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बैवार्मिकाबार ।
यह पढ़कर होम करनेके घीको अपने पास स्थापन करे ॥ ४० ॥
ॐ ही रुचमुपस्करोमि स्वाहा ॥ रुचस्तापनं मार्जनं जलसेचनं पुनस्तापनमग्रे निधापनं च ॥४१॥
यह मंत्र पढ़कर स्रुक (सुची) अर्थात् घी होमनेके पात्रका संस्कार इस प्रकार करे कि प्रथम उसे आमिपर तपावे सेकै इसके बाद उसे पौंछे, इसके बाद उसपर जल साँचे पुनः अग्निपर तपावे । और अपने सामने रक्खें ॥ ४१॥
ॐ ही रुवमुपस्करोमि स्वाहा ॥ रुवस्थापनं तथा ॥ ४२ ॥ . यह मंत्र बोलकर स्रुव अर्थात् होम सामग्रीको होमनेके पात्रका सुचीकी तरह संस्कार करे स्थापना करै ॥ ४२॥
ॐ ही आज्यमुद्रासयामि स्वाहा ॥ दर्भप्रिण्डोज्वलेन आज्यस्योद्वासनमुत्पाचनमवेक्षणं च ॥४३॥
यह मंत्र पढ़कर धीको तपावे । वह इस तरह कि दर्भके पूलेको जलाकर घीको उद्दासन ( उठावे ) उत्पाचन (तपावे ) और अवेक्षण ( देखे ) करे ॥ ४३ ॥
ॐ ही पवित्रतरजलेन द्रव्यशुद्धिं करोमि स्वाहा ॥ होमद्रव्यप्रोक्षणम् ॥४४॥ यह मंत्र पढ़कर द्रव्यशुद्धि करे ॥ ४४ ॥
ॐ ही कुशमाददामि स्वाहा ॥दर्भपूलमादाय सर्वद्रव्यस्पर्शनम्।।४५।। यह मंत्र पढ़कर दर्भके पूलेको उठाकर सब द्रव्यसे छुवावे ॥ ४५ ॥
ॐ ही परमपवित्राय स्वाहा ॥अनामिकांगुल्यां पवित्रधारणम् ॥४६॥ यह मंत्र पढ़कर अनामिका उंगलीमें पवित्र पहने ॥ ४६॥
ॐ हीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राय स्वाहा॥ यज्ञोपवीतधारणम् ॥४७॥ यह मंत्र पढ़कर यज्ञोपवीत पहने ॥ ४७ ॥
ॐ ही अग्निकुमाराय परिषेचनं करोमि स्वाहा ॥अग्निपर्युक्षणम् ४८॥ यह मंत्र पढ़कर कुंडके चारों ओर पानीकी धार छोड़े ॥ ४८॥