Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

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Page 56
________________ तुलनात्मक धर्मविचार. जाता था कि सारा समाज मिलकर ही ईश्वर की पूजा कर सकता है और केवल यज्ञ से ही ईश्वर प्रसन्न हो सकता है। परंपरा से प्रचलित इस भावना को दृढ़ करने के लिए याइदी धर्म के पादरी तत्पर रहते और वह लोगों को समझाते कि याहूदी प्रजा और इसके ईश्वर यहोवाह के संबंध को बनाए रखने तथा ताज़ा करने के साधनरूप यज्ञ अनुष्ठान से ही ईश्वर की कृपा मिल सकती है और ऐसे यज्ञ एक व्यक्ति से नहीं हो सकते परन्तु सब समाज मिलकर कर सकता है। इस भावना के कारण ही याहूदी अपनी प्रजा को ईश्वर की अभीष्ट प्रजा के रूप में मानते और दूसरी प्रजा को ग्राम्य प्रजा मानते थे। जरथुस्ती धर्म में भी ऐसा विश्वास हमारे देखने में आता है। इस पर से हम देख सकते हैं कि प्राचीन समय में राजकीय समाजों को ही धार्मिक समाज माना जाता था और इसके परिणाम में राजकीय समाज की अवनति के साथ ही धर्म की भी अवनति होती / इस प्रकार बैबिलोनिया के साम्राज्य का अन्त होते ही अनेक देव पूजक बैबिलोनियनों का भी अंत आ गया ऐसा देखने में आता है / प्राचीन विश्वास के अनुसार समाजके देवताओं . के क्रोधके कारण ही राजकीय समाज की अवनति होने से, समाज की धार्मिक क्रियाओं को बनाई रखने पर, समाज और समाज के देवताओं के संबंध को स्थिर रखने वाले धर्म गुरुमका महत्व बढ़ता है और समाज उनके वचनों का पूर्ण विश्वास रखता है।

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