्व आयुषिविदथेषुकुव्या // सा गुभणन् / त्रिष्टुब्रशनादेवत्या / यामिमाम्अगृहन् गृहीतवन्त:रशनान्दर्भमयीम्। ऋतम्य यज्ञस्य पूर्वप्रथमे आयुषि यज्ञारम्भेइत्यर्थः। केरशनामगृह्णन्नित्यताह / विदथेषुकव्या यज्ञेषुकवयः / विश्वस्रष्टारोवा आद्येस प्रजापति प्रभृतयः। एतेहिसृष्टिंयनादसृजन्त / सारशनान:अस्माकम् A (1) का. देवस्य त्वेति रशनामादाय ब्रह्मवश्व भन्तस्यामीतगह / 20 / 1 / 27 / देवस्य त्वं तादिसरमारपन्तीतान्तन मन्त्रण त्रयो दशारविदर्भमयों दिगुणामवबन्धनाथी रशनां रज्जु मादाय ब्रह्मन्नखमितगदि-तेन-राध्याप्तमितान्त मन्त्र ब्रह्माणं प्रताहेति मूनाथः / 465 For Private And Personal Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir अस्मिन्मतेयने आबभूव अभूताउत्पन्ना। ऋतस्यसामन् / संमननेयज्ञप्रारम्भे / सरंयज्ञप्रसरम् आरपन्तीशब्दायमाना // 2 // (1) वनात्यश्वम् / अभिधासि / यस्त्वम् अभिवक्षाअसिअभिधातव्योसि। 2 भुवनञ्चासि / भुवनमाश्रयः / यन्तानिमनकर्ताचासि / धर्ताधरयिताचासि / सत्वमेवं प्रभावःसन् / नोऽअस्म्मिन्त्सुतऽआभूवऽमृतस्युसामन्त्मरमारपन्ती // 2 // अभि धाऽसि // अभिधाऽअमिभुवनमसिन्तासिधुर्ता // सत्त्वमग्निंबै प्रश्वानुरसिप्पथसङ्गच्छवाहाक्कत // 3 // स्खुगात्वा // देवेभ्यःप्रजा पतयेबृहमुन्नप्रश्वम्भुन्तस्यामिटेवेभ्यःप्प्र॒जाप॑तयुते राड्यासम् ॥त अग्निवैश्वानरम्। कथंभूतम् सप्रथसम् सर्वतःपृथुम् / तिर्यगईमधश्चैवमहतैश्वर्येण पृथम् / गच्छ। खाहाकृतः साधुहुतश्चसन् // 3 // स्वगात्वा। हेअश्वखगाकरोमित्वां देवेभ्यः प्रजापतयेच / / खगाशब्दोडाजन्तः स्वयङ्गामिनमित्यर्थः / ब्रह्माणमामन्त्रयते। ब्रह्मन्नश्वम्भन्स्यामि / वधातेरे (1) का तं बधाननि ब्रह्मानुन्नातोऽभिधा असोति बनाताखम्। तं बधान देवेभ्यः प्रजापतये तेन राहीति मन्त्रण ब्रह्मणानुज्ञातोऽध्वर्युरभिधा असीतगदिखगावा-देवेभ्यः-प्रजापतय इतन्तन मन्त्रण रशनयाख' बध्नाति / For Private And Personal Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir . तद्रूपम्अश्वस्थवन्धनं करिष्यामि / देवेभ्यः प्रजापतयेच। तेनव नाहं राधासमाधिप्राप्नुयाम्। राधि:कर्मपरिसमाप्तिः। ब्रह्माप्रसौति। तम्बधान / यमिच्छसितमश्वम्बधान तस्यवन्धनकुरु / किमर्थम् देवेभ्यः प्रजापतयेच / तेनवन्धेनराधुहि / यज्ञसमाप्तिप्राप्नुहोत्यर्थः // 4 // (1) प्रोक्षबंधानदेवेभ्यःप्रजाप॑तयेतेनराध्नुहि // 4 // प्रजाप॑तयेत्वा // प्रजाप तयेत्वाजुष्टम्प्रोक्षामोन्द्राग्निभ्यान्त्वाजुष्टम्प्रोक्षामिचायवेत्त्वाजुष्ट म्पोक्षामिविश्वेभ्यस्त्वा वेब्भ्योजुष्टम्पोक्षामिसबैभ्यस्त्वावेभ्यो / प्टम्प्रोक्षामि // योऽअवन्तुञ्जिसतितमुब्भ्यूमीतिरुण // पर त्यश्वम् / प्रजापतयेत्वा जुष्टम्प्रोक्षामौति। ऋजव:प्रोक्षणमन्त्राः। यजमानवाचयति / योगवन्तम् / गायत्री। अनाश्वस्तुतिः। यःपुरुषोवन्तम् अश्ववचनोर्वशब्दः / अश्वजिघांसति हन्तु- शिवम् (1) का. स्थावरा अपी गत्वा प्रजापतये त्वेति प्रोक्षताव प्रतिमन्त्रम्। ततोऽध्वर्युः स्थावरास्तडागादिस्था अपो गत्वा ताभिरद्धिः पञ्चमन्त्र प्रतिमन्त्रमश्वं प्रोक्षति / For Private And Personal Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir , मिच्छति / तम्अभ्यमौति / मीहिंसायाम् हिनस्तिवरुणः / श्वानइतुरक्षम् हत्वाऽधस्पदमश्वस्योर * पप्लाबति / “यस्यशुनश्चक्षुषोःसमीपे पुण्डतःसचतुरक्ष उच्यते” परीमतः / पर:पराभूत: अध रोमत पुरऽ प्रश्वा // 5 // [5] अग्नयेस्वाहा // अग्नयेखाहासोमाय / को स्वाहापाम्मोयुवाहासवित्लेस्वाहांडायवेवाहाविष्मदेिखाहेन्द्रा र युवाहाबहुस्प्पतयेखाहामित्रायुवाहावरुणाय स्वाहा // 6 // [1] हिशारायस्वाहा // हिकारायुस्खाहाहितायुस्वाहाकन्दंतुस्वाहाव * क्रुन्दायस्वाहाप्पोतुस्वाहांप्प्रप्पोथायुस्वाहांगुन्धायुस्वाहाग्वातायु स्पद वीत: मःमनुष्यः योअर्वन्तञ्जिघांसतीति / पर:पराभूतश्चवा // 5 // दशाश्वस्तोमीयानिजुहोति / अग्नयेस्वाहेति ऋजवोमन्त्राः // 6 // अश्वस्यरूपाणि जुहोति / (1) हिड्तारायस्वाहेति। (1) हिरण' हिङ्कारस्तम / हिजताय कृतंयडिङ्गतं तस्म / क्रन्दतीति क्रन्दन् / अव नीचैः क्रन्दतीतावक्रन्दः / प्रोथतीति For Private And Personal Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir एकोनपञ्चाशत् / अश्वसाचेष्टितानि क्रियाश्चाबाभिधीयन्ते // 7 // यतेस्वाहा एतीतियन् तस्मै स्वाहानिविष्टायस्वाहोपविष्टायस्वाहासन्दितायस्वाहाबल्तुस्वा , हासौनायुस्वाहाशानायुस्वाहास्वर्पतुस्वाहाजाग्ग्रंतुस्वाहाकूजते / स्वाहाप्प्रर्बुवायुस्वाहाबिजम्भमाणायुस्वाहाबिवृत्तायुस्वाहासम्हां / नायुस्वाहोप॑स्त्थितायुस्वाहाय॑नायुस्वाहाप्प्राय॑णायुस्वाहा॥७॥खुते / स्वाहा॥* युतस्वाहाधावतुस्वाहोंडावायुस्वाहोद्रुतायुस्वाहाशूका प्रोथन् प्रोथ पर्यापणे / प्रकृष्टःमोथो घोणायस्य घोणा तु प्रोथमस्त्रियाम् / गन्धोऽस्यास्ति गन्धः / प्रातमाघ्राणमस्यास्ति प्रातः / निविशते निविष्टः। उपविशतीतापविष्ट / सम्यक् दितं ल नं खण्डनं यस्य स संदितः। वल्गतीति वल्गन्। पास्त:सावासीनः / शेतेऽसौ शयानः / स्वपिति स्वपन् / जाग्रतोति जाग्रत्। कूजतोति कृजन्। प्रकर्षण बुध्यते प्रबुद्धः / विजृम्भते विजम्नमाणः / चतीदोप्तो विशेषेण चतति विचूतः। संहानाय सङ्गतशरीराय। उपतिष्ठते उपस्थितः / अयतेऽयनः / प्रकृष्टमयते प्रायणः तस्मै स्वाहा। * धावतोति धावन्। उत् अधिको दावी गतिर्यस्य स उद्मावः / उत् अधिक द्रुतं यस्य स उद्दष्टुतः। शू इति For Private And Personal Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Granmandir यते स्पष्टमन्यत् // 8 // अथ सावित्रीणामिष्टीनाम् / तत्सवितुरित्यादिकाः षट्याज्यानुवाक्या: है रायस्वाहाशूकतायुस्वाहानिषण्णायस्वाहोत्थितायुस्वाहाजुवायुस्वार हावायुस्वाहाविवर्तमानायस्वाहाब्वित्तायुस्वाहाविधन्वानाय / स्वाहाबितायुस्वाहाशुश्रूषमाणायस्वाहांशृण्वतेस्वाहेक्षमाणाय / स्वाहेक्षुितायुस्खाहाबौक्षितायुस्वाहानिमेषायुस्खाहुावदत्तितस्म्मै स्वाहायत्पितितस्मीस्वाहावन्न्मूत्ररोतितस्म्मैस्वाहाकुर्खतेखा . हाकतायुस्वाहा // 8 // [2] तत्सवितु // तत्सवितुर्वरेण्ण्यम्भ करीतोति शूकारः। शूकतमस्यास्ति शूक्रतः। निषोदति निषीदन्। उत्तिष्ठते उस्थितः। जवते जवो वेगवान्। बलमस्थास्ति वलः। विवर्तते स विवर्तमानः। विवर्ततेस्मवित्तः। विधूनुते कम्पते स विधृन्वान / विध्यतेऽसौ विधूतः / श्रोतुमिच्छति शुथ षभाणः जस्म दृशां सन इति शानन्। शृणोति शृण्वन् ईक्षते स इक्षमाणः / दक्षते स्मति ईक्षितः / विशेषेण क्षितो वोक्षतः / निमिषति निमेषः। यत् किञ्चित् अत्ति तस्मै। यत् जलादिकं पिबति तस्मैपानकचें। यन्म व करोति तम्स मूवयते। करोति कुर्वन् / कृतमसगस्ति कृतः। तस्मै स्वाहेति सर्वत्र / For Private And Personal Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir साविल्योगायल्यः / आद्याव्याख्याता // 6 // हिरण्यपाणिमूतये हिरण्मयौपाणीयस्य सहिण्यपा- अ. *णि:तम् ऊतये अबनायसवितारम् उपह्वयेआह्वायामि / किमिति / यत: सः सविता चेत्तासर्वार्थ, दृक् / महतीचदेवता पदंचस्थानं च ज्ञानक समुच्चयकारिणाम् // 10 / देवम्यचेतत: / देव* गर्गेदेिवस्य धीमहि // धियोयोन:प्प्रचोदयात् // 6 // हिरगण्यपाणि मृतये / सवितारमुप॑ह्वये // सचेत्तदिवापुदम् // 10 // देवस्युचेत / त // टेक्स्पचेततोमुहीम्सवितुर्हवामहे // सुमति सत्यराधसम् / // 11 // सुष्टुतिसुमतीबधः // सुष्टुतिसुमतीबधोगतिसवितुरौं / स्यदानादिगुणयुक्तस्य च तत: विराजमानस्य महोम्महतीम् प्रहवामहे आह्वयामि सवितुः संवन्धि-शिवम् नौं सुमतिकल्याणौंमतिम् / किंभूतांमतिम सत्यराधसम् अनश्वरधनाम् सत्यसाधयित्रौंवा // 11 // मुष्ट तिर्छ० सुमतीवृधः। सुष्ट तिंशोभनांस्तुतिम् सुमतीवृधः शोभनांमतिवईयतीति सुमतीहत् / 468 For Private And Personal Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir तस्यसुमतीबधः सम्बन्धिनीरातिंदानंच सवितुः ईमहेयाचेम। प्रदेवायमतीविदे देवस्यमतौविद. , इत्युभयो: पदयो: विभक्तिव्यत्ययः // 12 // रातिसत्पतिम् / रादाने / रातिनिमित्तत्वाद्रातिशब्देन सवितैवोक्तः / रातिदानरूपम यहाराति ददातीतिरातिम् / सत्पतिं सतांपालयितारम् महेपूजयामि / सवितारम् उपह्वये / आह्वयामि च / आसवम् / आभिमुख्येप्रसौति कर्माणीत्यासव: महे॥ प्रदवाय॑मतीविदे॥१२॥ गतिसत्प॑तिम् // गति सत्प॑तिम्म हेसवितारमुप॑ह्वये // आसवन्देववीतये // 13 // देवस्य सवितुर्मुति मासुर्वविश्वदेव्यम् // धियाभगम्मनामहे // 14 // अग्निस्तो तमासबंसवितारम् / किमर्थं पूजयाम्याह्वयामिच / देववीतये देवतर्पणाय // 13 // देवस्यसवितुः / मतिम् आसवम् प्रसवरूपाम् / विश्वदेव्यं सर्वेभोदेवेभोहितम् / धियास्वकीयया प्रज्ञया है भगंभजनीयं धनम् मनामहे याचामि / हिकर्माचार्यधातुः तेनमतिशब्द भगशब्देचद्वितीया // 14 // अग्निस्तोमेन। तिस्रआग्नेय्योगार त्वाः। हेअध्वर्या अग्निस्तोमेन स्तुतिभिः वीधय अवगतार्थङ्गुरु 126 For Private And Personal Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir किं कुर्वन् समिधान: संदीपयन् / कथंभूतमग्निम् अमर्त्यम् अमरणधर्माणम् किमर्थपुरस्कृत्येतिचेत् / हव्याहवौंषिदेवेषु नः अस्मत्संवधीनि दधत् दधातु / सहास्याधिकारइति // 15 // सहव्यवाट् / यदोवाध्याहारः तच्छब्दश्रवणात् / य: हव्यवाट् हविषोवोढा अमर्त्यः अमरणधर्मा उशिक् मेधावी / दूतः देवानाम् / चनोहित: / चनइत्यन्ननाम / हविर्भूतस्यान्नस्यन // बोधयसमिधानोऽअमर्त्यम् / हुल्यादेवेधूनोदधत् // 15 // स / हव्यवाट॥सहव्यवाडमय॑शिग्दूतश्चनौहित // अग्निर्डिया समृण्वति // 16 // अग्निन्दुतम्पुरोधहव्यवाहुमुप॑ब्रुवे // देवा // ऽआसादयादिह // 17 // अजीजनोहिपवमानसूयबिधारेशमना भक्षणार्थं निहितः / स: अग्निः धियाप्रज्ञया समृण्वति संगच्छते देवैःसह हविष: तर्पणाय // 16 // अग्निन्दूतम् / यम्अग्निमदूत देवानांदूतम् अहंपुरोदधै अग्रत: स्थापयामि हव्य-शिवम् बाहम् हविषोवोढारम् तम् उपगम्यत्रुबेब्रवीमि / किंबवीमितदाह। देवानासादयादिह / 46 हेअग्नेदेवान् आसादत् आसादय दूह अस्मिन्यन्ने गृहयागाय // 17 // अजीजनीहि / For Private And Personal Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir पावमानौसौमौविहृतिः अनुष्ट प् / यस्मात् अजीजनः जनितवानसि जनयसिवा हेपवमान सोमसूर्यम् / यस्माच्च शक्मनाचर्मणा पयः अप: विधारे उपरिष्टात्विधारयसि / केनहेतुना है गोजीरया जीबेरेतद्रूपम् गोजीविकयाहेतुभूतया / कथंनुनामगावोजीबयुरिति / गोभिर्हियजस्तायत प्राणिनश्चजीवन्तौति // किंकुर्वन् / रहमाण: पुरंध्या // रहमाण: गच्छन् / पर्यः॥ गोजौरयारहिमाणुपुरंध्या // 18 // [4] बिभूत्विा // प्रभूपित्वाश्वोसियोस्यत्त्यौमिमयोस्यबासुिसप्तिरसिब्बाज्यसि दशापवित्रा द्रोणकलशं प्रतिपुरन्ध्यावहुधारयिद्याधारयातस्मात्त्वांस्तुमइतिशेषः // 18 // (1) अध्वर्युर्यजमानौदक्षिणेश्वकर्णेजपतः। बिभूर्मात्रा। अश्वउच्यते / यस्त्वबिभूरसिविभवसि - मात्राप्रभवसिचपित्रा / इयंवैमातासौतेपितेतिश्रुतिः / अथाश्वनामक्रियाभिस्तौति / अश्वो महाशनस्त्वमसि / हयोसि हिगतीअस्थहयः / अयोसि अतसातत्त्वगमने / मयोसिमय(१) का. अध्वर्युर्यजमानी दक्षिणेऽखकर्ण जपतो विभूर्मावति। तीयायां साविवामिष्टो समामायामध्ययु यजामानौ दक्षिणेऽश्वकर्ण जपतो विभूर्मा ति सवार्थः। For Private And Personal Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org इति सुखनाम / सुखरूपोसि अर्वासि / ऋगतावस्यार्वा / सप्तिरसिसरणोसि / बाज्यसिबेजनवा नसि / बषासेक्तासि / नृमणासि / नृणांमनुष्याणां यवमन: सन्मणाः। ययुर्नामासिययुः एबनामात्वमसि / ययुर्यानशीलः / शिशु मासि शिशः एवं नामात्वमसि / शंशनीॐ योभवसि / अपारमार्थिकोवानामशब्दः / यस्त्वमेवं प्रभावः तन्त्वांब्रवीमि / आदित्यानांपत्वा वृषासिनुमाऽअसि // ययु मासुिशिशु स्यादित्यानाम्पत्त्वा विहिदेवाऽआशापालाऽएतन्दुवेभ्योरखुम्मेधायुप्पोक्षित रक्षतुह रन्तिरिहर्रमतामिहतिरिहखतिहखाहाँ // 16 // [2] काय विहि / पत्वापतनमार्गेण / येनयथा आदित्यापतन्तिगच्छन्ति तमनुगच्छेत्यर्थः / रक्षिणोस्यादिशति / देवाआशापालाः / एतन्देबेभ्यः प्रोक्षितम् अश्वम् मेधाययज्ञायरक्षत / चतस्रोतोजहोति / अश्वउच्यते इहरन्ति: रमणम् दूहरमताम् इहधृतिः इहस्खधृतिः साधुधृति: / दृहयजे हेअश्वतवक्रीडादयइत्यर्थः // 16 // औद्मभणानिजुहोति / शिवम् For Private And Personal Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir (1) कायस्वाहा। कम्मैस्वाहा / कतमस्मैस्वाहा। खाहाधिमाधौताय / पूर्ववाहाकारान्तास्ति साहुतयः प्राजापत्याः। आधिमाध्यानम् चतुर्थीचावकर्तव्या / आधयेस्वाहेति / आधौतार यस्वाहा / मन: मनसेईतिविभक्तिव्यत्ययः / प्राजापत्यायस्वाहा। चित्तविज्ञाताय। चित्ता खाहा // कायुस्खाहाकम्मस्वाहाकतुमस्म्मस्वाहाखाहाधिमाधौता र युस्वाहामनः प्रजाप॑तयेस्वाहांचित्तंचिज्ज्ञातायादित्यैस्वाहादित्य / मुस्विाहादित्यैसमृडीकायैस्वाहासरस्वत्यैस्वाहासरस्वत्यैपावुका यस्वाहासरस्वत्यैबहुत्यै स्वाहापूगोस्वाहापूष्णप्पथ्यायस्वाहांपुर येतिविक्तिव्यत्ययः / अदित्यैमर्यो / महपूजायाम् / पूजितायै / अदित्यैसुमृडौकायै मृडमुखने / सुखयित्यै // सरस्वत्यैस्वाहा / सरस्वत्यैपावकायैपावयित्रं / सरस्वत्यै - हत्यै महत्यै / पूष्णो स्वाहा / पूष्णप्रपथ्याय / प्रगतः पन्थाः प्रपथः तत्रभवः प्रपथ्यः / / (1) का. काय स्वाहेति चाखमेधिकानि वीणि कृष्णाजिनदीक्षातोऽध्वरदोक्षणीयायाश्चत्वारि बोणि त्रीणि चाश्वमेधिकानि। For Private And Personal Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir पूष्णेनरन्धिषाय / नरान्दधाति धारयतीतिनरधिषः त्वष्ट्रेखाहा / त्वष्टेतुरीपाय / तूर्ण* पातिरक्षतीतितुरीपः / त्वष्ट्र पुरुरूपायवहुरूपाय / विष्णवेस्वाहा / विष्णवेनिभूयपाय / ष्ष्णेनुरन्धिषायस्वाहात्वष्ट्र स्वाहात्व तुरौपायस्वाहात्व पुरुरूपाय, है स्वाहाविष्मवेस्वाहाविमवेनिभूयुपायुस्वाहाविष्णवेशिपिविष्टाय / * स्वाहा // 20 // विश्वौदेवस्य // नेतुमतौव्वुरीतसुक्साम् // विश्वो / गयऽईषुड्यतिधुरळणीतपुष्ष्पसुस्वाहा // 21 // [1] आब्रहम। नीचैर्भूत्वाय: पातिसनिभूयपः / विष्णवेशिविष्टाय / शिपिंपशुंयत्तस्य वेष्टयतिसाधुंकरोतौति शिपिविष्टः // 20 // (1) विश्वोदेवस्य ति व्याख्यातम् / 21 // (2) जयति / आब्रह्मन् / (1) का० षडाग्निकानि चतुःस्वाने दशमं विश्वो देवसेाति / सप्तम्यां दोक्षणीयायामयं विशेषः प्रतायानि चत्वार्योदयभ___णान्याध्वरिकाणि यन्ते तेषां चतुणी स्थाने षडाग्निकानि प्राकृतिं प्रयुजमग्गिए स्वाहेति हुत्वाश्वमेधिकानि च चीणि विष्णवे स्वाहत्यादोनि हुत्वा विश्वा देवस्येति दशममौदाभण जुहोतोति सूत्रार्थः / (2) का० लष्णाजिनाद्या समिदाधानात् कृत्वा ब्रह्मबिति जपत्य सर्गकाल एके / कृष्णाजिनदीक्षात प्रारम्भोखायां त्रयो For Private And Personal Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir आजायतां हेब्रह्मन् ब्राह्मणः ब्रह्मवर्चसी / यज्ञाध्ययनशीलो ब्राह्मणाजायतामित्यर्थः / राष्ट्र / आजायताञ्च राष्ट्र राजन्यः शूरः इषव्यः इषुभिः विधातिदूषव्यः इषुषुवासाधुः इषव्यः / अतिव्याधीमहारथः / अतिविधातिदिषन्तमित्यतिव्याधी / महारथश्चदोग्धीन् // आबचम्मन्नाचम्मणोब्रहम्मवर्चुसौायतामाराष्ट्र राजुन्न्याशूर ऽइषुब्योतिव्याधीमहारथोजायतान्दोग्ध्रौधेनुर्बोढानुड़ानाशु स प्नुिपुरैन्धिोषोजिषस्मरथेष्टा सुभेयोषवास्यवर्जमानस्यब्बौरोजाय धेनुः / राष्ट्र आजायतामितिसर्वत्रसम्बन्धः / वोढाअनडान् आशुः शीघ्रः सप्तिरश्वः / पुरधिर्योषा / पुरंशरीररूपादिगुणसमन्वितं धारयतीति पुरन्धिः // जिष्णूरथेष्ठाः / जयनशीलः रथेतिष्ठतीतिरयेष्ठायुयुत्सुः / सभेयोयुवा / सभामर्हतिविद्यागुणचरित्र: सभेयः युवा दशप्तमिदाधानान्त कृत्वाध्वर्युरेवा ब्रह्मन्निति जपति उत्सगैरुपतिष्ठत इत्य त्सर्गोपस्थानकाले एके पाब्रह्मबिति जपमिच्छन्ति यहाखस्योत्सर्गकाले विभूर्मात्रे ति जपानन्तरमित्यर्थः / For Private And Personal Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir आअस्थयजमानस्य आजायताञ्चासा यजमानसा धीरः पुत्रः / किंच निकामेनिकामेनः पर्जन्योवर्षतु / प्रार्थनायामवश्यम्भवतीति निकामः अभवासीवीप्सार्थः / अस्माकं राष्ट्रइत्यर्थः / a फलवत्यः अतिशयेनफलयुक्ता: नोस्माकंराष्ट्र ओषधयः पच्यन्ताम् / योगक्षेमोन: कल्पताम् / तानिकामनिकामेन पुर्जन्योवर्षतुफलवत्योनऽओषधयांपच्यन्ताँ / योगक्षेमोन कल्प्यताम् // 22 // [1] प्राणायुस्वाहा // पानायुस्खा है हाब्ब्यानायुवाहाचक्षुषस्वाहाश्श्रोत्रायस्वाहाब्वाचेखाहामनसेखा है हां // 23 // [1] प्राच्य दिशे // स्वाहार्वाक्यदिशेस्वाहादक्षिणायैदिशे योगोट्यादीनांसंयोग: क्षेमस्तेषामेवपरिपालनम् / योगश्चक्षेमश्चास्माकं कृप्तीभवतु। योगश्चक्षेमश्चेतिइन्द्रः तत्रनपुंसकलिङ्गतावास्थात् दिवचनम्बाइति / तत्रच्छान्दसोविसर्जनौयोट्रष्टव्यः // 22 // (1) आज्यसक्त धानालाजानामेकैकं जुहोति प्राणायस्वाहेति प्रति मन्त्रसर्वरात्रमावर्तम् / 23 || ta (1) अज्यसक्त धानालाजानाभेकैकं जुहोति प्राणाय स्वाहेति प्रतिमचर्ड सर्वरात्रमावर्तम् / शिवम For Private And Personal Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir स्वाहा यदिशेखाहाप्पुतीच्यैदिशेखाहावीच्यैदिशेखाहोदौच्च्यै दिशेस्वाहार्बोच्च्यदिशेखाहोङयदिशेस्वाहाबर्बाच्च्यदिशेस्वाहा वाच्च्यदिशेखाहावीच्यैदिशेस्वाहा // 24 // [1] अाखाहाबा य स्वाहोटुकायुस्वाहातिष्ठन्तीब्भ्यु स्वाहास्रवन्तीभ्युस्वाहास्य न्दमानाब्भ्यु स्वाहाकूप्प्याब्भ्यु स्वाहासूयब्भ्युि स्वाहाधावाभ्यु स्वाहासंवायुस्वाहाँसमुदायस्वाहासरिरायुस्वाहा // 25 // [1] . ब्बातायुस्वाहा // धुमायस्वाहाब्धायुस्वाहामुघायुस्वाहाब्द्यिोतमा नायुस्वाहास्तुनयंतुस्वाहांबुस्फर्जतेस्वाहावर्षतुस्वाहांबुवर्षतुस्वा प्राच्यै / दिग्देवताः // 24 // अयः / जलदेवताः // 25 // 127. For Private And Personal Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir MY होग्ग्रंवर्षतुस्वाहांशोग्नंवर्षतुस्वाहोंग्रह्णतेस्वाहोगहौतायुस्वा हाप्गुष्मातेस्वाहाशीकायतेस्वाहाप्पुष्वाब्भ्युस्वाहाडादनौ भ्युस्वा हानीहारायस्वाहा // 26 // [1] अग्नयुस्वाहा // अग्नयेस्वाहा सोमायुस्वाहेन्द्रायुस्खाहापृथिव्यैस्वाहान्तरिक्षायुस्वाहादिवेस्वाहा दिग्भ्य : स्वाहाशब्भ्युि ई स्वाहोव्य दिशेस्वाहाबाच्यैदिशेस्वा / हां // 27 // [ 1] नक्षत्रेयस्वाहा // नक्षुत्रियेभ्युस्वाहाहोरात्र भ्युस्वाहाईमासेभ्युस्वाहामासैभ्यु स्वाहाऽऋतुम्युस्वाहा / - वेभ्यु स्वाहासंवत्सरायुस्वाहाद्यावापृथिवीभ्याए स्वाहाँचुन्द्रायु शिवम् वाताय / मेघीपयोगिदेवता: // 26 // अम्नये / अग्न्यादयः प्रसिद्धाः // 27 // For Private And Personal Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir / स्वाहासूसँयुस्वाहारश्मिभ्यु स्वाहाब्बसुब्भ्युई स्वाहारु भ्यु स्वाहादित्येभाऽस्वाहामुरुडा हु स्वाहाविश्वभ्योदेवेभ्यु स्वाहाम् र लैब्भ्यु स्वाहाशाब्भ्यि स्वाहावनस्पतिभ्य स्वाहापुष्पोभ्या स्वाहाफलेब्भ्य स्वाहौषधीब्भ्यु स्वाहा // 28 // [1] शतम् 1300 पृथिव्यैस्वाहा॥ पृथिव्यैस्वाहान्तरिक्षायुस्वाहादिवेस्वाहासूर्याय स्वाहाँचन्द्रायस्वाहानक्षत्रेभ्य स्वाहादा स्वाहौषधीभ्य स्वाहा वनस्पतिभाः स्वाहापरिप्लुवेन्भास्वाहाचराचुरेब्भाः माहासरी / सृपेभा साहां // 28 // [1] असवेसाहां // असंवेसाहाब्वसवे नक्षत्रे भाः / नक्षत्रादय: कालाधिष्ठाल्यः // 28 // पृथिव्यै / पृथिव्यादयो लोकाधिष्ठाल्यः // 26 // For Private And Personal Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir / स्वाहाबिभुवेसाहाविवसतसाहांगणुश्श्रियेसाहांगुणपतयेसाहाभि भुवेसाहाधिपतयेसाांशूषायुसाहास 6 सुर्पायुसाहाचुन्द्रायसाहा ज्ज्योतिषसाहामलिम्म्लुचायुस्वाहादिापुतयतुसाहा // 30 // [1] मधवेसाहा // मधुसाहामाधवायुसाहौशुकायसाहाशुचयेसाहान, भंसेस्वाहानभुस्यायुस्वाहुषाय स्वाहोर्जाय स्वाहासह सुस्वाहास हुस्यायुस्खाहातप॑सुखाहातपस्यायुस्वाहा हसस्पतयेखाहा // 31 // [1] बाायुवाहा // प्प्रसुवायुस्खाापिजायखाहाकृतवेखाहास्वः स्वाहामूर्नेखााग्यश्बुविनेखाहान्त्यायुखाहान्यायभौवनायुखा शिवम असवे / अस्वादयश्च // 30 // मधवे। मध्वादयो मासाधिष्ठातारः॥ 31 // For Private And Personal Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir हाभुवनसुापर्तयुस्वाहाधिपतयेखाां // 32 // [1] आयुयुंजेन // कल्प्पतास्वाहाप्माणोज्ने कल्प्पतास्वाहापानोयुज्जनकल्प्य ताखाहाव्यानोयञ्जनकल्प्पता स्वाहोदानोयुज्जनकल्पता स्वाहासमानोयुज्ने कल्प्पताखाहाचक्षुर्खननकल्प्पता खा हारथोत्वज्जनकल्प्पता स्वाहाब्बाग्ग्युज्जनकल्पता स्वा हामनौयुज्जनकल्प्पताए स्वाहात्क्मावुन नकल्प्पता स्वाहा / हमाबुञ्जकल्प्पता 7 स्वाहाज्योतिर्भुज्जनकल्प्पतास्वाहा स्वय॑ज्ज्ञ नकलप्पता स्वाहांपुष्टय्युज्जनकल्प्पतास्वाहायुनो वाजाय / वाजादयोऽत्राधीशाः // 32 // For Private And Personal Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir आयुः / यज्ञेनाखमेधेनायुः कल्पताम् / एवमग्रेऽपि प्रार्थनामन्त्राः // 33 // व्युटयाइतिव्युष्टयम् स्वर्गायेत्युदिति / प्राणायम्वाहेत्यारभा द्वादशभिः कण्डिकासंमितै रनुवाकै र्देवताउता: आज्यादिहविभिः / एतेसर्वेएवयागाः महतोयज्ञस्यलोककालाग्न्यादिवपुषा वयविनोवयवभूताः / यथा खुज्जनकल्प्पतास्वाहां // 33 // एकममस्वाहाहाम्भुनाथ स्वाहा / शुतायुस्वाहेकशतायुस्वाहाबुष्टेयस्वाहास्वग्र्गायुस्वाहा // 34 // [1] इतिश्रीवाजसनेयसंहितायांदोग्र्घपाठेद्वाविंशोऽध्यायः 22 // देवदतस्यावयविनी वयवभूताः। शिरः पाण्यादयः / सोयमश्वमेधः प्रजापतेरवयविनोवयवभूत: प्रजापतेश्चात्मनः / सोयमात्मा / शाखाप्रशाखागत: स्तूयतेहूयतेच ज्ञानकर्मसमुच्चयकारिभिर्यजमानैः / एक मैस्वाहा दाभवाए वाहेति प्रकारदर्शनम विभाः स्वाहा चतुर्भः स्वाहेति एकशतात् / 34 // इति उव्वटकृतौ मन्त्रभाष्य द्वाविंशोधयायः // 22 // 505 For Private And Personal Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir __ (1) हिरण्यगर्भः सम् / महिम्न: (2' पुरोरुक् / व्याख्यातम् // 1 // उपयामगृहीतोसि / प्रजा. * हिरगण्यगुर्भसमवर्तताग्नेभूतमीजात पतिरेकऽआसीत् // / साधारपृथिवीन्द्यामुतेमाङ्गस्मैदेवायहविषाविधेम // 1 // उपया मगृहीतोसि // प्रजाप॑तयेत्त्वाजुष्टङ्गह्लाम्म्युषयोनुिसूयस्तेमहि पतयेत्वा जुष्टमभिरुचितं गृह्णामि / सादयति / (3) एषतेतव योनि: स्थानं सूर्यस्तवमहिमा / (1) द्वाविंगे होममन्त्रास्त्रयोविंशेध्याये शिष्टं कर्मोच्यते। (2) का. प्रातरकथ्यो महिमानौ गृह्वाति सौवर्णन पूर्वठ. हिरण्यगर्भ इति। प्रातहितोयेऽहनि उक्थ्यसंस्थमहर्भ वति तत्र महिमसंज्ञो हौ ग्रहो ग्रहाति आगन्तुत्वादाग्रयणोकथ्य योर्मध्ये तो यहाति अन्तरायणोकथयावागन्तुस्थानं ग्रहाणामिति वचनात् योर्मध्ये पूर्व महिमानं सौवर्णनोलूखलेन गृहाति। (3) का. एष ते योनिरिति ग्रहसादनम् / एष ते योनिः स्थानं ते तव महिमा शक्ति: सूर्यः दीपस्त्र व प्रभा। * हिरण्यगर्भो यःप्राणतोद्दिको युञ्जन्यष्टौ वायुष्वा पञ्च प्राणाय तिन उत्मकथ्या हादशगायत्रीकस्त्वाषट्को कः विदष्टी काविहग सुभूः स्वयम्भूस्तिम एकादश पञ्चषष्टिः / For Private And Personal Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir शु.. महाभाग्यशक्तिः दीपस्येवप्रभा / जुहोति / यस्तेहन् / यस्तव अहनिसंवत्सरेच महिमासंवभूव संभूत उत्पन्नः / अहनिनिमित्तभूते सर्वाण्येव भूतानिसम्पद्यन्ते / निमितसप्तम्यश्चैताः / चर्मणिदीपिनंहन्ति दन्तयोर्हन्तिकुञ्जरमिति यथा / यः तेवायो अन्तरिक्षेच महिमासंवभूव / यस्तेदिवि चसूर्ये महिमा संवभूव / तस्मैतेतव महिम्ने प्रजापतयेच वाहादेवेभाश्च || 2 || मा // यस्तहन्त्संबन्त्मरेमहिमासम्बभूवयस्तैबायावन्तरिक्षमहिमा / संम्बभूवुयस्तैदिविसूर्यमहिमासम्बभूवतस्म्मैतमहिम्म्नेप्प्रजापतये है स्वाहदिवेभ्यः // 2 // [2] व प्राणुतोनिमिषतोर्महित्त्वैक 5 इ द्वाजाजगतोबभूव // बाईशेऽअस्यहिपश्च्चतुष्प्पटु कस्म्मैटुवायह द्वितीयंगृह्णाति तस्यपुरोरुक्यः प्राणत: कायौप्राजापत्त्यायः कः प्रजापतिः प्राणत: प्राणनं शिवम कुर्वत: भूतग्रामस्यनिमिषत: निमेषण कुर्वतः क्रियावतइत्यान्तरम् महित्वाखकीयेन महाभाग्येन / एकत् / इच्छब्दएवार्थे / एकएव समस्तस्यजगतो राज.वभूवसंवृत: / यश्च For Private And Personal Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir ईशेईष्ट अम्यद्विपदः प्राणिजातस्य यशचतुष्यदः ईष्टेप्राणिजातस्य / तेस्मैकस्मै देवायप्रजापतये हविषाविधेम / विदधातिर्दानकर्मा हविरितिविभक्तिव्यत्ययोहितीयान्तः। हविर्दद्मः // 3 // उपयामगृहीतोसि प्रजापयेत्वां जुष्टं गृह्णामि / सादयति / एषते योनि: चन्द्रमास्ते महिविविधम // 3 // उपयामगृहीतोसि // प्प्रजापतयेत्त्वाजुष्टुंङ्ग / हाम्म्युषतयोनिप्रच्चन्द्रमास्तमहिमा // वस्तुगतौसम्बत्सरेमहिमास / / / म्बुभवयस्त'पृथुिझ्यामाग्नौमहिमासम्बभव्यस्तुनक्षत्रेषुचन्द्रमसिम हिमासम्बभवतस्म्मैतमहिम्नेप्पुजाप॑तयेदेवेश्याखाहा // 4 // [2] बुञ्जन्ति नमरुषञ्चरन्तुम्परिंतुस्त्युषः // रोचन्तेरोचनादिवि // 5 // मा / जुहोति यस्तेरात्रीसंवत्सरेपृथिव्यामग्नौचनक्षत्रेषुचन्द्रमसिच महिमाप्तवभूवतरमेतेमहि, म्नेप्रजापतयेदेवेभाः स्वाहा // 4 // (1) अग्युनक्ति / युञ्जन्तिनम् / अव त्रादित्य रत्तूयते . 8 (1) का. युनत्ये नं युञ्जन्ति नमिति अश्वं रथे युनक्ति / 129. For Private And Personal Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु० उतरीः प्रथमं व्याख्यायते / यम्यभासा / रोचन्तेदेदीप्यन्तेरोचना: रोचनानिदोहानिचय. न्द्रग्रहतारकादीनि / दिविद्युलोके / तंयुञ्जन्तिरथवघ्नन्ति / कथंभूतम् ब्रनम् परिबटम् 23 आदित्यम् अषमरोषणम् / चरन्त गच्छन्त वैदिककर्मसिध्यर्थम् / केयुञ्जन्ति परित-, स्थुषः सर्वतस्थिता ऋग्यजमाना: // 5 // (1) इतरावं युनक्ति / युञ्जन्त्यस्य / गायत्री / युञ्जयुञ्जन्त्यस्य // युञ्जन्त्यस्यकाम्म्याहरीविपक्षमारर्थे // शोणाधुष्मान / न्तिरथे अस्थाद्ध मे धि कस्याश्वमा काम्याकाम्यौ कामसंपादिनौ नोकोरथं वोटुंशक्तः / हरीहरि- तवर्णावश्वौ हरिणौवावेगवन्ती / विपक्षसा / विविधाः पक्षस: पक्षा: ययोस्तीविपक्षसी / विविध पक्षावस्थितौ / यहाविरितिशकुनिनाम / वेतेर्गति कर्मणः / वे: शकुनरिवपक्षीययोस्ती शोणा / शोणौशीणशब्दोत्रवर्ण वचन: / रत्तोवर्णोधूम भासः शोणइत्युच्यते। धृष्णुप्रसहनो (2) का. इतराश्च युञ्जन्त्यस्य ति / इतरान् तीनवाब थे युनक्ति / (2) का. अपो यात्वावगाढेषु व चयति यहात इति। चतुर्भिरश्वयुक्त रथमध्वर्यु यजमानावारुह्य तडागादिजलं गला जल प्रविष्ठ ष्वव षु जयमानं वाचति / शिवम् For Private And Personal Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir नृवाहसा। नृणाम्मनुष्याणां वोढारौ। 6 / (2) अपोयात्वावगाढेषुवाचयति / यहात: / वृहती अश्वदेवत्या / यत् यस्मात् वात: वात: वेगोश्व: अपः प्रति अगनौगन् अत्यधंगत: / प्रियाञ्च इन्द्रस्य तन्वं शरीरम् अगनौगन् अतो ब्रवीमि / एतम् अश्वम् हेस्तीत: अध्वर्यो। अनेनपथा येनगत: / पुन: अश्वम् आवर्तयासि आवर्तय आनय नोस्माकम् // 7 // (1) आगतमश्वम्महि / वाहसा // 6 // यहातः // वहातोपोऽअर्गनौगन्प्रियामिन्द्रस्यतु न्वम् // एतस्तोतग्नेनंपुथापुनुरप्रश्वमावर्त्तयासिन // 7 // ब्वस वस्त्वा // अन्तगायत्वेणुच्छन्दसारुहास्वाञ्जन्तुत्वैष्टुंभेनुच्छन्दसादि पौवावातापरिवक्ता आज्येनाभाञ्जयन्ति वसवस्त्वेतिप्रतिमन्त्रम् / वसवस्त्वाञ्जन्तु / निगद व्याख्यातम् / सौवर्णा न्मणीनेक शतमव केसरपुच्छेषुप्रवयन्तिपत्न्यः / भूर्भुवः स्वः / व्याख्या, तम् / अश्वायरात्रिहुतशेषं प्रयच्छति / लाजौन् शाचीन् / योयंलाजानां समूहोलाजीनित्युक्तः / (1) का. पायाय विमुक्तमश्वं महिषो वावाता परिबक्ताज्य नाभ्यञ्जन्ति पूर्वकायमध्यापरकायान्यथादेशं वसवस्वेति प्रतिमन्वम् / आयाय जल प्रदेशाहे वयजनमागत्यरथादिमुक्त मन महियाद्यास्तिमः पनी यथाक्रममखस्यपूर्वादिकानभ्य For Private And Personal Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir 26 , योयं सक्तनां समूह: शाचीनियुक्तः / सक्तवोहि अतितरां शच्याकर्मणा निस्पद्यन्तइति शाचीनित्यु ताः / यश्चायं यव्येयवमयः समूहउत्तोधाना: यश्चायंगोर्विकारसमूह उक्तोगव्यइति / एतदन्नम् अत्तभक्षयतहेदेवाः / एतदन्नमविभज्ञय हेप्रजापते / येभोश्व: / प्रोक्षित: तद्देव त्यास्त्वाञ्जन्तुजागतेनुच्छन्दसा // भूभवस्वाजी३ ञ्छाचौ न्य है ब्यगय॑ऽएतदन्नमत्तदेवाऽएतदन्नमविप्प्रजापते // 8 // कास्वित् // कास्विदेकाकोचरतिकऽउंखिज्जायतुपुनः॥ कि स्विहिमस्यभेषज / ई तत्वादेतद्देवत्योश्वति // 8 // ब्रह्मापृच्छति होतारं यूयमभित: / कःखित् / चतस्रोनुष्ट भः . प्रश्नप्रतिप्रश्नरूपाः / क: पुनरेकाकी असहाय: चरतिगच्छति / कउ खित् / कोनुविनष्टः अन्ति घृतेन महिषो पूर्वकाय वसव इति वावाता देहमध्यं रुदा इनि परिहत्ता पचानागमादिव्या इति मन्त्र - णेति सूत्रार्थः / शिवम (2) का. ब्रह्मा पृच्छति होतारं यूपमभितः कः खिदेकाकोति। यूपस्य दक्षिणत उदनुखो ब्रह्मा यूपोत्तरयो दक्षिणामुखं होतारं पृच्छति। For Private And Personal Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir / सन्जायते पुन: उकारः पादपूरण: / किम्पुनः हिमस्यशीतस्यभेषजम् / किञ्च आवपनं महत् उप्यते निक्षिप्यते स्मिन्नित्यावपनम् / 6 // होताप्रत्याह / (1) सूर्य एकाकीचरति चन्द्रमाजायतेही पुन: / अग्निश्चहिमस्यशीतस्य भेषजम् भूमि: अयंलोक: आवपनम्महत् // 10 // (2) होताब्रह्माणं निम्म्वावफ्नम्महत् // 6 // सूर्य एकाकी॥ चरतिचन्द्राजायतेपुनः॥ अग्ग्निर्हिमस्यभेषजम्भूमिंगवर्पनम्महत् // 10 // कास्वित् // कारिवंदा * सौत्पूर्वचित्तुि किस्बिदासौडहवयः // कास्विदासीत्पिलिप्पिला कास्विदासीत्पिशङ्गिला॥११॥द्यौरासीत्॥ द्यौरासीत्पुर्वचित्तिरप्रव पृच्छति / कास्वित् / कापुनः आसीत् पूर्वचित्तिः / किम्पुनरासीत् वृहत् महत् वयः पंक्षी। * कापुनरासीत् पिलिप्पिलाकापुनरासीत् पिशङ्गिला // 11 // ब्रह्माप्रश्नात् व्याकरीति / से Y (1) का० सूर्यइत्याचष्टे / होता ब्रह्माणं प्रतिवक्ति / (.) का होता ब्रम्हाणं का खिदासीदिति / होता ब्रम्हाण' पृच्छति / For Private And Personal Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु० य० म (1) द्यौरासीत् / ह्युग्रहणेनात्र ठष्टेलक्ष्यते / साहिपूर्वसर्वे : प्राणिभिश्चित्यते / अश्व सौहद्दयः / अश्वशब्देनाश्वमेधो लक्ष्यते / वयसाइवह्यनेनाश्वमेधन वर्गलीक मारीहन्तिअविरासीत् / अवि: पृथिव्यभिधीयते साआसीत् पिलप्पिला दृष्टयाहिक्लिद्यमाना पृथिवीपिलिप्पिलाभवति / आसीढुहद्दयः // अविरासौत्पिलिप्पुिलारात्रािसोत्पिशङ्गिला॥ 12 // [8] ब्वायुष्टा ॥पचुतैरवृत्त्वसितग्गीवुश्श्छागैन्न्यंग्योधपच्चमुसाश श्रौरितिश्रुत्यापृथिव्युक्ताच / रात्रिरासौत्पिशंगिला | पिशमितिरूपनाम राबिर्हिसर्वाणिरूपा 6 णिगिलतिअदृश्यानिकरोति / 12 // (2) प्रोक्षस्यश्वम् / वायुष्ठावायु: त्वापचतैः पाकैः अवतु / वायवग्नि सँयोगाविद्रयाणिपच्यन्ते / असितग्रीव: छागैः असितग्रोवोग्निः धूम(१) का० द्यौरिति प्रत्याह : ब्रम्हा होतारं प्रति वक्ति। पूर्वचित्तिः पूर्वस्मरणविषया द्यौष्टिरासोत् द्योशब्देन दृष्टिल शिवम् क्ष्यते सर्वप्राणिनामिष्टत्वात्। (2) का. अखगोक्षणमशास्त्वा वायुष्टे ति। अद्भास्त्वौषधीभ्य इति प्राकृतमन्त्रेण वायुष्ये त्यारभ्य देवः सविता दधात्वित्यन्तन कण्डिकाचतुयेनाश्वमेधिकेन चाश्वप्रोक्षण करोत्रीति स्वार्थः / For Private And Personal Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir सँयोगात् / छागैः अवतु कृष्ण ग्रीवादिभिः पर्यनैः। अश्वाङ्गेष्वालभामाना अश्वायोपकुर्वन्ति / अदृष्ट नोपकारेण / न्यग्रोधश्चमस: अवतुसोमसंवन्धेन / शल्मलिः स्वकीययावृड्यात्वा अवतु पालयतु / एषस्यः एषसः राथ्यः रथेसाधुराथ्यः / वृषासेता / पद्भिश्चतुर्भि: / आइन् आगन् आगत: , चतुर्ग्रहणङ्गिम् / तस्मादश्वस्त्रिभिस्तिष्ठति अथ युक्तः सर्वैः सममायुतइतिश्रुति: / वह्माकल्म्मुलिळा // एषस्यगत्थ्योवृषापुभिश्चतुर्भुिरेटॅगन्ब्रहमा सापच्चनोवतुनमोग्ग्नये // 13 // सर्मशितोरप्रिम्मनारथुसििशतोर / श्मिनाहयः // सर्मशितोऽअप्प्स्वप्प्सुजाब्रहमासोमपुरोगव॥ 14 // पणाश्च / ब्रह्मापरिबढः अकृण: नविद्यतेकामस्य यकृष्णश्चन्द्रमाः / सचनोम्माकम् अश्वम् / र अवतु / नमः अन्नये अग्निनमस्करीत्यविघ्नाय // 13 // सठ. शितोरश्मिना / तिम्रो नुष्टुव्विराविष्टुभः / प्रोक्षणे एवअश्वदेवत्याः / सम्पूर्वः श्यतिः शोभने वर्तते। संदर्शित: यथा दर्शनीयतमः रश्मिनारथोभवति / यथाच संसितः रश्मिनाहयोखः / एवमयंसंशितः / For Private And Personal Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir अप्सु अभिः / अप्स जा: अप्सु जातो श्वः / अम जानाः अश्वइतिश्रुति: / किम्भूत: ब्रह्माविभा। परिवृढोवा। सोमपुरोगवः / सोमसंस्कारान्पुरस्कृत्य स्वर्गलोकं गच्छतौति सोम पुरोगवः। सोमार्थाहि पशव: / सयत्पशुमालभते रसमेवास्मिन्दधातौति श्रुति: // 14 // किञ्च / स्वयं वाजिन् / स्वयमेवहे वाजिन् तन्व शरीर कल्पयस्व / स्वराज्य तवास्तीत्यर्थः / स्वयबाजिन् // स्वयम्बार्जिंस्तुन्न्वङ्कल्प्पयस्वस्वयंस्यंजखखयर्जुष ख // मुहिमातुन्न्येनुनसुन्न” // 15 // न // नवाऽऽए तन्मिय सेनरिषष्यसिदेवार ॥ऽषिपुथिभिःसुगेभिः // यत्वासंतसुक्कतो अतएव स्वयमेवयजस्व / नतेन्योयष्टास्तौतिभावः / स्वयञ्चजुषस्व / स्वयमेवाभिरुचितस्थानंकुरुष्व / किमर्थमिदमुच्यतेम्माभिरितिचेत् / महिमातेतवसंवधीअन्येनमहिमानसनशे / नशिरदर्शनार्थः / वेदेतुव्याप्ततर्थोपिभवति / नसंव्याप्यते // 15 // नवै / वैऊपादपुरणौ / नएतत् म्रियसेयत् संजप्यसे / नचरिष्यसिविनश्यसि // विशस्यमानः / किमिति / यत्देवान् For Private And Personal Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir इत्पतिएषिगच्छसि / पथिभिः सुगंभिः साधुगमनैर्देवयानैरित्यर्थः / किंच / यत्वासतेसुकृतः साधुकारिणः / यत्रचतेययुः गताः तत्रत्वान्देवः सवितादधातु // 16 // (1) उपगृहात्यपः / अग्निः / वत्तयुयुस्तत्वत्त्वावसवितादधातु // 16 // अग्नि पुशुः // अर ग्नि पुशुसिौत्तेनायजन्तुसऽए तलोकमजयद्यस्मिन्नग्निसतेलो कोभविष्ष्यतित ष्ष्यसिपिबैताऽअपः // ब्वायु पशुरामौत्तेनायजन्तु सऽए तल्लोकर्मजयद्यस्मिन्न्वायु सतेलोकोभविष्ष्यतितज्जेष्ष्यसि पिबैताऽअप // सूर्य पशुरासीत्तेनायजन्तुसऽए तलोकमजयुध पशुः / मृष्टियने देवानामासीत् / तेनाग्निनातेअयजन्त / सचाग्निस्तबसाधनभावमुपगतः सन् एतं पृथिवीलीकम अजयत् / यस्मिन्लोकेअग्नि: / अत: सतेलोकोभविष्यति तञ्चजेष्यसि / (1) का. उपरहात्या पेरुग्निः पशु रति / अपां पेरुरिति प्राकृतेन मन्त्रेणाग्निः पशुरिति वैकलेन च प्रोक्षणीररावास्ये उपगद्वातोति सूत्राथ. / 129. For Private And Personal Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir पिवएता: प्रोक्षणी:अय: / वायुः / सूर्यः पशु: व्याख्यातमन्यत् // 17 // (1) परिपशव्येहुत्वा प्राणायवाहेति / तिस्रोपराः वाचयतिपत्नीनयन् / अम्बे / अनुष्टुप् // अश्वस्तुतिः / पन्नाः परस्परमामंत्रयन्ते / हेअम्बे हेअम्बिके हेअस्थाले / नमांनयति अश्वं प्रतिप्रापयति कश्चनस्म्मुिन्सूर्यसतेलोभविष्ष्यतितज्जेष्ष्यमिपिताऽअप // 17 // प्रा णायखाहां // पानायस्वाहाव्यानायुस्वाहा // अम्बेऽअखिकम्बोलि केनमानयतुिकपच्चुन // ससस्त्यप्रश्वुक मुभविकासाम्पीलवासिनौ कश्चिदपि / मदगमनेनच / ससस्ति / सस्स्व। ये / अन्यांपरिगृह्यते / कुत्सितोश्वः / शिवम अखकः / अकुत्सितोपौर्णीयाकुत्माते / मुभट्रिकाम् / कुत्मितामुभद्रासुदिका / इयमपीjयाकुत्माते / कांपीलवासिनीम् कांपील नगरेहि सुभगा सुरूपाविदग्धा विनीताश्चस्त्रि योभ(१) का० परिपशव्ये हुत्वा प्राणाय स्वाहेति तिम्रोऽपरः। परिपशव्य स्वाहा देवेभ्यो देवेभाः स्वहेति आहुती हुत्वा प्राशायेत्याद्यास्तिम आहुतोर्जुहोति एकामश्नसंज्ञपनादौ चतसोऽन्ते इति सूत्रार्थः / For Private And Personal Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir वन्ति // 18 // (1) पत्ना: त्रि:परियन्त्यश्वम् / गणानांत्वा / स्त्रीगणानाम् / मध्येत्वां युगपत् गमापतिं हवामहे आह्वयामः / एवमेव / प्रियाणां मनुष्याणां मध्येत्वा मेव प्रियपतिं प्रियंभर्तारंहवामहे / एवमेव निधीनां सुखनिधीनाम्मा त्वा मेव निधिपतिं हवामहे / कथं कृत्वा / हेवसी / अश्व ममत्वं पतियाः इति / महिषी अश्वमुप संविशति / आहमजानि / म् // 18 // गुणानान्वा // गुणपति हवामहेप्पियाान्त्वाप्प्रियपति, हवामहेनिधीनान्त्वानिधिपति हवामहेब्बसोमम // आहमजानि गर्भधमात्त्वमजासिगर्भधम् // 16 // ताऽउभौचतुर पद सम्प्रसार , आकृष्य अहम् अजानि अजगतिक्षेपणयोः | क्षिपामि / गर्भधम् / गर्भस्यधारयिट रेत: / आत्वमजासि गर्भधम् / आष्यच त्वहेअश्व अजासिक्षिपसिगर्भधं रेत: // 16 // ताउभी / यो आवांकृतसङ्केतौ तौउभी त्वं चाहच्च / चतुरः पदः पादान् / हौतवसम्वन्धिनौ / (1) का. अधीवासेन प्रच्छादयति स्वर्ग लोक इति। अधीवासेनाश्वमहिष्यौ छादयति अध उपरिष्टाञ्चाच्छादनक्षम वासो ऽधोवातः। For Private And Personal Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir LA द्वौचममसम्वन्धिनौ / संप्रसारयाव / एवं हि सम्वन्धे संवेश प्रकार इत्यभिप्रायः / अधौवासेन प्रच्छादयति / स्वर्गलोके / एषवैस्वालोको यत्र पशु एसञ्जपयन्ति / प्रोर्णवाथाम् / जोतिराच्छादने। प्रोणवनकुरुतमित्यञ्चर्यराह / अखशिश्नमुपस्थेकुरुते / वृषावाजौहषासकावाजीअश्वःरतोधारेतसः धारयितारतोदधातुआसिञ्चतु // 20 // (1) उत्मकथ्या / गायल्याऽश्वं यावखुर्गेलोकेप्प्रोवाथांवृषाब्बाजौरेतीधारतोदधातु // 20 // [2] उत्सवथ्या ऽ अवगुदन्धेहिसमुबारयावृषन् // यस्वीणाचौवभोज यजमानोभिमन्वयते। उगतेसक्थनीयस्याः साउत्मकथौ तस्याउत्सक्थ्या: महिष्याः। अवगुदन्धेहि। अवाचीनङ्गदम् रेतोधेहि सिञ्च। कथमितिचेत् / समञ्जिञ्चारयावषन् / सञ्चारय अञ्चिम अनक्तिव्यनक्ति पुंस्त्वमित्यजिः पुंस्त्वजननमुक्तम् / हेवृषन् सेक्त: / कथंभूतोचिः। शि यःस्त्रीणाजीवभोजनः। यस्मिंन्सति स्त्रियोजीवन्तीत्युच्यन्ते / यस्मिंचसति / भोजनादौन भोगा(१) का० उत्सया इताश्वं यजमानोऽभिमन्वयते / पिशवम For Private And Personal Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir र लभन्ते / सजीवभोजन: // 21 // इतउत्तरम् दशानुटुभोभिमेथिन्यः पुंस्त्वजननमुक्तम् / द्वितीयोपरिष्टाबृहती अत्रचोयत्रमण्यते सतवदेवतात्वमुपगच्छति / अध्वर्यु: कुमारीमभि मेथयति / यकासकौ / प्रकचप्रत्ययोव कुत्सायान / अगुल्याप्रदर्शयन्नाह / यकाअसकी। शकुंतिका। अल्पेकन् / प्रत्यय: / अल्पीयसी पक्षिणीव / आहलक् इति / प्रकारवचनम् / हलेहले इति ब्रुवन्ती / वञ्चति है नई // 21 // युकामुकौ ॥शंकुन्तिकाहलुगितिवञ्चति // आहन्तिगभे र पसोनिगल्गलौतिधारका // 22 // युकोसुकौ // शकुन्तुकऽआहल त्वरितं गच्छति / चपलेत्यर्थः / तस्यापि / पाहन्ति / हन्तिर्गत्यर्थः / आगच्छति / अन्तर्भावित ण्य वा / आगमयति प्रबेशयति। अत्यथं वाहुति / गर्भपसः / गभइतिआद्यन्तवर्णविपर्ययः / पसः पसतेः स्पृशतिकर्मण: / भगशिश्नमाइन्नीत्यर्थः / अथ तदानिगलालीति अत्यर्थं शुक्र मञ्चति धारकायोनिः / यहा शब्दानुकरणम् निगलालौति गिरतेवा / निगिरतिशिश्नंयोनिः // 22 // अध्वर्यु प्रत्याहकुमारी। यकोसकौ / यक: असको य: असौ शकुंतकव आहलगितिवञ्चति / For Private And Personal Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir य. IRY तस्यश्लीलभाषिणः किमन्यत् बबीमि / विवक्षतव तेमुखम् / असाधुवनुमिच्छतः इव तेमुखंपश्यामि / अतो हेअध्वर्या मानः अस्मान् त्वमभि भाषथाः / 23 / ब्रह्मामहिषीमभि मेथति। माताचते / हेमहिषि यदामाताच तवपिताचतव / अग्रंवृक्षस्य / वाय॑स्येति तद्वितलोपः / वायस्थपर्यंकस्य उपरितनम्भागम् रोहतः / मैथुनार्थमेकं पर्यंकमारोहतइति अश्लीलाभिप्रायं गितिवञ्चति // विवक्षत ऽवतुमुखमध्वोमानम्त्वमुभिाष था // 23 // माताच // तेपिताचुतेग्बुक्षस्य॑रोहत॥ प्रतिला मोतितपितागुभेमुष्टिमतसयत् // 24 // माताच // तेपुिताचुते / ग्ग्रेवृक्षस्यकोडत // विवक्षत ऽ इवतुमुखम्ब्रहमुन्मात्त्ववदोब वचनम् / तदाप्रतिलामीति तिलस्नेहनि / स्नेहाम्यहमनेनकर्मणा / इतिएवमिति प्रकारवचनम् वदन् / तवपितागभे भगेमुष्टि मुष्टयाकारंत्शिश्नम् अतंसयत् अक्षिपत् / एवन्तवोत्पत्तिः // 24 // महिषीप्रत्याइ / माताचते / इब्रह्मन् / यदामाताच तेपिताचते अग्रे वक्षस्य पर्यकस्यक्रीडत: / शिवम् 513 For Private And Personal Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir सदावमुत्पन्नः / तुलयोत्पत्तिरावयोः / यश्चाभयोर्दोषोन तमेकचोदयितुमर्हति / एबंसति / यदसाधुवदितु मिक्षतइव तैमुखंपश्यामितत् हेब्रह्मन् मात्वंवदोवहु // 25 // उगातावा वातामभिमेथयति जोमेनाम् / कञ्चित्पुरुषमाह / जामिनांवा वाताम् उच्छ्रितांकुरु / कथमिव / गिरीभारं मध्येनिगृह्य हरेत् एवमेनां मध्येनिगृह्य / अर्वामुच्छापय / अथ यथेत्येतस्यस्थाने तथाच हु // 25 // जुमिनाम् // जुह्यमनामुच्छापयगिरौभारहर निव // अस्यैमड्यंमेधता शीतवातेपुनन्निव // 26 // जुव मैनम् // जुर्ध्वमैनुमुच्यतागिरौभाहरन्निव // अस्यमाम र उछापय यथा अस्थावातायःमध्यं योनिप्रदेश: एधताम् / एधवृद्धौ वृदियायात् / अधैनांगलीयाः / / शीतेवाते पुनन्निव / * पावाखलाव / पावाहि धान्यवाते शुद्धंकुर्बन / ग्रहणमोक्षौझटितिकरोति // 26 // वावाता प्रत्याहोहातारम् / भवतोप्येतदेवम् / ऊई मेनम् / उगातारमुच्छ्रयतात् अच्छापय / अवस्त्रीपुरुषायते / गिरोभारंहरन्निव / अथैवं क्रिमाणस्थास्य मध्यप्रजननम् एजतु___ * यस्य स्पष्टा / यथा शीतले वायौ वाति पुनधान्यपवनं कुर्वाणः कषोवलो धान्यपात्र यथा ऊध्वं करोति तथतार्थः / For Private And Personal Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir शु० चलतु / अथैनन्निग्रहीष्व शौतेवतेपुनन्निव / यवान् / 27 // होतापरिबक्तामभिमेधयति / यदस्याः / यत्यदा अस्याः परिबक्तायाः / अंहुभेद्याः / अल्पयोनेः / अंहुः हन्तव्य: भेद्यप्रदश: / प्रजननमसपाइति अंहुभेदी तसा: अंहुभेद्याः / कृधुइतिहखनाम / हुखं शिश्नम / स्थूलञ्च उपातसत् उपसङ्गच्छेत् / अथतदा अल्पत्वात् योने: स्थूलत्वाच्च हुस्खत्वाच्च टुः प्रजननसा / / जतुशीतेबातेपुनर्जिव // 27 // वदस्याः // वदस्याऽअहुभेद्याला धुस्थुलमुपातसत् // मुक्काविदस्याऽएजतोगोशुफेशकुलाविव // 28 // बहुवासः // बहेवासोलुलामंगुम्प्रविष्टीमिनमाविषुः // सुक्टनादेदि मुष्कौडषणी इत्एवम् असााः प्रजननसोपरिएजत: / एजूकम्पने / कम्पनडुरुतः / कथमिव गोशफेगोष्पदे उदकपूर्णे / शकुलाविव मल्याविव // 28 // परिरक्ताप्रत्याह। यह वासः / होतृ-शिवम् प्रमुखान् सर्वानेव ऋत्विजः परिवदति / यदा एतेदेवासः शिश्नदेवाः शिश्नक्रौडिनः / लला .' 514 मगुम् ललामेतिसुखमभिधीयते सुखङ्गतुङ्गच्छतौति ललामगुःशिश्नम् / यहा ललामेतिपौड़ For Private And Personal Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir / मभिधीयते / शिश्नंहि योनिम्पविशत् पौण्ड भवति / प्रविष्टीमिनम् प्रवेश्यविष्टम्यच / आविषुःआलिङ्गनचुम्बनादिभि निगृहीयु नारीम् / अथतदा / सक्थादेदिश्यतेनारी / सकथिकृतेन कुटिलगमनेन अतिदिश्यतेलक्ष्यतेनारी। नहि तसत्रा:किञ्चिदव्याप्तम् पुरुषेणभवति अन्य त्रसकथइत्यभिप्रायः। कथमिवासत्य साक्षिभुवोयथा। दिःप्रकारंसत्यम् अक्षिप्रभवमनक्षिॐ प्रभवञ्चेति। अक्षिग्राह्य मक्षिप्रभवम् तबहि सर्वव्याप्तंभवति / अनक्षिप्रभवं श्रावग्राहम तत्तुश्यतुना सुत्त्यस्याक्षिभुवोवथा // 26 // यईरिणः // वर्धरिणोववम त्तुिनपुष्टम्पशुमन्न्यते॥ शूद्रावदवैजागनपोषायधनायति॥३०॥ , साकांक्षम् वक्त राप्ततामपेक्षते। अतोविशिष्टि अक्षिभुवइति। सत्यस्य अक्षिभुवः यथाअवि तथत्त्वंतथेति // 26 // क्षत्तापालागलीमभि मेथयति / यदरिण: / यदाहरिणो मृगः यवंससाम् * अतिभक्षयति। अथतदाक्षेत्री। नपुष्टम्पशु / पशुमितिप्राप्त विभक्तिलोपः / पुष्टम्पशम् मन्यते-- * अवगच्छति। ममक्षेत्रम् भक्षितमितियथा। एवम् शृङ्गायत् यसाशूद्रसम्मतुः / अर्यजाराअर्यः 5 वैश्यःजारोयसपा: सार्यजारा भवेत्तदा सशूद्राक्षेत्री / नपोषायममेतदितिमन्यते / नच. 130. For Private And Personal Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir य तसाधनायति / धनमिवचतांनमन्यतेपरसयोपभोग्यत्वात् // 30 // पालागलीप्रत्याह / य इरिणोयवमत्तिनपुष्ट बहुमन्यतेक्षेत्रीति। यदुक्त भातोप्पेतदेवमितिसील्लुहमाह। कियांस्तुविशेषः / / शूद्र. यत्अर्यायै अर्याया: वैश्यायाः जार: जारयिता। तदाक्षेत्रीवैश्यः आत्मन: पोषनानुमन्यते / नहिसातस्य पोषयानिकृष्टश्च शुद्रः उत्कृष्टावैशाइति। समाप्तमश्नीलभाषणम् // 31 // वर्धारिणोववुमत्तुिनपुष्टुम्बहुमन्यते // शूहोवायैजारोनपोषुम। नुमन्यते // 31 // टुधिकाण्वोऽअकारिषज्जिष्णोरप्रश्व॑स्यब्वाजिनः / / (१,ऋत्त्विजोयजमानश्च सुरभिमतीमृचमन्तत आहुः वाचमेवं पुनन्ति / दधिक्राव्णः / अनुष्ट वश्वदेवतया। यत् दधिक्राण: अश्वसासंस्कारार्थ मश्नोलभाषणम् अकारिषम अकार्षम अकार्यकृतवन्तः वचन व्यत्ययः / एकबचनसास्थानेवहुवचनंबोध्यम् / उपरिष्टाहनिपदानि वहुवचनान्तानि दृश्यन्ते / किम्भूतसादधिक्राब्ण: / जिष्णुःजेतुः अश्वसाशनेसाव्यापिनः वाजिनः / श्रीविजी भय का. महिषोमुत्थाप्य पुरुषा दधिक्रावण इताः / महिषी यजमानस्य प्रथमपरिणोतां पत्नोमश्वसमोपसुप्तामत्थाप्य पुरुषा अध्वयु बौहान होक्षत्तारो मन्त्र पठेयुरिति सूत्रार्थ / For Private And Personal Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir चलनयोः वैजनवतः तत्रसुरभौणिसुगन्धौनि। अश्लीलभागोलहि दुर्गन्धौनिमुखानिभवन्तिपापहेतुत्वात् / न: अम्माकमुखानि। निकारलीपरछान्दस: करत्करोतु यज्ञइत्यधाहारः / किञ्च / प्रण: आयूंषितारिषत् / प्रतारिषत् प्रवईयतुच नः अस्माकम् / वहुवचनवालयौवन वृद्धवयोपे क्षम् // 32 // पत्न्यासि पथङ्कल्पयन्ति / गायत्रीत्रिष्टुप् षड्भिक्सग्भिः / तत्राद्या उष्णिक् चतसुरभिनोमांक रत्प्रणऽआऽषितारिषत् // 32 // [12] गाय वीविष्टप् // गायत्त्रीत्विष्टब्जगत्त्यनुष्टुप्पतयासह // बृहत्तर धिमाकुकुटप्सूचीभिःशम्म्यन्तुत्वा // 33 // द्विपदावा // विपदा यापच्चतुष्प्पदास्त्रिपंढायाश्चुषट्पदा // विच्छन्दावाश्चुसच्छन्दाई स्रोनुष्टुभः परात्रिष्टुप् / गायत्रौचविष्टुपचजगतीच अनुष्टुप्च / अनुष्टुप्च पडत्यासहवहतीच / उष्णिहासहककुप्च / सूचीभिः शम्यन्तुत्वाम्हेप्रख मनमगानामभेदेनवर्त्मनिदर्शनं सूचीभिः क्रियतेतेनपथाअसिः प्रवर्तते // 33 // विपदाया: / या:दिपादाः याश्चचतुष्पदा: याश्चत्रिपदाः For Private And Personal Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir याश्चषटपदाः / याश्चविच्छन्दा: विगतञ्छन्दा याभ्यस्ताः / विषमाक्षरा: विषमपदाःछन्दोलक्षणेनानभिसंवद्धाः / याश्चसच्छन्दा: अन्यूनातिरित्ताक्षराश्च्छन्द / साजातय: ताः सर्वाः सूचीभिः शम्यन्तुत्वाम् / 34 / महानाम्न्योरेवत्यः / महानाम्न्यऋचः शाक्वर्यइतियाभण्यन्ते / रेवत्यएताअपिरवत्यः / रेवतन्तासुसामभवति / विश्वाः सर्वाः आशादिश: / प्रभूवरी: प्रभूततमाः / मैघीः सूचीभि शम्म्यन्तुत्त्वा // 34 // मुहानाम्ग्न्योरेवत्यः // महानाम्न्यो / रेवत्यो विश्वाऽआशाप्पुझ्वरो // मैघोवियतोवाच-सूचीभिःश म्यन्तुत्त्वा // 35 // नाट्यस्तपत्कयोलोमुब्विचिन्वन्तुमनीषा // देवानाम्परक्योदिशासूचीभिःशम्म्यन्तुत्वा // 36 // रजुताहरिणी // मेऽभवाः विद्युत: तदुत्पन्नायाश्चवाच: ताः सर्वाः सूचीभिः शम्यन्तु / शमनेनहवि: कुर्वन्तु - त्वाम् / 35 / नार्यस्ते / नणामपत्यानिवडूनिस्त्रीलक्षणानिनार्यः / तेतव / पत्न्यःयजमानस्य- शिवम् पत्न्यः / लोमलोमानिविचिन्वन्त, पृथक्कुर्वन्तु / मनीषया मनसइच्छषामनसः पालोचनेन / देवानाञ्चयाः पत्नाः दिश: ताः सर्वाः सूचीभिः शम्यन्तु शमनेनहविष्कुर्वन्तुत्वाम् / 36 // रज 516 For Private And Personal Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir ताहरिणी: / रजतमुवर्णसौसमय्यः सूच्यः / युजः सहयोजनाः / युज्यन्तेकर्मभिः सीमालक्षणेः / EN याः ता: अश्वस्यवाजिन: वेजनवत: त्वचिरीमसु / सीमा. सिमाशब्दः सौमपर्यायोमर्यादावचनः सीमानकुर्वाणा: शमान्तुहवि: कुर्वन्त शमान्तीः हविष्कुर्वाणा: अश्वम् / / 37 // कुविदङ्गे तिव्याख्यासीमावोवज्ज्यन्तुकर्मभि // अवस्यवाजिनस्वुचिसिमाशम्म्य न्तुशम्म्यन्ती // 37 // कुविदङ्ग // यवमन्तीयवञ्चुियथादान्त्यनु पूर्वब्बियूयं // दुहेहेषाऋणुहिभोजनानियेबुर्हिषोनम ऽउक्तिस्वर्ज न्ति // 38 // [8] कस्वा // कस्त्वाच्यतिकस्वाब्विास्तिकस्तुगाचा तम् // 38 // (1) अखम्बिशास्ति अनुवाकेनशडचेन / तत्राद्यागायत्री पराअनुष्ट भः / कस्त्वा / के क: प्रजापतिः त्वाम् आच्छाति / छोछेदने / आछिनति / त्वचः / कश्चप्रजापतिःत्वा विशा 1 का० अश्वं विशास्तानुवाकेन कस्त्वाच्यतोति। षडुचेनानुवाकेनाश्वं विशास्ति अश्वोदरं पाटयति मेदस उद्दरणाय __वपाया प्रभावात् उदरमध्यस्थं स्तवान कृताभं धनं श्वेतं मांस मेद इति सूत्रार्थः / For Private And Personal Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir स्तित्वचावियोजयति। कश्चप्रजाति: तेतवगात्राणि शरीराणि शमाति शमनेनह विर्भाव मापादयति / कउते प्रजापति रेवते शमिताकवि:मेधावीकान्तदर्शनः / यद्दाप्रश्नरूपोयं मन्वः / कोयं मनुष्यः त्वाम् आच्छातिकश्चत्वां विशास्ति कश्चतेगात्राणि शमाति / कश्चउतेशमिताकविः / न कश्चिदपौत्यभिप्रायः / उपादपूरण: // 38 // यस्मिन्पचे कस्त्वाप्रजापति स्त्वेतिव्याख्यातं / णिशम्यति // कउतेशमिताकविः // 36 // ऋतर्वस्तऽऋतुधापवंश मितारोविसितु॥ सुब्बत्सरस्युतेजसाशुमोभिःशम्म्यन्तुत्वा // 40 // अईमासा पर 7 षितमामा ऽ आयन्तुशम्म्यन्त // अहोगत्त्रा तस्मिन्पक्षेप्रतार्यते / ऋतवस्ते / ऋतवश्चतवशमितारः ऋतुथा ऋतावृतौकालेकाले / पर्व। पर्वणि पर्वणि / संवत्सरस्यचतेजसा / शमीभिः कर्मभिः शमान्तुशमनेह विर्भावमापादयन्तु त्वांह अश्व // यदातुकः त्वांविशासितुं समार्थोमनुष्यएवं व्याख्यातम् तदा ऋतवोदेवा: तेशमितारः इत्येवं व्याख्येयम् // 40 // अईमासाः / अईमासा: मासाश्च तेवपरू षिपर्वणि आकान्तु आछि शिवम् For Private And Personal Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir * न्दन्तु शमान्तः शमनेन ह विर्भावमापादयन्त: / किञ्च। अहोरावाणिमरुतश्च विलिष्टन्दु.श्लिष्टसूदयन्तु षदक्षरण पठाते / इह सन्धाने वर्तते वाक्ययोगात् सन्दधन्तु तेतव / 41 // दैव्या अड्वर्यवः / येचदैव्यादिव्या अध्वर्यव: अश्विप्रभृतयः तेचत्वात्वाम् / आयन्तु विचशासत चकारो भिन्नकमः / विशासतुच / किञ्च गावाणि पर्वश: तेतबसिमाः मर्यादा: करावन्तु कुर्वन्तु / णिमुरुतोबिलिष्टसूदयन्तुते // 41 // दैश्योऽअद्ध्व_व // स्वा व्यन्तुविचशासतु // गात्राणिपळशस्तुसिमाकणण्वन्तशम्म्यन्ती // 42 // द्यौस्तै // पृथिव्यन्तरिसच्चायुश्छुिद्रम्प॒णातुते // सूर्यस्तुन सुहलोकङ्गुणोतुसाधुया // 43 // शन्ते // शन्तुपरेभ्योगाभ्यु शमान्तीः / मर्यादा दर्शतेन शमनं कुर्वाणाः // 42 // द्यास्त द्यौश्चते तव पृथिवीचअन्तरिक्षञ्चच वायुश्चछिद्रं पृणातु पूरयतुते / किञ्च / सूर्यश्चततवनक्षत्रैः सहलोकं स्थानं कृणोतु साधुयासाधुम् / द्वितीयार्थयाछान्दसः // 13 // शान्त / सुखं ते तव अस्तु हेअश्वपरभ्य: गात्रेभ्यः / For Private And Personal Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri franmandir शु. शं सुखम् अवरेभ्यः / अस्तु / शम अस्थभ्यः अस्थिभ्यः मज्जभ्यश्च अस्तु / शञ्चास्तुतन्वैशरीराय / षष्टयर्थछन्दसिचतुर्थीवक्तव्येति षष्टयर्थेचतुर्थीतन्वा: तव // 44|(1) दूत उत्तर ब्रह्मोद्यमष्टादशर्चम् / ( उत्तरप्रत्युत्तरैः परस्परं सम्वाद: ब्रह्माद्यम ) तवाद्याच स्रोनुष्टभुः काखिदासौत्पूचि-, शमुस्त्ववरेब्भ्यां // शमुस्स्थवभ्योमुज्जरभ्युशवस्तुतुन्न्वैतव // 44 // [6] कर्खिदेकाकोचरतिकाउंखिज्जायतुपुनः ॥कि खिड्डिमस्यभेष जङ्किरम्बावर्पनम्महत् // 45 // मूव॑ऽएकाको // चरतिचुन्द्रमांजायते / पुनः // अग्निर्हिमस्यभेषजम्भूमिरावपम्मुहत् // 46 // किस्वित्॥ तिरित्याद्याश्च चतस्रोनुष्ट भः बिष्ट भोन्याः / होताध्वर्युम्पृच्छति: क: विदेकाको / 45 // शिवम् ॐ तम्प्रत्याह / सूर्य एकाकीचरति अग्रेव्याख्यातौ // 46 / अध्वर्यु होतारम्पृच्छति / किएस्वित्सूर्य(१) का० प्राग्वापाक्षोमाहीताध्वयं च सदसि संवदेते चतसृभिः कः स्विदेकाकीति पूर्ववत् / 518 For Private And Personal Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir सनं ज्योतिः / किञ्च समुद्र समसरः / किंस्वित्पधिव्य एटिव्या: वर्षीयः महत्तरम् कसय चमात्रापरिमाणम् नविते नास्ति // 40 // तंप्रत्याह / ब्रह्मसूर्यममम् / ब्रह्मत्रयोलक्षणम्पावा / सूर्यस जयोतिः / द्यौःमसुद समंसरः / इन्द्रःष्टथिव्यै वर्षीयान्महत्तरः। कि वित्सूर्यसमञ्जाोतिकि समुदुसम सरः // कि स्वित्पृथि र व्यैवर्षीयकस्यमात्वानबिद्यते // 47 // ब्रहमसूर्यसमम् // ब्र ए हमसू_समञ्जयोतिौ समुसमुसरः॥ इन्द्रःपृथिव्यैवर्षीयान्न्गो - स्तुमात्वानविद्यते॥ 48 // पृच्छामित्त्वा॥ चितयेटेवसखुवदित्वम / 2. गोस्तुमानानविद्यते गवाहियसोधार्यते सजात:कारणम् भवतीत्य सदभिप्रायम् / पृथिवीवा गौः // 48 // (1) ब्रह्योहातारम् पच्छति टच्छामित्वा / पृच्छामित्याभवन्तम् चितये / चितोमंज्ञान (2) का. ब्रह्मोहातारं पृच्छति पृच्छामोति। चकाराच्चतुभिः सदसि ब्रह्मोहातारौ संवदेते। 131. For Private And Personal Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun 23 परिज्ञानाय / हेदेवसख उगातः / यदित्वम् अत्रपृष्टःसन्मनसा प्रश्न विवेचनाय सूक्ष्मान न् जगन्थ अवगच्छ स। येषुविष्णुः यत्नालिषुपदेषुगार्हपत्याहवनौयदक्षिणाग्निषु आइष्ट: यजेरेतद्रूपम् / तेषुविश्वंभुवनम् भूतजातम् / प्राविबेश उतने ति / प्रश्नोलुतः // 6 // प्रत्याह / अपितेषु तेषु अहमस्मि अपित्वञ्चेत्यपि राब्दः / तेषु गार्हपत्याहवनौयदक्षिणाग्निषु / त्वमनसाजुगन्ध // येषुविष्णुंस्विषुपुदेष्ण्वेष्टुस्तेषुविश्वम्भुवनमा विवेशा३ // 46 // अपितेषु // विषुपदेष्वस्म्मुिवेषुविश्वम्भूवन माविवेश // सद्यः पये मिपृथिवीमुतद्यामेकेनाङ्गेनदिवो,ऽ अस्यपृष्ठ म् // 50 // केष्वन्तः // पुरुषुऽआविबेशुकान्न्यन्त पुरुषु अपिता विषुपदेषु / अहमस्मित्वञ्च केषु / येषुविश्वम्भूतजातम् श्राविबेश / अाविष्टम् / यत्पुनरेतदुक्तभवता यदित्वमत्रमनसा जगन्थेति / अब त्रूमः / सद्यःएककालमेव / पर्येमिपरिगच्छामि थिवौम अपिच द्याम् एकेनअनेन मनसाप्रसादिवः पृष्ठञ्च किमतभूतजाति तत्राविष्टानोति // 50 // पि 518 For Private And Personal Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir उताब्र ह्मणम्पच्छति / केवन्तः / केषु अन्तर्मधेपुरुषः प्राविबेशाविष्टः प्रविष्टः / कानिचान्तः मधेपुरुषेअर्पितानि / एतत् हेब्रह्मन् उपवलहामसि / वल्हप्राधान्ये। इहतुबाह्वान पूर्वेसंहर्षे वर्तते। उपसङ्गन्याहूयोत क्षिप्पत्राहष्टच्छामिभवन्तम्। किंस्विन्न: किंपुनरस्माकम्प्रतिवीचासि नि॥ एतद्रहमुन्नुपंवल्हामसित्त्वाकि खिन्न प्रतिबोचास्यत्व // 51 // पुञ्चखुन्त // पुरुषुऽाविवेशुतान्न्यन्त पुरुषऽअर्पितानि // ए तत्त्वात्प्रतिमन्नानोऽस्म्मुिनमायाभवस्युत्तरीमत् // 52 // [8], कास्वित् // कास्विंदासोत्पूर्वचित्तुि किस्विदासीहद्दयः॥ का र मधेपुरुषाविवेश। किंच तानिप्राणाधीनानि करणानि अन्तःपुरुषेअर्पितानि / एतत् त्वाभवन्तम्प्रतिमन्वान: प्रतिजानान: अस्मिअवस्थितः / नचमाययाप्रनया भवसिउत्तरः उद्गाटतरःमत् प्रतिबौषि अत्रप्रश्न // 51 // प्रत्याह / पञ्चस्वन्तः पञ्चस्वितिप्राणा:ख्यायन्ते / पञ्चसुप्राणेषु For Private And Personal Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir शु० मत्त:मामपेक्ष्य // 52 // (1) होताध्वर्युपच्छति / कास्विदासौत् // 53 // प्रत्याह / द्यौरामौत् / / * व्याख्यातौ // 54 // अध्वयु होतारम्पच्छति / काईमरे ईमितिचकारार्थे अरे इत्यामन्वितवि- 23 सं० स्विंदासीपिलिप्पिलाकास्विदासीत्पिशङ्गिला // 53 // द्यौरासी त्॥ द्यौरा सौत्पूर्वचित्तिरप्रवऽआसोडुहद्दयः // अविरासोत्पिलि प्मुिलारात्विरासोत्पिशङ्गिला // 54 // काऽईम् // काऽईमरेपिशङ्गि लाकाऽईङ्करुपिशङ्गिला॥ काईमास्कन्दमर्षतिकऽ म्पन्थाँब्बिसर्प ति // 55 // अजारे // पिशङ्गिलाप्रश्वावित्कुरुपिशङ्गिला // शुश षय: उनावपिनिपातौ। काचबरे होत: पिशङ्गिला काचकुपिशङ्गिला / कञ्चबास्कन्दम् अर्षतिच पन्यांविसर्प ति // 55 // प्रत्याह / अजारेअजानित्यारोविः अरे अध्वर्यो पिशङ्गिला। (1) का. पुनः पूर्वावपरणोत्तरवेदि काखिदिति। ततः सदसो निष्कम्य हविर्धानस्य पुर उत्तरषेदेः पश्चादुपविश्य पूर्वी पूर्वोक्ती होत्रध्वयूं चतुग्भिः संवदेते इति सूत्रार्थः / For Private And Personal Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir E साहिपिशंरूपम् गिलतिभक्षयति / सहितस्याःप्रभावः / श्वाक्ति सेघाउच्यते 7 रुपियंगिस्ला / कृत्वाउपलभ्यो पलभ्यपिशंरुपंगिलति भक्षयत्तिमाकुरुपिशंगिला। सातिशतम्मलानाम् सोम णाय कुक्षौस्थापयति / शतंचभक्षयति / महितस्याःप्रभाव: / शशश्चास्कन्दम अस्कन्धास्कर न्द्य अर्षतिगच्छति / महितमास्वभावः / अहिश्च स्वकीयंप्रन्यानम् विसर्पतिविकुर्वन्गच्छति // 56 // आस्कन्दमर्पत्त्यहिपन्थाँविसर्पति // 56 // कत्यस्य ॥