Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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चराध्य
पवनम्
११२९६
SAIRAHUA
धारण कयों. क्रमथी महिना पूर्ण थतां शुभ अवसरे श्रीभगवन् उत्पन्न थया. छप्पन दिक्कुमारीओए प्रथम श्रीभगवान्नो जन्महो-5
भाषांत त्सव कों. त्यार पछी पोतानां आसनो कंपवाने लीधे श्रीभगवान्नो जन्म थयो जाणी लइ इंद्रोए मेरु पर्वतमा शिखर पर श्रीभग-टू
1अभ्य०१५ चान्नो जन्माभिषेक कयों. प्रभातमां अश्वसेन राजाए पण शहेरमां दस दिवसनो जन्मोत्सव कयों. आ श्रीभगवान् गर्भमा रहेतां ॥२९॥ माताए पोतानी पासेथी जतो सर्प रात्रे जोयो इतो, तेथी आनु पार्श्वनाथ ए नाम पाडयु. त्यार पछी कल्पवृक्षनी पेठे लोकोने आनंद आपनार ते श्रीभगवान् मोटा थता गया. श्रीभगवान् आठ वर्षना थया त्यांनी सर्व कळाओमां कुशळ थया. पछी श्रीभगवन् मनोहर लागती युवावस्थाने प्राप्त थया. पिताए त्यारे तेमने प्रभावती नामनी कन्या साथे परणाच्या. श्रीभगवान् तेनी साये विषयसुख भोगवता हता. एक दिवसे महेलनी उपली भोंमा झरुखामां बेसी दिशाओर्नु अवलोकन करतां श्रीभगवने नगरना लोकोने हाथमा उत्तम | पुष्पो लइ बहार जता जोया. श्रीभगवाने कोइ पासे रहेनारा सेवकने पुछ्यु 'अरे, शुं आजे कोइ पर्वने निमित्त उत्सव छ ? के जेथी आ
लोको हाथमां पुष्प लइ बहार जाय छे. १ ते सेवके का आजे कोइ पण पर्वने निमित्ते उत्सव नथी, परंतु कमठ नामना महातपस्वी | शहेरनी बहार आव्या छे, तेने प्रणाम करवा माटे आ लोको जाय छे. ॥७॥
ततस्तदूचनमाकर्ण्य जातकौतुकविशेषो भगवांस्तत्र गतः पंचाग्नितपः कुर्वाणं कमळं दृष्टवान्. त्रिज्ञानवता भगवता ज्ञात एकस्मिन्नग्निकुंडे प्रक्षिप्तातीवमहत्काष्टमध्ये प्रज्वलन् सर्पः. उत्पन्नपरमकरुणेन भगवता भणितमहो कष्टमज्ञानं, यदीडशेऽपि तपसि क्रियमाणे दया न ज्ञायते. ततः कमठेन भणितं राजपुत्रास्तु कुंजरतुरगखेलनमेव जानंति, धर्म तु मुनय एव विदंतीति. ततो भगवतैकस्य स्वपुरुषस्यैवमादिष्टं, अरे! इदमग्निमध्ये प्रक्षिप्तं काष्टं|
ॐॐKARCHASE
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