Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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KHESARKA
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अर्थ:-हेश्रीकेशी मुनि ! हुं ते सर्व पाशोने छेदी, तथा उपायथी कटके कटका करी नाखी, पाशोथी मुक्त थह हलको बनी विहार करूं छु.॥ ४ ॥ उपराध-काव्या -हे केशीमुनेलान् पाशान् सबंशः सर्वान् छिस्वा. पनस्तान पाशानपायतो निस्संगादिस्वाभ्यासा-1 मापावर पन सत्रम् ||निहित्य पश्चान्मुक्तपाशो बंधनरहितः सन् लघूभूतोऽहं विहरामि. ॥ ४१॥॥
अध्य०१३
॥१३३१० __अर्था—हे श्रीकेशी मुनि ! ते मर्यशः-सघळा पाशान-पाशोने छेदी, बळी ते पाशोना उपायथी-निःसंगपणा वगेरेना | अभ्यासथी कटके कटका करी नाखी मुक्तपाश-बंधनरहित थइ हलको बनी हु विहार करूं छु. ॥ ४ ॥
मूस-पासा इइ के वृत्त । केसी गोयममब्ववी ॥ तओ केसी बुवंतं तु । गोयमो इणमब्बी ॥४२॥ अर्थ:-श्रीकेशी साधुए श्रीगौवनने कोने पाशो कया के एम बमु. न्यार पछी एम कहता श्रीकेशी साधुने तो श्रीगौतमे आ कटु । ४२ ॥ __ व्या-इति गौतमवाय यादनंतर केशीश्रमणो गौतममब्रवीत्, हे गौतम! पाशाः के उक्ताः ? बंधनानि कान्यु कानि? तत इति पृच्छत केशीकुमारमुनि गौतम इदमुत्तरमब्रवीत्. ।। ४२ ॥
अर्थः-ए प्रमाणे श्रीगौतमना वाक्य पछी श्रीकेशी साधुए श्रीगौतमने कडं, हे श्रीगौतम ! कोने पाशो कह्या छ ? कोने बंधनो कयां ? त्यार पछी एम पूछता श्रीकेशीकुमार साधुने श्रीगौतमे आ उत्तर आप्यो. ॥ ४२ ॥
मू-रागहोसाइओ तिब्वा । नेहपामा भयंकरा ॥ ते छिदितु जहानायं । विहरामि जहकम ॥४३॥ | अर्थी-रागपादिक तीव्र अने भयंकर स्नेह पाशो के तेश्रोने न्याय प्रमाणे छेदी साधु लोकोना बाचारनी पद्धति प्रमाणे विहार करू छ. ॥॥॥ हे केशीमुने जीवानां रागद्वेषादयस्तीवाः कठोराइछेत्तुमशक्याः स्नेहपाशा मोहपाशा उक्ताः कीदृशास्ते स्नेहपाशा?
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