बिष्टाक त्युक्षराणुिकतिहोमास कतिधासमिद्ध // बुजस्यत्त्वाबिदापृच्छम है कतिहोताऽऋतुशोर्वजन्ति // 57 // षडस्य // बिष्ठा शतम (1) ब्रह्मोद्गातारंपच्छति / कत्यस्य / असायनसाकतिकतिविष्ठाः / विशेषेणतिइति यज्ञीयासुताविठा अन्नानि / कतिच अक्षराणिकतिचहोमाः कतिधाचसमिद्धः समिधः। यत्तसात्वाभवन्तम् विदथाअावेदन न इतनापृच्छंप च्यामि / अनचयञकतिहोतारः क्रतुश:क्तयाज्यान्यजन्ति // 57 // प्रत्याह / षडसा / रससंख्ययोपसञ्जिहीर्षराह / असायजसत्रषविष्ठाः अन्ना(१) का उत्तरी च कत्यस्य ति। उत्तरी पश्चादुकौ ब्रह्मोहातारौ चतुऋग्भिः संवदेते / For Private And Personal Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kallashsagarsur Granmandir www.kobatirth.org / य. सं. निप्तर्वान्नानांपडसात्मकत्वात्। शतमक्षराणि। छन्दसामुदारेखाप पञ्जिीर्षुराह / चतुर्दशछन्दांसि गायत्रोपमृतीनि चतुर्विशवक्षरादौनि। चतुरुत्तराणिचतिधृतिपर्यन्तानि / पतिधृतिस्तु षट्सप्तत्यामातिएतैःप्रायशोयजस्तायते। तबगायत्री अतिधृतिश्चशतम / एवमुष्णिकधृतिश्चशतम्एवनज्येष्वपिच्छंदस्सु इत्येतदमिग्रायम् / अशौतिमा: / एकविंशतिरश्वमेधेचरांगण्य शौतिहासमिोहति // युजस्यतेविदयाप्प्रब्रवी मिसुप्तहोताऽऋतुशोयजन्ति // 58 // कोऽस्य // वैदभुवनस्य / नाभिकोध्यावापृथिवोऽअन्तरिक्षम् // कसूर्यस्यब्वेदबहुतोजनित्यु / यूपाः / तवाग्निष्टे अश्वस्तृपगेगोमगान् नियनक्ति। इतरेषुषोडशषोडश / तब विंशतिदूपैः / / चतखोगौतयोभवन्तितदभिगायमेतत् / कतिधासमिवइतियदुक्तम अवब्रुमः / समिधोर-शिवम तिखः / याभिःसमिनिःसंदीप्तोयतःतास्तिस्रः / अश्वस्तूपरोगोठगाःप्राजापत्यापशवः यजमा तेतब 521 विदधावेदनन। प्रवीमि सप्तहोतारः वषट्कर्तारः पतयःक्टतयागेषु यजन्ति // 58 // For Private And Personal Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir उद्गाताब्रह्माणंपृच्छति / कोचमा / कःअसावेदजानाति / कपद्यावापृथिवी अन्तरिक्षंचवेद / / / कञ्चसूर्यसा वेदनानाति / वृहतः मातः जनित्रचन्म / कश्ववेद चन्द्रमसम् चन्द्रमसः इति / से विभक्तिव्यत्वयः। यतोजाःयतीजन्म // 56 // प्रत्याह / वेदाहम् / वेदजानामि अहम् असाकोबैदचन्द्रमसंख्यतोजा // 56 // वेदाहम् // ब्वेदाहमुस्यभुवनस्यु नाभिँबेटुद्यावापृथिवीऽअन्तरिक्षम् // ब्वेटुसू_म्यबृहतोजुनिचुम थोवेदचन्द्रमसंय्यतीजाः // 6 // पृच्छामित्त्वा // पुच्छामित्त्वापरम इ भुनसा नाभिम् नहनम् बन्धनम् परब्रह्म / वेदच द्यावापृथिवी अन्तरिक्षंच ब्रह्मणोविकारभूतम। वेदच सूर्यसप्रष्टहत: जनित्रम् परमात्म लक्षणम् / अथोपिच वेदजानामि चन्द्रमसंयतोजाः चन्द्र नमः यतोजन्म परमात्मनः यज्ञादा // 60 // (1) अध्वर्युयजमानः पृच्छति पृच्छामित्वा। पृच्छामि त्वां भवन्तम् परम् अन्तम्पृथिव्याः। पृच्छामिचतत्र भुवनसानाभिः (1 का० यचमानोऽवयं पृच्छामि त्वेति / यजमानोऽध्वयं पृच्छति / For Private And Personal Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir 23 नहनम् / पच्छामिच भान्तम् वृष्ण: सेक्त: अश्वसारतः। पृच्छामिच वाचः परमम् व्योम व्य पर्न स्थानम् // 61 // (1) प्रत्याह / इयंवेदिः / इयंवेदिः परः अन्तः पृथिव्याः / वेदिहिसर्वम् पृथि- है वोरूपाभपति / अयं व यत्नः भुवनसानाभिः नहनम् यज्ञा दैजा: प्रजायन्त इतिश्रुतिः / तम्पृथुिश्या पृच्छामियत्नुभुवनस्युनाभिः // पुच्छामित्वावृष्णोऽ अश्वस्युरेत पृच्छामिव्वाच परमव्योम // 1 // दुयब्वेदिः // दुय / / वेदि। परोऽअन्तः पृथिव्याऽअयय्वज्जोभुवनस्युनाभिः // अयसो मोवृषमणोऽअवस्युरेतोब्रुक्ष्म्माब्वाच परमव्योम // 6 // [10] अयंचसोमः चन्द्रमाः लतासोमोवा वृष्णः सेक्त : अश्वमारतः / अयंचब्रह्माफ्टत्विकवाचः परम व्योमव्यवनं स्थानम्। विवेद योगात् / समाप्तम ब्रह्मोद्यम् // 62 // महिमन: पुरोमुवाक्या / (2) का. यं वेदिरित्यध्वर्युः। अध्वर्युः यजमानं प्रत्याह। इयं वैदिः उत्तरवेदिः पृथिष्याः परः पन्तोऽवधि: वेदैः सर्वपृथ्वीरूपत्वादित्यर्थः / For Private And Personal Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir ई सुभूःवयम्भः / अनुष्टुप् प्राजापत्या / साधुभवनः स्वयम्भः स्वेच्छयागृहीत शरीरः / प्रथमः अनादि निधनः पुरुषः / किमकरोदित्याह / अन्तर्महत्यर्णवेदधेह / अन्तर्भहतोर्णव सा / हेति निपातः पुराक पद्योतनार्थः / किन्दधे / गर्भम् कत्वियम् प्राप्तकालम् / कथं भूतम्गर्भम् / यतोजातः प्रजासुभूस्वयम्भूः // प्रथमोन्तम हत्यमवे // दुधेहुगभमुत्त्विमुख्यतो जात प्रजापतिः // 6 // होतविक्षत् // होतायक्षग्रजापति सोम स्यमहिम्नः // जुषताम्पिबतुसोम होतुर्वज // 64 // प्रजापतुन // त्वदेतान्न्युन्न्योविनश्वारूपाणुिपरिताबभूव // यकामास्तेजुहुमस्त पति: / यस्माद्गर्भात् जातः प्रजापतिः अनन्योपमः // 63 // प्रेषः / होताक्षत् / दैव्योहोता यजा। प्रजापतिम् सोममा महिम्नः संवन्धिनम् / सचेज्यमान: सन् जुषतां प्रीत्यापरिगृह्णातु 182. For Private And Personal Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir दिवाच / सोमम् त्वमपिच हेमनुष्य होतः / यज / 64 / प्रज पतेन / व्याख्यातोमन्त्रः / 65 / / इतिउचटकृतौमन्तभाष्येत्रयोविंशोधयाय: 23 // (1) इतउत्तरं श्रुतिरुपा:मन्त्रापाश्वमेधिकानाम् पशूनाम् देवतासंवन्धाभिधायिनोधायेनोच्य-- नोऽअस्तुव्वयस्यमपतयोग्यीणाम् // 65 // [3] इतिश्रीवाजसनेयीसंहितायांदीग्र्घपाठेत्रयोविंशोऽध्यायः 23 // * अश्वस्तपुरः // अश्श्वस्तूपुरोगौमृगस्तेप्प्राजापुत्त्या कृष्ष्णग्यौव आग्ग्नेयोग्राटेंपुरस्तात्सारखुतीमुष्ष्यधस्तावनवौराश्विनावधोरी न्ते। अश्वस्तूपरोगोमगस्तेप्राजापत्याइति / शतपथोप्येतमधघायंश्रुतिकृत्याइ / अश्वस्तूपरोगोमृगइति तन्मधा यूपालभतइत्यादिनाग्रन्थेन दिङ्मालम्प्रदर्शयन् / सूत्रकृताचायमधायः सूचीकृत: येनैव * अखस्तू परोधूम्रान्व सन्ताय समुदाय शिशुमा रामयुः प्राजापत्यो दयकाशत्वारिठ शत्। For Private And Personal Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir माहअग्निष्टे पश्वस्तूपरोगोमृगान्नियुक्ति / यथोक्तमश्वादी देवताइति / तत्रवैष्णवीवामनइत्येव मन्ताःपर्यंग्याः / अश्व:तूपरोनि:शृङ्गः गोमृगोगवयः एतेप्रजापतिदेवत्याः / कृष्णग्रीवश्छागआग्नेयः पुरस्ताल्ललाटे अश्वस्य वधनीयइति शेषः / एवंसारखतीमेषीअधस्ताइन्वीः आश्विनी अधोरामो अधः शुक्रो छागौपूर्वपादयोः / सोमपूष देवत्योनाभ्याम् बन्धः / सूर्यदेवत्यः श्वेतयमदेवताः मौवाच्चो सीमापौष्ण श्यामोनाभ्यां सौ-यामौश्वेतश्चष्मा प्रचंपाश्र्वयोस्वाष्ट्रोलोमुशसक्थौसुक्थ्योबायुस्य वतपुच्छ इन्द्रा यखपुस्थायबेहद्वैष्मवोवामुन // 1 // रोहितोधूम्मरोहित // कुर्कन्धु कृणः अपार्श्वया: लोम युतेसकथनीय योस्तोत्वष्टुदेवत्यौ सक्थ्योः / वायव्यः श्वत:पुच्छे खपस्याय शोभन कर्मणे इन्द्रायवेहत् विष्णुदेवत्योवामनश्च पशुः अश्वस्य पुच्छएव / एतेपर्यंग्या: / एवमग्रेपिदेवता पशुवन्धोत्रेयः / ललाटादिषु पशुवधनायाश्वशरीरम् रज्जुभिर्वेष्टनीयम् / एतेमधामयूपे // 1 // रोहितोधूम रोहितइत्यादयः श्वेतावाययाः श्वेता.सौयाइत्येवमन्तः / इतरेषुयूपेषु For Private And Personal Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अ रोहितादिषु येगुणवचना: शब्दास्तेगुणिनम् पशुंलक्षयन्नि // 2 / महौधरोक्तमयंविलिखामि / शुदवाल: शुभ्रवाल: सर्वशुद्धवालः मणिशुद्धवालः मणिवर्णकेश: ते त्रयः अश्विदैवत्याः द्वितीये / / श्येतः श्वेतवर्णः श्येताक्षः श्वेतनेत्र: अरुण: रक्तः ते त्या रुद्राय पशुपतये पशुपतिरुद्रदैवता , रोहितस्तेप्सौम्म्याबुभररुणब शुकबन्धुस्तेव्वारुणाशिंतुिरन्ध्रीन्य तःशितिरन्ध्र समुन्तशितिरन्ध्रुस्तेसावित्वा शितिबाहरन्न्यतः शितिवासमन्तशितिबाहस्तेबाहरणत्या पृषतीक्षुद्दपृषतीस्त्थूल / पृषतोतामैत्वावरुणण्यः // 2 // शुद्धालसर्बशुद्धवालोमणुिवालुस्त ऽआश्विनाश्येत श्येताक्षोरुणस्तेमुदायपशुपतयेकुर्मायामा ऽअव द्वितीये / कर्णास्त्रयः पशुविशेषाः कर्णचन्द्र च वृक्षे चेति विश्वोक्त : कर्णाश्च न्द्रसदृशश्वेतकर्णास्वयः पशवः बहुवचनस्य स्वित्वे पर्यवसानात् यामा: यमदैवता: द्वितीये / अवलिप्ता: सगर्वास्त्रयो शिवम् 524 For Private And Personal Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir रौदाः। एते द्वितीये पञ्चदश // अथ ढतीये यूपे / नभे रूपाः आकाशवन्नीलवर्णाः पार्जन्याः / पर्जन्य दैवताः पशवस्तृतीये नियोज्याः // 3 // पृश्निः विचित्रवर्णा तिरशीनानि पृश्नीनि विन्दवो यस्य सः एवमूर्खानि पृनौनि यस्य सः ते वयो मारुताः मरुदेवत्यास्तृतीये / फल्गू: अगुष्टशरीरा लोहिलुिप्तारौहानोरूपापाज॑न्न्याः // 3 // पृश्निस्तिरश्चीनपृश्निः // पृश्निस्तिरश्च्चीनपश्चि पृश्नुिस्तेमारुता फल्गोंहितोोप लक्षीता सारस्वत्त्यः *प्प्लीहाकरणःशुगण्ठाकगोड्यालोहकर्णस्ते त्वाधाकृष्णग्गोवा शितिकक्षौन्जिमुक्थस्तऐन्टाग्ग्ना: कृष्णाञ्चिर तोर्णी रक्तरोमवती पलक्षी श्वेता पलक्षशब्दो वलक्षार्थ: श्वेतपर्याय: तास्तिस्रोऽजा: सारस्वत्यः / सरखतौदैवतास्तृतीये / प्लौहाकर्णः लौहा रोगविशेष: तद्युतौ कौँ यस्य स लोहकर्ण: अन्येषामपि दृश्यतइति संहितायां दीर्घः शण्ठकर्ण. इखकर्ण: अदालोहकर्णः रक्तवर्णकर्ण. ते व्यस्त्वाष्ट्राः * पोहकर्णः इत्यवस्थायां पिवानोमम्पिवासुतस्येत्यादिसूवेणकर्णपरतः पोहताकारए दीदि पाताते / For Private And Personal Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir 4 शु० त्वष्टुदैवतास्तृतीये / कृष्णाग्रीवः शितिकक्ष: खेतकक्षः अजिसक्थः अञ्जिपुण्ड्र सक्थोरूर्वीर्यस्य सः य. ते वय ऐन्द्राग्ना: इन्द्राग्निदैवता: तीये / पञ्चदश पूर्णाः // कृष्णाञ्जिः कृष्णपुण्डः अल्पाचिः 21 महाञ्जिः अल्पमचि यस्य महदचि यस्य स तथा ते त्रय उषस्थाः उषादेवताश्चतुर्थे यूपे नियोज्याः // 4 // विचित्रवर्णास्तिस्रः स्त्रीपशवो वैश्वदेव्यः विश्वदेवदेवताश्चतुर्थे / रोहिण्यः रक्तवर्णाः ल्यवयः ल्पांञ्चिमहाञ्जिस्तऽषस्याः // 4 // शिल्प्पावैश्वदेव्यः // शिल्प्पा / वैश्वदेन्योरोहितण्यस्त्रायोब्बाचेविज्ञाता ऽ अदित्यसरूपाधा त्वत्सतुर्योदेवानाम्पत्कोभ्यः // 5 // कुष्माग्यौवाआग्ग्नेया॥ सार्धसम्बत्सरास्तिस्रोऽजा वाचे वाग्देवताश्चतुर्थे / अविज्ञाता: कृष्णग्रीवादिचिङ्गविज्ञानशून्यावयः पशवोदित्यै अदितिदेवताश्चतुर्थे / सरूपाः समानरूपात्रयः पशवो धात्रे धाटदेवताश्चतुर्थे / एवं शिवम् पञ्चदशः // अथ पञ्चमे यूपे तिस्रो वत्सतर्यः बालछाग्यो देवतानाम् पत्नीभ्यः तद्देवताः पञ्चमे // 5 // कृष्ण ग्रोवा: कालकण्ठावयः पशव आग्नेया: अग्निदेवताः पञ्चमे / शितिभ्रवः खेतवर्ण भूयुक्ताखयो For Private And Personal Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वसूनां वसुदेवता: पञ्चमे / रोहिताः रक्तवर्णास्वयः स्ट्राणां रुद्रदेवताः पञ्चमे / श्वेता: अवरोकिण: अवलोकिन: यहा अवाधस्ताट्रोक: छिद्रम् येषां ते छिद्रम् निय॑थनम् रकक: ते चयः आदित्यानाम् / तद्देवता: पञ्चमे / अथ षष्ठे यूपे / नभोरूपाः पार्जन्याखयः षष्ठे // 6 // उन्नत: उछः ऋषभ: पुष्टः वामनः वहन्यपि वयसि गते दृद्धिरहित: ते बय ऐन्द्रावैष्णवा: इन्द्रविष्णु देवता: षष्ठे / उन्नत: शितिम्भवोब्बरांना रोहितारुद्राणां श्वेताऽअवरीकिर्णऽआदित्या नान्नौरूपा:पार्जुन्न्या: // 6 // उन्नतऽर्ऋषभः॥उन्नतऽऋषुभोव्वा 1. मनस्ताऐन्द्रावैष्णवाऽउन्नत शितिबाहु शितिपुष्टस्त.ऐ द्राबाई र स्प्पत्या शुकरूपाब्वाजिना: कुल्म्माषोऽआग्निमारुता श्यामा पो / शितिबा हुः श्वेतपूर्वपादः शितिपृष्ठः श्वेतपुरः ते त्रयः ऐन्द्राबाईस्पत्याः इन्द्रवहस्पतिदेवताः षष्ठे। शकरूपाः शुकपक्षिसमवर्णाः यो वाजिनाः वाजिदेवताः षष्ठे / कल्माषाः कर्बुरास्वयः पशव आग्निमामताः षष्ठे / एवं पञ्चदश / अथ सप्तमे यूपे / ग्यामाः शुक्लकृष्णवर्णाः पौष्णाः पूषदेवताः For Private And Personal Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir सप्तमे // 7 // एताः कबुरवर्णास्रय इन्द्राग्निदेवताः सप्तमे / हिरूपाः वर्ण योपेतात्रयः अग्नीषोमीयाः अग्निसोमदेवत्याः सप्तमे / वामना अनड्डाह: वय आग्नावैष्णवाः अग्निविष्णुदेवत्या: सप्तमे। वशा: वध्याः तिस्रोऽजा: मैत्रावरुण्यः तद्दे बताः सप्तमे / अथाष्टमे यूपे / अन्यतएन्यः एकपार्वे कर्बरवर्णास्तिस्रोऽजा मैल्या: मित्रदेवत्याः अष्टमे // 8 // कृष्णग्रीवा आग्नेयास्त्रयः अष्टमे। बभ्रवः कपि मा: // 7 // एताऽऐन्ट्राग्नाः // एताऽऐन्द्राग्नाहिरूपाऽअग्नीषो। मीयावामुनाऽअनुडाहऽ आग्नावैष्मा वाबशामैवाबरु ण्योन्न्यतऽए न्योमेवाः // 8 // कुष्मग्गोवाऽआग्नेया // कृष्ममग्नौवाऽआग्नेयाबु, भव : सौम्म्या? श्वेता युव्याऽअवि'उज्ञाताऽअदित्यसरूपाधात्र सतुर्थोदुवानाम्पत्नौबभ्यः // 6 // कृष्णाभीमाः // कुष्माभीमाधुम्मा लवस्त्रयः सौम्याः सोमदेवत्याः अष्टमे / श्वेताखयः वायव्या: वायुदेवत्या: अष्टमे। अविज्ञाताः चिह्नविशेषणाजातात्रयः अदितिदेवत्या: अष्टमे / अथ नवमे / सरूपाः धाटदेवत्याः नवमे। वत्सतयः देवपत्नीदेवत्यास्तिसः नवमे // 8 // कृष्णाः भौम्याः भूमिदेवत्यास्त्रयः नवमे। धूम्रवर्णास्रयः शिव. For Private And Personal Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir अन्तरिक्षदेवत्याः नवमे / बृहन्तो महान्तस्त्रय: दिव्याः |देवत्याः नवमे / अथ दशमे शवला: कबुरा स्यः वैद्युता: विद्युहे वत्याः दशमे / सिमा सिमाख्यरोगवन्तस्त्रयः तारका: नक्षवदेवत्याः दशमे 2 // 10 // धूम्रवर्णान् बीनजान् वसन्ताय वसन्तदेवतानालभते नियुनक्ति दशमे / श्वेतान् बीन् / ग्रीष्माय दशमे / कृष्णवर्णान् बीन् वर्षाभ्यः दशमे / अथैकादशे अरुणान् रक्तान् लीन् शरदे एकासू आन्तरिक्षाबृहन्तोदिव्व्या शुबलावैधुता सिध्मास्तारकाः // 10 // [10] धूम्नान्न्वसन्ताय // धूम्मान्न्वसुन्तायालभतेश्वेतान्ग्री सम्मायकृष्णणान्न्वर्षाभ्योरुणाञ्छुरटेषतोहेमन्तायपिशङ्गाञ्छिशि राय॥ 11 // योगायत्री // पञ्चावयस्तिष्टुभेदित्त्यवाहोजगत्यैत्रिव दशे। पृषत: नानावर्णविन्दुयुक्तान् बीन् हेमन्ताय एकादशे / पिशङ्गान् लोहितमिश्रकपिलवान् / * बीन् शिशिराय एकादशे॥११॥ सार्धसंवत्सरास्वयः गायवैध एकादशे / सार्धदिसंवत्सरास्वयः त्रिष्टुभे एकादशे। अथ हादशे यूपे। दित्यवाह: दिसंवत्सरास्त्रयो जगत्ये हा / त्रिवत्साः त्रिवर्षाः त्रयोऽनुष्ट भे 133. For Private And Personal Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir हा० / तुर्यवाह: सार्धविसंवत्सरास्वय उष्णिहे हा० // 12 // पडवाहः चतुःसंवत्सरास्त्रयो विराजे हा० / उक्षाण: सेचनसमा युवानस्वयः बृहता हा० / अथ त्रयोदशे यूपे / ऋषभाः उक्षणा- 24 ऽप्यधिकवयस्का त्रयः ककुमे त्नयोदशे। अनड़ाह: शकटवहनसमर्था अजास्त्रयः पङ्क्त्यै त्रयो / धेनवः नवप्रसूता अजास्तिस्र: अतिच्छन्दसे त्रयो० // 13 // अथ चातुर्मास्यदेवाः पशव: श्वेता: त्साऽअनुष्टुभेतुर्यवाह उष्मिाहे // 12 // पृष्ठ वाहाविराजे // पुष्टुवा होविराज ऽक्षाणोबहुत्याऽषुभा ककुभेनुडाह:पुतये नवोति च्छन्दसे // 13 // कुष्माग्यौवाऽआग्नेयाबुम्भव’ सौम्म्याऽउपद्ध्व स्ता सावित्रात्मतुर्य सारस्वत्यःण्यामा पौष्णा पृश्नयोमारु ताब सौया इत्यन्तः / तत्र प्रथमं वैश्वदेवपर्वपशव उच्यन्ते / कृष्णग्रीवाः त्रय: आग्नेयाः त्रयो• शिव. बधव: कपिलास्वयः सौम्याः। अथ चतुर्दशे यूपे। उपध्वस्ता: उपध्वंसनमध: पतनं तद्गु- 520 विशिष्टा वर्णान्तरमिश्रिता वा त्रयः सविटदेवताः चतु। वत्सतर्यः तिस्रः सरस्वतीदे For Private And Personal Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir बता चतु / श्यामाः शुक्लकृष्णवर्णाः पौष्याः पूषदेवत्याः चतु / पृश्नयः तनुकाया विचित्रवर्णा वा चयो मरुद्दे बता: चतु। बहुरूपास्त्रयो वैश्वदेवाः चतु। अथ पञ्चदशे / वशाः वन्धयास्तिस्रा द्यावापृथिवीयाः द्यावापृथिवीदेवत्याः पञ्च // 14 // अथ वरुणप्रधासपर्वपशव उच्यन्ते। सञ्चरशब्देन कृष्णग्रीवा आग्नेया इत्यादयः पूर्वकण्डिकोक्ताः पञ्चदश पशव उच्यन्ते पञ्च सञ्चराणि हवींषि भवन्तीति वत् यथा चातुर्मास्येषु चतुर्वपि पर्वसु आग्नेयादीनि , हुरूपावैश्वदेवावशाद्यावापृथिवीयाः // 14 // उततासरा // ततासंञ्चराऽएताऽऐन्ट्राग्ना कुष्णावारुणा? पृश्नयोमागता का पञ्च हवींषि समानानि एवम वापि चतुणी पर्वणां सम्बन्धिमा माद्यानां पञ्चानां देवाना- माद्या एते पञ्चदश पशवः समाना एव भवन्ति / तेन सञ्चरा उक्ता: आग्नेयादयः पञ्चदश पशव उक्ता बृत्यर्थः। आग्नेया: कृष्णग्रीवास्वयः पञ्चदशे / सौमत्रा: बभ्रवस्त्रय: पञ्च / ( सावित्रा उपध्वस्ता: त्रयः पञ्च / सारस्वत्यः वत्सतर्य: तिस्रः पंच• / अथ षोड़शे / पौष्णा: श्यामा: त्रयः षोड़शे। एते संचरा: उक्ताः। एता: कद्रास्वय ऐन्द्राग्नाः इन्द्राग्निदेवता: For Private And Personal Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir षो०। कृष्णा: कृष्णवर्णास्त्रयो वारुणाः वरुणदेवता: षो० / पृश्नयः तनुशरीरास्त्रयः मारुताः षो.। बयः तूपरा: नि:शृङ्गा: कायाः कदेवता: षो० // 15 // अथ सप्तदशे। अथ साकमेधपशवः / प्रथमगर्भे जातान् बीन् अजान् अनीकवते अनौकवह एविशिष्टायाग्नये / आलभते नियुनक्ति सप्त। वातसमूहो वात्या तया सह वर्तन्तइति सवाल्याः वातमयास्तूंपुराः // 15 // अग्ग्नयेनौकवते // प्प्रथमजानालभतेमुरुद्धा सान्तपुनेभ्यःसवात्त्यान्न्मुरुयोगृहमधिभ्योबष्किहान्न्मरुद्भाक्क्रो डिन्भ्यः सम्सुष्टान्न्मा स्वतंवझोनुसृष्टान्॥१६॥ उवतासंञ्चुरा॥ ण्डलीमधास्थान् बौनजान् सान्तपनेभाः ममनाः सप्त / बष्किहान्चिरप्रसू तान्चौगृहमे धिभत्रो ममाः सप्त / संसृष्टान् सह सृष्टान् बीन् क्रीडिभत्रो ममाः सप्त / अनुसूष्टान् अनुक्रमेण जातान बीन म्वतवद्भयो मरुद्भाः सप्त० // 16 // अथाष्टादशे यूपे महाहवि: पशव: कृष्णग्रीवादयः पंचदश पूर्ववत् / अथैकोनविंशतितमे एता; कबुरास्वय ऐन्द्राग्नाः For Private And Personal Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir एकोन / प्राशृङ्गाः महितायां दीर्घः प्रकृष्टशृङ्गयुक्ता माहेन्द्राः मरेन्द्रदेवता' एकोमः / बहुरूपास्त्रयो वैश्वकर्मणाः विश्वकर्मदेवताः एकोन० // 17 // अथ पिलाष्टिदेवतापशवः / धूम्रा: कृष्णावर्णमिश्रा लोहितवर्माः बभ्रुनौकाशाः कपिलवर्ष सदृशास्त्रयः पशवः सोमवतां पितृणां / नियोज्या: एकीन० / बभ्रवः कपिला: धूमनीकाशाः धूमा इव नितरां काशन्ते इति उक्ताइसञ्चुराऽएताऽऐन्द्राग्नाप्पांशुङ्गामाहेन्द्राबहरू पावैश्वक ममुणाः // 17 ॥धूम्माबुबम्भुनौकाशा // पितृणासोमवताम्बभौधा म्मनौकाशा पितृणांबर्हिषाकृष्णणाबब्चनौकाशा पितॄणामगिन / श्वात्तानाङ्गष्णा पृषन्तस्यम्बकाः // 18 // उतताऽसञ्चुरा // उ तादृशास्त्रयः बर्हिषदां पितृणामेकोन / अथ विंशे / यूपे / कृष्णा: बच नौकाशा: अम्निष्वात्ताना पिटणां बिंगे / कृष्णाः पृषन्त: विन्दुयुक्ताः काम्वकदेवताः बिंशे // 18 // अथ शुनासीरीयपशवः / / तत्र संचरा: आग्नेयादयः पंचदशोक्ताः / तेन कृष्णग्रीवा आम्नेया: विशे। बभूवः सौम्या: For Private And Personal Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir - विशे। उपध्वस्ताः सावित्राः बिशे / / अथैकबिंशे यूपे / वत्सतर्यः सारस्वत्यः एकविंशे / श्यामाःपौष्णाः प. एक / एताः कर्बुराः शुनासौरीयाः शुनासौरदेवताः एकः / श्वेता: त्रयो वायव्याः वायुदेवत्याः एक० / खेता: वयः सौया सूर्यदेवता: एक० // एवं समाप्ताः यूपाः / इत्य खाद्याः सौयान्ता: क्तासंञ्चुराऽएाऽशुनासोरीया श्वेताब्बायब्यावताऽसौया * 16 // बसुन्तायंकुपिञ्चलान् ॥व्वुसुन्तार्यकुपिञ्जलानालभतेग्गीष्म्मा यकलविङ्गान्वर्षाभ्यस्तुित्ति छुरदेवर्तिकाहेमन्तायुकगञ्छि शिरायुविकरान् // 20 // [10] समुद्रायशिशुमारांन् // सुमुद्दा सप्तविंशत्यधिकशतत्रयं ग्राम्याः पशवः सर्वे उक्ताः // 16 // वसन्ताय कपिञ्जलानालभतइत्यादयः शिवम् विश्वेषां देवानां पृषन्तइत्येव मन्तायूपान्तरेषु त्रयोदश त्रयोदशारण्यापशव आलभ्यन्ते // 20 // बीन् शिशमारान् जलचरजन्तून् समुद्रायालभते / बीन्मण्ड कान् भेकान् पर्जन्याय / त्रयाणां For Private And Personal Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir मस्यानां मध्ये दो श्रद्धाः 1 अथ तृतीयेऽवकाशे एक शिष्टं मत्स्यमाः / चीन् कुलौपयान् सोमाय / जलजान् मित्राय / लीन् नाकान् नका एव नाकास्तान् जलचरान् वरुणाय // 21 // बौन हंसान् तिम्रो वलाका: वकपत्नीः वायबे। अथ चतुर्थेऽवकाशे / बौन क्रुञ्चान् पक्षिणः यशिशुमारानालभतेपर्जन्यायमुण्ण्डूकानुझ्योमत्स्यान्न्मुित्त्रायंकु लोपयान्न्वरुणायनाकान् // 21 // सोमायहु सान् // सोमायह सानालभतेब्वायवेबुलाको ऽइन्द्राग्निभ्याङ्घञ्चान्न्मित्त्राय॑मुगु . वरुणायचक्कवाकान् // 22 // अग्नयकुटरू'न्॥ अग्ग्नयेकुटरू नाल भतेचनुस्प्पतिभ्युऽउलूकानग्ग्नीषोमाभ्याञ्चार्षानुश्विभ्याम्मयूरो र इन्द्राग्निभ्याम् / बौन मद्न् जलकाकान् मित्राय / चीन चक्रवाकान वरुणाय // 22 // बौन कुटरून कुक्कूटानग्नये / ततस्त्रयाणामुलकानाम् मध्ये एकमुलूकम् वनस्पतिभ्यः / अथ पञ्च For Private And Personal Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir से मेऽवकाशे हो उनको काकधैरिणौ / बौन चापानग्नीषोमाभ्याम बौन्मयूरानश्विभ्यां बौन्कप:तान्मित्रावरुणाभ्याम् // 23 // त्रयाणाम् लबानाम् लावकानाम् मध्ये दो सोमाय / अथ षष्ठेऽवकाशे एकं लवं सोमाय / कौलौकान् पक्षिणः त्वष्ट्र / तिस्रो गोषादीः गवां मादयित्रीः पक्षिणः - देवानां पत्नौय: / तिस्रः कुलौका: पक्षिणीः देवजाभिभ्यः देववधूभ्य: जामिः स्वस्टकुलस्वियोः / न्मित्वावरुणाभ्यापोतान् // 23 // सोरायलवान् // सोमायल के बानालभतृत्वकौलीकान्गौषादी? वानाम्पत्कौंब्भ्यस्कुलोकादेवजा मिब्भ्योग्ग्नयेगृहप॑तयेपारुष्ण्णान् // 24 // अन्न्हें पारावतान्॥ अन्न्हें पारावतानालभतेरात्रैसीचापूरहोरात्त्रयो सन्धियोजतूसेिभ्यो / वो पारुष्णसउत्तान्यरूपतयोऽग्नये // 24 // अथ सममेऽवकाशे चौपारावतान्कलरवानन्हे तिस्रः सौचापू: पक्षिणीः रात्री तिस्रो जतः पानाख्या: अहोरात्रयोः मन्धिभ्यः / बौन्दात्यहान् कालकण्डान्मासेमाः बयाणां महतां सुपर्णानां मध्ये एक संवत्मराय / अथाष्टमेऽवकाशे दौ महान्तौ / पिशवम 43o For Private And Personal Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir मपर्णोसं वत्सराय // 25 // भूये पाखुन्मुषकान बौन पाङ्कान मूषकजातिविशेषानन्तरिक्षाय काशान / तझेदानेव दिवे लौन्नकुलान्दिग्भाः तत्र द्वौ अष्टमे / अथ नवमे एकम् / बौन्वच कानवान्तरदिदात्त्यौहान्त्संवत्सरायमहुत सपर्णान् // 25 // भूम्म्याऽआखून् // भूम्म्याऽआखूनालभतुन्तरिक्षायपाङ्गान्टुिवेकान्टुिग्ग्भ्योनकुलाब म् कानवान्तरदिशाभ्यः // 26 / / वसुंब्भ्युऽऋश्यान् // ब्वसुभ्य श्यानालभतेरु भ्योरुरू'नादित्येभ्योन्यङ्गुन्न्विश्वेभ्यो वेभ्यः पृषुतान्तसारभ्य कुलुङ्गान् // 27 // ईशानायुपरखतई // ईशा शाभाः // 36 // बौदृष्यान वसुभाः क्ष्यादयो सगविशेषाः / स्ट्रभाः करून / बौनाङ्ग नादित्य - भाः / अथ दशमेऽवकाशे बौन पृषतान्विश्वेभयो देवेभाः बौन कुलुङ्गान साध्ये भा: // 27 // परस्वतः सुगविशेषानोशानाय / वोन्गौरान्म गान्मित्राच बोन्महिषान्मणाय तब कं दशमे / अथे 134. For Private And Personal Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir कादर्शवकाशे बोन गवयान्गोसदृशानारण्यपणून हहस्पतये बोनुष्ठान त्वष्टे // 28 // प्रजापतयेपुरुषान्हरितनः बौन / बीन्ग्लुषोन्वक्रतुण्डान्याचे तंमधेय होप्लुषी एकादशे। अथ हादशेनायुपरखतुऽआलभतेमित्रायंगोरान्न्वर्गुणायमहिषान्हस्पतयेग व्याँस्त्वष्टट्राउट्रान् // 28 // प्रजाप॑तयेपुरषान्॥प्रजापतयेपुरषान्न्ह / स्तिनुऽालभतेबाचेप्लषौँ पञ्चक्षुषेमशकाञ्छोरवाटभृङ्गां // 26 // शतम् 1400 प्र॒जाप॑तयेच ॥ब्वायवैचगोमुगोबरंणायारगण्योमेषोयु मायुकष्णोमनुष्ष्यगजाय॑मुक्कटः शार्दूलायंरोहिदृषभायगव्योधिप्प ऽवकाशे एकं प्लु षिम / बोन्मशकान चक्षुषे / वयो भृङ्गाः श्रोबाय नियोज्याः // 26 // प्रजापतये च वाय च एको गोमृगः गवयः / एक पारपयो मेषो वरुणाय / एकः कृष्णो मेषो यमाय / एको मर्कट: मनुष्यराजाय / एको रोहिहष्यः शार्दूलाय / एका गवयौ ऋषभाय तदाख्य For Private And Personal Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir देवाय // अथ वयो दशेऽवकाशे एका वर्तिका क्षिप्रश्य नाय देवाय / / एक: कमिः कौट: नौलङ्गो: नौलङ्गवे / शिशमारः एको जलचरः सम ट्राय / इस्तौ हिमवते // 30 // मयुः प्राजापत्य: तुरङ्गपदनः किन्नरः प्रजापति देवतः / उलोमृगविशेष: हलिहाः सिंहविशेषः वृषदंशो विडालः ते बयोधावे / युनायुश्चर्तिकानौलङ्गोक्किमि समुदायशिशुमारॊहिमवतेहस्ती // 30 // [10] मयुरप्पाजापत्य) / / मयुरप्पाजापुत्याउलोहलिक्षणों षटु शस्तवाचेदिशाङ्गजोधुशाग्नेयोकलुविकोलोहिताहि पर करसादस्तत्वाष्ट्राब्बाचेक्कुञ्चः / / 31 // सोमायकुलुङ्गः / / सोमा एकः कङ्कः बका: दिशा दिग्भ्यः / एका धुक्षा पक्षिणी भाग्ने यो अग्नौदेवस्या। कलविङ्गः चटक: लोहिताहि: रक्तवर्णसर्पः पुष्करसदो पुष्करे सौदतीति कमलभक्षी पक्षिविशेषः ते तयः त्याष्ट्राः त्वष्टदेवताः / अथ चतुर्द येऽवकाशे एकः कुञ्चः वाचे॥ 31 // कुलुङ्गः कुरङ्को For Private And Personal Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir हरिण एकः सोमाय / श्रारण्यो वन जोऽजागः नकुलः शका शकुन्तिः एते तयः पौष्माः पूषॐ देवत्याः। क्रोष्टा स्टगालो मायोदेवसा। एको गौरमगः इन्द्रसा। पिहो मगविशेष: न्दशः अपि ककटः स एव ते तयोऽनुमत्यै / चक्रवाकः प्रतिश्रुत्कार्य // 32 // वलाका वकस्त्री सूर्यदेयकुलुङ्गऽआरगण्योजोनकुल शकातपोषणाकोष्टामायोरिन्द्रस्यगौर मृगपिड्वोन्न्यकुंककटस्तेनुमत्यैप्प्रतिश्श्रुत्कायैचक्कुवाकः // 32 सौरीबलाका // शार्ग:मुंजय शयागण्डकुस्तमैत्रासरस्वत्यैशारिम्पु रषुवाक् * श्वाविद्ड्रोमोशा लोवृकुत्पदाकुस्तेमुन्न्यसरखतुश वत्या। शार्गः पत्तिविशेषः / अथ पञ्चदशेऽवकाश सृजयः पक्षिविशेषः शयाण्डकोऽपि ते मैताः मितदेवत्याः पुरुषवाक मनुष्यवहादिनी शारि: शको सरम्त्य / श्वावित् सेधा भौमौ भूदेवत्या * श्वविद्भौमी इतावस्थाय प्रवरश्मि मति समतोत्यादिरूवेव वकार प्रताये इस्व स्वरादीविपाताते उष्ट्रोणी वावपियोच्यम्। For Private And Personal Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir है शार्दुलो व्याधः कः चितकः टदाकुः सर्पः ते तयो मनप्रवे। पुरुषवाक् शुकः सरस्वते समु दाय // 33 // सुपर्ण : गरुत्मान पार्जन्यः पार्जनबाय आतिः पाडौ वाहस: दर्विदा काष्ठकुट्टः ते तयः र पक्षिविशषा: वायवे / वृहस्पतये वाचस्पतये वाचो वाण्याः पतये इति वृहस्पतिविशेषणम् कापुरुषवाक् // 33 // सुधर्मा पाजन्न्यः // सुपुराण पाज॑न्न्यऽआति |हसोदबिंदातेब्बायवेबृहस्पतयेबाचस्पतयेपैङ्गराजीलुजऽअन्ति रिक्षाप्नुवोमुद्गुर्मत्म्युस्तेनंदीपुतयेद्यावपृथिवीय कूर्मम // 34 // पुरुषमुगप्रच्चन्द्रमसः // पुरुषमुगप्रच्चन्द्रमसोगोधाकालका * दार्बाधा ईदृशाय वृहस्पत्ये पैङ्गराजः पक्षिविशेषः / अथ षोड़शेऽवकाश अलजः पक्षिविशेषः प्रान्तरिक्ष: अन्तरिक्षदेवतः। प्लबः जलपक्षी मन: कारण्डव: मत्स्य: ते नदीपतये। कूमः कच्छपः द्यावाष्टथिवीयः द्यावाष्टथिवीदेवतः // 34 // पुरुषसग: पुंस्टग: चन्द्रमसः / गोधा कालका * दा घाटस्त इत्यत्र घातस्तइत्यवस्थायर्या त आघादनाडम्बरात्। आघाशब्दात्परस्तकारः परथमाईन्य मित्यनेन मूईन्य मापद्यते आडम्बरशब्दा त्परोनभवति इतार्थ केन तकारस्य टकारो भवति / For Private And Personal Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir - पक्षिविशेष: दार्वाघाटः सारसः ते वनस्पतीनाम् ककवाकुः तामच्डः सावितः सविदेवतः हमः वातसा नाक्रः मकरः कुलोपयः ते त यो जलचरविश षाः अकूपारसा समुद्रसा तयाणां 2 मधेो हौ पोड़ग। अथ सप्तदशोऽवकाश एकः कुलोपयः अकूपारमा। शल्यक: श्वावित् हिये देव्यै // 35 // एणी मृगौ अनः पालथ्या। मण्डको मृषिका तित्तिरिः ते त यः मर्याटस्तेवनस्पतीनाशकवाकुः सावित्वीहु सोव्वातस्यनाकोमकर कु. लीपयुस्तकपारस्यहियैशल्यक // 35 // एगण्यन्हः॥ एगण्यन्नोम गगडूकोमूर्षिकातित्तिरिस्तेसाणालोपाशऽआश्विन कृष्मोगत्वाऽ र ऋौजुतूसुषिलीकातऽइतरजुनानाजहंकावैष्मावी // 36 // अन्न्यु णाम्। लोपाशो वनचरविशेष: आश्विन: अश्विदेवतः। कृष्णो मृगः रातो। ऋक्षः भल्लकः जः मुषिलीका एतौ पक्षिविशेषौ ते तयः इतर अनानां देवानाम् / बहका गातसङ्कोचनो वैष्णवी विष्णु देवत्या // 36 // अनावापः कोकिलाख्यः पक्षिविश गोऽधमासानां पशः। श्रथा शिवम् 533 For Private And Personal Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir टादशे ऽवकाये। ऋष्यो मृगविशेषः मयूरः वीं सुपर्णो गरुन्मान ते गन्धर्वाणां पशवः / उद्रः त्रलचर: कर्कटसंज्ञः अपां पशुः / कश्यपः कच्छपः मासां मासानाम / रोहित् ऋष्यः / कुण्डणाचौ वनचरौविशेषः गोलत्तिकापि ते तयोऽभरमाम् / असितः कृष्णः पशुम॒त्यवे // 37 // वापोईमासानाम् // अन्न्यवापोईमासानामृश्योमयूरःसुपुगणस्तर्गन्धु 1. ह्यामुपामुद्दोमासाङ्कश्यपौरोहित्कुंगडणाचौगोलत्तिकात प्मुरसा मृत्त्यवेसितः // 37 // र्षाहतुनाम् // वर्षाहर्ऋतूनामाखुक शोमान्थालस्तेपितृणाम्बलायाजगरोब्बसुनाव पिचल कुपोतु उलू काशस्तेनित्त्यैवरुणायारण्योमेषः // 38 // ख़ित्रऽआदित्याना वाहः वर्षाभूः भेकी ऋतूनाम् / आखः मूषकः कश: मान्थालश्च तविशेषौ ते त्रयः पितृणाम् / अकोनविभे। अजगरो महासर्पः बलाय। कपिञ्चलो वसूनाम् / कपोत: उलूक: शशः ते नि त्यै। भारण्यो मेषो वश्णाय // 38 // खित्रः श्वेतः पशुरादित्यानाम् / उष्ट्र: दौर्षग्रोव: वृणिवान् For Private And Personal Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु० तेजस्वी पशुविशेषः संहितायां घृणिशब्दोदीर्घः वार्धीनसो कण्ठे स्तनवान: ते वयो मत्यै देव्यै। र समरः गवयोऽरण्याय देवाय / सरु: मृगः रौद्रः मद्रदेवतः क्वयि: पक्षिविशेषः / अथ विंशऽवकाश / कुटः कुक्कुट: दात्यौहः कालकण्ठः ते त्रयो वाजिनां देवानाम् / पिक: कोकिल: कामाय // 38 // खड्गो मृगविशेषो विश्वदेवदेवतः / एकः कृष्णः श्वासारमेयः द्वितीयः कर्णो म्॥ शिवत्वऽआंटित्यानामुष्टोघृणौवान्न्वा/नुसस्तेमुत्त्याऽअरण्या यसमरोहरू रोडक्वयि कुटरुद्दीत्यौहस्तेब्वाजिनाङ्कामायपिकः // 36 // खगोवैश्वदेवः // प्रश्वाकृषमा कर्णोगईभस्तुरक्षुस्तरक्षसामिन्द्रायसू लम्बकणणे गर्दभः तृतीयस्तरक्षुः मृगादनः ते त्रयो रक्षसां पशवः / सूकरः इन्द्राय। सिंहो ले मारुतः ममद्देवतः। कृकलास: सरटः पिप्पका पक्षिणी शकुनि: पक्षी ते चयः शरव्यायै / एकः पृषतः मृगविशेषो विश्वेषां देवानां पशुर्भवति विश्वेभ्यो देवेभ्यो जुष्टं नियुनज्मीति योज्यः। एवं षष्यधिक शतहयमारख्या: पशव उलाः / अत्र दाविंशतिरेकादशिन: सप्तविं म् का For Private And Personal Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शत्यधिकानि वीणि शतानि अश्वादयः सौर्यान्ताः षष्टाधिकं शतहयं कपिञ्चलादयः पृषतान्ता आरण्याः पशवः सर्वे मिलित्वा षट् शतानि नवाधिकानि पशवो भवन्ति / श्लोकश्च / षट् है कुर सिहोमारु त हकलास:पिप्पकाशुकुनिस्तेशव्यायविश्वेषा / न्देवानाम्पृषत // 40 // [4] इतिश्रीवाजसनेयसंहितायांदीगर्घपाठचतुर्विशोऽध्यायः 24 // शतानि नियुज्यन्ते पशूनां मध्यमेऽहनि / अम्वमेधस्य यत्तस्य नवभिश्चाधिकानि चैति / तेष्वारण्याः सर्वे उत्स्रष्टव्या न तु हिंस्याः // 40 // इतिउव्वटकृतौ मन्त्रभाष्ये चतुर्विंशोध्यायः 24 // 135 For Private And Personal Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir (1) शादंदद्भिः / इयमपि श्रुतिर्देवताश्वाङ्गयो चोदनांविदधाति / शादोदेवताविशेष: दन्ताअश्वाङ्गम्। शादंदद्भिः प्रीणाति / देवताभोक्त्री द्वितीययानिर्दिश्यते / अश्वाङ्गम्भोग्यं तृतीययाकर्णविभक्त्या * ॐ // शादंन्दुभिः // शाद॑न्दुभिरवकान्दन्तमूलैर्मुटुम्बखैस्तु गान्दोभ्यासरखत्याऽअग्नजिवज्जुिवायो ऽउत्मादम॑वक न्दनुतालुबाजु हब्भ्यामुपऽस्ये नवृषणमागण्डाभ्यामाढित्याँ सम्मश्रुभिःपन्थानम्धूभ्यान्द्यावापृथिवीवर्तीभ्यांबियतङ्घनौनका निर्दिश्यते / एवंहिविभक्त्योः सामर्थ्यभवति / युक्तञ्च होमकाले अङ्गाभिधानम् देवतायैहोमः / आचश्रुतिः। आज्यमवदानीकृत्वा प्रत्याख्यायम् देवताभ्य आहुतिर्जुहोतीति। दनिःशादाय (1) का. स्विष्ट कहनस्पत्यन्तरे शूल्य एहुत्वादेवताखानेभ्यो जुहोत्यमुष्य स्वाहेति प्रतिदेवतए शादप्रभृतित्वागन्तेभ्यो विमुखाच परेभ्य इतिर खिष्टकहनस्पत्योरन्तरे वनस्पतियागानन्तरं विष्टक्नद्यागात्य वं शूले श्रपितं मांसं प्राजापत्योऽश्व इति वचनत् * शादंददिनवैककाहिरण्यगर्भवतसत्रानोदयमानोमिनोयदश्व स्याष्टकोयत्त षडिमानुकद्द पंचदशसप्तचत्वारिः ठः शत्। For Private And Personal Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir PEMA खाहा / दन्तमूलैरवकायस्वाहा इत्येवम्प्रयोगाः / क्वचिच्चदेवता केवलाभवति / यथाशुक्लायम्वाहा यस्वाहेति / क्वचिच्चान्ययाविभक्त्यानिर्देशो ट्रयदेवतयोः / यथा अग्ने:पक्षति योनिपक्षतिरिति / एवंट्रव्यदैवतमप्रसिद्धम् यत्नपार्वादिभ्यो वगन्तव्यमिति पृथिवीत्वचेति यावत् // 1 // ( अश्वस्थ प्राणवायुना वातं प्रौणामि / अपानवायुना नासिकासंन्ने दे देवते प्रौणामि / अधभ्याशुक्लायुस्खाहाकृष्णायखाहापा- णुिपक्ष्माण्यवाझ्ऽहुक्ष वो वार्याणिपक्ष्माणुिपाया ऽदृक्षवः // 1 // [1] बातम्या णेनं // व्वातम्प्राणेनापानेनुनासिके ऽउपयामममधरणौष्ठेनुसद 3 स्तनेन श्रोष्ठेन उपयामं देवं प्रीण।मि। उपरितनेन ओठे न सत्मन देवं प्रौणामि / प्रकाशेनोपरितनदेहकात्या अन्तरं देवं प्रौणामि / उपसर्गस्य घामनुष्ये बहुलमिति अनोर्दीर्घः अन काशनाधस्तनदेहकान्या वाद्य देवं प्रोगामि। मी मस्तकेन निवेष्मन देवं प्रौणामि / निश्चितं बध्यते निर्बाधः शिरोऽस्थि मधासंलग्नो मज्जाभागः तेन स्तनयित्वं देवं प्रौणामि / प्रजापतये हुत्वा अमुभे स्वाहेति प्रतिदेवतं शादादित्वगन्तभोदेवताग्वाङ्गभगो देवताभोऽश्वाङ्गभाच वृतं जुहुयात् अनादेश वृतस्योक्तत्वात् / तत्र शादं दद्भिरित्यादिपुथिवा त्वचेत्यन्तः संहिताभागो ब्राह्मणं नमन्त्राः / For Private And Personal Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मस्तके भवं मस्तिष्क शिरोमधास्थी जर्जरो मांसभागः मस्तिष्क गोर्दमित्यमरः मस्तकमिष्यति गच्छति मस्तिष्कम् इष गती मस्तकमज्जेति क्षीरस्वामी तेन मस्तिष्क णाशनि देवं प्रौणामि / विद्युतं कनौनकाभ्यां प्रीणामीति पूर्ववत् / काभ्यां श्रोत्रम् अत्राश्वाङ्गात्मिका एव देवता कर्णाभ्यां कर्णशष्कलौभ्यां श्रोत्रं देवम् प्रोणामि / श्रोत्रेन्द्रियाभ्यां कर्णो देवी प्रौणामि / कण्ठाधोभागेन तेदनी देवतां प्रौणामि / शुष्कश्चासौ कण्ठश्च शुष्ककण्ठम् कण्ठस्ययःशुष्को निमांमो तरणप्प्रकाशनान्तरमनकाशनबाह्यन्निवृष्प्यम्मु स्तनयुित्नुन्निा धेनाश निम्मस्तिष्कणञ्चिद्यतनौनकाभ्यानर्णाभ्यार श्रोत्थी * चाभ्याङ्गतेदनीम॑धरकुण्ठनाप शुष्ककण्ठे चित्तम्मन्न्याभिरदि। देश: तेनापो देवताः प्रोणामि / पश्चादग्रीवा शिरा मन्येति अमर: ग्रीवापश्चाभागे कृकाटिकायां शिरा मन्या मन्यत इति मन्या संज्ञायांसमजनीतिक्यप् ग्रीवापश्चान्नाडीभिश्चित्त प्रोणामि / शीषर्णा शिरसादितिं देवतां प्रीणामि शीर्षस्य शीर्षनादेश: शसादौ। नितरां जर्जरीभूतेन शिरोभागेन नितिं देवं प्रौणामि / सम्यक् कोशन्ति शब्दायन्त तानि सोशानिगच्छुतोऽश्वस्य यान्यगानि वि For Private And Personal Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शब्दं कुर्वन्ति तैरगैः प्राणान् देवान प्रोणामि / स्तुप उच्छाये स्तुपेन उच्छितेन शिखाभुतेनाङगेन रेष्माणं देवं प्रौणाति // 2 // केशैः स्कन्धस्य रोमभिः मशकान देवान प्रोणामि / वहः स्कन्धस्त ने न्द्र प्रीणामि / कीदृशेन वह न वपसा अप इति कर्मनाम शोभनमपः कर्म पर्याणधारशनरवहनादिक है, यस्य सखपा: तेन। शकुनि: पक्षी तहत सादो गमनम् षद्लू विशरणगत्यादौ घञ् बेगवत कूर्दन तिशीनितिन्निजर्जल्ल्येनशीसङ्गीशै प्राणान्जेष्म्माण स्तुपेन // 2 // [1] मशकान्न्के” // मशकान्न्केशैरिन्द्र स्व पसाबहेनुबृहस्प्पतिशकुनिसुादेनकुञ्छुफैराकमण स्त्थूराभ्या मृक्षलाभिकुपिचलाञ्चुवचवाभ्यामनिम्बाहुब्भ्याञ्जाम्बोलनारण्य , तन वृहस्पतिं देवं प्रौणामि / शर्फ लोबे खुरः पुमान् खुरैः कूर्मान देवान प्रोणामि / रलयोरेक्यम् / स्थूलाभां गुल्फाभाामाकुमणं देवं प्रौणामि / गुल्फाधःस्था नाडा: ऋक्षलास्तामि: कपिञ्जलान * देवान प्रोणामि / गुल्फजान नोमध्यभागो जङ्घा ताभां जवं देवं प्रौणामि / अग्रपादयो न वं For Private And Personal Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir . भागौ वार, ताभग्रां अध्वान देवं प्रौणामि / जाम्बोरं जम्बौरतरी: फलं रलयोरभेदः तदाकारो जान मध्यभागी जाम्बीरस्त नारण्यं देवं प्रौणामि / अत्यन्तं रोचेते तो अतिरुचौ जान देशो ताभग्रामग्निं देवं प्रोणामि / अग्रपादयोन्विधो दोषौ करौ ताभ्यां पूषणं देवं प्रौणामि / सौ स्कन्धौ ताभग्रामश्विनौ देवी प्रोणामि / रोराबंसग्रन्थी तामा रुट्र प्रौणामि // 3 // अव षष्ठया मुग्निमतुिरुग्ग्भ्याम्पुषणन्दोर्खामुनिश्वनाव 6 साम्भ्यारुद रोग ब्भ्याम् // 3 // [1] अग्ने पक्षुतिर्बायोन्निपंक्षतिरिन्द्रस्यतृतीया सोमस्यचतुर्थ्यदित्यैपञ्चमोन्ट्ठाण्यैषष्ठीमुरुता सप्तुमौबहुस्प्पतेरष्टु देवती शः प्रथमयाङगोद्देश: ततोऽस्त्वित्यधयाहरः / अग्ने देवस्य पक्षतिरस्तु / पक्षः साधाविरोधयोः वले कालेपतन च रुचौ पावें प्रकल्पिते इत्यभिधानीक्त रत्व पक्षः पावाची पक्षस्य मूलं पक्षति: पक्षात्तिरिति मूलार्थ तिप्रत्ययः ततः पक्षस्य पार्श्वस्य मूलभूतान्यस्थीनि बकिशब्दवाचानि पक्षति शब्दे नोचान्ते तानि च प्रतिप्राय बयोदश भवन्ति षड्विए शतिरश्वस्य वञ्जय For Private And Personal Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir इति श्रुतेः / तेषां कमेण देवता सम्वन्ध वक्ति / तत्रादौ दक्षिणपार्खास्यां देवता आह अग्नेः पक्षति: प्रथमं दक्षिणपास्थि अाने रस्तु विभक्तिव्यत्ययो वा पक्षत्याग्निन् देव प्रौणामि / . वायोनि पक्षति: नीचा पक्षतिनि पक्षतिः द्वितीय दक्षिणपाश्र्वास्थि वायोर्देवस्यास्तु। एवमग्रेऽपि व्याख्य यम् / तृतीया पक्षतिरिन्द्रस्यास्तु / चतुर्थी पक्षति: समस्य / अदित्यै चतुर्थी षष्ठ्यर्था पञ्चमी म्यव॑म्म्णोनवमीधातुर्दशमौन्ट्रस्यैकादशीवरुणस्यहादशीयमस्यंत्र योदशी // 4 // [1] हुन्टागन्योऽपाति:सरस्वत्यैनिप॑क्षतिम्मित्व स्यतृतीयापाञ्चतुर्थोनित्यैपञ्चम्म्युग्नीषोमयोऽषष्ठीसुप्र्पाणांस फू पक्षति: अदिल्याः / षष्ठी पक्षतिः इन्द्राण्याः / सपतमी पक्षतिः ममताम / अष्ठमी पक्षति: बहस्प तेः / नवमी पक्षतिरय॑म्णो देवस्य / दशमी धातुर्देवस्य। एकादशी पक्षति: इन्द्रस्य द्वादशी पक्षतिः वरुणस्य / त्रयोदशी पक्षतिः दक्षिणपार्खास्थि यमस्य देवस्यास्त // 4 // अथ वामबाश्बास्था न्दे वानाह / प्रथममुपरिस्थ वामपावास्थि इन्द्राग्नोर्देवयोरस्तु / सरस्वत्यै निपक्षति: दितीया For Private And Personal Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir र पक्षतिः सरस्वत्याः / तृतीया पक्षतिर्मित्रस्य देवग्य / चतुर्थी अपां देवतानाम् / पञ्चमी नित्य अ. , निट तेः / षष्ठी अग्नीषोमयोः / सप्तमी सपीणां देवानाम / अष्टमी विष्णोदेवस्य / नवमी पृषणो 25 देवस्य / दशमी त्वष्टुः / एकादशी इन्द्रस्य / द्वादशी वरुणस्य / यमस्येयं यमौ त्रयोदशी पक्षतिः यमसम्व धिनी चतुर्थी प्रथमार्था // अथ समस्तयो: पार्श्व योर्दवानाह दक्षिण पाव द्यावापृथिव्योप्लमौबिष्णोरष्टमीपूष्ष्णो नमीत्वष्टद्देशमौन्ट्रस्यैकादशीव्वरण स्यहादशीयम्म्यैत्रयोदशीद्यावापृथुिब्योदक्षिणम्पावविश्वेषान्दे / वानामुत्तरम् // 5 // [1] मुरुतस्किन्धा // मुरुतास्कुन्धाब्दि प्रश्वेषान्देवानाम्प्रथुमाकोकसामुदाणान्हुितीयोदित्यानान्तृतीयौव्वा रस्तु उत्तरं वामं पार्श्व विश्वेषां देवानामस्तु / / 5 // अथाङगान्तराणां देवता आइ विभक्तिव्यत्यय: शिवम् स्कन्धप्रदेश मरुतो देवान् प्रौणामि / अश्वपुच्छोपरि तिस्रोऽस्थिपङक्तयः सन्ति तासां देवता आह। 538 कोकसं कुल्यमस्थि चेत्यमरः कौकसति शब्द करोति कौकसमस्थि प्रथमा कौकसा प्रथमानि For Private And Personal Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir - कोकसानि पुच्छोपरिस्थाद्यस्थि पङ्क्तिविश्वेषां देवानां प्रथमकीकसैविश्वान देवान प्रौणामि / द्वितीयास्थिपङ्क्तिः रुद्राणां द्वितीय रुद्रान प्रोणामि / तृतीयानि कोकसानि आदित्यानां तृतीयः है कौकसैरादित्यान प्रोणामि / यो: पुच्छं घुच्छेन वायु प्रोणामि / भासदी भासेते तो भासदौ मितम्बौ तावग्नोषीमयो: भासद्भ्यामग्नीषोमो प्रोणामि / ऋञ्चौ श्रोणिभ्यां पुन: पूर्ववदङ्गात् / तृतीया कटि: श्रोणि: कुकमतीत्यमरः थोणिभ्यां दक्षवामाभ्यां कटिप्रदेशाभ्यां ऋञ्चौ देवो 6 यो पुच्छमुग्नीषोमयोर्भासदौकञ्चौरश्रोणिभ्यामिन्ट्राबहुस्प्पती जुरुभ्याम्मित्वावरुणावुल्गाभ्यांमाक्क्रमण स्त्राभ्याम्बलुङ्गु / प्रोणामि / इन्द्राटहस्पती जरुभवाम् सक्थि क्लीवे पुमानकरित्यमरः ऊसभाामिन्द्राबृहस्पती देवी प्रोणामि / मित्रावरुणौ अल्गाभ्याम् अलमत्यर्थः गच्छत: ऊरुभां संयोगं प्राप्नु तस्तौ अलगी है - बङ्क्षणी ऊरुसन्धौ ताभयां मित्रावरुणौ प्रोणामि / स्थ रौ स्थ लौ स्फिचौ नितम्वाधोभागौ, नाभग्रामाक्रमणं देवं प्रौणामि / कुष निष्कर्षे कुष्य ते तो कुष्टौ नितम्वस्थौ कूपको आवत्तौ 156. For Private And Personal Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir ककुन्दरशब्दवाची ताभवां वलं देवं प्रौणामि // 6 // वनति सम्भजति वनिष्ठुः स्थूलान्त्र तेन पूषणं देवं प्रौणामि / गुटं त्वपानं पायुर्मे त्यमरः स्त्रीत्व छान्दसम् स्थ ला चासौ गुदा च स्यू लगुदा तया गुदस्य स्थ लभागेन अन्धाहीन् प्रोणामि / अन्धाश्च ते अयश्च सर्पास्तान् / सर्पान् गुदाभिः स्थ लगुदातिरिक्त गुदभागैः सर्पान् प्रौणामि / विहुत आन्दै : अन्न पुरीतदित्यमरः अम्गतो भजने शब्द अमतिभजत्यनेनान्नमित्यन्त्रम् अन्वे भवा आन्त्राः अन्वसम्बन्धिनो मांसभागाः तैविहुष्ठाभ्याम् // 6 // [1] पूषणव्वनिष्ठु नान्धाहीन्तस्थूलगुदांसुर्पान्गु - दाभिर्बिहुतऽअन्त्रैरपोबुस्तिनावृषणमाण्डाब्भ्यांब्वाजिन शेर्पेनप्प तो देवान् प्रौणामि / अपो वस्तिना वस्ति भेरधो योरित्यमरः वसतिमूवं यस्मिन् स वस्तिः नाभेरधो वर्तमानं मूवपुटं तेनापो देवताः प्रौणामि / मुष्कोऽण्डोबृषण: कोश: अण्ड एवाण्डः ताभयां लिङ्गोभयपाल स्थाभाां मांसपिण्डाभाां वषणं देव प्रोणामि / शेपो लिङ्गं तेन वाजिन देव प्रौणामि शिशू मेढ़ा मेहनशेपसी इति अमरः शि निशाने शिनोति भगमिति शेप: सान्तोऽदन्तश्च / प्रजारतसा शुक्र तेजोरतसी च वीजवौर्येन्द्रियाणि चेति अमरः रोङ् स्रवणे रियते शिवम For Private And Personal Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir स्रवति रेतो वीर्य तेन प्रजादेवतां प्रौणामि / मायुः पित्तं पततिस्रंसते पित्तंधातुविशेषस्तेन चापान देवान् प्रोणामि / पाति मलोत्सर्गमिति पायुगुदमुक्तातिरिक्त तेन गुदद्वतीयभागेन * प्रदरान् देवान प्रोणामि। कूश्मान् शकपिण्डैः / शको देशे नृपे विशि। विशि विष्ठायां शकम्य विष्ठायाः पिण्डैः कूश्मान् देवान प्रौणामि // 7 // पुनर्देवे षष्ठी अंगे प्रथमा / क्रूड घनत्वे कडतीति कोड: घनो वक्षोमध्यभागः स इन्द्रस्थास्तु क्रोडेन वा इन्द्रं प्रोणामि एवमग्रेऽपि पाजसे जाशेतमाचाषांन्न्पुित्तेनप्प्रदुरान्न्पायुनाकश्म्माञ्छकपिण्डै // 7 // [1] इन्द्रस्यकोड // इन्द्र'स्यकोडोदित्यैपाजुस्यन्टुिशाजुत्तवोदि - वलाय हितं पाजखं वलकरमङ्ग तददित्या: देवतायाः / अंसकक्षयो: सन्धिर्जत्रु। जायत ह) इति / पुंस्त्वमार्षम् तानि दिशां देवतानाम् / भसभर्त्सनदीप्तयोः बभस्ति दीप्यते भसत् लिंगाग्रं तददित्याः अस्तु // पुनर्देवे द्वितीया अंगे हतौया / हृदये उपशेते हृदयौपशं हृदयस्थ मांसं तेन जोमूतान् प्रौणामि पूर्यते पुरौतत् हृदयाच्छादकमन्वं तेनान्तरिक्षं देवम्प्रोणामि / उदरे भवमुदर्यमुदरस्थ मांसं तेन नभो देवं प्रौणामि शरीरावयवादात् / गौवाधस्तादागास्थित For Private And Personal Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir य. , हृदयोभ पावस्थे अस्थिनौ मतसे ताभनां चक्रवाकी देवी प्रौणामि / क बादाने अक्यते स्वादुतया गृह्यते वृक्का नान्तः पुंसायं स्त्रौत्य के इति क्षीरस्वामी बुक्का मुख्य मांसं तेन दिवं देवतां प्रौणामि वृक्को कुक्षिस्थौ मांसगोलकाबामफलाकृतौ इति यांतिका: / प्रकर्षेणानन्ति भुञ्जतेअन्नानौति प्लाशय: शिश्नमूलनाड्यः तन्नाडौहारैवान्नसा देहे सञ्चारात् रलयोरभेदः ताभिर्गिरीन् / देवान् प्रौणामि हृदयवामभागे शिथिल्लो मांसभाग: पुप्पुससंज्ञः प्लिह गतौ प्लेहते प्लीहा त्यभुसज्जीमून्न्हृदयौपुशेनान्तरिक्षम्पुरीततान उयेणचक्क है. वाकौमतस्न्नाब्भ्यान्दिवबुक्काभ्याङ्गिरोन्न्प्लाशिभिरुपलान्प्लोहन्नाव।। म्मीकान्लोमभिंग्लौंभिर्गुल्म्माहिराभि ई सवन्तीईदान्कुक्षि नान्त: तेनउपलान्द वान् प्रौणामि क्लोमति क्लोमा उदयो जलाधारः / हृदयस्य दक्षिणे यकृत् लामा वामेप्लीहापुप्प सश्चेतिवैद्य इति क्षरम्वामी क्लोमागलनाडीति कर्क: तैवेल्मीकान् देवान प्रोणामि शिवम ग्लायन्ति श्राम्यन्ति ग्लाबो हृदयनाड्य: ताभिर्गल्मान देवान प्रोणामि। हरन्त्यन्नरसमितिहिरा अन्नवाहिन्यो नाडयः ताभिः सवन्तीः देवता: पोणामि / जठरसा दक्षवामभागौ कुक्षी 54deg For Private And Personal Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir * ताभ्यां ह्रदान् देवान् प्रोणामि / उदरेण जठरेण समुद्र पौणामि / भमनाङ्गोत्थे न वैश्वानरं देवं पोणमि // 8 // नाभा उदराधःस्थग्रास्थिना वितिं देवतां पौणामि / रसो गन्धरसे स्वादे तिक्तादौ विषरागयोः शृङ्गारादिरसे वौर्ये देहधात्वम्बुपारदे इति विश्व: रसैन वीर्येण धातुविशेषेण वाघृतं देवं प्रोणामि / यूषः क्वथितो रसः पद्दन्नित्यादिना यूषन्नादेश: यूष्णा पक्वान्नरसेनापो देवताः पौणामि / विगुड्भिर्वसाविन्दुभिर्मरीचौदेवाः पौणामि / ऊष्मणस्तु निदाघोष्णयोभ्या समुद्दमुरेणब्वैप्रश्वानुरम्भस्मना // 8 // [1] बिधृतिन्ना, भ्या // घृतसैनापोयूष्याम चौप्रिभिन्नौहारमूष्म्माशीनं / भाः शष्पसहा अपीति विश्व: ऊष्मणा शरीरगतेनौष्णेन नौहारं देवं पौणामि / वस्ते मांसमिति में बसा शुद्धमांससा य: स्नेहः सा वसेति वैद्या इति स्वामी वसया मांसनेहेन शीनं देवं पौणामि। दूषोकाभिर्नेबमलादुनीर्देवताः पौणामि / असाते सृज्यते इति वा अमृक मधिरं पद्दन्न इत्यस, नादेश: अस्ना रक्षांसि पौणामि / अङ्गैः पूर्वानुक्कावयवैः चित्राणि दैवतानि पौणामि / रूप स्वभावे सौन्दर्ये नाणाके पशुशब्दयोरिति विश्व: रूपेण सौन्दर्येण नक्षत्राणि दैवतानि पौणामि / For Private And Personal Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir त्वचा चर्मणा पृथिवी देवी पौणामि / स्वाहेति मन्त्र राज्यं जुहीतीत्यर्थः / अत्र अग्निं हृदयेनाशनि हृदयायेणेत्यादि द्यावापृथिवीमा वाहेत्यन्ता अपि आहुतिर्जुहुयात् अश्वमेधिकत्वात् / है अवभृथे अप्सु मग्नस्य पिङ्गलखलति विक्लिधशुक्लस्य मूईनिजुहोति / (1) जुम्बकायस्खाहाइति। वारुव्वसयाप्पुष्ष्वाऽअश्श्रुभिाँदनोई षोकाभिरस्बारासिचित्वाण्य है। जैनक्षत्वाणिरूपेणपृथिवीन्चार्जुम्बुकायस्वाहा // 6 // [1] हिर ण्यगर्भ सम्॥ हिरण्यगर्भसमवर्त्तताग्ग्रेभुतस्य॑जात:पतिरेकडा आसीत्॥साधारपृथिवीन्द्यामुतेमाङ्गसम्मैदेवायहुवि|विधेम॥१०॥ णीविपदा शुण्डिभीदन्यदृष्टा / वरुणोवै जुम्बकइतिश्रुति: एषा चान्तर्जले जप्ता पापनाशनी , तदुक्तं हारीतेन जुम्बका नामगायत्री वेद वाजसनेयके अन्तर्जले सकृज्जप्ता ब्रह्महत्यां व्यपोह-28 तीति / / 6 || चतसः कदेवत्या: त्रिष्टुभः प्रजापतिसुतहिरण्यगर्भदृष्टाः प्राजापत्यपशू नामश्वा- शिवम् (1) का अवभृष्टान्तेऽसु मग्नस्य पिङ्गलस्य खलतिविक्लिधशुक्लस्य मूर्धनि जुहोति जुम्बकाय स्वाहेति / अवभृतथया 536 गान्ते एवंविधम्य पुमी मूर्धनि जुम्बकायेति मन्वेशाज्यं सतहोतं जुहुयात कौशस्य पुसः जले मग्नस्य पिङ्गलाक्षस्य खुलतः खल्वाटसा विलधसा दन्तुरसा शुक्लसमातिगौरस्येति सत्रार्थः / For Private And Personal Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir दीनां याज्यानुवाक्याः। द्वे व्याख्याते // 10 // 11 // वयं कम्मै प्रजापतये देवाय हविषा विधम हविर्दद्मः विभक्तिव्यत्ययः कशब्दस्य सर्वनामत्वमार्षम् / इमे हिमवन्तः बहुवचनादन्येऽपि हिमाचलप्रभृतयः पर्वताः प्रथमा द्वितीयार्थे सुपां सुपो भवन्तीति वचनात इमान्हिमवत्पभृत्यद्रीन्यस्य प्रजापतेर्महित्वं महिमानमाहुर्बुधाः महित्वेति विभक्ते राकारः / रसा नदी रसते: वाणुितोनिमिषुतोमहित्त्वैकुऽइद्राजाजगतोबभूव // यऽईशेऽअस्य / हुपिश्च्चतुष्प्पटुकस्म्मैदे॒वाय॑हुवि/विधेम // 11 // यस्येमे // हि मवन्तोमहित्त्वावस्यसमुक्षिसासहाहु // यस्मादिशीवस्यबा हकस्म्मै दिवाय॑हविर्षाविधेम // 12 // यात्क्मिदा // यऽत्वम शब्दकर्मण इतिनिह यास्कः / रसया नद्या सह समुद्रं यस्य महित्वमाहुः / इमा: प्रदिशः पूर्वाद्या: प्रकृष्टा आशा यस्य महित्वमाहुः यस्य बाहू भुजौ जगद्रक्षणाविति शेषः / सर्वं जगद्यस्य प्रजापतेर्विभूतिरित्यर्थः // 12 // कस्मै देवाय हविषा विधेमेति व्याख्यातम् / आत्मानं ददाति आत्मदाः For Private And Personal Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir उपासकानां सायुज्यपदः बलं सामर्थ्य ददाति वलदाः भुक्तिमुक्तिप्रद इत्यर्थः / विश्वे सर्वे मनुष्याः यसा प्रशिर्ष शासनमुपासते देवाश्च यस्य प्रशिषमुपासते तदुक्तम् यस्य जेयावधि ज्ञान शिक्षावधि च शासनम् कार्यावधि च कर्तृत्वं स स्वयम्भूः पुनातु व इति। किञ्च यस्य छाया आश्रयो ज्ञानपूर्वमुपासनम् अमृतं युक्तिहेतुः यस्य अज्ञानमिति शेष: मृत्युः दाबलुदायमाविश्वऽउपासतप्पशिषूय्वसाटुवाई // * वसाकायाम तुंस्वसामृत्य कस्म्मैदेवायहविर्षाविधेम // 13 // [4] आनः॥आनो भुट्टा कतबोवन्तबिश्वतोदब्धासोऽअपरीतासद्भिदः // देवानोय संसारहेतुः तदुक्तम् ये तद्विदुरमृतास्ते भवन्त्यथेतरे दुःखमेवोपयन्तीतिर तिश्वेताश्वतरो पनिषः // 13 // आनोभट्रा: / वैश्वदेवानांपशूनां याज्यानुवाक्यादश / पञ्चाद्याः सप्तमीचजगत्यः बिष्ट भोन्याः / श्रायन्तुआगच्छन्तु न:अस्माकम् भद्रा:भन्दनीयाः स्तुत्या: / शिव• *अतुतुक नभवति यस्यातिहायसहतिन / एतेभ्यः परस्य छसा तुकनभवति इति निषेधात् प्रा० अ०४० सू० तदक्त याज्ञवल्क्य शिक्षायां याति शब्दात्परतः सहशब्दात्तथैवच / केपरवति हायाचनतुग्वाजसनेयिक // For Private And Personal Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir क्रतव:यज्ञाः संकल्पाया / विश्वत:सर्वत: अदब्धासः अनुपहिसिताः / अपरीतासः अपरीतासः अपरिज्ञाता: केनचित् / उद्भिदः उद्देतारोन्येषां यजक्रतूनाम् कल्पानांवा / किञ्च देवा: न:अम्माकम् सदंसदा इच्छब्दएवार्थे सदाकालएव / वृधे वर्द्धनाय असन् स्युःभूयासुः / कथंभूताः / अप्रायुवः / अप्रमाद्यन्त: रक्षितारश्च दिवेदिवे अहन्यहनि तथाभूयादिति वाक्यशेषः // 14 // देवानाम्भद्रा।। थासटुमिहुधेऽअमुन्नप्पायुवोरक्षितारोदिवेदिवे // 14 // देवानाम्भहा // समुतियतान्देवाना तिरमिनोनिबर्तताम् // देवानाम ख्यमुपसेदिमाख्यन्देवानुऽायुप्रतिरन्तुजीवसे // 15 // तान्पू / , देवानां भद्राभन्दनीया सुमति: कल्पाणीमति: / अभिनोनिवर्ततामित्यनुषङ्गः / अस्मान्प्रत्य भिमुखं भवतु कथंभूतानां देवानाम् / ऋजूयताम ऋजुगामिनाम् / यहा ऋजुकामिनाम् / * ऋजुप्रगुणम् यजमानकर्तुम् येकामयन्ते तेतथोक्ताः। किञ्च / देवानां राति:दानम् अभि नःअमान्प्रतिनिवर्तताम् / ततोलब्धदाना:सन्ताः। देवानांसख्यं सखिभावम् / यजमाना:सन्तः 137 For Private And Personal Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir उपसदिम प्राप्नुयाम वयम्। ततीदेवा: न:अस्माकं भक्तानामायुः प्रतिरन्तुप्रवईयन्तु / किमर्थम् जीवसैचिरञ्जीवनाय // 15 // तान्पूर्वया / तान्देवान् पूर्वयाअकृत्रिमया खयंभुवा / निवि दानि विच्छब्दोवाग्वचन: / हूमहे आह्वयामोवयम् / तान्कानित्यताह / भगंमित्वम् अदितिम् में दक्षम् अखिधम् अच्युतसद्भवाम् दक्षस्यैतविशेषणम् / अर्यमणम् वरुणम्सोमम् अश्विनौच / बयानिविदाहूमहेब्बयम्भगम्मुित्त्वमदितिन्दक्षमुस्रिर्धम् // अद्युमणें वरुणः सोम॑मुश्विनासरखतीन सुभगामय॑स्करत् // 16 // तन्नः॥ तन्नोव्वातोमयोभुवातुभेषजन्तन्न्मातापृथिवीतत्पुिताद्यौः ॥ता / यैःसहितासरखतीसुभगा नःअस्माकम् मयःसुखकरत् करोत्विति॥ 16 // तन्नः / तत्भेषज मयोभु3 सुखस्य भावयिट नःअस्माकम् वातःवातु / अनुगृह्णातु / तच्चभेषजं मातापृथिवी अनुगृह्णातु / शिव. तबपिता द्यौः अनुगृह्णातु। तच्चग्नावाण: सोमसुत: सोमाभिषवकारिमा: मयोभुवः सुखस्यभाS वयितार: अनुगृह्णन्तु / तच्च हेअश्विनौ घिष्णाधारयितारोयुवं युवामपिशृणुतम् श्रुत्वाचा For Private And Personal Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अनुटौतम् // 17 // तमीशानम् / तम् दृशानरुदम् / कथंभूतम् जयत: जङ्गमस्य तस्त्युषः स्थावरस्यपतिमिवपतिम् धियचिन्वम् / धियाबुड्या संकल्पमात्र णजिन्वतिप्रोणति इतिधियचिन्वम् यहा धियाकर्मणा जिन्वतिौणातीति धियञ्जिम् अवसैअवनायतर्प्यणाय / हूमहे आह्वयामः वयम् / किञ्च पूषा न:अस्माकम् वेदसान्धनानाम असत्भूयात् धेवर्द्धनाय / रक्षिताच वाणडसोमुसुतोमयोभुवस्तदंशिवनाशृणुतन्धिष्ण्ण्यायुवम् // 17 // तमीशानम् // तमोशानुञ्जगतस्तस्त्थषुस्प्पर्तिन्धियज्जुिनवमर्व सेह महेवयम् // पूषानीयथाव्वेदसामसङधेरैक्षितापायुरदब्धालु स्तये // 18 // स्वस्तिनः // स्वस्तिनुऽइन्ट्रोवृद्धश्रवाहस्वस्तिन:पूषा के वायुःपाताच / अदब्धः अनुपहिंसितश्चान्येन केनचित् / स्वस्तयेअविनाशाय / तथाहूमहेवयमित्यनुषंगः // 18 // स्वस्तिनः / स्वस्ति स्वस्ययनम् नःअस्माकम् इन्द्रःदधातु स्थापयतु / कथंभूतः / वृद्धश्रवाः प्रभूतधनः महाशब्दीमहाकौर्तिर्वा / स्वस्तिनोस्माकं पूषादधातु / कथंभूतः। विश्व For Private And Personal Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir वेदाःसर्वनोवा। स्वस्तिनः तार्योदधातु। कथंभूतः अरिष्टनेमिः अनुपहिंसितामुः / वस्ति . न:अस्माकं वृहस्पतिश्चदधातु // 16 // पृषदश्वामरुतः / पृषन्तःशवला अखायेषां तेपृषदश्वाः / पृश्निमातरः। पृश्निधौमातायेषान्त एवमुच्यन्ते / शुनंयावानः शुभकर्तुचना प्रतिश्यान्ति तेशुभंयावानः। अातोमनिपक्वनिप वनिपश्चेतिवनिम् / विदथेषु यज्ञेषु जग्मयःगमनशीला: / 544 विश्ववेदा // स्वस्तिनुस्ताोऽअरिष्टनेमिस्वस्तिनोबृहस्प्प तिर्दधातु // 16 // पृषदश्वामुरुतः // पृषदश्वामुरुतु पृश्न्निमात रशुभंट्यावांनोविदथै पुजग्ग्मय // अग्निजिवामनवडसूरचक्षसी / विश्वनोदेवाऽअवसागमन्नुिह // 20 // भुर्णेभिशृयामदेवाभु आगमहनेतिकिः। यइत्यभूतामरुतस्ते अवसाअन्नन हविलक्षणेन आहूताः सन्तः आगमन्आगच्छन्तु इहत्यनुषंगः / येच अग्निजिह्वा अग्निजिह्वा अग्निमुखाहुतादाइत्यर्थः / मनव: चतु- शिवम् दशतेच अवसागमनिह / येच सूरचक्षसः आदित्यदर्शनाः विश्वदेवाः तेच नःअस्माकम् अवसागमन्नियन्ते // 20 // भद्रकर्णेभिः। भद्रमनुकूलं कर्णेभिः कर्णाभ्यांशृणुयाम हेदेवाः / 544 For Private And Personal Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir भद्रम्पश्येम अक्षभिः अक्षिभ्या हेयजत्राः यजनीयाः / किश्च / स्थिरैरङ्गैः अशिथिलैः अङ्गैः। तुष्ट वांसः देवान्स्तुतवन्तः / तनूभिः भार्यापुत्रपौत्रादिकाभिस्तनूभिः सहिताः व्यसैमहिव्यनुवार महि / देवहितं देवैर्यत स्थापितं मनुष्याणामायुः तत्व्यनुवामहि // 21 // शतमित् / शत मपिशरद:अन्ति अन्तिकेसमीपेभवथ देवा: / आकल्पकालमित्यभिप्रायः / ऋषिभिरुदितमेतत् / / इम्पश्येमाक्षभिर्यजत्त्वा // स्त्थुिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभियं महिदेवहितस्यदायुः // 21 // शुतमित् // शतमिन्नुशुरटोऽअन्ति / देवायत्वानश्चकाजुरसन्तुनूनाम् // पुत्रासोयत्वपितरोभवन्तिमा / यत्रयस्मिन् शरदांशते न:अस्माकं यूयञ्चक्रकृतवन्त: जरसंजरान्तनूनाम जरानिमित्ताम् शक्तिमित्यभिप्रायः / किञ्च / पुत्रासोय वपितरोभवन्ति पुत्वाअग्नयः यत्रशरदांगते / यजमानस्यपितरी जनितारीभवन्ति। तदुक्तम् तत्रवैप्रजापतिः प्रजा: समजदूत्युपक्रम्य / तस्माज्जनयित्वाविहीति / यत्रपितरोभवन्ति एतदप्युक्तमेव / सयत्रमयते पत्रैनमग्ना वभ्यादधाति तदेषोअग्नेर For Private And Personal Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु धिजायते सएषपुत्रवः सन्मिताभवति / अथवापुत्रा एवपितृणामौद्ध देहिकं कुर्वाणाः पितरोयनम ॐ पद्यन्ते तदपिशरदांशतमन्तिक एवेति / यतएवमतीब्रूमः मानोमध्यारीरिषता युर्गन्तोः। मारीरि षत् माहिंसीष्ट नोस्माकं मधामधा अकालएवायुः / गन्तो: गन्तगमनशीलम् / उक्तञ्च सञ्चित्य सञ्चित्यतमुग्रदण्डं मृत्युमनुष्यस्य विचक्षणसा। वर्षासुसिक्ताचर्मवन्धाः सर्वेप्रपना: शिलीभवन्तीति // 22 // नौमुड्या रिषुतायुगन्तो // 22 // अदितुिोरदितिरन्तरिक्षुमदि तिर्मातासपितासपुत्व // विश्वेटुवाऽअदितुिपञ्चजनाऽअदि तिर्जातमर्दिति नित्वम् // 23 // [10] मानः // मानौमित्त्वाव सर्वात्मक त्वेनादिति मंत्रहकस्तौति अदितिश्च अन्तरिक्षम् अदितिश्चमाता साचपिता साचपुत्र: सतिछान्दसोलिङ्गव्यत्ययः विश्वेचदेवाः पंचजनाः मनुष्याचअदितिः किम्बहुनोक्तेन पदितिरेव- शिवम जातंभूतम् अदितिरेवजनित्वजनिष्यमाणम् अथवानैवादितिरने नोच्यते किम्पुनः एतान्येवद्यौः 545 प्रभृतोनिअदानानिमहाभाभ्ययुक्तानीति 23 मानः / अश्वस्तोमौयंजुहोति / द्वाविंशत्यऋग्भिस्विष्ट For Private And Personal Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir भिः / तृतीयाषष्ठयोजगत्त्वौ / दीर्घतमाऋषिः / अश्वस्थस्तयमानत्वात्या तेनोचाते सादेवतेतिन्यायन अश्वोदेवता / तृतीय:पादःपथमव्याख्यायते यच्छब्दयोगात् / यत्वाजेनअश्वस्य / देवजातस्यदेवैर्ज2 नितस्य / सूरादश्व वसवोनिरतष्टइत्त्येतदभिपायम्। सप्तसरणस्य। प्रवक्षनाम: उच्चारयामः / विदथे / यज बीर्याणि चरित्राणि तत्मापरिख्यन मागह न्तु न: अस्माकंदेवाःस्तुत्याः नत्वश्वप्रभृतयस्तियञ्चरुणोऽअर्युमायुरिन्द्रऋभुक्षामुरुतुडपरिक्वान् // यहाजिनौटुवात स्युसप्त', प्रवृक्षामोबिदधब्बोर्खाणि // 24 // बन्नुिर्णिा // व निर्णिजारेक्णसाप्पावतस्यगतिङ्गंभीताम्मुखतोनय॑न्ति // सुप्पाङ / इतिण्यागो / अतोब्रवीमिमापरिख्यन्निति / यद्यपिगो दिताः तथापिअश्वादिरूपेणदेवानामेवस्तुतत्खादित्याशयः। केते देवाः मित्र:वरुणः अर्यमाअयुर्वायुः वकारलोपन / इन्द्रश्च भुक्षामसतश्च // 24 // यनिर्णिजा। यदानिर्णिजा निर्णेजनेनोदकस्नानेन संस्कृतस्य पालम्भनकालेयत्नापनमश्वस्यतदेतदुक्तम् / तथारकणसा रेवणतिधननामधनेनमणिकाख्येन प्रातस्य के For Private And Personal Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु०, सरपुच्छेषषचितस्य अश्वस्य / सुवर्णान्मणीन्सरपुच्छेषु पन्यावपन्ति तदभिप्रायमेतत् / रातिन्दानम् आजासक्तधानालाजालक्षणम् गृहीतांमुखतो नयन्ति / अश्वायरात्रिहुतशेषं प्रयच्छन्तीत्त्येतदभिवायम् / तत् तदा अश्वस्य मुप्राङ्मुष्ठ प्रगञ्चन: अजःमेम्यत् मेम्यदितिशकानुकरणम् / मेमेइतिशब्दकुर्वाण: / विश्वरूप: नानावर्ण: कृष्णाग्रीवआग्नेयोरराटेपुरस्तादित्येतदभिप्रायमेतत् / किञ्च इन्द्रापूष्णोः इन्द्रस्यपृष्णश्चप्रियंपाथः अन्नपशुलक्षणम अप्येति अभ्याजोमेम्म्यहिश्वरूपऽइन्द्रापूष्ण्णोऽ प्रियमप्प्यतिपार्थः // 25 // एष। च्छार्गः // पुरोऽअश्वनव्याजिनापूष्ष्णोभागोनयतेविश्वदेश्यः॥ गच्छति / यदिहपठाते सौमापौषणः श्यामोनाभ्याम तदेवान्यम्यांश्रुतौपठाते इन्द्रापौष्णाः श्यामोनाभामिति / तदयमन्त्रोभिवदति / इन्द्रापूष्णोः प्रियमप्येतिपाथइति // 25 // एषछागः / एषआग्नेयश्छाग: पुरः अग्रतोस्थितः नीयते अश्वनवाजिनाव्यापकनसहितः / पू- शिवम् ष्णश्च पोषकस्याग्नेश्चभागोभजनौय: नीयतेअश्वैःसह / सोपिपय्यंग्यएव / विश्वेदेव्यः विश्वभाः सर्वेभोदेवेभाः हित: अग्ने:सर्वदेवात्मकत्वात्सर्वदेवप्रियत्वम् / कस्मात् अभि प्रियम् अभि For Private And Personal Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir प्रेतंयत् / यच्चपुरोडाशम / पुरोडाशर्तम् अर्वत / अश्वेनसहितम् / अश्वस्तस्मिन्कालेसंज्ञप्यते पशुपुरोडाश: क्रियते तदेतदुक्तम् / त्वष्टाच एनमजम् / तदासोश्रवसाय शोभनान्तकरणाय जिन्वतिप्रीणाति / सहितस्याधिकारइति / 26 // यद्दविष्यम् / यदाहविष्यम् ऋतुश:क्टतावृतौ स्वचारिणं देवयानम् देवानाम् प्रापणीयम देवयानमार्गगामिनम्बा आदित्यवदनिवारिअभिप्रियंत्यत्त्पुरोडाशुमवतात्वष्टेदेन सौश्व॒सायजिन्वति वर्द्धविष्ष्यम् // बईविष्ष्यमृतुशोदेवयानुन्त्रिम्मानुषाः पर्यश्बुन्नयं न्ति // अत्रांपुष्पण प्रथुमोभागऽएंतिवज्ज्ञन्दे॒वेभ्यः प्प्रतिवेदय तगतिवा। विसंस्कृतम् / मापनंव्य'जनसुवर्ण मणिकप्रवारैः मान षःऋत्विग्यजमाना: परिणयन्तिअश्वम् / अत्रत वेत्यर्थः / तम्मिन्कालेपूष्ण: पोषकसमाग्नेः प्रथमोभागोजाख्य:एतियनम् / देवेभ्यःप्रतिवेदयन अजः स्वकीयेनशबेन। चरकश्रुतौ पूष्णो ललाटइतिपठ्यते तदभिप्राय 188 For Private And Personal Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मेतत् // 27 // होताध्वयु:। होतातत्रशंशिता सुविप्रति संबन्धः। यस्मिन्यन्जे होताविशंसिता। शस्त्राणामपिसाधु मेधावी साधुब्राह्मणोवा अध्वर्युश्च यस्मिन्यज्ञ श्रावयाः आभिमुख्य न वयतिकर्मणीत्यावया: अग्निमिन्धः अग्निदीपक: ग्रावग्राभः / ग्रावग्राहः सोमाभिषवायग्रावग्रहणशील: उतअपिशंस्ता। तेनयज्ञेन साध्वलकृतेन स्वेष्टे न साधुइष्टे नच / वक्षणा: न्नुजः // 27 // होताद्ध्वर्यु:॥ होताध्वयंरावयाऽअग्निमिन्धो ग्यावग्याभऽतस्तासुविप्रः ॥तेनबुज्नुस्वरङ्गतेनखिष्टटेनब्बी क्षणाऽआणध्वम् // 28 // पब्रुस्काऽउत॥ येवूपवाहाश्च्चुषाल नदीः देवानांतुष्टिकराः। पयोदधिपयसा पुरोडाशमांसैः। आपृणध्वम् आपूरयध्वम् अकृपणन्दातव्यमित्यभिप्रायः // 28 // यूपब्रस्काउतयूपं येवश्चन्ति तएवमुच्यते। उतअपिच येयूपवाहाः यूपयेवहन्ति / चषालयेअश्वयूपायतक्षति येजनाः अश्ववन्धनयूपायचषालं यूपागभागन्तक्षति। तक्षन्तीति प्राप्तेछान्दसमेकवचनम् साधुसम्पादयन्ते। येचअर्वतेअश्वायपचनम्प For Private And Personal Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir च्यतेनेनेतिपचनकाष्टादिसम्भरन्ति / उतोअपिच तेषाञ्जनानां संवन्धिनी अभिगूर्तिः गुरीउघमने। आगूरणमभिगतिः स्वकालसर्व करणीयमितिबुद्धिः इन्वतुव्याप्नोतु // 26 // उपप्र / उपप्रागात् उपतुसुमत् स्वयमित्यर्थतियास्कः / मेममअधायिनिहितम यत् मत् मननम् , किंतदितिचेत् / देवानाम्आशाः शंसनानि साधुसाध्वयं पशुरागच्छेदित्येवमादीने / उप येऽप्रश्वयूपायुतक्षति॥