Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 240
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कोडी छे दास प्रभु ताह रे, माहरे देव तु एक रेः कीजिए मार सेवक तणी, ए तुज उचित विवेक रे. स्वा० भक्ति भावे इस्युं भाखीए, राखीए अह मनमांही रेः दासनां भव दुःख वारिए; तारए सो ग्रही बांही रे. स्वा० बाळ जिम तात आगळ कहे, विनवुहुँ तिम तुज रे; उचित जाणो तिम आचरु, नवि रह्यो तुज किस्युगुज्जरे. स्त्रा० मुज होजो चित्त शुभ भावथो, भवोभव ताहरी सेव रे; याचीए कोडी यतने करी, एह तुज आगले देव रे. स्वा० ईम सकळ सुखकर दुरित मयहर, विमळ लक्षण गुणधरो; प्रभु अजर अमर नरिद वंदित, विनव्यो सीमंधरो निज नाद तर्जित मेघ गर्जित, धैर्य निर्जित मंदरो; श्री नयविजय बुध चरण सेवक, जशविजय बुध जय करो. श्री युगमन्धर जिन स्तवन (१) वप्रा विजय विजयापुरी माता सुतारा नंद लाल रे; तारक त्रिभुवन लोकनो अवतो करुणा कंद लाल रे अकल अरूपी मन वस्यो० १ सुदृढ कर्मोने हणे, रोपी चरण-रणथंभ लाल रे; प्रिय मंगल प्रिय लोफने, प्रिय मंगल वई अचंभ लाल रे ऋद्धि अनंती भोगवे, भोगरहित भगवान लाल रे; वरण गंधादिक गुण विना, गुणवंत तनु कंचनवान लाल रे. अकल. ३ For Private And Personal Use Only

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