Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 131
________________ शंखेश्वर पार्श्वनाथ के चमत्कार दयालु, करुणामय, तारणहार की हमारे पर भी एक मेहर नजर पड़े। भगवान पार्श्व के उपकारों का, गुणों का वर्णन हम न तो लेखनी से कर सकते हैं न शब्दों से, न ही इस छोटी-सी जुबान से, हम तो उनके चरणों की धूल भी नहीं हैं। पार्श्वनाथ के धर्म प्रभावना, उपदेशों का उक्त समय व्यापक प्रभाव था। दक्षिण भारत के नागराजतंत्र व पूर्वोत्तर के अनेक राजवंश पार्श्वनाथ भगवान को अपना इष्ट मानते थे। मगध प्रदेश, वैशाली नगरी, काशी कौशल के 10 गणराज, श्रावस्ती नगरी, कौशम्बी नगर, कंपीलपुर, सुग्रीव नगर आदि प्रदेश राजाओं को उपदेश देकर धर्मानुरागी बनाया। बौद्ध धर्म में अनेक स्थानों पर पार्श्वनाथ भगवान के चातुर्याम धर्म की चर्चा है। महात्मा बुद्ध भी पार्श्वनाथ के अनुयायी थे और तथागत बुद्ध ने पहले चातुर्याम धर्म मार्ग ग्रहण किया जो परमात्मा भगवान ने स्थापित किया था। इसी आधार पर तथागत बुद्ध ने आष्टांगिक धर्ममार्ग का प्रवर्तन किया। वेदों में भी पार्श्वनाथ भगवान का जिक्र आता है। पार्श्वनाथ भगवान के उपदेशों का प्रभाव सम्पूर्ण भारत से लेकर नेपाल, चीन, बर्मा, सिंगापुर, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, रूस तक था। आज भी इन स्थानों पर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाओं के अवशेष व शिलालेख मिलते हैं। परमात्मा पार्श्वनाथ का नाम स्मरण अन्य धर्मावलम्बी बड़ी श्रद्धा से लेते हैं, क्योंकि उनके पूर्वज के वे इष्ट देव थे। 116 त्रितीर्थी

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