वेचाबतुपचन सम्भर॑न्त्युतोतेषामुभिर्ति नऽइन्वतु // 26 // उपप्प्र // उपप्पागात्सुमन्न्मेधायिमन्न्मदेवा नामाशाऽउपवीतपृष्ठः // अन्न्वैचिप्णाऽऋषयोमदन्तिदेवानाम्पु / टिटेचकमासुबन्धुम् // 30 // बहुाजिनः // यड्ढाजिनोदामसुन्दानम र आगतः वीतपृष्ठः साधुपोषणेन प्राप्तपश्चाद्भागः। कामितपृष्ठोवा / अश्वपृष्ठहिसर्वएवारोढंकामयन्ति / यतएवमतोग्रवीमि / अन्वेनंविप्राऋषयोमदन्ति / अनुमदन्तिअनुमोदन्ति एनमखं विप्राक्टषयश्च / स्वयञ्च देवानां पुष्टेपोषणाय / चकमकृतवन्तः / सुवधुंशोभनवन्धनम् शोभनार्थवादंवा // 30 // यदाजिनः। वेजनवतः / दामग्रीवावधनरज्जुः सन्दानंसम्यगवच्छेदकं पादव For Private And Personal Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir 25 न्धनम् अर्वत: अश्वस्य / पञ्चशीर्षण्या शिरसिवड्दानियोजनीया रज्जुः अस्याश्वस्य / यहाघः पादपूराण ।प्रस्थाश्वस्य प्रभृतम्प्रहृतं निक्षिपतम् आम्थेमुखे तृणम् सर्वाणितानि तेतव हेयजमान। अपिदेवेषु अपिप्रजापतये अस्तु / सन्वितिप्राप्तेवचनव्यत्ययः / / 31 // यदश्वस्य / यत्अश्वसा ऋविष: अश्वाङ्गभूतसाक्रव्यसामांससा क्रव्यंविकृन्ताज्जायतइतिनैता: / अङ्गम् / बतोयाशीर्षण्यारशुनार रस्य // वहाघास्युप्प्रभृतमास्ये टाई सा तातऽअपिटुवेष्ष्वस्तु // 31 // [8] वदश्वस्य // कृविषोम क्षुिकाश बडास्वरोस्वधितौरिप्तमस्ति // बड्वस्तयोडशमितुर्यन्नुखेषुसळता तुऽअपिढेवेष्ष्वस्तु // 32 // वटूवड्यम् // बदूवड्यमुदरस्यापुवातिय मक्षिकापाश अशितवती। यद्दा / म्वरोस्वधितौरिप्तमस्ति। यच्च स्वरीपश्वञ्चनकाले स्वधि तौशासछेदनकालं लिप्त लग्नमस्ति / यच्च हस्तयोशमितुः रिप्तम् यच्चनखषुरिप्तम् / सर्वाताते - अपिदेवेष्वस्तुइतिव्याख्यातम // 32 // यदूवध्यम यत् ऊवध्यम भक्षितमपरिणत मामाशयस्त्यमू For Private And Personal Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir वध्यमुच्यते / उदरसा अयुतंपृथग्भूतम अपवातिगन्धायते / यश्च आमस्तपक्वसाक्रविषः मांससागन्धः अस्तिविद्यते। सुकृतातच्छमितार.कृण्वन्तु। तत्सर्वशमितार: विशसनकर्तारः सुकतानिसुसंस्कृतानिदोषरहितानि कुर्वन्तु / उतअपिच मेधंमेध्यं यज्ञार्हम / शृतपार्क देवयोग्यपाकंपचतु अतिपक्कमौषत्पक्वञ्चमाकुर्वत्वित्यर्थः // 33 // यते। शृलेसशेषश्रपणम, तदभिवदत्ययं / ऽआमस्यकवि|गुन्धोऽअस्ति // सुकृतातच्छमितारः कृगगवन्तुतमे तुपाकम्पचन्तु // 33 // यत्ते // यत्तुगात्वादग्निापुच्यमाना दुभिशूलन्निहतस्यावधावति // मातशम्म्यामाश्रेिषन्न्माटणेषुदेवे / मन्त्रः / यच्चतेतवगाबादवयवात् अग्निनायच्यमानात् ऊष्मरूपं रसोवा अवधावति गच्छुतितथानिहतसा निशेषेणहतसा यदङ्गरसरूपम अभिशूलंशृलमभिलक्ष्यमांसाढत्कृष्ट धावतिगच्छति / माश्रिषत्माश्लिषत् तदङ्गभूम्याम माचटणेषु / किंतु देवेभ्यः तत् उशद्भ्य: वशकान्ती For Private And Personal Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir अ. कामयमानेभ्यः रातन्दानम अस्तु / / 34 // येवाजिनम् / येजना: वाजिनमश्वंपरिपश्यन्तिपक्कंसन्तम्। येच एनमश्वम् माहुः / किमाहुः सुरभिरयमश्व: अतोनिहर किंचिदस्मभ्य देहीति। इतिशब्दःप्रकारवचन: येच पर्वतोश्व स्यसंबधिनी मांसभिक्षाम्उपासते हुतशिष्टमांसयाञ्चांकांक्षते ।उतोतेषाम् , अपिच तेषांसंवन्धि नीया अभिगूर्तिः सा नः अस्मान् इन्वतु व्याप्नोतु / यहादेवपरीयं मन्वोब्भ्युस्तदुशोगतमस्तु // 34 // येबाजिनम् // येवाजिनम्परिपश्य / न्तिपकंवाईमाहुसंरभिन्निहरैति॥ येचावतोमासभिक्षामुपा संततोतामभिर्तिनऽइन्न्वतु // 35 // यन्नीक्षणम् // बन्नीक्षण व्याख्येयः / येदेवा: वानि परिपश्यन्ति पक्वम् कदाहोष्यतीति विलंवंदृष्ट्वा / येचसुरभि रयमखोतनिह रनिःशेषेणास्मभा देहीत्याहुः / येचा तो मांसभिक्षामुपासतेलिप्सते उतोतेषामभिगूर्त्तिनन्वतु / वयन्तुदेवानामन्यभूतात्त्यभिप्रायः // 35 // यन्नीक्षणम् / यत्नीक्षणम् नितरामीक्षाते शृताश्च तव संवन्धिनीर्था इतियेनदधधादिना तत् नौक्षणम् / मांस्पचन्याः मांसस्यपचियुट्घजोरित्य शिवम 556 For Private And Personal Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir कारलोपः / उखायाः यानिचपात्राणि यूष्ण: वसायाः यूषशब्दस्ययूषन्नादेश: षष्ट्ये कवचन उपधालोपश्च / आसेचनानिआसिचातेयेष्वित्त्वासेचनानि / जमण्याजमशब्दस्यधारणार्थयत्प्रत्ययः / यानिचऊष्मण्यानि / पिधाना। पिधानानिच चरूनांस्थालौनाम् / येच अंका: अंकोपलक्षकाः / शरीरवचनोकशब्दः / याश्चसूनाः अखविशसनाधिकरणभूताः वेतसमय्य: म्स्प्प चन्न्याऽउखायावापात्वाणियुष्गणऽसेचनानि // जुष्म्म / ण्यापिधानाचरूणामुङ्गा सुनापरिभूषन्त्यपूर्वम् // 36 // मात्वा // मात्वाग्निई'नयोडमर्गन्धिोखाभ्राज॑न्युभिवितुजग्घ्रिः // दृष्ट तानिसर्वाणि / परिभूषन्ति / भूषअलङ्कार। अलंकुर्वन्ति / परिरक्षन्तिवा / अवम् // 36 // मात्वाग्निः / मात्वा हेअश्व अग्निःध्वनयीत् / ध्वनि:शब्दकर्मा शब्दंकारयेत् कथंभूतः धूमगंधिः अल्पधूमावरणः मांसंहिपचन्नग्निर्दहन्नयल्पधूमावरणोभवति / तच्चदह्यमानसमसिमाशब्दकरो त्यतएवमुचाते / माच उखाभाजन्ती संदीपिता अत्यन्ताग्निसंयोगेन / अभिविक्त श्रीविजी For Private And Personal Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir भयचलनयोः अभिविनक्तु / अभिनष्टाविीर्येतवा / उनावावृद्धा मांसरसंतदिहोच्यते / जग्घ्रिः गन्धग्रहणशीलाउखा / नन्वचेतनोखा कथंगन्धञ्जिघ्रति / उच्यते / अधिष्ठात्रोत्र देवताः सन्तीति पुरतात्प्रतिपादितम् तच्चानपुन: स्मार्य्यते इष्टयोगेनसङ्गतीकृतम् वीतंकामितम् अभिगृतम् अभाद्यतम् वयकृतं चादानकाले / यद्दा दृष्टंप्रयाजैः वीतमाप्रीभि: पर्यग्निकृतम् अभिगूर्त येयजामह इत्यागोक्तम्वषटकृतं वषट्कारेणसंस्कृतम् / तन्तादृशम् देवाएवदेवासः प्रतिगृबीतमुभिगूतवर्षटकतुन्तन्देवासुप्रतिगृभगुन्त्यप्रवम् // 37 // निकमणन्नुिषद॑नम् // निकर्मणन्निषदनंबिवर्तनबच्चुपडीशमवता मन्तिप्रतिगृह्णन्ति अश्वम् // 37 // निक्रमणनिषदनम् / निक्रमणंगमनम् वसतिस्थानात् / निषदनं तव वस्थितिः / विवर्तनंभ्रमणम् / यान्ये तानि चेष्टिताति / यच्चपड़ोशम / पादे-शिवम् षुविशतौति पड्डिशम्पादवन्धनमुच्यते। अर्वतःअश्वस्य यच्च पपौ पौतवानुदकम् / यच्चघासिं यवसंजघास। घस्तृअदने भक्षितवान् / सर्वाणितानि निक्रमणादीनि तेतव हेअश्व अपि For Private And Personal Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir देवेषु अपिप्रजापतये अस्तुसन्तु तान्यपि निरर्थकानिमाभूवन्नित्याशयः // 38 // यदश्वाय / यत् अश्वाय संजप्यमानाय वासःउपस्तुणन्ति / सर्वतआच्छादयन्ति / यच्च अधौवासम् उपछिादनयोग्यं वासउपस्तृणन्ति / यानिच हिरण्यानिउपस्तृणन्ति अम्मैअश्वाय। यच्च संदाबचपपौयच्चघासि घासुसह्यता अपिदेवेष्वस्तु // 38 // बद। पूर्वाय॥वदरप्रायवासऽउपस्तृणन्त्यंधीवासंट्याहिरण्यान्यस्म्मै॥ सन्दानुमन्तुम्पड्डीशम्प्रियादेवेष्ष्वायांमयन्ति // 38 // [8] यत्ते // साटेमहाशूतस्यु * पायांवाकर्शयावातुतोट॥ सुचेताहुविषो / र सन्दीयतेनेनेतिसंदानं शिरोवंधनम् अर्वन्तम् अर्वतेइतिविभक्तिव्यत्ययः अश्वायेतिसमानाधिकरण्यात् / यच्च पड्डीशम्पादवासः एतानिप्रियाणिदेवेषु आमयन्तिगमयन्ति // 38 // यते सादे / हेअश्व यत् तेतव साद। सीदन्त्यश्ववाराअस्मिन्निति सादोश्वपृष्ठम् तस्मिन्सादे 44 पाषण्ये त्यत्र परन्तुरेफ्ह काराभ्यामिति मूत्रण षकारस्थ हित्वन्नभवति कुत: ऊष्म्मान्तस्थानभ्यश्चस्पर्शः // एतेभ्यः परः स्पशो बिरुचात्त्वत् / तेनरेक्षकारीदौण काराविति सिद्धम् प्रा० अ० 4 / मू० 102 / 189. For Private And Personal Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir अवस्थितोश्ववरः / महसामहत्वेनान्वितःसन् कथंभूतस्यकृतस्य शब्दानुकरणमेतत् शृल्कारकुर्वत: अनन्तरम् पावाकशयावातुतोद। तुदव्यथने। तुदतिव्यथयति सुचाइव तातानि यथासु चाहविष: हविरितिविभक्तिव्यत्ययः अध्वरेषु यज्ञ षु जुह्वति एवंसर्वाणि तेतव ब्रह्मणावयी- * लक्षणेनसूदवामिक्षारयामि आहुतित्वेनकल्पयामीत्यर्थः // 40 // चतुस्त्रिंशत् / चतुस्विशत् वक्रयः / वाजिनः वेजनवतोश्वस्यदेववन्धोः देवानांप्रियसा / देवावन्धवोस्थइतिवा भावीदेवव अङ्घरेषुसतातुब्रमणासूदयामि // 40 // चतुरिशहाजिनः॥ चतुस्त्रिशहाजिनौटुवबन्धीवक्रौरश्व॑स्यस्वर्धितिसमेति // अ छिंद्रागात्वाब्बयुकिणोतपरुष्प्परुरनुघण्याविशस्त // 41 // एक न्धुः / देवोह्यसौभविष्यति एवंभूतस्याश्वसा वक्री:वंकय: उभयपार्श्वस्थास्थीनिस्वधिति: छेदनसाधनोसि: समेतिएकमकृत्वासङ्गच्छति यत: अतोब्रवीमि / अच्छुिद्रागात्रा अछिद्राणि अनवखण्डितानि गावागात्राणि वयुनाप्रज्ञानेन कृणोताकुरुत हेशमितारः / किञ्च पहःपरुः पर्वपर्व हृदयाद्यंगम् अनुयुष्यदमिदमितिसंशन्धविशस्त विसनगुरुत उत्तराईस्यैवमन्त्ररूपसंवन्धः // 41 // For Private And Personal Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir एकस्त्वष्टुः / एकः / अश्वसाविशस्ताविशसितासंवत्सरः / तदुक्तम् संवत्सरसातेजसेति त्वष्टुः आदित्यादुत्पन्नसाश्वसा तटुक्तम् सूरादश्वंवसवोनिरतष्टदिति / हायन्तारा / दौनियन्तारौ अहोरात्रौद्यावापृथिव्यौवाभवतः / तथऋतुः द्वितीयोमासानांनियन्तेतिशेषः / एवमश्वसाविशसितॄन् उक्ता अथेदानीस्वकीयंकर्माध्वर्युराह / यातेयानि तव हेअश्व गात्राणामङ्गानाम् ऋतुथा है स्त्वष्टुं // एकुस्त्वष्टुरपश्वस्याविशुस्ताहान्ताभिवतुस्तऽमृतु॥ यातुगावाणामृतुधाकृणोमितातापिण्डानाम्प्र होम्म्युग्नौ // 42 // मात्त्वातपत्प्रियऽआत्मापियन्तुम्मावधितिस्तुनवाआतिष्ठिपत्ते // ऋतातौ कालेकालेवंधनानि कृणोमि करोमि। तातातानितानि पिण्डानांमांसपिण्डानां मध्येप्रजुहोमि प्रज्ञानानुरोधेनजुहोमि। अग्नौ // 42 // मात्वातपत् / मात्वान्तपत् / त्वाश• देनाबविज्ञानात्मोच्यते सुखदुःखयोर्भोक्तां प्रियात्माप्राणउक्तः / सहिश्रुतौ प्रिमित्येतदुपासीतेत्युक्तः / देवानाम् पियन्तम् देवलोकगमनप्रवृत्त सन्तम् / माचवधिति: शस्त्रन्तन्वःशरीरसा For Private And Personal Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir अतिष्ठिपत् अस्थापयत् एकादशमवदानभूतम् तेतव। माच तेतव गृचः मांसग्रहणेगड़ालु लब्धः। अविशस्ताविशसने अकुशलः / अतिहायअतिक्रम्य / छिट्राछिद्राणिगात्राणि असिना-5 है मिथूक: मिथ्याअकार्षीत् // 43 // नवै / नवाउएतदिति व्याख्यातम् / अन्यच्च हरीन्द्राश्वौ / तेतव / युजायोजनाहौँ बोडारौ प्रतिधुरौअभूताम् पृषतीच मरुतांसंवन्धिनावशी प्रतिधुरावमातेगुनरविशस्ता * तिहार्यछिद्रागात्वाण्युसिनामिथूक // 43 // न वै॥ नवाऽऽएतन्निम्रयसेनरिष्यसिटुवा // इदैषिपुथिभिःसुगे भिः // हरौंतवजापृषतोऽअभूतामुपास्त्थाहाजीधुरिरासंभस्य॥४४॥ भूताम् / तटुक्तम् अश्वरथयाने युजन्त्यश्वकाम्याहरीइति / एभिर्दिव्यै स्त्वंसमानं लोकंसंज्ञातइत्यभिप्रायः / एनमुपश्रुत्य स्वयमेव उपास्यात् उपस्थितः वाजौधुरिरासभसा अश्विसंवन्धिनः / रासभावश्विन रित्यादिष्ट प्रयोजनम // 44 // इदानींयाज्ञा / सुगव्यन्नः / शोभनगव्य नोस्माकं * अत्तिहायेत्त्यत्रापितुक न भवति यस्यातिहाये त्याद्युक्तत्वात्। शिवम् 552 For Private And Personal Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir वाजीकृणोतुकरोतु। स्वश्व्यंशोभनाश्वञ्चकरोतु / पुंसःपुत्राकरोतु। दुहितरः पुत्राचपुत्रशब्देनोच्यन्ते इत्यतोविशेषणं पुंसद्वंति। उतअपिच विश्वापुषम् सवसापोषकरयिन्धनकरोतु / किञ्च अनागा: अनपराधम् त्वञ्च / नोस्माकम् अदितिर्देवमाताच करोतु / नैघंटुकोवाअदितिशब्दः। अनागास्त्वंन: अदिति:अदीनोश्वःकरोतु। किञ्च / क्षत्रनोस्माकं वनताम् / करोत्यर्थेवनति: / / / सुगबन्न // सुगव्यंन्नोबाजीस्वपशव्यम्पुस पुत्वा // उतबि प्रश्वापुर्षमुयिम् // अनागास्वन्नोऽअदिति कृणोतुक्षुत्रन्नोऽअश्वो ब्वनताहुविष्म्मान् // 45 // [ 6 ] हुमानु // कुम्भवनासौषधामेन्द्र / पञ्चविश्वेचदेवा // आदित्यैरिन्द्रसगणोमुरुङ्गिरस्म्मभ्यम्भेषजा 2 करोतु / हविष्मान् / अश्यः / सर्वेअश्वावयवाः हवींषि // 45 // इमानु / षड्पिदाः विराजः / तिखोवैश्वदेव्यः। स्तिसआग्नेय्यः / विपदाउत्तमा जुहोतीतिश्रुतिः / नुकम्इतिनिपाता वनर्थको इमानिभुवनानि भूतजातानि। सौषधाम साधयाम वयम् / ततोनन्तरम् इन्द्रःऐश्वर्य For Private And Personal Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir शु० वान् विश्वेच देवा: आदित्यैः सहित: इन्द्रःसगणः मरुद्भिश्च सहित: अस्मभ्यमस्माकं भेष करत् // बुज्ञञ्चनस्तुन्न्वञ्चप्पुजाञ्चादित्त्यैरिन्द्रसहसौंषधाति // 46 // अग्रनेत्त्व // न्नोऽअन्तमऽउतत्वाताशिवोभवावरूथ्यः // ब्बसुरग्ग्नि उ० वसुथवाऽअच्छानक्षिामत्तमयिन्दो // तन्त्वांशोचिष्टुंदीदिव भा० सुम्मायनूनमीमहेसखिभ्य // 47 // [2] इतिसंहितायाम्पञ्चविंशोऽध्यायः // 25 // [ 15 ] जाभेषजानि करत्करोत् / किञ्च यत्तञ्च नोस्माकं लन्वञ्च शरीरञ्च आदित्यः सह इन्द्रः सौषधातिसाधयतु वश्यंकरोतु // 46 // अग्नेत्वन्नइति व्याख्यातम् // 47 // इति उव्वटकृतौ मन्त्रभाष्ये पञ्चविंशतितमोध्यायः // 25 // शिवम 553 For Private And Personal Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir दूषत्वेतिप्रारभ्य दर्शपौर्णमासाग्निहोत्र पशु चातुर्मास्पा ऽग्निष्टोम वाजपय राजसूया ग्निसौत्रामण्य श्वमेध मंबड्दामन्त्रा व्याख्याताः / नामाख्यातोपसर्ग निपातजनिता वाक्या र्थाश्च / अथेदानी खिलान्यनुक्रमिष्याम: / अग्निष्टोमा ग्निसौत्रामण्य व मेध पुरुषमेध सर्व र मेध पिटमेध प्रवर्योपिनिषत् संवद्धामन्त्राब्याख्येया: तइहोच्यन्ते / अत्रच येअन संवड्वाम___* अग्ग्निश्च // पृथिवीचुसन्नतुतेमेसन्नमतामुदोब्बायुश्चान्त, रिक्षञ्चसन्नतेतेमेसन्नमतामुदाआदित्त्यश्च्युद्यौश्च्चसन्नतेमेसन्न न्वा स्तेषां तदेवार्षम् / असंबद्धानान्तु आदित्यएव / आदित्यानीमानि यजूएषौतिवाआहुरितिथुतेः। याज्ञवल्क्योवा यज्ञवल्क्य नाख्यायन्त इतिश्रुतेः / अविनियुक्तानां मन्त्राणां लैगिको विनियोगः तद्यथा अग्निश्च पृथिवीचति सप्तसन्नतिमन्त्राः / लिङ्गनाम प्रकाशन सामर्थ्यमच्यते / योहि यमर्थवदितं समर्थः सतत्र श्रुत्याविनियुज्यते / अग्निश्च पृथिवीचसन्नते / सन्न(१) इषे त्वं त्यारभ्य दर्शपौणमासपितयत्नाग्निहोत्रीपस्थान पशुचातुर्मास्याग्निष्टोमवाजपेयराजम्याग्निसौत्रामण्यश्व मेधस म्बडा मनत्रा व्याख्याताः / इदानींखिल्यान्युच्यन्ते * अगिनश्चपंचदशोच्चात एकादशहौषड्विर्ट शति // . For Private And Personal Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir मनंसन्नति: प्रवीभावः / आनुकूल्येनप्रवृत्तिः / अग्निश्च वृथिवीच संभोगार्थसंनते यस्मादतोब्रवीमि तेअग्निपृथ्यौ मेमम सन्नमताम / अत्र णिचोलोपश्छान्दस: / सन्नमयितां वशवर्तिनमुमतामित्यर्थः / अद इति पुरुषादेविशेषनामोपलक्षणम् द्वितीयान्तं चोपलक्षयतिकर्मभावात् / एवमुत्तरेष्वपियोजाम् / वायुश्चान्तरिक्षञ्च आदित्यश्च दौश्च आपश्चवरुणश्च / सप्तस ठ० सदः / परमात्मोचाते / यस्यतव सप्तसंसदः सप्तसंसदानि प्रकृतानीत्येवम अग्निपृथिवीवायवन्तरिमतामुदऽार्पश्च्चवरुणश्च्चसन्नतेमेसन्नमतामुदः // सुप्तसुईस दोऽअष्टमीभूतसाधनी // सामार // ऽअड'नस्कुरुसुज्ज्ञानमस्तु क्षादित्ययुलोकाम्बुवकणा तानि / यस्थच तव अष्टमीवभूव भूतानांसाधनीप्टथवी / नहि पृथिवीमन्तरेण भूतानामु त्पत्तिरस्ति / तत्त्व प्रार्थ्यसे / सकामान् अद्धनाः कुरु सकामान्मा र्गान् अस्माकंकुरु / यदाहि तैर्लभ्यते तदा सकामामार्गाः स्यः / संज्ञानञ्च सङ्गतञ्चज्ञानमा * अस्तु मेमम अमुना / विशेषनामाभिप्रायमेतत् / विज्ञानात्माबोच्यते / यस्य तव सप्तसं सदः / मनश्च बुद्धिश्च पञ्चबुद्धीन्द्रियाणिच / अष्टमीच वाक्भूतसाधनौ भूतप्रज्ञप्तिकरी / शिवम 554 For Private And Personal Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir तन्त्वांववौमि / सकामान् अध्वन:कुरु अस्माकम् सज्ञानंच / अस्तु / मेमम अमुना // 1 // र यथेमाम् / यथा इमांवाचं कल्याणौम् अनुद्दे जिनौम् दीयतांभुज्यतामित्त्व व मादिकाम् / आवदानि / जनेभ्योय। केतेजना इत्यताह। ब्रह्मराजन्याभ्याम् ब्राह्मणाय राजन्यायची शूद्रायच अर्यायच अर्योवैश्यः / खायचात्मीयायच / अरणः अपगतोदकःपरइत्यर्थः / आवदानीति मेमुना // 1 // यथेमाम।।वथमाबाचंकल्ल्याणीमावदानिजनेभ्य // ब्रहमराजन्न्याभ्याशूहायचाऱ्यांयचुस्वायुचारणायच // प्प्रियोटे वानान्दक्षिणायैदातुरिहभूयासमयम्मुकाम ई समृड्यतामुप॑मादोन सर्ववसंवधात // प्रियोदेवानाम् / अवसानरहितानुष्टुप् / यथे मांवाचमिति यथाशब्दयोगात्तथाशब्दोवाधाहत व्यः / तथातेनप्रकारेणप्रियोदेवानां भूयासम् / दक्षिणायै दक्षिणायादातुश्च इहास्मिन्ने वकाले प्रियोभूयासम् अयमितिकामनामग्रहणम। तद्यथाअयंग्रामलाभकामः अस्मै मेसमधाताम् / किंवउपमाअदः नमतु / अदहतियःकामदृष्यतेसउचाते / तद्यथाउपनमतु 140. For Private And Personal Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir मांप्रतिदेवदत्तः // 2 // वृहस्पतेअति वृहस्पतिसवेऽनया त्रिष्टुभाबृहस्पतिदेवतया ग्रहोगृह्यते / गृत्समदस्यार्षम् बृहस्पतेर्वा / हे वृहस्पते / अतिशयेन यत्ट्रविणंधनम् / अर्य ईश्वर: अर्यश ब्दःस्वामिन्यन्त्तोदात्त वेश्येबाादात्तः। अर्थात्पूजयेत् / यच्चा मद्विभाति / aa मत्यु तिमत् विभातिभासते / क्रतुमज्जनेषु / यच्च क्रतुमत्यज्ञवत् जनेषु विभातीत्त्यनुवर्तते यत्दीदयत् मतु॥२॥ ब्रहस्प्रतुऽअति // बृहस्प्पतऽअतियोऽअबामहि र भातिकतुमुज्जनेषु // बहोदयुच्छवसऽऋतप्प्रजातुतटस्म्मासुद्दविण न्धेहिचित्रम् // उपयामगृहीतोसुिवहुस्प्पतयेत्त्वेषतयोनिबुंहस्प्प शवसा यच्चदीप्यते शवसावलेन / रक्षितारोपि यस्यसन्तीत्त्यभिप्राय: / हेक्टतप्रजात ऋतात्म त्यादविनाशिन: प्रजायतइतिक्तप्रजात: तत्मवुडौहेऋतप्रजात तत्ट्रविणम् अस्मासु धेहिस्थापयंचित्र नानारूपम्। उपयामगृहौतोसिवृहस्पतयेत्वा / एषतेयोनि हस्पतयेत्वा / स्थापन For Private And Personal Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir मवः // 3 // इन्द्रगोमन् / दाभ्यांगायत्रीभ्यामिन्द्राय गोमते ग्रहोगृह्यतेगोसवे। आदित्त्वस्थार्ष याज्ञवल्क्यस्यवा / हे इन्द्रगोमन् / गोभिःसंयुक्त / स्तुतिभिर्वा / इहयज्ञ आयाहिआगच्छ एत्त्य चपिबसोमम हे शतकतो वहुकर्मन् कथंभूतं सोमम् विद्यनिर्णावभिः सुतम् दोअवखण्डने / अस्यशतरिविद्यन्त: तैः विद्यद्भिः विशेषेणावखण्डयद्भिः ग्रावभिः सुतमभिषुतं सोमम // उपतयेत्वा // 3 // इन्टुंगोम॑न्॥ इन्द्रुगोमन्नुिहायाहि * पिबासोमशत कृतो॥ बिद्यअिाभिसुतम् // उपयामगृहीतोसीन्द्रीयत्त्वागी मंतऽएषतेयोनिरिन्द्रीयत्त्वागोमते // 4 // इन्द्रायाहि // इन्द्रायोहि यामगृहीतोसीन्द्रायत्वागोमतेगृहामि / एषतेयोनिरिन्द्रायत्वा गोमतेसादयामि // 4 // इन्द्रायाहि / हेइन्द्रागच्छ हेटत्रहन् / वृत्रसाहंत: एत्यचसोमम्पिव हेशतक्रतो वहुकर्मन् / कथंभूतंसोमम / गोमद्भिः स्तुतिमद्भिः / ग्राह्यासंयुतैर्वा अंशुवचनोवा गोशब्दः // ग्रावभिः *पिबासोमम्पि बामुतस्यस्थामयोभुवीनू रणेशमोष्ष्वैतिदण्डकसूणपिबासोममित्तात्रदीर्घनिपात्यते प्रा० अ०३। सू० 128 / For Private And Personal Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सुतमभिषुतम उपयामेतियाख्यातम् // 5 // ऋतावानम / तिम्रोवैश्वानरीया पुरोरुचः गायत्रीविष्ट प्गायत्वाः / अधस्तनएवक्टषिः / ऋतावान सत्यंबतं यजवन्तमुदकवन्तंवा वैश्वानरम ऋतस्यवा / उदकस्ययत्तस्यसत्यस्यवा ज्योतिषश्चपतिम / अथवा क्तस्यसर्वगतस्यबृत्वहुन्न्पिबासोमंशतकृतो॥ गोमशिवभिन्सुतम् // उपया। मगृहीतोसीन्ायत्त्वागोम॑तऽएषतयोनिरिन्द्रीयत्त्वागोमते // 5 // ऋतावनिव्वैप्रश्वानरम्॥ * ऋतावानं वैश्वानुरमुतस्युज्ज्योतिषुस्प्प तिम् // अजस्रङ्कुममौमहे॥उपयामगृहीतोसिब्वैश्वानुरायत्त्वेष योनिश्वानरायंत्त्वा // 6 // वैश्वानरस्य॑सुमतौ / / स्यामराजाहि जयोतिषः पति मधिपतिम् / अजस्रमअनुपक्षौर्णधर्मम अक्षरणदीपत्तंवाईमहयाचामहे / आयजसमाप्तिमितिशेष: सामर्थ्यात् / उपयामेतिव्याख्यातम् // 6 // वैवानरस्यसुमतौ / * ऋतावान मित्यत्रअखर प्रिम्म मतिसुमत्तोत्तादि मूत्रेण वकारेपरे ऋतेताकार स्पदी/वि धीयते प्रा० अ० मू०८८ // शिवम् For Private And Personal Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir द्वितीयः पादः पूर्वं व्याख्यायते / यः वैश्वानरः राजादीप्तः हिकमिति निपातसमाहारोनर्थः / यश्चवैश्वानरः भुवनानांभूतजातानामभिश्री: अभद्राश्रयणीयः सर्वोपकारसामर्थ्यात् / यश्च इतो जात: इतोऽरणित: कुतश्चिद्दा उत्पन्नः सन् विश्वमिदंसर्वमिदं विचष्टे अभिविपश्यति / - यथाद्रष्टव्य कर्मानुरूपेण / यश्चवैश्वानरः यततेस्पईते ।सूर्येणसहस्वकीयदीत्या तस्यवैश्वाकुम्भव॑नानामभिश्श्री। हुतोजातीविश्वमिदंविचष्रटेब्वैश्वान / रोयततेसूर्येण // उपयामगृहीतोसिव्वैश्वानरायत्त्वैषतेयोनि प्रश्वानुराय॑त्त्वा // 7 // वैश्वानरोनः // वैश्वानुरोन जुतयऽआ नरस्यसुमती कल्याणमतौ वयंस्थामेतिप्रार्थना | उपयामेतिसमंजसम् // 7 // वैश्वानरोन: वैश्वानरोग्निः नोस्मान्ऊतये अवनायपालनाय आप्रयात आगच्छतु, परावतःदूरात् / योहिदूरादागच्छेत् आगच्छेदप्यमौसमीपादित्यभिप्रायः / केनाप्रयात / उक्थेनस्तोमेन / वाहसावाहनभूतन / अन्यत्रापिस्तोमोवाहनइत्यु चाते / वाहिष्ठोवाहनास्तोमइति / उपयामेतिसमान For Private And Personal Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir म् // 8 // आग्निषि: / आग्न योगायत्रीपुरोरुक / ऋषिरुक्तः / य:अग्निः ऋषिः दष्टामन्त्राणाम् पवमानः / इतश्चेतश्चगच्छन् / पाञ्चजन्यः पञ्जजनेभोहितः। चत्वारोवर्णानिषादपञ्चमा: पञ्चजनाः। तेषांहियाधिकारोस्ति / पुरोहितः। पुरएनन्दधाति यज्ञ कुर्वाणाः / तम्ईमहेयाचामहे। महागयम् / प्प्रयातुपरावतः // अग्ग्निरुक्थेनुबाहंसा // उपयामगृहीतोसिव्वै / पूवानुरायत्त्वेषतयोनिबैश्वानरायत्त्वा // 8 // अग्ग्निर्षिः // है अग्निषि पर्वमानुपाञ्चजन्न्यपुरोहित // तमीमहेमहाग / यम् // उपयामगृहीतोस्युग्ग्नयेत्त्वावर्चसऽएषतयोनिग्नयेत्वाब से // 6 // महा 2 // ऽइन्द्रः // मुहाँ 2 // ऽइन्द्राव्वज्रहस्तषोड। महान्तंगृहम् / महत्त्वंच गृहस्यद्रव्यनिवन्धनम् उपयामगृहीतोस्यग्नयेत्त्वावर्चस इतिव्याख्यातम् // 6 // महांइन्द्रः / माहेन्द्रौपुरोरुक् गायत्री / उक्तमार्षम् / महान्इन्द्रः वजहस्त: / षोडशी / For Private And Personal Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir पञ्चप्राणाः पञ्चबुद्दीन्द्रियाणिपञ्चकर्मेन्द्रियाणि मनःषोड़शम् एतल्लिङ्गयस्य सषोड़शीन्द्रः। * पञ्चदशीवावज्रश्चन्द्रश्वषोडशीवजस्य / शर्मशरणंयच्छतु ददातु / हन्तुच पाप्मानं ब्रह्महत्यादिकम् / यश्चास्मान् द्दष्टि तञ्चहन्तु / यञ्चवयं विष्मः तञ्चहन्तु / उपयामेतिसमानम् // 10 // तम्ब: ऐन्द्रीबृहती / जपस्वाध्यायादिषुविनियोगः / आदित्यस्यार्षम् याज्ञवल्क्यस्थवा आअ। शीशर्मवच्छतु // हन्तुपापमानव्योम्मान्वेष्टि // उपयामगहीतो सिमहेन्द्रायत्त्वेषतयोनिर्महेन्द्रायत्त्वा // 10 // तंवः॥ तव्वौदस्म्ममा तीषहव्वोमदानमन्धस // अभिवुत्सन्नस्वसंरेषुधेनवऽइन्द्रङ्गी ध्यायपरिसमाप्तेः / हेत्विग्यजमाना: तमिन्द्रं गीर्भिर्वाग्भिः स्तुतिलक्षणाभिः / नवामहे / णुस्तुतौ अभिष्ट म: किमर्थम् / व:युष्मभ्य दास्यतीति। कथंभूतमिन्द्रम् दस्मम् / दर्शनीयम् / प्रियवादिनंकार्यसाधनञ्च | ऋतौषहम् ऋतौगति: गतिमात्रेण शत्रुसहतइत्ष्टतोषाट् तमृतीषहम् / वसोर्मन्दानमन्धसः / वसोर्वासयितुः सोमस्य स्वकीयेनैकदेशेन मन्दानमाद्यन्तम् अ For Private And Personal Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir o स्वसः अधयायनीयस्यचान्नस्य स्वकीयेनैवांशेनमाद्यन्तम् कथमिवनवामहे / वत्संनखसरेषुधेनवः / नकारउपमार्थीयः / वत्समिव / स्वसरेषु स्वयमेवसरन्ति येषुतानिम्बसराण्यहानितेषुस्वस सरेषु अहस्सु / धेनवः / यथानवप्रसूताधेनवः दिनेषुअतिहाट्रीत् वत्संशब्दराखासयेयुः / * एवंवयमप्यतिसौहार्टेणेन्द्रङ्गी भिनवामह इतिसमस्तार्थः // 11 // यदाहिष्ठम् / आग्नेय्यनुष्टुप् र हेउगात: यत् वाहिष्ठ वाढतमं वृहत्साम तत् अग्नयेअर्थाय अर्चगाय / ततोट्रष्ट्वाग्निंहि / भिन्नवामहे // 11 // यदाहिंष्ठम् // यदाहिंष्ठन्तटुग्नयेबृहदचव्वि भावसो // महिषोत्त्वयिस्त्वहाजाऽउदौरते // 12 // एहि // एल्यु हेविभावसो विभूतधनअग्ने / महिषीवत्वयिः मेहिषीप्रथमवित्ता / यथाप्रथमपत्नीधर्मार्थकामा / त्मिकाउदीरते उत्तिष्टतिमुखात्मिकाभवति एवं त्वयिः मुखात्मिकाभुदौरते उतिष्ठति // अथवा / शिवम् महिषीयथा सर्वान्भोगान् उदीरत उत्क्षिपति परोपकाराय / एवं त्वत्तोरयिः उदीरतत्त्वत्तश्च 558 वाजाअन्नानि उदौरत उद्गच्छन्ति परोपकाराय // 12 // एहि / आग्न योगायत्री। अधस्त For Private And Personal Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir नमंत्रस्तुतोग्नि रिहसंवोधात / एहिआगच्छ हेअग्ने / ऊकारोनर्थकः / कोहेतुरितिचेत् / सुधाणि साधुव्रवाणि ते तव हे भगवनग्न / इत्थे तराः इत्यत्वदीयै र्नामवंधकर्मरूपै - थिता: इतरा: स्तुतिलक्षणा: गिरोवाच: / यद्दा इत्थमुद्गाटस्तोवजनिताः इतराअन्यागिरोयागीयन्ते / हे तुन्यस्यति। एभिश्च इन्दुभिः अध्वर्यु णाभिषु तैः सोमैःत्व वईसेवईस्व / / षुवाणुितेग्नाडुत्थेतरागिरः // एभिर्वसुऽइन्दुभि // 13 // ऋतवस्ते॥ तवस्तेयुज्ज्ञन्वितन्न्वन्तुमासारक्षन्तुतुहविः॥ मुंब वत्सरस्तेबज्ज्ञन्दधातुनप्पुजाञ्चपरिपातुन // 14 // उपुछरेगिरी / व // 13 / / ऋतवस्ते / यजमानेनाग्निरुचात अनवाटहत्त्या। ऋतव: तेतव यज्ञवितन्वन्तु / मासाश्चत हविः रक्षन्तु / संवत्सरच तबयत्तदधातुधारयतु नःइतिनिपातोनर्थकः। प्रजांच परिपातुन: इतियजमानात्मानमाह। नोस्माकं प्रजांचपरिपातुसंवत्सरएव // 14 // उपह्वरेगिरीणाम् / चतसोगायत्राः सौम्यः / उपहुरेगह्वरेगिरोणांपर्वतानाम् प्रसिद्धमेतत् / एका 141. For Private And Personal Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir हाहौनसत्राणिक्रियन्तामित्यनया / धियावुयाविप्रामेधाबी सोमःअजायत / जगत्धारयितुमिच्छन् // 15 // उच्चाते। व्यवहितपदप्रायोमन्व: हे सोम तेतव अन्धसःअधाानीयात् र-सौ भूतात् / जातमुत्पन्नम् यज्ञपरिणामभूतम् उच्चाउच्चैः / दिविसत् / [लोकेविदयमानम् पश्चात्भूमिः आदर्द गृहीतवती / किंतत् aa लोकप्राप्तभूमिराददे / उग्रमउद्गूर्ण महाचौरादि णाम् // उपबुरेगिरीणासङ्गमंचनदीनाम् // धियाब्बिप्पोऽ जायत // 15 // [ 15 ] उच्चाते॥ उच्चातेजातमन्धसीटुिविसङ्ग म्यादंदे // उग्नशमहिश्श्रवः // 16 // सनः॥ सनऽइन्द्रायुव / भिरनाधृष्यम् शर्मशरणंगृहम महिथव: महच्चश्रवणीयंधनम् / पञ्चाहुतिपरिणामोद्घाटनमात्र मे तत्कृतम् यथा हुति: प्रथम दिविगच्छति ततोन्तरिक्ष जलरूपेण ततोभूमावन्नरूपेण शिवम ततोनरेरेतोरूपेण ततोयोनौ पुरुषरूपेणेति पञ्चधाहुतिपरिणामः // 16 // सनः / यस्त्ववरिवोवित् / वरिवोधनम / तद्विदतिवेत्तिवायोसौवरिवोबित् यस्त्व धनस्यलब्धावेदितावा। सः 558 For Private And Personal Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalashsagarsuri Shri Mahasy.in"न: सस्मिाकं यत्तम इन्द्राय यज्यवेयष्टव्याय बरुगायच मरुज्ञाश्चाथाय / परिस्रवरक्ष अथवा। www.kobatirth.org र सत्वन:यत्तम इन्द्राय यज्यवेवरुणाय महाश्चवरिवोविदिति एतेषांविशेषण कृतविभक्तिव्यत्ययं गह्यतेसामानाधिकरण्यात वरिवोविज्ञाः धनविड्यः परिस्रव / क्रियाविशेषणंवा / एतेभ्योदेवेभ्यः परिसव तथाचपरिस्रव यथावरिवोविद्भवति // 17 // एनाविश्वानि / एनाएनानिविश्वानिशर्वाणिद्यु म्नानिधनानि / अर्य ईश्वर: सोमः आआदाय अस्मभ्यंददात्वितिशेषः / तानिच सोमदत्तानि / उज्यवेवरुणायमुरुद्भाः // वरिवोवित्त्परिस्रव // 17 // ए नाबि प्रश्वानि // ए नाविश्वान्युयऽआयु म्म्नानिमानुषाणाम् // सि सन्तोवनामहे // 18 // अनुवौरे / / अनुवीरैरनुपुष्ष्यास्म्मुगोभिर सिषासन्त: / षणुदाने / अस्यसन्यनुनासिकस्याकारः / दातुमिच्छन्तः दानाभिमुखीभूताः सन्तोवयन्धनानिवनामहे सम्भुज्महे / 18 / किमर्थंधनमतो दातुमिच्छन्ती धनवन्तइत्याह / अनुवीरैः। आशौर्देवताविष्टुप् / अनुपुष्याम्मवीरैः वयम अनुपुष्याम्मच गोभिः वयम् / अन्वश्वैः अनुपुष्याम्मच वयमश्वैः / अनुसर्वेणपुष्टः / अनुपुष्यास्मच वयंसर्वेणपुष्टेनेति वचनव्यत्ययः / अनुदिपदा अनुपु For Private And Personal Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु० य ष्यास्मच वयंदिपदाहिपादेन अनुपुष्यास्मचचतुष्पादेन / किञ्च / देवा:नोस्माकं यजम ऋतुथाश्ता तौकालेकाले नयन्तु // 16 // अग्ने पत्नीः इतउत्तर पञ्चनेष्टु र्याज्या: / आद्यागायत्री / देवानांपत्न्यः त्वष्टाचदेवता / हेअग्ने देवानांपत्नीः इहास्मिन्यन्ने उपावहआगमय कथंभूताः उशती:कामयमानाः अस्मान् / त्वष्टारञ्चउपावह / किमर्थम् / सोमपीतये सोमपानाय // 20 // वश्वैरनुसाणपुष्टटैः // अनुद्दिपदानुचतुष्प्पदाव्वयन्दैवानोव / ज्ज्ञमृतथा यन्तु // 16 // अग्नुपरकौ // अग्ग्नुपत्नौरिहावंहदेवा / नामुशुतोरुप // त्वष्टार सोमपीतये // 20 // अभियुज्ञम् // अभि युजङ्गणोहिनोग्ग्नावोनेष्टट पिबऽऋ तुना // त्वहिरत्न धाऽअर अभियन्तम् / इंगायल्यौ ऋतुग्रहाणां याज्ये / नेष्टास्वकीयामधिष्ठात्री देवताप्रवीति / अभिगृणीहिस्तुहि यचंनीम्मत्संवन्धिनम्। हेग्नावः / ग्ना:परन्यः ताविद्यन्तेसासग्नावान् तसंवोधनं हेग्नावः। मतुवसोःमःसंबुझौछन्दसौतिस्त्वम्। हेनेष्टः पिबच ऋतुनाकालेनसह / कमात्व For Private And Personal Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir मेवमुच्यसे इतिचेत् / तत्राह / त्वंहिरत्नधाअसि / यस्मात्वमेवरमणीयानान्धनानां दातासि // 21 // द्रविणोदाः। ऋत्विजउच्यन्ते / अयमग्निः। द्रविणोदाः / धनसावलसा वादाता। पिपौषहै तिपातुमिच्छति पिवतेःसनीकारः। सोममितिशेषः / एवञ्चेदतोब्रवीमि / हेऋत्विजः / जुहोत+ प्रचतिष्ठत जुहुतच प्रतिष्ठतच कर्मसु / किञ्च / नेष्ट्रात् नेष्ट्रियात् धिष्णपात् ऋतुभिःकालै:सह सिं 21 टुविणोदाइपिंपोषति / जुहोतृप्प्रचतिष्ठत // नेपाहतुभिरि / ष्यत // 22 // तवायम् // तवायसोमुस्त्वमेय ह्याश्वत्तुमर्ड * सुमनाऽअस्यपाहि॥ अस्मिन्न्यज्ज्जेबुर्हिषष्यानिषद्यादधिषवेमउजु सोमम्इष्यत पुनःपुन:पिबत // 22 // तवायम् / ऐन्द्रीत्रिष्टुप् माध्यन्दिनीया। हेइन्द्र यतः तवायंमाध्यन्दिनीयः सोमः अत:अम्माभिः प्रार्थ्य मानः त्वम् आइहि आगच्छ / कथंभूतः / अर्वाङ् अर्वागञ्चन: अवरणाञ्चितः / एत्यच शश्वत्तमं शाश्वतिकतम सीमं सोमभागंगृहाण संगृह्यचसमनाभूत्वा अस्यसोमस्यपाहिपिव। पीत्वाच / अस्मिन्यनेवहिषि निषा अवस्थानं For Private And Personal Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir कृत्वादधिष्वधारयख इमंजठरे इन्दंसोमम् हेइन्द्र // 23 // अमेवनः / देवपत्न्यः त्वष्टाचाबदृश्यन्ते। जगतौ तार्तीयसवनौया याज्या। अमाशब्दोरहवचनः। यथागृहाणिस्वानिएवं न:अस्माकं यज्ञगृहाणि / सुहवाः साध्वाह्वाना: आहिगन्तन आगच्छत / हि:पादपूरणः / आगत्त्यच निवर्हिषिसदतन निषौदत उपविशत वर्हिषि। निषद्यच रणिष्टन रतिंकुरुत। ठाइन्टुंमिन्द्र // 23 // अमेवनः // अमेवनः सुहवाऽआहिगन्तनुनिबु।। हिषिसदतनारणिष्टटन॥* अर्थामन्दस्खजुजुषाणोऽअन्धसस्त्वष्ट है। वेभिर्जनिभिःसुमङ्गणः // 24 // स्वादिष्ठयामर्दिष्ठया // स्वादिष्ठयाम आदित्यामुपष्टासुदेवपत्नीषु / अथमन्दस्व तृप्यस्व जुजुषाण: सेवमानः। अन्धसः सोमस्यावमंशम् हेत्वष्टः देवेभिर्देवैः जनिभिः जननहेतुभूताभिः देवपत्नीभिः सुमङ्गण: सन्शोभनमदादेवास्तेषां स्त्रीणाञ्चगणः यस्यससुमङ्गणः // 24 // स्वादिठया / सौम्यौपावमान्यौगायल्यौ। जपादिषुविनि योगःउक्तञ्च / रसौभूतो यदासोमः पवित्रात्मरतिग्रहम् ऋग्भिःस्वादिष्ठयाद्याभि: 'पवमानःसउ * एवाच्छचकमाथ // एव अच्छ चक्कम अथ एतेह्रस्वाव्यञ्जनमात्र परेदीर्घमाद्यतेइताननअथेताकारस्यदी|भवतिप्रा अ० 3 / मू० 125 // For Private And Personal Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir च्यते / स्वादिष्ठयाखाटुतमया मदिछयामदयितमया पिवखदशापवित्वात् द्रोणकलशंप्रतिगच्छ हेसोमधारया / यस्त्वम् इन्द्रायपातवे इन्द्रःपिवतु इत्यनेनाभिप्रायेण मुत:अभिषुतोस्माभिः // 25 // रक्षोहाविश्वचर्षणिः / अयमेवसोमः रक्षोहा रक्षसामपहन्ता विश्वचर्षणिः सर्वसाजगतोट्रष्टा। - यथार्हम्प्रति / अभिभासदत आभिमुख्य नसन्त: सौदतिवा / किमभ्यासदत् योनिस्थानम् / दिष्ठयापर्वखसोमधारया // इन्द्रायुपातवेसुतः ॥१५॥रक्षोहाबिश् प्रवचर्षणिभियोनिमोहते॥होणेसुधस्थमासदत्॥२६॥ [11] // 2 // इतिसंहितायांषशितितमोऽध्यायः // 26 // कथंभूताम् / अयोहते / अयसाकृष्णलोहेन हतमुत्कीर्णम् सोमभाजनीकृतम् / हतमितिविभक्तिव्यत्यय: योनिसामानाधिकरण्यात्। किनामा योनिम् द्रोणे / अवापिविभक्तिव्यत्ययः द्रोणंद्रोणकलशलक्षणम् / सधस्थंसहस्थानलक्षणम सोमानाम् // 26 // इतिउव्वटकृतीमन्वभाष्येषड्विंशतितमोध्यायः // 26 // For Private And Personal Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir य० (1) समास्त्वा। आग्निकोधयाय: / सामिधेन्यानव विष्टुभः आग्नेय्योग्निनादृष्टाः / प्राकपीवोन्नाया ऋषिरग्नि: कर्माङ्गभूतमग्निस्तौति समाशब्दोमासवचन: संवत्सर इतिशब्दोपादान.. सामर्थ्यात् / समा: मासाश्च त्वा हेअग्ने ऋतवश्चवर्धयन्तु। संवत्सराश्च ऋषयश्च सप्त*समास्त्वा // समात्याग्नऽतोव्वईयन्तुसंवत्सराऽऋषयोयानि या // सन्दिब्येनंदीदिहिरोचनेनुब्बिप्रश्वाऽआभहिप्प्रदिशश्चतखडक // 1 // सञ्चेवास्वग्नेिप्प्रचंबोधयैनमुच्चतिष्ठमहुतेसौभगाय ॥माचरिषद ऋषयामन्त्रदृष्टारोबा प्राणावा / यानिचसत्या सत्यानिआर्षाः मन्त्रा:त्वांवईयन्त्वित्यनुवर्तते / त्वमप्येतैर्वईमानः / सन्दिव्येनदीदिहि रोचनेन / सन्दौदिहि संदीप्यस्व दिव्येन दिविभवन रोचनेनदीत्या। किञ्च विश्वा:सर्वा आभाहिदीपयदिश:प्रदिशश्च चतस्र:आभाहि॥१॥ सञ्च / सभिवयम्वच हेअग्ने / प्रबोधयच अवगतार्थञ्च यनंयजमानकरू / यथाग्निश्चेतव्य इति / उते 1) अयमध्यायः पञ्चचितिकस्याग्ने: सम्बन्धी प्रजापतिदृष्टः / नव ऋचोऽग्निदेवत्यास्त्रिष्टुभोऽग्निना हृष्टाः इष्टकापशी समिध्यमानसमिहतोरन्तराले आसां विनियोगः / * समास्त्वादशोर्खाअस्यपीवोमबाहादशकावभित्वं कादशचत्वारः पंचचत्वारिठ शत्। शिवम् For Private And Personal Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org छच महतेसौभगायऐश्वर्याय / किञ्चमाचरिषत् माचविनश्यतु उपसत्ता उपसदनस्यकर्ता यजमानःसह्यग्निमुपसौदति / तेतव। हेअग्ने / किञ्च / ब्रह्माणस्ते ब्राह्मणाश्च ऋत्विग्यजमाना: तवसंवन्धिनः / यशस:सन्तु / मत्वर्थोयलोप: यशश्विनःसन्तु / माअन्येयशस्विनःसन्तुअयजमानाअलङ्करिष्णवः // 2 // त्यामग्ने / हेअग्ने त्वाम् इमेब्राह्मणा: ऋत्विजःणतेवृण्वन्ति पसुत्तातेऽअग्ग्नेब्रहमाणस्तेयशस सन्तमान्ये // 2 // त्वामंग्ग्ने॥ त्वा / मैग्नेब्वृणतन्त्रात्म्मुणाऽद्यमशिवोऽग्नेस्वरंगी भवान // सुपुत्नहा यागाय। यतएवमत:प्रार्थयामः / शिव:शान्तः हेअग्ने संवरण ब्राह्मणै:सह एकस्मिन्वरणे / भव नःअस्माकम्। त्वन्देवोवयञ्चमत्या इत्यभिप्रायः / सपनहानोअभिमातिजिच्च / सपनानाहन्ताचभवास्माकम् अभिमातिशब्दोपिशववचन: / अतएवंव्यास्यायते / सपत्नानांहनाभव हतावशिष्टानांजताचभवेति / किञ्च / वेगयेस्वकीयगृहे जागृहिअप्रयुच्छन् / युच्छीप्रमादे / अप्र * भवच // भवेतायं इस्खोदोधमापद्यतेन कारेपरेइति सूत्र नभवेताकारस्य नकारेपरेदीर्घाभवति तेनभवानइति सिद्धम् प्रा० अ० 3 / सू० 108 // 142. For Private And Personal Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir माद्यन् उगतमनाइत्यर्थः // 3 // इहैव / इहएवकर्मणि वर्तमानानामस्माकम् हेअग्ने अधिधारयरर यिमउपरिनिक्षिप्तधनम्। किञ्च / मात्वां निक्रन्त्रीचैःकुर्वन्तु अवनयापश्यन्तु / पूर्वचितः पूर्व येअग्निञ्चितवन्तः। निकारिणः / ज्ञानकर्मसमुच्चयातिशयेन येन्योन्यजन्मानि / नौचैःकुर्वन्ति / ॐ किञ्च / क्षत्रम् / हेअग्ने सुयमंसाधुयन्तृअस्तु तुभ्यन्तव। किञ्च उपसत्ता यजमानःस पसदनं नोऽअभिमातिजिच्चुवेगयेजागृयप्प्रंयुच्छन् // 3 // इहैव // इहैवा ग्नेऽअधिंधारयारयिम्मात्त्वानिक्कन्न्पूर्वचितौनिकारिणः // क्षुत्रम र ग्नेसुयममस्तुतुभ्यमुपसत्ताईतान्तऽअनिष्टतः // 4 // क्षुत्रेणाग्ने क्षुत्रेणाग्नुस्खायु सभखमित्त्वेणग्नेमित्व॒धेयेवतस्व॥सुजाताना करोत्यग्नेः / वईतान्तेतव। अनिष्टुतः / स्तृहिंसायाम् अनुपहिसितःसन् // 4 // क्षत्रेणाग्ने / शिव. क्षत्रणसम्पाद्यात्मानम् हेअग्ने / स्वायुःसाध्वायुः सन्सारस्वयज्ञ बोढुम् / मित्र णचसम्पाद्यात्मानंमित्रधेयेयतस्व। यथामित्राणिधार्यन्ते तथायनङ्गुरु / किञ्च / सजातानांसमानजन्मनां For Private And Personal Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मधामस्थाएधि मध्यमस्थानोभव / यथासजाताअपि यज्वानोभवन्ति तथास्यादित्यभिप्राय: / किञ्च / राज्ञां हेअभ्न विहव्यःविविधमाह्वातव्यः दीदिहिदीप्यस्व इहयनगृहे / यथाराजानोपि यज्वानोभवेयुः तथास्त्वित्यभिप्रायः // 5 // अतिनिहः। अतिक्रम्यनिहन्तृन् निपूर्वस्यहन्ते: उ:प्रत्ययः / प्रथमैकवचनस्यस्थाने द्वितीयावहुवचनंवाक्यसंवन्धात्। अतिनिधः / मेधतिःकुत्सित-है म्मड्यमुस्त्थाऽएंधिराज्जामग्नेब्विहुव्योदौदिहीह॥५॥ अतिनिहः॥ अतिनिहोऽअतिनिधोत्यचित्तिमत्त्य तिमग्ने // विश्वायुग्ने दरितासहस्वाथासम्मभ्यम्सुहवौगयिन्दा // 6 // अनाधुष्षयोजात कर्मा / अतिक्रम्यच कुत्सिताचरणान् / अत्यचित्तिम् अचित्तिरन्यमनस्कता। अतिक्रम्यचान्यमनस्कताम् अत्यरातिम् / अरातिरनुपजीव्योजन: तञ्चातिक्रम्य हेअग्ने / विश्वायग्ने टुरितानिसहस्व / विश्वानिदुरितानि सहस्वअभिभव हिरनर्थकः अथानन्तरम् अस्मभ्यंसहवीरां सपुवारयिन्धनं दा:दद्याः // 6 // अनाधृष्य: / यस्त्वमनाधृष्यः / अशक्यः खलौकर्तुम् / जातवेदाः / For Private And Personal Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir 20 जातप्रज्ञानश्च अनिष्टुतः अनुपहिसितश्च / स्तणाते रेतद्रूपम् / विराट्च राजदीप्तौ / विराजनशील: विराट्क्षेत्रच्च। तन्त्वांबवीमि हेअग्ने दौदिहिदीप्यस्व इहकर्मणिवर्तमान: विश्वाः सर्वा आशादिशः। किञ्च प्रमुचनमानुषोभियः / विक्षिपन्मानुषानि भयानि जन्मजरामृत्युर शोकदैन्यादीनि / शिवेभिः शिवःशान्तैः अर्चिभि अद्याम्मिन्द्यवि / परिपाहि नःसर्वतोगो वैदा // अनाधृष्ष्योजातवेदाऽअनिष्टतोब्बुिराईग्नेक्षत्रुहौदिहीह॥ विप्रश्वाऽआशा प्प्रमुञ्चन्मानुषी ियाशिवेभिरद्यपरिपाहिनी बुधे // 7 // ब्रहस्पतेसवित // बृहस्पतेसवितर्बोधयन सशित ञ्चित्सन्तुरासशिशाधि // बुईयैनम्महुतेसौभगायुविश्वंऽएनु पायाम्पान्। किमर्थम् बुध वईनाय // 7 // वृहस्पतेसवितः / हेवृहस्पते हेसवितः / वोधयकामेष्ववगतार्थंकुरु / एनंयजमानम् किञ्च / संशितचित् / चिच्छब्दोप्यर्थे मंशितव्रतमपियजमामम् सन्तरामतितराम् संशिभाधिशिक्षय / बई यच एनं यजमानम्महते सौभगायऐश्वर्याय / For Private And Personal Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org विश्वेचदेवा एनयजमानम् अनुमदन्तु / उत्साहयन्तु / बृहस्पतिशब्देनसविट शब्देनचावाग्निरेवोच्यते / अथवा वाक्यदयम् एकनवहस्पतिरुक्त: अपरेणसविता // 8 // अमुत्रभूयात् / अमु बामुभिल्लोकयत् शरीरम्भूयात् / अध अथ यत्यमस्यसदनेच शरीरंभूयात् / तस्मात्च हेवृ* हस्पते। अभिशस्त : अभिशंसनाच्च अमुञ्चः। किञ्च प्रत्यौहतां प्रतिप्रेरयताम् अन्यत्रनयताम् / अश्विनौमृत्युम् अस्माद्यजमानात् कथंभूतावश्विनौ / देवानांभिषजी हेअग्ने शचीभिः / मनुमदन्तटुवाः // 8 // अमुत्र भूयादध // अमुठभूयादधुवामस्युन हस्प्पतेऽअभिशस्तुरमुच्च // प्रत्यौहतामुशिश्वनामृत्यमरम्मादेवानाम ग्नेभिषजाशचौभि // 6 // उद्दयम् // उहुयन्तममुस्प्परिख पश्य , अवापिटहस्पतिशब्दआमन्त्रितोग्निशब्दस्य दृष्टव्यः सामिधेनी प्रकरणस्याग्न यत्वात् / ननु वृहस्पतिशब्दो नैघण्टुको नचाग्निशब्देइति ताआग्नेय्यः प्राजापत्त्या यदग्निरपश्यत् तेनाग्नेय्योयत्प्रजापतिठ समैधत तेनप्रजापत्त्याइतिश्रुतेः प्रजापते: सर्वदेवात्मकत्त्वात् / तस्मादेनं / प्रजापति ठ• सन्तमग्निरित्याचक्षते इतिश्रुतेरदोषः // 6 // उदयमितिव्याख्यातम् / For Private And Personal Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir // 10 // उदीअस्थ / द्वादशाप्रियः प्रयाजदेवताः / उष्णिह: अष्टम्याद्ये गायो / ताविषमा या विषमाक्षरपादाइ त्यादिश्रुतेः / ताआग्नेय्यः प्राजापत्त्याः / यदग्निरपश्यत्त नाग्नेय्यः यत्प्रजापति माप्रोणात्तेनप्राजापत्त्या इतिचश्रुति: / अग्नि षिः / प्रजापतिश्चाग्निरूपेण संस्तूयते // अस्याम्ने: प्रजापतिरूपेण संस्तूयमानस्य ऊर्धा:प्रगुणाः देवमार्गेण यायिन्यः समिधोभवन्ति / ऊर्छाशक्रा ऊर्धान्तुऽउत्तरम् // ट्रेवन्दैवत्तासूर्युमगन्न्मज्योतिरुत्तमम् // 10 // [10] जुवा॑ऽस्यसमिधौभवन्त्यूर्वाशुक्काशोचोप्यग्ने // [मत्तमा सप्प्रतीकस्यसुनो // 11 // तनूनपादसुर // तनूनपादसुरोविश्व निच शुक्राशुक्रानि शुक्रानिशौचौंष्य/विभवन्ति / | मत्तमा दीप्तमत्तमाच वौर्यवत्तमानिचेत्यर्थः / सुप्रतिकस्य सुमुखस्थयजमानस्य / सूनोः / सोनञ्जनयति / यइत्थंभूतोग्निस्तंब शिवम् यस्तुम इतिवाक्यशेषः // 11 // // तनूनपात् / अज्यस्यअग्नेर्वा / यःतनूनाङ्गवांनपात् आजत्राभिप्रायमेतदुच्यते / अथवा योग्निःतनूनामपानपात् पौत्रः / असुरःअसुमान् प्राणवान् For Private And Personal Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir रोमवर्थीपः / यहा असुरःवमुरः धनवान् अस्मिन्पक्षेत्रादिलोपः / विश्ववेदाः / सर्वधनः सर्वज्ञोवा / देवोदानादिगुणयुक्तः / देवेष्वपिदेव: दीप्तिमान् / यईदृश:सःपथःयन्त्रमार्गान्र अनक्त, / मध्वामधुखाटुना घृतेन / इत्यन्नामप्रभूतं यज्ञेघृतमस्तु येनमार्गा अभ्यक्ताः स्युरित्त्यभिप्राय: / // 12 / मध्वायत्तम् / हेअग्नेयस्त्वंमध्वामधुस्वादुना घृतेनयन नक्षसव्याप्नोषि / वेदादेवीदेवे देवः // पुथोऽनतुमवाघुतेन // 12 // माय उजम्॥ मायुजन्नक्षसेप्प्रोणानोनराशसोऽअग्ने। सुकवासवि ताविश्ववार // 13 // * अच्छायम्॥ अच्छायमेति / शव॑साघृतेनडा नक्षतिर्व्याप्तिकर्मा / कथंभूतः / प्रौणानःदेवान् / नराशंसश्च / नरैत्विग्भिय शंस्यतेस्तूयतेयः र सतथोक्तः / सुकृञ्चसाधुकृञ्च / देवः सविता / विश्ववार: सर्वस्यवरणीय अभवसि / तत्वांस्तु मइतिशेषः // 13 // अच्छायम् / अच्छाभेराप्नुमितिशाकपूणि: अच्छएति अभ्येति / अग्निम्अयमध्वर्युः / शवसास्वकीयेन प्रज्ञानवलेनयुक्तः / घतेनच गृहीतेनडानःस्तुवन् / वहिर्वोढा / For Private And Personal Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir नमसाचानेन हविलक्षणेनाभ्युद्यतेन स्रुचःवाहुभ्यांग्रहीत्वा / अङ्करेषु प्रयत्सुयज्ञेषुवर्तमानेषु // 14 // सयक्षत् / सएवाध्वर्यु: यचत् / यजतु / अस्याग्ने: सम्बन्धिमहिमानं महाभाग्यन् / सइम् सएवचमन्द्रामन्दौनीयान्यन्नानि यजतु / कथंभूतस्याग्नेः सप्रयसः / प्रयइत्यन्ननाम शोभनानिप्रयांस्थन्नानि हर्विलक्षणानि यस्यससुप्रया: तस्यसुप्रयसः / अथकस्मादन्यदेवता: परित्यज्याग्नेमहिनोचहुन्निन्नमसा // अग्निसुचौऽअध्वरेघुप्रयत्नु // 14 // सर्व सदस्यमहिमानमुग्ने सऽईम्मन्द्रासुप्रयसः // बसुश्चेतिष्ठोव्वसुधात मश्च // 15 // हारौदेवी // द्वारौटुवीरन्न्व॑स्युब्बिवैताद॑दन्ते मानौं यक्षदित्युच्यत इतिचेत् अताह वसुश्चेतिष्ठो वसुधातमश्च / यतोसी वसुवासयिता चेतिछोतिशयेनचेतयिता / कृताकृतगुणविशेष: वसुनांधानानां दाटतमश्च अत:अग्निस्तूयते // 15 // हारीदेवीः / अस्थाग्ने: प्रथमम् हारः देव्य: ब्रताव्रतानिकर्माणि ददन्तेधारयति / ताभ्यः अनुपश्चात् / विश्वविश्वेदेवाः देवशब्दलोपः / व्यवहितपदप्रायोईः / कथंभूताहारः / उरुव्य शवम For Private And Personal Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir चसः वहुव्यञ्चनाः / धाम्नास्थानेन ऋत्विक्संवन्धिनापत्यमानाः / पतऐश्वर्ये ऐश्वर्यकुर्वाणाः / याइत्यंभूता यजगृहद्वारस्तावयंस्तुम इतिशेषः // 16 // तेअस्य / तेउषासानक्ता उषाश्च नक्ताचरात्रि: / - अस्थाग्न : योनायोनी आहवनीयाख्य स्थितस्य योषणेभार्ये / दिव्येदिविभवे नकारोनर्थकः / तेइमयज्ञम् अवतांसुगुप्तंकुरुताम् / अड्डुरंसोमञ्च नोस्माकम् सम्पादयतामितिशेषः // 17 // दैव्याहोअग्ने // उकुव्यचसोधारमापत्त्य॑माना // 16 // तेऽस्य // तेऽस्यवो षणेदिन्धेनयोनाऽजुषासानक्ता॥डुमंबुज्जमवतामध्वरन्नः।१७ दैव्याहोतारा // ऽजुवमवरन्नोग्नेर्जुिब्बामुभिगृणीतम् // / कुणुतन्नविष्टिटम् // 18 // तिस्रोदेवौ // तिस्रोदे॒वोर्बुर्हिरेदस तारा / अयञ्चाग्नि रसौचमधाम: हेदैव्यौहोतारौ / ऊर्ध्वमध्वरंन: कुरुतम्देवयानयायिनौं कुरुत-, मित्यभिप्रायः / अग्नेजिह्वामभिगृणीतम् अग्निमुखं साधुवर्णयतमित्यर्थः / कृणुत कुरुतञ्च न:अस्माकं खिष्टिम् / साधुयजनम् // 18 // तिसादेवीः / तिस्रः देव्यः / वहि: आइदंसदन्तु / आसदन्तु आसीदन्तु 143. For Private And Personal Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir इदंवहिः / कतमास्ताः / वडापृथिवीस्थाना सरस्वतीचमधास्थाना। मही स्तुवन्तीति। प्रत्येकन्तिसभिरपियोज्यम् यहा एकमेववाक्यम् / तिस्रोदेव्यो वहिरिदमासदन्तु इडासरस्वती भारत्योमहत्यो 27 / गृणानाइन्ति // 18 // तन्नः / तत्रायस्पोषम न:अस्मभ्यमस्मदर्थम् / तुरीपम तूर्णमश्नुते। वर्ण वाप्नोति / अद्भुतंमहत् अभूतपूर्वम / पुरुच पुरुषुबहुषु यत्वियति निवसति तत्पुरुक्षुत्वष्टादेव: टुन्त्विडासरस्वतीभारती॥मुहौगुणाना॥१६॥ तन्ना तन्नस्तुरीपुम द्भुतम्पुरुक्षुत्त्वष्टासुवीर्यम्॥रायस्प्पोषूविष्यतुनाभिमुस्म्मे॥२०॥ वनस्पतवसृजारराणुस्त्मनादेवेषु // अग्निहव्यशमितासूदया / / सुवीर्यसाधुवीर्यम / रायस्थोषविशेषणान्येतानि चत्वारिपदानि / विष्यतु / सातिरुपसृष्टोविमोचन विमुंचतु / नाभिमस्मे राष्ट्रमध्यम् प्रत्यस्मासु // 20 // वनसतेव / हेवनस्पते अवसृज। मुङमुखतोर-शिव• वाचीनं निक्षिप हविषिरराण: / यहा रादाने ददानः / त्मना मन्वेष्वाड्यादेरात्मनत्वाकारलोयः 1567 देवेषु विषयभूतेषु। कस्मात्वमेवमुच्यसमाभिरित्यताह / यतःचग्निःशमिता शामित्रमिति For Private And Personal Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir तद्धितलोपः। हव्यंहविर्जातम सूदयाति। षदचरणे संस्करोति / अतोहेवनस्पतेअवसृजति-* संवन्धः // 21 // अग्नेस्वाहा। हेजातवेदः स्वाहाकणुहि स्वाहाकृतियज इन्द्राय / हव्यंहवि: प्रयच्छतिशेषः। विश्वेदेवाश्च इदंहविः जुषन्तासवन्ताम // 22 // अथैनंवायवे नियुत्वते / शुक्लन्तूपरमालभत इत्यसापशोः पौवोअन्नारयिवृधः इत्याद्याः षट्याज्यानुवाक्यास्त्रिष्ट भो ति // 21 // अग्ग्नुस्खाहा // कृणुहिजातवेटुऽइन्द्रायहुव्व्यम् // वि वैदे॒वाहुविग्दिर्जुषन्ताम् // 22 // [12] पौवोऽअन्नारयिवधः॥ . सुमेधाश्वेतसिषक्क्तिनियुतामभुिश्शी // तेब्बायवेसम॑नमोब्बित वायव्याः। तबचप्राजापत्यः पशुपुरोडाश इतिपठ्यते / तस्यापोहयत् हे प्राजापत्त्ये। यान् नियुतःअश्वान् / पौवोअन्नान् पौवःपुष्टमन्नं येषामितिपीवोअन्नान् रयिन्धन येवईयन्ति तेरर यिध: सुमेधाः कल्याणप्रज्ञानोवायुः। श्वेत:वायोर्वर्णवचनम् शुक्लोहिवायुरितिश्रुतिः / सिषतिसेचति / नियुतामभिश्री. नियुतामभाश्रयणीयः अथयान्वायुः सिषक्ति तेनियुतोश्वा वाय For Private And Personal Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir वेर्थाय / समनसम्ममनस्कास्मन्त: वितस्थुः तानविश्वानि इत्पादपूरण नरःमनुष्याऋत्विग्यजमानाः स्वपत्यानि शोभनानामपत्यानां यानिकर्माणितानि चक्रुःकुर्वन्ति / एतदुक्तंभवति / वाय्वश्वसंयोगे सतिसर्वमिदं यज्ञादिप्रवर्ततेइति // 23 // रायेनु / रायधनाय उदकलक्षणाय * नुक्षिप्रम् यवायु अन्नतःजनयितुः रोदसौद्यावापृथिव्यौ इमे। जनयो-वापृथिव्योः संयोगपिसतिवायुमन्तरेण जगद्दारणं नोपपद्यते इतिजनितवत्यौ द्यावापृथिव्यौ। यवायुच्च रायधनायोदक स्त्थुर्विश्वेन्नरः स्वपत्त्यानिचक्कु 9 // 23 // गयेनु // यत्रुज्जतुरो। / दसीमेरायेदेवीधुिषांधातिदेवम् // अर्धवायन्नियुतः सच्चतुवा उतरवतब्बसुधितिन्निरके // 24 // आपोह // आपोहुबहुतौद्धि लक्षणाय / देवीधिषणा धियंबुद्धिकर्मवा सनोतिसम्भजते इतिधिषणावाक् मधास्थाना धातिधारयति / देवंदानाविगुणयुक्तम् / अधअयेत्यर्थः समनन्तरमेव / तम्बायुंनियुतः अश्वा:सश्चतस- शिवम रन्त:सेवन्त: स्वाःस्वकीयाः / उतअपिच प्रवेतंवायु वसुधितिवसुनोधनसोदकलक्षणसा धारयितारम् / निरेके / जनैराकीर्णप्रदेशेवस्थितम् वायुम् नियुतः सश्चतखाइत्यनुवर्तते // 24 // For Private And Personal Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir आपोह / आपोहवा इदमग्रेसलिलमेवासीदित्येतद्ब्राह्मणं निदानभूत मनयो:कण्डिकयोः / आपः / पुराकल्पद्योतको हतिनिपातः / यत् / यदावृहती वृहत्यःमहत्यः। विश्वसर्वम् आत्मत्वेन / आयन्प्रापुः / गर्भहिरण्यगर्भलक्षणन्दधानाः / जनयन्ती:जनयिष्यन्त्यः अग्निम् अग्निरूपंहिरण्यगर्भम् हिरण्यगर्भवचनोवा अग्निशब्दः। ततःगर्भात्संवत्सरोषितात् देवानांमध्ये समवर्तत समभवत् शश्व॒मायुगभन्दधानाजुनयन्तौरग्ग्निम्॥ततौटुवानासमंवत्ता सुरेकुकरम्मैदवायहुविषाविधेम // 25 // यश्चित् // वशिचुदापों महिनापुर्वपश्युहक्षुन्दधानाजुनयंतीर्भुजम् // बोदेवेष्ष्वधिदेवाए असुःप्राणात्मकः / एकःदेवानां सहिलिङ्गशरीर:यइत्यभूतोहिरण्यगर्भः / तस्मैकम्मै प्रजापतयेहविषाविधेम हविर्दमदतिविभक्तिव्यत्ययः // 25 // यश्चित् / योपिदेव: अन्तर्यामी। आपः अपतिविभक्तिव्यत्ययः / महिनामहाभाग्येन / पर्यपश्यन परितोदृष्टवान / दक्षप्रजापतिं दधाना:जनयन्ती: यज॑सृष्टियनम् / यश्चदेष्ववेपि अधिदेवः एकआसीत् तम्मैकस्मै प्रजापतयेहवि For Private And Personal Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir षाविधेम हविर्दद्मइतिविभक्तिव्यत्ययः // 26 // प्रयाहि प्रयासि याभिनियुद्भिः / नियुच्छब्द उभयलिङ्गः स्त्रियांपुंसिच / दाश्वांसंयजमानम् अच्छअच्छामेराप्तमिति शाकपूणिः / हवौंषि दत्तवन्तंयजमानमभि। हेवायो इष्टयेयागाय एषणायवा। दुरोण यनगृहेवर्तमानयजमानम् / ताभिर्नियुद्भिरागत्य / नोरयिंभुभोजसं युवस्व / निपूर्वोयोतिर्दानार्थः / नियुवस्व देहि नोस्सम्य कुरुआसीत्कस्म्मैटुवायहविर्षाविधेम // 26 // * प्रयार्मिः // प्रयाभि पासिटाशश्वासमच्छोनियुद्भिवीयविष्टटयेटुरोणे // निनौरयिक सुभोजसंयवस्वनिवीरङ्गव्यमश्श्य॑ञ्चुराधः॥२७॥ आनः॥ आनोनि र रयिन्धनम् किम्भूतम् सुभोजसम् साधुभुज्यततिसुभोजातम् सुभोजसम् / किञ्च / वीरपुत्रम् / गव्यञ्च राधः अश्व्यंचराधोधनम् नियुवरबद्दति // 27 // आनः / आउपयाहि नःअस्माकम् अध्वरंयन्तम् / नियुद्भिःअश्वैः शतिनीभिः / शतानिविद्यन्तेयासु ता:शतिन्यः ताभिःशतिनीभिः सहस्रिणीभिश्च / एतदुक्तम्भवति / बहूनामपि वाहनानांवयन्तपयितुंक्षमाः एत्यच / हेवायो म पटू * यद्यपिपदादौविद्यमानस्य असंयुक्त स्ययकारस्यजकारोच्चारण विहितमस्ति तथापिउपसर्गात्परस्यनभवतितदुक्त याज्ञवल्क्यशिक्षायांउपसर्गपरोयस्तुपदादिरपिदृश्यते। ईषत्स्पृष्टोयथाविद्युत्पदच्छेदात्परम्भवेत् / For Private And Personal Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir अस्मिन्सबने तृतीयसवने मादयश्व | टप्यस्व इदानीमृत्विजः पादेनाह। यूयंपात पालयत स्वस्तिभिः अविनाशैः सदान:अस्मान् // 28 // नियुत्वान्वायी। षट्वायव्यायाज्यानुवाक्याः। तत्रवायो शुक्रोइत्यनुष्टुप् / एकयाचेतित्रिष्टुप् / गायल्योन्याश्यतसः / तृतीयःपादः प्रथमव्याख्यायते / यतोगर न्तागमनशील: टनन्तोयम् गन्ताउदात्तः तदर्मावातत्साधुकारीवा एतेहिटनोर्थाः। असि / युद्भिः शुतिनौभिरध्वरसंहस्रिणौभुिरुर्पयाहियुज्जम् // व्वायो / अस्म्मिन्त्सनेमादयस्वयम्पातखुस्तिभिङ सदान // 28 // नियु त्वन्न्विायो // नियुत्वान्न्वायुवाग यशुकोऽयामिते // गन्तासि सुन्वतीगृहम् // 26 // ब्वायोशुक // ब्वायोशुकोऽअयामितुमध्वो सुन्वतःअभिषवंकुर्वत: यजमानस्यगृहान्प्रति / अतोब्रवीमि / नियुत्वान् नियुत्गुणकोभूत्वा हेवायो / आगहिआगच्छ / अयञ्चशुक्रो ग्रहःअयामि आगच्छत्वितिलकारपुरुषव्यत्ययः तत्वांप्रति। त्वमेवहि शक्रादीनांग्रहाणां स्थानमित्यभिप्रायः // 26 // वायोशुक्रः हेवायो शुक्रोग्रह:अयामिस्वयमेवागच्छतु For Private And Personal Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir तत्वांप्रतिकथंभूतः / मनोअग्रम् रसस्थसारभूत:दिबिएषणेषुयन्जेष्वित्यर्थः / त्वंचआयाहिसोमपीतयेसोमपानाय / यत:स्पाह:स्पृहणीयःहेदेव / नियुत्वतानियुच्छब्दवतामन्त्र णस्तूयसे // 30 // वायुरग्रेगाः / वायुःअग्रगमनशील: यज्ञप्रौः यज्ञेनप्रीयतइतियज्ञप्रौः / साकङ्गच्छगच्छति मनसायजम् / योह्यादरेण विस्मितागच्छ ति समनसासहागतोभवति / कथंभूत: / शिव:शान्तः अग्ग्रन्दिविष्टिषु॥आहिसोमपीतयेस्प्पार्होदेवनियुत्त्वता॥३०॥ वायुरंग्ग्रेगा / वायरंग्ग्रेगायउजुप्पी साकङ्गन्मनसावज्जम् // शि वोनियुद्भिः शिवाभिः॥३१॥ वायोये // तेसहुस्रिणोरासुस्तेभि रागहि // नियुत्वान्त्सोमपीतये // 32 // एकयाच // दुशभिच्च नियुद्भिःअश्वैः शिवाभिरेव // 31 // वायोये हेवायो येतेतव / सहस्रिण: सहस्रसंख्याभियुक्ताः रथासः रथाएवरथास: तेभिः तेः आगहिआगच्छ नियुत्त्वान्भूत्वा सोमपीतयेसोमपानाय // 32 // एकयाच। एकस्यावायव्याया मृचिपात्राणि विमुच्यन्ते / हेवायो स्वभूते। खकीयाविभूति शिवम् For Private And Personal Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यस्य जगत्सर्वसस्वभूतिः / यानिपात्राणि वहसेइष्टये देवयज्यायै / एकयाच नियुतादशभिश्च नियुद्भिः दाभ्याञ्चनियुट्याम् विंशतीच / विंशतिशब्दस्यपूर्वसवर्णदीर्घआदेशाः / विंशत्याच निॐ युद्भिः / तिसृभिश्च विंशताच नियुटिरेव / तातानि पात्राणि दूहविमुञ्च // 33 // तव वायो / हेवायो ऋतस्पते / सत्योदक यज्ञवचनऋतशब्दः / सत्यपते / त्वष्टुरादित्यस्य जामातः। / स्वभूतहाभ्यामिष्टटयबिशुतीचं // तिमभिश्च्चबहसेत्ति शर्ता चनियुभिबीयविहताविमुञ्च // 33 // तवायो॥ तवायत्त र स्प्पतत्त्वष्टामातरडत // अवास्यावृणीमहे // 34 // [12] / अभिर्खा // शूरनोनुमोद॑ग्धाऽवधेनवः // ईशानमुस्यजगत स्खुद्देशक - सह्यादित्यादप आदायगर्भयति ततोविग्रुषोजायन्ते अतोवायुर्जामातात्वष्टुः अद्भुत / अभूतपूर्व / / , तवसंबंधीनि अवांसिअन्नानि आवृणीमहे पायाचामः // 34 // अभित्वा रथन्तरं दक्षिण पक्ष इतिश्रुति: / नान्योवो गायेदितियतोऽत एषांसाहायोनयः पठान्ते / तवेन्द्र प्रगा 144. For Private And Personal Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir य. थोरथन्तरस्ययोनिः / तत्रप्रथमावृहती द्वितीयोसतोरहती। आभित्वाशरनोनुमः / श्राभिमुख्येन त्वांहेपूर नोनुमः नमामः / कथमिव अदुग्धाबधेनवः / यथावत्सान्प्रति अदुग्धाधेनवःनमन्ति एवंत्वांप्रतिहविर्भिः स्तोत्र : शस्वैश्वाभिमुख्य ननमामः / यहा णुस्ततौ। अयमनधातुःशब्दसारूप्यात् अभिनोनुमः अभिष्टुम: त्वांकृतकृत्या:सन्तः स्तुतस्तोत्राः कृतशास्त्राउद्यत हविष्काः / कथमिव / अटुग्धाइवधेनवः / यथाअटुग्ध अकृतकृत्याधेनवः वत्समभिष्टुवुः एवम् / कथंभूतं त्वामभिनोनुमः मोशानमिन्द्रतुस्त्थर्षः // 35 // नत्वान् // नत्वावाँर ॥ऽअन्योदि व्व्योनपार्थिवोनजातोन निष्प्यते // अश्वायन्तौमघवन्निन्द्रब्बा र ईशानमस्यजगतः / जङ्गमस्थ स्वदृशम् स्वःपश्यतीति स्वर्ट क् तस्वदृ शम / यद्दास्वरादित्यः तहत् योदृश्यतेसस्वदृ क्तवर्ड शम् / ईशानंच हेइन्द्रतस्त्युषः स्थितवतः स्थावरस्येत्यर्थः // 35 // नत्वावान् / येनत्वावान् त्वत्मदृशः अन्यः दिव्यःदिविभव: नचपार्थिवःअस्तौतिशेषः / नचजात: , नचजनिष्यतेउत्पत्स्यति अतःअश्वायन्तः अश्वान्कामयमानः हेमधवन् धनवन्इन्द्र / वाजिनः / For Private And Personal Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir बाजोन्नम् तद्येषामस्तिते वाजिनः हविषासंयुक्ताःसन्तः गव्यन्तःगाःकामयमानाः त्वांह-8 वामहे आह्वयामः // 36 // त्वामित् / बृहतोयोनिः देवतादितुल्यम् इच्छब्दएवार्थे हिर्निरर्थकः / त्वामेबहवामहे आह्वयामः / सातौवाजस्य सातिर्लाभ: लाभेअन्नस्यविषयभूते / अपिचकारवः कर्तार: स्तोमानांवयम् त्वामेवचत्वेषु शत्रुषुहन्तव्येषु हेइन्द्र सत्पतिसतांपालयितारम् / जिनौगुळ्यन्तस्त्वाहवामहे // 36 // त्वामित् // त्वामिविहामहे / सातौव्वाजस्यकारवः // त्वांवचेष्ष्विन्द्वसत्त्पतुिन्नरस्त्वाकाष्ठाखब त // 37 // सत्वम्॥ सत्वन्नरिच्चत्वञ्चज्जहस्तYष्ष्णुयामहस्तवानो श्रुतिस्मृविहितानुष्ठातारोनिषिद्धकर्मपरित्यागिनःसन्तः तत्पतिम् / नर:मनुष्या: आह्वयन्ति / त्वामेचकाष्ठासु जेतव्यास अर्वतःअश्ववत: रथिनोवा आह्वयन्ति / नहित्वदृतेपुरुषाणांकिञ्चित्मिध्यतीत्त्यभिप्रायः // 30 // सत्वम् / सात्वन: अस्मभ्यम् हेचित्र चायनीय हेवञ्चहस्त: धृष्णुयाप्रसहनेन मह:महत्वेनच स्तवानः स्तूयमानइतिविकरणव्यत्ययः / हेअद्रिवः अट्रिवन् / For Private And Personal Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org 7. अट्रिसारमयंवञ्चन्तद्यस्थास्तीतिसंवोध्यते अद्रिवइति। गाम्अश्वञ्च रथ्यरथसाधुम् हेइन्द्र संकिर। संकिरतिर्दानातिशये अनेकदेशप्रकीर्णन्देहि कथमिव / सत्रावाजन्नजिग्युष नकारउपमार्थीयः / / यथाजिग्युषेविजितवते / अश्वायहस्तिनेवा / सत्रादाणसहितम् वाजंयवसम् सस्नेहमपरि मितंसंकिरयुदद्युः एवमस्मभ्यन्देहि // 38 // कयान: / वामदेव्यस्ययोनि: तिस्रऐन्ट्यागीयल्यः * अन्त्यपादनिवृत्। कयानश्चित्राभुवदूतौ कयापुन: ऊतौऊत्या केनपुनरवनेनतर्पणेन / न:अम्मा अदिव॥ गामपूर्वगुत्थ्य॒मिन्टुसङ्गिरसुत्राब्वाजन्नजिग्ग्यु॥३८॥ कांनई // कानश्चुित्रऽआ वटूतोसुदाधु सर्खा // कयाशचि ष्ठयावृता // 36 // कस्खा // सुत्त्यामदानाम्माहिष्ठोमत्सुदन्धसः // र कम् चित्र: चायनीयःइन्द्रः आभुवत्भूयात् आकारोवृष्णसहसंवधाते / सदावृधः सदाकालं वर्द्धयिता / सखाच कयाचनाम शचिष्टया शचीतिकर्मनाम मतुब्लोपः / अतिशयेनकर्मवत्या अताकर्मणा सदाबध:सखा भूयादितिवर्तते / 36 // कस्त्वा / कानामत्वाम् मत्सत्मादयति / सत्यःअवितथः मदानांमधमंहिउ: अतिशयेनमदजनकः। अन्धस:सोमस्यखभूतोंशः येनमत्त:स For Private And Personal Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir न्त्वम् / दृढाचित् दृढान्यप्पसुरटन्दानि। आरजे आरुजसिचूर्णयसि वसुचददासौतिशेषः / - यद्दा दृढान्यापिसुवर्ण प्रभृतीनि चिरकालस्थायौनिवसूनिआरजसिचूर्ण यसिदानाय // 40 // अभी। पुण: / आभिमुख्ये नच मुष्ठुच। न:अस्माकंसखीनाम् अवितापालयिता / जरितॄणांस्तोस्तृणाच्च अम्माकम्पालयिता किञ्च / शर्तभवासिशतधाभवसि हेन्द्र ऊतयेअवनाय रक्षणाय / प्रकृतके दृढाचिदारजेवमु // 40 ॥अभीषुणः // *अभौषुणु सखौनामविता रित्तृणाम् // शुतम्भवास्यूतये // 41 // युज्ञाय॑ज्ञाव // युज्ञाय॑ज्ञा वोऽअग्नयेगिरागिराचुदक्षसे // प्रप्त्यममृतंज्जातवेदसम्प्रियम्मि ई त्वादस्माकमेवसखीनां जरितॄणाञ्च // 41 // यज्ञायज्ञावः / आग्नेयसाचः / तत्र वृहत्यौ तृतीयासतोबहती। यज्ञायज्ञस्यसामोयोनि: यज्ञेयज्ञ इतिसप्तम्येकवचनस्य आआदेश: वीप्सायाम। वःइतियजमानविषयम यमदर्थम् अग्नयेअग्निमितिविभक्तिव्यत्ययः वाक्यसंवन्धात् / गिरागिराच / तयावयाच गिरावाचास्ततिलक्षणया दक्षसे / दक्षसमितिसन्नतिः / दक्षवन्तमुत्सा* पिबासोमम्पिबामुत्तस्यस्थामयोभुवोनूरणे शमीष्वेत्यादिसूवेण अभोतीकारस्थषुकारेपरेदी|भवतितेनअभीषुणः इतिसिद्धम् / For Private And Personal Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir शु० हवन्तम् अग्निविशेषणञ्चैतत् / प्रप्रःप्रसमुपोदःपादपूरणमित्यभ्यासः शिंसिपत्याख्यातेनसंवन्धः प्रशंसिषवयम् अहमितिवचनव्यत्ययः / अमृतममरणधर्माणम् जातवेदसंजातप्रज्ञानम् / प्रियंमित्रन्न मित्रमेव / अथवाक्यर्थवशासदानुपूर्वी। अहंयन्जेयजे वायुष्मदर्थे अग्निन्दक्षवन्तं तयातयाचस्तुत्याप्रशंसिषम् अमृतञ्जातवेदसं प्रियंमिवमिव // 42 // पाहिन: / गोपायवः अस्मान / हेअग्ने बन्नासिषम् // 42 // पाहिन // पाहिनोऽअग्नुभएकयापायुत द्वितीय॑या॥ पाहिगीर्भिस्तुिसभिरर्जाम्पतेपाहिचतुसभिर्बसो॥४३॥ जुर्बानपातम् // जुर्जोनातु सहुिनायमस्म्मयुशेमहव्यदा एकायागिरा ऋग्लक्षणया / पाद्युतगोपायच द्वितीयया हास्यांगीर्थामृग्यजुर्लक्षणाभाम् / पाहिचगीर्भि: तिमृभिः स्तुतिभिः। हेऊर्जामन्नानांपते पाहिचचतसृभिःगीर्भिः / ऋगाद्यास्तिस्रः गद्यपद्यकाव्यलक्षणाचतुर्थीगी: / हेवसोवासयित: // 43 // ऊर्जीनपातम् / सत्वं हेअध्वर्यो ऊर्जा- नपातम् अर्जशब्देनापउच्यन्ते / ताभाओषधिवनस्पतयोजायन्ते तेभाएषजायतेइत्यपांपौत्रोग्निः / 503 For Private And Personal Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir 2 तम् / हिन / हिनु / तर्पय / अयम्बस्मयुः / अयंहिअग्नि:अस्मान्कामयते। अतोवयञ्च / दाशेमर संकल्पंकुर्याम / हव्यदातये / हविषोदानाय / भुवदाजेष्वविता। यतोयम्वाजेष्वन्नेषुविषयभूतेषु अवितागोप्ता / भुवत्भवति / भुवध वईनायचभवति / उतअपिच / नातातननांशरीराणाम् वहुवचनोपदेशात्भार्यादिशरीरग्रहणम् यतएवम् अत:ऊर्जीनपातं हिनदतिसंवन्धः / एवमाटूतये // भुवुवाजेष्ष्वविताभुवहुधाउतत्वातातुनूनाम्॥४४॥ मुंवत्स रोसि॥परिवत्सरोसीदावत्सरोसीहत्सरोसिव्वत्सरोसि॥उषसस्तक ल्प्पन्तामहोरात्वास्तेकल्प्पन्तामईमासास्तै कल्प्पन्ताम्मास्तिक रविप्रकर्षण विषममन्त्राव्याख्य याः // 14 // संवत्सरोसि / सञ्चितीग्निरनेनवयुषा अभिमश्यते / पञ्चसंवत्सरमयंयुगाधाक्षं प्रजापतिमितियदुक्तंज्योतिः शास्वेतदिहोच्यते / हेअग्ने यस्त्वंसंवत्सरोसि। * सर्वस्यसरितासि नचत्वामन्यःसारयति / यश्चत्वम्परिवत्सरोसि यश्चइदावत्सरोसि इदाइदानीमितिसमानार्थो / यश्चइवत्सरीसि इदितिनिपातः / यश्चवत्सरोसिनिर्विशेषण तस्यतेभवत: उषस:कल्प For Private And Personal Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir न्तां क्लुप्ताभवन्त्ववयवत्वेन / एवम् अहोरात्राः अईमासा मासातवञ्च संवत्सरश्चकल्पताम् / त्वञ्च प्रेत्यै प्रगमनाएत्यौआगमनाय मंचाचप्रसारयच / समंचप्रचसारयच / स्वेच्छयासंकोचविकाशधर्माभवेत्यभिप्रायः / सुवर्णचिदसौत्याकृतिवचनम् तयादेवतया वाचासहित: / अङ्गिरस्वत् प्राणवलप्पन्तामृतवस्तेकल्प्पन्ताएसंवत्मरस्तेकल्प्पताम्॥प्रेत्त्याऽएत्त्यैसञ्चा अप्प्रचंसारयासुपर्णचिदसितांदवतयाङ्गिरखध्रुव सौंद॥४५॥[११] . इतिसंहितायांसप्तविशोऽध्यायः // 27 // ध्रुवः शाश्वतिकः सौद अवस्थानंकुरु // अभित्वाशूरनोनुमइत्यादिपरमेष्ट्यपश्यत् // 45 // इतिउब्वटकृती मंत्रभाष्ये सप्तविंशोध्यायः // 27 // For Private And Personal Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir (1) होतायक्षत्समिधेन्द्रम् / सौलामण्यामैन्द्रस्यपशोः प्रयाजप्रैषाः / एकादशऐन्ट्रानेकेप्रथमम्येत्यैन्द्राः / आप्रौदेवतास्तु इन्द्रस्यैवविभूतयइति // होतायक्षत् देव्यौहोतायजतु / समिधाइभकाष्ठेन हविर्भूतेन / समिधावासहितम् इन्द्रम् यइन्द्रः विषुस्थानेषु समिध्यते / प्रथमतावत् इडस्पदेपृथिव्या यजनायप्रदेशेसमिध्यते अग्न्यात्मना द्वितीयविद्युदात्मना समिधाते। * होतायक्षत्॥ होताव क्षत्समिधेन्ट्रॅमिडस्पदेनापृथिव्याऽ / / अधि // दिवोचम्मन्त्समिध्ध्यतुऽओजिष्ठश्चर्षणीसहाब्बेवाज्य है नाभौपृथिव्याअधि पृथिवीशब्देनान्तरिक्षमुच्यते। नाभिभूतेअन्तरिक्षप्रदेशे अधेउपरि तत:तीय मादित्यात्मना दिव:लाकस्य वमन्वर्षिष्ठेप्रदेशेसमिधाते एवंत्रिस्थानइन्द्रः स्तूयते / यश्च ओ जिठ: अतिशयेन बली / केषांमधो / चर्षणीसहाम् चर्षणयोमनुष्याः तान्येमहन्त अभिभवन्ति तेचर्षणीसहः देवाः तेषांचर्षणीसहां देवानांमधा / सचेज्यमानोबेत्तुपिबतु स्वमंशमा (1) इमिड: सौत्रामणिकाऽध्याय इति कात्यायनोक्ती : अयमध्यायः सौत्रामणीसम्बन्धी सौत्रामण्यङ्गभूतयोरेन्द्रवायो धस्याराद्यन्तपम्तोः प्रयाजानुयाजषरूपः नतश्च प्रजापत्यविसरस्वत्योऽध्यायस्य ऋषयः / * होतायक्षदेकादशवाहादशपुनरप्येवं चत्वारः षट्चत्वारि ठ० शत् / 145. For Private And Personal Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir ज्यस्य / त्वमपि हेमनुष्यहोत: यज // 1 // होताय दत्तनूनपातम् आप्रौदेवताभिप्राय मिन्द्रा, भिप्रायंवा / सहिमरीचेः पौत्रः / दैव्योहोतायजतु तनुनपातमिन्द्रम् ऊतिभिरवनैः सहितम् जेतारमअयज्वनाम् अपराजितम इन्द्रदेवंदानादिगुणयुक्तम स्वर्विदम् / वर्गवेत्तिजानाति स्वर्गवाविद्यतेइतित्ववित् तस्वर्विदन / केनयजतु / पथिभिर्मधुमत्तमैः / पधिशब्देनात्रह स्यु होतुर्यजं // 1 होतायक्षुत्तनुनौतमुतिभिः॥ होत्यक्षुत्तनून क पातमुतिभिर्जेतारमपराजितम् // इन्द्रन्देवस्वबिदम्पथिभिम धुमत्तमनराईसेनतेजसाब्वेवाज्यस्यहोतुर्वज // 2 // होतावादि वौंध्युच्यन्ते तैर्हिस्वर्ग लोकप्रतिपतन्तियजमानाः / हविभि:मधुमत्तमै रतिशयेनरससंयुक्तः / / कथंभूतमिन्द्रम् / नराशंसेन यज्ञेनसहितम् तबतनूनपात् नराशंसावेकस्मिन्प्रयाजेपठिता वतउभयवानयंप्रयाजः / तेजसाच सहितमिन्द्रयजतु / सचेजामानोवेत्तुपिबतु आजास्यस्वमशंत्त्वमपि हेमनुष्यहोतयंज // 2 // होतायक्षदिडाभिरिन्द्रम् / दैव्योहोतायजतु इडभिः For Private And Personal Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir प्रयाजदेवतथासहितमिन्द्रम् ईडितंस्तुतम् आजुबानमाहूयमामं यजमानैरनेकशः / अमर्त्यममरणधर्माणम् / सचेजामान: देवः ास्थानइन्द्रः / देवैः ह्युस्थानः सवीर्यः समानवीयः / / वञ्चहस्तः / पुरन्दरःपुरान्दारयिता। वेतुपिबतु आज्यस्यस्खमशंत्वमपि हेमनुष्य होतयंज // 3 // होतायक्षदर्हिषीन्द्रम् / दैव्योहोतायत्रतु वहिषीन्द्रम् वर्हिषिप्रयाजदेवतायांस्थितमिन्द्रम् | यनडाभिरिन्द्रम्॥ होतायक्षुदिडाभिरिन्द्रमीडितमाजुबानममर्त्य म्॥र्दबोटुवै सौ? वज्रहस्त पुरन्टरोवेवाज्यस्युहोत–ज॥३॥ होतायक्षहुर्हिषीन्द्रम् // होतावक्षहुर्हिषीन्द्रन्निषहरंवृषभन्नाप सम् // व्वसुंभौरुदैरादित्त्यै सुयुग्ग्व॒िहिरासटुहे त्वाज्य॑स्युहोत साधनमेवाबप्रयाजदेवतावहिः। कथंभूतमिन्द्रम् निषदरमनिकुर्वतां वरमत्कृष्टम् / वृषभंवर्षितारञ्च नर्यापसम् नर्यापसम / नृभ्योमनुष्येमोहितंनयनर्यम् अप:कर्मयस्यसनर्यापाः तनर्यापसमिन्द्रम्। सचेज्यमान: वमुभिःरुट्रैःआदित्यैः। सयुग्भिःसमानयोजनैः वर्हिः आसदत् / आसी For Private And Personal Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir य. दत्त्वितिलकारव्यत्ययः। वेत्तुपिवतु आज्यस्यस्वमशम् त्वमपिहमनुष्यकोतर्यज // 4 // होतायक्षदोजोन / दैव्योहोतायजतु / ओजः नतिसमुच्चयार्थीयोनिपात: / ओजश्वौर्यञ्चसहश्चदारश्च इन्ट्रियशरीरमनोवलान्यपिसमुचितानि / कस्माइतोरतानियजतु / यतएतानि बून्द्रमवईयन् वई यन्ति / इदानीनवस्तुत्यद्वार:सौति / एवमनेनकर्मणा कृतकृत्या हार: / सुप्रायणा:सुप्रगबज ॥४॥होतावक्षुदोजोनवीर्य सहोद्दारण्इन्द्रमवईयन्॥ मुप्पा युणाऽअस्मिन्न्यज्जनेविप्रश्रयन्तामृताबोहाइड्रायमीढषुब्यन्त्वा उज्य॑स्यहोतर्वज // 5 // होत्यक्षदुषेऽइन्ट्रस्य // धुनसुदघेमातर मना: अस्मिन्यते विश्रयन्ताम् विश्रिताभवन्तु / ऋताध:सत्यवधोवा / यज्ञवृधोवा इन्द्रायइन्ट्रार्थम् स् कथम भूताय / मौढुषसेक्त व्यन्तुपिवन्तु आज्यस्वमंशं त्वमपिहेमनुष्य होतयंज // 5 // होतायक्षदुषे / / दैव्योहीतायजतु / उषे नतोषासावितिप्राप्त पूर्वपदलोपश्चान्दसः / इन्ट्रस्य धेनू सुदुधेशोभनदोमें हमे मातरामातरौ। महीमहत्यौ। तेचेज्यमाने सवातरौवाटशब्दोवत्मवचन: समानोवाताव For Private And Personal Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir त्म:ययोस्तेसवातरौ। नकारउपमार्थीयः / एकशिशुकद्रवगावौतेजसावत्ममिवइन्ट्रम्अवर्द्धताम् / वीताम्पिवताम्ाज्यस्यस्वमशंत्वमपिहेमनुष्य होतयंज // 6 // होतायक्ष व्याहोतारा / दैव्योहोतायजतु दैव्यौहोतारौ। भिषजाभिषजौ देवानांवैद्यौ। सखायासखायो समानख्यानौ / यौचहविषा इन्ट्रभिषज्यतः / यौचकवीक्रान्तदर्शनौ यौचदेवौद्युस्थानौ यौचप्रचेतसौ प्रकृष्टज्ञानौमुही॥ सवातगैनतेसावत्समिन्द्रमवईतांब्बौतामाज्ज्यस्यहोत वज // 6 // होतायक्षुढेब्याहोतारा // भिषजासायाहुविषेन्द्र भिषज्ज्यतई // . कुवौदेवीप्प्रचेतसाविन्द्रीयधत्त इन्द्रियंीतामा / ज्ज्य॑स्यहोतुर्वज // 7 // होताबक्षत्तुिस्रादेवी // होतायक्षत्तिस्त्रा र यौच इन्द्राय इन्द्रइतिविभक्ति व्यत्ययः / धत्तःस्थापयत: इन्द्रियंवीर्यम् / तौचेज्य मानौ वीताम्पिवताम् आज्य स्य स्वमशन्त्वमपि हेमनुष्यहोतयंज // 7 // होतायक्षतिस्रीदेवीः / नभेषजं त्रयस्त्रिधात वोपस:नकारोभिन्नक्रमःसमुच्चयार्थीयः। भेषजञ्च येचनयोलोकाः विधातवः / अग्निवाय For Private And Personal Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir षांधातवः अपसः। अपइतिकर्मनाममत्वर्थीयलोपः / अपस्विनः कर्मवन्तः / शीतोष्णवर्षादीनिहितेषा कर्माणि / तांश्चहीतायजतु। कतमास्तिस्रोदेव्यः दूडासरस्वतीभारतीच। मही:महती: इन्द्रपत्नी:इन्द्रस्यपालयित्रीः हविघ्नती:हविषासंयुक्ताः / ताश्चेज्जामाना: व्यन्तुपिवन्तु आजा स्वस्वमशंत्वमपि हेमनुष्यहोतयंज // 8 // होतायक्षत्वष्टारमिन्द्रम् / दैव्यौहोतायजतु / त्वष्टारम्पर देवीन्नभैषुजन्वयसुिधातबोपसुऽइडासरस्वतीभारतीमही ॥इन्ट्र पत्नीहविष्मांतीय॑न्वाज्यस्यहोतर्यजं // 8 // होत्यक्षुत्त्वष्टा है रमिन्द्रम् // होत्यक्षुत्त्वष्टटारमिन्द्रन्देवम्भिषसुयज॑तथि। यम् // पुरुरूपसुरतसम्मुधोनुमिन्द्रायत्त्वष्टादर्धदिन्ट्रियाणुिब्बेत्वा / याजदेवताम् / इन्द्रम्इदिपरमैश्वर्यं त्वष्टाचेन्द्रः सामानाधिकरण्यात् / देवन्दानादिगुणयुक्तम भिषजमिंद्रस्य / सुयजम् / साधुयष्टव्यम् अक्लेशयागम्बा। घृतश्रियम् पाजाहविष्काहिप्रयाजाः / પૂ૭૭ पुरुरूपं वहुरूपम् सुरतसंशोभनरेतस्कम मघोनमघवन्तंधनवन्तम / सामानस्त्वष्टाइंद्राय For Private And Personal Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir इंट्रेतिविभक्तिव्यत्ययः दधत्स्थापयत् इंट्रियाणिवीर्याणि / वेत्तुचपिवतुच आजास्यस्वमंशं त्वम-, पिहेमनुष्यहोतर्यज // 6 // होतायक्षहनस्पतिम / दैव्योहोतावनस्पतियजतु / शमितारहविषासंस्कर्तारम् शतक्रतुम्बहुकर्माणम / धियोजोष्टारम बुड्वे कर्मणोवासवितारम् / इंद्रियवीर्यात्मRoy कम् सचेजामानः / मध्वासमञ्जन् मधुस्वाटुनातेसमञ्जन् यज्ञसंमृष्टीकुर्वन् / पथिभिःसुगेभिः / ज्ज्यस्युहोतुर्वज // 6 // होतावक्षुहनुस्प्पर्तिशमितारम् // होता वाहनुस्प्पति शमिता शुतकतुन्धियोजोष्टारमिन्द्रुिवम् // मद्। ध्वांसमुञ्जन्न्पुथिभिःसुगेभिस्वातियुज्जम्मधुनाघृतेनुब्वेत्वाज्य' स्युहोतुर्वज // 10 // होतावादिन्द्र स्वाहा // होतायक्षुदिन्ट्टए मार्ग:शोभनगमनैः / स्वदातियत्तम / स्वदाति:प्रापणार्थः / प्रापयतुयशंदेवाननु मधुनामधुस्वादनादृतेन सहितम् / वेत्तुचपिवतुचाजास्य स्वमंशंत्वमपि हेमनुष्यहोतर्यज // 10 // होतायक्षदिंद्रम / दैव्योहोयजतु इंट्रम / खहाजासा स्वाहाकारणाजादेवतानाञ्च संस्थाङ्करोतु / खाहा For Private And Personal Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मेदसः / स्वाहाकारणमेदोदेवतानाञ्च संस्थाङ्करोतु / स्वाहास्तोकानाम स्तोकाविंदवः / स्वाहाकारेण चस्तोकदेवतानांसंस्थांकरोतु / स्वाहा स्वाहाकृतीनाम स्वाहाकारणचस्वाहाकृतिदेवतानांसंस्थांकरोत / स्वाहादेवाआजापाजुषाणाइंट्राजामा। प्रयाजानुयाजावैदेवाआजापाः / स्वाहाकारेणवैदेवााज्यपाः जुषाणा: सेवमाना: प्रीयमाणावाइंद्र। आजासावेत्तु स्वमंशंपिबतु त्वमपिहेमखाहाज्ज्य॑स्युवाहामेर्दसु स्वाहास्तोकानास्वाहास्वाहाकतीना स्वाहाहुव्व्यक्तीनाम्॥ वाहाँटुवाऽज्यपाजुषाणाऽइन्ट्रा * ज्य'स्युच्यन्तुहोतुज // 11 // [11] देवम्बुर्हिरिन्द्रसुवन्दुवेझेर वत्स्तीर्णवेद्यामवर्द्धयत् // बस्तोर्बु तम्प्राक्ती तगयाबहिम्मतो नुष्यहोतर्यज // 11 // देववर्हिः / एकादशानुयाजप्रैषा: ऐन्ट्रा:मैत्रावरुणीव्रवातियज्ञसाधनभूतं वर्हिनई रिहदेवता / यद्देवंबहिः / इंद्रमवईयदितिसंवन्धः कथंभूतमिंद्रम् / सुदेवम् शोभनादेवामझदादयो यसा ससुदेवः तंसुदेवम् / देवैर्वीरवत् वहिषोविशेषणमेतत् / देवैः हविषादाटभिः ऋत्विग्भिः वीर For Private And Personal Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir वत्वीरयुक्तम् / यच्चस्तीर्णवेद्याम यच्चवर्हि बातोवृतम् अहनिलूनम यच्चअक्तोरात्रौप्रभृतम प्रधारितम् / बस्तोरहर्वचन: अक्तोराविबचनः इत्ययययम् / इन्द्रमबर्द्धयदितिस त्रसंवध्यते यच्चरायाधनेन हविलक्षणेन अन्यान्यजमानान् बहिणत: बहिषामंयुक्तान् अत्यगात् अतिक्रम्यगतंसंस्कारोत्कर्षात् तद्दविः वमुवनेवप्नुबननायच वसुधेयसावधानाय धननिखननायच वेतुपिवतु। त्वञ्चहेहोतःयज // 12 // देवौरिः यन्न रहदारउच्चते यादेव्योयगृहदार: इन्द्रम्यामन् यामनिकर्मप्रा त्यंगाहसुवनेश्वसुधेयस्यब्बेतुवज // 12 // देवीहीरः॥ देवौहार इन्ट्रेस / ङघातेचीडोमिन्नवईयन्॥आवृत्त्सेनतरणेनकुमारणंचमीवुतापा, ई सत्याम् अवईयन् / याश्चसंचाते देहली कपाटपुटार्गलादि संघातेसतिवीडी दृढाः / नहिसंघा। तमन्तरेण तासां दृढन्वमुपपद्यते / ताइदानीम् आआभिमुख्य नस्थित्वा वत्सेनतकणेन कर्म क्षमण कुमारेण चमोवता मी हिंसायाम / शव गांहिसावता अपअर्वाणम् रेणुककाटम समासपद मेतत् नुदन्ताम / इतिपदानि अपनुदन्तामपनयन्त / वत्सैः पुत्र चर्वतेगम्यते पत्यतेयस्मिन्नित्यर्वा / तमर्वागम् रेणुककाट / काटःकपः / ककाराभ्यास.कुत्सार्थ: / रेणुःपूर्ण:कुत्सित.कूप:रेणुककाटः / 146. For Private And Personal Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir य. तरेगुककाटम् उपलक्षणमेतत् यत्तभ्रंशकराणिकूपादीनि यन्त्रमागीदपनयन्त्वित्यर्थः / वसुवननाय वमुनिधानायच व्यन्तुपिवन्नु त्वमपिहेहोतर्यज // 13 // देवीउषासानता। येदेवी उषाश्चनतारात्रिश्च इन्द्रंयक्षेप्रयतिगच्छति वर्तमाने अह्वेताम आहतवत्यौवईनाय / वेचदेवी देवीविश: / वसवोरुद्राआदित्या विश्वेदेवामझतइत्यादिका: प्रतिप्रथासिष्टाम गतवत्यौवेनसम्भोगेन / वीण रेणकाटन्नदन्तांब्वसुवने वसुधेयस्यव्यन्तुदर्ज // 13 // देवी ऽजुषामानक्त // टुवोऽषासानन्द्रैय्युज्ज्ञप्प्रयुत्ववेताम्॥ दैवी शिप्यायोसिष्टा सुप्पोतुसुधितेव्वसुवनेव्वसुधेयस्यन्वीतांय्वजा१४॥ यहा। दैव्यौवाएताविशीयत्पशवइतिश्रु ति: दैवौर्विश: यज्ञाङ्गभूतान्पशून्प्रति अयासिष्टां गतवत्यौ अनुयाजेषुहितयोर्भाग इत्यभिप्रायः / येचसुप्रीतेसाधुप्रीते। येचसुधितेसाधुहिते / तेव- शिवम् सुवननायवसुनिधानायच वौतांपिबतां त्वमपिहेहोतयंज // 14 // देवोजोष्ट्री / देव्यौजोषयिल्या। इदानीन्देवता विकल्पः / द्यावापृथिव्यावितिवाहोराबेइतिवा | सस्यञ्चसमाचेतिकात्यक्य: येदे For Private And Personal Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org गजोषयिल्यौ / वसुधितीवमुधान्यं यातेवमुनोधारयिल्यावा / येचदेवमिन्द्रम अवईताम अवईयताम / अयायन्याघाद्वेषांसि ययोश्च मध्ये अयावि / युपृथग्भावे पृथक्करोतिलकारवात्ययः / र अन्याएका अघाअघानिपापानि इषांसिचदौर्भाग्यानि आअन्यावक्षत् वसुवार्याणियजमा( नाय / अन्याएकाआवक्षत् आवहतिवसूनिवरीयाणि यजमानार्थम / कथंभूत शिक्षितेविदि देवीजोधौ // देवीजीटोव्वसंधितोटेवमिन्द्रमवईताम् ॥अर्याव्युच्या घाइपास्यान्न्यावक्षुइसुब्बाऱ्यांणुियजमानायशिक्षितवसुवने वसु / धेयस्यव्वीतांय्वज // 15 // देवोऽजुर्जाहुती // देवोऽजुर्जाहुंतीदुधै सुदधुपयुसेन्द्रमवईताम् // इषुमूर्जमुन्न्याव्वक्षुत्सग्ग्धुि सपौति। तवेद्येतत्वन्ने / तेचवमुवननायवसुधानायच बीतां पिवतान्त्वमपि हेहोतर्यज // 15 // देवीo जर्जाहुती। अधस्तनप्रैषोक्तएव देवताविकल्पः / येदेव्यौ ऊर्जाहुतीऊर्जावान्यौ दुर्घदोग्ध्रौ अन्योन्यम् / अनयोरनुसंभोगमिमाः सर्वाःप्रजाः / अनुसम्मुञ्चतइतिश्रुतिः / सुदुधेसाधुदोहने येचपयसा इन्द्रमअवईतामवईयताम् / ययोश्च / इषमन्नम्ऊर्जञ्चतदुपसेचनन्दध्यादि अन्याएकाआ For Private And Personal Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वक्षत् आवहतियजमानाय / सग्धिंसपीतिमन्या अन्याअपराच सग्धिंसमानांजग्धिपुत्रपौत्रादिभिः / सपौसिमानाम्पीति पानावक्षत् / आवहतियजमानाय नवेनपूर्वदयमानेपुराणेननवमधाताम् / येचदेव्यौनवेन ऊर्जान्धान्येनपूर्वपुरातनम्ऊर्जन्धान्यम् / दयमाने दयति:रूपदयाकी / रक्षितवत्यौसल्यौ अधाताम् पुराणेनच ऊर्जाधान्येन नवमूर्जन्धानम् अधाताम् / 1 है मुन्न्यानवेनपूर्धन्दर्यमानेपुराणेनुनवमातामूर्जमर्जाहुती ऽजु, जयमानुनसुव्वार्थाणियजमानायशिक्षुितेव्वसुवने वसुधेयस्यव्वी ताय्यज' // 16 // देवादैया // देवादैव्व्याहोतांगदेवमिन्द्रमवई / धारितवत्यौ। येचऊर्जाहुती ऊर्जयमानेस्वीकुर्वाणे / वसूनिवरणीयानियजमानाय / शिक्षितेविदितवेद्येच वसुवननाय वसुधानायच बौताम्पिवताम् त्वमपिहेहोतयंज // 16 // देवादैव्या। शिव. यौदेवौ दैव्यौहोतारौ। एक:पार्थिवोग्निः एकश्चमधामः। देवमिन्द्रमवईताम यौचहताघशंसावमाष्टीवसुवार्याणियजमानायशिक्षितौ / अघम्पापंयेशंसन्ति तेअघशंसा हताअघशंसायाभ्यान्ती 10. For Private And Personal Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir , हताघशंसौ। आभार्टीम् आहार्टाम् हृतवन्तौवसूनिवरणीयानि यजमानाय / शिक्षितौअवगतार्थी तौचवसुवननाय वसुधानायच वीतांपिवतां त्वमपिहेहोतर्यज // 17 // (1) देवीस्तिस्रः / आदरार्थोभ्यास: पतिन्देवानाम्पालयितारम् इद्रमवईयन् / तासांमधेरभारती भरतआदित्यः / ताम॥ हुताघसावाभाष्टुंबसुब्वार्याणियजमानायशिक्षुितो, वसुवनेब्वसुधेयस्यबीतांव्यन // 17 // देवीस्तिस्र। देवीस्तिस्र स्तुिस्रोदेवी पतिमिन्द्रमवईयन् // अस्प॒क्षुभारंतीदिवाई ढुज्जर सरंखुतोडावसुमतीगृहान्न्वसुबनव्वसुधेयस्यब्वान्तुयज' // 18 // तस्यइयम्भारती दिवम् अक्षत्स्पृशति / रुद्र यज्ञ सरस्वती सरस्वतीचरुद्रः सहितायज्ञम् अस्पृक्षत् / इडाचवसुमतीवसुभिः तहतीगृहान् अस्पृक्षत् / गृहशब्देनानायलोकोभिधीयते लक्षणयापृ-0 थिवीस्थानत्वादिडायाः। ता:वसुवननाय वसुधानायच व्यन्तुपिबन्तु त्वमपिहेहोतर्यज // 18 // __ (1 अतिजगतीच्छन्दस्क यंऋक For Private And Personal Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagar देवइन्द्रः। यज्ञोदेवता देवःदानादिगुणयुक्तः यत्नःइन्द्रः। इदिपरमैश्वर्य परमेश्वरः / नरा। शंसः नरामस्मिन्नासौनाः शंसन्तीतिनराशंसः / त्रिवरूथाः / वरूथशब्दोरहवचनः त्रीणिवP स्थानि गृहाणिसरोहविर्धानाग्नीध्राणियस्य सत्रिवरुथः / विवन्धुरः वन्धुरशब्दःसारथिस्थाॐ नवचन: / त्रीणिवन्धुराणिसारथिस्थानानि ऋग्यजुःसामलक्षणानियस्य सत्रिवन्धुरः / देवमिंद्रम ट्वाइन्द्रः॥ दुवाइन्ट्रीनगशख्स'स्त्रिवरूथविबन्धुरोदेवमिन्द्रमव ईयत् // शुते शितिपृष्ठानामाहित मुहस्रेणुप्प्रवर्ततेमित्त्वावरुणे दस्यहोत्वमहतोबहुस्प्पतिस्तोत्वम शिश्वनाव_वंव्वसुवनेव्वसु धेयस्यब्वेतुबज // 16 // देवोदेवै // देवोदुवैनुस्प्पतिर्हिरण्यपर्णो वर्द्धयत् / यश्च शतेनशितिपृष्ठानामाहितः / शतगुणोहिअग्निराधेयः तदभिप्रायमेतत् / सहसेणगवांप्रवर्तते। सहमेणगवांयष्टव्यमित्यक्तः। यस्थचास्य मित्रावरुणाइत् मित्रावरुणावेवहीत्रमर्हतः। बृहस्पतिश्च स्तोत्रमौहानमर्हति / अश्विनौच आध्वर्यवमर्हतः / सवसुवननाय वसुधानायच वेतुपिवतु त्वमपिहेहोतर्यज // 18 // देवोदेवैः / यूपउच्यते योदेवोवनस्पतिः For Private And Personal Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir देवरेवहिरण्यपर्णः देवा:सौवर्णानिपर्णानियस्यसतथोक्तः / मधुशाखः मधुरसवतौशाखायस्य समधुशाखःदेवैरेव / सुपिप्पलः साधुफलोदेवैरेव / देवमिन्द्रमवई यत् यश्चदिवम् अग्रेण अस्पक्षत् / / o स्पृशति / आअन्तरिक्षम् स्पृक्षदित्यनुषङ्गः / मधेनेतिशेष: साकांक्षत्वात् / पृथिवीमहोत् / पृथिवीम्उपरणेतिशेष: अ होत्दृढामकरोत् सवनस्पतिः वसुवननायवसुधानायच वेतुपिवतु। / मधुशाखसुपिप्पलोदेवमिन्द्रमवईयत् // दिवमग्ग्रेणास्पृक्षदान्तरि क्षम्पृथिवीमदृव्हीवसुवनेचसुधेयस्यब्बेतुवज // 20 // देवम्बहि॥ टेवम्बहिर्वारितीनान्देवमिन्द्रमवई यत् // स्वासस्त्थमिन्द्रेणासन्नम् / त्वमपिहेहोतर्यज // 20 // देवंबर्हिः / यद्देवंबहि: वारितीनाम् / वा:उदकम्हणगतौ वाद3) कमिति:स्थानंयस्यतावारितय ओषधय: तासांमध्येदेवंवरिष्टम् / यद्दावार्यइतिदर्भरूपणावस्थानं ई येषांतेवारितयःदर्भाः। अत्रश्रुतिः। तदेताभ्यामुत्युना तीत्युपक्रम्य / तस्मादुहेकाआपोवीभ-है स्थाञ्चक्रिरेति अभिधीयते। तमेद इत्याह / वारितौनान्दर्भाणांसंघातभूतम् देवमिन्द्रम For Private And Personal Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir वई यत् / यच्चस्वास त्यम् साधुआवेयंदेवमनुष्यैः। यवच इन्द्रेणासन्नम् आस्थितम् यच्च अन्याअन्यानिहवींषिअभ्यभूत् अभिभवतीतिकालव्यत्ययः। तत्वसुवननाय वसुधानायच वेतुपिवतु त्वमपिहेहोत: यज // 21 // देवोअग्निः / विष्टकृत् शोभनमिष्टंकर्तव्यमिति यस्यान्याबहीष्यभ्यभूहसुवनेच्वसुधेयस्यब्बेतुबजे // 21 // देवोऽअ ग्निः // देवोऽअग्निविष्टुक्कडे वमिन्द्रमवईयत् // विष्टटॉर्च विष्टटुकत्स्विष्टटमुद्दयकरोतुनोवसुवनेव्वसुधेयस्यब्बेतुयज // 22 // अग्निमुद्यहोतारमवणीतायंत्यज॑मानु पचुन्न्पक्क्ती पचन्न्पुगेर डाशम्बध्नन्निन्द्रायुच्छागम् // सूपुस्त्थाऽअद्यदेवोव्वनस्पतिरभवदि यमधिकारः देवंच इन्द्रमवईयत् / यश्चस्विष्ट' कुर्वन् स्विष्टकृतनामभूतःसः / स्विष्टंसाध्विष्टम् अद्य अस्मिन्कर्मणिकरोतु नोस्माकम् अपिच वसुवननाय सुधानायच वैतुपितु त्वमपिहेहोतयंज // 22 // For Private And Personal Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir पग्निमद्य / व्याख्यातः प्रेषः ऐन्द्रएक: पशुरितिविशेषः // 23 // होतायक्षत् / इन्द्रायवयोधसे / पशुसंस्कारश्चन्द्रः। ततेप्रैषाः अत: प्रयाजदेवताऽ विरोधेनयथैन्द्रा: संपद्यन्तेतथाव्याख्यायन्ते / दैव्योहोतायजतु। समिधानमग्निम् / महच्चयश: अग्निसम्बन्धि / सुसमिई न्ट्रायच्छागेन // अघुत्तम्मेदस्त प्रतिपचताग्भीदवौवधत्पुरोडा शैन // त्वामुयऽषि // 23 // [12] होतावक्षत् // होतायक्षत्स मिधानम्महद्यशु सुसमिढुंवरेण्यमुग्निमिन्ट्रैव्वयोधसम् // गायत्री छन्दैऽइन्ट्ठियन्त्राविङ्गांवयोदधुहेलाजस्यहोतुर्यजं // 24 // चाग्निमेव / वरेण्यंवरणीयंचाग्निम् / इन्द्रंचव योधसम् वय: अधातत्र्यमस्मिन्नितिवयोधा स्तंवयोधसम् वयमः आयुषोवाधारयितारम् / किंकुर्वन् दैव्योहोतायजतु / गाय वच्छन्दः इन्द्रियम्वीयंच विंचगांवयश्चायुः दधत्धारयन् इन्द्र इत्याध्याहारः प्रकरणात् / प्रयाजदेवता व इन्द्रसहितावेतुपिबतु आज्य स्थखमंशंत्वमपिहेमनुष्य होतयंज // 24 // होतायत्तनून बातम् / 147. For Private And Personal Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir दैव्योहोतायजतु तनूनपातम् उशिदम् उक्षेत्तारं यज्ञफलानाम्। यंघगर्भम्अदितिः दधेधारि* तबती। शुचिंपविवम्। इन्द्रचयजतु वयोधसम् वयआयु(यतेयस्मिन् तंवावयसोधारयि तारंवा। किन्दैिव्यौहोतायत्रतु / उष्णिहंचछन्दः इन्द्रियंवौयंचदित्यवाहंचगांवयआयुश्च इन्द्रहोत्यक्षुत्तनूनपातमुद्भिदम् // होत्यक्षुत्तनूनतमुद्भिदंव्यङ्ग / मर्दितिर्दधेशुचिमिन्ट्रैव्वयोधसम् // उष्णिणहुन्छन्दऽइन्द्रियन्दित्त्यु, वाहुङ्गांचयोदधुहेत्वाज्यस्युहोतुर्यजं // 25 // होतायक्षद्वीडेन्न्य मीडितम् // होतायक्षद्वीडेन्यमीडितहत्त्वुहन्तमुमिडाभिरीडार्छ / दधत् धारयन् / प्रयानदेवताच इन्द्रसहितावेतुपिवतु भाज्यस्यस्खमशं त्वमपिहमनुष्यहोतयंज // 25 // होतायचदौडेन्यम् / दैव्योहोतायजतु / ईडेन्यंस्तुत्यम् ईडतेरेन्यप्रत्ययः / ईडितम् ऋषिभिः सुतम। छत्रहन्तमम् अतिशयेनत्वस्यहन्तारम् / इडाभिः प्रयाजदेवताभिः ईडयस्तुत्यम्। इन्द्रविशेषणान्येतानि / सह: सोमंचयजतु / सहः सोमभदौ नैघंटुकौइन्द्रसम्बन्धा For Private And Personal Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir र त्पठ्यते। इन्द्र'चवयोधसं वयसआयुषोधारयितारम्। किंकुर्वन्यजतु / अनुष्ट भंचछन्दः इन्द्रियम्वीर्यच पञ्चाविंचगांवयआयुश्च इन्ट्रे दधत्धारयन्। प्रयाजदेवताच इन्द्रसहितावेतुपिवतु / आज्यस्थस्वमंशं त्वमपिहेमनुष्यहोतयंज // 26 // होतायक्षत् / दैव्योहोतायजतु / सुवर्हिषंशासहुसोममिन्द्रवयोधसम्॥ अनुष्टटभुञ्छन्देऽइन्द्रियम्पञ्चाविङ्गाब योदधुत्वाज्यस्युहोतुर्यजं // 26 // होतावक्षत्सबहिषम्पूषगव तम् // होतायक्षत्सुबहिषम्पूषुण्ण्वन्तुममर्त्यः सीद॑न्तम्बुर्हिषिप्पि येमृतेन्द्रव्वयोधसम् // बृहतीञ्छन्दै इन्द्रियत्ति'वत्सङ्गाँव्वयोदधुहे / मनवर्हिष्कम् / पृषण्वन्तंपूष्णासंयुक्तम् अमर्त्य ममरणधर्माणम् / सौदन्तंबर्हिषिप्रियेअवस्थानं कुर्वन्तं वर्हिष्यभिरुचिते अमृतेइन्ट्र'वयोधसम्। किंकुर्वन्यजतु। वृहतीचछन्दः इन्ट्रियवीर्यच चिवसंचगांवय आयुश्च इन्ट्रे दधत्धारयन् / प्रयाजदेवताचेज्यमाना इन्द्रेणसह वेतुपिवतु आज्यस्वस्खमंत्वमपि हेमनुष्य होतयंज / ननुप्रयाजदेवताया आवधिकरणभावः केवलमुपलभ्यते For Private And Personal Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु० नतु देवतात्वमिति यश्चोदयेत् तम्प्रत्याह / इत्थंभूतमेव वर्हिषोदेवतात्वमित्यदोषः / तथाहाय. रामपिदेवतात्वम् // 20 // होतायक्षयचस्वतीः। दैव्योहोतायजतु व्यचस्वतीय॑ञ्चनवतीर्गमनसं. वतीः। सुप्रायणाः साधुप्रगमनाः ऋताबध: सत्यटधोवा यजधोवा। हारः यत्तग्रहहारः 58 वाज्यस्यहोतयंज // 27 // होतावक्षुब्यर्चस्वती सुप्पायुणाई // उ. होतावक्षुय चस्वतोऽ सुप्पायुणाऽताबोहादेिवौहिरण्ययौं / ब्रहमाणुमिन्ट्रॅव्वयोधसम् // पत्रिच्छन्दऽहुहेन्द्रियन्तुर्भुवाहगाँव योदधुद्दान्त्वाज्ज्यस्युहोतुर्वज // 28 // होतावक्षत्सुपेशसासुशि हितीयबहुवचनान्तान्येतानिपदानि / देवीर्यज्ञफलदात्रीः हिरण्मयौ अविनाशिनौः। तथा / ब्रह्माणंपरिबटम् इन्द्वयोधमम् आयषोधारयितारम्चयजतु। पक्तिंचछन्दः / इहेत्यभिनयदर्शनम् / इहास्मिन्निन्द्र इन्द्रियवीर्यच तुर्यवाहंगांच आयुश्चदधत् धारयन् सेन्द्राद्वारश्चेज्यमानाव्यन्तु पिवन्तु आज्यस्यस्वमंशंत्वमपि हेमनुष्यहोतयंज // 28 // होतायक्षत्सुपेशसा / दैव्योहोताय For Private And Personal Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir जतु सुपेशसामुपेशसौपेशतिरूपनाम / सुरूपे / सुशिल्पे। यह प्रतिरूप तच्छिल्पम् अन्योन्य प्रतिरूपे / बृहतीमहत्या उभेनकोषासान। समुच्चयार्थीयोनकारः उभेअपिनक्तोषसौ। नक्ताचरात्रि: उषाश्चरावेरपरकालः / दर्शतेद र्शनीये / विश्वंसर्वात्मकमिन्द्र वयोधसम् आयलप्पे // बहुतोऽउभेनक्तोषासानदर्शतेविश्वमिन्द्रव्योधसम् // विष्टटभुञ्छन्टऽहेन्ट्ठियम्पष्ठ वाहुङ्गाँव्ययोदधहीतामाज्यस्युहो। तुज्जज // 26 // होतायक्षुत्प्रचेतसादवानामुत्तमंय्यशोहोतागदैया कुवीसुयुजेन्द्रबयोधसम् // जगतोञ्छन्दैऽइन्ट्रियमनड्डाहुङ्गाल्यो षोधारयितारञ्च यजतु। किं कुर्वत्यजतु / विष्ट भंचछन्दः दहइंटे इंट्रियंच वीर्यपष्ठवाह गांचवय आय श्चदधत् धारयन्। नतोषासौसेंट्रचेज्यमाने वीतांपिवतामाजास्य स्वमंशंत्वमपि हेमनुष्यहोतर्यज // 26 // होतायक्षत्प्रचेतसा। दैवयोहोतायजतु प्रचेतसाप्रकृष्टज्ञानौ। यौचर देवानामुत्तमं यशः पश्खौ। पुञ्जीकृतय होतारौदेव्यौ अयचाग्निरसौचमध्यम: / कवीक्रान्त For Private And Personal Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuramandir दर्शनौ। सयु जासह योगिनी इंद्रश्चवयोधसम् आयु षोधारयितारम् / किङ्कर्षन्दैव्योहोतायजतु / जगतौञ्छन्दः इंद्रिय वौर्यं च / अनड्डाहंच गांवय: आय प्रचइंट्रे दधत् धारयन् / तौचदैवी होतारौसैद्रा वीजामानौ वीतांपिवता माजास्यस्वमंश त्वमपिहेमनुष्यहोतयंज // 3 // होतायक्षत्पेशस्वतीः। दैव्योहोतायजतु पेशवती:रूपसमृच्चाः तिस्रोदेवी:हिरण्ययीः हिरण्या। दधहीतामाज्ज्यस्युहोतज // 30 // होतावक्षत्पेशवतीस्तुिस्र होत्यक्षुत्पेशवतीस्तिस्रीदेवीहिरण्ययोर्भारतीईहुतीमहीपति मिन्द्रब्बयोधसम्॥बिराजञ्छन्दंडहेन्ट्रियन्धुनुङ्गानव्वयोदधयान्त्वा लङ्कातशरीराः। भारती.भरतादित्यः तस्यभारतीःवहुवचनमिडासरस्वत्युपलक्षणार्थम् / वृहतीः / र प्रभावत:महत्यःमादित्येन्द्राग्निसंबन्धात्। पतिम्पालयितारम् इन्ट्रञ्चवयोधसम् आयुषोधारयितारम्। शिवम् यजतु / किंकुर्वन्यजतु विराजञ्छन्दः दूहास्मिन्निन्द्रे इंट्रियंवीर्यश्च / धनुङ्गांन नकारःसमुच्चयार्थीयः / 585 धेनुञ्चगांवयआयुश्च दधत्धारयन्। तिस्रोदेव्यश्च सेन्द्राईज्यमानाः व्यन्तुपिवन्तु भाज्यस्य स्वमंशत्व For Private And Personal Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir मपि हेमनुष्यहोतर्यज // 31 // होतायक्षत्रेतसम् / दैव्यो होतायजतु सुरेतसंत्वष्टारम् / शोभनंहि रेतस्त्वष्टर्जगदुत्पत्तिवीजत्वात् / पुष्टिवईयितारम् / रूपाणिविभ्रतंपृथक्पुष्टिम् / जातिपुरूपाणि पुष्टिञ्चपृथकधारयन्तम् / इंद्रञ्चबयोधसम आयुषोधारयितारयजतु / किंकुर्वन्यजतु विपदञ्चकन्दः इंट्रियंवौर्यम् उक्षाणगांन नकारःसमुच्चयार्थीयोभिन्नक्रमः / उक्षाणञ्चगाम् वय ज्यस्युहोतुर्यजं // 31 // होतावक्षत्सुरेतसुन्त्वष्टारम् // होतावक्ष त्सुरेतसुन्त्वष्टारम्पुष्टुिवर्द्धन रूपाणिबिभ्रतुम्पृथक्पुष्टुिमिन्द्रव्य योधसम्॥पिंदन्छन्द इन्द्रियमुक्षाणुङ्गान्नव्वयोदधुहेवाज्यस्थ हो / तुर्वज // 32 // होतावक्षुबनस्पतिशमितारम् // होतावक्षुहनुस्प्प आयुश्च इंट्रेदधत्वरयन् / त्वष्टाचसेन्ट्राईज्यमानः बेतु पिवतु आज्यस्यस्वमंशंत्वमपि हेमनुष्यर होतर्यज // 32 // होतायक्षहनस्पतिम् / दैव्योहोतायजतु वनस्पतिशमितारं हविषःसंस्कर्तारम् / शतक्रतुंबहुकर्माणम्। हिरण्यपर्णम् सुवर्ण मयपत्रम् / उक्थिनम् / वचपरिभाषणे पस्यउक्यम् / For Private And Personal Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir 28 9 वचनवन्तयत्नवन्तंवा। रशनांविभ्रतम् वरूपानुवादः। यूपैहिपशवधनार्थ रज्जुर्वधाते / वशि कान्तम्भगम्भजनीयम्। इंद्रञ्चवयोधसमायुषोधारयितारंयजतु / किंकुर्वन् दैव्योहोतायजतु / - ककुभञ्चछन्दः इहें इंद्रियंवीर्यञ्च वशांवन्धविहतङ्गर्भघातिनीञ्चगांवयआयुश्च दधत्धारयन् / वन- स्पतिश्च सेंद्रईज्यमानः वेतुपिवतुाज्यस्य स्वमंशत्वमपिहेमनुष्यकोतर्यज // 33 // होतायक्ष तिशमिताशुतकतु हिरण्यपर्णमुक्थिनरशनाम्बिभ्रतंबशि भा. म्भगुमिन्द्रध्वयोधसम् // कुकुभुउछन्दाइहेंद्विय ब्वशांब्बेहतुङ्गांचयो में दधत्वाज्यस्य होतर्वज // 33 // होतायक्षुत्स्वाहाक्कतीरग्निम् // न होतावक्षत्स्वाहाकृतीरग्निहप॑तिम्पृथुग्ग्वरुणम्भेषजङ्गविक्षुत्त त्खाहाकृतीः / दैव्योहोतायजतुस्वाहाकृती:प्रयाजदेवताः। अग्निञ्चगृहपतिं पृथक्यजतु / 1 वरुणञ्चभेषजम् / तथा कविक्रान्तदर्शनं क्षत्रस्पहाराट्रक्षितारम् इंद्रञ्चवयोधसमायुषोधारयिA तारम् यजतु / किंकुर्वन्यजतु भतिछन्दसञ्चछन्दः इंद्रियञ्चवीर्य वृहत्महत् ऋभच गांवय For Private And Personal Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir र आयुश्च इंद्रदधत्धारयन् / सेंट्श्व प्रयाजदेवता ईजामाना व्यन्तुपिवन्तुआजास्य स्वमंशत्वमपि हेमनुष्यहोतर्यज // 34 // अथवयोधसोनुयाजप्रैषाः। देवंवर्हिः यदेवंद्योतनंवहिः। वयोधसमायुषोधारयितारं देवंदानादिगुणयुक्तम, इंद्रम अवईयत्किंकुर्वन् / गायल्याछन्दसाइंद्रियवीमिन्ट्रैव्वयोधसम् // अतिच्छन्दसुज्छन्दन्द्रियम्बुहषभङ्गांब्योद व्यन्वाज्यस्युहोतुर्वज // 34 // [ 11 ] देवखहि // टुवम्बुर्हिवी योधसन्देवमिन्द्रमवईयत् // गायचाच्छन्दसेन्ट्रियञ्चक्षुरिन्ट्रेवयोद धहसुवनेव्वसुधेयस्यव्वेतुबजे // 35 // देवौहारः // देवौहारोवयोध यञ्चक्षुश्च इंट्रे वयायुश्चदधत्धारयत् / तत्वसु वननायवसुधानायच वेतु पिवतुजास्थस्वशं A त्वमपिहेहोतयंज // 35 // देवी हीरः / यादेव्याहारः वयोधसमायुषोधारयितारम् शुचिंपवि बम इंद्रम्अवर्द्धयन् किं कुर्व यः / उगिहाछन्दसा इंद्रियंवीर्यप्राणञ्च इंद्र वयाय श्चदधत् / 148. For Private And Personal Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir दधत्य तिलिङ्गवचनव्यत्यय: धारयन्त्यइत्यर्थान्तरम् / ताःवमु बननायवसुधानायच व्यन्तुपिवन्तु त्वमपिहेहोतयंज // 36 // देवीउषासानता। येदेव्यौउषासानता उषाश्चरावेरपरकाल: नतोतिरात्रिनाम / देवमिंद्रवयोधसमायुषोधारयितारम् / देवीदेव्यौदेवम् एकोदेवीशब्दोदीप्तिवचनोसशुचिमिन्द्रमवईयन् // णिहाच्छन्दसन्द्रियम्प्राणमिन्द्रुब्बयो दधद्दमुक्नैव्वसुधेयस्यब्यन्तुबज // 36 // देवोऽउषासा नक्तां // दे वमिन्द्रवयोधसन्देवीदेवमवईताम् // अनुष्ड्भाच्छन्दसेन्द्रियम्बलु। मिन्ट्रेवयोदधहसुवनैव्वसुधेयस्यबीतांव्यजं // 37 // देवीजोष्टौ // परोदानादिगुणयुक्तषचन: देवशब्दोप्येवमेव / अबईताम् किंकुर्वन्यो / अनुष्टुभाछन्दसा इंद्रियवलंच इंट्रेवयआयश्च दधत्धारयन्त्यौ / तेवसुबननाय वसुधानायच वौतांपिवतामाजास्य स्वमंशन्त्वमपि हेहोतर्यज // 37 // देवीजोष्टी / येदेव्यौजोष्ट्रयौ जोषयिन्यौ। वसुधिती वसुधाल्यौ देवंदीतंवयोधसमाय षोधारयितारमिंद्रम देव्यौदेवम् अवईताम् / तेहत्त्याछन्दसा इंद्रियंत्रीय 587 For Private And Personal Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir थोवंचइन्द्रेवयायुश्च दत्रत्धारयन्यो सत्यौयसुबननाय वसुधानायच वौतांपिवतामाजस्य करू मंशत्वमपि हे होतयज // 38 // देवीऊर्जाहतो। येदेवौदात्यौ ऊर्जाहुतौऊर्जावान्यो दुधेदोग्ध्यो मुदुधेसु दोड़नेपयसा इन्द्रवयोधसं देवौदेव्यौयस्थानेदेवंदुस्थानम् अवई ताम् / तेपंक्त्याछ। देवोजोष्ट्रीव्वसुधितोदेवमिन्द्र्चयोधसन्देवीदेवम॑बर्द्धताम्॥ बुहत्त्या / च्छन्दसेन्ट्रिय श्रोत्वमिन्टेवयोदर्धवसुवनेव्वसुधेयस्यब्वीतांय्वज॥ // 38 // देवोऽऊर्जाहुती॥ देवोऽजुर्जाहुतीदर्धेसुधेपयुसेन्ट्रॅव्वयो धसन्देवीदेवम॑वीताम् // पुयाच्छन्दसेन्ट्रियशुकमिन्द्रुब्वयोदधहसु, / वर्नव्वसुधेयस्यब्बीतांय्यज // 38 // देवादैव्या // दुवाटैव्व्याहोतारा। न्दसा इन्द्रियंवौर्यशक्रौंच इन्ट्रे वयायुश्च दधत्धारयन्त्यो वसुवननायवसुधानायच बीतांपिवता है माज्यस्य स्वमंशत्वमपिहेहोतर्यज // 38 // देवादेवया। यौदेवी दातारौदैवयोहोतारौ। अयंचानिरसौचमध्यमः। देवंदातारमिन्द्रं वयोधसमायुषोधारयितारम देवौदुप्रस्थानी देवंदुप्रस्थानम् / For Private And Personal Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahary Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir के अवई ताम् / तौविष्ट भाछन्दसो इन्दि यौयन्त्विषिर्दीहिञ्चइन्ट्रे वयश्चायुः दधत् धारयन्तौ वमुदननायवमुधानायच बौतांपिवता माज्यम्यस्वमंशं हेहोतयंज // 40 // देवौस्तिस्रः / या: तिस्रोदेव्यः सरस्वतोडाभारत्त्यः / आदरार्थमभ्यास: / वयोधसमायुषोधारयितारम् पतिपालयिताम् इन्द्र मवई यन् / ताजगत्याछन्दसा इंट्रियवौर्यम् / सुषम् भूषशब्दोवलवचनः / कलम इंद्रसे देवमिन्द्रव्वयोधसन्दे॒वौटुवम॑वईताम् // विष्भाच्छन्दसैन्द्रियन्त्वि तिमिन्ट्रेचयोदधहसुवनेश्वसुधेयस्यबीतांव्यजं // 40 // देवीस्तुिस्र * देवौरतीस्रस्तुिस्रोदेवी-योधसम्पतिमिन्द्रमवईयन्॥जगत्याच्छन्टसे न्द्रुियशूषमिन्द्रुव्वयोदधहसुवने वसुधेयस्यव्यन्तुबज॥४१॥ टुवोनरा वयवायुश्च दधत् दधत्यः वसुवननाय वसुधानायच यान्तुपिबन्तु भाजयस्यस्वमंशं हे होतजा // 11 // देवोनराशंसः। बोदवोदास्थानो नराशंसायन: देवेंद्रस्थानम् इंद्रम वयोधसमायुषोधाररिता- रम्। देशोदेवम् दानादिगुणयुक्तइत्युभयन / अवई यत् / सइदानौंविराजाछन्दसा इट्रियंवीय 588 For Private And Personal Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir रूपञ्च ट्रे वय आयुश्च दधत् धारयन् वसुवननाय वसुधानायच वेठपिवतु अानास्यस्वमंशं हेहोतयंज // 4 // दबोवनस्पतिः। योदेवोवनस्पति प: देवंयस्थानम् इंद्वयोधसमायुषोधा. रयितारम् देवोदेवम् दोप्तइत्यु भयव / अबई यत् / सइदानौन हिपदाछन्दमा इंद्रियवौयं भगमैश्वर्यची शसः // देवीनगशसोदवमिन्ट्रैवयोधर्सन्दुवोटुवम॑वर्धयत्॥विरा। जाच्छन्दै सेन्टियरूपमिन्टेश्वयोदहसुवर्नव्वसुधेयस्यब्बेतुवर्ज॥४२॥ देवोब्बनुरूप्पतिः // देवोजनस्पति वमिन्द्रध्वयोधसन्देवोदेवर्मवई यत् // धिपदाच्छन्दसेन्द्रियम्मगुमिन्ट्रेव्वयोदधहसुवनेव्वसुधेयस्यब्वे तुयज // 43 // देवबुर्हिः // देवम्बर्हिव्वारितीनान्देवमिन्द्र'क्योध इंट्रेवयायुश्च दधत् धारयन् वसुवननायच वसुधानाय वेतपिवतु त्वमपिहेहोतर्यज // 43 // ई देवंबहिः / यद्देवं अष्ठम वाहः / वारितोनाम वाभा : अद्भाः इतौनामुगतानाम् / ओषधौनामित्यर्थः / देवंद्युस्थानम इन्द्र वयोधसमायुषोधारयितारम देवन्देवम् दानादिगुणयु For Private And Personal Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir तइत्व भयत्र | अबई यत् / तत्ककुभाछन्दसा इन्द्रियंवौययशश्च इन्द्र वयायुश्च दधत्धारयन् / ॐ वसुवननाय वसधानायच वेतपिवतु आजास्थ खमंशं त्वमपिहेहोतयंज // 44 // देवोअग्निः।। यौदेवोद्य स्थान: अग्निःस्विष्टकृत्माधुइष्ट कर्तवामितियसपायमधिकारः / देवा स्थानम सन्देवन्दुवमवईयत्॥ कुकुभाच्छन्द'सेन्टि यय्यशुऽइन्ट्रेब्वयोदधद्द सुवनेव्वसधेय' स्यब्बेतुवज // 44 // देवोऽग्निः // विष्टटकहेवमिन्द्र व्वयोधस'न्द बोदेवमंवर्धयत् // अतिच्छन्दसाच्छन्दसे न्ट्ठियक्षुत्र मिन्द्रेव्वयोदर्धवसुवनव्वसुधेयस्यब्बेतुवज // 45 अग्निमुद्द्यहोतारम गीतायट्वजमानु पचुन्यक्क्ती पचनपुगेडाशम्बध्ननिन्द्रायव्वयो इन्द्रवयोधसमायषोधारयितारम् / देवोदेवम् दीप्तइत्यु भयत्र / प्रवर्द्ध यत् अतिछन्दसाछन्दसामइदानीम् इन्द्रियंवौर्यम् क्षवक्षतोवाणम् इन्द्रेवयआयुश्च दधत् धारयन वसुवननाय- शिव. वसुधानायच वेतुपिबतु आजासास्वमंशं त्वमपिहेहोतयंज // 45 // अग्निमद्येति व्याख्यातम् For Private And Personal Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir इन् दायवयोधसे इतिविशेषः // 46 // इतिउबट कृतौमन्त्रभाष्येष्टाविंशतितमोध्यायः // 28 // धस च्छागम् // सुपस्त्थाऽअद्यवो वनस्पतिरभवदिन्द्रायवयोध सुच्छागेन॥ अघुत्तमोटुस्त प्रतिपचुताग्भीदवौबधत्युरोडाशेन॥ त्वामुद्याऋषे // 46 // [12] // 4 // इतिसहितायांअष्टाविंशोऽध्यायः // 28 // __ * समिडोऽअञ्जन् // समिद्योऽअञ्जन्न्क्रटरम्मतीनामृतमग्नेमधुम (1) एकादशत्तिष्ट भः / प्राप्तपोनराशंसाः वृहदुक्थोवामदेव्यः / अखोवासमुद्रिरपश्यत्। अश्वस्तुति. आश्वमेधिकं प्रागाग्नेयः कृष्णग्रोवइत्येतस्मात् हेभगवन्नग्ने समिधःसंदीप्तः / अञ्चनव्यक्तौकुर्वन (1) आखमेधिकोऽध्यायः ततोऽस्य प्रजापतिऋषिः। प्राधा एकादश त्रिष्टुभः आप्रीसजनाः अण्वस्तुतयो वामदेवपुत्रेण वहदकयेन समुद्रपुत्र णावेन वा दृष्टाः समित्तनूनपादिडादिदेवताकाः * समिखोजने कादशयदकंदस्त्रयोदशमिडीअद्यहादशकेत कख चतुर्विठ शतिश्चत्वारः षष्टिः For Private And Personal Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir प्राज्येहि सर्वासांटेक्तानांमनास्येतानिममेटंस्थान ममेदंस्यादिति / घमधु मत् मधु स्वा दु / पिवमानः अात्मानप्रतिसिञ्चन स्वेछ्यापिवन्नित्यर्थः / वाजौवेजनवान चलनवान वहन्वा / जिन हविः / हेजातवेदः / देवानांवक्षिवहप्रापय / प्रियम्बासधस्थं महस्थानम् // 1 // तेनांजन / प्रथमोई च: परोक्षकृतः उत्तरःप्रत्यक्षकृतः / यतस्तयोरे कवाक्यतानोपपद्यते / त्पिन्व॑मानः // ब्वाजीबहन्न्वाजिनञ्जातवेदोदे॒वानांव्यक्षिप्रियमा / सुधस्त्यम् // 1 // घुतेनाञ्जन् // घृतेनाञ्जन्न्त्सम्पुथोदेवयानान्न्प्रजा नन्न्वाज्ज्यप्प्यतुदेवान् // अनुत्त्वासप्प्तेप्प्रदिशः सचन्तास्वधाम / स्म्मैयजमानायधेहि // 2 // ईश्चि॥ ईड्डा पच्चासम्बन्यच्चवाजि अतः पुरुषव्यत्ययः / घृतेनअंजन ममञ्चन / पथ: देवयानान / हवौं षिदेर राना: पन्थानउ च्यन्ते / तैर्हितेजीवन्तिा प्रजानन अहंदेवानांहविरितिजानन वाजीअपितु पथ्यागच्छतु देवान / किञ्च / अनुसचन्ताम अनु सेवन्ताम त्वांडेसप्तेसरण / प्रदिशः दिगाश्रयाणिमताति / 560 किञ्चस्वधामन्नम् अस्मैयजमानाय धेहिप्रयच्छ अनघ तशब्दस्तनूनपाच्छब्दपर्यायः // 2 // शिवम् For Private And Personal Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir ईडाश्चासि / यस्त्वम् ईड्याचासि स्तुत्यश्चासि / बंद्यश्च / हेवाजिन श्राश च शौघश्च मेयश्च यज्ञसंपादौचअप्ति हेसप्त / तंत्वाम् अग्निः दवै :वमुमिः सजोषाः समामजोषण: प्रौतम श्रामीभिः प्रौतम र निहवो ढारम दशतुमापट तु जातवेदाः // 3 // स्तौणबहिः / स्तोर्णमपिवर्हिः सुष्टरौम साधुस्तणाम श्राजुषाणा विभक्त देश: / सेवमानम् / ततस्तौयमाणम उबहु न्नाशुरच्चासिमे पश्च्चसप्प्ते // अग्निष्टदि वै मुभि सुजोषा प्रीतं . वन्निवहतुजातवेदाई // 3 // स्तोसम्बुर्हि सुष्डरौमाजुषाणोरुपृथ। प्प्रर्थमानम्पृथिव्याम् // देवेभिर्युक्तमदिति सुजोषोऽस्योनईखा / नासुवितेदधातु // 4 // एताऽउंव // सुभगाविश्वरूपाविपक्षी पृथु विस्तीर्णम प्रथमानम / पृथिव्यांवेद्याम् / देवेभिः देवै.युलम / अदितिः सजोषासमानजोषणामह / प्रौयमानास्योनंमुखं कृण्वानाकुर्वाणा / मुवितेसुगतेन्ट गेंग जारवा / दधात स्थापयतु || एताउनःएताश्चयत्तगृहहारः हेऋत्वि जमानाः व: युष्माकं सुभगा:विश्वरूपाः अनेकरूप चिक्तिताः / 149. For Private And Personal Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir विपक्षोभिः श्रयमाणाउ हातैः / पक्षोभिः उदातैः ऊर्द्धमायातैः / सततमायातः सततगमनै: विषय माणाविस्तीर्यमाणाः / पक्षम्शब्दःसान्तः कयाटवचनः / ष्वा: महत्यः सतौ:सत्यः कवष: कुषिता मसुषिराः / शुभमान : आत्मानं शोभयन्त्यः / दारोदेवौः दीप्तिमत्यः / सुप्रायणाः सुप्रगमनाः भवन्तु / / 5 // अन्तरामित्रावरुणा / ये अन्तरामधेन मित्रावरुणाचरन्ती / अयम्बैलोकोमित्रोसौवरुण भुि श्रयमाणाऽउदातै // ष्ष्वा सुती कुत्रषु शुभमानाहारी देवो सुप्प्रायणाभवंतु // 5 // अन्तरामित्रावरुणा // अन्तरामित्रा वरुणाचरंन्तो मुखैय्यज्ञानामुभिसबिटाने // उषासवामुहिरणगये र इतिश्रुति: द्यावापृथिव्योर्मधान सञ्चरन्त्यौ / मुखंयज्ञानामभिसम्बिदाने यज्ञानांमुखमग्निहोत्र तस्यकालम अभिसम्बिदाने प्रकथयन्त्यो। उत्तितामयमग्निहोत्र होमकाल:प्राप्तइतीबलक्ष्यते / ते उषासा द्विवचनोपदेशा त्यहचरितत्वाच्च हितीयारात्रिः / नतोषासौ बांय बयो: हैदम्पतियजमानी मुहिरण्ये साधुहिरण्यालङ्कारभूषिते / सुशिल्पसाध्वन्योन्यंप्रतिरूपे ऋतस्ययत्तस्ययौनो For Private And Personal Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir - इहसादयामिस्थापयामि // 6 // प्रथमावाम् / यौप्रथमौहोतारौ अयच्चाग्निरसौचमधामः / बांयुबयो: हेदम्पितीयजमानौ। सरथिना एकरथारूढौ सुवर्णाशोभनवौँ / देवोदानादिगुणय क्ती पश्यन्तीभुवनानि भूतजातानि। विश्वानिसर्वाणि मधास्थतया। अपिप्रयम् पौणातेरेतद्रूपम् / प्रौणितवानहमस्मितौचोदनासुप्रमाणकंकर्म / वायु वयोः हेदम्पतीयजमानौ है सुशिल्प्पेऽऋतस्युयोनाविहादयामि // 6 // प्रथमावाम् // प्रथमा / वासरथिनासुवर्णादवौपश्यन्तीभुवनानिविपश्वा // अपिप्प्रयुञ्ची है। देनावाम्मिमा॑नाहोराज्ज्योतिः प्रदिदिशन्ता // 7 // आदि त्यैनः // आदित्त्यैन्।भारतीबण्डतसरखतीसुहरुकैन्न आ मिमानानिर्मिमानौ होतारौ जयोति:प्रदिशादिशन्ता / आहवनीयाख्य जोति: पृष्टव्यमिति , प्रदिशाप्रदेशेनअभिनयेन दिशन्तादर्श यन्तौ। आशतेइतिवाच्यम् / / 7 // आदित्यन: / अत्रत्रयः पादाःपरीक्षकृताः चतुर्थ:पादःप्रत्यक्षकृत: / नचैवंसामजस्यम् अतश्चतुर्थसा पादसासन्नतिः / For Private And Personal Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पादित्यैःसहिताने अस्माकंभारती वष्टुकामयतांयतम् / सरखतीचरुट्रैः सहितां न:अस्मान् पावौत्भवतु / दूडाचउपहूता कृतपीवाना वमुभिः सजोषासमानौति: नःआवौदित्यनुवतते। एवमनेनप्रकारेण यन्ननोम्माकं तिस्रोदेव्यः अमृतेषुदेवेषु धत्तदधत्वितिपुरुषव्यत्ययः परोक्षीकृत्यस्तुता: ताइदानींप्रत्यक्षता: स्तौति। यज्ञनोदेवीरमृतेषुधत्तेति // 8 // त्वांष्टवी वीत् // इडोपहताब्वसुभिः सजोषावजन्नौदेवीरमृतषुधत्त // 8 // / त्वष्टाब्बीरम् // त्वष्टाब्बीरन्दुवामञ्चजानुत्वष्टुरबाजायतऽशुर प्रवत्वष्टे दंविश्वम्भुवनञ्जजानबुहो कुरिमिहयक्षिहोता। अश्वौघृतेनुत्मन्यासमक्तऽउपटुवार // ऋतुश: पार्थ एतु // के रम्। यःत्वष्टावीरंपुत्रम् देवकामम् ऋणवयापाकरणसमर्थं जजानजनयति / यस्माच्चत्वष्टुः अर्वाअरण: माशःशीघ्रः अश्वःजायते / यश्चत्वष्टा इदंविश्वंसर्व भुवनभूतजातं जजानजनयति।। 3 तवष्टारं वहो:भूतग्रामस्यकर्तारम् दूहयजेयक्षियज हेहोत: // 6 // अश्वोकृतेन / य:अश्वः पत्नीभिःवृतेनात्मन्या आत्मनाखयमेवसमक्तः समुचितःसन् / उपएतु उपगच्छतु देवान्प्रति ऋतुश: शव For Private And Personal Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir ऋतावृतौ कालेकाले पाथःअन्न भूत्वा / कथंदेवलोकमजानन्नदेवान्प्रतियायादित्यताह / वनस्पति:देवलोकंप्रजानन् अश्वस्यदर्शयखितिशेषः / अग्निनाच तम्मित्वेण हव्याहवींषि स्वदितानिसृष्टीकृतानि वक्षत्वहतुदेवान्प्रति // 10 // प्रजापतेस्तपसा / यस्त्वं पूजास्तपसा वावृधा नःवईमान: सद्योजात: अरण्योःशकासाद्दुत्पन्नःदधिषेधारयसि यन्नं हेअग्ने / तंत्वांबवीमि / बनस्प्पतिर्देवलोकम्प्रजानन्त्रुग्निाहव्यास्वदितानिव्वक्षत् // 10 // प्रजाप॑तुस्तप॑सा // बाबधान सद्योजातोदधिषेयुज्जमग्ने॥स्वाहा तनहुविर्षापुरोगायाहिसाड्याहुविरदन्तुटु वा // 11 // [11] व दक्क्रन्द // प्प्रथमञ्जायमानऽयन्त्स'मुद्दादुतवापुरॊषात् // श्येन। स्वाहाकृतेनहविषा / स्वाहाकारोपलक्षित नहविषा पुरोगा:पुरोगामीसन् / याहिसाधना साधुशब्दविभत्यर्थेड्यादेशेटिलोपः / साधुहविःअदन्तुदेवाः // 11 // यदक्रन्दः / त्रयोदशत्रिष्टुभोवाभिष्टवोहोतुः। यत्यदा अक्रन्दः द्वेषाशब्दमकार्षीः। प्रथमञ्जायमान: यच्चउद्यन् उद्गछन् समुद्रात्अन्तरिक्षलोकात् पार्थिवाहासमुद्रात् / उतवाअपिच पुरीषात्अन्यस्माज्जलसंघात्पशोर्वा / For Private And Personal Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir उद्यन् अक्रन्दः तदाश्येनस्यपक्षौशीघ्रतयाअजैषीः हरिणस्थवाहशीघ्रतयाअजैषी:इतिशेषः / उपस्तुत्यर मउपसङ्गम्य स्तुत्य स्तवनीयस्षिभिः महिमहत् जातमुत्पन्नम् तेतव हेअर्यन्अरणअश्व // 12 // यमेनदत्तम् / अत्रचतुर्थ:पादःप्रथमंव्याख्यायतेयोग्यत्वात्। सूरादश्ववसवोनिरतष्ट हेवसवःयूयं सूरात् आदित्यमण्डलात् अवंनिरतष्ट / तक्षति:करोतिकर्मा निष्कृष्यकृतवन्तः / तंयमेन्दत्तम् / / स्यपक्षाहरिणस्यबाहऽउँपुस्तत्लुम्महिजातन्तेऽअर्जन // 12 // बुझे / * नंदुत्तम् // बुमे टुत्तन्त्रितएनमायुगिन्द्र एणस्प्रथमोऽअद्यति / ष्ठत्।।गन्धोऽअस्यरशुनामंगम्गात्सूरादरप्रवैबसबोनिरंतष्ट // 13 // असिवुमाअसिवुमोऽअस्याटुित्त्योऽअर्बुन्नसिवितोगुट्येहनतेना / वित:विस्थानोवायुः एनम्आयुनकयुक्तवान् / इन्द्रश्चएनंप्रथमःअधातिष्टत् / गन्धर्वश्चविश्वावसुः शिवम अस्थरशनाम् अगृभ्णात् अगृह्णात् / यइत्यंभूतोश्वातंवयंस्तुमतिवाक्य शेषः // 13 / / असियमः / / भवसिचआदित्यः हेअर्वन्अरणअश्व / भवसिचत्रित स्विस्थानइन्द्रः गुह्येनगुप्तवतेनकर्मणा / 563 भवसिचसोमेनसमयामधात: बिपृक्तःसंपृक्तः एकीभूत: / एताभिर्देवताभिस्तवसायुजाञ्जातमि For Private And Personal Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir त्यभिपाय: / किञ्च आहुःबुधाः तेतव / चौणिदिविद्युलोके आदित्यात्मनावस्थितस्य। वन्दनानिटग्यजुः सामलक्षणानि / मण्डलान्तरपुरुषार्ची र्षि // 14 // त्रीणिते / त्रीणितआहुर्दिविवन्धनानि इतिव्याख्यातम् / बौणिअप्सुवन्धनानि कृषिवृष्टिर्वीजमिति / बीण्यन्तः / समुद्र समुद्रशब्देनान्तरिक्षमभिधीयते। अन्तरिक्षस्य मध्येतवत्रीणिबन्धनानि / मेघोविद्युत् र असि सोमेनस मयाविप॒क्तऽआहुस्तुत्वीणिदिविबन्धनानि॥१४॥ वीणितऽआहुढिविबन्धनानुित्तीण्यासुबोगयुन्तसमुद्दे // उतेवमुब। रुणश्छन्त्स्यर्बुन्नात्वात आहुपरम नित्वम्॥१५॥डुमातेबाजिन्नब मार्जनानीमाशुफानासनितुन्निधाना॥ अत्वतिभुहारशुनाऽअप / अशनिरिति उतइवअपिच / मेममवमणः;त्सि छन्दतिरर्वतिकर्मा शंसतिकथयति हेअर्वन्अर-है अश्व / यत्रतेतवाहुःपरमञ्चनिवं जन्मवायुरूपेण // 15 // इमाते / इमानितेतव हेवाजिन्अश्व / अवमार्जनानियैस्तवावमार्जन कृतन्तान्येवमार्जनानि नूतनवेतसकटप्रभृतीनि अहमपश्यम्पश्यामि / इमानिचशफानांखुराणांसनितुःसम्भक्तः पादवाससः निधानानिधानानि For Private And Personal Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir यत्र पादबासः प्रभृतीनिधीयन्तेतानि अहमपश्यम / अपिच अवतेतवभद्रा भन्दनीयास्तुत्याः रशनाअहमपश्यम् / ऋतसायनसायारशना अभिरक्षन्तिगोपा: गोपायितव्यान्पशन // 16 // एतैरधस्तने रश्वचरित्ररश्वमभिष्टुत्य अथेदानीभविष्यत्कर्मभिरभिष्टौति। अत्मानन्ते / पशुसं शनोत्तरकालम् आत्मानन्तेतवदिव्यसहंमनसा आरात्दात् अजानाम्जानामि / जानातेरेश्यमृतस्युवाऽअभिरक्षन्तिगोपाः // 16 // आत्मानन्ते // आत्मान न्तु मनसा रादजानामुवोदिवापुतय॑न्तम्पतुङ्गम् // शिरोऽअपश्यम्पु थिभिः मगेभिररे णभिर्जेहमानस्पतत्त्वि // 17 // अवति // रूप मुत्तममपम्युञ्जिगोषमाणमिषऽआएदेगो // युदातु मर्तोऽअनुभोगमा र तदनुदात्तत्वाट पं लुङग्रकवचने / अब:अधस्तात् प्रदेशात् / दिवादिवप्रतिपतयन्तम् उत्पतयन्तम् पतङ्गम् आदित्यरूपिणम् / शिरश्चाहंतवअपश्यम् पथिभिःमार्गः सुगेभिः सुगमनैः अरे- शिवम् णुभिःउपद्रवरहित: जहमानङ्गच्छत् पतविउत्पतनशीलम् // 17 // अवाते। अनद्यलोकेतेतव- 564 रूपमुत्तमम् अहमपश्यम्पश्यामि कथंभूतम् / जिगीषमाणं जेतुमिच्छति दूष:अन्नानिआआस्थि For Private And Personal Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir तंपदे गोः गन्तुर्मण्डलस्य / एवंद्य लोकावस्थितस्यतवाहं रूपमपश्यम् / अथपुन: पृथिवीस्थितस्य यदातेतवर्मोतामनुष्यः भोगम् बाहनादिकम् अनुआनट अनुयाप्नोत् आत्इत् इतिपादपूरणार्थों तदाग्रसिष्ठः ग्रसुअदने / ग्रसितमः अतिशयेनभक्षयितासन् ओषधी: अजागः गृह्णासिगिरसिवा। अन्योहिवाहितचलितुमपिनशक्नोति त्वंवीर्यवत्तरोसीतिभावः // 18 // अनुत्वा। अनुइतिपरभावमानुडादिद्ग्रसि'ष्ठऽओषधीरजीगढ़ // 18 // अनुत्वा // अनुत्त्वारथोऽ अनुमोऽअर्बुन्ननुगावोनुभगः कुनीनाम् // अनुवातासुस्तव॑स् / वख्यमौयुरद वार्ममिरेवीय॑न्ते // 16 // हिरगण्यशृङ्गोयः॥ हिर चष्टे / हेअर्वन यस्यसुकृतिनोगृहत्वञ्चेष्टर्मतस्याहेत्वामनुरथः त्वामनुमर्योमनुष्यः त्वामनुभगः 4 सौभाग्यकनीनांकन्यकानाम् / ततेपदार्थाभवन्तीत्यर्थः किंच / वातासः पुरुषसंघा अपितवसख्यसखिभावमन्वीयुः। किमन्यवहुवदामः / अनुदेवाममिरेवीर्यन्ते अनुममिरेअनुमितवन्तः देवावीयंवौरकम तेतव / अचिन्त्यशक्तिस्त्वमसौत्यभिप्रायः // 16 / हिरण्यशृङ्गः। हिरण्यं शृङ्ग स्थानीयम 150. For Private And Personal Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir र स्पेति हिरण्यशृङ्गः / अयोअस्यपादाः यस्यचासाअयः अयइतिसर्वेषांरजतादीनामुपलक्षणम पादा- अ इत्यवयवानाम् / रजतादिविशिष्टाअवयवा: / मनोजवाःमनोवेगयुक्ता: / यस्माञ्चअवर:कनिष्टःइन्द्रः o आसीत्अभवत् / वायुरूपणाश्वसमावस्थानात् / देवाइदेवाअपि यसपासमाश्वसाहबिरांहविर्लक्ष णमदनीयम्आगच्छ न् / यश्चअर्वन्तम्प्रथम:अधातिष्ठत् सचइन्द्रः यमाहविरामागतम तंवयंस्तुमडू. ण्यशृङ्गोयोऽअस्युपादामनौजवाऽअवरऽइन्द्रऽआसीत्॥देवाऽदस्यह विरद्यमायन्न्योऽअवन्तम्प्रथमोऽअड्यतिष्ठत् // 20 // ईन्तिास सिलिकमयमास / / ईन्तिास सिलिकमड्यमास सम्शूरणा सोदिश्यामोऽअत्याः // हुई साऽईवश्रेणिशोवतन्तु यदाक्षिषुद्धि है। तिशेषः // 20 // ईमान्तासः आदित्यसारथेयेश्वायुक्ता स्तहारणायमश्वस्तूयते / ईमईरित: अन्तोयेपान्ते ईन्तिाईर्मान्ताएव ईन्तिासः तेषांहिसप्तानामश्वानांसमीरितान्ता:विक्षिप्ता: प्रान्ता:वि- शिवम् चिप्ताविरलाइत्यर्थः / दृष्टान्तावा तेहिपृथूरस्काः पृथुजघनाश्चेत्यर्थः / सिलिकमधामासः संलग्नम 565 धामाकृशोदराइत्यर्थः / सप्तानामपिसंश्लिष्टा उदरप्रदेशानिरुदरास्तेश्वाइत्यर्थः / तथापिहिस्तुतिरुप For Private And Personal Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir पद्यतेएव संशरणासः। संहिता:शरणेमभगवतादित्येन दिव्यास:दिविजाः / अत्या:सततगमना: तेहिसकृयुक्ताब्राह्मसहस्रयुगपर्यन्तमहर्वहन्ति / यइत्थंभूताअश्वाः तेहंसाइवश्रेणिशोयतन्ते। यथाहंसा:श्रेणीभूता एकयारीत्याप्रथमगमनाद्यान कुर्वतिएवमश्वाअपौत्युपमार्थः / कदाइत्याह यदायस्मिन्काले अक्षिषुःअशृङ्याप्तावित्यसैप्रतद्रूपम व्याप्नुवन्ति दिव्यंदिविभवम् अज्मम्अजनम आजिम् / ब्यमम्मुमश्वाः // 21 // तवश रम् // तवश रम्पतयिष्णव / न्तवचित्तंव्वातंऽइबुद्धीमान् // तवशृङ्गाणुिविष्ठिठतापुरुवारण्ये पुजभुराणाचरन्ति // 22 // उपप्प // उपप्पागाच्छस नवाज्ज्यबादेव दीचामनसादौड्यान // अजः पुरोनौयतेनाभिरस्थानुपश्चात्कुक्यो / अश्वाः // 21 // तवशरीरम् / हेअर्वन्तवशरीरंपतयिष्णुउत्पतनशीलम् / तवचित्तञ्चवातद्वध्रजीमान्गतिमान् वेगवत्सूक्ष्मानर्थान्प्रति गच्छेदित्यर्थः / तवशृङ्गाणि शृङ्गामीतिज्वलान्नाममुपठितम् / तवार्ची षि विष्ठिताविविधंस्थितानि पुरुत्रावहुधाविद्युच्चन्द्राग्न्यिादिषु / अरण्येषु वनेषु जर्भुरागाजर्भुराणानि देदीप्यमानानिदावाग्निरूपणचरन्ति // 22 // उपप्रागात् / उपप्रअगात्शसनं विश For Private And Personal Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagar सनम् / वाजीवेजनवान अर्वापरणोश्वः देवट्रीचादेवान्प्रत्यञ्चितेन मनसादीधयान: धनायन् हिरण्यगर्भपदम् / किञ्च अजःपुरोनीयते / तदुक्तम् कृष्णग्रीवआग्नेयोरराटेपुरस्तादिति / नाभिरस्य। अश्वस्य / तदुक्तम्सौमापौष्याः श्यामोनाभ्यामिति / किञ्च अनुलग्नाःपश्चात् कवयःक्रान्तदर्शना: यन्तिगच्छन्तिरेभाः स्तोतार: // 23 // उपप्रागात् / एवमखमभिष्टुत्य अथेदानीयजमानं कृतकृत्यतयासंवोधयन्नाह। उपप्रागाव्याप्तवान् परममुत्कृष्टम् यत्यस्मात्सधस्वंसह स्थानन्देयन्तिरभा: // 23 // उपप्प्र॥ उपप्पागत्पिरमय्यत्सधस्त्थुमार // अच्छापितरम्मातरञ्च // अद्यादेवाज्जुष्प्र॒तमोहिगुम्म्याऽअथाशा स्तेदाशुषेबाऱ्यांणि // 24 // [13] समिद्धोऽअद्य // मनुषोदुरोणे / वमनुष्याणाम् / अर्वान्अर्वाअश्वः नकारउपजनः / अच्छापितरंमातरञ्च अच्छाभेराप्तमिति शिवम् शाकपूणिः / अभ्यगाच्चयस्मात् पितरंमातरञ्च द्यावापृथिव्यौअखः। तम्माब्रवीमि हेयजमानअद्याअद्यकृतकृत्यःसन देवान्गम्या:गच्छे: जुष्टतमःसन् हिनिश्चये। अथैवंगतायभवते दाशुषेदत्तवतेहवींषि यजमानाय / प्राशास्तेअश्वएववार्याणि वरणीयानि // 24 // समिझोअद्य / वाद 566 For Private And Personal Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir शाप्तास्विष्टुभः भार्गवोजमदग्निरपश्यत् / यस्त्वंसमिः अद्यास्मिन्यजनीयेहनि। मनुषः मनुष्यस्ययजमानस्य / दुरोणे यनगृहे देवोदानादियुक्तः। देवान्दानादियुक्तान यजसि हेजातवेदः जातप्रज्ञान। तंत्वांप्रार्थयामि आचवह देवान्यजच / हेमिनमह: मित्राणांपूजयितः / यस्त्वचिकित्त्वान चेतनावान्परिदृष्टकारी / अपिचैतदेवचित्रयत्वमस्माकमस्मिन्कर्मणिवर्तेथाः / किंकारणंयतोब्रवीमि / त्वंटूतःदेवानां कवि:क्रान्तदर्शनश्चासिप्रचेताः प्रवृवचेताश्च // 25 // तनूनपात्पथः / / वोदेवान्न्यंजसिजातवेद // आचुचहमित्तमहश्चिकृित्त्वान्त्वन्दु / त: कुविरंसिप्प्रचेता // 25 // तनपात्पथः // तनपात्पुथत स्युवानान्न्मध्वासमुञ्जन्त्खंदयासुजिहब्ब // मन्न्मानिधीभिरुत तननपाच्छब्देनाज्यमभिधेयमग्निर्वा / हेतनुनपात् गवामपावापौत्र / पथः तस्ययानान ऋतस्ययनस्थ गमनापथःहवींषि / हविर्भिहियज्ञीयातिप्रवर्ततेतोयजमार्गाहवीष्यच्यते / मडामधुरसैनसमञ्जन्भक्षयन्वदयदेवेभ्यःरोचय / हेसुजिह्वकल्याणजिह्व / कल्यायग्नेर्जिह्वायानानादेवत्यानिहवींषि ध्यभ्यवहरतेनकिञ्चनीच्छेषयति। किञ्चमन्मानिमननानिधीभिःबुट्विभिःसहि For Private And Personal Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir प्रा तानि उतअपिच यन्तम् ऋन्धन्समई यन् / देवनाचकृणुहि देवाप्रतिगमय / करोतिर्गमना: अङ्करं न:अस्माकम् // 26 // नराशंसस्य / नसअस्मिन्नासीनाःशंसनीति नराशंसोयन: / प्रजापतिर्वाग्निर्वा / नरैःप्रशस्योभवतीतिनराशंसः तस्यमहिमा महाभाग्यम् एषांदेवगणानांमध्ये उपस्तोषाम उपस्तुमः कथंभूतस्थनराशंसस्य / यजतस्थयष्टव्यस्य यजैराहुतिभिः / तम्यचमहिज्ज्ञमृन्धन्दैवृत्ताचकृणहय्बद्ध्वरन्नः // 26 // नगशसस्यमहिमा नम् // नगशसस्यमहिमानमेषामुप॑स्तोषामबजुतस्य॑यते // येसु * कृतवः शुचयोधियुधाः वदन्तिदेवाऽभयांनिहुव्व्या // 27 // आजुबानुऽईड्यं॥आजुह्वानुऽईयोब्वन्धुच्चायायग्नेब्बसुभिः मानमासाद्य येदेवाःसुक्रतवः सुकर्माणः / शुचयःनिषिक्तपापमानः अणिमाद्यैश्वर्ययुक्ताः धियबा:प्रज्ञायाः कर्मणोवाधारयितारः स्वदन्भिक्षयन्ति उभयानिहव्याहवौंषि / सोमचइतरागिाचहवींषि तान्त्राणिप्रयाज्यभागस्विष्टकृत्प्रभृतीनि आवापिकानिप्रधानान्ट भयानीति // 27 // आजुह्वानः / यस्त्वम् आजुह्वान: आहूयमानः सन ईडयःस्तुत्त्यः वन्द्यःनम्यश्चभवसि तत्त्वांया fuTRO For Private And Personal Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir द्यागच्छ हेअग्नेवमुभिः मजोषाः सहप्रीतिः / यश्चत्वांदेवानां होतासि हेयव महन्सएतान्देके वानाहूय यक्षियज / इषित: प्रेषित: अधीष्टोवा / यजीयान यष्टुतरःसन // 28 // प्राची नवर्हिः प्राचीम्पागग्रं दृज्यतेप्रस्तीर्यते / किंस्खमनीषयानेत्याह / प्रदिशा / प्रदिशब्देन शुतिवाक्यमभिधीयते / प्रागग्रंवर्हिस्तणातीति / पृथिव्यावस्तोरस्या: / अस्याः पृथिव्याः / वेदेः / सुजोषाः // त्वन्देवानामसियह होतासऽएतान्यक्षीषितोयौं / - यान् // 28 // प्राचीनम्बर्हिः प्ादिशांपृथिव्यावस्तोरस्थाज्य / - तुऽअग्ग्रेऽअन्नाम्॥ व्यं प्रथतेवितुरंब्ब योदे॒वेभ्योऽअदितयेन्यो / नम् // 26 // व्यर्चस्वतोरुर्बिया विश्रंयन्ताम्पतिभ्योनजनय का की वस्तोः वसनायाच्छादनाय / अग्रे अन्हाम् पूर्वान्हेदिवसानाम् / सहियागकालः प्रशस्त: / तत् बज्यमान वर्हिः विउप्रथतिविप्रथतिविविधमाच्छादयति / उकार:पादपुरणः / वितरमतितराम् वरीय: वरतरमुरुतरंवा / किंकारगमपेक्ष्य व्युप्रथतेइत्यताह / देवेभ्यश्च अदितयेचसोन सुखम्कत मितिशेष: / / 28 / व्यचस्वतीः / यत्तगृहदारोभिधयाः / अत्रच प्रथमोई: परोक्षक For Private And Personal Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir या तो द्वितीयः प्रत्यक्षकृत: नचतयोरेकवाक्यतासंपद्यतेअतः प्रथमस्यसन्नतिः / व्यचखती: व्यञ्च नवत्यः गमनवत्यः / उर्वियाउमत्वेनविश्रयन्ताम् विवृत्ताभवत / कथमिव / पतिभ्योनजनयः शुंभमानाः यथामैथुन्यधर्मेपति प्योर्याय जनय: जायाआत्मानंशोभयन्त्यः / उरूविश्रयेयुः विकृतीकुर्वति यथाहिविताजायाउपसर्पन्तिपतिन्न तथाइति इतौदमुक्तंपतिभ्योनजनयःएवविताश्चभूत्वा हेदेव्यः द्वारः बृहत्यः महत्यः / विश्वमिन्वाः विश्वमाभिरेताभिःविश्वामिन्वाः / यूयंदेवेभ्य: ऋत्वि शुम्भमाना: // देवौहारोबहतीविश्वमिन्न्वादिवेभ्योभवतसुप्पायु णाः // 30 // आसुष्ष्वयन्ती॥ बजतेऽउपाकेषासानक्तांसद तान्नियोनौ // दिव्येवोषणेबहतीमुरुक्मेऽअधिश्रिय॑शुक्रपिशुन्द ग्यजमानेभ्यः भवतसुप्रायणा: सुप्रगमना: // 30 // आसुष्वयन्ती / स्मयतेनिरुपसर्गात्म्वपतेर्वासूपसर्गात् / सेस्मीयमानेपरस्परं हसन्त्यौसाधुस्वपन्त्यौवा / यजतेयजेसये उपाकेउपाक्रान्ते परस्पर- शिवम मेकदेशसवलीभूते / उषासानक्ता उषाश्चनतारात्रिश्च / सदतानियोनौ / आसौदतामनिरनर्थक- 568 उपसर्ग: / यहा निरितिसदतामित्याख्यातेनयुज्यते / निषीदताम् / योनौयगृहे कथंभूते।। For Private And Personal Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir श दियेदिविभवे योषणेप्रीतिमत्या स्त्रीरुपिण्यौवा / बहतीहत्यौ महत्त्यौ / मुसकोसुरोचने ।अधिश्रि- यंशुक्रपिशंदधाने / भुक्रपिशंशुक्लरूपंथियन अधिदधानेस्थापयन्यौ // 31 // दैव्याहोतारा / जो यौदैव्यौहोतारौ अयंचाग्निरसौचमध्यमः प्रथमात्राद्यौसवाचा / सुवाचौनहि तौपाठविनाशयत: / मिमाना / निर्मिमाणौ यजम्मनुषोमनुष्यस्य वजायजनाय प्रचोदयन्ताच विदथेधान // 31 // दैव्व्णहोतारा // प्प्रथुमासुवाचामिमानायुज्ज्ञम्म / पोवजय // प्रचोदय॑न्ताविदथेषुकारूप्पाचीनञ्जयोतिः प्रदिशादि / शन्ता // 32 // आनः // आनोज्ज्ञम्भारतीतूर्यमुत्त्विामनुष्ष्वदि। हचेतयंन्ती // तुस्रोदेवीवहिरेदस्योन सरस्वतीस्वपसः सद घुयज्ञेषु अन्यानत्विजः स्वयंचकारूकर्तारौ। प्राचीनंपूर्वस्यान्दिगिभआहवनीयाख्यं जयोति: यष्टव्यमितिप्रदिशाअभिनयेनथ तिवाक्वेनवा / दिशन्ता / कथयन्तौ / आशास्ताव सादीयंप्रसाधयेतामितिशेषः // 32 // आनोयजम / आपसर्ग: सदन बित्याख्यातेनसम्वध्यते / आएआगच्छतुन: अस्माकंयत्तम भारतीभरतआदित्यत्तस्यभारती / व्यक्षिप्रम् दूडाचआगच्छतु / मनुष्वत ___150. For Private And Personal Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मनुष्यवत् इहचेतयन्तीपरिदृष्ट कारिणी / सरस्वतीच / यइत्यंभूतास्तिस्रोदेव्यः ता.वहि.