Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 28
________________ करते हैं। इस रायण की साक्षी में जो मैत्री बांधते हैं, वे दोनों व्यक्ति समग्र ऐश्वर्य सुख प्राप्त कर के अंत में परमपद पाते हैं। रायण वृक्ष के सम्बन्ध में यह कथा प्रसिद्ध है- महामारी का उपद्रव होने से सुबुद्धि नामक मंत्री ने भरत राजा से प्रणाम कर कहा। अपनी सेना के हाथी, घोडे और पदातियों में अद्भुत जाति की रोग पीडा उत्पन्न हो गई है, वह वैद्यों की दिव्य शक्ति वाली औषधियों से भी अगम्य है। हे स्वामी ! मेरा अनुमान है कि ये त्रिदोषजनित व्याधि नहीं अपितु कोई आगंतुक मंत्र-तंत्र जन्य दोष से उत्पन्न हुई व्याधि है। वे मंत्री श्रेष्ठ इस प्रकार कह ही रहे थे तभी आकाश को प्रकाशित करते दो अति तेजस्वी विद्याधर आकाश पट पर से वहाँ उतरे। सेना के लोगों के ग्रीवा ऊंची कर आदर से देखते हुए वे दोनों विद्याधर महाराज भरत को प्रणाम कर उनके सामने बैठ गए। उन दोनों भद्र आकृति और महातेजस्वी व्यक्तियों को देख चक्रवर्ती ने आदर पूर्वक उनसे पूछा, 'आप कौन हैं?' चक्रवर्ती की मूर्ति और वाणी से रंजित हुए उन दोनों विद्याधरों ने नमस्कार करके प्रसन्न वदन से चक्रवर्ती से कहा, हे स्वामी! हम वायुगति और वेगगति नामके दो विद्याधर हैं। हम आपके पूज्य पिता श्री ऋषभदेव भगवंत को वंदन करने गए थे। वहाँ श्री युगादीश ऋषभदेव के मुख से शनुजयगिरि का महात्म्य सुनकर वहाँ से हम उस उत्तम तीर्थ की स्पर्शना करने गए थे। वहाँ आनंद से सुंदर अट्ठाई उत्सव करके उन प्रभु के पुत्र व चक्रवर्ती, ऐसे आपको देखने हम यहाँ आए हैं। स्वामी के समान ही स्वामी के पुत्र को मानना चाहिए, ऐसा क्रम है। इस कारण आप भी श्री युगादीश के समान हमारे सेव्य हैं। इसलिए आपसे पूछते हैं कि हे प्रभु! आपकी यह सेना मंद तेज वाली क्यों दिखाई दे रही है? सूर्य के होते हुए कमल संकुचित हो, कैसे संभव है? चक्रवर्ती ने कहा, हे भाइयों! मेरी इस सेना में मंत्रौषधि से भी असाध्य, ऐसी विविध व्याधियां अकस्मात उत्पन्न हो गई हैं, जिससे सभी शत्रुञ्जय तीर्थ

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