आङ्उपसर्ग: सदन्वित्याख्याते नसंवध्यते आसदन्तुआसीदन्तु इदस्योनंमुखरूपम् स्वपमः अपइतिकर्मनाम / साधुकर्मण: // 6 // यमे / यस्त्वष्टाइसेद्यावापृथिव्योजनित्री जनयि चौसर्वभूता नाम् / रूपैः अपिंशत्सुचित्रितेअकरोत् / भुवनानिविश्वा / भूतजातानिचसर्वाणिरूपैरपिंन्तु // 33 // बाडमे // द्यावापृथिवीजनित्त्रीरूपैरपिपाशवनानि / विश्रवा // तमुद्यहाँतरिषितोवौयान्टुवन्त्वष्टारमुिहयक्षिञ्चि हान् // 34 // उपावसृजत्मन्या // समुञ्जन्ट्रेवानाम्पायंऽऋतु। थाहुवोर्षि // ब्वनुस्प्पतिः शमितादवोऽग्निः स्वदन्तुहर शत् / आवृतान्यकरीत् तम् अद्यास्मिन्नहनि / हेहोत: इषित: प्रेषितइतिवाअधीष्टइतिवा / शिवम् यजीयान्यष्टतरः / देवंदानादिगुणयुक्तम् त्वष्टारम् इहयज्ञेयक्षियज / विहान्स्वमधिकारंजानान: // 34 // उपावसृज / द्वितीयोईच: प्रथमंत्र्याख्यायते सामर्थ्यात्। यजमानआह / वन3 स्पति: यूपःशमितादेवः अग्निःशामित्रः खदन्तु मृष्टीकुर्वन्तु / हव्यंहविः मधुनामधुरसैनष्टतेन त्व For Private And Personal Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मपिहेअध्वर्योपावसूज उत्पिष्टांयासुकमबदानम् अवसृजनिक्षिय / त्मन्याआत्मना। आदराथंवचनम्म बेष्वाङयादेरात्मनत्याकारलोपः // समञ्जन्संरक्षयन् देवानाम्पाथ: अन्नम् ऋतुथाक्तातीचहवौंषिअवसृज // 35 // सद्योजातः / योग्नि: सद्योजात: जायमानः सन् व्यमिमीतनिरमिमीतयजम् / यश्चदेवानाम् अभवत् पुरोगा: अग्रतोगामी / तस्यास्य होतुः प्रदि शिप्राच्यांदिशि घटतथाटतातोपाचहवनीयात्मनाव्यवस्थितस्य / वाचिआस्येमुखवागग्रहणेनलक्ष व्यम्मधुनावृतेन // 35 // सद्योजातः // सुद्योजातोव्य॑मिमौत उज्जमुग्नि? बानामभवत्पुरोगा: // अस्यहोर्नु पदिश्यतस्य॑ब्वाचि स्वाहाँक्त हुविरदन्तुदे॒वाः // 36 // [12] केतुङ्गुण्वन् // णया मुखमभिधीयते तदुक्त वर्तिककारण / “अभिधेयाविनीभाव प्रतीतिर्लक्षणोष्यते / लक्ष्यमा गुणेोगा इत्तिरिष्टातुगौणतेति” / स्वाहाकृतम् स्वाहाकृत्युपलक्षितं हवि: अदन्तुदेवाः // 36 // इतउतर मश्वरक्षिणायोड्डारः युद्धोपकरणानिच स्तूयन्तेप्रागाग्नेय इतिश्रुतेः // केतुंकण्दन / अग्नेयौंगायत्रीअनिरुता केतुंप्रज्ञान कृण्वन् कुर्वन् / अकेतवेनविद्यते केतुप्रज्ञानदस्य तस्मैत्र For Private And Personal Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir केतवे पेश:सुवर्ण रूपंवा मर्या:मर्यायेतिविभक्तिव्यत्ययः / मर्यायमनुष्याथ अपेशसेन विद्यते य. पेश:यम्यतस्यै अविद्यमानमुवर्णाय अविद्यमानरूपायवा पेश:कुर्वन / समुषङ्गिरजायथाः हेअ-2 नेउषभिः / उषदाहेअग्निहोत्रादौनिकर्माणि कुर्वद्भिः / जायमानःमन जन्मनाजातेर्वा / ॐ वसते कृतसंप्रसारणसैतद्रूपम् उषद्भिःअग्नि प्रतिनिवसद्भिः जायमानःसन समजायथा:उ त्पद्यते // 37 // जौमूतमेव / वमस्तूयते जोमतोमेष: तमावभवतिप्रतीकम् अनौकम् / केतुङ्कण्वन्नकेत्तबेपेशोमाऽअपशसे // समुषद्भिरजायथा // 37 // जीमतस्येवभवति // जीमूतस्येवभवतिप्प्रतीकंबहुम्ौवातिरम दामुपस्त्] // अनाविदयातुन्वाजयुवसत्वाबर्माणोमहिमापि / मुखमितिपर्यायः। यथामेघमामुखंविद्युत्स्फुरित स्तनयित्नुधारानिकरैरसांभ त्यन्तः सरणै:एवं हस्त्यश्वपदातिमुखंनिशिता स्व गम्भौरतूर्यनिनादशरधारा भिरसम्भवति एवंकस्मिन्कालेकसा शिवम् बेत्यताह / यही यदावर्मामाविदयते इतिवर्मी। यातिगच्छति समदाम / समादयन्ति सहवामादयन्ते / श्रामुखोद्दारतिसमदःसमदशब्दःसंग्रामवचनः। समदांसंग्रामाणाम् उपस्थ उत्कण्ठे यतएवमतोत्रवामि। For Private And Personal Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अनाविदयातन्वाजयत्वम् हेवर्मिन अनाविड्डयाअक्षतया अरिष्टयातन्वात्वंजयेम / विच सत्त्वावर्भPणोमहिमा पिपल पालयतु // 38 // धन्वनागाः / धनुःस्तयतेविष्ट भा धन्वनाधनुषागा:जयम | धनुषाचार्जिमा जयेम / धनुषाचतौवाःपटवः उगुर्णायुधास:मदः संगामाञ्जयेम। धनुश्चगलो: - अपकामंङ्गणोति अपनयतिकामम / कर्तृत्वविवक्षात्रधनुषः / धनुषाचसर्वाः प्रदिशःजयेम // 38 // पर्त // 38 // धन्वनागा // धन्न्वनागाधन्विनाजिजयेमध , वनातीना समोजयेम // धनुई शत्वोरपकामझुणोतिध नवनासी प्रदिशोजयेम // 38 // वक्ष्यन्तीवेदागनीगन्तिक / गम्पियर्ड सायम्परिषस्वजाना // योवशिञ्चितुताधुिध वश्यन्तीवेत् / ज्याअभिधेया / विष्टुप् | याज्यावक्ष्यन्तौइज वचनोत्सुकेव / योषित् इच्छब्दः पादपूरणार्थ: / आगनौगन्ति आगच्छन्ति अत्यर्थनागच्कृतिबा कर्णधानुष्क मृलम् यावप्रियमि- वसखायमिषम् परिषखजानाआलिङ्गन्यन्तौ / योषेवशित / शिजिअव्यक्तो शद्ध / यथामुग्धायोपित्कामुकरञ्जनार्थमव्यक्त कूजितङ्करोति एवमियमव्यक्तंशकरोति / प्रसारिताच अधिउप For Private And Personal Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir रिधनुषिनिव हा / सेयञ्ज्यासमनेसंग्रामे पारयन्तो विजयकुवंती संग्रामान तारयन्तो स्त्यतेस्माभिरितिशेषः // 40 // तेाचरन्तौ / धनुषः कोटौस्तयेते / बिष्टुप् / येमे पानी अापौर धनुष: कोटी / समनाइयसमने इतिवचनव्यत्ययः / समानभर्ट गतमनस्के योषेइव यथासमानभटगतमनस्केघोषेपतिमागच्छ त्यो तेश्राचरन्तो आगच्छ त्यौधानष्कम् / मातेर पुन विमतासुपस्थे / यथामाता उप से उत्सः पुत्र धारयति एवविभुतांधारयतांशरम् / अपशव न् विध्यताम व्यध उन्याऽडयसमैनेपारयन्ती // 40 // तेऽआचरन्ती // तेऽा चरन्तोसमैनेयोपोमातेवपुत्वम्बिभृतामुपस्त्यै // अपशन्न्वि वातासंब्बिढाने आरोइमेबिष्फुरन्तोऽअमित्वान् // 41 // बुलौनाम्पुिता // बहुरस्यमुत्वरि चाणोतिसमनावगत्यं // इघु , ताडने / अपविध्यताचशत्र न् संविदाने / सुखमनभवन्त्यौ / विष्फरन्तीअनिवान् / अमिवान् राबन्विष्फुरन्त्यौ // 42 // बह्वीना मपिताम् इषुधिरभिधेयः / त्रिषुप् / य: बौनामिषणां पितापालयिता / तेनसहिताः पाल्यन्तेसहिताः सन्निदधाति / यम्यचास्थबहुः इष्कला-६०१ पः पुत्रः पुत्र स्थानीयः / महितेनइषुकलापेनवायते / बहुवातदर्थ हितंकुर्वन्ति / चिश्चाकृणोति / शिवम For Private And Personal Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir शद्वानुकरणमेतत् षोनिष्क्रयमाण: चिश्चेत्ये वंश,करोति / समनोयगत्य / समनासंग्रामान् / से अवगत्य ज्ञात्वा / सइषुधि: संका: संकासंधत्ते अस्मिन्योधा इतिसंकाः संके यंतेअस्मिन्नरय7 इतितकाः शव पंकटंग / पतनाश्च सर्वाः पृतना: स्पर्द्वनौयतमाः संग्रामभ कोः सर्वाः। पृष्ठे निनद्धः धान करपटष्ठे बद्धः प्रमतः धानुष्क णाभ्यन ज्ञातः सन जयति अवक्षुधेकट त्वम् / विवक्षात: का• रकाणिभवन्तौतिवैयाकरणाः // 42 // रथेतिष्ठन् / जगत्याअड्डे नसारथि: रूयतेड्वेनरश्मयः। धि सङ्का पृतनाश्च्चुसवाः पुष्ट्र निनंद्योजयतिप्प्रसूत // 42 // रथेतिष्ठन् // रथेतिष्ठठन्नयतिब्ाजिनः पुरोवयत्रकामयतेस है, पारथि // अभौशूनाम्महिमानम्पनायतुमनः प्रच्चाद यच्छन्तिर प्रम्मयः // 43 // तीब्रान्घोषान् // तीब्रान्न्योपान्नकण्वतेब्ब / से सुसारथिः रथेतिठन नयतिवाजिनः / प्रापयत्यखान पुरः पुरतोवस्थितान् / यत्यत्रकामa यते / तंव्यस्तमइतिशेषः / अभौशूनाम्हाप्रग्रहाणां मान महम ग्यपनायतपूजब्त हेजनाः / येमनः अश्वमव विचित्तम् पश्चात्सन तः अन यछन्तअनुगम्यगृहन ति रश्मयः यन तारः // 43 // तोब्रान्योषान / अक्षास्तु यन तेविष्ट भा / तौबान जबजयेत्युगान द्योषान शब्दान कृण्वते कुर्य न ति / For Private And Personal Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir वृषपाणयः / पाश्वाः पाणौयेयांस गहोटप्रभतौनां योतृणांततथोक्ताः / युक्ताः वसन्तः / अश्वाः रथ.भः रथः / सहवाजयन त: पूजतन्त: रथिन: // तौबानेवघोषान ड्रेषितादौन्कण्वन ते। अवक्रामन्तः प्रपदैः खुरै: अमिबान शत्र न क्षिणन तिक्षिण्वन्तिहिंसन्ति / अनपव्ययन्तः / व्ययक्षथे। अपपूर्वादस्माच्छटप्रत्ययः / अपव्ययन तः नश्यन तःनअपव्ययान्तोनपव्ययन्तः ननश्यन्तः / अपरित्यजन्नोवास्वामिनम् // 44 // रथवाहणम् / रथस्तुतिः त्रिष्टुपू / यस्यास्मानसः रघवाहणंरथषपाणुयोरश्वारथेभिड सहबाजय॑न्त // अवकामन्तु प्प्रपंदै / रमित्वान्न्क्षुिणन्तिश च // 1 रनपव्ययन्तः // 44 // रथुवाह णहुविः // उथुवाहणाहुबिरस्युनामुवत्रायुधन्निहितमस्रावात वारथुमुप॑शुगम संदेमप्रिवाहाब्बयः सुमनुस्याना // 45 // वोढइतिनाम / हविरितिनाम्नोई लोप: / हविर्वानमितिचाहतौयंनाम। विमुच्यसयंटकरथवाहणं करोतिअनस्तस्कमतिकात्या यनः / तस्मादनसएवमौरीडाशेषु यजूषिश्रुतिः / यत्रयस्मिन् आयुध निहितंस्थापितम् : अस्थयाधुः वमैचसंनहनम् / त मानसिरथम् शम्मसुखम् उपसदेम उपसादयाम विश्वाहासर्वदावयम् सुमनस्यमानाः अनुकूलचिताः // 45 // वाटुसंसदः / For Private And Personal Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir है रथगोपान् स्तौतिनिष्ट प / म्वादुसुखकरं संसदःम सदन येषान्त स्वादुसंसदः रथगोप्तार:पितर: पातारः // वयोधाः अन्नस्यायुषोवाधारयितारः / कृच्छथित: क्लेशाथयिणः शक्तीवन्तः वल5 वन्तायुधयन्तीवा / गभौरा: गंभौरप्रज्ञानावागंभोरवलावा / चित्रसेनाः विचित्रसेनाः इषु बलाः इषुषुविशेषतोवलंयेषान्तेतथोक्ताः / अद्भाः अमृदवः उग्रशासनःसतोौराः / मत: विद्य र स्वादुषः सदःपितरः // स्वादुपु सदःपितरौवयोधा कछ पितुःश * तौवन्तीगभीरा // चित्तसेनाऽइघुबलाऽअमंडास तोवौराऽजुरको वातसाहा // 46 // ब्राहमणासुपित // सोम्यास शिवेनोद्यावा मानस्थवलस्यविविधभोरयितारोवो / शुजघनोर स्कावा / उम्मनसोबा वातमाहाः / वाता: गणास्तेषामभिषितार: / यइयंभूना: पुरुषास्तेस्मा रथगोप्तारोभवन्वितिशेष: // 46 // ब्रह्म गासः / जगतौलि लोकदेवता / ऋताधइत्यादिः प्रत्यनभूतोमंत्र: वाह्मणास इत्यादिः परोक्षकृत / / अतएवंव्याख्यायते / हेटताधः सत्यधीवा यजधोवा / देवाइत्यवाहार: सामर्थात् 151. For Private And Personal Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir रक्ष / रक्षतइतिवचनव्यत्ययः / माकिः / माचक्रश्चनन:अस्माकम् / अघशंस: अधानिपापानियः / शंततिप्रकाशयतिमाघशंत ईशतईष्टे तिवचनव्यत्ययः / भवत्प्रसादाच / ब्राह्मणासः वाहणा: पित सोम्यासःसोमसम्पादिनः / पान्त्वित्यत्रान्वयः शिवेकल्याणकारिण्यौ दयावाष्टथिवीच अनेहसाअनुपहिसिन्यौ अनपराधिन्यौवापाताम् / पूषाचन:अस्मान पातु दुरितात्अशुभात् // 47 // पृथिवीऽअनुहा // पूषान पातुदरिताहताधोरक्षामाकिन्नॊऽअघ शस्सिऽईशत // 47 // सपुर्णबस्ते // मृगोऽअस्यादन्तीगोभिसन्नडा पततिप्प्रसूता॥*यवानरसञ्चुब्बिचुवन्तितत्तासम्मभ्युमिषबशर्मा सुपर्ण वस्ते / दाभ्यांविष्ट वनुष्टु भवामिषुस्तौति / यामुपण वस्तेसुपर्ण : पक्षौतद्दिकारसौपण मितिभवति / तत्वकृत्सवन्निगम: राजानभिप्रेत्य / सगोत्रस्यादन्तः यसपाश्चासया इषोःमगोदन्तः फलम् स्टगयतेम गः / सहिवेध्यमृगयते याच गोभिःसन्नड्डा / गोविकारैःश्लेष्मस्नायुभि:संनद्धा / पततिशत्र - बलंप्रति / प्रसूताप्रेरिताधनुष्मता साइषुःयवनर:सञ्चविचद्रवन्ति / सङ्गच्छन्ति च / विगछन्तिचतवन शिवम For Private And Personal Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir स्मभानइषवः इषुरितिसन्नतिः / शनशरणम यंमन् यच्छत्वितिसन्नतिः // 48 // ऋजोलेपरि / जीते ऋजुगामिनि / परिटनिधन:परिवजयाम्मान / अश्माभवतु नस्तन: अश्ममयौचभबतुनः अस्माकतनःशरोम / सोमश्चअधिवकोतु प्राधियेन वदतु नोस्माञ्चीवनाय / अदितिश्चशम• शरणम् यच्छतुददातु // 41 / / प्राजङ्घन्ति / क शास्तुतिः। अनुष्टुप् ये गामश्वानाम् अजङ्घन्तिवसन् // 48 // ऋजोतुपरिं // वृद्धिनोपम्मभिवतुनस्तुनः / / सो मोऽअधिववीतुनोदिति शर्म बच्छतु // 46 // आजवन्ति // आजच न्तुिसान्वेषात्रुघना ॥ऽउपजिग्नते // अश्वाजनिष्प्रचेतसोश्वा / न्त्सुमत्सुचोदय // 50 // अहिरिवभोगे? पातिवाहुजाहेितिम्घरि अश्वारोहाःसानुसाननिमांसोपचितान्यङ्गानि / येषामेषाञ्च ज बनान् जघनानि उपजिघ्नति उपनिघ्नन्ति / अश्वाजनि अश्वाचनयतीत्यम्वाजनौ तसा:सोधन हेअश्वाजनि / प्रचेतमः परिदृष्टकारिणः प्रकृष्टज्ञानान्वा / अश्वान समत्स सगामेषु चोदयप्रेरय // 50 // अहिरिव / हस्तघः स्तूयते त्रिष्टुप् / हस्तेएवस्थितोहन्तियः सहस्तघ्नः खटकः प्रकोष्टादि For Private And Personal Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir 1 ॐ वाणवा / य: हस्तन्नः अहिरिबसर्पदवभोगैः / शरीरावयवैः / पर्येतिपरिवेष्टयतिवाहुम् / ज्यायाहेतिपरिवाधमानः / ज्यामायुधात्परिवायमाण: / महस्त नः विश्वाविश्वानिसर्वाणि वयु- नानि विद्वान्प्रजानन् परिदृष्टकारीवा / पुमान्शरोक्लोवोवा / पुमांसमक्लौवं परिपातुविश्वतः सर्वतः // 51 // वनस्पतेवौडुङ्गः / रथदुन्दुभि देपत्यादृचौबिष्टुभौ / ऐन्द्रावान्त्योईः / हेवबाधमानः // हुस्तरघोविश्ववियनानिबिहान्न्पुमान्न्पुमसुम्परि पातुविश्वतः // 51 // वनस्पतेब्बोडुङ्गः / वनस्पतेब्बीडवङ्गोहिभू याऽस्म्मत्सखाप्पतरणात्सुवीरः // गोभिसन्न होऽअसिब्बीडयस्खा स्थातातेजयतुजेवानि // 52 // दिवपृथिव्याः // दिवः पृथिव्या? नस्पतेवानस्पत्यरथ / कृत्स्नवन्निगमः / बोडुगोहि भूयाः / बौडुश दोदृढवचन: / दृढाङ्गाभव / अस्मत्सखासन् / प्रतरणः प्रतरत्यनेनसंग्रामानितिप्रतरगा: सुधीर: साधुबोर: / यतश्चत्वम् गोभिः / श्लेष्मचर्मभिः सन्नदोसि अतस्त्वांबवीमि / वीडयस्व संतंभ्यस्थात्मानम् आस्थाताते। संस्थाताच तेतबजयतु जेवानिजेतव्यानि // 52 // दिवः पृथिव्याः दिवः द्युलोकात् यत् शिवम 6.4 For Private And Personal Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir ओजः परिसर्वत: उद्धृतम् / उद्धृतम / यच्चपृथिव्याः पृथिवीलोकात्परिउद्दतम् / यच्चवनस्पतिभ्यः / बनस्पतिशकासात् परिसर्वत: आइतम आहृतम् सह: बलम् यच्चअपांसंवन्धि ओ उमानम् ओज: परिमाणम / तदेतञ्चतुष्टयं रथभावमुपनीतम्। परिगोभिरावृतम् / परिस2 मन्तात् गोभिः गोविकारैः स्नायुश्लेष्मचर्मभिः आवृतमुपनिवदम् इन्द्रस्यवजम / इन्द्रोहयनवपर्बोजु उभृतंबनस्पतित्पर्खाभूतुसहः // अपामोज्म्मानम्प रिगोभिरातुमिन्द्रस्यब्बहुविषारयव्यज // 53 // इन्द्रस्यब्वज॥ इन्द्रस्युचोमुस्तामनौकमित्रस्युग वरुणस्यनाभिः॥ सेमानो वाय वजप्रजहारेत्युपक्रम्प रथस्ततीयंचेत्यभिधाय / रथेनचशरणच राजन्यवन्धबइतिश्रुतिः / तदभिप्रायमेत। हविषातमीदृशं रथंयज हेअध्वर्या // 53 // इन्द्रस्यवजः / यस्त्वम् इन्द्रस्यवजः असिमरुतांच अनीकंमुखमसि // मित्रस्यचग सि / वरुणस्यचनाभिरसि / सः त्वम्इमाम् नः अस्माकम् हव्यदातिहविषोदानम् जुषाणः सेवमानः / हेदेवरथ प्रतिहव्यायभाय प्रतिर भाय For Private And Personal Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahay Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir प्रतिगृहाण हव्याहवौंषि // 54 // उपश्वासय / उपशब्दयपृथिवीम् उतद्याम् अपिचउपशब्दयद्याम् / पुरुनातेवहुधाच तेतव एकस्यसत: घोषंमनुतांमन्यन्ताम् / विष्ठितबिबिधंस्थितंस्थाबरम् जगत्जङ्गमञ्च / यस्त्वमेवाम्माभिः प्रार्थित: सत्वम् हेदुन्दुभे / सजू: समानप्रीति: सन् इन्द्रेणसह देवैश्च / दूराद्दरतरम् अपसेधअपगमयशव न // 55 // आक्रन्दय / हेदुन्दुभेश्राहव्यदातिञ्चषाणोदेवरथुप्प्रतिहव्यारभाय // 54 // उपवासय // पृथिवीमुतद्याम्रुत्वातैमनुतांविष्ठि'तुञ्जगत् // सर्दुन्दुभेसजूरि न्द्रेणदेवेई राहवीयोऽअपसेधशत्रून् // 55 // आवन्दय // आव क्रन्दयदीनान शब्दान्कारय अहोपलायचपितामहतोभ्रातामेहतइति / बलंशत्रु सेनाम् श्रीजीनआधा: ओजस्तेजः नः अस्माकम् आधा: आधेहि / किञ्चनिष्टनिहि / निश्चितंशब्दंजयाय शिवम् कुरू / दुरितााधमान: दुरितानिअपगमयन / किंच / अपप्रोथ प्रोथति शनार्थ: / अपकृत्यापकृत्य प्रोथनाशय / दुच्छना: दुष्टशुन: वयाः सेनःसुखवचनीवाशुनाशब्द: दुःसुखाः For Private And Personal Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir विसर्जनीयम्यदत्वम् / इतः सेनायाः / यतश्चत्वम् इन्द्रस्यमुष्टिरसिअतोवबौमि / वौडयस्वदृटीकुरुआत्मान // 56 // आमः / ऐन्द्री आज / अजगतिक्षेपणयोः / पाक्षिप / अमः शत्रु सेनाः / प्रत्यावर्तयइमा / प्रत्यावर्तयजितंजितमिति / इमा: अस्मदीयसेना: किञ्च // केतुमत्प्रज्ञातन्दयबलुमोजौनुऽआधानिष्हुनिहिटुरिताबार्धमान // अपप्पोथदु / न्दुभेदुच्छाऽहुताइन्द्रस्यमुष्हिरसिबीडयख // 56 // आमू // o आमूरजप्प्रत्यावर्त्तयमा केतुमदुन्दुभिबोक्दौति // समशवपा प्रच्चरन्तिनोनरोस्म्माकमिन्द्ररथिनोजयन्तु // 57 // अग्नेय कृष्ण ग्गौव // सारस्वतोमेषीबुभु सौमय पौष्ण श्यामः शिति वान दुन्दुभिः वावदौति / लोडर्थेलट् अत्यर्थेवदतु / जयप्रकाशकम् // किञ्चसमश्वपर्णाश्चरन्तिनोनरः / अत्रापिलोडथैलट / संचरन्तुअश्वपर्णाः अश्वपतना: नोनरः अम्मदीयामनुष्यासंग्रामेन / हेइन्द्रअस्माकंरथिनः जयन्तुत्वत्प्रसादादितिशेषः // 57 // आग्नेयः कृष्णग्रीव For Private And Personal Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir इतिश्रुतिः / आअध्यायपरिसमाप्तः / योरेकादशिन्यो: पशुदेवतासबन्धविधात्री परतोद्वादशयः / ष्ठोबार्हस्प्पत्य शिल्प्पोबैश्वदेवाऐन्ट्रोरुणोमारुतः कुल्म्मा 28 ऐन्ट्राग्नः संहितोधोराम: सावित्वोबारुणः कृपमाऽएकशिति पात्पत्वः // 58 // अग्नयेनौकवते // अग्नयेनौकवतुरोहिता * जिग्नडानधो मौ सावित्वीपोष्मीरजतनाभीवैश्वदेवौपिशङ्गी तूपुरोहित: कुल्म्माषऽआग्नेयः कुष्मोज, सारस्वतोमुषोवा रुणः पत्त्वः // 56 // अग्नयेगायत्राय॑ // चितेरार्थन्तरायाष्टटा। कपाल ऽइन्द्रायुष्टभायपञ्चदशायुवाहतायैकादशकपालोविश्व शिव. है हविषोवेष्टेर्देवताः // 58 // स्पष्टार्थः / / 56 // अग्नयेऽष्टाकपाल: पुरोडाशः कार्यः कीदृशायाके नये गायत्राय बिते स्तुताय राथन्तराय साम्ना स्तुताय इन्द्राय वैष्टुभाय त्रिष्टुमा स्तुतायपञ्च For Private And Personal Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir वनौयेजुहोति / देवसवितः / तसवितुर्वरेण्यम् / विश्वानिदेवसवितरिति। तब व्याख्याते॥१॥२ / विश्वानिदेवसवितरिति देगायल्यौ विश्वानिसर्वाणि हेदेवसवितः दुरितानिअसत्यानि / परासुवपरांचिगमय / यच्चभद्रभन्दनीयं तत् न:अस्माकम पासुवागमय // 3 // विभक्तारम् / ब्योर्गन्धुच केतुपू: केतन्नः पुनातु चस्प्पतुिर्बाचन्नः स्वदतु॥१॥ तत्सवितः // तत्सवितुर्वरेण्यम्भगनेंदिवस्य धीमहि // धियो योनः प्रचोदयात् // 2 // विश्वानिदेव // सवितर्दुरितानिप, रासुव // बभइन्तन्नु आसुंव // 3 // विभुक्तारहवामहे // विभ, क्ताहवामहेब्बसौश्चुित्रस्यराधसः / सवितारन्नुचक्षसम्॥४॥ कर्मानुरूपेण बिभकारम् / हवामहेआद्वयामः / वसोःवासयितुःचित्रसा चायनीयसा राधसाधनसा आयुषश्च / सवितारम नृचक्षसम नृणांदृष्टारम् / येनरोयथा दृष्टव्यास्तांस्तथापश्यति / 4 / For Private And Personal Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अत्रोब्बटभाष्या भावादक्षरारणभाष्यान्तरादर्थ विलिखामि अतः पर' पुरुषमेधकाः पशवः प्राध्यायसमाप्त: ततः प्रतियूपमेकैकमेकादशिनं नियुज्य ब्राह्मणादीनष्टाचत्वारिंशत्सङ्ख्याकन् पुरुषान् कामोद्याय समित्यन्तानग्निष्टे यूपेनियुक्ति इतरेषु यूपेष्वेकादर्शकादश पुरुषान् वयानुरुधमित्यादीबिघुनक्ति / ब्रह्मणे व्राह्मणम, तत्र ब्रह्मणे जुष्ट नियुनज्मीति अग्निष्ट व्राह्मण' प्रथम नियुनक्ति / एवमग्ने सर्वेषां यूपे एव बन्धनम् चतुर्थ्यन्त देवतापदं हितोयान्त पुरुषपदं बोद्धव्यम् / क्षत्राय राजन्य क्षत्रियम 2. मरुद्भयो वैश्यम् 3. तपसे शूद्रम् 4. तमसे तस्करं स्तनम 5. ब्रह्मणेत्राहम्मुणम् // ब्रहम्मणेबाम्मुणक्षुत्रायंराजन्यम्मुरुडो चै / श्यन्तपंसेशुद्दन्तमसुतस्करन्नार कार्यबौरहणम्पाप्मनेलोवाक्या / / योऽअयोगङ्गामायपुरच्चुलूमतिक्क्रुष्टटायमागुधम् // 5 // नृत्तायस् / तम् // नुत्तायसूतङ्गीतार्यशैलुषन्धमआयसभाचुरन्नुरिष्ठठायभीम है नारकाय वीरहण नष्टाग्नि शूरं वा 6. पाप्मने ली नपुंसकम 7. प्राक्रयायै अयो गूमयसो गन्तारम् 8. शिवम कामाय पुथलू व्यभिचारिणीम् 8. अतिक्रष्टाय मागधं मगधदेशज क्षत्रियायां वैश्यपु सो जातं वा 10 // 5 // नृत्ताय सूतं ब्राह्मण्यां क्षत्रियाज्जातः सूतः 11. गोताय शैलूषं नटम् 12. धर्माय सभाचर सभायां चरतीति तम् 13. नरिष्ठायभीमलं भयङ्करम् 14. नर्माय र शब्दकर्तारं वाचाटम् 15. हसाय कारिं करणबिशिष्टम् 16 प्रानन्दाय For Private And Personal Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir ई दशाय पञ्चदशस्तोमस्तुताय बार्हताय बृहत्सामस्तुताय विश्वेभ्यो दवेभ्यः द्वादशकपालः पुरोडाशः कीदृशेभ्य: जागतेभ्यः जगत्या छन्दसा स्तुतेभ्य: सप्तदशेभ्य: सप्तदशस्तीमस्तुतेभ्य: वैरूपेभ्यः वैरूपसामस्तुतेभ्यः मित्रावरुणाभ्यां पयस्या पयसि श्रित: चरुः कीदृशाभ्यामानुष्टुभाभ्याम् अनुष्टुभा स्तुताभ्याम् एकविंशाम्यामेकविं शस्तोमस्तुताभ्याम् वैराजाभ्यां वैराजभ्योवेभ्योजागतम्या सप्तदशेभ्योब्बैरुपेभ्योहादशकपालो मित्रावरुणाभ्यामार्गेष्टटभाग्भ्यामकवि शान्भ्यांब्बैराजाभ्याम्प / युस्याबहुस्प्पतयुपातीयत्तिणवार्यशाक्कुरायंचुरुः सवित्त औष्णि हायत्तयस्तुिशायरेतायुद्दादशकपाल: प्राजापत्यश्चुरुरदित्यैविक सामस्तुताभ्याम् वृहस्पतये चरुः कीदृशाय पाताय पङ्क्तिच्छन्दसा स्तुताय विणवाय त्रिणवस्तोमस्तुतायशाक्वराय शाक्वर सामस्तुताय सवित्र द्वादशकपालः पुरोडाशः कीदृशाय सवित्रे औष्णिहाय उशिक छन्दसास्तुताय वयस्त्रिंशा यत्रयस्ति शस्तोमस्तुताय रैवताय रैवतसामस्तुताय एवं छन्दः। 152. For Private And Personal Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir 50 स्तोमसामसहितान् षट् देवा नभिधाय चतुरः केवलानाह प्रजापत्यश्चकः प्रजापतिर्देवत्यश्चरः कार्य: विष्णपत्नी अदित्यै चरुरेव वैश्वानराय वैश्वानर गुणविशिष्टायाम्नये द्वादशकपालः पुरोडाश: अनुमत्यै देवतायै अष्टाकपाल: पुरोडाश: कार्यः // 6 // इति उव्वटकृतौ मंत्भाष्ये एकोनत्रि शोध्यायः // 28 / / ष्ण परक्ये चारग्नयेश्वैश्वानुरायहा दशकपालो मत्त्याऽअष्टा कपालः // 6 // [ 24 ] // 4 // इतिसंहितापाठेएकोनविंशोऽध्यायः // 26 // * देवसविता // देवसविता प्रसुवयुज्ज्ञम्प्रसुवयुज्नपतिम्भगाय॥ दि (1) दूतउत्तरम् पुरुषमेधः हावध्यायौनारायणः पुरुषोपश्यत् / देवसवितः / तिस्रःसावित्रौराह (1) दशम्यामारम्भः / ब्राह्मणराजन्ययोरतिष्ठाकामयोः पुरुषमेधसङनकोयनोभवति / सर्वभूतान्यतिक्रम्य स्थानमतिष्ठा / अत्र त्रयोविंशतिःक्षा भवन्ति हादशोपसदः पञ्च शूत्याइति चत्वारिंशहिनः सिध्यति / अव यूपकादचिनो भवति एकादशाग्नीषोमोयाः पशवो भवन्ति तेषां चप्रतियूपं मध्यमे वा यू पे यथेच्छा नियोजनम् / प्राज्य न सवदग्टहोतेन देव सतरिति - देवसवितः षटतपसेकौलाल ढ० षोडशहोहावि ठ• शतिः // HAVAADRABIR For Private And Personal Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir स्त्रीषखं स्त्रियाः सखायम् 17. प्रमदे कुमारीपुत्र कानोनम् 18. मेधायै रथकारं माहियेण करियां जातम् 18. धैर्याय तक्षा सूत्रधारम् 20. // 6 // तपसे कौलालं कुलालापत्यम् 21. मायायै कर्मार लोहकारम् 22. रूपाय * मणिकारं रत्न कतारन 23. शुभे शुभाय वपं वीजवतारम 24, शरयायै इषुकारं वाणकर्तारम 25. हेत्यै धनुःकारं चाप लन्नुभमायरेभहसायकारिमानन्दाय॑स्त्रीषुखम्प्रमद कुमारीपुत्रम्मे धावैरथकारन्धैायताणम् // 6 // [6] तपसकौलालम् // तप सेकौलालम्मायायैकुरिं, रूपार्यमणिकार६ शुभेचुप शरव्या याऽइषुकार६ हुत्यैर्धनुष्कारकर्मणेऽच्याकारन्टुिष्टटायरज्जुसर्ज। म्मृत्त्यवेमृगुयुमन्तंकायश्वनिनम् // 7 // नदीभ्यः पौज्जुि ष्ठठम् // नदीभ्यः पौज्जुिष्टमुक्षीकाभ्योनैषांदम्पुरुषव्याग्घ्रा / कारिणम 26 कर्मण ज्याकारं प्रत्यञ्चनकतारम 27. दिष्टाय रज्जुस रज्जोः स्रष्टारं निर्मातारम 28. मायबे मृगयुमृगग्राहम्२८. अन्तकाय खनिनं शुनो नेतारम 30. // 7 ॥न दोभ्यः पौञ्जष्ठ पुञ्जिष्ठोन् त्यजः पुलकसस्तदपत्यम् 31. ऋक्षोकाभ्यो नैषादं निषादपुत्रम् 32. पुरुषवधानाय दुर्मदःउन्मत्तम् 33. गन्धर्वापसरोभ्यो व्राता सावित्रीपतितम् 34. प्रयुग्भ्यः उन्मत्तम् 35. सर्प For Private And Personal Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir देवजनेभ्यः अप्रतिपदं प्रतिपद्यते जातानीति प्रतिपत् प्रतथाविधं विकलमितार्थः 36. प्रयेभ्यः कितवं घृतकारम 37. ईर्य तायै अकितवमातकतम 38. पिशाचेभ्यः बिदलकारी वंशविदारिणीं वंशपात्रकारिणीम 38. यातुधामेभ्यः कण्टकीकारी कण्टकी कर्म तत्कारिणीम 40 // 8 // सन्धये जारसुपपतिम् ४१.गेहाय उपपतिं वाभि चारिणम् 42. पात्यै परिवित्तम् ऊढे कनिष्ठेऽन यदुर्मदङ्गन्धर्वाप्सरोभ्योजात्त्यम्प्रयुग्ग्भ्युऽउन्न्मत्त सर्पदेवजुने / भ्योप्प्रतिपटुमयेभ्यो कितुवमौर्यायाऽअकितवम्पिशाचेभ्योवि दलका यातुधानेभ्य कण्टकोकारीम् // 8 // मुन्धयेजारम् // सुन्धयेजारङ्गेहायोपपुतिमात्त्य परिवित्तुन्नित्यैपरिविविदानमरी ध्याऽएदिधिषुडपुतिन्निष्टोत्यैपेशकारीसंज्ज्जानायस्म्मरकारी ढम 43. नित्य परिविविदानम् पनूढे ज्येष्ठे ऊढवन्तम 44. पराध्यदेव्यै एदिधिषुःपतिम ज्येष्ठायां पुत्रधामनूढायामूढा एदि. विषुःतत्पतिम 45. निकिता पैशस्कारी रूपकौम 46. सज्ञानाय सूरकारी कामदीप्तिकरीम 47. प्रकामोद्याय तत्सअज्ञाय देवाय उपसिदतीत्युपसत् समीपस्थितस्तम 48. एतानग्निष्ट निय नति // अथ द्वितीये यू पे। वर्षाय' पनुरुधम् अनुरुध्यतेऽनु For Private And Personal Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir सरतीतानुरुत् तम् 1. बलाय उपदाम् उपददातीत्युपदास्तमुपायनदातारम् // 8 // उत्सादेभ्यः कुजं वक्राङ्गम् 3. प्रमुदे वामन इम्बालम 4. हाभ्यः सामं सर्वदा जललिवनेबम 5. स्वपाय पन्ध मेवहीनम 6. अधर्माय बधिरं कर्णेन्द्रियहोनम 7. पवित्राय भिषजं वैद्यम 8. प्रज्ञानाय नक्षत्राणि दर्शयति तम् गणकम 8. पाशिक्षायै प्रश्निनं प्रश्नवन्तम् शकुनादिप्रष्टारमितार्थः 1.. उपशिक्षायै अभिप्रिननमभिप्रश्नवन्तम 11. // अथ तीये यूप। मर्यादायै प्रश्नविवाक कृताम्प्र कामोद्यायोपुसढुंचांयानुरुधुम्बायोपदाम् // 6 // उत्मादेभ्यः - कुलम्॥उत्सादेभ्यःकुजम्प्रमदेवामनन्हाय 7 सामस्वप्नायान्धम मायबधिरम्पवित्तायभिषजम्प्रज्ञानायनक्षत्रदर्शमाशिक्षायैप्प्रश्नि - नमुपशिक्षायोऽअभिप्परिन्ननम्मादायैप्प्रश्नबिवाकम्॥१०॥अर्मे र हस्तुिपम् // अर्मेभ्योहस्तुिपज्जुवायांश्वपम्पुष्टी गोपालंाि प्रनान्यो विविनक्ति व ते स प्रश्नविवाकस्तम्॥१.१० // धर्मेभ्यो हस्तिपं गजपालकम् 2. जवाय अखपं तुरगपालकम 3 पुष्य गोपालं धेनुपालकम 4. वीर्याय पविपालम 5. तेजसे पजपालम 6. राय कोनाशं कषुकः कोनाशः कर्ष के यमे 7 कीलालाय सुराकार मद्य ऊतम् ८.भद्राय रहपं गेहपालकम्य से वित्त वित्तं दधातीति वित्तधस्तम् धनकर्तारम् 10. पाध्य च्याय For Private And Personal Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अनुक्षत्ता सारथ्य नुसारिणम् 11. // 11 // अथ चतुर्थे यूपे / भाय दार्वाहारं काष्ठानामाहर्तारम् 1. प्रभाय अग्न्येधम अग्निमेध मतोति मग्नेर्वधकम 2. वृध्नस्य विष्टपाय सूर्य लोकाय अभिषेक्तारम् 6. वर्षिष्ठाय नाकाय उत्कष्टस्वर्माय परिवेषणकर्तारम् 4. श्री देवलोकाय पेशितारम पिश अवयवे पिंगतोति पेशिता तम् प्रतिमाद्यवयवकर्तारम 5. मनुष्यलोकाय प्रकरिताम कृ विक्षेप विक्ष याविपालन्तेसेजपालमिर्रायैकोनाकोलालायसुराकारम्भदायर हुप श्रेयसेवित्तुधमाड्य'क्ष्यायानक्षत्तारम् // 11 // भायैदार्बाहा रम् // भायैदा|हारम्प्रभायाऽअग्न्युधम्नस्यष्टिायाभियुक्ता रंवषिष्टठायुनाकायपविष्टटारन्टेवलोकाय पेशितारम्मनुष्ष्यलो की कार्यप्रकरितारः सर्वेभ्योलोकेभ्य॑ऽउपसेक्तारमऽऋत्यैवधायो। / पमन्थुितारम्मेधायचास पल्यूलीम्प्रकामावरजयित्तीम् // 12 // शिवम् धारम 6. सर्वेभ्यो लोकेभ्यः उपरोक्तारमुपसेचनकर्तारम 7. अवऋतौ बधाय उपर्मान्यतारमुपमन्तुनकर्तारम् 8. मेधाय वासष ल्यूलीम् वाससां प्रक्षालनकतारम पल्प ल प्रक्षालनच्छेदनयोः... प्रकामाय रजयित्री वस्त्राणां रङ्गकारिणीं नारीम् 10 // 12 // For Private And Personal Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir ऋतये स्तेनहृदय स्तेनस्येव हृदय यस्य तम 11. // अथ पञ्चमे यू पे / वैरहत्त्वाय पिशुनम्परवृत्तसूचकम 1. विविक्त्यै क्षत्ता प्रतीहारम 2. प्रौपद्रष्ट्रयाय अनुक्षत्तारं प्रतिहार वकम 3. बलाय अनुचर सेवकम् 4 भूम्ने परिष्कन्दम् परितः स्कन्दति रेतः सिञ्चतितम 5. प्रियवादिन मधुरभाषिणम् 6. अरिष्टो अश्वमादम अश्वारोहम 7. स्वर्गाय लोकाय भागंदुग्धे भागदुधस्तम विभागप्रदम 8, वर्षिष्ठाय नाकाय पारवेष्टारम 8. // 13 // मन्धवे अयस्तापम यस्तपं लोहतापकम् 10, क्रोधाय ऋतयेस्तुनहृदयम् // ऋतयेस्तनहृदयंब्वैरहत्त्यायपिशुनंबिवित्यै / क्षुत्तारमौर्पदृष्ट्यायानुक्षुत्तारम्बलायानुचरम्भु म्नेपरिष्कन्दम्प्रिया यप्प्रियवादिनुमरिष्टट्याऽअश्वमाद 7 स्वगायलोकार्यभागदुघंच र्षिष्ठायनाकायपरिवष्टटारम् // 13 // मुन्न्यवेयस्तापम् // मुन्न्य यस्तापजोधायनिमुरंथ्योगायोक्तार शोकायाभिमुर्तारक्षे / निमरं नितरां मर्तारम् // 11 // अयषष्ठ यूपे। योगाय योक्तारं योगकर्तारम् 1. शोकाय अभिसार सन्मुखमागच्छुन्तम् 2. क्षमाय विमोक्तारम् विमोचनकरम 3. उल्क लनिकूलेभ्यः विष्ठिनम् त्रिषु तिष्ठतीति विष्ठीतम् विद्यादिषु स्थितं शोलवन्तमितार्थ : 4. वपुषे मानवतं पूजाया अभिमानस्य वा कर्तारम् सक् छान्दसः 5. भोलाय 153. For Private And Personal Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir अञ्जनोकारीम् अञ्जन विद्याक!म् 6. नि तो कोशकारों खड्गाद्यावरण कोशस्तत्वारिणी स्त्रियम् 7. यमाय असुम् न सूते सा असू ताम वधयाम् 8 // 14 // यमाय मयम युग्मप्रसवित्रोम् 8.. अथवभ्योऽवतोकां निरप तयाम् 10. संवत्सराय पर्यायिणीम् पर्यायोऽनुक्रमस्तहतीमनुक्रमज्ञाम् // 11. // अथ सप्तमे यूपे। परिवत्सराय अबिजाताम् अप्रसूतां 1. इदावत्सराय मायबिमोक्तार मुत्कलनिकलेभ्यस्त्रुिष्ट्रिनव्वऍपेमानस्कृत 6 शौ।। लायांजनीकारोन्नित्यैकोशका ट्युमायासम् // 14 // सुमाय यमसम् // खुमाय॑य मसूमर्थ ब्भ्योतोका संवत्सरायपायिौँ / परिवत्सरायाविजातामिदात्सायातीत्वरीमिहत्सुगयांतुिष्कहरों वत्सुगयुब्बिज॑ज्जरासँचत्त्सुरायुपलिकोमभुभ्योजिनसुन्धमाहा / दभ्यश्चमम्मम् // 15 // सरोब्भ्योधैवरम् // सरोब्भ्योधैवरास्त्था शिवम् प्रतिस्कन्दम्रबति प्रतीत्वरीमत्यन्त कुलटाम पुचली कुलटेवरी 2. इवत्सराय अतिष्कहरोम अतिस्कडरी स्कन्द - वंदत्तात् डीओफो 3. वत्सराय विजजरां शिथिलशरीराम 4. संवत्सराय पलिक्नी श्वेतकशाम 5. ऋभुभ्यः अजिनसन्ध चर्मसन्धातारम् 6. साध्यभ्यः चर्ममनं चर्माभ्यासकरम 7 // 15 // सरोभ्यो धैवर कंबर्तापत्यम 8. उपस्थावरो For Private And Personal Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir दाशम दाशु दाने दातारम दाशी धीवरो वा 8 वैशन्ताभ्यो वैन्दं विन्दो निषादापत्यम, 10. नडुलाभ्यः शौष्कलं मत्साजीवनम शुष्कला मत्स्यास्त जोवति तम 11 // अथाष्टमे यपे / पाराय मार्गारम मृगादेरपत्यं मार्गारस्तम् 1. अवराय केवर्तम 2. तीर्थेभ्यः पान्दमं अदि बन्धने अदति आन्दस्त बन्धनकर्तारम 3. विषमभ्यो मैनालम, अल वारण मोनानलति वारयांत जालरसी मीनालस्तदपत्यम 4 स्वनभाः पर्ण के भिल्लम 5. गुहाभा किरातम् 6 सानुभाः जम्भक वराभ्योदाशब्वैशुन्ताभ्योवन्दन्नडड लाब्भ्यशौष्कलम्पाराय॑माग्र मंचारायंकवतन्तोर्थेभ्यऽआन्दंविषमेभ्योमैनालखनेभ्यु पस कुकुहाडम्युई किरांत 6 सानुग्योजम्भकुम्पर्वतब्भ्यां किम्पुरु षम् // 16 बीभत्सायपोल्कुसम् // बीभत्सायपोल्कुसंवर्यायहि करण्यकारन्तुलायैवाणुि जम्पश्चादोषायंग्लाविनविश्वेभ्योभते / / जभि नाशन जम्भयतीति तम 7 पर्वतभा किम्य रुषं कुत्सितनरम, 8 // 16 / बीभत्साये पौत्कसम पुल्कसाप त्यम, 8 वय हिरण्यकारं स्वर्ण निष्पादकम, 10 / तुलार्य वाणज वणिगपत्यम् 11. // अथ नवमे यूपे / पश्चादोषाय ग्लाविन ग्लो हर्षचये अष्टम. 1. विश्वभो भूतभ्यः सिअल सिमाख्यरोगवन्तम् 2. भूता जागरणं जागरूकम् 3. अभूता For Private And Personal Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir स्वपनं शयालुम् 4. पाती जनवादिनं जनान्वदति तम् 5. व्य जो अपगमम् ई. संशराय प्रच्छिदः प्रच्छि दनकर्ता। रम 7.517 // अक्षराजाय कितवं धूर्तम 8 कृताया आदिनवदर्शम, आदिनवो दोषस्तं पश्यति तथाभूतम 8. त्रेताय कल्पिनं कल्प कम / 10 / हापराय अधिकल्पिनम अधिकल्पनाकर्तारम् 11. अथ दशमे यूपे / आस्कन्दाय सभा भ्य'’ सिध्मलम्भूत्यैजागरणमभूत्यैस्वपुनमात्यैजनवादिनन्यड्या है अपगुल्म्भसशुरायाच्छिदम् // 17 // अक्षुराजायंकितुवम् // अक्षग़जायकिकितुवकृतार्यादिनवदर्शन्तायै कुल्प्पिनन्हापरीया / धिकल्प्पिनमास्क्वन्दायसभास्त्थाणुम्मृत्यवेगोव्यच्छमन्तकायगोपात क्षुधेयोगाँबिकृन्तन्तुम्भिक्षमाणऽउपतिष्ठति दुष्कृतायुचरकाचा य॑म्पाप्मनेसैलुगम् // 18 // प्रतिशल्कायाऽअत॒नम् // प्रतिश्श्रु उशिवम स्थाण सभायां स्थिरम. १.मृत्यवे गोव्यच्छं गाः प्रति गमनशीलम. 2. अन्त काय गोधामम गवां हन्तारम 3. क्षुधे योगां विक्रन्तन्त भिक्षमाण उपसिष्टतियः पुमान् गा विक्रन्तन्त छिन्दन्त भिक्षमाणो याचितार क्षुध दैव्यै पालभत 4. 612 दुःक्वताय चरकाचार्य चरकाण गुरुम 5. पाप्मनसैलग सोलगो दुष्टस्तदपत्यम.६. // 18 // प्रतिश्रुत्काय अतनं दुःखि For Private And Personal Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir नम 7. घोषाय भर्ष कल्पकम 8. अन्ताय बहुवादिनम 8. अनन्ताय मूकं वाग्विकलम 10. शब्दाय आडम्बरमाहन्ति तभ कोलाहलकर्तारम 11. // अथैकादशे यूपे / महमे वीणावादं वोणावादनकर्तारम 1: क्रोशायतूणवनम् तृणवं वाद्यविशेष धमति तथाभृतम् 2. अवरस्पराय शङ्खम शिजवादकम 3. वनाय वनपं वनपालकम 4. अन्यतो ऽरण्याय दावपं वनवहिप 5 // 18 // नर्माय पुथलं दुष्टां नारोम हसाय कारिं करणशील यादसे शाबल्याम् शवलः कायाऽअनिङ्घोषायभुषमन्तायबहुवादिनमनन्तायमूक शब्दाया डम्बरापातम्मह सेवीणावादकोशायतूणबुध्ममवर संपराय॑शङ्ख ध्मंचनायबनुपमुन्न्यतोरण्यायदावपम् // 16 // नआयएँ प्रच्चलम् // नुआयपुंश्चुलू 7 हसायुजारि व्याट्सेशाबुल्ल्याङ्गा कर्वरवर्ण : तदपत्यभूतां स्त्रियं ग्रामण्यं ग्रामनेतार गणक ज्योतिविदं अभिकोशक निन्दकं तान्महसे जुष्टं नियुनजमोति एकादशे यूपे आलभते // एवं प्रतियूपमेकादशस्वेकादशसु नियुक्त षु येऽधिका अवशिष्टास्तान् समाप्तिपर्यन्तान्हितीयोच्छिते यूपे नियुक्ति तांश्च वोणाबादं पाणिमित्यादीन् रात्र कषण पिङ्गाक्षमित्यन्ताश्चतुर्दश ततोऽथैतानष्टौ विरूपानिताष्टौ च मागधादींश्चतुरः एवं षडविंशति द्वितीये यूपे पूर्वोक्ता- एकादश एवंसम्वनिशत् / तानवाह / वीणा For Private And Personal Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir 1 वादं पाणिनं हस्ततालवादकं तूणवम तान् बोन् नृत्ताय पालभते 3, अनन्दाय तलवं वागतिगन्धनयोः गन्धन र हिंसा तल हस्तादितलं वाति वाद्यमुखं हन्ति स तलवस्त वाद्यवादकं 4. // 20 // अग्नये पोवानं स्थूख 5. पृथिव्य पोठसर्पिण पोठनासनेन सर्पति गच्छति पोठसीतं पङ्ग 6. वायवे चाण्डाल चण्डालकमाणं 7 अन्तरिक्षाय वंश my मुण्यङ्गणकमभिकाशकुन्तान्महसे बीणावादम्पाणुिग्घ्नन्तूंणवृध्म न्तान्नृत्तार्यानन्दायतलवम् // 20 // अग्नये पी|नम् // अग्न। रोपीवानम्पृथिव्यैपौठसर्पिोब्बायवेचाण्डालमुन्तरिक्षायवशनुर्ति न्नदिवेखलुतिसूर्यायहव॑क्षन्नक्षत्रेभ्य किम्मुिरञ्चन्द्रमसेकिला समन्द्रेशुक्लम्पिङ्गाक्षरात्री कृष्गणम्पिङ्गाक्षम् // 21 // अथैता न्॥ अथैतान टटौबिरूपानालभतेतिंदीग्र्घञ्चातिहस्खञ्चातिस्त्यू नतिनं वंशेन नर्तनशील 8 दिवे खलतिमलोमशिरस्क खल्वाटमितार्थः 8 सूर्याय हर्यक्षहरितनेत्र 10 नक्षत्र भ्यः क्लिनिरं कर्तुरव 11. चन्द्रमसे किलासं सिधमंरोगवन्तं 12. अई शुक्लवर्ण पिङ्गाक्षं 13. रात्री कृष्णवर्ण पिङ्गाक्षं 14. // 21 // एतान् विरूपान् पालभते अतिदोवं अतिखं अतिस्थूल अतिकशं अतिशुक्लं अतिकष्ण अतिकुल्वं रोमरहितं अतिलो. For Private And Personal Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir मशं सर्वाङ्गव्यापिरोमाण' / ते अठो अशूद्राः अव्राह्मणाः शुव्राह्मणव्यतिरिक्ताः पशवो भवन्ति तेऽष्ठावपि प्राजापतयाः मागधः पुचलोकितबः क्लीवः एतेऽपिप्राजापतयाः इति महोधरादि भाष्येत्रिशोध्यायः / लञ्चातिकशुञ्चातिशुक्लञ्चातिवष्मसञ्चातिकुल्वुउचातिलोमशञ्च // अशूद्राऽअब्राहमणास्तेप्प्राजापुत्या: // मागधः पुंश्चुलोकितव लोबोदाऽअब्राहम्मणास्त प्राजापत्त्या: // 22 // [ 16 ] व इतिसंहितापाठेत्रिंशत्तमोऽध्यायः // 30 // * सहस्रशीर्षापुरुष // सहस्राक्ष मुहस्रपात् // सभूमि ॐ (1) परमात्मविज्ञानानन्दादि गुणाधधात्मनि प्रभूतःपषमेधोयत्तः प्रजापति.लोककालाग्न्यादिवपुः परुषोत्पत्तिस्थितिसंहृतीनां हेतुः स्वर्गापवर्गवर्यमोक्षदो ज्ञानकर्मसमुच्चयकारि (1) कात्य नियुक्तान् ब्रह्माभिष्टौति होटवदनुवाकेन सहस्रशीर्षति / * सहस्रशीर्षाषोडशाशासम्भृतःषटौडावि: शतिः For Private And Personal Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir णम् शरीरंयतीवाअस्थात्माभवतीतिश्रुतिः। सहस्रशौर्षापुरुषइत्यनुवाकेन षोडशर्चेनानुष्टुभेन विष्ट वन्त्येन ब्रह्मणेब्राह्मणमित्याद्यवयवभूत पुरुषहारणावयवी स्तूयते। इदानींस्तुत्यर्थं निर्वच- नहारेण दृढयितमाह। अथयस्मात्पुरुषमेधो नानेमेवैलोका:पूरयमेव पुरुषोयोयंपवते सोस्यांपुरिशेते तस्मात्पुरुषः / तस्ययदेषु लोकेष्वन्न तदस्यान्नंमेध स्तदस्यैतदन्नं मेधस्तस्मात्पुरुषमेधः / / पुरुषसूक्तस्यनारायणऋषिः पुरुषोदेवतानुष्ट छन्दः अन्त्याविष्ट पमोक्ष विनियोगः अस्यभाष्यं शौनकीनामऋषि रकारीत् / प्रथमविच्छेदः क्रियाकारकसंवन्धःसमासः प्रमेयार्थव्याख्य ति सर्वमेतज्जनकाय मोक्षार्थकथयामासति सहस्रशीर्षापुरुषः / सहस्राक्षःसहस्रपात् सःभूमिम् / सुब्बतस्प्पुत्वात्य॑तिष्ठठहशाङ्गलम् // 1 // पुरुषऽएव // पुरुषएवे सर्वत:स्मृत्वा अतिअतिष्ठत् दशाङ्गलम् / सःपुरुषः नारायणाख्यःसर्वत: भुवनकोशस्यभूमिस्मृत्वा व्याप्यदशाङ्गुलम् अत्यतिष्ठत् / दशचतानि अङ्गलानिदशाङ्गलानीन्द्रियाणि / केचिदन्यथारोचयन्ति दशाङ्गलप्रमाण हृदयास्थानम् / अपरेतु नासिकागन्दशाङ्ग लमिति किम्भूतोसौ सहस्रशीर्षा / अनेकपर्याय:सहस्रशब्दः अनेकानिशिरांसि यस्यससहस्रशौर्षा पुरुषः / सहस्राक्षः / सहस्राण्यक्षौणिनेत्राणि तस्यासोसहस्राक्षः सहसपात् पादानामङ्गानांसहस्राणियस्य ससहस्रयात् / एतद्गुणःपुरुष: तद्व्याप्यअतिक्रम्यस्थितइति // 1 // पुरुषएव / पुरुषःएव दूदम्सर्वम् शिव. For Private And Personal Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यत्भूतम् यत्वभाव्यम् / उतअमृतत्त्वस्य ईशान: यत्प्रन्नेनअतिरोहति / सएवपुरुषः पूर्वप र्यायविशेषितएव शब्दोनान्यः / इदंवर्तमामकंसर्वम् यच्चभूतमतीतम् यच्चभाग्यम्भविष्यत् तस्य1 कालत्रयस्थईशानः / नकेवलकालत्रयस्य ईशानः / उतअमृतत्त्वस्थापिमोक्षस्थापि। उतशब्दोपि शब्दार्थे कमात्कारणात् / बत्अन्न नअमृतेन अतिरोहति अतिरोधंकरोति / सर्वस्वेश्वरद्वति // 2 // एतावानस्य / एतावान्अस्यमहिमा अतःज्यायांश्च पुरुषः / पाद.अस्यविश्वाभूतानित्रिपात्त्रस्य / दसर्बुय्यडूतंय्यच्चभाब्यम् // उता तत्त्वस्येशानोवदन्नेनातिरो क हति // 2 // एताानस्य // महिमातोज्ज्यायांपञ्चपूरुष // पादौ स्युविशाभूतानितिनुपाटस्थामृतन्टिवि // 3 // पिादूर्ध्व अमृतन्दिवि / अस्य पुरुषसा पूर्वीक्तविशेषणविशेषितसा एतावान्महिमा / एतदेवमहत्वमसा अतः 3 कारणात् ज्यायांश्च पुरुष: महानित्यर्थः / क मान्महत्वमायातम यस्मात्पादःएकोश: असापुरुषस्य / विश्वाभृतानिविश्वानि चतुर्दशभुवनसमूहयानिचतु भूतानि तान्येकोश: / विपात्पुन: ज्यशा: / असापुषमाअमृतम् ऋग्यजुःसामलक्षणम् आदित्यलक्षणांवादिविद्योततेइति // 3 // त्रिपाटूर्खः / 154. For Private And Personal Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir त्रिपात्ऊ : उत्ऐत्पुरुषःपाद: असाइहअभवत्पुनः / ततःविष्वविअक्रामत्साशनानशमेय० अभि। यस्मादयंपुरुषः त्रिपात्ल्यंशभूत: अर्द्धः उपरिष्टाउदैत्देदीप्यमानस्तिष्ठति / असाच सं० पुरुषसपादः एकोशःइहत्रैलोक्ये वीजभूतञ्चतुर्घसूतेषु अभूत्भूतम् / ततःतस्मात्कारणात् विष्व भुवनकोशंव्यकामत् उत्पन्नमित्यर्थः तस्मादेवपुरुषात् / साशनानशनेअभि साशनंस्वर्गम् अनशनं मोक्षम सर्वजगत्स्वर्गप्रतिमोक्षम्प्रतिच तस्मादेवोत्पन्नमित्यर्थः // 4 // ततोविराट् / विपार्वउदैत्पुरुखुरुपादौस्युहाभवत्पुनः॥ ततोविष्ष्वङयो / कामत्साशनानशुनेऽभि // 4 // ततौबिराट् // ततौबिराङजा यतबिराजोऽअधिपूरुष // सजातोऽअत्यरिच्च्यतपुश्चाद्भूमिमी ततःविराटअजायत विराज:अधिपूरुषः / स.जात: अतिरिच्यत पश्चात्भूमिम् अयोपुरः / , तम्मादेवपुरुषात् विश्वोत्पत्तिः / तत्रपूर्वविराट् अजायत विराज:अधिपूरुषः प्रधानन्तेजः / शिवम सक्षेत्रनः ब्रह्मासृष्टिकृत् जातःसन्अतिरिच्यते सोभितः / पश्चात् अस्मात् क्षेत्रज्ञात्ब्रह्मण: भूमिः 2 पृथिव्यादौजाता उत्पन्नाइति अथोनन्तरम् पुरःशरीराणि पुराणिचतुर्विधानिभूतानि अजायन्त / For Private And Personal Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir पुत्रादीनितेनैवोत्पादितानि एवमेकोश: तेनैवसर्वविश्वमुत्पादितमिति // 5 // तस्माद्यज्ञात् / तस्मात् यज्ञात् सर्वहतःमभृतम् पृषदाज्यम् पशृन्ताञ्चक्र वायव्यान्ारण्या:चये / यथाअग्निष्टोमाख्यात् तम्मायज्ञा सर्वहुत: / संतंपृषदाज्यम् तेनवायव्यान्मसन् आरण्याग्राम्याश्च येतान्कृतवन्तः।। * एवमात्मयज्ञात / सर्वहतात्यरितात उत्पन्न नयोगिन: सर्वानपशून सर्वाणिभतजातानि करतलपुरः // 5 // तस्म्माद्य उज्जात्॥ तस्माद्यज्ञात्सर्बुहुतसम्भृतम् षटाग्ज्यम् // पशू स्ताचक्केवायुयानारगयाग्ग्राम्म्यापच्चये // 6 // तस्म्मा उज्ञात् // तस्माद्य जात्सबहुतुऽमृचु सामानिजज्ञिरे // छन्दांसिजतिर तस्म्माद्यजुस्तहम्मादजायत // 7 // तस्म्माद वत्पश्यन्ति / पश्यन्तिकिलज्ञान तेजपाभूतजातानि // 6 // तस्माद्यज्ञात् / तस्मात् यज्ञात्मर्वहुत: ऋच:सामानिजसिरे। छन्दांसियतिरे तस्मात्यजुःतस्मात् अजायत / तस्मादेवयज्ञात्मबहुत: प्रज्वालितात् यथाचःसामानि यजूंषिच देवाउत्पादयन्ति छन्दांसिच / एवमात्मयते प्रणवेनदीपिते स्वयमेवतानादधिष्ठितानिभवन्ति / एवयेनपरमात्मनिज्ञायते सर्वोजग्धाः सर्ववामयंज्ञानम्भवतीति / 7 // तस्माद्यज्ञात् अश्वाः अजायन्त उत्पन्ना तथा ये के चाश्वातिरिका For Private And Personal Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagar गर्दभादयोऽशवतराश्च उभयादत: उभयो गयोद॑न्ता येषां ते उभयदत: छान्दसं दीर्घम् अर्धाधोभागयोदन्तयुक्ताः सन्ति तेष्यजायन्त / तथा ह स्फुटं तम्माद्यज्ञात् गाव: च जतिरे। किञ्च तस्माद्यज्ञात् अजावयः अजा: अवयश्च जाताः / न हि पशुभिर्विना यत्तः सिधात् // 8 // तंयन्तम् / तम्यज्ञम् वर्हिषि / प्रौक्षन्पुरुषम् जातम्अग्रतः / तेन / देवा: अयजन्त साध्याः प्रश्वाः॥ तस्म्मादप्राऽअजायन्तुवेकेचौभयाटत // गावोहज जिरेतस्म्मात्तस्म्माज्जाताऽबजावयः॥८॥ तंट्युज्जम् // तंट्युतम्ब र्हिषिष्प्रौक्षन्पुरुषजातम॑ग्यत: // तेनदेवाऽयजन्तमाड्याऽऋषय ऋषयश्च / ये // यथेन्द्रेण तत्रयन्ने अग्निष्टोमाख्ये वर्हिषाप्रोक्षित: पुरुषोजातः / तदात्मयज्ञे बहिषाप्रामायामेन दीपितेन तस्मिन्पुरुषोजात: ज्ञानमुत्पद्यतेदिव्यम् / अग्रत: प्रथमतः / तेन देवाइन्द्रादयः साध्याश्चषयश्च यथाअयजन्त / तथादेवा योगिन: कपिलादयश्च साध्याश्चापरे For Private And Personal Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir चटषयः / ऋषयश्वान्येतेनैव प्रणवाधिष्ठे तेन पुरुषेणात्मयत्न कृतवन्तति // 6 // यत्पुरु षम् / यत्पुरुषम् व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् / मुखकिम् अस्यासीत् किंवाहू किम्फरू पादौउच्च ते // यत्पुरुषम् देवाइन्द्रादयः तस्मिन् यत्ने व्यदधुः कृतवन्तीयथा। तहत्योगिनः र आत्मयने पुरुषंज्ञानम् यत्नानान्तं तत्कृतवन्तः / कतिप्रकारंविकल्पितवन्तः / तस्यैवंविप्रच्चुये // 6 // यत्पुरुषम् // यत्पुरुधुव्यदधुः कतिधान्यकल्प्प है। यन् // मुखङ्गिमस्यासीत्किम्बाइकिमूरूपादोऽउच्च्यते // 10 // बारम्मणोस्स्य // ब्राहमणोस्स्युमुखमासौडाहूराजुन्युः कृतः // धष्यकिंमुखम् कौवाहूकौऊरूपादौउच्येतेउच्च तामित्यर्थः / ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्राः स्थिताइत्यय:॥ 20 // ब्राह्मणोस्य / ब्राह्मणः अस्य मुखम्असीत् वाहू राजन्यः कृत: जरूतत् अस्थय वेश्यः पद्भग्राम्शूद्रः अजायत / अस्ययज्ञोत्पन्नस्यपुरुषस्य येकेचिद्ब्राह्मणाः तेमुखम्बासीत् / येक्षत्रियाः तेवाइकृताः / येवैश्याः तेअस्यजरूकृताः / येशूद्राः तेपद्भ्याम्अजायत इतिक For Private And Personal Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir ल्पन्ते / तदस्योत्पन्नत्वादिति / एवमेतेवयवाः शिरः प्रभृतयः पुरुषस्यविद्यन्तेनान्येइति // 11 // चन्द्रमामनसः / चन्द्रमा:मनसःजातः चक्षोः सूर्यःअजायत / श्रोत्रात्वायुःचप्राणा:चमुखात् अग्निःअजायत / तम्यैवंविधस्य यज्ञोत्पन्नस्यपुरुषस्य / चन्द्रमा:मनसः चेतसःजातःअजायते तिक ल्पना / मनएवचन्द्रमा: / चक्षो: नेवाभ्यांसूर्य: / नेत्र एबसूर्यः / यःप्राणोजीव: सएजरूतदस्यवद्देश्यः पुड्या शुद्दोऽजायत // 11 // चन्द्रमाम / नस // चन्द्रमामनसोजातश्च्चक्षो सूर्योऽअजायत // प्रश्रोत्या हायुश्चप्प्राणश्चमुदिग्निरजायत // 12 // नाभ्योऽआसीत् // नाभ्याऽआसीदन्तरिक्ष शीष्र्णोद्यौः समवर्तत // पुयाम्भूमि ववायुःश्रोत्रात् अजायतेतिकल्प्यतेश्रोत्रमेववायुः / योयमग्निःसमुखात् अजायतेतिकल्प्यते मुख- शिवम् मेवाग्निः अंशोत्पन्नत्वादिति // 12 // नाभयात्रासीत्। नाभ्या:आसीत् अन्तरिक्षम शिषः द्यौ.सम्वत्तेत / पढ्भ्याम्भूमिःदिशःश्रोत्रात् तथालोकान् अकल्पयन् / तस्यैवंविधस्यपुरुषस्य / For Private And Personal Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir यानाभिःतदेवान्तरिक्षन्नमः / याद्यौःतत्शीर्षशिरः। समवर्ततेतिकल्पितम् / पादौभूमिरेव / श्रोत्र श्रवणोदिशः / श्रोत्रवयवाःयस्माद्दिशः ब्रह्मणोजाता: तथैवसर्वान् लोकान् पुरुषस्यावयव. भूतान् अकल्पयदिति // 13 // यत्पुरुषेण / यत्पुरुषेण हविषा.देवा: यत्तम्त न्वत / वसन्तः / अस्यासीत् आज्यम् ग्रीष्मःइध्मः शरतहविः / कथमन्ने नाधिरोहति / यत्यस्मात्कारणात् / / दिशुद्ध श्रोत्रात्तालोका / / ऽग्रंकल्प्पयन् // 13 // वत्पुरुषेण // हुविदिवासुज्तमतन्न्वत // बसन्तोस्यामोदाज्यद्रोम्मदुधम शुरडविः // 14 // सप्तास्यासन्॥ सुप्तास्सासन्न्परिधरस्मितसमि पुरुषेण हविषा हविर्भूतेन देवाइन्द्रादयः यथायज्ञम् अतन्वत विस्तारितवन्तः / तथायोगिनीपिपुरुषेणैवामृतभूतेन दौपितेनात्मना आत्मयत्तंसमधिकृतवन्तः / अत्रयत्नेवसन्तः आज्यमासीत् ग्रीष्मःइध्मः शरडविरिति / इतरयागेवसन्तशब्देन सात्विकोगुग्णउच्यते ग्रीष्मशब्देनराजसः / शरच्छब्देनतामस: / त्वयोहिगुणा स्तनात्मययोगिनोजुहृतीति // 14 // सप्तास्यासन् / सप्तअस्यासन् परिधयः निःसप्तसमिधःकृताः / देवा:यत्यतम् / तन्वाना:अवघ्नन् For Private And Personal Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir पुरुषम्पशुम् / देवाइन्द्रादयः यथायज्ञपुरुषमेधाख्यं विस्तारयन्तः पुरुषंपशुम् अवघ्नन्हतवन्तः / अस्यपुरुषमेधयज्ञस्य सप्तमुद्रा:परिधय:आसन् / भारतेहिवर्षेयागः प्रवर्तते / त्रि:सप्तछन्दांसि गायल्यादीनि समिधःकृताः / आ मयागेपरिधिशब्द न पृथिव्याप स्तेजो वायु राकाशं मनो बुद्धिरित्य ते परिधयःकल्यन्ते त्रिःसप्तसमिधः / पञ्चमहाभूतानिपृथिव्यादीनि पञ्चतन्माला६१८ णिरूपादीनि। पञ्चबुद्दीन्द्रियाणि श्रोत्रादीनि / पञ्चकर्मेन्द्रियाणिपाण्यादीनिमनश्च एता: विमा तसमिधःकल्पयन्ति / तथादेवादीयमानानानेनयोगिन: समाध्याख्ययन तन्वानाबिस्तायन्तः / यकृता॥दुवाया जन्तन्न्वानाऽअर्बनुन्न्पुरुषम्पुशुम्॥१५॥बुज्ने नयुतम् // बुनियज्ज्ञमयजन्तदेवास्तानिधर्माणिप्प्रथमान्न्न्या * पुरुषं ज्ञानं पुरुष मेधपशुरूपेणावस्थितम् अव भन्अगृह्णन // 15 // यजनयतम् / यत्तेनयजम्यजन्त / देवाः / तानिधर्माणिप्रथमानिआसन् / तेहनाकम् / महिमानःसचन्तयचन: पर्वसाध्या:सन्तिदेवाः / यथाइन्द्रादयोदेवा: यत्ते नज्योतिष्टामाख्येन यत्तपरुषवासुदेवम् विधि8 नायजन्त / यतःतानियजनरूपाणिधर्माणि प्रथमानिआसन् / तेहमहाभाग्ययुक्ताःनाकंस- - चन्त वर्गसेवन्ते / यत्नपूर्वसाध्याः प्रथमेमुरा:सन्तिविद्यन्तेदेवाः तेजसादेदीप्यमानाः / एवंयो 618 For Private And Personal Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir गिनोपिदीपना वायत्तेन समाधिनानारायणास्यज्ञानरूपम् अयजन्तयत: तानिसमाधिरूपाणि धर्माणि प्रथमान्यासन / तेतुनाकं सनकादीनांस्थानंगच्छन्ति / येतयोगिनीमहिमान: जम्मा न्तनिर्धतगुणा:शुदधाः तेनारायणाख्य पुरुषमाविशन्ति मुक्तिगच्छन्तीत्यर्थः // 16 // अभ्यःसंभृतः। अद्भ्यःसंभृत: पृथिव्यैरसात् चविश्वकर्मण: सम्अवर्ततअग्रे। तस्यत्वष्टा विदसन् // तेहुनाकम्महिमानः सचन्तयत्पूर्वसाड्या? सन्तिदे / वा // 16 // [ 16 ] अद्भाः सम्भृतः // पृथिव्यैरसांच्चबिश्वकम्मै या समवर्तताग्ने // तस्यत्त्वष्टानिदधद्रूपमैतितन्मस्यदेव त्वमाजानुमाग्रे // 17 // वेदाहम्॥ब्बेदाहमेतम्पुरुषम्महामान्त दिर धरूपम् एतितन्मय॑म्य देवत्वम आजानम अग्रे। त्वष्टाप्रजापतिब्रह्मा यएमेकांशभूतं षिदर धकतवान् तदेवमर्त्यस्य मर्यभूलोकदेवत्वंप्रभुत्वम् अाजानमाप्तमित्यर्थः / किंभूतोस। अयःसकाशात् संभृतःपिण्डीभूतः पृथिव्याःरसात्च / विश्वकर्मगा: अग्रेप्रथमत: समवर्तत / संयोगरूपेणकृतः / तस्यैवनान्यस्य तदेवकारणान्म]प्राप्तवान् सतुपालनायदानवादि विनाशनायेति // 17 // वेदाहम् वेदअहम् एतम्पुरुषम् महान म्ादित्यवर्गम् तमसःपरस्तात् / तम्एबविदित्वा 155. For Private And Personal Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir CAN अतिमृत्युमएति नअन्यः पन्थाविद्यतेअयनाय / ऋषेःप्रतिवचनम् / अहमेनंपरुषवेद महान्तन्देशकालाद्यपच्छेदरहितम् आदित्यवर्णम् स्वप्रकाशम् तमसःपरस्तात् अविद्याया:भेददर्शनम् / / तमेवविदित्वा अतिमृत्युम् एतिअतिक्रम्य मृत्युंतंपुरुषमनुप्रविशति / नअन्यः पन्थामार्ग: तस्यायनायगमनायविद्यते किंभूतंतं विशिष्यते // 18 // प्रजापतिश्चरति / प्रजापतिःचरति गर्भे अन्त: त्यवर्णन्तमस पुरस्तात् // तमेवविदित्वातिमृत्युमेतिनान्याप न्याव्विा तेय॑नाय // 18 // प्रजाप॑तिश्चरति // प्रजाप॑तिच्चरति / गर्भअन्तरजायमानोबहुधाब्विायते // तस्यवोनिम्परिपश्यन्ति। धौगस्तस्मिन्हतस्त्थुभव॑नानिविपश्वा / 16 // बोदेवेभ्यः // अजायमानःवहुधाविजायते / तस्ययोनिम परिपश्यन्ति धीराः तस्मिन्हतस्थः भुवनानिविश्वा। सएवपुरुष एकांशभूतः प्रजापति: अस्यगर्भसवान्तः अजायमानः चरतिचतर्विधषु भूतेषु / सएबजायमानः वहुधानेकप्रकारंविजायते। येधीराः योगिन: तेतस्यैयोनि परिपश्यन्ति / सवस्यागनपरिहरन्ति विश्ववैलोक्येभुवनानितस्मिन्नातस्थः // 18 // योदेवेन्यः / यःदेवेभाः शिवम् For Private And Personal Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir आतपति यःदेवानाम्पुरः हितः। पूर्व:य: देवभा:जात: नमःरुचाय ब्राह्मये / अग्रेयो वेभाः ॐ योगिनस्तन्नमन्तिध्यायन्ति योदेवभाः सर्वेभाःआतपति अतिशय नतेजसा तपतिआदित्यरूपेणे* त्यर्थः / यचदेवानां पुरोग्रे इन्द्रत्वेनस्थित: यश्चपूर्वः अग्रे ब्रह्मरूपण देवेभवीजात: तरुचायतेजसेब्राह्मये ब्रह्मपुरुषोपत्त्यायनमः // 20 // मचंब्राह्मम् / रुचमब्राह्मम् जनयन्तः देवाअग्रे तत्अब्रुयोदेवेभ्यंऽआतप॑तियोदेवानाम्पुरोहित // पूर्बोयोदेवेभ्योजातो नौरु चायवाड्मये // 20 // कु चम्बात्म्मम् // रु चम्बाहम्मञ्जुन यन्तोदेवाऽअग्ग्रेतववत् // यस्त्वैवम्बाहम्मणोलि द्यात्तस्य॑दे॒वाऽ - अमुन्न्वशे // 21 // श्रीपञ्च // श्रीपचतलक्ष्मीश्नुपत्न्यावहोरात्रे वन् / यःत्वाएबम् ब्राह्मण:विद्यात् तसादेवा:असनवशे / रुचन्देदीप्यमान ब्राह्मब्रह्मणउत्पन्न जनयन्त:सृष्टार्थम् देवायोगिनः तेजसादीप्यमानाः यत्तअब्रुवन् यहूयुःअग्रे प्रथमत: / किमूचुः अपरोपियोब्राह्मणः सब्रह्मविद्याज्जानीया र तसादेवाअसन्वरी सोपिसनकादीनां स्थानङ्गच्छतीत्यर्थः // 21 // श्रीश्चते / श्री:चतेल मौः चपत्न्यौ अहोरात्र पाईनक्षत्राणिरूपम् अश्विनौव्यात्तम् / इष्णन्द्वषाण For Private And Personal Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir अमुम्मेदूषाण सर्वलोकम्मेद्वषाण / असापुरुषस्यैतेवयवाः / श्रीश्चलक्ष्मीश्च पत्न्योभार्ये अहश्चरात्रिश्च तेपानक्षत्राणिरूपम् अश्विनौव्यात्तंमुखम् / दूषणान् इषाण स्वर्गसालोकसाईशानः / एतगुणविशिष्ट: नाममोक्षस्यईशानः सर्वलोकम्यच सएबदेवानामौशानइति // 22 // ___ इतिशौनक प्रणीतं पुरुषसूतभाष्य समाप्तम् // 31 // - पार्वेनक्षत्राणिरूपमुश्विनौव्यातम् // हुण्णन्निषाणामुम्मऽडू षाणसवलोकम्मऽइषाण // 22 // [6] // 2 // इतिसंहितायांएकत्रिंशोऽध्यायः // 31 // तटेव। तदेवाग्निस्तदादित्यस्तहायुस्तदंचन्द्रमा॥ तदेवशु 8 (1) इदानीसर्वेमन्त्राः प्राक्प्रवायुमित्यस्मादनुवाकात्सर्वमेधसंवताः / ब्रह्मणआर्षम् / तदेवाग्निः। हेअनुभो। विज्ञानात्मापरेणात्मना विशिष्टान्यादिषु ओतप्रोतत्त्वेनोपारयोभिधीयते / तदेव शिवम् (1 / पुरुषमन्त्रा उक्ताः / अथ सर्वमेधामन्त्रा उच्यन्ते प्रवायुमच्छ तास्मात्प्राक स्वयम्भव्रह्मष्टाः प्रात्मदेवताः सप्तमेऽहनि। प्राप्तोर्यामसजनिक सर्वहोमे विनियक्ताः प्राप्तोर्यामः सप्तममहभवतीत्युपक्रम्य सर्व जुहोति सर्वस्यास्य सर्वस्यावरा इति, श्रुतः। * तदेव सप्तवेनस्तववौषोडश // For Private And Personal Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir कारणमग्निः तदादित्यः सहायुः तत्चन्द्रमाः / उकारएवार्थे तदेवशुक्रन्वयौलक्षणम् / तद्रह्मपरम् ताआपः सःप्रजापतिः // 1 // सर्वेनिमेषाः। सर्वेनिमेषत्रुटिकाष्ठादयः कालविशेषाः जन्निरेजाताः। विद्युत: विद्युत्पर्जन्यस्तनयित्नवः। पुरुषादधिश कासात् नचएनं पुषसर्वस्यापि जनकं सन्तम् / ऊर्ध्वनचतिर्यञ्च नचमध्येपरिज प्रभत् / नपरिगृह्णातिकश्चिदपि / नह्यसौप्रत्यक्षादीकुन्तवचम्मुताऽआपसप्प्रजापति // 1 // सर्बेनिमेषाः॥ सर्वे निमेषा जंज्ज्ञिरेचि हात पुरुषादधि॥ नैनमूर्ध्वन्नतिर्यञ्चुन्नमय परिजग्न भत् // 2 // नतस्यं // प्प्रतिमाऽअस्तुिवस्युनाममुहद्यशः // हिर नांविषयः / आगमोहि तवप्रवर्तते तटुक्तम् / एषनेतिनेत्यात्मना अगृह्योनहि गृह्यतइत्यादि // 2 // नतस्य / गाय मौदिपदा नतस्यपुरुषस्य प्रतिमाप्रतिमानभूतं किञ्चिविद्यते / यतोयस्यनाममहदाश इत्येषवेदान्तविदःपठन्ति / हिरण्यगर्भ इत्येषचतुर्ती चोनुवाको ऽदूरविप्रकर्षण हिरण्य-, गर्भ प्रतिमाभूतमाह। मामाहिएसोदित्त्येषाचक्क् यस्मान्नजातइत्येषाचदिकण्डिकोनुवाकः / For Private And Personal Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Granmandir पोडशिदैवत्यो ऽटूरविग्रकर्षणाभिवदति / सांचकण्डिकानां ब्रह्मयज्ञ धायनं कर्तव्य प्रती- आ. Y कगृहणत्वात् // 3 // एषोह / त्रिष्टुभः सर्वाःसदसस्पतिमद्भुत मित्यसमागायल्या:प्राक् / / 32 - इदानींवरूपतः कथयति। एषएवदेव: प्रदिश: दिशश्चसर्वाः अनुव्याप्यवर्तते तिर्यगूलमध वेति / पूर्वोहजातअनादिनिधन: संभूत: / सउगमअन्तः / सएवचमातुदरमअन्तर्गर्भे व्यवतितुः गयगर्भऽइत्त्येषमामाहिसोदित्येषावस्म्मानजातऽइत्त्येषः // 3 // एषोह // देवः प्रदिशोनुसोड पूर्बोहज़ात सरगर्भेड 1 अन्तः // सऽए वजात: सर्जनिष्ष्याणां प्रत्यास्तिष्ठतिमुर्ब तोमुख // 4 // यस्म्माज्जातम् // यस्म्मज्जिातन्नपुराकिञ्चनैवय ठते / मएयचात: सएवचजनिष्यमाण: तदुक्तम् / सबैखल्विदंब्रह्मतज्जानातिशान्तमुपासोतेति। प्रतिपदार्थमञ्चनः / हेजना: तिष्ठतिसर्वतोमुखः / सर्वतोक्षिशिरोगीव पाणिपादः तिष्ठति अचिन्त्यशक्तिरित्यर्थः / जनाइत्याद्यदात स्वरमपिखरामन्त्रिताथसादावेववर्तते // 4 // 612 यस्मान्नजातः / यस्मात्पुरुषात् जातंनपुराकिञ्चएव। यश्चावभूव सम्भावयतिभुवनानिभूतजा For Private And Personal Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir तानिविश्वाविश्वानिसर्वाणि / प्रजापतिरिति व्याख्यात्म् / अयंषोडशकलिङ्गन्युक्तः // 5 // न येनपुरुषेण द्यौः उग्रा उद्गूर्णादृष्टिदायिनी कृता / पृथिवीच ढास्थिरा प्राणिधारणाय दृष्टि ग्रहणायच अन्ननिष्पादनायच कृता। येनचखः श्रादित्यमण्डलं स्तभितं स्तंभितम् / येनच नाक: स्वर्गालोकः / स्तंभितः। यश्चान्तरिक्षे रजस:उदकमा दृष्टिलक्षण सत्र विमानोनिर्माता / / आँबुभूवभुवनानिञ्चिश्मा // प्रजाप॑तिप्प्रजयासरगणस्त्रीणिज्ज्यो / तौषिसचतुसषोडशी // 5 // वेनद्यौः // येनुयोरुग्नापृथिवीच हुढायेनस्वस्तभुतंटयेनुनाकः // योऽअत्तरिखेरजसोल्मिान कस्म्मै - देवायहुविविधेम // 6 // बङ्कन्टसी // यकन्टसोऽअवसात तपस्त्यिजा कस्ने अन्यस्मै देवाय हविषाविधेम हटिमतिसमञ्जसम् // 6 // क्रन्दसौ यंपषं है क्रन्दमोद्यावापृथिव्यौ अवसा अन्नेनहविलक्षणेन दृष्टिधारणाद्यपकारजनितेन / तसभानेसंस्तंभयन्तौ सर्वप्राणिजातम् अभिऐक्षेतांमनसा / साध्व तत्कृतमनेनेति / रेजमानेकम्पमाने / For Private And Personal Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यत्वचअधि उपरिस्थितः यदाधारइत्यभिप्राय: / सूरः सूर्यः उदित: सन् विभाति / तन्देवम परित्यजा कस्मैदेवाय हविषाविधेम इतिसमंजसम् / आपोहयहहतौर्यश्चिदाप इतिहेप्रतीकग्रहोते अनापिखाध्ययध्ययन प्राप्तंप्रतीकसयोपलक्षणार्थत्वात् // 7 // वेनस्तत्पश्यत् / वेनः पण्डितः विदितवेदान्तरहसाः सद्भावनया तद्र पंब्रह्म पशात्पशति / निहितस्थापितम् / स्तभानेऽअब्भ्यैवेताम्मनसारेजमाने // यत्राधिसूरऽउदितोलिभा तिकस्म्मैदेवायहुवि/विधेम // आपोहुवहुतीयश्च्चिदापः॥७॥ [7] बेनस्तत् // अनस्तत्पश्यन्निहितुङ्ग्रहासद्यविश्वम्भर वृत्त्येकनीडम् // तस्मिन्निदसञ्चुबिचैतिस सऽओत प्रोत गुहागहायामिव / सन्नित्यम् / यत्रविश्वं सर्वमिदं विकारजातं भवति एकनौडम् एकनि लयमविभक्तम / कारणमेवोपसंहृतं सर्वविशेषम / तस्मिन्दिं सचविचेति सर्वम् / तस्मि-शिवम है नवपरमात्मनि इदंविकारजातं सर्वसमेतिच उपसंहृतिकाले / समेत्यच / व्येतिसृष्टिकाले का सर्वमेव / सचपरमेश्वरः श्रोतश्चशरीरभावेन मोतचजौवभावेन इतरथावा विभूः विभवति For Private And Personal Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir चकार्यकारणभावेन / प्रजासु // 8 // प्रतत् प्रबोचेत प्रत्यात्तत अमृतंशावतम् / नुक्षिप्रम् विद्वान्पण्डितः गन्धर्वः। गन्धर्वलोकेहि ब्रह्मविद्यासुतरांज्ञायते / धामग्थानम् / विभूहै तंविहृतंनानाभूते सर्गस्थितिप्रलयैः / गुहासत् गुहायामिवनिगूढम अविकृत वेदान्तर रुस्यम झावानाम् / किञ्च / बौणिपदानिनिहितानि गुहा | गुहायाभिवत्रस्यअमृतस्य मर्गस्थतिप्रचब्बिभू प्रजासु // 8 // प्रतत् // प्रतहोचेटुमृतुन्नुब्बिवान्गन्धर्बो धामुञ्चितुङ्गहासत्॥ चौर्णिपदानिनिहिंतागुहास्युवस्तानिब्बे दुसपितुः पितासत्॥६॥ सनः // सनोबन्धुजनितासबिधाता र प्रलयाः त्रयोवावेदाः वयोवाकालाः / भूयम्त्योपलक्षणार्थवा / भूयांसोहि तत्रगुणाथूयन्ते विज्ञानघनानन्दसनामंकल्पादयः / परब्रह्मान्तर्याप्ययाकृतानिवावयःपादाः / यश्चतानिवेदजानातिसपितुरपिपिताभवति / परब्रह्म भवतीतार्थः / तड्विव ह्मरूपंश्रेष्ठम् // 6 // सनोवन्धः / सनोस्माकंबन्धुः मचास्माकञ्चनिता / जनवितेतिप्राप्त जनितामंत्र इतिणि चोलोपः। सचनी 156. For Private And Personal Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahaw Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir विधाता धारयिता / य:धामानिवाणःस्थानानि वेद / भुवनानिभूतजातानिविश्वासाणिवेद / / नान्यात्मनोभिन्नानिवेद / किञ्च / यल देवाअग्न्यादयः अमतम्परब्रह्मलक्षणम् / पानशानाः व्याप्नुवन्त: हतीयेधामनि स्थानेअधिउपरिस्थिता: ऐरयन्त खेच्छयाप्रवर्तन्ते तच्चयोबेद सनोवन्धुरित्वादानुवर्तते // 10 // इदानों सर्वेषु भूतेष्वहमस्मिसर्वाणिचभूतानि मयिसन्तोयल द्दर्शधार्मानिब्वेटुभुवनानिविश्वा // बटुवाऽमृतमानशानास्तृतीये धामन्नुपरयन्त // 10 // पुरीत्यंभूतानि // पुरीत्यलोकान्पुरी है त्यसोः प्रदिशोदिशश्च // उपुस्त्यायप्प्रथमजामुतस्यात्क्म नावगुण्ठितसा सर्वमेधयाजिनो मुक्तिरुच्यते हाथ्यांकण्डिकाभाम् नचानसर्वमेधोगहः कर्तव्योदर्शतसाप्राधान्यात् / एहि पश्यतो यजमानस्याग्निहोलादयो यज्ञाः सर्वे सर्वमेधाएव / पालम्वनमाहितवयनाः / परौत्यभूतानि / अनेन दर्शनेन परिज्ञायसर्वाणिभूतानिएवमेतदित्यबधार्य / 623 एवं परिज्ञायच सर्वान्लोकान् परिज्ञायचसर्वाः दिशः परिज्ञायच सर्वा:प्रदिशः। उपस्थायचप्रथम शिवम For Private And Personal Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir GER जांवातं त्यौलक्षणाम् / अपिहि तस्मात्पुरुषाखैव पूर्वमसृज्यतेतिश्रुतिः प्रथम जाडाक् / ऋतसायज्ञस्य / अात्मना अात्मानम् परेणब्रह्म गा विशिष्ट व्रह्म अभिसंविशति अपुनरारत तये // 11 // परिद्यावा / परीत्य यमुपसर्गइव त्यनेन संवधाते / परौत्ययावापृष्टि व्यौ अननदर्शनेन / परीत्यचलोकान् परीत्य चदिशः परीत्यच स्वःअादित्यम / तसा यज्ञसा तन्तु विततं विनृत्यविछिदय नात्मानमुभिसंदिवेश // 11 // परियावापृथिवी // मुद्याऽहुत्त्वाप रिलोकान्परिदिशा परिस्वः // मुतस्यतन्तुं विततंविचुत्युतदं पश्युत्तदभवत्तदासीत् // 12 // सदमस्प्पतिम् // सदसस्प्पतिम परिममाय / मदाएवतत् तघाभूतमात्मनम अपश्यत्पशाति / तदभवत तथाभूतंब्रह्मभवति / तदामोत् तदेवास्ति / तदुक्तम् / तदे सनत स्तदुतद्भवामः / यथा कस्याग्नेप्रदीपसहस्राणितल्या तोनिनिर्गच्छन्ति / एवंपरमात्मन इमेजौबार प्युचरन्ति / अाभाः कण्डिकाभप्रांगहस्थानामेवमुक्तिदर्शिताभवति तेषांहिभयांसउपाया:यज्ञादयः // 12 // इतउत्तरतिसभिः कण्डि For Private And Personal Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir काभि मेंधायाच्यते थोश्चचता / सदसस्पतिम् सदसस्पतिर्देवता सदोयनगृहं तस्यपतिःतम् / अद्भुतंम हान्त मचिन्त्य गतिम् / प्रियमिन्ट्रसर / काम्यतामसंपत्करम् कमनीयंवा धनमेधार्थिनिः / सनिश्वनमेधाम् अयासिषम् याचे:हिकर्माचा यंधातः // 13 // याम्मेधाम् तिस्रोनुष्ट भ अाग्नेयौ / यांमेधां देवगणाःपितरश्च उपामतेपूजयन्ति / तयामाम अदामेधया हेअग्ने मेधाअद्भुतम्प्रियमिन्द्रस्यकाम्म्यम् // सुनिम्मेधार्मयासिषु स्वाहा // 13 // याम्मेधाम् // वाम्मेधान्दैवगुणा पितरंचोपासते // तयामामुद्य / मेधयाग्नेमेधाविनङ्गलस्वाहा // 14 // मेधाम्मे // मेधाम्मेवरुणोद दातुमेधामुग्निप्प्रजापति // मेधामिन्द्रपच्चब्वायुश्चमेधान्धातादंदा तुमेवाहा // 15 // हुदम्म // इदम्मेब्रह्मचक्षुत्रञ्चोभेरिश्रयमशन्नु / विनकुरु स्वाहासुहुतमस्तु // 14 // मेधांमे / लिङ्गोक्तदेवता / मेधाम् मेमा वरुणोददातु / शिवः मेधांचाग्निः प्रजापतिश्च / मेधांच इन्द्रश्चवायश्च / मेधांचधाताददातु मेमाम् स्वाहासुद्ध-६२४ तमस्तु // 15 // इदं मे / श्रौक्क् / इदंब्रह्मवक्षवञ्च उभेब्रह्माक्षवथियम्भश्न ताम् मदीयां For Private And Personal Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir थियमुपजीवताम् / मयिच देगाः दधतु यापया बिग्म् उत्तमाम् ययाहं सर्वजनभोग्य भामि / तस्यैतेखा हा / यात्वमेवं सर्वजन रभिलष्यसे तस्यैश्थिय तेतुभन स्वाहासहुतमस्तु / अप्राप्यच मेधांयियंच नयता:सिधान्तीत्य षसंवन्धः // 16 // इतिउबटकृतौमंत्रभाष्ये द्वात्रिंशत्तमोध्यायः / / 3 // ताम् // मर्यिदेवादधतुश्थियुमत्तमान्तस्यैतेस्वाहा // 16 // [6] // 2 // इतिसंहितायांद्वात्रिंशोऽध्यायः // 32 // * अस्थाजरांस // अस्याजरांसोदुमारित्वोऽअचमासोऽ 6 (1) इतउतरं सप्तदशका: पुरोरुगाना अन्मिनध्यायेपठ्यते / तत्रसार्वमेधिकानां चतुर्णामहांच त्वार आद्याःपुरोरुच इत्य वमतेविदुः / यथास्याग्निष्टदग्नि ष्टोमः प्रथममहर्भवति तस्याग्नेयार ग्रहाभवन्ति आग्नेया:पुरोरुचइति / एवमिन्द्रस्तदुत्थो द्वितीयमहर्भवन्ति ऐन्द्राःपरोरुचः / सूर्य (1 सर्वमेधेऽग्निष्टोमसंस्थ ऽग्निष्ट त्मज्ञ प्रथमेऽहनि अस्थाजरास इत्याद्या महो अग्ने इत्यन्ता:सप्तदश ऋचोऽग्निदेवता: पुरोरुचोभवन्ति / पुरोरुक्शब्द न ऋण पा ग्रहणमन्त्रा उच्यन्त न यजूरूपाः ऋगधि पुरोरुगिति श्रुतः / * अस्थाजरासः सप्तदशापश्चि हादश विश्वाटचतुदशप्रवाहजएकादशवायु प्रवोरयापञ्चदशकावानस्त्रयोदशसप्तसप्तनवतिः। For Private And Personal Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuranmandir स्तदुत्थ्यस्ततौयमहर्भवति तस्य सौर्यागृहाभवन्ति सौर्य:पुरोरुच: / वैश्वदेवश्चतुर्थमहर्भवति तसा वैश्वदेवागहाभबन्तिविश्वदेव्यःपुरोरुच इति / यएतस्त्रयोन वाका अनारम्याधीताः / एताश्चपु-ॐ / रोरुचो यच्छन्दस्काः प्रकृतिदृष्टा स्तच्छन्दस्का इहापिप्राथोदृश्यन्तेअन्त्यमनुवाकंबर्जयित्वा / अस्या* जरासः / ऐन्द्रवायवसा हे पुरोमची / असायजमानसा अजरासःजरारहिताः / दमांगृहाणाम् अरित्ना:अरणाः / नाबामिवकेनिपाता: / यहादमांदमनीयानां रक्षसाम्अरणास्तारकाः अग्नयः पावका // श्वितीचर्य: प्रवाचासौभुरण्यकोचनुर्षदोब्बा यवोनसोमा // 1 // हर्रयोधूमकेतव // हरयोधूमकेतवोवातंजू अर्चमामः अर्चन्पूजनीयोधूमोयेषांतेअर्चडमासः / पूज्यधूमाः पाबका:पावयितारश्च अग्नयोभवन्तु / / अस्यच पिवतीचयः श्वेतत्वप्रचयकारिणः / श्वात्रास:वाचशब्दःक्षिप्रवचन: क्षिप्रकर्माणः / भुर ण्य वामतीरः वनसदःरेफउपजन: / वनमुदकन्तवसन्नाउदकाभिषताइत्यर्थः / वायवोन वायवइ। वोहीपयितारः गृहरक्षमाणा: सोमा:सन्तु / यद्दा सर्वाण्यरण्यग्निविशेषणाानि / श्वितीचयः श्वेतत्वमंचनाः / वायवदूवखात्रास: क्षिप्रगमनाः / वनर्षदीवनसदः / * बनसदोवेटोरफेगोतिप्रातिशाख्यसवेगरेफागमः / सोमाइवयजमानेष्टदाः / समानमितरत् // 1 // हरयोधमकेतवः / * वनसदोऽवेटोरेफेण / वनशब्दःसदशब्द प्रत्ययरेफेणव्यवधीयतेसचेदनशब्दोबेट शब्दास्परोनति प्रा०प०३ / सू०४८॥ For Private And Personal Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir येअग्नय: हरयोहरितवर्णाः / धुमकेतवः धूमप्रज्ञानाः / वातजूतावातगमना: / उपद्यविद्युलोकप्रति / यतन्ते यत्नमाचरन्ति / वृथक् / पृथगितिप्राप्त वर्ण व्यातिः / पृथक्नाना / ताम् स्तमइतिशेषः // 2 // यजानः / मैत्रावरुणीगायत्री। यजन:अस्माकम् मित्रावरुणामित्रावरुणी / 11 यजचदेवान् यजच ऋतंयत्तम् बृहत्माहान्तम् / हेअग्ने यक्षियजच स्वन्दमस्वकीयंगृहम् // 3 // ताऽउपयवि // यतन्तुवधगुग्नयः // 2 // वान // यांनोमित्वा वरुणावदिवार // ऋतम्बुहत् // अग्नुवक्षिवन्दमम् // 3 // बुक्क्ष्वाहि // दैवहतमार // ऽअश्वार // ऽअग्ग्नेरथोरिव // निहोतापुर्व्य संद६॥ 4 // इचिपे // चरतु स्वाऽअन्न्या / अथाश्विनस्य / युक्षाहीतिव्याख्यातम् // 4 // हे विरूपे / विष्टुप् शुक्रस्य / हेराल्यहनीविरूपे हैं। नानारूपे / कृष्णारात्रिशुक्लमह: चरतःआदित्येन सहाहश्चरति इतरत्नअग्निनातुरात्रिः / स्वर्थशोभनार्थे / अन्यान्या वत्समुपधापयेते / अन्याएकाराविः एकमग्निरूपं वत्सम् अन्याएकमहः For Private And Personal Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir एकमादित्यरूपं वत्स उपधापयेते / राविरग्निदेवत्यमग्निहोत्रम् अहः सूर्यदेवत्यमग्निहोत्र वत्समित्याशयः / किञ्च हरिहरितवर्णोग्नि: अन्यस्यांरात्री स्वधावान् अन्नवानुपभोग्यः तापपाकप्रकाशैर्भवति / शुक्रःशुक्लवर्णादित्यः अन्यस्थामहनि ददृशेदृश्यते सुवर्चा:सुतेजाः / यहा ई द्यावापृथव्यौ िरूपेनानारूपे परस्परापेक्षयाचरत: स्वर्थकल्याणप्रयोज ने अन्यापृथिवी अग्निन्याब्वत्समुप॑धापयेते॥ हरिरन्न्यस्याम्भवतिखुधावाञ्छुकोऽअन्न्य स्वान्ददृशेसुबच्चा // 5 // शतम् // 1700 // अयमिह // प्रथमोधा विधाभोतायजिष्ठोऽअद्ध्वरेष्ण्वीडः // यमप्प्नवानोभृगबोब्धि है। रुरुचुर्वनेषुचित्रविबालिशबिशे // 6 // त्रीणिशुता // त्वीसहस्रार , वत्मम अन्याद्यौरादित्यंव सम उपधापयेतेपोषयतः / किञ्चहरिरग्नि: अन्यस्यांपृथिव्यांस्वधावान् / भवति / शुक्रआदित्यश्च अन् स्थान्दविद सुवर्चा:दृश्यतेस तेजः // 5 // मन्थिन: अयमिहेति व्याख्यातम् // 6 // वैश्वदेवंगृह्णाति / त्रीणिशतानीति बौणिशतानि बौणिसहस्राणि / त्रिंशत् / शन For Private And Personal Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir नवच / देवा:पसपर्यन् / सपर्यति:परिचरणकर्मा परिचरितवन्तः कथमितिचेत् / औक्षन्त्रसिञ्चन् अग्निम्घृतैः। अस्तृणन्वर्हिश्च अस्मैअग्नये / पात् इत् अथ एव अनन्तरमेव / होतारंटत्त्वा न्यसादयन्त / नितरांविनियुक्तवन्तः // 7 // अथध्रुवस्य / मूर्धानन्टिव इतिव्याख्याfण्यग्निन्ति शचंदेवानवचासपव॑न् // औक्षन्घृतैरस्त णन्न्बुहिरे र स्म्माऽआदिद्योतारन्यसादयन्त // 7 // मूनिन्दिवः // मूर्द्धान न्दुिवोऽअतिम्घृथिव्याव प्रश्वानुरमुतऽआजातमुग्निम् // कुविसु / म्चाजुमतिथुिञ्जनानामासबापात्वंञ्जनयन्तदे॒वाः // 8 // अग्निवं तम् // 8 // ऐन्द्राग्नस्य / अग्निवनाग्धि गायत्री / अग्निःस्त्राणि यजमानस्य वृजिनानि / में जहनत् अत्यर्थहन्ति / किंभूत:ट्रविणस्यः धनंहविलक्षणमिच्छन् / केनहेतुनाजंहनत् विपन्यया / विपनिरर्चतिकर्मा यजमानपूजया निमित्तभूतया / पुनःकिंभूतोग्निः समिद्धःदीप्तः शुक्रःशुलः 157. For Private And Personal Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir आहुत:अभिहुत: सन् // 6 // वैश्वदेवस्य / विश्वेभिःसोम्यम् गायत्री / विश्वेभिःदेवैःसह / सोमसंवन्धिमधु ऐअग्ने इन्द्रेणचसहवायुनाचसह पिव / मित्रस्य धामभिर्नामभिः स्तुतःसन् / 33 तदुताम् त्वमग्ने वरुणोजायसे यस्त्वमित्रोभवसि दसईडाइति // 10 // आयत् / द्वाभ्यांमरुत्वतीयाभ्याम् / त्रिष्टुभौ / व्यवहितपदप्राय: आहुतिपरिणाम वादिन्यौ / आउपसर्ग वाणि / / जङ्घनदविणुस्युचिपुन्न्यया // समिद्धशुक्लऽआहुत // 6 // विश्वभि सोम्म्यम् // विश्वभि सोम्म्यम्मद्ध्वग्न इन्द्रेणब्बा युना // पिबामित्वस्यधामभिदं // 10 // आयत् // आयदिषेनृपति सन्तेजुआनट्टशुचिरेतीनिर्षिक्तन्द्यौग्भोके // अग्नि शईमनवुह्यं / आनइत्यनेनाख्यातन संवध्यते / यत्यदा इषेअन्नाय निषिक्तंनितरांसिक्तंदेवतोद्देशेनक्षिप्तम् / / - शुचिमंत्र:संस्कृतम् तेजःजगदुत्पत्तिबीजम् / नृपतिम्अग्निम् आआनट् अश्नोतरेतट्र पम् शिवम व्याप्नोति / ततोपिरेतोमध्यस्थानंव्याप्नोति विद्य लक्षणंतेजः / द्यौरभीके / द्यौरपितस्या- 620 हुतिपरिणमभूतस्यरसस्य अभीकेनिकटएववर्तते / तत्अग्नि:शईम् श_वलंतस्यहेतुभूतम् / For Private And Personal Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir अनवद्य'प्रशस्यम् युवानम्परिपक्वरसम् स्थाध्यं सुष्ठ ध्यानीयम् / सर्वोपिष्टिमभिलषति / 3 जनयत्जनयति भष्टभिर्मासैः / सूदयञ्च / षूदक्षरणे / निष्पन्नमुदकंचतुर्भिर्मासैः क्षरतिच दृष्टिहारेण // 11 // अग्नेशई / हेभगवन्नम्ने शईउत्सहखवलमाविष्कुरु / महतेसौभगाय / महत्सौभाग्य लोकस्थिति: / एवंकुर्वतस्तवा मानि उत्तमानिसन्तु / ह्य नदीततेर्यशोन्नंवा / / / ट्युवानवाडाजनयत्सूदयच्च // 11 // अग्नेश. // महुतेसौभंगा युतबद्युम्नान्युक्तुमानिसन्तु // सञ्जास्प्पत्यसुयममाणुष्ष्वशत्यू यतामुभितिष्ठा महाँसि // 12 // त्वाहि // मन्द्रतममर्कशोक हविलक्षणानिधनानि सन्तुयशांसिवा / किञ्च एतच्चत्वंप्रार्थ्यसे / संजास्पत्यम् / जायापतिमितिप्राप्त प्राकारयकारयोर्लोपः मुक्च / सुयमंसुनियमअन्योन्यवद्वरागम् समाकृणष्वकुरुष्व / शत्यतांशत्र त्वमिच्छताम् / अभितिष्ठपद्भ्यामभिभव / महांसिमहत्वानि // 12 // खाएहि / माहेन्द्रस्य / बिष्टुप् / त्वांहित्वामेव मन्द्रतमंमन्दनीयतमं मृदुहृदयंवा / अर्कयोकै: मंत्रर्दीप्तः। For Private And Personal Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir श• यथोक्तस्थानकर्णानुप्रदानवतिः / देवतादद्यात्मवित्तन सन्तानगर्भगुरुसुश्रूषाधिगताविालावित ब्रह्म या चयः / एवंहि मंत्रादीप्ता:स्युः / वटमहे वृतवन्तोवयम् / त्वंचतःसन् महिमहत्स्तोत्रम् 33 नोम्माकम् थोषिशृणोषि / श्रुत्वाचप्रभावयसि कर्महेअग्ने / किञ्च इत्थंनामत्वं महतोदे / वता / येनइन्द्रन्न / उपमार्थीयोनकारः / इन्द्रमिव त्वाशवसावलकृत्या पृणन्तिपूरयन्ति / वायुमिवचपूरयन्ति राधसाहविर्लक्षणेन धनेननृतमाः मनुष्यतमाः मनुष्यश्रेष्ठाः / / 13 // त्वे अग्ने आदि महेमहिनु श्रोष्ष्यग्ने // इन्दुन्नत्वाशर्वसादेवताब्वायुम्घृणन्तुि राधानृतमा // 13 // त्वेऽग्ने ॥स्वाहुतप्प्रियासः सन्तुसूरयः यन्तारोवेमघवानोजानामन्दियन्तुगोनाम्॥१४॥श्रुधिरथुकर्म // स्वग्रहस्य / धृत्यौ / स्वेतब हेअग्ने / स्वाहुत / साधुनाप्रकारेणाभिहुत / प्रियासः / प्रिया: सन्तु सूरयःपण्डिता: / येचयन्तार: निगहितसर्वविषयाः / येचमघवानः धनवन्तः / जना- शिवम नांमध्ये / नकेवलं धनवन्तएव किन्तर्हि / ऊर्वान्अन्नप्रकारान् दयन्त / दयतिर्दानार्थः / - ददति / गोनाम्गवामितिप्राप्त गो:पादान्ततिन ट / गवांसंवन्धिभिरुपसेचन :सहितान् // 14 // For Private And Personal Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir श्रुधिश्रुत्कर्ण / हेअग्ने श्रुधिशृणु / पकृतइत्यादिनाधिभाव: / सत्त्वरंयनमाग्नेयम् / ईश्रुत्कर्ण / शृणुतःकर्णावर्थिनां वचांसि यस्यसतथोक्तः / त्वयिश्रुतवति / वन्निभिःवौढभिर्देवैः / सयावभिः / याप्रापणेवनिम् / समानप्राप्तिभिः / सहिताः / आसीदन्तु बर्हिषि / मित्रःअर्यमाच / अन्येचप्रातर्यावाण: / प्रातरेव हविःप्राप्तिर्येषांतेतथोक्ताः // 15 // विश्वेषामदितिः। / श्रुधिरQत्करर्णव्वहिन्नभिहे वैरंग्नेसुयाभि // आसौंदन्तुबुर्हिषि मुत्रोऽव॑माप्प्रतिक्वाणोऽअध्वरम् // 15 // विश्वेषाम दिति // विश्वेषामदितिर्युज्जियानांविश्वेषामतिथिमानुषा ॐ आदित्यग्रहे दधिश्रयणमंत्रः / अयमपि पुरोरुचां मध्ये गण्यते / तथाहि / कदाचनस्तरी रसि / कदाचनप्रयुच्छसि / यशोदेवानामिति तिसृणामादित्येभ्यस्त्वेत्यनुषङ्गः / त्रिष्टुप् / र योग्निःविश्वेषाम् अदिति:अदौन: / यज्ञियनाम् / यत्तसंपादकानाम् / विश्वेषांचअतिथिः मानुषाणाम् अग्निहोविणाम् / सोग्नि:देवानामअव: अन्नहविलक्षणम् आवृणानःसमर्पयन् / सुम For Private And Personal Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir डीकोभवतुजातवेदाःजातप्रज्ञानः // 16 // महोअग्नेः / साबित्वस्य / त्रिष्टुप् / मह:महतः अग्ने समिधानस्यसंदीप्यमानस्य / शर्मणिशरणेआश्रयेवर्तमाना: अनागा:अनपराधा:स्याम / येनचमित्रेवरुणे अनपराधाएवस्थाम / स्वस्तयेअविनाशाय / येनच श्रेष्ठ स्वामसवितुः / सवीसनि / प्रसवे / तत्देवानां संवन्धि अवःहविलक्षणमन्नम् / अद्य / पावृणीमहे / अभिसंस्कुर्मः // 17 // णाम् // अग्निर्हे वानामवंऽआवणान संमृडोकोभवतुजातवेदाङ॥१६॥ महोऽअग्ग्ने // संमिधानस्यशर्मण्यनागामित्वेवरुणेस्वस्तये // श्रेष्ठठेस्यामसवितु सौमनितहेवानामवोऽअद्यावृणीमहे // 17 // [17] आपश्च्चित्। आपश्चित्पिप्युस्तुर्योनगावोनक्षन्नृतञ्जरितारस्त / इदानीमिन्द्रस्तुतिः / उथसंस्त्थे द्वितीयेहनि पुरोरुचऐन्धोद्दादश // आपश्चित् / बिष्टुम् / शिवम् है. आपोपि / पिप्युःप्यायःपी आदेश: / प्याययेयुः निग्रायसोमे / स्तर्योनगावः / मुन्वन्ति अभिषुवन्ति याभिर्वाग्भिः सोमन्तास्तयः / सोमाभिषवेहि बयौलक्षाणावाचोव्याप्रियन्ते / तदे For Private And Personal Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir तदुक्तम् / तोनगाव: तर्यवगाव: नक्षन्नृतंजरितारस्तइन्द्र / नक्षम् नक्षतिर्व्याप्तिकर्माएवमने नप्रकारेण नक्षन्व्याप्नुवन्ति ऋतंयन्तम् / जरितार:स्तोतारः तेतव हेइन्द्र / एतत्ज्ञात्वा / वाहिवायुर्ननियुतोनोअछ / अछअभियाहि / आयाहि न:अस्मान् बायुर्ननियुत: वायुर्यथानियुतः अश्वान्याति / त्वहि / हियस्मात् / पुनस्त्वमेवमुच्यसे / यस्त्वं धीभिः स्वकीयाभिबुद्धिभिः दयसेददासि / विविधवाजान्अन्नानि // 18 // गावउप / तिखोगायल्यः / दक्षिणालक्षणागावउच्यन्ते / इन्द्र // याहिब्वायुननियुतोनोऽअच्छावाहिधीभियंसेञ्चिवा जान्॥१८॥गावऽउप। गावाउपावतातम्मुहीयुज्ज्ञस्य॑गप्प्सुर्दा उभाकपर्णाहिरण्यया // 16 // बय // सूगाउदितनागामित्वोऽ हेगाव: उपावतउपगच्छुत दक्षिणामार्गेणअवतप्रति / अवतमितिकूपनाम / सचानचत्वाल तदन्तरेरणहि गवांसंचारः। कोहेतुरागमन इतिचेत् / महीयत्तस्यरसुदा। महीमहत्यःयत्तस्थरप्सुदा दानंवर्तते। यतश्चभवतीनाम् उभौकीहिरण्मयोकृती। दानार्थमेव अतउपावतेतिसंवन्धः // 16 // यदद्य / यत्कर्मअद्यअस्मिन्धवि सूरउदिते उगतेअनागा: अनपराधोमित्रः सुवातिप्रसौति तत्कर्मप्रयादिति For Private And Personal Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir शेषः। एवमर्यग्णः सवितुर्भगस्यच वाक्यानिअविशेषात् // 20 // आसुते / तृतीयःपादः प्रथमंव्याख्यायते / यसोमम रसानदौरसतेः शब्दकर्मणः / दधीतधारयति नापकण्ठेहि सोमोजायते / वृषभंवर्षितारम् आसुतेसिञ्चत आसिञ्चत ग्रहपात्रेषुचमसेषु सोमंहेक्टत्विजः / सुतेअभिषुतेसति सोमे / कथंभूतम् श्रियम् श्रियोहेतुभूतम् / रोदस्योरमिश्रियम् द्यावापृथिव्योरधिअर्थमा // सुवातिसविताभगः // 20 // आसुतेसिञ्चतुरिश्रय रोट स्योरभिरिश्रयम् // रसादधीतवृषभम् // तम्प्रत्कथायब्वेनः // 21 // आतिष्ठठन्तुम्परि // आतिष्ठठन्तुम्परिविवेऽअभूषञ्छियोव्वसान गतथियम् ब्रह्माण्डव्यापिनौहिसोमश्रीः तम्प्रत्नथायंवेनः इति प्रतीकेउक्तं // 21 // आतिष्ठन्तम् / त्रिष्टुप् / इन्द्रस्यात्वदृष्टिकर्मोच्यते ग्रीष्मान्तेमधामस्थाने आतिछन्तम् इन्द्रम्पयंभूषन् परिरक्षि- शिवम् तवन्त: विश्वेसर्वेदेवा मधामकादेवगणाः / थियोवसानश्चरतिस्वरोचिः सतुमधामस्थानः सर्वेषांदेवगणानांश्रियः आच्छादयन् स्वेच्छयाचरति / स्वरोचिःअपराधीनदीप्तिः तृतीयःपादश्चतुर्था For Private And Personal Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir व्याख्यायते तच्छब्दयोगात् / पविश्वरूपो पमृतानितस्थौ / यत् पातस्थौविश्वरूपः इन्द्रः अमृतानि उदकानि उदकेषु पातयितव्येषु / महत् तत्वष्णःवर्षितः असुरसाप्रज्ञानवत: नाम / नमनम्प्रतीभावः // 22 // प्रवः / विष्टुप् / हेऋत्विजः / प्रार्च / प्रार्चत / वायूयम् स्तुतीः। महे इन्द्र* विशेषणमेतत् / महते / पन्धसःअन्नसा दावे इतिवाक्यशेषः / मन्दमानायस्तूयमानाय मोदमानाई पच्चरतिखरोंचि // महत्तइष्राणोऽअसुरस्युनामाबिश्वरूपोऽअमृता नितस्त्थौ // 22 // प्रवः॥ प्रवोमुहेमन्दमानायान्धुसोच्चाविश्वान रायविश्वाभुवै // इन्द्रस्युवस्यसुमखु सहीमहिश्श्शोनुम्म्णउच / है रोदसीसपर्यतः // 23 // बुहन्नित् // बृहन्निदिध्मऽएषाम्भूरि , यवा। विवानरायसर्वभूताय। विश्वाभुवेसर्वव्यापिने किञ्च / इन्द्रसायसा सुमखंसाधुयनम् / सहावलं च महिमहच्चश्रवः श्रवणीयञ्च यशः / नम्णञ्चधनञ्च नृन्नमयतीतिम्णम् / रोदसीद्यावाप्रथिव्यौ सपर्यत: परिचर्यतः / तसाचन्द्रसा प्रार्चतस्तुतीरित्यनुषङ्गः // 23 // हन्नित् / द्वेगायत्रो अन्त्यःपादः प्रथमव्याख्यायते यच्छब्दयी गात् / येषामिन्द्रो युवा सर्वकर्मसुदक्षः सखा। तेषा 158. For Private And Personal Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मेषां यजमानानाम् वृहन्नित् महानेवध्मःभवति। महत्वञ्च साधनानां साधयोत्कर्षकुर्वताम्भवति / भूरिशस्तम्भवति / पृथुश्चस्वरुः भवति / यन्नानांवा भूयोभूयः करणमेवाभिप्रेतस्यात् // 24 // इन्द्रेहि / हेइन्द्र पाइहिआगच्छ / एत्यच मसिटप्तिंकुरु अन्धसःअधमानीयस्य सोमलक्षणस्यान्नस्य स्वनांशन। ततोपिविश्वेभिः सर्वे:सोमपर्वभिः सोमयागकालैर्निमित्तभूतैः / आशुस्तम्पृथु स्वरुः // येषामिन्द्रीयवासा // 24 // इन्द्रेहि // इन्द्रे / हिमत्स्यन्धसोविश्वेभि सोमुपवभिङ // मुहार // ऽभिष्टिठरो। जैसा // 25 // इन्द्रोब्बुवम् // इन्ट्रोवृचमणोच्छईनौतिप्प्रमायिनाम / इहि यहा सर्वसवनगतैः मोमांशुभिःनिमित्तभूतैः / कस्मात्पुनस्त्वमेवमस्माभिः प्रार्थ्यसेइत्यत आह / यतोमहानसि अभिष्टिश्च / अभ्येषणशीलश्च शत्रूणामभियष्टव्योवा | प्रोजसास्वकीयेन वलेन // 25 // इन्द्रोत्रम् / त्रिष्टुभौयइन्द्रः वृत्रयुद्धायआवृणोत्शीनीतिः / शईइतिवलनाम / शर्द्ध चतुरङ्गवलेनौतिर्यस्यसतथोक्तः / प्रमायिनाममिनात् / यश्च मायिनांमायाविनां शिवम् For Private And Personal Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir प्रअमिनात् / मौहिंसायाम / हिनस्ति / यश्चवर्पणौतिः / वर्षइतिरूपनाम / रूपसन्नद्धः * स्वेच्छारूपविजृम्भकः / यश्च महन् हन्ति / व्यसंनिरसंसंधिसंवन्धिनमायिनम् / उशधक् / वश- कान्तावस्यकृतसंप्रसारणस्यैतद्रूपम् / दहतेहत्तरं कृतभष्भावस्य / अथकोर्थः शत्रुत्वंकामयमा नान् दहतिवन ष्वपिवर्तमान् / माविर्धनामकणोद्राम्याणाम् / सइन्द्रः अविःप्रकटम् / धेमाः मिनावप्पणीति // अहुन्न्व्यसमुशधुग्ग्वनेष्ष्वाविडेनाऽअकृणोड़ा म्म्याणाम् // 26 // कुतुस्त्वम् // कुतस्त्वमिन्द्रुमाहिनु सन्नेकोवा सिसत्पतुकिन्तइत्था // सम्पृच्छसेसमगण शुभानोचेस्तन्नौह स्तुतीः इत्थंशत्व हन्ति इत्थमपरिमितं धनंददातीति / अवश्य चरमयितव्यानांयायजूकाना'म् // 26 // कुतस्त्वम् / इन्द्रमरुत्संवादे मरुतामेतहाक्यम् / हेदून्द्र त्वम्कुत: कस्माद्धेतो: माहिनः महनीयः सर्वस्यपूज्यःसन् शव न् एकःअसहाय: यासि / हेसत्यते / श्रुतिस्मृत्यनुछानरतानां पालयित: / किन्तइत्याकिञ्च तेतवद्वत्थंभूतम्प्रयोजनमस्ति येनैकाकीयासि / For Private And Personal Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir प. र संपृच्छसेसमराणः संगच्छमान: शुभानेः शोभन :बचीभिः संपृच्छसकतम:पन्याइति हेहरिवः हरि- वन्तकरणं नःअम्माकं वोचेःयाः / यत्ते भस्म / यत्यावृत्तिकारणं तव अस्म अस्मासुवर्ततइति॥ महा 2 इन्द्रोयोजसा / कदाचनस्तरीरसि / कदाचनप्रयुच्छसि / इतितिस्रः प्रकृताःप्रतीकोकाः // 27 // आतत् / बिष्टुप् / भाडुपसर्ग: पनन्तेत्त्याख्यातेनसंवध्यते / पापनन्त / रिखोयत्तेऽअस्म्मे // मुहार / ऽइन्द्रोवऽओजसाकुदाचुनस्तुरोरसि कुदाचनप्प्रयुच्छसि // 27 // आतत्तऽइन्द्रायः पनन्ताभियऽजुर्व गोमन्तुन्तितत्मान् // सक्तत्वय्यपुरुपुत्वाम्मुहीमुहस्रधाराम्बह पनति:पूजाकर्मापूजयन्ति नबधादिकम् तेतव संबन्धिकमहेन्द्र पायव: मनुष्या:यजमानाः। कथंभूतापायव: अभितिटत्मान् / वृत्मदतिहिंसाकर्मा / येषभितर्दितु हिंसितुमिच्छन्ति / किमित्यतपाइ / अवम् अन्न सोमलक्षणम् / गोमन्तम् उदकवन्तम् / निग्राभ्याभिः सोमोभिषूयते / येपिउदकवन्तं सोममभिषुखन्ति तेपिपुजयन्तीत्यर्थः / किंच / सकृत्स्वम् / एकवारम For Private And Personal Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Cyanmandir वप्रसूयतेयागोहिरण्यधान्यादिभिः सासकृत्सूस्तांसकृत्स्वम् / येयजमाना: / पुरुपुत्रांवहुपु3 बाम / सर्वेएवपदार्थाः पृथिवीतउत्पद्यन्ते / महीभूमिम् / सहस्रधाराम | अनन्तभोगप्रदायिनीम् / बहुधाप्राणिजातं धारयन्तीवा। वृहतौम्महतीम् / दुदुक्षन् दोग्धुमिच्छन्ति / भूमिदान सर्वमेधयाजिनश्चोद्यते तदभिप्रायमेतत् / येच सोमाभिषवं कुर्वन्ति बेचपृथिवींददति तेत्वांपूजयन्ति नान्येदुर्मेधसइति // 28 // इमान्ते / हेइन्द्र इमांतेतवधियंस्तुतिप्रभरप्रहरामि हुतौन्दर्युक्षन् // 28 // हुमान्ते // इमान्तुधियुम्प्रभैरेमहोमुहीमुस्य / स्तोत्रेधिषणावतंऽआनुजे // तमुत्सवेचप्प्रसवेचसामुहिमिन्द्रन्दुवा के शपयामि / कथंभूतस्यते / महःमहत: / कथंभूतांधियम् / मही महतीम् / अस्ययत्तस्य स्तोत्र धिषणाबाक् / यत्तेयस्मात्ते तव स्वभूतान गुणान आनजे / अभिव्यनक्ति ऐन्द्रमेवयज्ञप्रकाशयति / किञ्च / तमेवेन्द्रम् / उत्सवेचअभ्युदये प्रसवेचअभ्यनुज्ञायां विषयभूतायाम् / सासहिंशव णामभिवतितारम् / देवासःदेवाअपि शवसामदन्ननु / शवसावलेन अन्वमदन् अभिष्ट - For Private And Personal Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir वन्ति / पूर्वीईचःप्रत्यक्षकृत: उत्तरस्तुपरोक्षकृतः अतोवाक्यभेदेनव्याख्यानम् / / 26 // विभाहहत् / जगतीसूर्यस्तुति: द्वितीयेहनिग्रहाणांपुरोरुच: / द्वितीथोईच: प्रथमव्याख्यायते यच्छब्दयोगात् / है यःवातजूत: वातप्रेरित: वातोयस्यवोठेत्यभिप्रायः। अभिरक्षतित्मनाआत्मनैवजगत् / मन्त्र - प्वादेरात्मन इत्याकारलोपः / यश्चप्रजा.पुपोषपोषयतिशीतोष्णवर्षेः / यश्चपुरुधाविराजति / बहुमुपावसामटुन्नन् // 26 // [12] बिभ्राबृहत् // कि नाह पिंबतुमोम्म्यम्मद्ध्वायुधंद्यज्ज्जतावविहृतम्॥ ब्वातंजूतीयोऽ, भिरक्षतित्वमाप्रजा पुपोषपुरुधाब्बिराजति // 30 // उदुत्त्यम् // उदयञ्चातवेदसन्ट्रेववहन्तिकेतवः // हुशेब्विायुसूय॑म् // 31 // * धाचदीपति अग्निविद्युत्नक्षत्रादिरूपः / सविभ्रट विविधंभाजतेतिविभाटसूर्यः / वृहत्महत् पिवतुसोम्यंसोममयमधु / किंकुर्वन् / भायुःजीवनम् दधत् स्थापयन् यजपतोयजमाने / शिवम् अविहुतम् अनवखण्डितम् / वृकौटिल्पे / श्छन्दसौतिडादेशः / 30 // उदृत्यमितिव्याख्यातम् // 31 // येनापावक / इंगायल्यौसर्वेधाम्निश्चीयते / तेनरूपेण / पात्मानसंपा For Private And Personal Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Cuanmandir द्यक्षिप्रयजमानोमोक्षप्राप्नोति / तदिहप्रार्थ्यते / येन हेपावकपावयितः / येन चक्षसादर्शनेन / भुरण्यन्तञ्जनगन्अनु / शकुनिःक्षिप्रपाती भुरण्यरित्यभिधीयते। सर्वमेधयाजिनोजनान अनुभुरण्यन्तम् पक्षिरूपेणात्मान' संपाद्यक्षिप्रगच्छन्तमित्यर्थः / त्वंहवार सूर्यपश्यसि / तदोध्या* हारणवाक्य परिपूर्तिः / येनजनान अनु मुरण्यतः पश्येति // 32 // देवगावव। हेदैवावध्व-है। येनापावक // नापावकुचक्षसाभरण्यन्तुज्जना // ऽअनु // त्वंबर रुणपश्यसि // 32 // दैव्याववधू // दैव्यावद्ध्व आगंतुर थेनुसूयत्वचा // मद्ध्वायुज्जसमञ्जाथे // तम्प्रत्कथायनपिच्चुत्व न्ट्रेवानाम् // 33 // आनः // आनऽड्डाभिर्किदथैसुशुस्तिब्दिपश्वा यूं बरसा नेतारौ इहागतम् आगच्छन्तम् आगमनं कुरुतम् / रथेनसूर्यत्वचा / सूर्यस्येवत्वको यस्यसपूर्यत्वक येनसर्य वचा। मध्वामधुस्वादुनाहविषासोमपुरोडाशेनदधयादिना / यसमञ्जाथे समासमितिमाधुरूपं ममंजयन्तम् प्रभूतानिहाँषिकुस्त मित्यर्थः तंप्रत्नथायवेनश्चिच देवानामितितिसः प्रतीकोकाः // 33 // श्रानः / विष्टम् / द्वितीयोईचः प्रथमव्याख्यायते यच्छब्दयोगात् / अपि For Private And Personal Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यथायेनप्रकारेण / हेदेवाः युवान:सर्वकर्मक्षमा अविपरिणामिनोवाः मत्सयमाद्यथदृष्यथन: अस्माकंगृहे / विश्वंजगदुवरामइतिकृत्वा / अभिपित्वे अभिपतनकालेप्राप्ते / मनौषामनौषयेतिविभक्तिव्यत्ययः मनसइच्छया। अपितथा तेनप्रकारेण माद्यतयथेष्टम् / नःअम्माकं विदथेयजेइडाभिः करणभूतैः / सुशस्ति अविभक्तिकोनिर्देशः / सुशस्तिभिश्च शोभन शममैश्च करणभूतैः। विश्वानर: श्रा। नर सवितादेवाएंतु // अपियायवानोमत्संथानोविश्वञ्जगदभि पित्त्वेमनीषा // 34 // बटुय // कञ्चवृत्रहन्नुदाऽअभिसूर्ख // सर्च तदिन्द्रतुवः // 35 // तरणिविश्वदर्शत // तुरणिर्खिप्रश्वदर्श / एतुसविताच देव:आएतु // 34 // यदद्य / देगाययौ यत्प्रद्यकञ्चकुवचित् यत् / हेटबहन टवस्थपा मन:शार्वरस्थतमसोहन्तः। त्वम् उदगाअभि। अभ्युदगाः अादेषि हेसूर्य। तत्सर्वमेतत् हेन्द्र ऐश्वययुक्ततेतव शेवर्तते / त्वमेवैक ईश्वरोनहितीयइत्यभिप्रायः // 35 // तरणिविश्वदर्शत: यस्त्वंतरणिर सिवर्णवर्तसे विश्वदर्शतः सर्वदर्शनीयश्चासि / ज्योतिष्कत् ज्योतिषश्चकतासि हेसूर्य / तत्वां पित 634 For Private And Personal Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir प्रतितथाब्रमः त्वमेवविश्वं सर्वम् अाभासिदोपयसि / रोचनंदीप्तम् अग्निविद्युद्ग्रहतारकरूपन्त्वदोयमेवैकंज्योतिः सर्वत्रामातीत्यर्थः // 36 // तत्सूर्यस्य / हेत्रिष्टुभौ तदेवसूर्यस्य देवत्वम् / तच्च-10 , महित्वम्महाभाग्यम् तत्किमित्यताह / मयाकर्तोर्विततं सञ्चभार मध्यामध्येइत्यर्थः / कर्ताः / है कर्मणइत्यर्थः / मधेप्रयत्कर्मणाशियमाणानां देवासुरमनुष्यसंबन्धिनां विततंरश्मिजालं अहर्लक्षणम् / सञ्चभार। अयमे वसंहरते नान्यएतत्तनितु शनोतिनचोपसंहमित्यभिप्रायः / किञ्च यात् तोज्ज्योतिष्ठसिसूर्य // विश्वमाासिरोचनम् // 36 // तत्सू वस्थ // देवुत्त्वन्तन्महित्त्वम्मुड्याकाबितंतु सञ्जभार // बुदेदयु / कतहुरितः सुधस्त्थादादाचीबासंस्तनुतेसिमसम्मैं // 37 // तन्न्मि अयुक्त यदाप्रयुङतात्मनि अात्मसंस्थान्करोति हरितःहरितवान रश्मोन / तेह्यस्तमनकाले के लोहितांयन्ति सधस्थात्महस्थानादाहृत्य पृथिव्यादिलोकत्यं तेषांसहस्थानम् / तत्रहि तेनि पतन्ति / भाद्राबौवासस्तनुते / अात्अथानन्तरम् राबौतमोमयंवासः तनुतेविस्तारयति / सिमस्मैसर्वस्मैजगति एकत्रादित्य सहितंज्योतिरेकलतमः आदित्यप्रभावा त्मभ्यमतीत्ययमभिप्रायः // 30 // ___159. For Private And Personal Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir तन्मित्रस्य / सूर्य:तद्रूपंज्योतिः कृणुतेकुरुते द्योलोकस्य उपस्थेउत्सङ्गे। मित्रसावरुणसोभिचक्षे अदर्शनाय / मित्रोहि सुकृतिनोगृह्णातिवरुणःदुःकतिनोराह्णाति एवमनेनप्रकारेण जगदन - गृह्णातौत्यभिप्रायः / किञ्च अनन्तम् अपर्यन्तंकालतः देशतश्च / अन्यत्रएकम् सशत्शलं जरामरणादिभिर्वियुक्रम् / विज्ञानघनमानन्दः असासूर्यसयपालः / पाजइतिवलनामइहतुरूपमुच्यते त्वस्य॑ // तन्न्मित्रस्युबरुणस्याभिचक्षेसूर्योरुपङ्कणुतयोरुपस्थें // अनुन्तमुन्न्यद्रुशदस्युपाजः कृष्णामुन्न्यहरितु सम्भरन्ति // 38 // बण्गमहान् // बण्गमुहार ॥ऽसिसूर्युवादित्यमहार ॥ऽसि // रूपम् अस्तौतिशेषः / तञ्चारैतलक्षणम् कृष्णदेतलक्षणं अन्यत् अपररूपम् हरितःहरिणाइन्द्रियॐ वृत्तयः संभरन्तिनिदानभूताभान्ति // 38 // बण्महान् / प्रगाथ: हाभवाम् पूर्वाहतौ उत्तरासतो वृहतो / वट्मत्यम् महापरब्रह्मसिहेसूर्यवहेबादिल्या तेजसा मादानादित्यः। महानसिकिञ्च महामहतःतेतवसतः महिमामहाभाग्यं सर्वेषुदेवेष्ववस्थितम् / पनसातेपूज्यते सर्वैःप्राणिभिः / / For Private And Personal Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir अड्डोसत्य हेदेवदानादिगणयुक्त महान असि | प्रभासेभूयांसमर्थमन्यन्ते यथासहोदर्शनीयाही के दर्शनौवाइति // 16 // वटसूर्य / वट्सत्यम् हेसूर्यश्चवमाश्रवणीयेन धनेनमहानसि | सबासत्यम् हे देवमहानसि / किन्च मन्हाखकोयेन महत्वेन त्वमेवदेवानां मधेअसुर्यः / असवःप्राणाः र संतियेषांत असुराः रोमत्वयि त भोहितः असुर्य: उपगवादित्वाद्यत् प्राणिभोहितइत्यर्थः / मुहस्तेसुतोमहिमापनस्यतुवावमुहारें // असि // 36 // बसूं टुंश्वसामुहार // ऽअसिसुत्बादेवमुहार ॥ऽसि // मुन्नाद वाामसुर्य : पुरोहितोब्बिभुज्योतुिराब्भ्यम् // 40 // श्रायन्ता इसूर्यम् // श्राय॑न्तऽइवुसूयविश्वेदिन्द्रस्यभक्षत // वसूनि / पुरोहितश्च पुरएनन्धाति सर्वेषु कार्यवितिपुरोहितः। किञ्च विभुव्यापि / जयोतिःविज्ञानघनानन्दम् अदाभ्यम्चनुपहिसितम् // 40 // श्रायंतइव / वृहतौ / यथाथायन्त प्राश्रिताः सूर्यरश्मयःविश्वानि धनानिइदिति निपातःपादपूरणार्थः / इन्द्रसासंवन्धौनि इन्द्रानुज्ञातानि / भक्षत For Private And Personal Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagar ई पाख्यातमेतत् अनुदात्तत्वात् विभक्षते विभजंते एव वयमपिसमाथिताः मूर्यविश्वानीन्द्रसाध नानिविभक्षामः / किञ्च बसूनिधनानि जात पौत्रादौ जनमानेजनिष्यमाणेच भविष्यत्कालविषये। प्रोजसावलेन ज्ञानकर्मसमुच्चकारितया। प्रतिपुरुषम् भागन्नभागमिवदौधिम / निधीमहिस्थापयाम दधात रेतटू पं नाध्यायते रर्थपोष्कल्यात् / / 41 // अद्यादेवाः / इलिष्टुभौ अद्या जातेजनमानुऽओज॑साप्प्रतिभागनदौधि // 41 // अद्यादेवा // * ॐ अद्यादेवाऽउदितासूर्यस्युनिहंस पिपृतानिरंबुद्यात् // तन्नो मित्रोवरुणोमामहन्तामदिति सिन्धुः पृथिवीऽउतद्यौः // 42 // स्मिन्नहनि हे देवाः रश्मयःउदयकाले सूर्यस्य / निरंहसःपिष्टत निष्मिटत निर्मुचत अंहसःपापात्सकाशात् / अहं तिचाहचांडश्चहौतनिगूढोपधादिपरोतात् / निरवद्यात् निष्पिष्टतच निर्मच चवद्यात् अवदनौयात् / येनदुर्यशोभवति तदवद्यम् / तदेतदुच्यमानम् नःअस्माकम मिनावरुणःमामहन्ताम्पूजयंतुअदिति:सिन्धुःनदौ / पथिवौउतअपि चद्यौः // 42 // श्राकृष्ण न / * अद्यादेवा इत्यचअद्यतसकारचकारभवतवणो महेदेवेषु / अत्यार्थः प्रधेत्ययं अस्वस्तकारादिषु परेषुदोधमापद्यते इति / दीर्घः प्राति. प० / मू० 115 // शिवम 636 For Private And Personal Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir श्रावतमानः पुनःपुनर्ममणकुर्वन् / कृष्ण नरजसा रात्रिलक्षणेनसह / निवेशयन, स्वेषुम्वेषुप्रदेशेषुस्थापयन असतंदेवादिकम मत्यंचमनुष्यादिकंच / हिरण्ययेनहिरगमयेन सवितारथेन / प्रादेवोयाति आयाति देवः दानादिगुणयुक्तः / भुवनानिभूतजातानिपश्यन कानिकानिसा धुकुर्वन्ति कानिकानिवा असाध्विति / स्वरूपानुवादः // 43 // प्रवारजे / विष्ट प / वैश्व। देवस्तुति: चतुर्थेहनि सर्वमेधेवैश्वदेव्यः पुरोरुच: / प्रवाटले प्रजाते प्रच्छिदाते / सुप्रयाः आकृष्णणेनं ॥आकृष्णणेनुरज॑सावर्त्तमानोनिवेशयन्नुमृतुम्मत्य॑ञ्च॥ हिरगण्ययेनसवितारथेनाटेवोतिभुवनानिपश्यन् // 43 // [ 1 ] ई प्रोबजे // सुप्प्रयाबर्हि रेषामाविशप्पतौवीरिटऽइयाते॥ विशा मुप्रयाण सुगमनम वहि: एषाम् येषामितिसर्वनामव्यतायः / येषांयजमानानाम् / पाइयाते श्रागच्छतम् अश्विनौ / कथमिव / विश्पतौइव / सर्वमापतौइव वौरिटशब्दोगणवचनः / यथाविशामनुषयाणां पतौराजानो विशांमनुषयां गण अवस्थितौ कस्मिन्काले / अक्तोः रानवाः अवसाने / उपस:ोगमनकाले / पूर्वहूतीपूर्वस्मिन आह्वानकाले / किञ्च वायुः नियु For Private And Personal Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir य• त्वान अश्ववान / पूषाच स्वस्तयेस्वस्त्ययनाय अविनाशायायाते // 44 // इन्द्रवायू- अ. हस्पतिम् / तिस्रोगायचाः / इन्ट्रयायूसहस्पतिम् / मित्रामिनमितिप्राप्त आकार: / मित्वम् 33 अग्निम पूषणमभगम् / अादित्यान्मारुतं व गणम् अाह्वयामीतिशेषः // 45 // वरुणः प्रामुक्तोरुषसः पूर्वहूतौव्वायुपुषासुस्तगनियुक्षान् // 44 // हुन्वा / यूहस्प्पतिम् // इन्द्रवायूवहुस्प्पतिम्मुित्नाग्निम्यूषणन्भगम् // आ दित्यान्न्मातङ्गणम् // 45 // बरु गाउँ पाविता // भुंबन्मित्यो / विश्वाभिरुतिभिः // करतान्न सुराधस // 46 // अधिन // अधिनऽइन्द्रपाँविष्णोसजात्त्यानाम् // इतामरुतोऽअश्विना // विता / बरुणःप्राविता प्रकर्षेणअवितारक्षकः भुवन्भवतु / मिवश्च / विश्वाभिःसर्वाभिः शिवम् अतिभिः अवनैःपालन: / किञ्च करताम्कुरुतांच न:अस्मान सुराधसःशोभनधनान // 46 // 630 अधिन: / अधि इत्अधधागच्छतिनोस्माकम् एषांचसनात्यानाम्यत्त्विजाम् / हेइन ट्र हेवि For Private And Personal Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir ष्णोहेमरुत: हेअश्विनौ / अथप्रतीकोक्ताः / तम्पत्नथा / अयंबेनः / येदेवासः / श्रानडाभिः / विश्वेभिःसोम्य मधु श्री मासश्चर्षणौधतः // 17 // अग्नइन ट् / बिष्टुप् / हेअग्ने - हेन्द्र हेमि बहेदेवाः / शई बलं संगृह्य / प्रयन्तप्रगच्छत / सोमिनोगह सोमपातुम् / हेमातम्प्रत्कथायब्वेनोवेदेवासुऽानुऽड्डोभिर्विश्वेभि सोम्म्यम्मद ध्वीमांसपच्चर्षणीधृत // 47 // अग्नुऽइन्द्र // वरुणुमिच देवाई शर्धप्प्रय॑न्तुमारतीतविष्राणी // उभानासत्यारु होऽअधुग्ग्ना पूषाभगुड सरस्वतीजुषन्त // 48 // इन्ट्राग्नीमित्वावरुणा // हुन्द्राग्नीमित्वावरु णादिति स्वः पृथिवीन्द्याम्मकतु पर्वतार // रुतगण उतअपिहेविष्णो / प्रत्यक्षतोयमई चैः / हितौयस्तु परोक्षकृतः वाक्यभेदात् / उभार नासत्या उभौनासत्यौरुद्रःअधरना:देवपत्न्यः पूषाभगः सरस्वतौच जुषन्तसेवन्त यत्न सोमपानाय // 48 // इन ट्राग्नोमित्रावरुणा / जगतौ / इन ट्राग्नौचमित्रावरुणौच अदितिञ्चस्वःआदि For Private And Personal Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanma www.kobatirth.org य. त्य च पृथिवीच याच मातश्चपर्वतांश्च अपश्च / हुवे अाह्वयामि / विष्णुञ्च पूषणंच ब्रह्मणस्पतिञ्च नुक्षिप्रम् शंसंशसितव्यं सवितारञ्च हुवे। ऊतयेअवनाय // 46 // अस्मेरुद्राः / त्रिष्टुभःपञ्च असोअस्माकंरुद्राः मेहना:सेचना: यहा महनीया: पूजनीयाः पर्वतासःपर्वताथ सब-0 हत्येव वृत्रवधभरहूतौ संग्रामावानेच सजोषा: समानजोषणाः समानप्रीतयः एकाभिप्रायाः / अप // हुवेबिष्णगुंम्पूषणुम्ब्रमणुरुप्पतिम्भगुन्नुशससिवितारमू तये // 46 // अस्म्मेरुद्राः // अस्म्मेरु हामहनापर्वतासोबृहत्यभर इतौसुजोषा॥यशसतस्तवतेधायिंपुज्ज इन्द्रज्ज्येठ्ठाऽअस्म्मा॥ अवन्तुदेवा // 50 // अर्वाञ्चोऽअद्य // अर्वाञ्चोऽअद्याभवतावजत्रा 3 भवन्त्वितिशेषः। यश्चशंसतेशखाणि स्तुवतेस्तौतिच स्तोत्राणि धायिदधाति हवींषि / पञ्चःप्रार्जितधनःसन्तस्मैचरुद्रा सजोषा:भवन्तु / किञ्च बून्द्रज्येष्ठा: इन्द्रीज्येष्ठोयेषांततथोक्ताः अस्मान् शिवम् अवन्तुपालयन्तु देवाः // 50 // अर्वाञ्चोपद्य / पर्वागञ्चनाः अद्यभवत हेयजत्राः हेयजनीयाः 638 किञ्च आवोहार्दिभयमानीव्ययेयम् / पाव्ययेयम् व्ययतिर्गत्यर्थः आगमेयम् अभिमुखमापादयेयम् For Private And Personal Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir वायुप्माकं हार्दिहृदयम् भयमान: विभ्यत् / विभेतेविकरणव्यत्ययेनशानचिशप् | यतएवमतो ब्रवीमि बावंपालयत न:अस्मान् हेदेवा: निजुर: नितरांयोभक्षितं जरयतिसनिजू: बुभुक्षिहै तादित्यः कस्यकादिति विभक्तिव्यत्ययः / बावच्चकर्तात् कूपात् / अवपदः अवाचीनानिय आबोहाहि भय॑मानोव्व्ययेयम् // बावन्नीदेवानिजुगेकस्युत्रा / यस वुपोवजत्रा // 51 // विश्वेऽद्य // मुरुतोविश्वऽ तीविश्वभवन्बुग्नयुसमिताई // विप्रवनोदवाऽअवसागमन्तुम्बि प्रश्वमस्तुद्दविणव्वाोऽस्म्मे // 52 // विश्वेदेवाः // शृणुतेम हवं र म्मेवेऽअन्तरिक्षेवऽउपुयविष्ठठ // येऽअग्निजिहब्वाऽउतवायजत्राऽा * पादानि सतथोक्तः तस्मात्सोपानै यत्रोत्तरितुं नशकतेइत्यर्थः / हेयजत्रा यष्टव्याः // 51 // * विश्वेअद्यइतिव्याख्यातम् // 52 // विश्वेदेवाः / हैविश्वेदेवाःशृणतइमंहवम्आह्वानमेमम / येअन्तरिक्षेस्थभवथ। येचउपद्यविद्युलोकेस्थभवथ। येचअग्निजिह्वाअग्निमुखाः / उतवाअपिचयजत्रा 160. For Private And Personal Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir * यष्टव्याः श्रुत्वाचआह्वानम्आसद्यस्थित्वाअस्मिन्वर्हिषिमादयङ्घम्टप्यचम् // 53 // देवेभ्योहि / र यस्माद्देवेभ्य: प्रथमंयन्तियेभ्यः यज्ञाहेभ्य:अमृतत्वं सुवसिअभ्यनुजानासि भागञ्चोत्तमंसुवसि आत् इत् अथानन्तरमेवदामानम् दातारमुत्पत्तिस्थितिलयानाम् स्वकीयंरश्मिजालम् हेसबित: / # व्यूर्णषे विहणोषि विस्तारयसि / रश्मीनामुगमेहि विनोऽकंपितमनसाग्निहोत्रादीनिकर्मार सद्यास्म्मिन्न्बुर्हिषिमादयध्वम् // 53 // देवेभ्योहि // प्रथुमंय्यु / ज्जियेभ्योमतत्त्व सुवसिभागमुत्तमम् // आदिवामान सवितुयु र्गुषेनूचीनाजौवितामा षब्भ्यः // 54 // [11] प्रवायुम् // प्रवायुम णिकुर्वीत / किञ्च अनूचीनाअन्वञ्चितानि तदनुगतानि जीविताजीवितानि जीवनहेनिकर्माणि मानुषेभ्यः ददासितस्मात् त्वामेवस्तुम इतिवाक्यशेषः // 54 // समाप्तंसर्वमेकंकर्म / इदानीं त्रयोनुवाकाः पुरोरुचामनारम्याधौता: व्याख्येयाः / आदित्यस्यवा याजव। ल्क्यस्थवा आर्षमापिटमेधात् / प्रवायुम् त्रिष्टुम् / चतुर्थःपूर्वव्याख्यायते वाक्यवशात् / हेप्रय For Private And Personal Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gagmandir , ज्योप्रकर्षेण यजनशील अध्वर्योयस्त्वं कविःक्रान्तदर्शन: वायुमअच्छ आभिमुख्य न प्रयक्षसिप्रकर्षण यष्ट मिच्छसि / यजतेरेतद्रूपम् बृहतौमनीषा वृहत्यामनीषया। किंभूतं वायुम् / हट्रयिम् महाधनम् / विश्ववारं सर्वस्यवरणीयम् रथप्रां रथपूरणम् शत्रुधनैरसौरथंपूरयति / , द्युतद्यामा द्योतनंयमन यस्य सतथोक्तः / यु तद्यामानमिति विभक्तिव्यत्ययः वायुविशेषणत्वात् / च्छाबहुतोमनीषाबृहदयिंविधवाररथाप्राम् // धुतामानियतु पत्त्यमान कवि कुविमियक्षसिप्प्रयज्ज्यो // 55 // इन्द्रवायूऽडमे // सुताऽउपप्प्रयोभिरागतम् // इन्दवोवामुशन्तुिहि // 56 // मिन्च से हुवे // पूतदक्षंवरुणचरिशादसम् // धियंङ्गुताची साधन्ता // 57 // नियुत:पत्यमानः अवापिपत्यमानमिति पदयोर्विकारोवाक्यवशात् नियुद्भिरश्वैरुत्पतन्तम् कविंक्रा। न्तदर्शनम् // 55 // इन्द्रवायूमे व्याख्यातम् // 56 // मिठ० हुवे / वे गायल्यौ मिनमायामि पूतदक्षम् पूतस्यशुद्धस्य प्राणिनउद्दरणे दक्षं सोमम् / वरुणच रिशादसम् हिंसकादिविनाशने ॐ शक्तिकुर्वाणम् हुवे / कीदृशो / धियंकर्मघताचीम् येनकर्मणादृतमच्यत हयतेतत्कर्मसाधन्ता For Private And Personal Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir शु. साधयन्तौ। नहिदेवतामन्तरेणकर्मसिद्धिः // 57 // दस्रायुवाकवः। योरश्विनी रेकस्यदस्रइतिनाम अपरस्यनासत्यति / तत्रायविभक्त्यर्थ आकारीविरूपैकशेषेवर्तते / गुणोयङ्लुकोरितिच पणिनिर्दर्शयति / हेदसौ दर्शनीयौ हेनासत्यौ नअसत्यौ सत्यावेवनधान्नपादितिप्रकृतिभावः / युवाकव: युवाकामयमानः अहमहमेकया मांपिवतं मांपिवतमिति सुताअभिषुताः कृतवहिषः प्रस्तीर्णबर्हिषः / यत:अतोबबीमि आयातम्यागच्छतम् हेरुद्रवर्तनी। रुद्रस्येववर्तनि दस्रायुवाकव // सुतानासंत्त्यावृक्क्तावहिष॥ आयातकदवर्तनी॥ र तम्प्ररकथायब्बेन // 38 // बियदि // विदयदौसुरमरुिग्णमद्रे में महिपार्थ पूर्यसुध्य कः // अग्नन्नयत्सुपयक्षगणामच्छारवंम्प्रथुमा / ययोस्ती तथोक्तो झट्रपन्थानौ / तम्प्रनथायवेन इतिप्रतीकोक्तौ // 58 // आग्रयणंगृह्णाति / विदद्यदि विष्ट, प। दूहवाक्प्रकटीभवेतिसोच्यते विदत्जानीयात् यदि। सरमावाक् बयोलक्षबा। साहिअभिषवे समानरमते / मग्नंचूर्णीकृतम् अद्रेःसोमाभिषवस्यकतुः / अट्रिभिश्चसोमोभिषयते / महिमहत् पाथ:सोमलक्षमन्नम् पूर्व्यम उपांश्वन्तर्यामैन्द्रबायबादिषुगृहीतम / शवम For Private And Personal Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir र सध्यक्समानाञ्चनम् सहस्यसध्रिः अञ्चतेत्तरम् / कःकुर्यात् / किञ्च अग्रन्नयत् यज्ञाग्रन्नयत्ति सापाथः। सुपदीशोभनानिपदानि यस्थावाचःसातथोक्ता / नहिपदानिप्रत्याख्यायवाक्यंस्थात् / अक्षराणामकारादीनां रवंशब्दजानती प्रथमाअछाभिमुख्य नअगात् / गच्छति एवमधियज्ञमन्त्रीव्याख्यायते / वहृचान्तुसंवादसूक्तम् / तत्वसरमादेवसुना इन्द्रेणप्रेषितान्वेषणार्थम् गोधनेपणिभिर सुरैहृत तदभिप्रायेणव्याख्यायते / तत्रासुराणांपर्य्यालोचनवाक्यम् / विदद्यदिविदत्अलभत् यदाव सरमादेवसुनी / मग्नभग्नं गवांसंवन्धिभिःखुरैः / अद्रेःपर्वतस्यहारम् / अथानन्तरं महिमहत् / - जानुतोगात् // 56 // नुहिस्प्पशम् // नहिस्प्पशमविदन्नन्यमुस्म्मा / वैश्वानुरात्पुरऽएतारमग्ने // एमेनमधन्नमृताऽअमत्त्यव्वैश्वानर / - गोलक्षणंपाथ:अन्नम् / पूर्व्यम्पूर्वेषुकालेषु अपहृतम् / सध्यक् देवान्प्रतिसहाञ्चनम् कःकरोते: रूपकरिष्यति। अग्रम् गवामग्रमवस्थायनयत् नेष्यति / सुपदी शोभनपादयुक्ता पदेनयान्वेषयतिनष्ट'सैवमुच्यते / अक्षराणामस्मदीयवा वाक्यसंवन्धिनाम् अच्छअभिरवमुच्चारणम् प्रथमाजानती अगात्आगमिष्यति // 56 // नहिस्पशम् / लिष्ट प् / नहिशब्दःप्रतिषेधवचनः पशमस्यशःप्रणिधिरुच्यते / अविदन्अन्यमअस्सात्वैश्वानरादग्नेः / पुरएतारम सर्वेषुकार्येषु अग्रगन्तारञ्चनहिअविदन् / आईम्दौनिपाती अयशब्दस्वार्थेवर्तेत अथएनं वैश्वानरमअवधन् वर्द्धि For Private And Personal Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir के तवन्त: अमृता अमरणधर्माणोदेवाः अमर्थम्अमरण धर्माणवैश्वानरम् / क्षेत्र जित्याय यजमा- अ. नस्यदेवयजनक्षेत्रजयनिमित्तम् / / 60 // उग्राविघनिना। द्वेगायल्यौ उग्राउग्रौउट्टो / विघनिना, 33 , हन्तेर्बत्वम् विहन्तारौमृधः संग्रास्यसंग्रामकारिणांवा / इन्द्राग्नीहवामहे आह्वयामः / तौचाहूतौ , नःअन्यान् मृडात:मृडयत:मुखयत: ईदृशकर्मणि / 61 // उपान्मे / उपगायत हेनर: ऋत्विजः ङक्षेत्रजित्त्यायदेवा // 60 // उग्याबिघुनिना॥ उग्याबिघुनिनाम इन्द्राग्नीहवामहे // तानोमृडातऽदृशे // 61 // उपस्म्मैि // गा यतानरपव॑मानायेन्द॑वे // अभिदेवा ॥ऽयक्षते // 6 // बेवा॥ हिहत्त्येमघवन्नवर्धन्येशाम्बरहरिवोयेगविधौ // येत्त्वानुनमनुमद - अस्मैपवमानाय / दशापवित्राट्रोणकलशम्प्रतिगच्छते। इन्दवेसोमाय अभिद्यक्षते यष्टुमिच्छते सनियकारलोपः। देवान् // 62 // येत्वा / देविष्ट भी येमरुत: त्वाम् अहिहत्ये अहिरसुरः। शिवम , अहिवधेकर्तव्ये हेमघवन् अवईन्वईितवन्तः / येचशांवरे वधकर्तव्ये हेहरिवन् / येचगविष्टौ 601 गवामपामेषणायोपस्थितं सन्तं त्वामवईन् / येचत्वा त्वाम् नूनंनिश्चयेन अनुमदन्ति उत्कर्षयन्ति For Private And Personal Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir तर्पयन्तिवा / विप्रामेधाविनः पिव हेइन्द्र मोमम् सगण:समानगणः तैःमरुद्भिः // 63 // जनिष्ठाउयः / जात:उग्रः उद्गुणः / सहसेवलाय तुरायत्वरणाय / वचनविशेषणम् / मन्द्रःमन्दॐ नौय: ओजिष्ठ:अतिशयेन ओजसायुक्तः / वहुलाभिमानः अचिन्त्याभिमानः वहुप्रकाराभिमानोवा। अभिमानःज्ञानम् यत्तस्मात् / अवईन्अवईयन् इन्द्रमरुतश्चित् महतोपि अवपरमपदेस्थितम् / 9 न्तुिब्बिप्प्रापिबेन्द्रुसोम सगणोमरुद्भिः // 6 // जनिष्ठाऽउग्नः // सहसेतुराय॑मुन्द्र ओजिष्ठीबहुलाभिमान॥ अवईन्निन्द्रम्मरुतश्चि दत्त'माताबहीरन्दुधनुवनिष्ठठा // 64 // आतू // आतून इन्द्रवृत्त / हन्नुस्म्माकमुर्द्धमार्गहि // मुहान्दाहीभिरूतिभिः // 65 // त्वमिन्द्र // माता अदिति: यत्यस्मात् वौरञ्च / दधनन् दधातेरेतद्रूपम् नकारउपजन: धारितवती / धनिष्ठा अतिशयेनधन्या धनवतीतस्माच्च मरुतःअवर्द्धन्नितिसंवन्धः // 64 // आतूनः / आ तू नः इति त्रयोनिपाताः छन्दःपरिपूर्तिकराः / हेइन्द्र हेववहन् त्रस्यहन्तः / अस्माकमर्द्धम् अस्मदीयंपक्षम् आगहिआगच्छ / एत्यच अस्मान्पालयेतिशेषः / महान्सन् महीभिर्महतीभिः / अतिभिरबनैःपालनैः // 65 // त्वमिन्द्र / हतौ / त्वमेव हेदून्द्र / प्रतर्तिषुप्रतरणेषु शत्र षु For Private And Personal Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir निमित्तभूतेषु / अभिविश्वासि / अभ्यसि अभिभवसिविश्वाःसर्वाः स्पृधःसंग्रामान् किञ्च प्रशस्तिहा अभेरादिशेषः / अभिशस्तिहा / जनयिताच सुखानाम् / विश्वतः सर्वतूरणश्चासि / अतोवबौमि / त्वमेवतयं जहिमारय / तमष्यत: हनिष्यत: शत्रन् // 66 // अनुते / सं० सतोबहती / चतुर्थ:पादःप्रथमव्याख्यायतेयच्छब्दयोगात् / हेइन्द्रयत् यस्मात्कारणात् त्वमिन्दुप्प्रर्तृर्तिष्ष्वभिविश्वाऽअसिस्पृधः // अस्तिहाजनितावि उ. प्रश्वतूरसित्त्वन्तर्यतरुष्ष्यतः॥६६॥ अनुत। अन्तशुष्मन्तुरयन्तमी यतुरंक्षोणीशिशुबमातरा॥ विश्वास्तुस्पृधश्नथयन्तमुन्न्यवेवुय्य टिन्द्रुतूबसि // 67 // युनोदेवानाम्॥युज्जोदेवानाम्प्रत्त्येतिसम्ममा वमसुरंतूर्वसि / तिहिंसाकर्माहिसि / अतःकारणात् / अनुते शुष्मतुरयन्तमीयतुः / 3 अन्वीयतुः अनुजमतुः अनुगतवत्यौत्वाग्मेव / तेतवशुष्म बलम् किंकुर्वाणम्तुरयन्तम् तणंगच्छन्तम् / क्षोणी क्षोण्यौ द्यावापृथिव्यौ / शिशुनशिशुमिवपुत्रमिव / मातरामापितरौ बिरूपैकशेषः / किंचबिखाः सर्वा:स्पृधः संग्रामाः तेतवमन्यवे मन्यो:भयात् नथयन्ति 642 बिशी यन्ति / याहित हन्ति यस्यचद्यावापृथिव्यौ बलमीयतः // 65 // यज्ञोदेवानामि शिवम For Private And Personal Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir तिव्याख्यातम् // 6 // अदचेभिः सवितः / जगती / हेसवित: अदश्वेभिःअनुपहिसितैः पायुभिःपाfo लनैः त्वम् शिवेभिःशान्तैः अद्यपरिपाहि परिपालय नोस्माकम् गयंगृहम् हिरण्यजिह्वः सत्यवाक् भूत्वा / सुवितायसुप्रसूताय कर्मण नव्यसनवतराय। भवेतिवाक्यशेषः। रक्षचसर्वथा। माकिः / माकश्चन नोस्माकम् अघशंस: अघंपापं यःशंसति सअघशंसः / ईशतईष्टा ईशिताभवदित्यासोभवतामृड्यन्तः // आवोर्बाचौंसुमतिवृत्त्यादः होपिच्च द्यावरिवोवित्तुरासंत्॥६८ // अश्वेभिः सवितः // पायुभिष्टशिव भिग्यपरिपाहिनोगय॑म् // हिरण्यजित सुवितायुनस्यसुरक्षामाकि न्।ऽअघईसाईशत // 6 // [ 15 ] प्रोग्या // शुचयोदहिरेवाम तु // 6 // प्रवौरया / अन्य पुरोग्गण: / त्रिष्टुप् / प्रवीरयावहुवचनस्यस्थानेयादेश: / प्रकृष्टवीराः सोमा:शुचयः स्वभावादेवशुवाः / ददृरेदृविदारणे / विदोर्णा:कणीभूताः / बांयुवयोः मंजन्धिनः / हेयजमानौ जायापती / कथंदहरेइतिचेत् / वाम्अध्वर्युभिः मधुमन्तः 181. For Private And Personal Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir उदकवन्तःसुतास: अभिषुता:गावभिः / एवमनेनाईर्चेन यजमानौसंबोध्य अथेदानीसंवोधयति वायुम् / वहवायोनियुतः / वहप्रापयहबायो नियङ्गणकानश्वान् / याहिच अचसोममभि / सोमवाप्राप्तुम् / पिवचमुतस्याभिषतस्य अन्धस:सोमस्य / मदायटप्तये मदजननार्थवा / / 70 // गावउपति ब्याख्यातम् // 71 // काव्ययोराजानेषु / गायत्री / काव्ययो: कबीनांहितयोः / वर्षाभिमधुमन्तः सुतासावह बायोनियुतोवाट्यच्छा पिबासु / तस्यान्धसोमाय // 70 // गावऽउप॥ गाउपांवतावतम्मुहीवुज्जस्य / गप्प्सुदा // उभाकर्णाहिरण्यया // 7 // काययोराजानेषु॥ काव्य योराजानेयुक्त्त्वादक्षस्यदरोण॥ रिशादसासुधस्त्युआ॥७२॥ टैया आजानेष आजन्मभूमिषु उत्पत्तिस्थानेषु। क्रत्वा कर्मणाअग्निष्टोमादिकयाक्रियया / दक्षस्यउत्साहवतीयजमानस्य दुरोणेयजगह / रिशादसा / रेसितव्यस्योपलक्षयितारौ / सधस्था / सहस्थाने आगच्छतं हेमित्रावरुणाबितिशेषः // 72 // दैव्यावध्वयं व्याख्यातम् तंप्रत्नथा * पिबासोमम्पिबासुत्तस्यस्थामयोभुवो इत्यादि सूत्रेण पिबासुतस्येत्तात्त दी?निपात्तात्त प्रा० अ० 3 / मू० // 130 // शिबम For Private And Personal Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अयंवेन इतिद्दे प्रतीकोक्तः // 73 // तिरश्चौनोबिततः / त्रिष्टुप् / आगयण नया गृद्यते तदभिप्रायेण प्रधाद्वैत आधवनीयादुन्न तानि गाभ्यास्वासिंचति ता:पवित्वे यजमान: ततोगृहग्रहणम् / तिरश्चौनोविततोरश्मिरेषाम् एषांसोमानाम् अन्तरादशापवित्वलक्षणात् / रश्मिः / तिरश्चीन: बिततःप्रसारित: / उद्गाटभिः तस्मिन्दशापत्र सोमःप्रक्षिप्तःदशापवित्रात् अध: वध्वयं // देश्यावद्ध्वव्यू ऽआगंतु रथेनुसूय॑त्वचा // मद्ध्वा / ज्ज्ञसमंञ्जाथे // तम्मुत्कथायब्बेन // 73 // तिरश्च्चोनोब्बि ततः // तिरश्च्चीनोबिततोरप्रिम्मरैषामध? स्वि'दासी 3 दुपरि / स्विदासी 3 त् // रेतोधाऽसिन्न्महिमान आसन्त्स्खुधाऽअवस्तार स्वित् अधश्चासीत् उपरिस्वित् उपरिचासौत् आसौदित्युभयत्रबिचारेप्लुति: / किञ्च रेतोधाआसन् / रेत:सोमः सहिजगदुत्पत्तिवीजम / तस्यधारयितारासन् गृहचमसाधवनीयद्रोणकलशादयः / महिमानश्चआसन् / सोमैकादशा: सोमस्यमहिमानः / किञ्च / खधाअवस्तात् खधाअन्नम्वस्तात् / शुक्रोद्रोणकलश इत्येतदुक्तंभवति। प्रयति:परस्तात् प्रयतन For Private And Personal Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir प्रयति: परस्ताटुपरिष्टात् / आधवनौयादुन्नेतानिगाभवास्वासिञ्चति ता:पविवे यजमानोवन। यति इत्येतदुक्तंभवति // 4 // आरोदसौ / जगती वैश्वानरउच्यते / आअपृणत् आपूरयतिरोदसी द्यावापृथिव्यौ / आस्वः आपूरयतिच स्व:आदित्यम् महत्महान्तम् / कदाआप्टणत् यत्यदा जातंजातमत्रम् एनवैश्वानरम अपसः अपस्विनः कर्मवन्तःअधारयन कर्मणिस्थापितवन्त: / सोअध्वराय त्प्रय॑तिः पुरस्तात् // 74 // आरोद॑सी // ऽअपृणुदासमहज्जातंय्य देनमपसोऽअर्धारयन् // सोऽश्रद्ध्वरायुपरिणीयतेकुविरत्त्योनव्वा जसातयेचनौहितः // 75 // उक्थेभित्रुहन्तमा // उक्थेभिवच / सएवायमग्निः अध्वराय यज्ञार्थंपरिणीयते कवि:क्रान्तदर्शनः / कथमिव अत्योनअश्वद्भव / बाजसातये अन्नसंभजनाय। चनोहितः चनसिअन्नस्थापितः / अश्वोहिष्टतादिभिरभिधारितेनान्ने नपोष्यते अतस्तेनोपमीयते // 75 // उक्थेभिर्वृचहन्तमा। इंगायल्यौ। यौइन्द्राग्नी। उक्थेभिः / उक्थैः स्तुतौसन्तौ / बवहन्तमा बत्रस्यातिशयेनहन्तारौस्तः / याचित्यौचगिरावाचास्तुतौ आम शिवम For Private And Personal Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir न्दानामोदमानौस्तः यौच पापैःस्तोमैः स्तुतौआविवासत: परिचरतःस्तोतृन / तौउक्थैः गिरापा षैश्चस्तुमः सर्वकामाप्त्यर्थम् // 76 // उपनः / उपशृण्वन्तु नोस्माकम् गिरःवाच: सूनवःपुत्रा: अमृतस्यप्रजापते: येविश्वेदेवाः श्रुत्वाच / सुमृडौका: अतिशयेनसुखयितारः भवन्तु नःअस्माकम् // 77 // ब्रह्माणिमे तिस्रस्त्रिष्टुभः / इन्द्रमरुत्संवादे इन्द्रस्यैतद्दाक्यम् / ब्रह्माणिस्तुतयः हवौंषिवा / मेमतयः हन्तमायामन्दानाचिदागिरा॥ आङ्गगविासतः // 6 // उपनः // सुनवो गिरःशुगण्वन्त्व॒मृतस्युवे // सुमुडीकाभवन्तुनः // 77 // ब्राणिमे // मुतयः शम्सुतासुः शुष्म्मऽइयतिप्प्रभृतोमेऽअदि: // मममती: इयर्ति उद्गमयन्ति / शंसुखम् सुतास:अभिषुताः सोमा:ममउगमयन्ति / शुक्ष्मइयर्तिप्रभृतोमेट्रिः / शुष्मावलम् इयर्ति / ऋगतो णिचोलोपश्चान्दसः पारयति उगमयति / प्रभृत: हग्रहोभग्छन्दसिहस्येतिहकारस्थभकारः प्रहृत: मोमाभिषवनिमित्तम् / मेमम अद्रिःग्राबा / यत्नचआशासते यजमानाः मदीयमागमनमिच्छन्ति / यत्रचप्रतिहर्यन्ति / हर्यति:प्रेसाकर्मा / प्रतिकामयन्ति For Private And Personal Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir उकथाउक्यानि / इमानि इन्द्रःशृणोत्विति / इमाइमौहरी अश्वीबहतःप्रापयत: तातानिस्थानानिन:अस्मान् अच्छआभिमुख्येन // 78 // अनुत्तमाते / एवमिन्द्रेणोक्ता मरुत:प्रत्याहुः / अनुत्तम् णुदप्रेरणे अस्यनिष्ठाप्रत्ययेनुत्तप्रतूर्तेत्यादिनासिद्धिः / अनुत्तम् अप्रच्युतस्व भावमहाभाग्यम् / आआस्ते / ते तब / हेमघवन्धनवन् / नकिर्नु / नबाकश्चित् प्रच्यावकोमआसत प्रतिहव॑न्त्युक्क्येमाहरौबहतुस्तानोऽअच्छे // 78 // अनु त्तुमाते // मघवन्नकिन्ननत्त्वावार ॥ऽअस्तिदेवताब्बिानः // नजा यमानीनशेतुनजातीवानिकरिष्यातणुहिप्पडड्ड // 76 // तदित् // हाभागस्यकिञ्च / नत्वावान् मतुप्सादृश्यार्थे / नत्वत्सदृशः अस्तिदेवतादेव:विदान: सर्वजदूत्यर्थः / किञ्च नजायमानःनशते / नािपत्यर्थश्छन्दसि / व्याप्नोति / नचजातः / तानिक, रिष्यति / तानिकानि। यानित्वंकृणुहिकरोषीतिलकारव्यत्यय: हेप्रवृव / / 76 // तदित् / तत् / इत् पास। इच्छब्दएवार्थे भासौदितिलकारव्यत्ययः। तदेवासीत् भुवनेषुभूतजातेषु ज्येष्ठंड For Private And Personal Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir 18 इतमम् / यतोज जात: उग्रः उहुर्ण: वजहस्तइन्द्रः / त्वेषनृरण: तेजोधनोवा महाधनोवा / कार्यदृष्ट्वाकारणानुमानं कुरुते नहि यत: कुतश्चिदिन्द्रोजायतइति / किंच। यश्च सद्यो* जन्तानः / जायमानः वाल्पमनपेक्ष्य / निरिणाति निहन्तिशत्र न / पुनरपि बिशिनष्टि / अनुयंबिश्वेमदन्ति / अनुमदन्ति अनुढप्पन्ति यंबिश्वेसर्वेदेवाः। ऊमाः / भवितारः अवनीतदिदासुभुवनेषुज्ज्येष्ठ्य्यतोजज्ज उग्रस्त्वेषम्ण // सद्योजचा / नोनिरिणातिश चूननुयंविश्वमटुन्त्यूमा // 80 // हुमाऽऽत्वा // * पुरूवसोगिरोवईन्तुयामम॥ पावकवर्णा शुचयोब्विपश्चितीभि ( यावा / नास्तियत: कुतश्चिज्जायत इतिबिशेषः // 8 // इमाउत्वा वृहत्यौ। तृतीय:पाद: पूर्वव्याख्यायतेसामर्थ्यात् / यन्त्वाम्याबकवर्णाग्निवर्णाःऋषयःशुचय: यमनियमपराः। विपश्चित: त्रिकालदर्शिनः / अध्यनूषतअभिष्टुबन्तः / स्तोम स्तोत्रैः। तत्वाइमाउःपादपूरणः / या:ममगि-2 * अश्वर शिम्मतिसमतिश्वसुतचारयष्टणिसे दिमन्द्रियधारयेत्यादि सूत्र णपुरुवसोदत्तावस्थायांवकारपरपुरुइत्युकारस्य दीग्? भवति प्रा. प. 3 / सू० // 8 // For Private And Personal Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir र:हेपुरूबसो प्रभूतधनता वईन्तुवईयन्तु // 81 // यस्यायम् / यस्येन्द्रस्यअयंविश्वः सर्व:आर्यः दासः। वर्णाश्रमविहितकर्मानुष्ठानादासइव। सेबधिपाअरिःसेबधिनिधिः। निधिमिवये।। 33 * धनरक्षति नवर्णाश्रमविहितकर्मानुष्ठान करोति सःयस्थशत्रु भूतः। किञ्च / तिरश्चित् प्राप्तेपि अर्येईवर रुशमे / रुशतिहिंसाकर्मा / हिंसे। पबोरवि / पवीरमायुधंतहति। श्रायुधवतिस्तामैरनूषत // 81 // वस्यायम् // यस्यायंब्विश्प्रवुऽार्योदासं शेव धुिपाऽअरितिरपिचारुशमुपवारवितुब्भ्येत्सोऽअज्ज्यतेरयिा अयसहस्रम् // अयसहस्रमृर्षिभि सहस्कृत समुद्दऽईवपप्पथे // र युद्धकर्मणि / यइन्द्रः अरिःशत्रु : / हेयजमान तुभ्यइत्तुभ्यमेव / सइन्द्रः अज्यते / धातूनामPL नेकार्थत्वादंजिर्दानार्थः विकरणव्यत्ययश्च अनक्तिददातिरयि:धनम् अत्रापिरयिमितिविभक्तिव्य- शिवम त्ययः // 82 // अयएसहस्रम् / सतोष्टहती। योयमिन्द्रः सहस्र सहस्रकृत्वः / ऋषिभिः / सहस्कृतः। सहतिवलनाम। वलंकृत्वास्तुत:सन् समुदद्वपप्रथेप्रथते / तस्यास्थसत्त्यः सःमहि For Private And Personal Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir माशवः बललक्षणः गणेगौयते अम्माभिर्य जेषु / विप्रराज्ये। यजेहिब्राह्मणाः स्वतंबारानान इवभवन्ति // 83 // प्रदभि:सवितरितिव्याख्यातम् // 84 // (1) प्रान: अायाहिन:अस्माकंय* जम् / दिविस्पशं द्युलोकयायिनम् / ऋत्विग्यजमानैर्विदभिरारब्धःदक्षिणादिभि:सम्पन्नःयत्नः सुत्त्या सोऽअस्यमहिमाणुशोयुज्नेषुब्बिप्प्रराज्य // 83 // अट अभि सवितः // पायुभिष्टुशिवेभिरद्यपरिपाहिनीगर्यम्॥ हिरण्य जिहब्ब सुवितायुनव्व्यं सुरक्षामाकिनॊऽअघस्सऽईशत // 84 // [15] आनः॥ आनोखुज्जजन्टिविस्पृशुंबाोयाहिमुमन्न्मभि // अ दिवंस्पशत्येव / हेबायो सुमन्मभिः सुमननैः संकल्पैः / श्रागतस्यकिफलभितिचेत् / अन्त:पविवेदशापवित्रस्य उपरिश्रौणान: होटचमसेनिषिष्यमान: सोमोवत्तेते तत्रतग्रहोगद्यते / अयंच (1) षठः पुरोरुग्गणः समाप्तः इतोऽध्यायसमाप्तान्तं वयोदश ऋचः प्रतीकीताश्चतरूपति एवायवादिसावित्रान्तानां 6 ग्रहाणां ग्रहणमन्त्राः पूर्ववत् // 162. For Private And Personal Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यःशुक्रः सोमःतम् अथामिप्रापयामितेतव // 85 // इन्द्रबायूसुसंदृशा। इन्द्रवायू / सुसंहशा / सुतरांसम्यग्दर्शनीयौ / मुहवा / स्वाह्वानौच / इहवामहे श्रावधामः / तथाचाह्वयामः / यथा2 येनप्रकारेण नःअस्माकम् सर्वत्सर्वएवजनः / अनमौव:अमौवाव्याधिसहितः / सङ्गमेइन्द्रवायुसंगतौ। मुमनाशोभनमनस्कः / असत्भूयात् // 86 // ऋगित्था। टतौय:पादः प्रथमव्या न्त: पुवित्वंपरिश्रोणानीयशुकोऽअयामिते // 85 // इन्द्रवायू / / . सुसुन्दृशा // सुहबेहहवामहे // यर्थानु सव इज्जनौनमीव) मुङ्ग मैसुमनाऽअसत् // 86 // धगुित्था ॥समर्त्यः शशुमेदेवातये॥ योनूनम्मित्वावरुणावुभिष्टयऽआचुक्क्रहुव्यातये // 87 // आयो / , ख्यायतेयच्छब्दयोगात् / यःमय:नून निश्चयेन मित्रावरुणौअभिष्टयेस्वाभिष्टप्राप्तये / आचक्र से5 तेहव्यदातये हविषो दानाय / समय : धक्सद्दियुक्तः इत्था / इत्थमित्यभिनयेन दर्श* यति / शशमे। शाम्यतियमनियमजोभवति / देवतातये। देवानांकर्मदेवताति: तस्यै। यताये त्यर्थः // 87 // आयातम् / आगच्छतम् उपभूषतम् अलंकुरुतंचयतम् / मध्वः मधुरूपस्य शिवम् 647 For Private And Personal Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun स्वमंशपिवतंच / हेअश्विनौ / किंच / दुग्धं पयः महाबीरसेचनार्थम् / हेटषणौसेक्तारौ / हेजेन्यावर जेन्यंजितं स्वीकृतं वसुधनं याभ्यांतौजेन्यावसू / किंच मानोमईिष्टम माचमाई ष्टम् संप्रहारकुरुतम् + नःअस्मान्प्रति / अागतम् अवश्यञ्चबाच्छतम् // 88 // प्रेतु / अस्मदीयं यत्नप्रतिपागच्छतु / तम् // आयातमुप॑भूषतुम्मध्वः पिबतमश्विना // दुग्धम्पयो षणाजेन्न्यावसूमानौमहिष्णुमार्गतम् // 88 // प्रेतु // प्रैतुब्रमण स्प्पतुि प्प्रटेश्ये तुसुनृता // अच्छाब्बीरन्नवम्पतिधिसन्दुवायुज्ज्ञ न्नयन्तुन // 86 // चुन्द्रमाऽअप्प्सु // चुन्द्रमाऽअप्स्वन्तरासुपुगों ब्रह्मणस्पतिः वृहस्पतिः / प्रतुचदेवौवाक् / सुन्ता शोभनासत्यवतोवयौलक्षणा। कंप्रत्यागच्छत्त्वित्यताह / अच्छ अभि / बोरं पुत्र। महाबौरंवा। नर्यम् नृभ्योहितम् अनुग्राहकम् / पंक्तिराधसम् ब्रह्मपङ्क्ति साधकम् पंक्तिपावनमित्यर्थः / किञ्चदेवाः यज्ञनयन्तु न:अस्माकम् // 8 // चन्द्रमाअप्सु / आहुतिपरिणामोनोच्यते। योसौचन्द्रमा: सतथासोमरूपापन्नः / अभिष्टुतः For Private And Personal Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir अप्स्वन्त: मध्येरसरूपेण प्रास्थितः / अग्नौहतःसन सुपर्णःसुपतनः धावतेदिवि / तस्मात्प र्जन्यरूपमास्याय / उदकदानद्वारेण / रयिंधनम् पिशंगंपीतवर्णम् बहुलमसंख्यातम् पुरुस्पृहम् वहवोयत्रस्टायन्ति / हरिःसोमएति / कनिक्रदत् पर्जन्यरूपेणात्यर्थ स्तनितंकुर्वन् // 10 // देवदेवंवः / देवदेवमितिवौप्सार्थोच्यासः / यावन्तोदेवास्तावतोदेवान वःयुष्माकमवसेपालनाय / वितेदिवि॥रयिम्पिशङ्गबहुलम्पुरुस्पृहःहरिरेतिकनिकदत्।। देवन्दैव ब्वः // देवन्देवंब्बोवसेदे॒वन्दैवमुभिष्हये॥ देवन्दैवहुवेमुवा जसातयेगृणन्तौदेव्याधिया // 1 // दिविपुष्ट // दिविपुष्टोऽअरो। चाग्निःश्वानुरोबृहन् // मावृधानऽओजसाचनौहितोज्ज्यो / हुवेमेत्यनेनसंबन्धः आह्वयामः / देवंदेवमभिष्टये अभिष्टकामावाप्तये श्राद्धयामः / देवन्देवहुवेम। बाजसातये अन्नसम्भजनाय / कथंहवेमेतिचेत् / गृणन्तःस्तुतिभि: देव्याधिया। देवतायाथात्मचिन्तनपरयावुद्ध्या // 11 // दिविष्टष्टः / योग्निर्वैश्वानरः दिविष्टष्टः [लोकेस्थितः श्रादित्यात्मना अरोचतेदेदीप्यते। हन महान / सोयम् मयाटथिव्या कारणभूतया। धानः शिवम For Private And Personal Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir बई मानः श्री नसावलेनच / चनोहितः चनसिबन्ने हविर्लक्षणे हित:स्थापितः / ज्योतिषा0 वाधतेतमः // 82 // इन्द्राग्नौअपात् / प्रवलिहकेयमक् / यथाप्रजन्तु व्याख्यायते / मानुषौवा गनयो व्यते / उक्तंच / अथयन्मानुष्यावाचाह इतौदंकुरुतेतीदंकुरुतेति / तदुहतयाचौयतइति / हेइन्द्राग्नौ अपात् पादरहितागद्या इयंबाक् / पूर्वाश्राअगात् आगता। पहतीभ्यः पादवतिषावाधततमः // 42 // इन्द्रग्निोऽअपात् // इन्द्राग्नीऽअपादिय म्पूर्वागात्पुवतीभ्यां // हित्त्वौशिरॊजिब्वयाब्वावदुच्चरत्रिशत्पु दान्न्यक्रमीत् // 63 // देवासोहिष्म्मा // मनवेसमन्न्यवोविश्वसा तीभ्यासकाशात् / हित्वौहित्वापरित्यज्यशिरः प्रथमपदम् अन्यत्करोति। नहिलौकिक्यावाचः / F कश्चित्पदनियमोस्ति / जिह्वया। विदुषः वावदत्वदन्ती। चरत् चरति / कियन्तितत्रपदानि / विशत्पदानि / त्रिशत्संख्याकानिपदानि अक्रमौत्अतिक्रामति / नहिपरत: बाणविषयः / / 63 // देवासोहिमा / हिस्मनिपाती / येदेवास: मनबेसमन्यवः मनुनासमानदीप्तयः समानक्रोधावा / For Private And Personal Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir AU 3 विसश्वेवेसासकह उपास्याः / सरातयः समानदानाच / तेविश्वेदेवाः नःअस्माकम् अदा / तेचअपरम् अागामिकाले / तुचेतुनः / तुगित्यपत्यनाम / अपत्यायच अम्मदौयाय / भवन्तु / वरिवोबिदः / वरिवोधन येअस्मदर्थविन्दन्ति तेवरिवोविदः // 84 // अपाधमत् / प्रथमोईमार्च:परोक्षकृतः द्वितीयःप्रत्यक्षतः अतोवाक्यभेदः पदसन्नतिर्वैकस्मिन्नईचे ।अपाधमत् धमतिर्गति। कर्मा / यदा अपगमयति / अभिशस्तौः अभिशापान प्रशस्तिहा अभे रादिशेषः / अभिशस्तिहा कसरातय॥ तेनोऽअद्यतेऽअपुरन्तुचेतुनीभवन्तुवरिवोविदः।६।। अधिमत् // अपधिमटुभिशस्तीरशस्तुिहाथेन्द्रौद्युम्मन्याभवत् // देवास्तऽइन्द्रसुक्खायवेमिरेबहानोमरुद्गण // 65 // प्रवः // प्रव स्वतएव / अथानन्तरम् इन्द्रःानौ अन्नवान्यशस्वौवा आअभवत्भवति / एवंस्तुतइन्द्रः प्रत्यक्षौभूनः / इतउत्तरोई चःप्रत्यक्षतः / देवाः तेतव हेइन्द्रमख्यायसखिभावाय टेमिरे प्रात्मानंसंयतंकृत शिवम् वन्तः हेरहद्वानो महादौप्ते / हेमरहण एकवाक्ये तु वहनांपदानां सन्नतिःकार्या // 5 // प्रवः। प्रथमावहुवचनस्य वादेशः / प्रार्चतप्रोच्चारयत व:यूयम् स्तुतौः इन्द्राय रहतेमहते है For Private And Personal Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir हेमरुतः / ब्रह्मवयौलक्षणो: किमितिचेत् / दृत्रहनति हन्तीतिप्राप्तेशपाथवणम् / वहा वधप्रवणः शतक्रतुः वहुकर्मा / बजेण शतपर्वणा शतग्रन्थिना // 26 // अस्येत् / असाइत्र इदितिनिपातःपादपूरणः / मदे मुतसाविष्णवि विष्णुर्यजः / यन्ने अभिषुतसा मटेसंजाते ऽइन्द्रायबहुतेमरंतोब्रहमाचत // वृत्रहनतिवत्रहाशतक्रतुर्व है। उज्जेणशुतपर्वणा // 66 // अस्येत् // अस्येदिन्द्रोबाबधेवृष्ण्ण्यु शवो * मदेसुतस्युनिष्पर्णवि // * अयातम॑स्यमहिमा मायवोनुष्टुवन्तिपू वा // हुमाऽउत्वावस्यायमुयम्सहस्रमूर्ध्व ऊषुणः // 67 // [13] इतिसंहितापाठेत्तयस्त्रिंशोऽध्यायः // 33 // * यइन्द्रोवाटधेटडश्च / कृष्णप्रसेक्तत्वम् आविष्करोति / शवोवलञ्च आविष्करोति / तसासा इन्द्रमा अद्यअद्यापि संमहिमानतं आयवःमनु था: अनुष्टुवन्ति / पूर्वयापूर्ववत् यथापूर्वमषिभिःस्तुतः / इमाउत्वा यत्रायम् / यसहस्रम् / ऊर्ध्वऊषुणः इतिचतस्रः प्रतौकोक्ताव्याख्याताः // 17 // इति उबटकृतौ मन्भाष्ये वयस्त्रिंशोध्यायः // 33 // For Private And Personal Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir 3 (1) यज्जागतः / षट्कण्डि कास्त्रिष्टुभो मनोदेवत्याः / अस्मिन्नधधाये लैङ्गि कोविनियोगः / लिङ्गचसामर्थ्यमुच्यते। अभिधा नशक्तिः / यन्मनः जागतः पुरुषसा दूरम् उदेतिउगच्छति चक्षुःप्रभृतौन्यपेक्ष्य / यच्चदेवम् देवोविज्ञानात्मा सोनेनगृह्यत इतिदेवम / उनञ्च / मनसैवानुद्दष्टव्य मेतदप्रमेयं ध्रुवमिति / तदुसुप्तस्य तदःस्थाने यदोसृत्ति: / उवार:समुच्चयार्थीयः / यच्चमम: * बज्जाग्ग्रंत // वज्जाग्ग्रंतीदरमुदैतिदैवन्तटुसुप्तस्यतथैवैति // दुरङ्गमज्योतिषाज्योतिरेकन्तन्न्ोमनः शिवसंकल्पमस्तु // 1 // सुप्तसा तथैवतेन वप्रकारेणएति / यच्चदूरंगमम दूरंगच्छतौतिदरंगमम् / अतीतानागतवर्तमानव्यवहितविप्रकष्टगहोट / ज्योतिषांथोत्बादौनां विज्ञाननेतृणां मधएकमेवज्योतिः / तत् / मेमनः शिवसंकल्पम् / संकल्पःकाममृलपदार्थसास्त्रयादेः सुरूपताज्ञानवतः कामप्रभृति / शान्त संकल्पम अस्तुभवतु // 1 // येनकर्माणि / येन मनसा सताकर्माणि / अपस: अपइतिकर्मनाम (1) अनारभ्याधीतोऽध्यायः आ पिटभेधात् आदित्ययाज्ञवल्कादृष्टा मन्त्राः पाठे विनियुक्ताः // षड़चस्त्रिष्ट भो मनोदेवत्याः शिवसङ्कल्पदृष्टाः / * यज्जाग्रतःपंचनद्यासोमोधेनुमाकृष्ण नपूषन्तवदशकानतदष्टौषडष्टापंचाशत् // For Private And Personal Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir तहितलोपः / अपस्विनःकर्मवत: / मनीषिणःमेधाविनः / यस कण्वन्तिकुर्वन्ति / विदथेषुवेदनेषु यज्ञविधिविज्ञानेषु धौराधिौमन्तः / यच्चअपूर्वम्। नविद्यतेपूर्वमिन्द्रियंयस्मात्तदपूर्वम यहा अपूर्वमनपरम यच्च यक्षमपुज्यम् / यच्च अन्तमधे प्रजानामास्ते / तन्मेमनइतिव्याख्यातम् // 2 // येनुकर्माणि // येनुकमारण्युपसोमनीषिणो यज्ञकुण्खन्तिबिदथे / षुधीरां // वदपूर्वय्यक्षमन्तः प्ाजानान्तन्मे मनः शिवसङ्कल्प्प मस्तु // 2 // यत्प्रज्ञानम् // ववज्ञानमुतचेतोतिश्चयज्ज्योतिर न्तरमृतम्प्रजासु // यस्म्मानकुतेकिञ्चनकम्मक्क्रियततन्ममनः शिवसङ्कल्प्पमस्तु // 3 // येनेदम् // येनेदम्भूतम्भुवनम्भविष्ष्यत्परि यत्पज्ञानम् / यन्मनःप्रत्तानम विशेषप्रतिपत्तिपत्ताम / उत अपिच चेतः / सामान्यप्रतिपत्तिचेतः तिश्च प्रसिद्धा / यन्मनः अन्तर्कोतिरस्तञ्चप्रजासु / यस्मान्नते येनचविना नकिञ्चनकर्मक्रियते / तन्मेमनइतिव्याख्यातम् // 3 // येनेदम / येनमनसा इदंभूतंभूतकालम् / 2 163. For Private And Personal Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir भुवनवर्तमानकालम् / भविष्यत्कालञ्च / परिगहौतम् / असतेनसर्वम् / येनचमनसा यजर स्तायते तन्यते सप्तहोता / सप्तहोतारोह्यग्निष्टोमेभवन्ति / तन्मे मनइतिव्याख्यातम // 4 / / यस्मिन्न चः यस्मिन्मनसिञ्चः प्रतिष्ठिताः। यस्मिन्सामानिप्रतिष्ठितानि / यस्मिन्थजूषिप्रतिगृहीतममृतेनुसबम्॥ ये युज्ज्ञस्तुायतेमुप्तहोतातन्मेमनः शिव संकल्पमस्तु // 4 // व स्म्मुिन्नः // यस्म्मुिन्नृचु सामवजूषि यस्म्मुिन्न्प्रतिष्ठितारथनाभाविवारा // यस्मि पिच्चत्तठ सर्चमोत म्प्रजानान्तन्न्ममनः शिवसङ्कल्प्पमस्तु // 5 // सुषारथिरावा निव // सुषारथिरप्रश्वानिवृधन्न्मनुष्ष्यान्नेनीयतेभौशुभिर्वाजिन ठितानि। कथमिव / रथनाभौव चाराः / यस्मिन् चित्तंसंज्ञानम् सर्वम् तसातस्या सा / ओ तन्निक्षिप्तम तन्तुमंततमिवकृतम प्रजानाम / तन्मेमनइतिव्याख्यातम् // 5 // सुषारथिः / यन्मनः मनुष्यान / नेनौयते प्रत्यर्थन्नयति / कथमिव मुषारथिः कल्या शिवम् For Private And Personal Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir णासारथिः अश्वान इव / यन्मनुष्यान / यच्चमन: सुषारथिरिव / अभौशभिः प्रग्रहै: वाजिनववेजनवतोश्वानिव / यमयतौतिशेष: / हेउपमे एकवनयनमन्यत्ननियमनमर्थः यच्चहृत्पतिउम् / तत्रोपलधेः / यच्च अजिरञ्जरारहितम् यच्चजविष्ठम अतिशयेनगन्त / तन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु // 6 // पितुन्नु / अन्नस्तुतिः / उष्णिगनुष्टुव्वार्भा / द्वितीयोईनः प्रथमंत्र्याख्यायते यच्छब्दयोगात् यसापितोः अन्यस्वस्तिः त्रिस्थानः इन्द्रः ओजसावलेन / त्वम् / / इव // हुत्प्रतिष्ठं स्वदंजिरचविष्ठ न्तन्न् मनः शिवसङ्कल्प्प मस्तु // 6 // पितुन्नु // स्तोषम्मुहोम्माणुन्तविधीम् // वस्यचितो व्योज॑सावृत्त्रंबिपर्वमुईयत् // 7 // अन्चित् // अन्विदनुमतुत्व विपर्वविपर्वाणम विगतसन्धिवन्धनं कृत्वा / व्यमर्दयत् विविध मटितवान् / तम् पितुम अनम नुरनर्थकः / स्ताषमस्तौमि / महःमहतः धर्माणधारयितारम / तविषौम तविषयाः इतिविमक्तिवात्ययः / तविषौतिवलनाम / तव विकर्मणः वलस्य // 7 // अन्वित / चतस्रोनुष्टुभः / अनुमन्यासै अनुमन्यस्व / इदितिनिपात: पादपूरण: / हेअनुमते। त्वम् / For Private And Personal Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir शु. शंचसुखंच न:अस्माकम् कृधिकुरु हेअनुमते / क्रत्वेक्रतवे संकल्पाय / दक्षायतत्समृदये संकल्पसिद्धयेच / न:अस्मान् हिनुगमय / प्रणाषितारिषः / प्रतारिषः प्रवईयच न: अस्माकमायू षि // 8 // अनुनः / अनुमन्यताम् / न:अस्माकम् अद्यअनुमति: यन्तम् देवे यन्तियेषु / अग्निश्चअनुमन्यताम / हव्यवाहन: हविषोवोढा / भवतंभवतामितिपुरुषव्यत्ययः / सम्मन्न्यासशचनस्लधि // क्रत्वेदायनोहिनुप्पणुऽआऽषितारि ष // 8 // शतम् // 1800 // अनुन // अननोद्यानुमतिर्यजन्दुवे घुमन्न्यताम् // अग्निश्चहव्यवाहनोभवतन्दाशुषमयः॥ 6 // सि नौवालुिपृथुष्टटुके // सिनौवालिपृथुष्टटुकुवादेवानामसिखा // दाशुषहवींषि दत्तवतेयजमानाय / मय:सुखरूपौ // 6 // सिनीवालि / सिनीवालीदे-8 अपनी / हेसिनीवालि / हेपृथुष्टुकेपृथुसंयमितकैशभारे / माहास्तुतिर्वा पृथुष्टुका / यात्व'देवानाम् असिभवसि स्वसाभगिनी। तांत्वांवबौमि / जुषख प्रौत्यापरिग्रहीष्व इव्य हविः / आहुतमभि-0 For Private And Personal Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir हुतमग्नौ / प्रजांच हेदेविदिदिड्ढि / दिशअतिसृज देहि नःअभ्मभ्यम् // 1 // पञ्चनद्यः सरस्व2 तीम् / नदीदेवतायाः पञ्चनद्यः दृषहती शतट्रश्चन्द्रभागाविपाशरावती त्यादिकाः / सर खतीम् अपियन्तिअपिगच्छन्ति / सस्रोतसः / समानानिस्रोतांसि यासां तास्तथोक्ताः / सरस्वतौतु / तुशब्दोवधारणार्थः / सरस्वत्येवपञ्चधा / सोसाचस्वदेशेभवत् भवतिसरित् नदी / जुषवहन्ध्यमातम्प्रजान्दैविदिदिड्ढिन // 10 // [10] पञ्चन हाः // पञ्चनद्यः सरस्वतीमर्पियन्तिसस्रोतस // सरखतीतुर्पञ्च / धासोदेशभंवत्सरित् // 11 // त्वमग्ने // प्रथमोऽअङ्गिराऽऋषि? वो देवानामभव शिवः सखा // तवंतकवयो विद्मनापसोजायन्तम तस्यांहिसारस्वतानि सत्राणिभान्ति // 11 // त्वमग्ने / चतस्राग्ने व्यः। जगत्यो अन्येत्रिष्टुवजुष्टुभो। हेअग्ने त्वम्प्रथमआद्यः अङ्गिराःषिः अभवः / त्वचप्रथमः देव देवानामभवः / शिवःकल्याण: सखासमनख्यानः। किञ्च तबव्रतेकर्मणिवर्तमाना: कवयःकान्तदर्शना: / विद्मनाअपस: अपइतिकर्मनाम / विदितकर्माणः / अजायन्तसंहता:मरुतः। भाजल्यः ऋष्टयःखड्गा For Private And Personal Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir येषांते भाजदृष्टयः / योहिशव जयति भाजन्तेतस्यायुधानि // 12 // त्वन्नः / विष मोयमंत्र: साध्याहाः। त्वंन:अस्माकम् हेअग्ने आश्रयइतिशेषः / अथैवंसति / तव हेदेव / पायुभिः पालनैः धैयाबलम्विभिः पालिता:सन्तः आस्महे / किञ्च मघोनोरक्ष धनानिरक्ष। तन्व: शरीराणिचरक्ष। हेवन्द्य बंदितव्य / कस्मात्पुनस्त्वमेवमुच्यसे / यत:स्वभावतएववातातोकस्यपुरुतोभ्राज॑दृष्टय // 12 // त्वन्नः // त्वन्नोऽअग्ग्नेतर्वदेवपायुभि मघोनौरक्षतुन्न्वश्च्चवन्ध // त्रातातोकस्यतनयुगामुस्यनिमेष र क्षमाणुस्तवते // 13 // उत्तानायाम // भराचिकित्वान्सुय प्प्रवौं / तावृषणञ्चजान // अरुषस्तूंपोरुशदस्यपाजऽइडायास्प्पुचोवयुनेजर वस्य / तनयेतनयस्यपौत्रस्यच। गांचअसि / कथम् / अनिमेषम् रक्षमाणः / प्रमादमकुर्वन् क्षमाः / एवंचेत् मृदुहृदयतमोसि / तवव्रतेतवकर्मणि वयंस्थाम। अन्यादेवता: परित्यज्यत्वामेॐ वपरिचरामदूत्यभिप्रायः // 13 // उतानायामव / द्वितीयोईच:प्रथमव्याख्यायते योग्यत्वात / योयम 53 अरुषस्तूपः / ज्वालासंघातमूर्तिः / यस्यचास्य रुशत्याजःदीप्त बलम् / यश्च इडाया:पृथिव्याःपुत्रः / / For Private And Personal Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir यश्च वयुनेप्रत्ताने कर्तव्येअजनिष्टजात: तमग्निम् / उतानायाम् अरण्याम्ञवभर / अवाचीनंहर। चिकित्वान्जानानः अरण्यावीर्यमितिशेषः। किन्तदीर्यमितिचेत् / सद्यः प्रवीताषणंजजान। सद्यएवप्रवीताकामितासती वृषणंवर्षितारंसेक्तारं युबानसर्वकर्मक्षमंजनयतीति // 14 // इडयास्त्वा / इडया:पृथिव्याः त्वाम् / पदेदेवयजनाख्थे / वयम्नाभानाभौ पृथिव्याअधि / उतरनिष्ट // 14 // इडायास्वा॥ पुटेश्यन्नााथिव्याऽअधि। जातवेदो निधोमबग्नेहुन्न्यायुब्बोढवे // 15 // प्रम॑न्न्महे // शवमानायंशु षाङ्गषङ्गिर्वणसेऽअङ्गिरस्वत्॥ सुवृक्तिभिस्तुतऽग्मुियाया! वेद्य / नाभिकाभवति तद्दिषयमेतत् / हेजातवेदः जातप्रज्ञान निधीमहिस्थापयामः / हेअग्ने हयायवोढवे हविषोवहनाय // 15 // प्रमन्महे / चतस्रऐन्यस्त्रिष्टुभः / प्रमन्महप्रजानीमः / शबसानाय / वलमाविष्कुर्वते / शूषवलम् / आऑषम्आघोषंस्तोमम् / गिर्वणसेदेवाय / कथमिव / अङ्गिरखत् / अङ्गिरसातुल्पमनानायच / सुवक्तिभिःस्तुवते / सुबक्ताभिःशो भनाभिः For Private And Personal Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir स्तुतिभिः / स्तुवन्तीतिविभक्तिव्यत्यय:सामर्थ्यात् / ऋग्मियायऋङ्मयाय स्तुतिमयाय / अर्चनीया. यच / वयम्अर्चाम: अर्कम् उच्चारयाम:मंत्रम् / नरेनरूपाय। विश्रुताय। शौर्यवलदानादिलवख्यातये // 16 // प्रवः / सामाहितीयोईच:प्रथमव्याख्यायते। येनसाम्मा न:अस्माकम् / पूर्वपितरःपदनाः आत्मसत्तत्ववेदिनः / अर्चत्तःस्तुबन्तः अङ्गिरस:ऋषयः गाःअबिन्दन् / आदिमार्कन्नरेविरथुताय // 16 // प्रवः // प्रवोमुहेमहिनमोभरद्ध्वमाङ्ग ष्यशिवसानायसाम॥येनानुहपूर्वपितर पटुज्ज्ञाऽअञ्चन्तोऽअङ्गि रसोगाऽअविन्दन् // 17 // इच्छन्तित्त्वा // मोम्म्यासुसायासुन्न्व त्यरश्मीनलब्धवन्तः / सहिसाम्रालोकः / तत्साम। प्रभरध्वम् / माहरध्वम् / व:पथमाबहुवचनस्यस्थानेवादेशः / यूयम् हेपुत्रपौत्रपौत्राः / महेमहतेइन्द्राय / महिमहत्त्वम् / नमः शिवम अन्नम् आष्यम् स्तोमस्यचहितम् साम / पुभरध्वम् / सबसानाय / वलमभिलषमानाय // 17 // इच्छन्तित्वा / इच्छन्तित्वाम् / सोम्यासःसोमसंपादिनः / सखायःसमानख्यानाः / कथंसमान For Private And Personal Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir TOPyaro ख्यानाः / श्रुतौ। दयावेदेवाः। अहेवंदेवाः / अथयेब्राह्मणाःशुश्रुवांसोनूचाना: तेमनुष्यदेवाइति / केनप्रकारेणइच्छन्ति / सुन्वन्तिसोमम् अभिषुगवन्तिसोमम् / दधतिप्रयांसि / प्रयइत्यबनाम। धारयन्तिच हबिर्लक्षणान्यन्नानि / किञ्च / तितिक्षन्तेअभिशस्तिंजनानान् / मनोवाकायसंयता क्षान्तिपराः / अभिशस्तिन्दुवचनजनानांसहन्ते / अथैवत्वामिच्छताम् इन्द्र / त्वत् त्वत्त:शकासात् आसमन्तावावेल / कःचन। चनोनिपातोपर्थे / हिरनर्थकः / कोमि। प्रकेत: तिसोमन्दधतिष्प्रयांसि // तितिक्षन्तेऽअभिस्तुिजानामिन्ट त्वदाकञ्चनहि प्रकृतः // 18 // नत // दुरपडमाचिङ्गजा स्यात्तुप्प योहिहरिवोहरिब्भ्याम् // स्त्थुिरायबघराणेसर्वनाकुतमावुकतारमा पज्ञानविशेषः / अत्यर्थभवति / यजमानानामितिशेषः // 18 // नते / नहितेतव टूरेपिपरमापरमाणिविपकृष्टदेशानि। रजांसिस्थानानि / एवंचेत / आप्रयाछियायाहि ततस / हेहरिवः हरिख्यामअश्वाभ्याम् / किमर्थमस्थिरायदृढसौहदाय। वृषोसे / सवनाकृतमा / सवनानिकृतानिमानि। किञ्च। युक्ताःअभिषवकर्मणि / ग्रावाणः / समिधानेसमिधामानेच अग्नौ 164. For Private And Personal Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahay Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir आहबनीयाख्ये आहुतयःहोव्यन्ते / अतश्चआयाहि // 16 // अषाढंयुत्सु / अषाढम्असोढम / युत्सुयुद्धेषु। पृतनासुसैन्येषु / पग्रिम् / पृपालनपुरणयोरित्यस्यैतद्रूपं नतुप्रापूरणइत्यस्य / पप्रिंपालनशीलम् / स्वर्षाम्वबिंसनोतिसतथातम् | अप्साम्अपःसनोतिसंभजते सतथातम्जनस्थगोपाम् / वलस्यगोप्तारम् / भरेषुजाम् / जयतेरेतद्रूपंनतुजानतेः। संग्रामेषुजतारम् / सुक्षिवाणः समिधानेऽअग्नौ // 16 // अोढंग्युत्सु // पृतनासुपप्रिस्तु, मुप्प्सांबुजनस्यगोपाम् // भुरेषजासुक्षुितिठ-सुप्रश्रवसञ्जयन्तु / न्त्वाम मदेमसोम // 20 // [10] सोमोधेनुम् // सोमौधेनुन्सोमोऽत्र तिम / सुनिवासम् / श्रबसम्कल्याणकर्मकर्तृत्वेनप्रसिद्धम् / जयन्तत्वाम्अनुमदेम। मदेर्मोदनार्ट६ स्यग्रहणम / परसैन्यानिजयन्त त्वांदृष्ट्वा उत्माद्यन्ते तत्दृष्टाप्रहृष्टाःस्थाम हेसोम // 20 // सोमौधनुम् / सोमःधेनुन्ददाति। सोमएवअर्वग्तमश्वम् आशुम्शीघ्रगतिंददाति / सोमएवचवीरंपुत्रम् कर्मण्यम्कर्मणिसा ददाति। तमेवविशिष्टि। सादन्यसदनसाधुम् / विदथ्यं विदथेयरे For Private And Personal Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir साधुम / सभेयम् सभामर्हतिसभेयस्तम् / पिटश्रवणम् पितुरनुशासनेचस्थितम् विनीतमित्यर्थः / / * यःयजमान:ददाशत्अमेसोमायहविः तस्मैसोमोधेन्वादौन्ददातीत्यभिसंवन्धः // 21 // त्वमिमाः। / हेसोम त्वम् इमा:ओषधीः विश्वा:सर्वाः अजनयः जनितवानसि त्वम् अप:अजनयः / त्वञ्चहै गा:अजनयः / त्वम्ाततन्थ आततवानसि उठविस्तीर्णमन्तरिक्षम् / त्वज्योतिषावितमोववर्त्य / बन्तमाशुसोमोडोरङ्गम्मण्यन्ददाति // सादन्यबिटुत्थासभेयं सम्पतृिश्श्रवणुंथ्योददाशदस्म्मै // 21 // त्वमिमा: // त्वमिमाऽओषधी सोमविश्वास्त्वमुपोऽअजनयुस्त्वङ्गा: // त्वमातिन्थोवन्तरिक्षन्त्व। ज्योतिषावितमौव्ववर्ण // 22 // देवेनन // देवेननोमनसादेव विटणोषितमः / त्वमेवादित्यात्मनातमोपनयसि / सर्वात्मत्वेनस्तुतिः // 22 // देवेननः / देवेनेतिप्राप्ते तदितलोपश्चान्दसः / देवेनमनसामहन:अस्मभ्यम् / रायोभागन्धनस्यभागम् / सहम्शव्दःबलवचन: सान्तः तत्र अकारागमछान्दसः / हेसहखन् अभियुध्य / युध्यतिर्गत्यर्थानांमध्ये For Private And Personal Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahay Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur, Gyanmandir पठ्यते अन्तर्भावितण्यर्थश्चगृह्यते / अभिगमयदेहीत्यर्थः / एवंदानप्रवृत्तत्त्वांकश्चित्यतिवध्नीयादित्य। तआह / माचत्त्वाम् आतनत् / तनोति:प्रतिवन्धार्थ: / प्रतिवधातु कुतस्त्वमेवमुच्यसइतिचेत् / ईशिषेवोर्यस्य यतस्त्वं स्वकीयस्थवीरकर्मगा: ईशिषेईश्वरीयस्त्वमित्यभिप्रायः / किञ्चउभयेभ्यः / / प्रचिकित्सउभयलोकप्राप्त्यर्थ व्याधापगमंकुर्वित्यभिप्रायः / गविष्टौ गोशब्देनानदालोकोभिप्रेतः / र स्वर्गेषणायाविषयभृतायाम् अस्मान् प्रचिकित्स। देवंमनःप्राप्य लब्धधना अरोगाश्च यथासोमरायोभाग सहसावन्नुभियुंड्य // मात्त्वातनुदौशिघकोयं स्यो। भयेभ्युप्पचिकित्सागविष्टौ // 23 // अष्टौञ्चि // अष्टोव्यक्खा कुकुर्भः पृथिव्यास्त्रीधन्युयोजनासप्तसिन्धून् // हिरण्याक्षस म्वगंयास्यामस्तथाकुर्वितिवाक्यार्थः // 23 // अष्टौव्यख्यत् / चतस्रःसाविल्यः द्वितीयाजगतीविष्टE भोन्याः / य:अष्टौव्यख्यत् प्रकाशितवान्काकुभःदिश: / चतस्रोदिश: चतस्रोवान्तरदिशः / पृथिव्याः शिवम , संबधिनीः / स्त्रीधन्व / त्रीणिधन्वानि इतिशब्दसमाधिः / धन्वत्यन्तरिक्षनाम तदुपलक्षितावितई रावपिलोको एह्यते / छवि गोयान्तीतियथा / यश्च त्वौन्लोकाव्यख्यत् / यश्चयोजनान् योजनगव्यतिक्रोशादौन मानविशेषाव्यख्यत् / यश्चसप्तसिन्धून् यश्चसप्तसमुद्रान् व्यख्यत् / सोयंहिरण्याक्षः For Private And Personal Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahay Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsug Gyanmandir हिरण्यसदृशाक्षः / अमृतदृष्टिा सवितादेव: आअगात्आगतु / किंकुर्वन्नित्यताह / दधत्स्थापयन् रत्नानिरत्नमयानि धनानि / दाशुषेहवौषि दत्तवतेयजमानाय / वार्याणिवरणीयानि // 24 // हिरण्यपाणिःसविता। सुवर्णपाणिः सविता। विचर्षणिः विविधयष्टा कृताकृतप्रत्यवेक्षकः / उभेद्यावापृथिवी अन्तःअधिकरणश्रुतेर्योग्यक्रियायाअधधाहारः / मध्येस्थितः ईयतेएतियदा / अथतदा अपामौवांवाधते अमौवांव्याधिम् / वेति विगतिकर्मा / गच्छति सूर्यसूर्यरूपमवस्थाय। वितादेवऽआगाधनादाशुषेवा-णि // 24 // हिरण्यपाणिस विता // विचर्षणिरुभेद्यावापृथिवीऽअन्तर्रायते // अपामौवाम्बाधत बेतिसूर्यमुभिकृष्मोनुरजमाद्यामृणोति ॥२५॥हिरण्यहस्तोऽअसुर / सुनीथः सुमृडोक स्वायात्त्वाङ्॥ अपुसेधन्वक्षसोवातुधानानस्त्या ततोस्तमनकाले। अभिकृष्ण नरजसाद्याटणोति / अभिमृणोतिअभिव्याप्नोतिकृष्णो नरजसातमोलक्षणेन। द्यायलोकम् // 25 // हिरण्यहस्तः / द्वितीयोईर्च:प्रथमव्याख्यायतेसामर्थ्यात् / य:अपसेधन अपगमयन् रक्षसःयातुधानाचप्रमुखकारकान् / अस्थात्उदस्यात् / देव: प्रतिदोषंगणानः / श्रुतिस्मृतिविहितधर्मपराङ्मुखानां यावन्तोदोषास्तावतःस्तुवन उच्चारयन् गणयन For Private And Personal Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsya Gyanmandir य. उपभोगार्थमित्यभिप्रायः / सोयंसविता हिरण्यहस्तः हिरण्यदानार्थहस्तौयस्यसतथोक्तः / रूपेणवास्तुतिः। असुरःरादाने असून्प्राणान्ददातीत्य सुरः। सुनीथः नौथास्तुतिः। कल्याणस्तुतिः / 3 सुमडीक:साधुसुखयिता। स्ववान आत्मीयज्ञातिधनवचनः स्वशब्दः / यातुआयातु / अाअवीगञ्च नःअस्भनभिमुखः // 26 // येतेपन्थाः / येतेतवपन्थाः पन्थानइतिवचनव्यत्ययः / हेसवितः हेव प्रतिटोषङ्गणान: // 26 // येते // येतुपन्थाङसवितापूर्व्यासों रणव मुक्तताऽअन्तरिक्षे // तेभिन्नॊऽअयपथिभिः सुगंभौरक्षांच नोऽअधिचब्रूहिदेव // 27 // उभार्पिबतम् // उभार्पिबतमश्वि पूर्व्यासः पूर्वेष्वपिकालेषुभवाः / अरेणवः अपांशुलाः / सुकृता:साधुकृता: धावा / अन्तरिक्ष तेभिः तैः नःअस्मान् अद्यनयेतिशेषः / पथिभिः सुगभिः साधुगमनैः अन्नपानप्रभूतैर्गच्छत: शिवम् रक्षाच रक्षच नःअस्मान् / अधिचब्रूहि / अङ्गीकृत्यचहि / यथाएतेअम्मदीयाइति / यद्दा यदस्माकं हितंपथ्यं तदधिब्रूहि उपदिश हेदेवदानागुणयुक्त // 27 // उमापिवतम्। आश्विन्य For Private And Personal Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir 8 स्तिस्रः एकागायत्रीद्वेलिष्ट भी। उभौसोमंपिवतम् हेअश्विनौ / पौत्वाचसोमम् उभावपि नःअर स्मभ्यम् शर्मशरणं प्रयच्छतम्दत्तम्। किञ्च अविट्रियाभिः दृबिदारणे अविदीर्णाभिः अनवख ण्डिताभिः अतिभिरवनैः रक्षतमितिशेषः // 28 // अप्पस्वतीम् / अपइतिकर्मनाम कर्मवतीम 3 हेअखिनौ वाचम् अस्मेअस्माकम कृतंकुरुतम् / किञ्च नःअस्माकम् हेदसौदर्शनीयो हेवृषहै णौवर्षितारौ युवानावित्यर्थः / मनीषांमनसःसंबन्धिनौमिच्छांच / अप्नस्वतीमेवकृतम् / कस्मात्पु नोभानुशर्मयच्छतम् // अविद्रियाभिरुतिभिः // 28 // अप्नंस्वतीम शिश्वना // अप्नवतीमश्विनावाचमुस्म्मकृतन्नौदलावषाणामनी पाम् // अद्युत्येवंसुनिलयेवांवृधेर्चनोभवतुंब्वाजसातौ // 26 // भिरक्तुभिः // हाभिरभिड परिपातमुस्म्मानरिष्टेभिरश्श्विना नरहमेवंत्रवीमि / यतःप्रत्येअवसे / द्यतेभवमवसमन्नत्यम् / तादागतं कण्यं नभवति अतएवमुच्यते / अटूात्ये अन्नेनिमित्तभूते / निह्वयेवाम्आयामियुवाम् / आगत्यच / वृधर्वईनायच न:अस्माकम्भवतम् / वाजसातौ वाजसंभजननिमित्तभूते संग्रामेच यज्ञेवावईनायैवभवतम् // 26 // टूाभिरक्तुभिः / द्युभिरहोभिः कारणभूतैः अनुभिः अक्तुरात्रिः रात्रिभिश्च कारणभूताभिः / For Private And Personal Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Maha Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsyi yanmandir अधिकरणविवक्षावा | कालेहि टूाषुरात्रिषुवा। परिर्वतःपातम् परिपालयतम युबामअस्मान् / नकेवल न्यविरक्तुभिः परिपातमस्मान् / किंतर्हि / अरिष्टे भि:अनुहिंसितैः हेअश्विनी- 4 सौभगेभिः / भगइतिधननाम। शोभनैश्चधनैः / योजयतमित्यवाहारः / तत् नःअस्माकमित्रः बरुणश्च मामहन्तांपूजयन्नाम / अदितिश्चसिन्धुश्च पृथिवीचउतअपिचद्यौः // 30 // आकृष्णेनेतिव्यार सौभंगेभिः ॥तन्नौमित्रोव्वरुणोमामहन्तामदिति सिन्धुःपृथिवीऽ तद्यौ // 30 // [10] आकृष्णेन // रजसावर्त्तमानोनिवेशयन्नमृतुम्म य॑ञ्च // हिरण्ययेनसवितारथेनादे॒वोर्यातिभुवनानिपश्यन् // 31 // आरात्रि // पार्थिवुरजः पितुरंपायुिधामभिः // दिवः सदासिर ख्यातम // 31 // आरात्रि / राबिदेवत्यावृहती / हेरावियात्वम् आअप्रायिवाअपूपुर:आपूरयसि। शिवम पार्थिवरजःपृथिवीसंबन्धिलोकम् पितुः मधामस्थलोकस्यधामभिःस्थानःसह / याचत्वम् दिवःदालो। कस्यसदांसिस्थानानि / वृहतीमहतीविति ठसआक्रामसि / यस्याश्यते / तथापिआवर्तते / त्वेषम For Private And Personal Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahav Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir हाप्राग्भारंदीप्तंबातमःतांत्वांस्तुमः / 32 // उषस्तत्। उषोदेवत्यापरोणिक् / हेउष: तचित्रंचायनीयं 2 महनीयंधनमाभर आहरअस्मभ्यम् हेवाजिनीवतिअन्नवति / येनधनेनतोकंच तनयंचपौत्रंच धामहे दधमहे // 33 // प्रातरग्निम वहुदेवत्याजगती। प्रात:शब्दो विासाबचनः / प्रात:प्रात: पुन: बहुतोवितिष्ठमऽआत्त्वेषंवतततमः // 32 // उषस्तत्॥ उषुस्तच्चि त्रमा गरम्मत्स्यवाजिनीवति // येनतोकञ्चतनयच्चधामहे / / 33 // प्रातरग्निम् // प्रातग्निपातरिन्द्रठ हवामहेप्प्रातम्चिावरुणाप्पा तरश्विनाप्रातर्भगम्पूषणब्रहमणस्प्पतिम्प्रातसोममुतकहहु / वेम // 34 // प्रातुर्जितुम्भगम् // प्रातर्जितम्भगमुग्यहुंचेमज्य पुनः / अग्निञ्च इन्द्रच मित्रावरुणौच अश्विनौच / हवामहतिप्रत्येकमभिसंवध्यते / प्रात:भगञ्च / पूषणञ्च ब्रह्मणस्यतिञ्च प्रातःसोमम् उतअपिच स्ट्रम हुवेमआयाम: // 34 // प्रातर्जितम् / पञ्चभगदेवत्यास्विटुभः / योविधतेत्यादि मन्त्रोव्याख्यायते उद्दिश्यमानत्वात् / य:भगः विधर्ताविधारयिता 165. For Private And Personal Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahay Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsyr Gyanmandir 3 QC my सर्वस्यजगतः / आध्रश्चिद्यम प्रतिषेधस्यदीर्घत्वंछान्दसम् / आधः धेटप्तौ / अदृप्तःबुभुक्षितः / अथ वाधियते: आध:दरिद्रः चिच्छब्दोप्यर्थे / दरिद्रोपियंभगंमन्यमान: मन्यतेरर्चतिकर्मा / पूजयन्वार्थसिद्धये भगम्भक्षिइत्याह उदयम्भक्षयस्व भजस्वइत्याह / तुरश्चित् आङोध्याहारः / आतुरोपि आतुरोपि यंभगं मन्यमानःभक्षीत्याह / उदयंभनयस्वदूत्याह / यहातुरशब्देन यमोभिधीयते / , सहितू णंग्राशिनोहन्ति / यमोपि यंभगं मन्यमानः भनीत्याह / उदयंभक्षयस्वत्याह / सहिम्युबमर्दिोबिधा // आध्रश्चियम्मन्न्य॑मानस्तुरच्चिदाजा चियम्भगम्भक्षोत्याह // 35 // भगप्प्रणेतः // भगाप्रणेतुर्भगुसत्त्य / राधीभगुमान्धियुमुदवाददन्नः // भगुप्पनौजनयुगोभिरश्वर्भगुप्त दिवसान् प्राणिनोगणयति। राजाचित् राजापियंभगंमन्यमानः भनीत्याह उदयंभक्षयस्व भजस्वेत्याह / तदुदयेहि राजावातौसिद्धिः / तंप्रातर्जितम् प्रातर्जयिनंभगम् उग्रमुद्गर्णदानमा शिवम् हुवेमाह्वयामः / वयम् ऋषिरात्मानमाह | पुत्रम अदितेः // 35 // भगप्रणेतः / भिग हेप्रणेतः प्रकर्षेणनयस्यकतः / हेभग हेसत्यराधः सत्यमविनाशिराधोधन यस्य / सतथोक्तः / For Private And Personal Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsuryanmandir www.kobatirth.org भाग इमांधियंप्रज्ञाम् उत्अवउद्गमय / यथासूक्ष्मानान् पश्यामः तथाकुर्वित्यभिप्राय: / ददत् न:देहिअस्मभ्यम्धनम् / भगप्रनोजनयगोमिरपूर्व: / हेभगप्रजनयन:अस्मान गोभिः 0 अश्वैश्च / हेभग नृभिःमनुष्यः नवन्तःस्थामभवेम // 36 // उतेदानीम। उतअपिच इदानौं• भगवन्तः स्यामादित्यप्रसादात् / उतअपिचप्रपित्त्व प्राप्त अस्तमनकाले भगवन्तःस्थाम / उत नृभिन्नुवन्तः स्याम // 36 // उतेदानीम् // उतेदानीम्भगवन्तः स्यामोतप्रपित्त्वउतमोऽअन्नाम् // उतोदितामघवन्त्सूर्यस्य र बुयन्देवानानुमतौस्याम // 37 // भगऽएव // भगवाऽअस्तुदेवा। हस्तेन यम्भगवन्तस्याम // तन्त्वभिगुसइज्जौहवीतुिसनौभग अपिच मध्ये मध्यन्दिने अन्हांभगवन्तःस्थाम। उतोदिता उतअपिच उदिताउदयकाले हेमघवन् धनवन् सूर्यस्यभगवतः प्रसादादेववयम् देवानांसुमतौकल्याण्यांमतौस्यामभवेम // 37 // भगएव / हेदेवाः भगएव भगवान्धनवान्अस्तु / किमन्य देवताविशेष धनयुक्तरदाभिरित्यभि For Private And Personal Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir प्रायः। तेनभगप्रदत्तेन धनेनवयंभगवन्त.धनवन्तः स्यामभवेम / एकंवाक्यम् / हितोयेना वर्चेनहितोयम् एकवाक्यतायाप्रसंभवात् / तंत्वा / उपरितद्शवणात् यदोबत्तिः / यंत्वाम् / हेभग 1 सर्वइत् सर्वएवजोहयोति अाह्वयतिकामसिद्धये। सन:अस्माकम् हेभगपुरएताअगयायौ सर्वकाकार्येषुभवह // 38 // समध्वराय / समनमन्तप्रवीभवन्ति याउषस: अध्वराययज्ञाय / अग्निहोवादिकर्मणे कवमिव / दधिक्रावेव / यथादधिक्रावाअश्वः शुचयेपदाय / शुचिपदम् अग्न्यारएताभवेह // 38 // समंध्वराय // समंवरायोषसोनमन्तद। विकावेवशुचयेपुदायं // अर्वाचीनबसुविटुम्भगन्नोरथमिवारश्ाब्वा, जिनुऽआवहन्तु // 38 // अप्रावतीग्र्गोमती // अप्रश्ावतोग्र्गोम धानार्थकर्त्तव्यमितिसन्नमते / एवंताउषसः / अर्वाचीनम् / अनन्यगतमनस्कम् / वसुविदंच / - वसुधन विन्दतौतिवसुवित् तंवसुबिदम् / भगम् श्रादित्यम् नःअम्मान प्रति / रथमिव / अश्वाः बाजिन: वेजनवन्तः अन्न वन्तावा / आवहन्तु भागमयन्तु // 38 // अखावतोः / उपोदेव- 660 त्यात्रिष्टुप् / अश्ववत्यःगोमत्यःन:अस्माकम् / उषासःवौरवत्यःसदम् सदाकालम् उच्छन्तु / उच्छौ For Private And Personal Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavrulan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Granmandir विवाशे। विवासयन्तु तमः / भट्राभन्दनौयाः / एतमवश्यायजलंदुहानाः। विश्वतः प्रपौताः / प्याय:पोआदेशः / सर्वत:आयायिताः धर्मार्थकामैः / इदानीमत्विग्विषयःप्रश्नः। यूयंपातपालॐ यतखस्तिमिरविनाशैः सदान:अस्मान // 40 // पूषन तव / हे पौष्णयौ गायत्रीविष्ट भौ। हेपूर पन तवव्रतेकर्मणि वर्तमानाक्यम् नरिष्य मनविनश्येम कदाचनकदाचिदपि / अन्यच्च / तीनऽउषासोब्बीरवतोऽसदमुच्छन्तुभवाः // घुतन्दुहानाविश्वतः प्रपौतायुयंपातखुस्तिभिः सदानः // 40 // [10] पूषन्त // ब्रुते / / एक व्यन्नरिष्ष्येमकदाचन // स्तोतारस्ताडुहम्मसि // 41 // पथस्थुङ परिपतिम् // पुथस्थुङपरिपतिंवचुस्याकामैनकुतोऽअब्भ्यानडुकम्॥ र स्तोतारोपि। तेतव / इहस्मसि / स्म / इदन तोमसि इतौकारउपजनः // 41 // पथस्पथः / / यःपथस्पथः मार्गस्यपरिपतिम् अधिपतिमित्य पसर्गव्यत्ययः / वचस्यावचनेन वेदीक्त नअभिमुखीकृत: / कामेनच्छयाच अभिमुखीकृतः / प्रभाानट् / अनशिर्व्याप्तिकर्मा * अभिव्यापोति / For Private And Personal Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahrain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsol. Gyanmandir अर्कम् / स: न:अस्मभ्यम् रासददातु / शुरुधः / पूर्वपदान तलोपः / शुचंसंतापंसाधनाभाबकृतं यानिरुधन ति साधनानिभवन ति तानितथोक्तानिलिव्यच्यत्ययेन / चन्द्राग्राः। तान्ये व 34 विशिषयन ते / चायनौयागाणि / धियंधियंमोषधाति / कर्मकर्मवचनः प्रसाधयति / पूषा // 42 // चौणिपदा / वैष्णव्योगायच्यौ / द्वाभ्यामेकवाक्यम् / य:विष्नुःयनः बौणिपदानि / विचक्रमेनासनोरासच्छुरुधश्च्चन्द्राग्याधियंन्धियसौषधातिप्प्रपूषा॥४२॥ चौणि पदाविर्चवक्रमविष्रमुग्ोपाऽअदाभ्यां // अतीधर्माणिधारयन् // 43 // तहिप्पास // तट्विप्पासोबिपन्यवोजागृवासुसन्धिते ॥विष्मी, Do न तवान् अग्निवायादित्याख्यानि / गोपा:गोपायिताच समस्तस्यजगतः / अदाभ्यःअनुपहिस्यः / अतःअस्मादेवपदत्वयात् धर्माणि | धर्म शब्दउभयलि नः अईचादौहिगणेपठितः / धर्मान धारयन / कर्नपर्यायोगा। अतः एभ्य:पदेभ्यः कर्माणिधारयन् // 43 // तद्विप्रासः / तस्यविष्णोयत्तस्य यत्परमंपटं ब्रह्मा लक्षणम् / तत् / विप्रासःब्राह्मणाः विपन्यवः मेधाविनः / जागृवांसः For Private And Personal Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir असुप्ताः अप्रमत्ताः / ज्ञानकर्मसमुच्चकारिणः / समिन्धते। संदीपयन्ति उपासनेनिर्मलीकुर्वन्ति // 3 // तवतो। द्यावाष्टथिवौयाजगतौ / येद्यवाप्टधिव्यौघृतवत्यौ उदकवत्यौ / भुवनानामभिथिया / भूत जातानामभ्याथयणौये। उ/विस्तौणे / पृथ्वोप्थुले / मधुदुधे / मधूदकंतस्यदोध्यौ / सुपेशसासुरूपे / ते वरुणस्यादित्यस्थधर्मणा धारणेन / विष्कमिते / स्कभोति ढौकरणार्थ: / दृढी यत्परमम्मुदम् // 44 // घृतवतीभुवनानाम् // घृतवतीभुवनानाम भिरिश्रयोङ्खपृत्ष्टवीमंधुदर्घसुपेशंसा // द्यावापृथिवीवरुणस्यधर्माणा विष्कभितेऽअजरभूरितिसा ॥४५॥येन सपत्नाऽअपुतभवन्त्विन्टा ग्निब्भ्यामवंबाधामहेतान् // बसवोगद्दाऽआदित्याऽउंपरिस्पृशम्मी है कृते / अजरेजरारहिते / भूरिरेतसा / वहुरेतस्के। सर्वभूतानांहिरेतांसि ताभ्यामेवोत्पद्यन्ते // 4 // येनः / जगतौलिङ्गोक्तदेवता / येन:अस्माकम् सपत्ना:शत्रवः / अपतेभवन्तु / अपगतवीर्यानिरुद्यमास्तभवन्तु / ततः / इन्द्राग्निभ्याम् अववाधामह अवनाशयामः तान्शच न / किञ्च वमव:रुद्राः For Private And Personal Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir आदित्याश्च / उपरिम्पृशम् उपरिस्थितःस्पृशतौति उपरिम्पृक् आधिपत्य वस्थितः पादेनस्पृशतीति उपरिस्पृक्तं उपरिस्पृशम् माम् उगच / चेत्तारंज्ञातारंचन यस्य / अधिराजम् अधिपतिमीश्वरंच अक्रन् कृतवन्तःकुर्वन्तु वा / 46 // अानासत्या / आश्विनौजगती। आयातम् आगच्छतम हेनासत्यावखिनौ / विभिरेकादशे:जयत्विं गनिदेवैः सहितौभूत्वा। तदुक्तम् / अष्टौबसवइत्यादि / दूहमधुपेयम् / ग्ग्रञ्चेारमधिगजमैक्क्रन्॥४६॥ आसत्त्या // चिभिरैकादशैरि हढेवेभिर्खातम्मधुपेय॑मशिश्वना॥ प्रायुस्तारिष्टुन्नौरप७िसिमक्ष सेतुन्देषोभवतन्सचामा // 47 // एषः // एषस्तोमोमरुतऽहु / मधुःसोमःसोमपानम्प्रति / एत्य च / प्रायुस्तारिष्टम् / प्रतारिष्टं प्रवइयतम् श्रायुः / नोरपांसिमक्षतम् / मृजूष्शड्डौ / रपःपापमुच्यते / निर्मक्षतम् / निःशोधयतम नाशयतम / रपांसिपापानि / सेधतं देषः / विधुगत्याम् / गमयतम् दौर्भाग्यम् भवतंच / सचा भुवा सहभुवौ सर्वकार्येषुसंयुक्तौ // 47 // एषवः / मारुतौबिष्टुप् / हेमरुतः एषस्तामः व: युष्माकम् For Private And Personal Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra इयं वगौः सत्याच प्रियाच / मम। मान्दाय॑सा ऋषःसमेति / स्वस्वामिसंवन्धम् / दृणातोति मान्दायः / यहा / मान्दारयति मांदारयतीत्येवं य:सपत्नानां प्रत्ययं दधातिसमान्दार्यः तसा / ममच / मान्य सामानार्हसा / कारोः कर्तु: तेस्तामंतांचगिरम उपश्चल / एषा, यासौष्ट / आइषायासोष्ट / श्रायासोष्ट / अायासौरन इतिवचनव्यत्ययः आगच्छत / इषा यङ्गीन्दिावस्यमान्यस्य॑कारो // एषाांसीष्टतुन्न्वे बयाब्द्यिा - मेघवृजनचीरदानुम् // 48 // सुहस्तोमासहईन्दस // मुहस्तोमा / सहछन्दसऽआवतः सुहप्प्रमाऽर्षय सुप्प्तदैव्याः // पू पाम्पन्या ( अन्नन निभित्तभूतेनाहूयमानाः / तन्वेवयास / शरौरस्थित्यर्थम वयोदृढकर्तुम / अाया सौष्ट / किन्च / विद्याम लभेमहि / इषमन्नम जनंबलंच जोरदानुजीवितदाटकर्मच // 48 // स हस्तामाः / ऋषिसृष्टिप्रतिपादिकाविष्ट प् | सहस्तोमा:स्तोमसहिताः / सहछन्दस: छन्दस्सहिताः / प्रातःअाच्छन्देनकर्माभिधीयते / श्रद्धासत्यपधोनानां कर्मणाममुष्ठातारः / सहप्रमाः / 166. For Private And Personal Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir प्रमाणंप्रमा / शब्दप्रमाणपरीक्षणतत्पराः ऋषयःसप्त / सप्तक्षयः इतिप्राप्य त्ययः / मर हाज कश्यप गौतमाबिविश्वामित्र जमदग्नि वसिष्ठाः / देव्याः प्रजापतेः पाणाभिमानिनः एतेभिव्य ज्यमानाः / पर्वेषाम अधस्तनकल्पोत्पन्नानां अवसिताधिकाराणाम / पन्धाम पन्धानम् / अनुदृश्य अवलोज्य / धौराः अन्वालेभिरे अम्बालभन्तः सृष्टवन्तः सष्टियनम कथमिव / रथयोनरशमौन / रथेसाधु : रथाःसारथिः / नकारउपमार्थीयः / यथामारथिरिष्टदेशपाताय प्रथममश्वरमनुदृश्युधौरांऽअन्न्वालेभिरेग्थ्योनरमम्मीन् // 46 // आयुष्यबछ / स्यम् // आयुष्ष्य॒ वच॑स्य॒स्रायस्प्पोषुमौद्भि'दम् // दुर्गहिरंगयुब्ब खुज्जैचायाविशतादुमाम् ॥५०॥नतत्॥ नतासिनपिशाचा, श्मोनालभते स्पति एवन्तेपिसृष्टियन सृष्टवन्तः // 48 || आयुष्यम् / तिस्रःहिरण्यस्तुतिः उष्णिक्शकरोनिष्ट भः / यदिदहिरण्यम् / आयुष्मम् आयुषेहितम् / वर्चसा वर्चमेहितम् / रायस्पोषम धन साधईयिट / श्रौनिदम उद्वेट / धनसाम्बर्गमावा / वर्चस्वत् अन्नसंयुक्तम् / तत् नैत्रायविजयाय / प्राविशतात्माविशतु / उःपादपुरणार्थ: / माम / मप्यवस्थान करोतु / 50 / / For Private And Personal Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir नतत् / नतत्हिरण्यंरक्षांसि नचपिशाचाः तरन्तिहिंसन्ति / देवानांपथमनम श्री जाहिएतत् / यतश्चदेवानामोजः पथमजम् अतः योविभर्तिदाक्षायणं हिरण्यम् / दाक्षायणं ॐ हिरण्यम् / दाक्षायणमित्यलंकारविशेषः। सदेवेषुदेवलो केषु कुरुते दीर्घमायुःचिरंदेवलोकेवसतीत्यर्थः / समनुष्ये षुकुरुतेदीर्घमायुः / सचमानुष्यमायुरतिक्रम्यजीवतीत्यर्थः // 51 // यदास्तरन्तिदेवानामोजः प्रथमुजयेतत्।योविभर्तिदाक्षायणहि रंण्य सवेधुंकणुतेटोग्र्घमायुः समनुष्ष्येषुकृणुतेटीग्र्घमायुः // 51 // बदावनन् // वदानन्दाक्षायणाहिरण्य शतानौकायसुमनस्य बध्नन् / यत्हिरण्यम् आवभन्आवद्धबन्तः / दाक्षायण: दक्षस्यापत्त्यानिबहूनि / नडादिपा / ठात्पक / शतानीकायराने / शतंवहूनिअनौकानिसेनायस्प सतथोक्त स्तम्मै शतानीकाय / सुमनस्थमाना: शोभनेनमनसाध्यायन्तः / तहिरण्यम् / मेमयि / आत्मनीतिसम्पगुक्तिः / अहम् आवध्नामि / शतशारदाय / शतंशरदांजोबनाय। आयुष्मान्च जरदष्टिः जरामश्नुते For Private And Personal Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir OC व्याप्नोतीतिजरदष्टिः / यथायेनप्रकारेण असंभूयासम् तथावधनामौतिशेषः // 52 // उतनः / वहुदेव त्यात्रिष्टुप / उतअपिच / नःअस्माकम् / बचांसि अहिर्बुध्न्यःशृणोतु / अजएकपात् सट्र:प्राणोबाशृणोतु / पृथिवीचसमुद्रश्वशृणोतु / श्रुत्वाचअवन्तु / विश्वेचदेव: कतावृध: सत्यवृधः यजधोवा / हुवानाआहूयमानाः / स्तुताश्च / मन्त्राः मंत्र रितिविभक्तिव्यत्ययः / कविशमाना: // तन्नाआवध्नामिशुतरदायायुष्म्माज्जुरदष्टुिर्यथा सम् // 52 // उतनः // उतनोहिर्बुध्न्यः शृणोत्त्वजएकपात्प। थुिवीसमुहः // विश्वेदेवाऽयंताबोहुवानास्तुतामन्त्राः कविशु। स्ताऽवन्तु // 53 // इमागिरः॥ हुमागिरऽआदित्येभ्योघृतस्यूँ ॐ स्तामेधाविशस्ता: अबन्तुपालयन्तु // 53 // इमागिरः / आदित्यदेवब्यात्रिष्ट प् / याइमा गिरः वाच: आदित्येभ्यःतस्नू: / दृतग्रस्राविणौः घृतप्रसारिणीर्वा / घृतहोमसहचरिताः / सनात् चिरचिरकालम् राजभ्यःचिरराजभ्योवा / जुह्वानु चाजुहोमि ।ताश्च / शृणोतुमित्रः अर्यमाच / शिवम् For Private And Personal Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org भगश्च नःअस्माकम् / तुविजातश्चधाताच / सहिवहुश: प्रजायते / वरुणश्चदक्षश्च अंशश्च एतेसर्यविशेषाः // 54 // सप्तऋषयः / अध्यात्मवादिनीजगती / सप्तप्राणा: षडिन्द्रियानिमनः सप्तमानि / प्रतिहिताःप्रतिनिहिताः शरीरव्यवस्थिता:येतएव / सप्तरक्षन्ति / सदंसदा3 कालम्शरीरम् / अप्रमादम् प्रमादमकुर्वाणः / तेएवसप्ताप: आपनाःव्यापनाः। खपत:पुरु सुनाट्टाभ्योजुहब्बाजुहोमि // शृणोतुमिचोऽव॑माभगोनस्तु, विजातोवरुणोदक्षोऽअश: // 54 // सुप्प्तऽऋषयः // सुप्तऽ षय: प्रतिहिताः परौंरेमुप्प्तरक्षन्तुिसदमप्रमादम् // सुप्तापुस्खा षस्थलोकम्युः / लोकशब्देविज्ञानात्माहृदयाकाशप्रतिष्ठितउच्यते / तत्रचसबि स्थानः / तस्यामेवावस्थायाम्जायत:जागरणंकुर्वाते / अस्वप्नजी / ययोनजायतेस्वप्न:तौतथोक्तौ। सत्रसदौ / सबसतांत्राणेकृतावस्थानौ / देवौजीवितदातारौ प्राणापानौ // 55 // उत्तिष्ट / तिस्रोब्राह्मणस्पत्यः हे वृहत्त्यौटतीयात्रिष्टुप् / हेब्रह्मणस्पते उत्तिष्ठ उझैभवप्रारब्धकार्योभव / यस्मात् For Private And Personal Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir देवयन्तः देवान्कामयमाना: यजमानाः त्वाभवन्तम् ईमहे / . याचामहेआगच्छति / अवन्तमागच्छन्तम् उपप्रयन्तु उपसंगम्यागच्छन्तु / ममतःसुदानव: कल्याणदानाः / त्वञ्च हेइन्द्र प्रायःप्रकर्षणशीघ्रोभव / सचा / सहसमनाय // 56 // प्रननम् / न नमितिपादपूरणः / प्रवदतिप्रोच्चारयति ब्रह्मणस्पतिः मन्त्रम्उक्थ्यम् उकथ्यमितिशस्त्रमुच्यते / तत्रमन्नमन्मंत्रःउक्थ्यः / पतोलोकमौयुस्तत्त्रजागृतोऽअस्वप्नजीसत्रुसदौचदेवी॥५५॥ उति / ष्ठुब्रहमणस्प्पतेदेवयन्तस्त्वेमहे // उपप्प्रय॑न्तुमुरुतः सुदानबुड्डू न्द्रप्णाशूभवासा // 56 // प्रनूनम् // प्रनूनम्ब्रहमणस्पतिर्मन्च हत्त्युकथ्यम् // यस्मिन्निन्ट्रोवरुणोमित्वोऽअर्बुमादेवाऽओकासि चक्कुिरे // 57 // ब्रहमणस्प्पते // ब्रहमणस्पतत्त्वमस्ययुन्तामुक्त शिवम् कथंभूतोसौमंत्रः / यस्मिन्मत्र इन्द्रश्च वरुणश्च अर्यमाच अन्येदेवाश्च ओ कांसि / ओ कइति- 665 निवासनाम / निवासानि चक्रिरेकृतवन्तः // 57 // ब्रह्मणस्पते हेब्रह्मणस्पते। त्वम् असाजगतः / For Private And Personal Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir यन्ता / एवञ्चेत् विज्ञापयामि / सूक्तस्यसाधुवचनस्प वोधिबुधास्त्र अवगतार्थोभव / तनयञ्च / अपत्यानिच जिन्व / जिन्वतिःप्रीतिकर्मा / प्रौणीहि / विखंच तत्भद्रभन्दनीयम् अस्माकम् अस्तु / अत्अवन्तिपालयन्ति देवाःत्वत्प्रसादात् / बृहत्महत् ऊर्जितम् / वर्दम / दीयताभुहूँ स्यवोधितनयञ्चजिन्न्च // विश्वन्तव्यदवन्तिटुवाबृहदेमब्बि में दर्थसुवीरा // बाडुमाबिश्वाविप्रवकम्योनः एितान्नएतेन्न / स्यनोदेहि॥५८॥[१८] इतिसंहितापाठेचतुस्त्रिंशोऽध्यायः॥३४॥ * अपेतः // अपतीयंन्तुपणयो सुरनादेवणीयः // अस्य। ज्यतामिति / विदथेयने / सुवीराःकल्याणपुवा:सन्तः / अथचतस्र प्रतीकोक्ताः / इमाविश्वाभुवनानिजुह्वत् / विश्वाकर्माविमना / योन:पिता / अन्नपतेन्नस्यनोदेहीति // 58 // इति उव्वटकृती मन्तभाष्य चतुरिंशत्तमोध्यायः // 34 // ओम / अपेतः। (1) पित्याध्यायः / आदित्यस्पाषं देवानांवा / गायत्रीव / पलाशशाखयाव्यहति / (1) यस्त्रि शेऽध्याये सवमेधसम्बन्धिन कियतो मन्त्रानुक्का प्रवायुमच्छ त्यारभ्य अनारभ्याधीतामन्त्रानुक्का चतुस्त्रिोऽध्यायेता * अपेतोदशापाद्यहादशदोहाविंशतिः / For Private And Personal Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir नेव समाप्य दानी पञ्चविशेऽध्याये पिटमेधसम्बन्धिनो मन्त्रा उच्चन्त / स च पिमेधो मृतस्य वर्षास्मरणे भवति वर्षमतौतु विषमवर्षेषु भवति एकतारकनक्षत्र चित्रादौ दर्श वा ग्रीष्म शरदि माघे भवति // पित्वमेधं करिष्यता हि जन कुम्भेऽस्थिसञ्चयः कार्यः / मृतस्य च यावन्तोऽमातापुत्रपौत्रास्तावन्तः कुम्भाः कर्मदिने आनेयाः कुम्भ भ्योऽ धिकानि छत्राणि च / ततोऽरण्ये कुम्भे कृतमस्थिसञ्चयन ग्रामसमोपे समानीय शय्यायां कुम्भ संस्थाप्याहतवस्त्र कद शेन संवेध्य लोहमयवादिने षुवाद्यमानेषु वीणायां च वाद्यमानायां मृतस्य पुत्रपौत्रा उत्तरीयेयं जनैश्चास्थि कुम्भ वि जयन्तस्विस्त्रि: प्रदक्षिणं परियन्ति / स्त्रियोऽपीति के चित् / रात्र: पूर्वमध्यापरभागेषु तांदने बहुव्रदानं कुवन्ति नृत्यगोतवादित्राणि च कारयन्ति अस्थिकुम्भायात्रमुपहरन्ति च / तत उपप्रातरस्थिकुम्भसाहताः पूर्वोक्तान्कुम्भान् छ. वाणि चादाय ग्रामाद्दक्षिणस्यां वहिर्गच्छन्त्यध्वय यजमानामातमाः / श्मशानान्तं कर्म कुवतो यथा रविरुदयेत्तथा रा पावारब्धव्यम् तत्र वने गत्वा ग्रामान्मार्गादश्वस्थतिस्वकहरिद्रु स्फ जकविभोतकश्लेष्मान्तककोविदारादिभ्यश्च दूरे अन्य क्ष गुल्मादिकृते ऊपरे वोदकावणे दक्षिणप्रवण समे वा सुखकारिणि रम्य वनादुदकाहा पूर्वभाग उत्तरभाग वा वर्तमाने गर्तवति वोरणढणवति प्रदेश प्रमशानायें दिक्कोणं पुरुषप्रमाण क्षेत्र मिमीते / पैटक्यां दिपुरुषं समचतुरन कत्वा करणीमध्ये षु शङ्कव: स समाधिरिति शुल्वोक्तविधिना तच्चतुरसमुत्तत: पवाञ्च पृथुभवति / तत्र साधनप्रकार पूर्वदक्षिणपाश्वयोनवाङ्गलानि स्वत्रयोदशांशेनाङ्ग लचतुर्थभागसहितानि पुरुषप्रमाणमध्ये न्य नानिकार्याणि पश्चिमोत्तरपा पूर्वयोस्तावन्ति पुरुषप्रमाणादधिकानि तथाहि पुरुषमाचक्षेत्रस्यक्ष्णया प्राची कृत्वा तत्प्रान्तयोः शङ्का निखाय सार्धाष्टदशांगुलहीनापुरुषडयप्रमाणामुभयतःपाशां रज्जु मध्यमदेशे सलक्षणां कृत्वा पूर्वापरयोः शक्तोस्तस्या: पाशीप्रतिमुच्य मध्यलक्षणन दक्षिणत प्रायम्य दक्षिणः कोण: साधनोयः ततःसार्धाष्टदशाङ्गलाधिका पुरुषहयप्रमाणां रज्जुमुभयतःपाशा मधालक्षणयुतां कृत्वा शक्तोः पाशौ प्रतिमुच्य मधालक्षण नोत्तरत प्रायम्योत्तरकोण: साधा इति / ततः पूर्बादिकोपषुपालाशशमीवारणाश्ममयाश्चत्वारः शङ्कवो निखेया: / एतत्क र्वतां निकट कश्चिद्यजमानपुरुषस्तुणपूलकमुच्छुित्ता धा रयेत् / कर्मसमाप्तौ ग्रहमागता तं रहेधूच्चयेत् प्रजाहा / इतयादि बोधाम् // For Private And Personal शिवम Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir अपेतोयन्तुपणयः / अपयन्तु दूत:स्थानात् पणय:असुराः / असुनाश्च असुखकराः / देवपीयवश्च / पयतिहिंसाकर्मा / देवानांहिंसितार: देवहिषः / किमिति / असायजमानसा लोकः स्थानमत्र सुतावत: सोमाभिषवंकृतवत: / परंयजुः / द्युभिरहोभिरक्तुभिः / [शब्देन श्रुतौऋतवउ ता: ऋतुभिः अहोभिः अक्तुभिःरात्रिभिः व्यक्तस्पष्टीकृतम् / यमःददातु अवसानम् अवस्वत्यस्मिन्नि। लोक सुतावंत // द्युभिरहोभिरक्तुभिर्व्य वक्तंय्युमोदंदात्त्वबुसान मस्म्मै॥१॥ सुविताते // सुवितातुश रेडभ्य पृथिव्याँसोकमिच्छतु // तस्म्मैयुज्यन्तामुस्रियाः // 2 // बायु पुनातु // सविताऍनात्त्व - व्यवसानम / अस्मैयजमानाय // 1 ।जपति / सबिताते गायत्री / सविता। तेतव शरीरेभाः हा शरीराणामितिविभक्तिव्यत्ययः / पृथिव्याम लोकंस्थानम् इच्छतु। नहिसवित्राऽननुज्ञातेनावस्था तुशक्यते / द्वितीयंवाक्यम् / तस्मैक्षेत्राय शरीरायसंस्कारार्थम् युज्यन्तांशरौरे उस्त्रिया:अनड्डाहः॥२॥ वायु:पुनातु / चतस्र:सीता:कर्षति / चतुर्भिर्यजुभिः / वायुः पुनातु विदारयतु / सवितापुनातुवि 167. For Private And Personal Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir 1. दारयतुअग्ने(जसा दीप्त्याविदारयतु / सूर्यस्थवर्चसा भाजिष्णुतयाविदारयतु / विमुञ्चत्यनडुहः / विमुचान्तामुनिया: विमुच्यन्तांशरीरात् उमियाः / अनड्वाहः // 3 // अश्वत्येवः इतिव्याख्यातम् // 4 // 35 (1) शरीराणिनिवपति / सवितात / गायत्री / सवितातेतव शरीराणिअस्थीनि / मातुः पृथिव्याः ग्ने जसासूय॑स्युव-सा // विभुच्च्यन्तामुस्रियाः // 3 // अप्रश्व त्थेवः॥ अश्वत्थेवोनिषद॑नम्पुर्णेवोचतिष्कृता // गोभाजुऽत्कि लासथ्यत्सुनवथुपूरुषम् // 4 // सुबितातु // शरौंराणिमातुरुपस्थ / ऽआपतु // तस्मै पृथिविशम्भव // 5 // प्रजापतौत्त्वा // देवयाम उपस्थेउमगे भावपतस्थापयत्। तौअस्थिरूपाययजमानाय सविवाउप्ताय / हेप्टथिबि शम्भवमुखरूपाभव // 5 // प्रजापतीत्वा / यजुः कण्डिकाः / प्रजापतीत्वाम् देवतायाम् उपोदके शिवम् उपसमीपे उदकंयस्यसतथोक्तः / लोकेस्थाने निदधामि / असावितिनामग्रहणम अनुदात्तत्वा (1) का. सवितात इति शरीराणि निवपति मध्ये इति / 21, 4, 8 / तस्य पुरुषमात्रस्य क्षेत्रस्य मधी शरीराणि मृत स्वास्थीनि राशीकरोतिएतच्च सूर्योदयकालकर्तव्यम् / / 667 For Private And Personal Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir दामन्वितम् / तद्यथा हेदेवदत्त / अपनः शोशु चदघम् / अपेत्य न:अस्मान् अत्यर्थदहतुपापम् / बेष्टुन् / यहा / प्रजापति: अपशोशुचत् अत्यर्थदहतु / नोस्माकमघंपापम् // 6 // प्रत्यागतेजपति / परंमृत्योः बिष्ट प्मत्युदेवत्या / हेमृत्यो परंपन्थानमाश्रित्य / अनुपराइहि / परा-15 मुखोभूत्वा आगच्छ / तशब्द नदर्शयति / योसौतेतवस्वभूत: अन्य:इतरः देवयानापिटर पोदकेलोकेनिदधाम्म्यसौ॥अपनु शोशुचदुघम्॥६॥ परम्मृत्यो॥ पर म्मृत्योऽअनुपरहिपन्थाँय्यस्तेऽअन्न्यऽइतरीदेवयानात् // चक्षुष्म्भते / शृण्वततेब्रवीमिमानः प्रजा रिपोमोतब्बीरान् // 7 // शंव्वातः // शहितघणुिशन्तेभवन्त्विष्टका॥शन्तेभवन्त्व॒ग्नयु पार्थिवासो यानाख्यः / अपिचचक्षुष्मते शृण्वतेतेवबौमि / षष्ठ्यर्थेचतुर्थो / चक्षुमतःशृण्वत: तवब्रवीमि / अतिशयार्थवचनम् / नहितस्यादृष्टमश्रुतं चास्ति / माच नःअस्माकंग्रजांरीरिषः / हिंसीथाः / मोतवीरान्पुत्रान् // 7 // यथार्थंकल्पयति अनुष्टुप्हतीभ्याम् / शंवात: / मुखरूपो वात: तेभवतु / शंहि तेघृणि: सुखरूपश्च तेघृणिर्भवतु / घणिरित्य हनामहौतिखाध्यायार्थम् / मुख For Private And Personal Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir रूपाश्च ते तवन्तुइष्टकाः / मुखरूपाश्चतेभवन्तु अग्नयःपार्थिवाः पृथि यांभवाःपार्थिवासः / माचत्वाम् अभिशूशुचन् अभितापयन्तु // 8 // किञ्च / कल्पन्तांतेदिशः / लप्तास्ते दिशोभवन्तु / तुभ्यम् आप:शिवतमाः भवन्तु / तुभ्यं भवन्तु सिन्धवःसमुद्रा:शिवतमाः / अन्तरिक्षशिवंतुभ्यं भवतु / कल्पन्तातेदिशः सर्वाः / आदरार्थं पुनर्वचनं कात्यार्थवा // 6 // अश्मन्चतीरीयते / / मात्त्वाभिशूशुचन्॥८॥ कल्प्य॑न्तान्ते // दिशुस्तभ्यमापः शिवत मास्तुभ्यम्भवन्तुसिन्धव // अन्तरिक्ष शिवन्तुभ्युङ्कल्प्य॑न्तान्ते / दिशसर्चीः // 6 // अम्मन्न्वतीरीयतुसरंभध्वमुत्तिष्ठतुप्प्रतर तासखाय // अाजहीमोशिवावेऽअसंज्छुिवान्न्य मुत्तरेमाभिवा अश्मन स्त्री स्त्रीन्विकिरन्ति ताअभ्युत्तरन्ति / विष्ट ब्वैश्वदेवी / अश्वन्वती पाषाणवतो इयं-शिवम् नदीरीयतेगम्पते अस्माभिःविषमम् / अतोवोमि / संरभध्वम् / संरभश्चोत्तरणाय प्रयत्बकरणम् / उत्तिष्ठत अभि नुखाभवत / प्रतरत / हेसखायः / किमित्यादरः / अनाजहीमः / For Private And Personal Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir परित्यजामः / अशिवा.अशान्ताः / येअसन् स्युः / शिवान्बाजान् अन्नविशेषान् वयम्अभ्युत्तरेम // 10 // अपामार्गेणापमृजति / अपाघम् / अनुष्टुप् / हेअपामार्गत्वम् अस्मत्अस्मतः। अपसुव अपगमयअघंपापमानसम् / अपगमयच किल्विषंकीर्तिभेदकम्पापमेवकायिकम् / / अपगमयच कृत्याम् अभिचारम् / अपगम यचरपः / रपोरिप्रमितिपापनामनीभवतः / वाचिजान् // 10 // [10] अयाघम् // अपाघमकिल्विषुमर्पकृत्यामपोरपः // अपामार्गत्वमुस्म्मदपंदु ध्वन्यसुव // 11 // सुमिन्त्रि यानः // सुमि। चियानऽआपऽओषधयांसन्तुटुर्मित्रि यास्तस्म्मैसन्तुबोसम्मान्वेष्टि / यचंयन्दुिधम्मः // 12 // अनुदाहमुन्न्बारंभामहेसौरभेयध्वस्त कम्पापम् / अपगमयच दुःस्वपन्यम दःस्वग्नेप्रभवंफलम् दुःस्वप्न्यम् // 11 // सुमिलियानतिव्याख्यातम् // 12 // अनडुत्पुच्छमन्वारश्चाआगच्छन्ति / अनड्डाहम् / आनडुहीअनुष्टुप् / उत्तरोईः प्रत्यक्षतःअतोयच्छब्दाध्याहारणसामर्थ्यम् / यत्वाम्अनड्वाहम्अन्वारभामहेआलभा For Private And Personal Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु० य. महे / सौरभयम्सुरभ्याअपत्यम् स्वीहीथोढक् / स्वस्तयेअविनाशाय / सत्वम् नःअस्माकम् इन्द्र वादेवेभ्यः देवनामितिविभक्तिव्यत्ययः / वन्हिौढासंतारणश्चभव // 13 // उद्दयमितिव्याख्या- तम् // 14 // (1) मर्यादाया एवलोष्टमादृत्यान्तरणतोरणेनिदधाति / इमञ्जीवेभाः / त्रिष्टुप् मृत्यु ये // सनुऽइन्द्रऽवदेवेन्योबन्निः सुन्तारणीभव // 13 // उद्दयम् // उड्यन्तम॑सुरूप्परिस्वः पश्यन्तुऽउत्तरम् // देवन्टेवुवासूर्यमगन्न्म ज्योतिरुत्तमम् // 14 // हुमञ्जीवेभ्यः॥ परिधिन्दधामिमैषान्नुगा दपरोऽअर्थमेतम् // शुतज्जीवन्तुशरदः पुरुचीरन्त मृत्युन्दधता र देवत्या / इमलोष्ट जीवभाः अर्थाय / परिधिम् परिधीयत इतिपरिधिः तम्परिधिम दधामि स्थापयामि / किमर्थमितिचेत् / मागात्मागच्छतु एषांजीवानांमधो अरपः नुक्षिप्रम / वेदोक्ताके दायषोर्वाक् पिटलोकम् एतमर्थपुरस्कृत्य सर्वथाशतंजीवन्तशरदः / पुरुची: वह्वञ्चना: दाना(१) ग्रामश्मशानान्तर मर्यादानोष्टं निदधातोमं जीवेभ्य इति / स्वनिवासग्रामस्यचमधा मर्यादालोष्ट महत्तरं मृत्खण्डं निदधाति॥ For Private And Personal Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir धायनयागानुकलाः। अन्तर्मत्युन्दधताम् अन्तर्दधातुमत्युम पर्वतेनइवलोष्ठे न // 15 // जुहोतिहाभ्याम / अग्नऽआयू ए षि। व्याख्यातम् // 16 // आयुष्मानग्ने / वसुरन्ताविष्ट प् / इमा बाहेतियजुः / हेअग्नेयःत्वम् आयुष्मान् तत्वांब्रवीमि / हविषावधान: वर्द्ध मान: घृतप्रतीकः / प्रतीकंमुखम् / घतयोनिः घतसंमटस्थान: एधिभव। उत्तरवेद्यांधारणाभिप्रायम्पवतेन // 15 // अग्नऽआयूंषि // पवसुऽआसुवोर्जुमिपंचन॥ ई आराधस्वदच्छनाम् // 16 // आयुष्म्मानग्ग्ने॥ हुविषावृधानोवृत। प्रतीकोघुतयोनिरेधि // घृतम्पीत्त्वामधुचारुगव्य॑म्पुितेवपुत्रमुभिर क्षताढिमान्त्स्वाहा // 17 // परीमे // गामनेषतुपटुग्निम हृषत॥ मेतत् घृतंचपीत्वा मधुमधुरसम / चामसुगन्धि / गव्यङ्गोविकारसम्भूतम् / पिताइवपुत्रम् अभिरक्षतात् / तुह्योस्तातङ्डाशिषान्यतरस्थामितितातङादेशः / अभिरक्ष इमान्जीवान् स्वाहासुहुतमस्तु // 17 // अथैषांपरिधौन्दधाति / अनुष्टुभा / परौमेगामनेषत / इमेजौवाः परि For Private And Personal Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir सर्वत: गाम्नेषत / नयतेलुडि सिचएतद्रूपम् परिणीतवन्त: गाम अनडुत्पुच्छालम्ब नाभिप्रायमेतत् / पर्वग्निमहषत / पर्यहृष्यत हरतेरेतद्रूपम् / परिहृतवन्तः अग्निम् / यस्मिनग्नावेतत्कर्मक्रियते तमग्निंपरिहतबन्तः / अहारेणोपासनं निरस्थतीत्ये तदभिप्रायमेतत् / देवेषुऋत्विक्षु / अक्रत / अकृषतेतिप्राप्तेसिचोलोपश्छान्दसः // श्रव.धनं दक्षिणालक्षणम् / अथेदानीम् कृतकृत्यान् इमान कः कोनाम / आदधर्षति / आधर्षयितुम आक्रमिदेवेष्ष्वक्रतुश्वु कऽइमाँ // 2 ॥ऽआदधर्षति // 18 // व्याटम ग्निम् // अव्याटमुग्निम्प्रहिणोमिदूरवमुराज्ज्यङ्गछतुरिष्प्रवाह // तुम् शक्नुयात् अशक्यप्रतिक्रियाह्येतेवर्तन्त इत्यभिप्रायः // 18 // अहारेणोपासनं निरस्यति / क्रव्यादमग्निम् / त्रिष्टुम् / अथ येनपुरुषंदहति सक्रव्यात् / क्रयादमग्निम् / परिहिणोमि प्रेषयामि दूरमपुनरागमनाय / यमराज्य गच्छतु रिप्रवाह: / रिप्रमितिपापनाम / रिप्रमृतं वहतिप्रापयति भस्मीभावमितिरिप्रवाहः / जपति / दूहग्रहएव अयम् इतरःक्रव्यादादन्यः शिवम For Private And Personal Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir जातवेदाः जातप्रज्ञान: देवेभ्य: हव्यहविःवहतु / प्रजानन् स्वमधिकारम् // 16 // वपांजुहोति / वहवपाम् / त्रिष्टुप् / वहप्रापय वपाम् हेजातवेदः पिटभ्यः / यत्रयस्मिन्प्रदेश एतान् पितॄन् वेत्यजानासि / निहितान् स्थापितान् पराकेपराक्रान्ते सुदूरेपि तस्याश्च यपायाः सकाशात् मेदसःकुल्यानद्यः निमृत्त्य / उपस्रवन्तु / तान्पितॄन प्रति / एषांचदातॄणाम सत्याअवितथाआशिषः संनम दुहेवायमितरोजातवेदादेवेभ्योहब्व्यबहतप्प्रजानन् // 16 // वह पाम्। वहब्बुपाञ्जातवेदः पिटम्योयनान्वेत्थुनिहितान्न्याके। मेटसह कुल्याऽउपतान्त्स्रवन्तुमुत्त्याऽएषामाशिघुडं सन्नमन्ताए / स्वाहा // 20 // स्योनाधिविनोभवानृक्षुरानिवेशनी। बच्छानुशर्मस न्ताम्प्रवीभवन्तु / स्वाहेतियजुः // 20 / स्थोनापृथिवि / पार्थिवीगायत्री / स्थोनासुखरूपा हपृथिविन:अस्माकम्भव / अनृक्षराच नृक्षरःकण्टक: अनृक्षराअकण्टका। निवेशनीच / साधुप्रतिछाना / किञ्च / यच्छानःप्रयच्छच न:अस्माकम् शर्मशरणम् सा था:सर्वतःपृथुः / अपनःशो 168. For Private And Personal Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शुच दधमितिव्याख्यातम् / / 21 / / अम्मात्त्वम् / गायत्रीयजुरन्ता एवाबाहुति: / अनिरुताग्नेयी। अस्माद्यजमानात् / हेअग्ने त्वम् अधिजातोसि यतःअतोत्रवीमि / अयंपुनर्जायमानः त्वत्त्त्वत्तः जायतानुत्पद्यताम् / असावितिनामग्रहणम् तद्यथा देवदत्तः। वर्गायलोकाय स्वर्गलोकप्रात्यप्प्रथा अनुशोशुचटुघम् / / 21 // अस्म्मात्वम्॥ अस्म्मात्त्वमधिजातो सिक्वयायताम्पुनः॥ सौस्वर्गायलोकायुवाहा // 22 // [12] इतिसंहितापाठपञ्चविशोऽध्यायः // 35 // * चंब्वाचम् // ऋचुव्वाचम्प्रबहामनीयजु ; प्प्रपद्यसामप्माण र्थम् / त्वत्तोह्ययंजायमान: त्वद्दश्यएवस्थादित्यभि प्रायः / स्वाहेतिसंप्रदानमस्तु // 22 // इति उव्वटकृतौ मन्त्रभाष्य पञ्चविंशत्तमोध्यायः // 35 // (1) इदानीं प्रवाग्निकाश्वमेधोपनिष त्मवद्दामंत्रा स्तान्व्याख्यास्यामः / तत्राग्निका उग्रश्चेत्य ( 1 ) का. शान्तिकरणमाद्यन्तयोः / ऋचं वाचमिताधायेन शान्तिकरण कार्यम् साधयाये मन्त्रपाठे प्रवर्दी मन्त्रादावस्याधयायस्य दर्शनात् // * ऋचवाचषोडशद्यौःशांतिरष्टौहोचतुर्वि: शतिः / शिवम For Private And Personal Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir वमादयः / तान्युनःपरमेश्यपश्यत् / प्राजापत्योविमुखइति तस्यमंत्रगणस्यसंज्ञा। अग्निठ हृद- येमेत्याश्वमेधिकाः आअध्यायात् प्रजापतेरापंम् / परिशिष्टं दध्यङाथर्वणोपश्यत् / दध्यङ् हवा आथर्बणइत्येवमादिकया श्रुत्यातद्भाव प्रतिपद्यते / ऋचं वाचम् / प्रवयं स्थादावन्तेच शान्तिकरणोधाय: / विश्वेदेवा आग्निकानामाश्वमेधिकानांच मंत्राणाम् दूहसमानातम् ई दिवाकौर्तिसामान्यात् / प्रथमकण्डिकायजुः / ऋचंवाचं प्रपदो प्रविशामियामिवा / एवंम्प्रपंडाचक्षुः श्रोच मद्य॥ ब्वागोजः सुहौजोमयिप्राणापानौ॥१॥ वन्न्में // च्छुिञ्चक्षुषोहृटयस्युमनसोवातिटसम्बहुस्प्पतिर्मे तह मनोयजुः सामग्राणंचक्षुः श्रोत्रमितिव्याख्येयम् / नहित्यौविद्या प्रपन्नग्य प्रवर्दी आयुषोविनाशंकुर्यात् / तथाजामन: प्राणः चक्षुः श्रोत्राणि प्रपन्नस्य सप्तदशं तत्प्रजापतेर्लिङ्गमुपलक्षितम् / अथै वसति / वाक् ओजोवल मानसं धृष्टतानाम / पुनरोजोग्रहणमादरार्थम् / एतदुक्तं भवतिवाक्च अतिशयिकमोजः प्राणापानौच सहएकीभूताः मयिवर्तन्ते ऽत:पवर्योस्मान्नहिनस्ति // 1 // यन्म वार्ह स्पत्यापंक्तिः / यन्म मम / छिट्रम्अवखण्डितम् चक्षुषःहृदय For Private And Personal Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir सावाहृदय ग्रहणे नबुद्विरुक्ता / मनमोवा अतिटराणम्अतिहिंसितम् प्रवर्गाचरणेन / वृहस्पतिः मम ततधातु / अथवंहस्पत्यनुराहोतानाम / शन:सुखरूपोस्मकम् भवतु / भुवनसाभृतजातसाय:पतिः योधिपतिःप्रवर्ग्यरूपोयत्नः // 2 ॥भूर्भुवःस्वः यजूषि। तत्सवितुरिति कयाधातु // शन्नोभवतुभुवनस्युवस्प्पतिः // 2 // भूर्भुवः॥ भूर्भ वः // तत्सवितुर्वरेण्यम्भरौदेवस्य॑धीमहि // धियोयोनः प्रचोद। यात् // 3 // कर्यान // कानपिच्चुवऽआभुवदूतीसुदाधसा // काशचिष्ठयाबुता // 4 // कस्त्वा // सुत्योमदानाम्माहिष्ठोमत्म दन्धसः // हुढाचिदारुजेच // 5 // अभीषुणा // सखौनामविताज रितुणाम् // शुतम्भवास्यूतिभिः॥ 6 / / कयात्त्वम्॥ कयात्वन्नऽजु नस्तिस्रश्च व्याख्याता: / दृषिकृतीविशेषः // 3 // // 4 // 5 // 6 // कयात्त्वम् / गायत्री।। 72 ऐन्द्रीअनिरुक्ता / हेवन्द्र कयाऊत्त्या केनवागमनेन त्वम् नःअस्मान् अभिप्रमन्दसे अभिमो शिवम् For Private And Personal Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir दयसि हर्षयसि / हेवृषसक्तः / कयाचऊत्या केनवागमनेन स्तोटभ्य: दातु धनानि आभर आहरसि / लडथैलोट / तत्कथय / येनतथानुतिष्ठामः // 7 // इन्द्रोविश्वस्य हिपदाविराट / / योयंमहावीर इन्द्रादित्योवा कस्याधिष्ठात्रीदेवता। विश्वस्यजगत: राजतिदेदीप्यते ईष्ठ वा। तसाप्रसादात् / अस्माकम् अस्तुद्दिपदेशचतुष्पदे / विपदाञ्चतुष्पदांचेतिविभक्तिव्यत्ययः // 8 // शन्नोत्याभिप्प्रमन्दसेवृषन् // कयास्तोटब्भ्य आर्भर // 7 // इन्द्रोवि पूर्वस्य // राजति // शन्नोऽअस्तुद्दिपदेशञ्चतुष्प्पदे // 8 // शन्नौमि वशंचणाः शन्नोभवत्वर्यमा ॥शन्नऽइन्द्रो हुस्प्पतिः शन्नोब्बि गणुरुरुकुम: // 6 // शन्नोवातः॥ पवता शन्नस्तपतुसूटवः // मित्रः / द्वे अनुष्ट भौ / महावीरप्रसादात् आदौच / शंसुखरूप: नोस्माकंभवतु मित्रः / शंचनःवरुणःभवतु / शंचनःभवतुअर्यमाशंचनःइन्द्रःबृहस्पतिः / शंचनःविषणुःउरुक्रमःउमविस्तीर्णःकमोय सासउरुकुमः / शेषदर्शितयाब्याख्य यम् // 6 // शन्नः / शंसुखरूप: नोस्माकम् बातःअपरुषः अव्या For Private And Personal Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir धिजनकश्च / पवताम् वातु / शंसुखरूपः अदहनःभेषजरूपश्च नोस्माकंतपतुसूर्यः / शन्नःसुखरूपश्चास्माकम् / पर्जन्यादेव: काशनिक्षाररहितंपवित्वमुदकम् भेषजकर्ट अभिवर्षतु / कानिक्रदत् / स्तनयित्न शब्दं कुर्वन // 10 // अहानिशम विपदागायत्री / अहानिदिवमाः शंसुखरूपा भवन्तु नोस्माकम् / शंसुखरूपा:रात्रीः प्रतिधौयताम प्रतिदधात्वस्मासुमहावीरः / शन्नई कनिक्क्रदेव पर्जन्योऽअभिवर्षतु // 10 // अहानिशम् // अहानिशम्भवन्तुनः शगत्त्री प्रतिधीयताम् // शन्नऽइन्द्राग्नी भवतामोभिः शन्नुऽइन्द्रावरुणागतहव्या // शन्नऽइन्द्रापूषणा व्वासातौशमिन्ट्रासोमा॑सुवितायुशंथ्यो // 11 // शन्न // शन्नौ शंसुखरूपौच इन्द्राग्नीभवताम् अवोभिःपालनैः सह / शन्नःसुखरूपौचास्माकम् इन्द्रावरुणा, इन्द्रावरुणो / रातहव्या दत्तहविष्कौभवताम् / शन्नःसुखरूपौचास्माकम् इन्द्रापूष्णौभवताम् शिवम् वाजसातौ अन्नसंभजनेनिमित्तभूते / शंसुखरूपौच इन्द्रासोमौभवताम् सुवितायसाधुगमनाय * साधुप्रसवायवा। शंयोः शमनायरोगाणाम यावनायष्टथक्करणायच भयानाम् // 11 // शन्नोदे है। For Private And Personal Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir बीः / अब्देवत्यागायत्री / सुखरूपाअस्माकम् देवी देव्याः अभिष्टयेअभिषेकाय अभीष्टायवा / आप:भवतु / पीतयेपानायच / शंयोः शमनाय रोगाणाम्यावनंपृथक्करणम पृथक्करणायभयादेवीरभिष्टयुऽआपोभवन्तुपीतये // शंयोरभिस्रवन्तुनः // 12 // स्योनाएथिवि॥नोभवानृक्षुरानिवेशनी॥यच्छानुशर्मसुप्पा।१३। आपोहि // ष्टठामयोभुवस्तानऽजुर्जेदधातन // मुहेरणायच / क्षसे // 14 // योवः शिवतमोरसस्तस्य॑भाजयतेहनः // उशतीरि वमातरः // 15 // तस्म्माऽअरम् // तस्म्माऽअरङ्गमामवोवस्युक्षया युजिन्न्वथ // आपोजनयंथाचन // 16 // [16] द्यौः शान्तिः // नांवा / अभिनवन्तुनःअस्माकम् // 12 // स्योनापृथिवौतिव्याख्यातम् // 13 // आपोहिष्टतितिस्रश्चव्याख्याताः // 14 // // 15 // 16 // द्यौःशान्तिः / याद्यालोकरूपाशान्ति: याचान्तरि For Private And Personal Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir क्षरूपाशान्तिः / याचपृथिवी / आपः ओषधयः / वनस्पतयः विश्वेदेवाः / ब्रह्मवयीलक्षण परंवा / सर्वशान्ति: / याचशान्तिरेवशान्ति: / याचस्वरूपतएवशान्तिः / सा। माममशान्ति , एधि / अस्त्वितिपुरुषव्यत्ययः / त्वत्प्रसादादित्यपेक्षा // 17 // दृतेठ हमा / दृतेयजुः / यौ शान्तिरन्तरिक्षु शान्तिः पृथिवीशान्तुिरापु शान्तुिरोषधय: शान्तिः // वनस्प्पतयः शान्तुिर्विश्व॑देवा शान्तुिर्ब्रहमुशान्तुि सर्वशान्तिः शान्तिरवशान्तुिः सामाशान्ति रेधि // 17 // तुट्टी हिमामित्वस्यमाचक्षुषासर्वाणिभुतानुसमौक्षन्ताम् // मित्तस्या * दृविदारण विदोणेपिशरोरेजरया / दुटुढौकुरुमाम् / कथमितिचेत् / मित्रस्यमाचक्षुषास र्वाणिभूतानिसम् ईक्षन्ताम् पश्यन्तु / अहमपि / मित्रस्य चक्षुषासर्वाणिभूता निममीक्षेपश्यामि / शान्तहिमित्रस्यचक्षुः / नवैमित्रकञ्चनहिनस्ति / नमित्वं कश्चनहिनस्तौति / शिवम् For Private And Personal Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एवमहिंस्यमाना अहिंसन्तश्च परस्परमट्रोहेण सर्वथा मित्रस्यचक्षुषासमौक्षामहे॥१८॥ दृतेहएह / यजुः। दृतेर्ट हमा। अतिशयाथं पुनर्वचनम् / ज्योक्चिरम तेतवसंदृशिसंदर्शने / जीव्यासञ्जोवे यम् आदरार्थम् पुनर्वचनम् // 16 // नमस्तेहरसेइति व्याख्यातम् // 20 // नमस्ते। हञ्चक्षणासर्वाणिभूतानिसमौक्षे॥ मित्तस्युचक्षुषासमोक्षामहे।१८। हतुव्हमा // ज्वोक्त सन्दर्शिजीव्यामुज्ज्योक्ती सुन्दृशिजीव्या , सम् // 16 // नमस्तुहासेधोचिषुनमस्तेऽअस्त्वयि // अन्ज्याँस्तेऽ / सम्मत्तपन्तुहेतयं पाबुकोऽअम्मस्यशिवोभव ॥२०॥नमस्ते।ऽअस्तु / ब्बिा तुनमस्तेस्तनयित्नवे॥नमस्तेभगवनस्तुवतुस्वःसमोहस॥२१॥ दे अनुष्टुभो। नमःतेतुभ्यम्अस्तु / विद्यतेविटुापाय / नमस्तेस्तनयित्नवे स्तनरिनुरूपाय नम: तेहेमगवन् अस्तु / यतःय त्मात् स्थःस्वर्गलोकमान्नुमसमौ हसेचेष्टसे / अमर्त्य त्यमित्यभिप्रायः // 21 // 169. For Private And Personal Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir यतोय तः / यन्माद्यस्मात् दुश्चरितात् अपाकममोहसेचेष्टसे ततस्ततः नःअस्माकम् अभयहार। किञ्च / शन्नः सुखमस्माकम् कुरुप्रजाभ्य: अभ पन्नःपराभ्यःकुरु // 22 // इतउत्तरं यज षि * व्याख्यायन्ते अाअध्यायात् / तत्रसुमिवियानइति व्याख्यातम् // 23 // तच्चक्षुः / योयंमहावीरोबतायतासमोहसेतीनोऽअभयङ्करु // शन्नः कुरुप्प्रजाभ्योभयन्न पशुब्भ्यः // 22 // सुमिन्त्रि यानः // सुमित्रि यानुऽापुऽओषधयसन्तु दुर्मिचियास्तस्म्मैसन्तुयोसम्मान्हेष्टियञ्चञ्चुयन्हुिम्मः // 23 // तच्चक्षुः // तच्चक्षुई वहितम्पुरस्तांच्छुकत्रमुच्चरत्॥पश्येमशरदःशुत जोवेमशुरदःशुत शृणुयाम शुरदः शतम्प्रर्बवामशुरदःशुतमदीना स्माभिस्तुतः / तत् प्रादित्य रूपं चक्षुः / देवहितम् देवैर्निहितं स्थापितम् देवानांवाहितम् / पुरस्तात्प्राच्यांदिशि / शुक्र शुक्लम् असंमृष्टं पाप्मभिः / शोचिष्मदा / उच्चरत्उदितम् / तत्प्रसादाच्च / पये म शरदःशतम् / जौवेमशरदःशतम् / शृणुयाम शरदः शतम् / प्रबवामशरदःशतम् अस्खलि For Private And Personal Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मशरदःशतम भूषश्चवतरंकालञ्च शरदःशतात् // 24 // तागिन्द्रियाभवाम ___ इति उचटकृतौ मन्त्रभाष्ये षट्त्रिंशोधयायः / / 36 / / स्वामशरदःशुतम्भूयंपच्चशुरदं शतात् // 24 // [8] इतिसंहितायांदोग्र्घपाठेषरिशोऽध्यायः // 36 // ___* दे॒वस्य॑त्त्वा // सवितुप्पसर्व प्रिश्वनो हुभ्याम्पूष्ण्णोहस्ता ब्भ्याम् // आदेनारिरसि // 1 // युञ्जतुमनः॥बुञ्जतमनऽउतर्वाच (1) महावीरसंभरणाम अभादानम् / देवस्यत्वेतिव्याख्यातम् नारिरसौतिविशेषः // 1 // बाल (1 का देवसा त्वेत्यभिमादायौदुम्बरी वैकङ्कती वारनिमावीएसव्ये कृत्वा दक्षिण नालभ्य जपति युञ्जत इति / उदुम्बरतरूत्वां विकततरूत्यां वा हस्तप्रमाणाधिं देवस्यत्वा नारिरसीति मन्त्रणादाय वामहस्ते तां कृत्वा दक्षिणहस्तेन सष्टायुअतेमन इति मंत्र जपतीति सूत्रार्थः / * देवसात्वादशयमायत्वैकादशहावेकविठ० शतिः // For Private And Personal Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir भ्यजपति / युनतेमन इतिव्याख्यातम् / / 2 / / मृत्यिण्डान्परिगृह्णाति / देवौद्यावापृथिवी हेदेव्यो द्यावापथिव्यौ / मखस्ययजम्य वांयुवाम् उपादाय / दञ्चीदकं वादायेत्यर्थः / अाशिरः राधासम् राधसाध संसिद्धौ / संसाधयेयम् देवयजने देवाअस्मिन्निज्यन्ते इति देवयजनम्। पथिव्याः मखायय ज्ञायत्वा परि गृह्णामि / ततोपिविशेषापेक्षायामाह / मखस्यशोष्ण त्वांपरिगृह्णामोति // 3 // धियोबिप्लाविष्प्रंस्यवहुतीबिपपिच्चतः // विहोचादधेब्वयुनावि देकऽइन्न्मुहीदेवस्य॑सवितु परिष्टुति // 2 // देवौद्यावापृथिवी // मुखस्य॑वामुयशिरोराड्यासन्देवयजनेपृथिव्याः // मुखायत्त्वामुखस्य त्त्वाशीष्गणे // 3 // देव्योचम्बा // देव्योब्वम्म्रग्रोभुतस्वप्रथम जामखस्य॑वोद्यशिरोराड्यासन्देवयजनेपृथिव्याः // मुखायत्त्वामुख शिवम् अथवल्मोक वांटकाति। देयोवन्यः / हेदेव्यः वम्यः / उपजिविकाः सौमकाइतिपर्यायाः / र या यूयंभूतस्य प्रथमजाः / पृथिवीभूतानां प्रथमजातत्संबन्धाइयोपि प्रथमजा उच्यन्ते / मख-2 For Private And Personal Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir साशिरः राध्यासम अग्रवः ताःयुष्मान् उपादायेतिशेषः / देवयजन इत्यादिव्याख्यातम् // 4 // बराहविहतमादत्ते। इयत्यग्रे युष्मदःसंवन्धान्मधामोत्रपुरुषः / यात्त्वम् इयतीप्रादेशमात्रा अभिनयेननिर्दिश्यते / अगवराहसमोडरत: आसीत् श्रासोःअभूः / इयतोहवा इयमगे टथिवत्रास / प्रादेशमात्रौत्युपक्रम्य वराहउज्जघानेत्याह / तांत्वांबवीमि मखसाते त्वामुपादाय प्रदाशिर: स्य॑त्त्वाशीगणे // 4 // शतम् // 1600 // इयत्त्यग्ग्रे॥ इयत्त्यग्ग्रा सोन्मुखस्यतयशिरोराड्यासन्देवयजनेपृथिव्याः // मुखाय॑त्त्वामुख स्वत्त्वाशीगणे // 5 // इन्द्रस्यौजः // इन्दुस्यौस्त्यमुखस्यबोद्यशिरों राड्यासन्टेबुबजनेथियार // मुखायलामुखस्यत्वाशीगणे // मुखा यत्वामुखस्यत्त्वाशीष्र्णे // मुखायत्त्वामुखस्यत्वाशीगणे // 6 // मैतु॥ के राधासम्देवयजनेप्टथिवाः मखायत्वेतिव्याख्यातम् // 5 // श्रादारानादते / इन्द्रसौजस्थ येयूयम् इन्द्रसाअोजोभवथ तान्युष्मान अदाउपादायशिरः राधासमित्यादिव्याख्यातम् / अजाक्षौरमाव दत्त मखायत्वेत्युक्तम / सम्मतानभिसशतिमखायत्वेत्युक्तम // 6 // परिथितमभिगच्छन्तोजपन्ति / For Private And Personal Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir प्रैत्वितिवयाख्यातम् / खरेसादयति / मखायत्वेत्युक्तार्थम् मत्पिण्डमादाय महावीरङ्करोति / मखायत्वेत्युक्तम् // 7 // निहितमभिशति / मखसाशिरोसोत्यु लाथम् एवंद्दितीवटतोयौ / गवेधुकाभिः / ब्रह्मगुरुप्पतिः प्रये तुसूनृता // अच्छाब्बौर नय॑म्पतिधिस सन्देवावुज्न्नयन्तुनः // मुखायत्त्वामुखस्य॑त्त्वाशीष्गणे // मुखायत्त्वाम खस्यत्वाशीष्पर्णे // मुखाय॑त्वामुखस्यत्त्वाशीगणे // 7 // मुखस्य / / शिरः / मुखस्युशिरोसि // मुखाय॑त्त्वामुखस्यत्त्वाशीष्गणे // मुखस्य / शिरोसि // मुखार्यक्त्वामुखस्यत्त्वाशीष्र्णे // मुखस्यशिरोसि // मुखा। यत्त्वामुखस्य॑त्त्वाशीणॆ // मुखावत्वामुखस्य॑त्ताशीष्र्णे // मुखाय॑त्ता शिवम मुखस्वत्ताशीगणे // मुखाबत्तामुखस्यत्ताशीगणे // 8 // अश्व॑स्य 7.0 म्लक्ष्ण यति / मखायत्वेतिविभि मन्वेस्वीन्महावीरान् // 8 // अश्वशकतावधूपयति / अखत्वात्वाम् / For Private And Personal Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir हेमहावीर कृष्ण सेक्तः / शका शकच्छब्दसाशकन्नादेशः / धूपयामि देवयजनेष्टथियाः / मखायत्वा मखसात्वाशीणे / एवं हितोयटतौयौ / यपयतिबौम्म हावौरान विभिमन्वैः मखायत्वेतिप्रर त्या // ब्वष्मः शुक्नाखूपयामिदेवयजनपृथिव्याः // मुखाय॑त्तामखस्य र ताशीी। अवम्यत्त्वाव्वष्णण शुक्लावूपयामिटेवुयजनेपृथिव्या॥ मुखायंत्तामुखस्य॑त्ताशोळें // अश्व॑स्यत्त्वावृष्णाः शुक्नाधूपयामिदेव यजनेपृथिव्याः॥ मुखाय॑त्तामुखस्यत्ताशीष्मौ // मुखाय॑त्तामुखस्य॑त्ता / * शोषौ। मुखाय॑त्तामखस्यत्ताशी // मुखाय॑त्तामुखस्यत्वाशीमा 6 // ऋजवत्वा // साधवैवासुक्षित्यत्वा // मुखाय॑त्वामुखस्यत्वाशीमों।। र तिमन्वम् // 6 // पक्वानुहरति / कटजवेत्वेति प्रतिमन्त्रम् / फ्टजवेत्वा असौवैलोक: ऋजुः / / सत्यमेवतत्रकौटिल्यरहितम् / सत्यम्बाादित्यः ऋजवेत्या आदित्यायत्वाम् उद्दरामौतिशेषः / For Private And Personal Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir एषउप्रथमः प्रवर्ग्य: / साधवेत्वा अयंवैमाधुर्वायुः / एषहीमान लोकान सिद्घोप्रतिहितःपवते / एषउहितीयः प्रवयः / सुक्षित्यत्वा अयंवैलोकः सुक्षितः / अस्मिन्हिलोके सर्वाणिभूतानि क्षियन्ति / अग्निहिवासुक्षितः। अग्निहि अस्मिनलोके सर्वाणिभूतानि परिगृह्यवसति / एष उत्तीयः प्रवयः / अज्ञापयमापरि सिञ्चतिमहावौरान मखायत्वेतिप्रतिमन्दम / महावीराॐ संभरणं समाप्तम // 10 // महावीरप्रोनति। यमायत्वामखायत्वा सूर्यसयत्वातपसे / प्रोक्षा मुखायत्त्वामुखस्य॑त्त्वाशीष्र्णे // मुखाय॑त्त्वामुखस्यत्वाशीणे // 10 // भा. [10] युमार्यत्वा / / मुखायलासूर्यस्यत्वातप॑से / देवस्वासविताम ध्वनिक्तुपृथिव्याः सुस्पृशंस्प्पाहि // अचिरंसिशोचिरमित पोसि // 11 // अनाधृष्टापुरस्तात् // अनाधृष्टापुरस्ताटुग्नेराधिपत्त्य मौतिशेषः / महावीरमनक्ति। देवस्त्वासवितामध्वानन इतिवद्याख्यातम् / रजतशतमानखरे शिवम 2 उपगृहति / पृथिवद्या:सएस्पृशः / संस्पृशतीतिसंस्पृक् क्विवन्तस्पैतट्रपम / हेरजतपृथिवद्याः संस्पृ-१७ शोराक्षसात् महावीरम्पाहिगोपाय / महावीरमाज्य वन्तं निदधाति / अर्चिरसिशोचिरसि तपोसि / ऋज्वर्थम् // 11 // अनाधृष्ट तिवाचयति प्रादेशमाविधारयन / हेपृथिवि यात्वम् अना For Private And Personal Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir धष्टाअधर्षितारक्षोभिःपुरस्तात् तांत्वांब्रवीमि / अग्ने त्राधिपत्ये सति प्रायभेदा: देहि / यात्वं* पुत्ववतौदक्षिणतोभवसि / तांत्वांववौमि इन्द्रमाधिपत्य मति प्रजाम्मेदाःमचंदेहि / यात्वंसुषदा स्वास्थया साध्वनिमन्तौदतीतिसुषदा / पञ्चाङ्गवसि तांत्वांवबौमि / देवमासवितः आधिपत्ये सतिच प्राधयन्न्यमिन्य जमाना इत्याश्रुतिः। यजियोह्यसौ आयुर्मेदा पुचवतोदक्षिणताइन्टुस्याधिपत्त्येप्प्रजाम्मैदा // सुखदा र पुश्चाद्देवस्य सवितुराधित्ताचक्षुम्मटाऽआपश्रुतिरुत्तरतोधातुराधिप त्तागयस्प्पोषम्मेदाई // वि तिरुपविष्ट्राइहस्प्पतुराधिपत्त्युओ। जोमेदाविश्वाभ्योमानापास्यस्याहिमनोरश्वासि // 12 // 2 उत्तरतोभवसि / तांत्त्वांवोमि / धातुराधिपत्य मति राय स्मोषम् धनसापुष्टिम्मेदाः देहि / यात्वंविधुति: विधारिणीउपरिष्टाद्भवसि / तांत्यांब्रवीमि हस्पते: प्राधिपत्य सति प्रो ज.मेदाः / दक्षिणतउत्तानेन पाणिनानिन्हुते। विश्वाभ्योमानाष्ट्रामास्याहि / सर्वाभयः माम्बातिभ्यः गोपायेति / इमामभिशाजपति / मनोरखासि / अश्वाहवा इयंभूत्वा मनुमुवाहेति श्रुतिः // 12 // 170. For Private And Personal Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir विकसतशकलैः परिश्रपयति / स्वाहामरुद्भिः परिश्रीयख / हेप्रवग्य यस्त्वं स्वाहाकारः तंत्वांवबौमि / मरुद्भिःरश्मिभिः यहा विशोवैमरत इतिश्रुतिः ताभि:परियौयस्व / कर्मणिय क् / आशीयस्व / मरुतस्त्वामाययत्त्वित्यर्थः / सुवर्णशतमानेनापिदधाति / दिव: दालो / कसा संस्पर्शनोरक्षसो महाबोर पाहिगोपाय / अथवा / दुबलोकसा संस्पर्शनकर्टन् देवान्त्व हेमहावीरपाहि / पवित्र राधुनोति / मधुमधुमधु / मधुप्रणो मधुसामान्यादुच्यते / साखाहामुरुद्धिापरिश्श्रीयस्वदिवस स्मृस्प्पिाहि॥मधुमधुमधु॥१३॥ गम्भौटुवानाम् // गर्भौटुवानापितामंतीनाम्पतिः प्रजानाम् // सर न्दुवोदेवेनसवित्रागंतुसम्सूर्यणरोचते // 14 // समुग्नि // समग्नि गानारसः तंमहावीरेथापयति // 13 // महावीरमुपतिष्ठते / गर्भोदेवानामित्यवकाशः तेनत्व-दी ष्टमन्तइत्यतःप्राक् / योग देवानाम गलातौलिगभः श्रादित्यान्मनामहावीरः / यच्च पितामतौनां गोपायिताबुद्दीनाम् / यच पतिरधिपतिःप्रजानाम् / यश्च / संदेवोदेवेनसविवागत / संगत / संगच्छते देव:प्रवर्य देवेनमवित्रामह / यश्च संरोचते धर्मसयेणसह एकीभूतः तंवयंस्तुमति वाक्यशेत्रः / / 14 / समग्निः / अनुष्ट प्वाहो। यश्च / संगतसंगच्छतेअग्निःधर्मःअग्निनासूर्याख्य For Private And Personal Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir नसह। यश्वसंमत संगछते दैवेमसवित्रासह / यश्चसमरोचिष्ट मरोचतेदीप्यते सूर्येणसहस्पईयन् / तंवयंस्तुम इतिवाक्यशेषः / स्वाहाकार: आदित्यप्रौणनार्थः / यश्चस्वाहा अग्निःसंगत। संगच्छते। तपसाअदित्य संवधिनासह / यश्चसंगत | संगच्छते दैव्य नसबिनासह / सयममारुचत। ममरोचतसंरोचतेमणसह स्पईयन / तंवयंस्तुमतिवाक्यशेषः // 15 // धर्ता-र दिवः। अहती। धर्मस्तुति: / योयंधाधारबिता दिवःालाकसा। यश्चतपस: रश्मिजारग्निनांगतुसन्टेवनसवित्रासहसूर्येणारोचिषु // स्वाहासमुग्निस्त सागतुसन्दैव्ये नसञ्चितासम्सूयेणारूरुचत // 15 // धुर्ताटिव // धुर्तादिवो विभातितपंसस्पृथिव्यान्धुर्तादेवोदेवानाममर्त्यस्तपो / जा // ब्वाचमुस्म्मेनियच्छदेवायुवम् // 16 // अपंथ्यडोपाम् // अप N लसा धर्ता / विभातिचपृथिव्याम् अवस्थितः / धर्त्ताधारयिताच देवानाम् / स्वयंचदेवः / अमर्त्य :मनुध्यधर्मरहितः। तपोजाः / तपःआदित्यः तम्माज्जायते / सोयम्वाच म् अस्मेअस्मासु / नियच्छ / नियच्छत्वितिपुरुषव्यत्ययः / निगृह्णातुस्थापयतु / देवायुवम् / यादेवान यौतिमिश्रयति आगमयति सातथोक्तातांदेवायुवम् // 16 // अपश्यन् / त्रिष्ट / आदित्यात्मनाधर्मस्तुतिः / For Private And Personal Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir o यमहमपश्यम् / गोपांगोप्तारम् / अनिपद्यमानम् अनालम्बनेअन्तरिक्षेगच्छन्नासौपतति / आचपराच हो पथिभिश्चरन्तम् / आचरन्तंच आगच्छन्तंच पराचरन्तंच / परागच्छन्तंच / पथिभिः देवैःसह / ससधौचौ: / सएकससध्रोचीः सहस्यसधिरादेश: / सहाञ्चना: 'दिशोरश्मिन्वासहस्रम्। सबिषूची: / विषु इतिनिपातोनानाबचनः / अञ्चते:परंक्विम् / नानाञ्चना: दिश: नानाञ्चनान्वारश्मीन् / वसान: आच्छादयन् / आवरीवति / पुन:पुनरावर्तते / भुवनेषु विषुलोकेषु / अन्तर्मध्येवावस्थितः // 17 // श्यङ्गोपामनिपद्यमानुमाचपरांचपुथिभिश्च्चरन्तम् // मुसुट्टीची स चिपूंचीवनऽावरोवर्तिभुवनेष्वन्तः // 17 // विश्वासाम्भु वाम विश्वासाम्भुवाम्पतेविपर्वस्यमनसस्पतेविश्वस्यब्वचसस्प्प विश्वासांभुवाम् / सर्वासांपृथिवीनांपते हेप्रवयं / विश्वसामनसः सर्वसाप्राण्याश्रयसामनसः / / पते / विश्वसावचस: सर्वसात्रयौलक्षणसावचस:पते सर्वस्यवचस: सर्वसालौकिकसावचसःपते / त्वां स्तुमइतिशेषः / यतश्च त्वंदेवश्रुत् देवैःश्रुत: अतीत्वांयाचे। हेदेवधर्मत्वंदेवःसन् देवान्पाहिगोपाय। अवप्रावीरनुवांदेववीतये / अनसत्रे अस्मिन्नवसरेवा / प्रावीरितिपुरुषच्यत्ययः / प्रावतुतयं यतु त्रिम For Private And Personal Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir धर्मः। बांयुवाम् हेअश्विनो। अनुदेववीतये। ततोनन्तरम् देवतर्पणायनमस्करोत्त्वितिवाक्यDo शेषः / मधुमाध्वीभ्याम् / मधुनामब्राह्मणंतद श्विभ्यांददौदधाङ्डाथर्वणाः / तदेतदुक्तम् / मधुमा धूचीभ्याम् / मधुब्राह्मणं प्रतिअञ्चतोगच्छत: तोताभ्यामध्वञ्चनाभ्याम् / शेषंपूर्ववव्याख्य यम् // 18 // , हृदेत्त्वा / परोनिक् / हृदेत्वाहृदया,त्त्वांस्तुमइतिशेषः। एवंमनसे त्वांस्तुमः / दिवे अर्थाय सबस्यब्वचसस्प्पते // देवश्श्रुत्त्वन्देवधर्ममदेवोदेवान्न्पायव प्पा 0 वीरनुवान्देवोतये॥ मधुमावोब्भ्याम्मधुमाळूचीब्भ्याम्॥१८॥ हुदे / हि त्वा॥मनसेत्त्वादिवेत्वा सूर्थीयत्वा // जोऽध्वरन्दिविवेषु / / धेहि // 16 // पितानः // पितानोसिपितान बोधिनमस्तेऽअस्तुमा / त्वांस्तुमइतिशेषः / मूर्यायत्वा सूर्यतर्प णायलास्तुमः / यत्माच सर्वकार्येषुत्वामेवस्तमः / अतोव्रमः / अईः अवहितचितःसन् अध्वरन्दिविदेवेषु धेहिनिधेहि स्थापय / 16 // पितानोसि / गायत्री। यतश्चत्वम् पिता नःअस्माकमसिभवसि / अतोब्रवीमि / पितेवभूत्वा न:अस्मान् वोधिवोधयसर्वथा / नमः तेअस्तु मामाहिंसोः हिंसौथा: / पत्नीवाचयति महावीरमीक्षमाणाम् / For Private And Personal Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir त्वष्ट्रमन्तस्त्वा। यजुः / यतश्च त्वाष्टसंयुक्ताः / त्वष्टाहि चेतसांविकर्ता / त्वामेवसपेम / सपति: स्पृशतिकर्मा / मैथुनार्थमुपस्पृशाम: / अतःपुत्रान् पशून्मयिधेहि स्थापय / प्रजांचभूयोभूयः अस्मासु धेहिस्थापय / किंच / अरिष्टाअनुपहिंसिताअहम् / सहपत्यासहभाभूयासम् / आशौः // 20 // रौहिणोजुहोति। अहःकेतुनाप्रजया कर्मणावा / सहितम् जुषताम् परिगृह्णातु / कथंभूमाहिस्सो // त्वष्ट्रुमन्तस्त्वासपेमपुत्रान्न्पुशून्न्मयिधेहिप्पुजामुरम्मा / सुंधेवरिष्टाहासहपत्त्याभूयासम् // 20 // अहः केतुना // जुष तासुज्योतिर्योतिषास्वाहा // रात्रिः केतुाजषता सज्ज्यो / तिर्योतिषास्वाहा // 21 // [11] इतिवाजसनेयसंहितायांदीग्र्घपाठेसप्तत्रिशोऽध्यायः // 37 // तम् / यदह: सुज्योति: / ज्योतिषांशोभनज्योतिष्कम् केनज्योतिषास्वकीयेनैव / स्वाहासुहुतं चैतद्दविभवतु / रात्रिकेतुना / अधस्तनेनव्याख्यातम् // 21 // इति उचटकृती मन्त्रभाषा सप्तविंशोध्यायः // 30 // म For Private And Personal Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir (1) अथधर्म धुग्होहनार्थं रज्जुमादत्ते // देवस्यत्वेतिवाख्यातम् / आददेगलामि / यतस्त्वम् अदित्यैरास्नासि // 1 // गामाह्वयति / इडएहि / अतस्मिंस्तच्छब्द स्तदतिदेशार्थः / हेइडे मानवि आइहि आगच्छ दोहाय / हेअदिते देवमातः एहि / हेसरस्वति वाक्एहि असावितिनामग्राहण____ * ट्रेवस्य॑त्वादेवस्य॑त्वासवितुप्पसर्व श्विनौ|हुन्भ्याम्यूष्णोह स्तब्भ्याम् आदित्यैरान्नांसि // 1 // इडुऽएहि॥ इडुएट्यदितऽ एहिसरस्वत्येहि // असावेवसावयमावेहि॥२॥ अदित्यैरास्न्ना विकच्चैः / असोधवलेएहि / त्रिः / आमन्त्रितस्येत्यादिरुदात्तः // 2 // अत्यै रास्नासीति गांपशेनप्रतिमुञ्चति अदित्यैरास्नासि / इन्द्राण्याउष्णीषः इन्द्राणी इन्द्रस्यपत्नी तसा: शिरोवेष्टनं त्वमसि // (1) का. देवस्यत्वेति रज्ज सन्दानमादायेडएहीति गमाह्वयति नाम्ना च त्रिरुच्चरपरेण गार्हपत्य गच्छन् / अध्वर्यु दैवस्यत्वेति रज्जु सन्दानमादाय गार्हपत्यस्य पश्चाहच्छन् इडएहीति वाक्यत्रयेण धर्मदुधां गामायति असावहीति गोर्नाम्ना चोच्चैस्त्रिवारमाह्वयतीति सूत्रार्थः // * देवस्यत्वाष्टोपमायत्वाक्षत्रस्यत्वादशकौत्रयोष्टाविठ शतिः // For Private And Personal Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir वत्समुत्सृजति / पूषासि / यथापूषा वायुपुष्टिमाप्यायति / एवंखमपि प्रस्नावनेन जगदुत्पत्तिबीजंपयाप्यायसि / वत्ममुन्नयति / धर्मायदीष्व / दयसि / रूपदयाकर्मापि यसउपदयांकुरु मासर्वमुपासौः // 3 // पित्वनेदोग्धि / अश्विभ्यांपिन्वख / अश्विभामर्थाय पिन्वस्वप्नाावयस्व / एवमेव सरई स्वत्यैइन्द्रायच / विषाभिमन्वयते। स्वाहेन्द्रवदिति / यद्द्यमानं स्कन्नतत्सुहुतमस्तु बून्द्रवत् सौन्द्राणयाऽष्णोषः॥पूषासिघुमायंदीष्ष्व // 3 // अभिश्वस्याम्पिन्न स्वसरस्वत्यैपिन्न्वखेन्द्रीयपिन्न्वस्व // स्वाहेन्द्रवत्स्वाहेन्द्रवत्स्वाहेन्द्र वत्॥४॥ वस्तु // स्तनः शशुयोवोमयोभूज़रत्नुधावसुविद्य / इन्द्रसंयुक्तम्इतित्रिः // 4 // स्तनमालभते / यस्तेस्तनः / विष्ट ब्वाग्देवत्या / वाग्देवीसरखतीतिश्रुतिः / यः तेतवस्तनः / कथंभूत: / शशयः / शौवप्ने / सुप्तइवास्ते अनुपभुक्तोन्यैः / यश्च-शिवम् मयोभूः मयःसुखम्भावयति सर्वभूतानाम् / यश्चरत्नधाः / रमणीयानांधनानांधारयिता / यश्चवसु वित् वसुविन्दति / यश्चसुदरः कल्याणदानः / धनवानपिसन् कश्चिन्नोत्सहतेदातुम् For Private And Personal Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir अतएवंविषाते / येनविश्वा / येनच विश्वावि श्वानि पुषासिपुष्णासि वार्याणिवरणीयानि / सरस्वति तस्तनम्इह / धातवे / धेटपाने / पानाय / अकःकुरु / गच्छति / उर्वन्तरिक्षमिति व्याख्यातम् // 5 // परीशासावादत्ते / गायत्रंछन्दोसि वैष्टुभंछन्दोसि / / ऋक्षुमहावीरंगृह्णाति / द्यावापृथिवीभत्रां त्वांपरिगृह्णामि। परीशासयोः द्याश्चपृथिवीच अध्यास्तः / सुदत्त्रः॥येनुचिप्रश्वापुष्यसिचाऱ्यांणिसरखतितमिहधातवेक॥ उर्वन्तरिक्षमन्वेमि॥५॥गायचञ्छन्दः॥ गायत्तञ्छन्दोसित्तेष्टुं / ज्छन्दोसियावापृथिवीभ्यान्चापरिगृहाम्म्युन्तरिक्षुणोपयच्छामि // इन्द्रागिश्वनामधूनसारघस्यधुर्मम्पातुबसवीवजंतुबाट ॥स्वाहासस्य / महावीरेचादित्यः / उपयमन्याउपगृह्णाति। अन्तरिक्षणोपयच्छामि। अन्तरिक्षण उपगृह्णामि। उपयमन्या अन्तरिक्षरूपेणसंस्तव: / पयसासिञ्चति // इन्द्राश्विना / हेइन्द्र हेअश्विनौ / मधुन:सारपस्य / सरघा मधुकृतः भ्रमरावऋत्विजः तैःकृतस्यसारघस्य मधुन:धर्मपातरसंपिवत / हेवसवः वासयितारः / यजतच वाट्वषट्कारेण / स्वाहासुहुतमस्तु / सूर्यस्यरश्मये / ___171. For Private And Personal Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir वृष्टिवनये। वृष्ट:संभक्त्रं दावा। सूर्यस्यहवा एकोरशिमवृष्टियनिर्नामेतिश्रुति: // 6 // इतउत्तरं हादशवातनामानि यजत्यध्वर्युः। समुद्रायत्त्वे ति। एतस्माई समु ट्रात्सर्वामिभूतानि समुदबन्तीतिसमुद्रोवातः / समुद्राय त्वां हेप्रवर्दीवातायखाहा जुहोमि। इयमेवोत्तरवापि योजना | सरिराय। एतस्मात्सरिरात्सर्वाणिभूतानि लब्धकार्याणिसन्ति। सहईरतगछति। स्थरप्रश्मयवृष्टिवनये // 6 // मुमुवाय॑त्वा॥ ब्वायुस्वाहासगिराय॑त्वा व्वायुवाहा // अनाधृष्ष्यायत्बाब्वायुस्वाहांप्प्रतिधृष्ष्याय॑त्वा वातायुस्वाहा // अवस्यवैत्त्वाब्वायुस्वाहाशिमुिदायत्वावायु स्वाहा // 7 // इन्ट्रीयत्वा // ब्बसुमतेदवतुस्वाहेन्द्रायत्वादित्यवतु / अनाधृष्याय अशक्याय आधर्षितुम् / अप्रतिधृष्याय अशक्याय प्रतिधर्षितुम् / अवसावे अवनशीलाय / अशिमिदाय ।।शिमौतिकर्मनाम / क्ले शात्मकञ्चैतत् / अक्लेशदाय // 7 // इन्द्रायत्त्वा। डी इन्द्रायत्वा वसुमतेरुद्रवतेखाहा। इन्द्रायत्त्वा आदित्यवतेस्वाहा। इन्द्रायत्वा अभिमातिध्ने / शिवम् For Private And Personal Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir से सपनोवा अभिमातिः। सवित्रे त्वा भुमतेविभुमते वाजवतेम्वाहा / भुर्विभुर्वाजइति सुध वनआङ्गिरससा बयःपुत्राबभूवुः / तेषामयंसंस्तवः / वृहस्पतयेत्वा विश्वदेव्यावतेस्वाहा // 8 // यमायत्वा। अंगिर स्वतेपिटमतेस्वाहा। उपयमन्याआसिंचति / स्वाहाधर्माय मुहुतोधर्मायचैतत्सवात् / स्वाहाधर्मः सुहुतोघर्म:पित्रे सादितिशेषः // 6 // वषट्कृतेजुहोति / विश्वास्वाहेन्ट्रीयत्त्वाभिमातिग्ने स्वाहा // सुवित्रत्वऽभुमतेब्विभुमते / वाजवतस्वाहाब्रहस्पतयेत्वाविश्वदेच्यावतुस्वाहा // 8 // [8] वुमा युत्वाङ्गिरस्वतेपितृमतुस्वाहा // स्वाहाँघुर्मायस्वाहाघुम्मपित्र // 6 विश्वाऽआशा // बिप्रश्वाआशोदक्षिणुसद्दिश्वान्देवानांडिह // आशाः / अनुष्टुवाशिनीः / विश्वा:सर्वाः आशा:काष्टाः / दक्षिणसत् / दक्षिणसद इतिवचनव्यत्ययः / दक्षिणासौदन्ति / कस्मात् / यतःविश्वान् सर्वान्देवान् अयाट / यजतेरेतद्रूपम् / अयाक्षीत् दृष्टवान् / इहस्थितः / दक्षिणतोहि स्थितआहुतीर्जु होति / आहुतिश्चयज्ञः / यत For Private And Personal Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir एवमतो ब्रवीमि / दक्षिणतोग्नेरम्माभिः स्वाहाकृतसा / वषट्कारानन्तरं स्वाहाकृतसाधर्मय. सामधो: पिवतम् मध्वास्वादसापिवतम् अश्विनौ // 10 // त्रिरुत्कंपयति / दिविधाः / [लोके स्थापय इमंयन्तम् इमंयत्न दिविधाः / अभ्यासभूयांसमर्थमन्यते / अनुवषकृतेजुहोति। स्वाहा नये / सुहुतमस्त अग्नयेयन्जियाय यज्ञहिताय / शंमुखंच यजुभ्यःसकाशात् अस्माकमस्त्वितिशेषः / . स्वाहाकृतस्यधुर्मस्यमधोपिबतमश्विना // 10 // दिविर्धा // दि भा० विधाऽहुमंयुज्जमिमंथ्यज्ज्ञन्दिविर्धा // स्वाहाग्नयेयुज्जियायशंव्य जुभ्यं // 11 // अविनाधर्मम् // अश्विनाघुमातु हाहानमह 3 यदा शंयजुर्थीदेहि // 11 // ब्रह्मानुमंत्रयते / अश्विनाधर्मम / उष्णिगाश्विनी हैश्विनौ धर्मपातंपिवतम् हार्दानम् हृदयसाप्रियम् हृदयंवायोनुवर्तते / अहर्दिवाभिः / अहःशब्दः पूर्वान्हव- शिवम् चनः / दिवाशब्दस्तु सायाहुवचन:। सहिप्रवर्यायकालः / एतत्कालोपलक्षिताभिः ऊतिभिOtta अवननिमित्तभूतैः / तंत्रायिणे नमोद्यावापृथिवीभाम् / तंत्रायिणे / लोकये प्रसारिताः For Private And Personal Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir तन्तब: तुरीशलाकाप्रोता:ते तंत्रमित्त्यु च्यन्ते / तन्तुनालिरिव सूत्रपूरणाय एतित्रीन्लोकान् ॐ सतंबायौआदित्यः तस्मैनमः / उत्तरत्नाप्यनुषङ्गः / द्यावापृथिवीभवाम् नमःअस्तु // 12 // यजमानो नुमं यते / अपाताम् / अाश्विनीककुम् / अपाताम् पौतवन्तो अश्विनौधर्मम् / अनुद्यावापृथिवी / अमंसाताम् / तच्च धर्मपानमश्विनी: द्यावापृथिवीअपि अमंसाताम् अनुमतवत्यौ साध्वभूदिति / ढिवाभिरूतिभिः // तन्लाविणेनमोद्यावापृथिवीभ्याम् // 12 // अपार तामुश्विना / घुर्ममनुद्यावापृथिवीऽमसाताम् // इहैवगतयः सन्तु // 13 // दुषेपिन्वस्व // दुषेपिन्वस्वोर्जेपिन्बस्नुनहमणेपि वम्वक्षत्रायपिन्चखुद्यावापृथिवीभ्यापिन्न्वस्व // धम्मासिसधा यतएवमतोत्रवीमि / इहएव अवस्थितानामस्माकम रातयःधनानिसन्तु // 13 // पिन्वमानमनुमंवयते / इषेपिन्वस्व / दृष्टितर्पणायविप्रुषोमुञ्च / एवम् ऊर्जेअन्नाय / ब्रह्मणेवाह्मणेभाः / क्षचायक्षक्षत्रियेभाः दयावापृथिवीभांपिन्वम्वेति / उत्क्रामत्युत्तरपूर्वार्धम्। धर्मासिसुधर्म। धर्मासिधारसमस्तस्य जगतोस्याहुतिपरिणामहारण / हेसुधर्म साधुधारणशील / खरसादयति / अमेनि / For Private And Personal Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir मिङहिंसायाम्। अहिंसन् अक्रधान् / अस्म अस्मासु / नृ णानि / नन्नमयन्तीति नम्णानिधनानि / धारयस्थापय / ब्रह्मधारय क्षत्रधारयविशन्धार / वैवर्णिकानम्मामुस्थापय // 14 // शकलैर्जुहोति / स्वाहापूषो / अयंवैपूषा योयंपवते / इतिवायुः / एषहीदंसबंपुष्पति / एषउप्राणः / प्राणमेवास्मिन्निदधाति / इत्त्व तदुक्तम् / शरसे। अस्तिशरशब्दः / काण्डवचनः / अस्तिचसान्त: दधउपरिस्नेह: शरदूतियजमानाः प्राहु:तदभिप्रायेणैतदुच्यते। स्वाहागावभरः प्रामेभाः विषयग्रमन्न्यस्म्मेनुम्णानिधारयुबहमधारयचत्तधारयविशन्धारय // 14 // स्वाहापूष्मी // शरसुस्वाहाग्याभ्युस्वाहाँप्प्रतिर वेभ्यः // स्वाहापि टब्भ्य॑ऽअर्ध्वबहिब्भ्योधर्मपावभ्यु स्वाहाद्यावापृथिवीभ्या स्वा हाविश्वेभ्योदेवेभ्यः // 15 // स्वाहारुद्रायरुदहूतयेस्वाहासज्यो / / हणशीलेभनः / स्वाहाप्रतिरवेभाः / प्राणा:प्रतिरवाः तान्प्राप्यसर्वजगद्रमते / स्वाहापिटभा:उद्धवहिमनः / जईम्प्राग वहिर्येषांतएवमुच्यन्ते। सोमपाह्येतद्वत्त्यर्थः / धर्मपावभा:धर्मपाटभाः / स्वाहाद्यावापृथिवीभधाम / प्राणोदानौवैद्यावापृथिवी / स्वाहाविश्वेभप्रोदेवेभाः / प्राणोवैविश्वेदेवाः // 15 // स्वाहारूद्रायस्ट्रहूतये / रुद्रबतिस्तोटनाममु पठितम् / रुद्रैःस्तोटभि राहूयतेसरुद्रहतिः। महा For Private And Personal Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir वीरादुपयमन्यां प्रत्यानयति / स्वाहासंज्योतिषाज्योतिः / स्वाहासंगच्छतां ज्योतिषाज्योति: / ज्योतिर्वा दूतरस्मिन् वायौभवति / ज्योतिरितरस्यामितिश्रुतिः / अहःकेतुना रात्रिकेतुना इतिचव्याख्यातम् / भक्षयति / मधुहुतम् यस्मान्मधु उत्कटरसम् हुतम् / क / इन्द्रतमेइन्द्रियवत्तमेवीर्यवत्तमे / अग्नौतवास्माभिः अतअवशिष्टम् अश्यामव्याप्नुयामः भक्षयामः / तेतवाशम् / तिषाः // अहः केतुर्नाजुषतासुज्ज्योतियोतिषास्वाहा॥रात्ति केतुनाजुषता सुज्ज्योतुिर्कोतिषास्वाहा // मधुंहुतमिन्द्रतमेऽ ग्नावपश्यामतेदेवधर्मनमस्तेऽअस्तुमामाहिसोड // 16 // अभीमम्॥ / अभीमम्महिमादिब्बिप्प्रोबभूवसप्प्राह // उतरवसापृथिवीस हेदेव धर्मसर्वथानमस्तेअस्तु / मामाहिंसीरित्यात्मनः परित्राणमाह // 16 // महावीरमासं द्यां करोति। अभीमम् गायत्रीवृहत्यौ / नचगायल्या अवसानमस्ति / अतिशक्करौवा आग्नेयौ / अभिवभूव अभिभवति / इमन्दिवं महिमायस्थतव / कथंभूतः विप्रःमेधाबी / सप्रथाःसर्वत:पृथुः For Private And Personal Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir महिमोविशेषणदयम् / तत्वांबवीमि उतश्रवसा। अपिच धनेनश्रवणीयेन वायशसा / पृथिवीम् अभिवभूवेत्यनुषङ्गः / संसौदस्वेतित्र्याख्यातम् / रोचस्वदीप्यस्वेत्यनर्थान्तरम् // 17 // इतउत्तरे / उत्पादनमन्त्राः / शालाकेषुजुहोति / याते तवहेधर्म / दिव्यादिविभवाद्युलोकं प्रविष्टा / शक्सौंदस्वमुहाँ २॥ऽसिरोर्चस्वदेववीतम // विधूमम॑ग्नेऽअरुषम्मि येड्यसृजप्प्रंशस्तदर्शतम् // 17 // बातेधम्मदिव्याशुग्ग्यागायुच्या हविर्भाने // सातुऽआप्प्यांयतान्त्रिष्ट्यायतान्तस्यैतुस्वाहा // बातेघ मन्तिरिक्षेशग्ग्यात्तिष्टभ्याग्नौधे // सातुऽअप्प्यायतान्निष्टायता न्तस्यैतुस्वाहा // यातधर्मपृथिव्याशुग्ग्याजगत्या सटुस्स्या // दीप्तिः / याचगायल्यां प्रविष्टा / याचहविर्भानेप्रविष्टा / सातेतव आप्यायतान् वईताम् / निष्ट्यायताम् स्यैष्ट्यैशब्दसंघातनयोः / निष्टयानासंहताभवतु / तस्यैशुचे तुभाञ्च हंघर्मस्वाहा / For Private And Personal Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir याते अन्तरिक्षे त्रिष्टुभिप्राग्नीधे / समानमन्यत् यातेपृथिव्याम् जगत्याम् / सदस्या सदसिभवासदस्था / सदसिप्रविष्टा। समानमन्यत् // 18 // नि:कामति / क्षत्वस्यत्वा महावीरोभिधी यते वृहत्या। क्षत्रस्यसंवन्धिन: परस्पाय परस्थपालनाय / हेमहावीर अनुक्रामामेतिचतुर्थपाद / भविष्यतितस्येह संवन्धः / अनुक्रामाम / किञ्च ब्रह्मणः तन्वंशरौरंपाहि गोपाय / किञ्च विशः / सातुऽआप्प्यायतुान्निष्ट्यांयतान्तस्यैतुस्वाहा॥१८॥[१०] क्षत्तस्यत्वा॥ परस्पायुब्रहमणस्तुन्न्वम्पाहि // विशस्त्वाधर्माणब्जयम कामा मसुवितायुनव्य॑से // 16 // चतुःस्रक्ति मिः // चतुःसूक्ति यत्नोवैविश: यत्तस्यधर्मणा धारणेननिमित्तभूतेन त्वात्वाम् हेमहावीरवयम् अनुक्रामाम अनुगच्छेम / सुवितायसुगतायसुप्रसूतायवा / नव्यसे नवतरायच कर्मणेअनुक्रामाम // 16 // महावीरंनिदधाति / चतुःसक्तिः / दिशोमहावीरसा सक्तयःकोणा: / य:चतु:सक्ति: / यश्चनाभिः नहनम् ऋतस्यसत्त्यस्यवा यज्ञस्यवा / एवंसप्रथाः सर्वत:प्रथुः / सः नःअस्माकम् विश्वायुः 172. For Private And Personal Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir EU सवस्यायुष:दाता। सप्रथाःसर्वतश्चप्रथयिता अस्तु / मनःसर्वायुः सप्रथाः / अभासभूयांसमर्थमन्यन्ते / त्वत्प्रसादाच्च / अपहषः / अपगच्छतुइषः अस्मत्तः / वीतरागाःस्थामेत्त्यभिप्रायः / अपहरः / बरह्मलचलने। अपगच्छतु हरचलनम अस्मत्तः / जनित्वामियते मृत्त्वाजयते इत्त्येतच्चलनमभिप्रेतम् / अन्यव्रतस्यसश्चिम / अन्यत् व्रतंकर्मयस्य मनुष्यकर्मणः सकाशात् जगद भितस्य॑सुप्प्रथा सोचिरश्वायुः सुप्पथासनः मुर्वायुः मुप्प था // अमुद्देषोऽअपहब्वरोन्न्यव्रतस्यसश्चिम // 20 // धर्म तत्॥घ मतत्तुपुरौंधुन्तेनुब्बईस्खुचाचप्प्यायस्व॥ बुद्धिषीमहिचन्वयमार्चप्प्या सिषीमहि // 21 // अचिंकदइषाहरिहान्मित्रोनदर्शतः // सह नुग्रहात्मकंयस्यसतथोक्तः / तस्यकर्मवयं सेवामहे सायुज्यं प्राप्ताःसन्तः // 20 // पयसापूरयति / धमैतत् / अनुष्ट,| धर्मउ व्यत / हेधर्म एतत् पय: तेतवपुरोषम् पूरयिट / तेनवर्द्ध स्वेत्यादिव्याख्यातम् // 21 // परिषिंचति / अचिक्रदत्परोष्णिक् / धर्मात्मना दित्यःस्तूयते / योयमहावीरः। For Private And Personal Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir प्रटज्यमानः अचिकदत् क्रन्दति:शब्दार्थः / पुनःपन:शब्दमकरोत् / षावर्षिता आहुतिपरिणामबारेण / हरि:रितवर्णः ह वारसानाम् महान्प्रभावत: / मित्रोनदर्शतः मिनइवदर्शनौय: / मित्रोहि सर्वसैवमित्रम् / संसूर्येणदिद्यु तत् / संगत्यसूर्येण सहद्योततेसमासूर्येणदिद्युतदुदधिनिधि // 22 // सुमिचियानः // सुमिच्चियानु ऽआपुऽओषधय सन्तुटुर्मित्त्यिास्तस्म्मैसन्तुयोस्मान्दृष्टुिवञ्चव्य निहुम्मः // 23 // उद्दयम् // उद्दयन्तमसुस्प्परिस्व पश्यन्तु उत्त रम् // देवन्दैवत्वासूर्यमगन्न्मुज्ज्योतिरुत्तमम् // 24 // एधोसि // नव / उदधिःउदकधारणः / निधिश्चमुखानाम् // 22 // सुमित्रियान उद्दय मेधोसौतिव्याख्यातास्वयोमंत्रा: // 23 // 24 // 25 // दधिधर्मग्रहणम् / यावतौद्यावाष्टथिवौ। महारहतौऐन्द्रौयावतीयावत्परिमाणे दयावापृथिव्यौ / यावच्चक्षेत्रम् सप्तसिन्धवः सप्तसमुद्राः वितस्थिरे श्राप्नुवन्ति / For Private And Personal Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir तावन्तम् हेइन्द्र तेतबगहम् उर्जान्नेन सहगृह्णामि / अक्षितमनुपक्षीणम् / मयिगृणामि। मयौत्यधिकरणनिर्देशः। वित्तानायेतिशेषः / गृह्णामोत्यादिव्याख्या तम् // 36 // भक्षयति / मयित्यत् / पंक्तिः / यजमानाशौः / मयित्यत् तत्इन्द्रियवौर्यम् / वृहत्महत् / अस्तु / मयिचदक्षः सं० संकल्पमंपत्तिःअस्तु / मथिच क्रतुःसंकल्पः विशिष्टोस्तुः / मयिचधर्म: विशक् / तिस्रः शुचोसप्रतिनि एधोस्येधिषीमहिंसुमिदसितेजोसितेजोमयिधेहि // 25 // यावतीद्या वापृथिवी // यावच्चमुप्तसिन्धवोचितस्त्थुिरे // तावन्तमिन्द्रतुग्ग्रह मूर्जागृह्णाम्ग्यक्षितुम्मयिगृहास्यक्षितम् // 26 // मयुित्त्यत् ॥मयि / / त्यदिन्द्रियम्बृहन्न्मयिदक्षोमटिक्क्रतुः // धर्मसिशुग्ग्विराजतिब्बुरा जाज्ज्योतिषासुहब्बतम्मणातेजसामुह // 27 // पय॑मोरेतः॥ पय॑सो शुक् / ताचव्याख्याता शाकलमन्त्रेषु / विराजति विराजत्विति लकारव्यत्त्ययः / विराजाबादित्याख्य न ज्योतिषासह / ब्रह्मणात्रय्याख्येन तेजसासह // 27 // किञ्च / पथसोरेतः / पयस:यत्रेत: जगदुत्पत्तिबीजम् / अाभृतमाहृतम् / दस्यदोहंप्रपूरणम् / अशीमहिव्यानु वाम / 12 688 For Private And Personal Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir र उत्तरानुत्तरांसमाम् / उत्तरामुत्तरामिति वौपसावचनन् / समाशब्दः संवत्सरवचन: 1 प्रतिसंवत्मरंच / अशोमहि। सदाकालंयायजका: स्यामेत्यर्थः / त्विषः संवृक् / महाव्रतोये भक्षणंदधिधर्मस्य / यस्त्वम् / त्विषः / दीप्तेः / संटक / संपूर्घोटजि: स्वौकरणेवर्त्तते / दीप्तेः स्वीकरणः / तस्यतव। क्रत्वेक्रत्वोरिति विभक्तिव्यत्ययः / साधुक्रतुभूतस्य / दक्षस्य | संकल्पसिद्धिभू रेतुऽआभंतुन्तस्युदोहमशीमयुत्तरामुत्तरा साम् // विष-संवा , कात्वेदक्षस्पतेसुषुम्णस्पतेसुषुम्णाग्निहुतः // इन्द्रपीतस्यप्पुजा / पतिभक्षितस्यमधूमतु उपहतुऽउपहतस्यभक्षयामि // 28 // [10] इतिअष्टात्रिंशोऽध्यायः // 38 // तस्यच / सुष्णसा साधुसुखभूतसा / हेसुषुम्ण | सुसुखस्वभाव / तेसुषुम्णाग्निहतः / षयन्त3 मेतत् / अग्नौहयतइत्यग्निहुत् तसाग्निहतः / अपिचइन्द्र पौतसा प्रजापतिभक्षितसा / मधुमतः / रसवत: उपहूतः उपहतसा ग्रहसाभनयामि // 28 // इति उबटकतौमन्द भाष्ये टाविशत्तमोध्यायः // 38 // For Private And Personal Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir ___ (1) इतउत्तरप्रवर्दी भेदंप्रायश्चित्तम् स्वाहाप्राणेभ्य: साधिपतिकेभ्यति पूर्णाहुतिंथावत् / * स्वाहाप्पाणब्भ्यः॥ स्वाहाप्पाणब्मयुद्ध साधिपतिकेभ्यः / / पृथिव्यैखाहाग्नरेखाहान्तरिक्षायुस्वाहांच्यायवेस्वाहा // दिवेस्वाहा सूर्यायस्वाहा // 1 // दिग्भ्य स्वाहा // चन्द्रायुखाहानक्षत्वेग्युस्खा हास्य स्वाहावरुणायस्वाहा // नायैस्वाहापुतायुखाहा // 2 // बाचेस्वाहा // प्ग्राणायुस्वाहाँ प्प्राणायुस्वाहा // चक्षुषुवाहाचक्षुषु / / जुहोति / स्वाहाप्राणेभाः / मनोवैप्राणानामधिपतिः / सुहुतमस्तु / प्राण भ्यः मनसासहितेभ्यः / शिवम (1) का. स्वाहाप्राणेभ्यःसाधिपतिकेभ्यः इति पूर्णाहुतिमाद्यामुत्तमां च मनसः काममाकूतिमिति / तदर्थोऽयम् अध्वर्यु: भूमिभूमिम् यऋतेचिदिति मन्त्राभ्यां भग्नं धर्ममभिमृश्य परेष्यादिचतुस्त्रिंशदाहुतोई त्वा स्वाहाप्राणेभ्य इत्याद्यां पूर्णाहुति हुवा पृथिव्यै स्वाहेत्याहुतिविंशतिं सकदृग्यहीन हुत्वा मनस इत्यन्त्यां पूर्णाहुतिं करोतीति // * स्वाहाप्राणेभ्यः षडुग्रश्चसमहौत्रयोदश / For Private And Personal Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org पृथिय स्वाहेत्यादिस्पष्टम् // 1 // 2 // 3 // मनस:कामम् / पूर्णाहुतिहोमः / अनुष्टुप् थीदेवत्या / यजमानाशीः / मनसःकामं कामप्राप्तिः / प्राकृतिम् आकबनम् / आत्मनोधर्मो मनसः संयोगेसति जायते / वाचःसत्यम् / यष्टव्य मयेत्यादि / अशीय / प्राप्नुयाम्। अनयापूर्णाहुत्या / किंच / पसनांस्वाहा श्रोत्रायुस्वाहाश्श्रोत्वायुस्वाहा // 3 // मनसु कामम्॥ मन सुकाममाकूतिंबाची सत्यमशीय // पुशूना रूपमन्नस्यरसीवश : श्रो श्रेयताम्मयुिवाहा // 4 // प्रजापतिः सम्भुियर्माणः सुम्ना ट् सम्भृतोवैश्वद्धव ससुन्नीघुर्माः प्रवृक्त स्तेजुऽउद्यतऽआश्वि न पर्यस्यानीयमनिपौष्ण्णोबिष्यन्दमानमारुतः कुर्थन् // मत्तः रूपम् पशूपकारः / अन्नसारसः / यशश्च / थौच्च श्रयताम् आश्रयन्तु / मथि / मामितिविभक्निव्यत्ययोवा | यन्महाबीरभेदनेनापचितंतत्सर्वमुप चौयतामित्यर्थः // 4 प्रजापति: संमियमाण For Private And Personal Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir इति महाबीरावस्थान प्रतिपादिकाश्रुतिः // 5 // सविताप्रथमेहन्निसाह / देवतासंवन्धविधानाश्रुतिः / महावीरप्रायश्चितानि समाप्तानि // 6 // उग्रश्च / अग्निकण्डिका। अरण्यध्ययनसा• शरसिसन्तुाय्याने ब्वायव्योहियाणऽ आग्नेयोहूयमानीवाग्घु तः // 5 // सुविताप्ग्रथुमे // हन्नुग्निहितीयेब्वायुस्तृतीयऽआदित्य चतुर्थेचन्द्रमाः पञ्चमऽऋतु: षष्ठे मुरुतः सप्तमेवहस्पतिरष्टमे // मित्वोनवमेवरुणोदशमऽइन्न्द्रऽएकादर्शविश्वेदेवाहादशे // 6 // उग्ग्रपञ्च भीमप्रच्चद्ध्वान्तश्चधुनिश्च॥ सासुहबापच्चाभियुग्ग्वा , चविक्षिपः स्वाहा // 7 // अग्निहृदयेन // अग्निहृदयनाशनि मान्यदिहपाठः / मारुतोगायची विमुखाख्या / भीमश्चध्वान्तश्च धुनिश्च / सासवांश्च / अभियुग्वाच / विक्षिपश्च / वापिच कारःप्तमुच्चयार्थीयः / एवंसप्तमरुतः // 7 // अग्निहृदयेन / आश्व-शिवम् For Private And Personal Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir मेधिकम् अा अध्याय समाप्तेः / अरण्य ध्ये यत्वादिहपाठः / ( 1 ) ई कण्डिके श्रुति देवताश्वाव हृदयाग्ग्रेणपशुपतित्स्नुहृदयेनभुवय्युक्ला // शुर्खम्मतन्नाब्भ्या / / मीशानम्मन्न्युनामहादेवमन्त पशुव्येनोग्ग्रन्टेवंयनिष्ठठुनावसि / ष्ठठहनु शिगोनिकोश्याभ्याम् // 8 // उग्युलोहितेन // मित्रांसो यबसंबन्धविधानात् // 8 // (2) स्पष्टार्थः // 6 // (१)तवाग्निं दयेन उग्र लोहितेन हे कण्डिके ब्राह्मणरूपे देवताखावयवसम्बन्धविधानात् श्रारण्येऽध्येय त्वादिह पाठः / लोमादोन्यान्य व पठितानि आयासादयो देवता एव // अथ मन्त्रार्थः हृदयेनानाग्निं देवं प्रीणामि / हृदयस्यायभागनाशनि देवं प्रोणामि / समग्रहृदयेन पशुपतिं देवं प्रीणाम / यायकृता कालखण्डे न भवं देवं प्रोणाम पद्दन्न इत्यादिना यक्वच्छब्दस्य यकवादशः / मताने हृदयास्थिविशेषो ताभ्यां शवें देवं प्रोणामि / मनाना अश्वसम्बन्धिक्रोधेन ईशानं देवं प्रोणामि / अन्तर्वतमानेन पर्शव्य न पाङस्थिसम्बन्धिना मांशेन महादेवं देवं प्रोणामि पर्णवः पास्थिोनि / बनिस्थ लान्च तेनोग्र देवं प्रोणासि / वसिष्ठहनुः वसिष्ठस्य देवस्थ हनुः कपोलैकदेशो ज्ञातव्यः यडा वसिष्ठा या हनुः कयोलाधो देशः तत्परा हनुरित्यमरः तत्वरा कपोलाधोभागस्था हत्याहारमिति हनुः लिङ्गर तायः वतिठहन्वा कोश्याभ्यां कोशो हृदयकोश: तत्स्थाभ्यां मांसपिण्डाभ्यां च शिङ्गोनि शिङ्गिसज्ञानि देवतानि प्रीणामि // 8 // (2) लोहितेनासुजा उग्र देवं प्रोणामि / शोभनं व्रतं कर्म यस्य म सुव्रतस्तता भावः सौबता शोभनम्तादिवर्मकट त्वम्। 173. For Private And Personal Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir (1) तथाचानुक्रमणौअग्निठ हृदयेमाश्वमेधिकातबत्त्यएवर्षि लोमभ्यः स्वाहेतिप्रायथित्ताइत व्रत्त्येनरुदन्दौव्रत्त्येनेन्ट्रम्प्रक्कोडेनमरुतोबलेनसाड्यान्णमुदा // भु वस्युकण्यकुदस्यान्तापाप्रयम्महावस्युवक्तच्छबस्यवनिष्ठठु:पशु - पते पुरोतत् // 6 // लोमभ्यु स्वाहा // लोमभ्यु स्वाहाखुचे / / खाहात्वचेखाहालोहितायस्वाहालोहितायुस्वाहामेदोभ्युस्वाहा मेदोब्ल्यु स्वाहा // मासेदश्यु स्वाहामा सेभ्यु स्वाहास्नादम्यु क खाहास्नावस्य वाहास्त्थब्भ्यु स्वाहास्त्थभ्यः स्वाहांमुज्जय शिवम् योदिचत्वारिंशत् // 10 // तेनमित्र देवं प्रोणामि / दुष्ट स्खलनोच्छुलनादि प्रतं यमा स दुतः तस्य भावो दौर्वताम् तेन रुद्र' देवं प्रीणामि / प्रकष्ट क्रोडनं प्रक्रोडः तेनेन्द्र देवं प्रोणामि / बलेन सामर्थन मरुतो देवान्प्रीणामि। प्रमुदा प्रकष्टा सुत हर्षः प्रमुत् तया साध्यान् देवान् प्रीणामि / भवसा कण्ठाम् अत्र षष्ठान्ती देव: अङ्ग प्रथमान्तम् कण्ठा कण्ठं भवं मांसं भवसास्तु विभक्तिव्यतायो वाकण्ठ्य न देवं प्रोणामि / एवमग्रेऽपि / पावसान्तमध्ये भवं मांसमन्त:पाश्वा तद्रुद्रसपास्तु / यत् कालखण्ड महादेवस्यास्त / वनिष्ठुः स्थूलाम्व शवस्यास्तु / पुरातत् हृदयाच्छादकमन्त्र पशुपतदेवसवास्तु // 8 // (1) लोमभ्यः स्वाहेति प्राथश्चित्ताहुतयो विचत्वारिंशत् / तीमादीब्यङ्गानि / लोमभ्यः स्वाहा नोमानि जुहोमीतार्थः त्वचे For Private And Personal Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir स्पष्टार्थ: (1) // 11 // (2 // 12 // 3) // 13 // स्वाहामुज्जब्भ्यः स्वाहा // रेसिस्वाहापायवेस्वाहा // 10 // आया सायुस्वाहा // प्रायासायुस्वाहासँय्यासायस्वाहाब्वियासायुस्वा होडासायुस्वाहा // शुचेस्वाहाशोचतुस्वाहाशोच॑मानायुस्वाहाशी, कायुस्वाहा // 11 // तपसुस्वाहा // तप्प्यतु स्वाहातप्प्यमानायुस्वा / हातप्प्तायुस्वाहाँघुर्मायुस्वाहा // निष्कृत्त्यै स्वाहाप्प्रायश्चित्त्यै / / स्वाहभिषजायस्वाहा // 12 // युमायस्वाहा // युमायुस्वाहान्तकायु लोहिताय मेंदोभ्यः मेदो धातुविशेष मांसभाः स्नावभाः नावानः सायवो नसाः अस्थभाः छन्दसापि दृश्यते इत्यस्थिशब्दसा हलादिविभक्तावितानादेशः मज्जभाः मज्जा षष्ठो धातुः रेतसे रेतो वोयम् // 10 // (1) पायासाय आय.स.दयो देवविशेषाः प्रायासाय संयासाय वियासाय उद्यासाय शुचे शोचते शोचमानाय शोकाय // 11 // (2) तपसे तप्यते तप्यमा नाय तप्ताय धर्माय निष्कृता प्रायश्चिता भेषजाय // 12 // 3) यमाय अन्तकाय मृतावे ब्रह्मण ब्रह्महताय विखेभयो देवेम्यः एते For Private And Personal Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir ___इति उबटकृतीमंत्रभाष्ये एकोनचत्वारिंशत्तमोध्यायः // 36 // समाप्तं कर्मकाण्डमिदानीजानकाण्डं प्रस्तूयते / ईशावासम् / तिस्रोनुष्ट भ: / दध्यङ्ङाथणऋषिः स्वशिष्यपुत्रंबा गर्भाधानादिभिः मस्कारैः संस्कतशरीरमधीत वेदमुत्पादितघुत्रं यथाशक्तिकई अनुष्ठितयज्ञमपापं निस्पहं यमनियमवन्तम तिथिपूजापनीत किलिकषं मुमुक्षुमुपसन्नं शिक्षयन्नाह। स्वाहामृत्त्यव्स्वाहा // ब्रहम्म॑णुस्वाहाब्रह्महत्त्यायैस्वाहाविपर्व भ्योदेवेभ्यः स्वाहाद्यावापृथिवीभ्यास्वाहा // 13 // __ इतिश्रीसंहितायान्दोग्र्घपाठेएकोनचत्वारिंशोध्यायः // 36 // ___ * ॐईशावास्यम् // ईशावास्यमिद सय्यत्किञ्चुजर्गत्याज ईशावास्यम / इदंसर्वन ईशा / ईशऐश्वये तृतीयान्तसातट्र पम्। यदीशनेन / वासंग्रवसनीयम ममेदभित्यनया भावना आच्छादनौर म् / इदंसर्वमितिपत्ताक्षतो निर्दिश्यत इति यत्किञ्च यत्किञ्चशब्दोभगो देवेभाः सुहुतमस्त / एताहुतोहु त्वा द्यावापृथिवीभाां स्वाहेतान्यामाइति जुहुयात् एतावता कर्मकाण्डं समाप्तम् // 13 // * ईशावासामष्टावंधतमोनवहौसप्तदश // शिवम् For Private And Personal Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir भिन्नक्रमः / किञ्च / यत् जगत्तयां पथिव्यां जगत्जङ्गमादिस्वस्वामि संवन्धाभिलक्षितंसवात् / तेनानेनसर्वेण / त्यक्तेन त्यक्तस्वस्वामिसंवन्धेन / भोगान्भुञ्जीथाः अनुभावयश्व / मागृधः / गृधुअभिकाङ्क्षायाम् / माभिकांक्षौः ममेदमितिधियन्त्यज / कसाखिड्दनम् / खिन्निपातोवितक्रवचनः / कसापुनरेतद्धनम् नकसाचिदपौत्ताभिप्राय: / सर्वण्ययथार्थानि हिट्रव्याण्युत्पद्यन्ते। तद्यया / स्त्रियमिति अन्य सामंत अन्यथापुत्रः अन्यथामापूर्णकः / तथाकटककेयुरादौन्यलङ्करणारे निअन्यंचान्यच पुरुषमुपतिष्ठमानानिदृश्यन्ते / अतःसर्वार्थमायस्यस्वस्वामिसंवन्धःसात्वविद्या। नि गत् // ते त्युक्त नभुज्जीथामाधुः कस्यस्बुिद्धनम् // 1 // कुल र न्नेव // कुर्वन्नेवेहकर्माणिजिजीविषेच्छुतम्समा // एवन्त्वयुिना स्पृहसायोगेधिकार इतिवाश्यार्थः // 1 // नि:स्पृहसमापि योगिनोज्ञाननिमिते कर्मण्यधिकारइत्येतमर्थमाह / कुर्वन्नेव / कुर्वन्ने वकर्माणि मुक्ति हेतुकानि / इहलोके / जिजीविषेत् जिजीविषेरिति पुरुषवात्ययः / प्रत्यक्षकृतत्त्वान्मवस्य / जीवितमिच्छ: पध्यहितमितभक्षणेन / शतंसमाः इत्यपलक्षणार्थम् / यावदायः पर्यवसानमित्तार्थः / एवम / त्वयितवेति- की विभक्ति वातायः / 'मुक्तिरस्तौतिशेषः नान्यथेतोस्ति / इतःप्रकारात् अन्यथामुक्तिर्नास्ति / एतदुक्त भवति / यथास्वर्गमाप्तौनानाभूताः प्रकाराः सन्तिनतथा मुक्तावित्यर्थ: / ननुकर्मणः For Private And Personal Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir o फलेनभवितवा मथक मुक्तिप्राप्ति रित्य तदाशंक्याह / नकर्मलिप्यतेनरे। नहिमुक्त्यर्थक्रियमाणं कर्मनरेमनुष्येसंबध्यते मुक्तिप्रदानेनो पक्षौणशक्तित्त्वात् / तथाच वृहदारण्यकम् / तमेतंवेदानुवचनेन विविदिषन्ति / ब्रह्मचर्येणतपसाश्रद्धया यतेनानाशकेनचेति / विविदिषन्ति वेदितुमिच्छन्ति / अनेनेतद्दर्शयति / यावदिच्छा प्रत्तिः तावत्कर्मस्वधिकारइति // 2 // इदानौं३ स्वर्गादि प्राप्ति हेतुभूतानि कर्माणिये कुर्वन्तिते निन्यन्ते / आसुर्यानामेति / असुर्याः / परमात्म न्यथेतीस्तुिनकर्मलिप्प्यतुनरें // 2 // असुर्य्यानाम् // तेलोकाऽअन्धे नतमसावता: // ताँस्तेप्प्रत्यार्पिगच्छन्तुिवेकेचात्महनीजना // 3 // अनजदेकम् // अनेजुटेकुम्मनमोजवौंयोनैनवाऽआप्नुवन्नपूर्वमर्शत्॥ से भाव महयमपेक्ष्य देवाअप्पसुराः / असुराणां स्वभूताअसुर्याः एवंसंज्ञकास्तेलोकाः अन्धेनत मसाअज्ञानलक्षणेनतमसाआटताः सर्वतोवताः / तान्लोकान्तेजना: प्रेत्यमलाअपिमच्छन्ति / येकेचात्महनोजनाः / आत्मानंघ्नन्तियेजनाः तेआत्महन: आत्मानञ्चतघ्नन्तियेस्वर्ग णिकुर्वन्ति / तेहिजनित्वामयन्ते मत्वाचजायन्ते / एवमहर्निशंनाशंप्राप्नुवन्ति // 3 // इदानीमधस्तनयमनियमवतांमुमुक्षूणां यथाभूतं परब्रह्मात्मत्वेनोपास्यन्तदाह / उक्ताच्च / अहंब्रह्मा शिवम् For Private And Personal Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir स्मिसंमध्यइदंसर्वचमन्मयम् इयंविद्यासमुद्दिष्टाविमुक्तिर्यन्निवन्धनीति // अनेजदेकम् / विष्ट, यत् अनेजत् अचलत्तत्वमस्ति एकमद्वितीयम विज्ञानघनरूपेण / मनसोजबीयः / मनस्ता वच्छीघ्रम्भवतिततोपिशीघ्रतरं प्रसवदानेनकारणभूतत्वात् नैनवाआप्नुवन् / नचैतत्तत्वं देवाअपिप्राप्तुंशताः सूक्ष्मत्वात् / पूर्वम् अर्शत् / रिशतिहिंसाकर्मा / अविनश्यदास्ते / अनादिनिधनमित्यर्थः / तदावतः तदःस्थानयदोहत्तिरुद्दे श्यत्वात / यच्चधावत: अन्यान् पुरुषादीन अत्येतिअतिक्रम्यगच्छति। तथाचतिष्ठत् सर्वत्रस्थितम् / सर्वशक्तित्वं सर्गगतत्वंचानेनव्याख्यातद्धावतोन्न्यानत्त्येतुितिष्ठत्तरिम्मन्नुपोमातुरिश्ादधाति // 4 // तदे जति // तन्नतित रेतन्तिके॥ तदन्तरस्युसवस्युतदुसर्बस्यास्य / / यते / तस्मिन्नपः / अत्रापियदो वृत्तिमम्मिंश्चाप: कर्माणिमातरिश्वावायुः दधातिस्थापयति। सर्वाणिकर्माणियज्ञदानहोमादीनि समिष्टयजूंषिवायौस्थाप्यन्ते स्वाहावातेधातिवायोः प्रतिठत्वाभिधात् / समष्टिव्यष्टिरूपोह्यसावितिवायुरपियस्मिन्कर्माणिस्थापयति / यागहोमादीनां परमन्निधानमित्यर्थः // 4 // एवंकारणरूपमात्मानमहिश्य / अथेदानीकार्यरूपेणोद्दिशति / तदे-3 जति / अनुष्ट भस्तिस्रः / तदेवसर्वप्राणिरूपेणावस्थितं सतएजतिकम्पबद्भवति / क्रियावद्भवति For Private And Personal Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir t. तन्नेजति / तदेवचनचलतिस्थावररूपावस्थितं सत् तद्रे तदेवचटूरेआदित्यनक्षत्रादिरूपेणावस्थि तम् / तत् उअन्तिके / उ:समुच्चये / तदेवचअन्तिके पृथिव्यादिरूपेणावस्थितम् / सर्वखल्विदं / / ब्रह्मेत्येतद्दर्शनार्थोग्रन्थः / तदन्तरस्यसर्वस्य / तदेवचअस्यसर्वस्य प्राणिजातसा / विज्ञानघनरूपेणा वस्थितं सत्अन्तर्मधातास्ते / तदुसर्वस्यास्यवाद्यत: / तदेच सर्वस्थास्यप्राणिजातस्य बाह्यतः जनरूपेणावस्थितमास्ते। चेतनाचेतनरूपमनन्तं सर्वगंब्रह्मेत्यर्थः / अस्याउपासनाया अचिराद्यनुचिन्तनं नास्तीत्येवङ्केचिदाहुः इहैवब्रह्मप्राप्त : // 5 // यस्तु / तुशब्दोविशेषणार्थ: यःपुनःसर्वाणिभूताबायुत // 5 // वस्तु॥ वस्तुसर्बाणिभूतान्न्यात्मन्नेवानुपश्यति॥ सर्वभूतेषूचात्मानुन्ततोनविचिकित्सति // 6 // यस्म्मुिनत्सवाणि निचेतनाचेतनानि आत्मन्नेवअनुपश्यति / मय्येवसर्वाणि भूतान्यवस्थितानि नमव्यतिरिक्ता नि / अहमेवपरब्रह्म / सर्वभूतेषु चात्मानम् अवस्थितं तद्यतिरिक्तंपश्यति / ततोनविचिकित्मति / / नसंशते / एवंपश्यतो योगिन: परब्रह्मरूपाण्यात्मसंस्थानि भवन्ति विज्ञानघनान न्दैकत्वादिति। अतोविचारा नविनिवर्तते॥६॥ किञ्च / यस्मिन अवस्थाविशेषे / सर्वाणिभूतानि चेतना For Private And Personal Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org चेतनानि / आत्मैव अभूत् संभवन्ति / विजानत: आत्मबेदम् सर्वं / सर्वखल्विदंब्रह्मेत्येवमादि वाक्यविचारेण विधृतविज्ञानसा / तत्रअवस्थाविशेषेकृत चेतसोयोगिनः कः मोहः कःशोक: नकश्चिदपौत्यभिप्रायः / शोकमोही ह्यपरिजात तत्वसाभवतः / हेतुगर्भविशेषणमाह / एकत्वमनुपश्यतः सर्वाणिभूतानि ध्यायतः // 7 // स पर्यगात् / जमती / य एवमात्मानमुपास्ते स पर्यगात्परिगच्छति शुक्र शुक्लं विज्ञानानन्दस्वभावमचिन्त्यशक्तिम् / अकायं न विद्यते कायः शरीरं यसा भूतान्न्यात्मैवाभूद्दिजानतः // तत्रुकोमोहः क शोक एकत्त्वम॑नुप पश्य॑तः / / 7 // सपरि // सपर्श्वगाच्छुक्क्रमकायम॑व्रणमस्न्नाविर शुद्धमापविड्म् // कुविमनीषोपरिभू स्वयम्भूख्थातत्थ्युतो , स तथोक्तः अव्रणं कायरहितत्वादेवास्नाविरं स्नायुरहितमकायत्वादेव शुद्धमनुपहतं सत्वरजस्त मोभिरपापविच क्लेशकर्मविपाकाशयैरसंस्पृष्टमकायमत्रणमनाविरमिति पुनरुतान्यभ्यास भृयांसमर्थम् मन्यन्त इत्यदोषः इत्यंभूतं ब्रह्म प्रतिपद्यते। अथात्मोपासनायुक्तसा फलमाह / यश्च कविः क्रान्तदर्शन: मनीषी मेधावी परिभूः सर्वतो भविताविज्ञानबलात्स्वयम्भूः स्वयं ज्ञान 174. For Private And Personal Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir बलाब्रह्मरूपेश भविता स: याथातथ्यतोऽर्थान्व्यदधाद्यथास्वरूपमर्यान्विहितवान् / त्यक्तस्वस्वामिसंवन्धैरर्थेश्चेतनाचेतनैझपभोगं कृतवान् / शाश्वतीयोऽनन्ताभाः समाभोऽर्थाय अनन्तवर्षप्राप्तये च कर्म कृतवान् / ननु क मजाड्याल्लोकः कर्मवान्भवति। सत्ताम् / आत्ममंस्कारकन्तु कर्मव्रह्मभावजनकस्यात् / तस्मात्सोपिगच्छति शुक्रमकायंब्रह्मइति // 8 // इतउत्तरम् उपासनामंना:ग्रोच्यन्ते / अन्धन्तमः / षडनुष्ट भः / लोकायतिकाः प्रस्तूयनिन्द्यन्ते / येषामेतद्दर्शनम् / जलवुद्ध दवज्जीवाः / मदशक्तिवहिज्ञानमिति / अन्धन्तमः प्रविशन्तियेमभृतिमुपासते। मृतस्यसत: व्यदधाच्छापखुतीभ्य समाभ्यः // 8 // अन्धन्तमु // प्रविशन्तुि येसम्भूतिमुपासते॥ ततोभयंऽबुततमोबाउसम्भूयारता? // 6 पुनः संभवीनास्ति अत:शरीरग्रहणा दस्माकमुक्तिरेव / नहिविज्ञानात्माकश्चिदनुच्छत्ति धर्मास्ति / योयमनियमैः / संवधाते / एवंयेउपासते ते अन्धम् अज्ञानलक्षणतमः प्रविशन्ति / ततोभूय इवतेतमः / ततोपिवहुतरम् / दुवोनर्थकः / तेतमः प्रविशन्ति / येउ उकार: कर्मोपसंग्रहार्थीयः / / येसंभूत्यामेवरता:। आत्मैवामिनान्यत्किञ्चिदस्ती त्ययमभिप्राय: / कर्म पराङ्मुखाय तत्कर्मकाण्डतानकाण्डयोरसंभव इत्ययमभिप्रेत्य खबुद्धिमङ्गुतांविभावयन्त: आत्मज्ञानएवरताः // 6 // अन्यदेव / शिवम् For Private And Personal Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir अन्यदेवफलम् आहुः संभवात् संभवपरिज्ञानात् अन्यच्च आहुःफलम् / असंभवपरिज्ञानात् / इति एवं / शुश्रुमः श्रुतवन्तोवयम् / धीराणांवचांसि / येधीराः नःअस्माकम् तत्ब्रह्म / विचचक्षिरे। आख्यातवन्तः // 10 // सम्भूतिंच / समस्तसाजगतः संभवैकहेतुं चपरब्रह्म / विनाशंच विनाशिशरौरंच / यःयोगी / तदुभयंवेदजानाति / सहएकीभूतम् / शरीरग्रहणेन जानोत्पत्तिहतृनिकर्माणिअन्य व // अन्न्यदे॒वाहुः सम्भवादन्न्याहुरसम्भवात् // इतिशु प्रश्रुमुधोरणास्येनुस्तहिचचक्षुिरे॥१०॥ सम्भूतिञ्च // विनाशञ्चुयस्त / / हेदोभयं सुह // विनाशनमृत्युन्तीगसम्भूत्त्यामृतमश्नुते // 11 // / अन्धन्तम // प्रविशंतियेविद्यामुपासते॥तताभूयं बुतेतमायऽउ / 2 करोति / सःविनाशेन / विनाशिनाशरीरेण / मृत्युती|उत्तीर्य / संभूत्या आत्मविज्ञानेन / अमृ तमश्नुते / अमतत्वमश्नातीत्यर्थः // 11 // अन्धन्तमः / अज्ञानलक्षणं तमःप्रविशन्ति / येअविद्याम् स्वर्गाद्यर्थानिकर्माणि उपासतेअनुतिष्ठन्ति / ततोभयवतेतमः। ततोपिवहुतरम् इवोनर्थकः / For Private And Personal Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir तेतमः / प्रविशन्ति / येउयेपुनः / विद्यायामेवरताः / आत्मज्ञान एवाकृतकर्माणोरतानराः // 12 // अन्यदेव / अनादेव फलमाहुः विद्यायाः आत्मज्ञानादनाच्च आहुः अविद्यायाः कर्मण इति शुश्रुमेत्यादिव्याख्यातम् // 13 // विद्यां च / आत्मज्ञानं च अविद्यां कर्म च यस्तदुभयं वेद जानाति सह एकीभृतं कर्म काण्डं जानकाण्डस्य गुणभूतमथ कर्मकाण्डं जानकाण्डं च विद्यार्या रताः // 12 // अन्न्यदेव // अन्न्यदुवाहुर्खिद्यायोऽअन्न्य दाहुरविद्याया:॥ इतिशुरथुमुधौर्राणांट्येनुस्तहिचचक्षुिरे // 13 // लि द्याञ्च // लियाञ्चाविद्याञ्चयस्तहेटीभयंसह // अविद्ययामुत्त्यु / न्तीाबिद्ययामृतमश्नुते // 14 // ब्वायुरनिलम् // ब्वायुरनिलम एकीकृत्य अविद्यया कर्मकाण्डेन मृत्यु तीर्वोत्तौर्य कृतकृत्यो भूत्वा विद्यया ब्रह्मपरिज्ञानेनामृतत्वं मोक्षमश्नुते प्राप्नोति // 14 // इदानौमित्य कृतब्रह्मोपासनसा योगिन: शरीरपातोत्तरकाले यद्भवति तदाह / वायुरनिलं / वायुग्रहणमिन्द्रियाण्य कादश महाभूतानि पञ्चक शिवम For Private And Personal Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir जीवात्मैकः एवं सप्तदशकलिङ्गोपलक्षणार्थं वायुः प्राणोऽनिलं स्वकीयां प्रकृतिमापद्यते अमृतं - परं ब्रह्म तद्धि तहिताय संपद्यते / अथेदं स्थूलशरीरं कीदृशं तदा भवति भस्मान्तम् भस्मैव भवति कृतप्रयोजनकत्वात् / इदानीं योगिन: आलम्बनभूतमक्षरं कथ्यते ॐ इति नाम वा प्रतिमा वा ब्रह्मणः / इदानीमन्तकाले योगी स्मरणं करोति / क्रतो स्मर / योऽग्निब्रह्मचर्यादारभा परिचरितः सः मन.श्वासरूपेणावखितः संवोध्यते / हे क्रतो मां स्मरेदानीमुपस्थितः प्रत्युमृतमथुदम्भस्म्मान्तु शरॊरम् / / ॐ३ // तोमर // क्लिवेस्मर // कृतस्मर // 15 // अग्ग्नेनय॑ // सुपारायेऽस्म्मान्विश्वानिदेव पकारसा काल इत्यभिप्राय: / क्रतुर्वा यन्नः संवोधाते / क्रतो स्मर क्लिवे स्मर क्लृप्ताय लोकाय स्मर कृतं स्मर मया यत्कृतं तत्स्मर // 15 // अग्ने नय / हेअग्ने नय सुपथा देवयानेन मार्गेण राये मुक्तिलक्षणाय धनायास्मान्विश्वानि सर्वाणि देव दानादिगुणयुक्त बयुनानि प्रज्ञानानि विदाञ्जानान: युयोधि पृथक्कुरु च अस्मत् अस्मत्तः जुहराणम् प्रतिवन्धकमेन: For Private And Personal Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir पायम् / यतो भूयिष्ठान्तेनमउक्ति विधम वहुतरां तव नमस्कारोक्तिं कुर्मःव्याख्यातायाः पुनर्वचनं विशेषार्थम् // 16 // हिरण्मयेन / इदानीमादित्योपासनमाह / यद्यपि हिरण्मयरूपेण पाबण येनरोप्यमयेन पावे ण / भिवन्त्यस्मिन्निवस्थितांरसारश्मय इतिपात्रमण्डलम् / तेनपाचेण मण्डलेन सत्यस्याविनाशिनः पुरुषस्य अपिहितमन्तर्हितम् / मुखंशरीरम् / तथापि यः असौव्वयुनानिबिद्दान्॥ वुयोड्युस्म्म हुगणमेनोभूयिष्ठान्तुनमंऽउक्ति विधेम // 16 // हिरगणमयेनुपात्रेण // सुत्तास्यापिहितुरमुखम् // योसावादित्यपुरुषसोसावहम् // 17 // ओं३ आदि त्य पुरुषः योगिभिरुपलक्ष्यते / सःअसौअहम्अस्मि / एतांचोपासनांकुर्यात् // 17 // ओखंब्रह्म / ओमितिनाम निर्देश: / पाकाशस्वरूप ब्रह्मधायेत् आन्मत्वेन / नन्वचेतन आकाश: चेतनआत्मा / तद्यथा। विज्ञानमानन्दब्रह्मइति तत्रानन्दप्रतिपादकंवाक्यम् / सयोमनुष्याणांराव: समृद्धोभवतीत्युपक्रम्य / अथशतं येप्रजापतिर्लोकआनन्दाः सएकोब्रह्मलोकआनन्द इतितथासर्वनिय न्तत्त्व दर्शयति / एतस्थवा अक्षरस्थप्रशासने गार्गी पुपक्रम्य / द्यावा शिवम For Private And Personal Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir पृथिवीविधृते तिष्ठतइत्यादि / तथासर्वज्ञत्वदर्शयति / यहा एतमक्षरंगागि अदृष्टंदृष्टइत्यादि / तथामत्यसंकल्पादयोस्यगुण: शू यन्ते / सत्यसङ्कल्पः सत्यधष्टिरित्यादि / यदेववंतहि / एतबैतदक्षरंगार्गि अस्मिन्वा आकाश ओत श्चप्रीतश्चेति ओतप्रोतसामान्यात आकाशेनैवैतद्रपंब्रह्माभिहितस्यादिति / अयमेवच ब्रह्माभिहितस्यादिति / अयमेवच ब्रह्मवित्सिद्धान्त: // खस्त्रहम्म॥ * इतिश्रीवाजसनेयसँहितायान्दोग्धपाठेचत्वारिंशत्तमोध्यायः // 4 // इति उब्वटकृतौमन्वभाष्ये चत्वारिंशत्तमोधायः समाप्तः // 40 // श्रानन्दपुरवास्तव्य बजटाख्यस्यसूनुना / उब्वटेनकृतंभाष्यं पटवाक्यैः सुनिश्चितैः // 1 // ऋष्यादीश्चनमस्कृत्य मवन्ताामुबटोवसन् मन्त्राणांकृतवान्भाष्यं महीम् भोजेप्रशासति // 2 // शिव शिवङ्करोतुन: // विश्वे प्रवरोविजयतेतराम्॥ ___ सं० 1850 मार्गशीर्ष कृष्णपक्षे प्रतिपत्तिथौ शुक्र भाष्यमगमच्छुभम् / * दशाध्यायेसमाख्यातानुवाकाः सर्वसंख्यया। शतंदशानुवाकाश्चनवान्येचमनीषिमिः / 1 / सप्तषष्ठिश्चितौनेयासौत्र हाविशतिस्तथा / अश्वएकोनपञ्चाशत्पञ्चत्रिशत्विलेस्मताः / 2 / शुक्रियेषतविज्ञेया एकादशमनीषिभिः। एकीकृत्यसमाख्यातंत्रिशत त्राधिकंमतम् / 3 / For Private And Personal Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir जयन्तिकाधीश्वरदेशवासिभिः वेदार्थविद्भिः प्रभुदत्तशर्मभिः / भाष्येकिलास्मिन्कृतशुद्धिटिप्पणे पराईभागोयमजीगमच्छुभम् // For Private And Personal